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रविवार, मई 08, 2011

बाबूजी ने इक्यासी वर्ष में प्रवेश किया


बाबूजी की ने उम्र के अस्सी बरस पूरे किये. कल से थी गहमा गहमी , खूब मज़ा किया रिटायर्ड बच्चों  ने जी हर माह किसी न किसी बुज़ुर्ग का हेप्पी वाला बर्थ-डे होता है. जिसे आज मैंने लाइव किया पर ज़ल्दबाज़ी में   

बाबूजी 
साउंड आन नहीं हो पाया था. फिर भी आप बैमबज़र पर  देख सकते हैं. अगर आपके परिवार में ऐसा कोई अवसर आए तो नाचीज़ हाज़िर है. बच्चों और बुजुर्गों की खुशी से बढकर शायद पूजा भी नहीं है  शायद आप में से कोई असहमत हो सकता है फिर भी आप से विचार को शेयर कर रहा हूँ .मेरी आप सभी के बाबूजी के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं ....   मेरे बाबूजी के साथ आप सभी के बाबूजीयों  के शतायु होने की मंगल कामना  

शुक्रवार, मई 06, 2011

इस यश को सहने की शक्ति देना प्रभू


 सम्मान  के यश को दुगना करने की रीत निभाई जबलपुर के स्नेहीजनों नें  किस किस का आभार कहूं कैसे कहूं स्तब्ध हूं. जी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दीवारें पोतने का काम करते हैं, उन पुताई करने वालों का भी आभारी हूं उनसे न तो मुझे गुरेज़ है न ही उनके लिये मेरे मन में कोई नकारात्मक भाव शुभचिंतकों का आभारी हू.........!!

ओबामा जी क्यों कहा ?

                       दीपक चौरसिया इस देश के महान तम मनो विज्ञानी हैं उनके बराबर इस देश में महान तत्वदर्शी भी कोई जी चाहता है कि  मैं उनके चरण छूकर प्रणाम ...करें .. स्टार न्यूज़ भी देखिये कितना महान है कि इस कार्यक्रम के लिये खुद का और देश का कितना समय देता है.  मुझ जैसे अल्प-ज्ञानीयों  को लादेन के मारे जाने के बाद  वक्तव्य-वीर के  बयान  से भी कुछ लेना देना नहीं  पर आज अचानक टीवी पर चल रहे एक कार्यक्रम को  देख  कर  मजा  आ  गया कि बताओ भला मैं महान विद्वानो की खोज में नाहक लगा हूं अपने दीपक से महान हैं कोई बताओ वो रातमुझे अच्छी तरह से याद है  जब एक मीडिया कर्मी ने जो  स्व०हरिवंश राय बच्चन के निधन की कवरेज़ जनता को दिखाने आए थे तब उनने पूछा था "कैसा महसूस कर रहें हैं परिजन..?"- भला इस सवाल से क्या उत्तर चाह रहे थे ये महाशय शायद ... इन महाशय के परिवार में सभी अमर-रस छक के आए हों गोया.   वक़ील साब यानी  राम जेठ मलानी जैसों  का गुस्सा कभी कभी  फ़ूट ही जाता है  .खैर   दीपक चौरसिया जी आपने यू एस प्रशासन  से इस बात की पता साची करता सवाल क्यूं नही पेश किया :-"आज़ उनके राष्ट्रपति नें ओसामा के अंत को भुनाने की कोशिश क्यों नहीं की...? "अगर दाउद को पाक़िस्तान में घुस कर भारतीय कमांडो मार आते तो  मालूम है क्या होता..? दिग्गी राज़ा जैसे कई लोग यहां तक कि जो कुछ भी नहीं जानते दाउद के बारे में वे भी छाती ठोंक-ठोंक के चीखते मानो खुद निपटा के आए हैं . बहरहाल आप महान हो भैया हम आपके ज्ञान का लोहा मानते हैं. 

मंगलवार, मई 03, 2011

"पाडकास्टर से वेबकास्टर तक की जात्रा : बारास्ता परिकल्पना/ नुक्कड़ सम्मान समारोह


वेबकास्टिंग का दौर आना और मुझे इस पेटे  सम्मान मिलना  मेरे लिये बस एक अनजाने में खेले गये खेल से मिली जीत का सा मामला है. मुझे नहीं मालूम था कि खटीमा के आयोजन से कोई करिश्मा होगा. होगया तो बात इस हद तक पहुंच जाएगी कि - निगाहें मुझे देखेंगी. ये अलग बात है कि  पुराने काम पाडकास्टिंग को बहुत बड़ा स्थान मिला ब्लाग जगत के दिल में... किंतु मन बार बार यही कहता रहा कि मैं हिंदी के भले के लिये  टेक्स्ट आधारित ब्लागिंग को ही अपनाऊं. कारण था कि - आडियो ब्लागिंग यानी पाडकास्ट, को सेकण्डरी कर दिया पर दिमाग ने सीधे अंगुलियों से कहा .."तलाशो अब लाइव हो जाने का रास्ता..! रास्ता है मिलेगा भी !!  " बस्स... इत्ती सी बात इस खोजा-तपासी के बीच एक न्योता भेज दिया अर्चना चावजी को कि वे मधुर आवाज़ में मिसफ़िट को सजाती रहें... हुआ भी यही.. उनके एहसानों को कैसे भुलाऊं कि पाडकास्टर से वेबकास्टर तक का सफ़र वे न होतीं तो पूरा करना सम्भव न था. आदरणीया अर्चना जी को आभार कह कर उनका कद छोटा न करूंगा. बहरहाल दिल्ली में श्री  निशंक जी के हाथौं मिला सम्मान हिंदी ब्लागिंग के प्रति मन की उकताहट को कम कर गया. बीच में एक खीज एक ऊब सी ऊग आई थी पर अब सब ठीक है कि मुझे कुछ नया इस लिये करना है ताकि "न्यू मीडिया" को परिपक्कवता मिलती रहे. ऐसा सभी सोच रहे हैं.हां वे सभी  जिनके काम का मूल्यांकन किया  परिकल्पना ने, नुक्कड़ ने, और हिंदी साहित्य निकेतन ने. कुछ भी हो भला हिंदी ब्लागिंग का ही तो होना है.व्यक्तिश:आभार कहूं तो अविनाश वाचस्पति, श्री गिरिजाशरण जी अग्रवाल ,डा० मीना अग्रवाल ,पद्म सिंह, श्री पवन चन्दन केवल राम जी , का स्नेहिल सहयोग कैसे भूलूं..?
सिलसिले वार रपट पेश करूंगा जो मेरा नज़रिया होगा.  


क्रमश: 


शनिवार, अप्रैल 30, 2011

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