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मंगलवार, नवंबर 09, 2021

Freedom movement intensified in Balochistan.

क्या पाकिस्तान फिर टूटेगा ?
            विगत कुछ दिनों में 18 बलूच स्टूडेंट्स को जबरिया हॉस्टल से उठा कर ले हथियारों से लैस लोग अपहरण करके ले गए । घर से जबरन उठाना सिंध और बलूचिस्तान के नागरिकों लिए कोई नई बात नहीं है। नादिर बलूच बताते हैं कि- यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट को अगवा करके ले जाया गया जिनका अब तक कोई अता पता नहीं है। अपहृत युवाओं एवं आंदोलनकारियों की हत्या भी कर दी जाती है और  हत्या के बाद शव को क्षत-विक्षत हालत में वीरान जगहों पर फेंक दिया जाता है। ऐसी क्रूरता लगभग 20 वर्षों से जारी होने की जानकारी ट्विटर स्पेस के जरिए इन दिनों आम होने लगी। इसी गुमशुदगी के विरोध में बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स  एक दिनी स्ट्राइक की घोषणा की है। यह स्ट्राइक  8 नवंबर 2021 से प्रारंभ करने जा रहे हैं । आंदोलनकारियों का कहना है कि बलूचिस्तान के स्टूडेंट्स को यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और पाकिस्तानी इंतजामियां के द्वारा उनके हॉस्टल से लगभग अपहृत किया जा रहा है। मानव अधिकार का घोर उल्लंघन करते हुए बलूचिस्तान में रियाज बलोच के अनुसार अब तक सैकड़ों लोगों को बिना किसी वैधानिक कार्रवाई के हिरासत में लेकर लापता कर दिया जाता है। बलूचिस्तान के मेंबर ऑफ पार्लियामेंट मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव असेंबली तथा मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी अब तो उस सवाल उठने लगे हैं। परंतु आई एस आई एवं पाकिस्तानी आर्मी का मानव अधिकार हनन का एजेंडा लगातार जारी है।
स्पेस पर मुखर होते बलूच नागरिक अब तो खुलेआम सरकार के कर्तव्यों और अपने अधिकारों की आवाज उठाते हैं। यह एक प्रतीकात्मक घटना है वास्तव में सिंध और बलूचिस्तान दोनों ही किसी भी हालत में पाकिस्तान के साथ रहना पसंद नहीं कर रहे है, और यही है पाकिस्तान के भविष्य में होने वाली विघटन का आधार। बलूचिस्तान तथा सिंधुदेश के नागरिक मूलभूत सुविधाओं के अभाव में घबराए हुए हैं।
    पिछले दिनों टि्वटर स्पेस में अपनी तकरीर करते हुए एक बलूच एक्टिविस्ट ने बताया था कि- जो नौजवान शादी करने जा रहा था उसे तक शादी की रस्म पूरी नहीं करने दी गई। और उसे लापता कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि इस मामले में यूनाइटेड नेशन के सामने मानव अधिकार से संबंधित याचिकाएं प्रस्तुत नहीं की गई परंतु यूनाइटेड नेशन द्वारा इस पर बहुत तेजी से काम करने की जरूरत है।
    बलूचिस्तान लिबरेशन मूवमेंट के अधिकांश एक्टिविस्ट इन दिनों बलूचिस्तान से बाहर अमेरिका यूके तथा अन्य यूरोपीयन देशों में रहकर यथासंभव मदद कर रहे हैं परंतु पाकिस्तान आर्मी मानव अधिकार की सबसे बड़ी बाधा सिद्ध होती जा रही है। यदि हम बात करें कि अब तक कितने आंदोलन बलूचिस्तान में किए गए तो हम देखते हैं कि
• प्रथम संघर्ष (१९४७-१९५५)
• द्वितीय संघर्ष (१९५८-५९)
• तृतीय संघर्ष (१९६० के दशक में)
• चतुर्थ संघर्ष (१९७३-७७)
• पंचम संघर्ष (२००४ से २०१२ तक)
• षष्ट संघर्ष (२०१२ से अब तक)
         भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाला पाकिस्तान इन दिनों आर्थिक तनाव सामाजिक अस्थिरता के साथ-साथ नागरिक जीवन समंक सिटीजन लाइफ इंडेक्स के मामले में नकारात्मक स्थिति निर्मित कर रहा है।
•     वर्तमान में रोज आजादी की हिमायत करने वाले राष्ट्रों में  इराक, इजराइल, सोवियत संघ,अमेरिका  एवं भारत का नाम भी शुमार होता है (विकीपीडिया के अनुसार)। 
  सभी राष्ट्र उनकी मांगों को जायज स्वीकारते हैं तथा उन पर होने वाले जोर जुल्म के खिलाफ अपनी बात रखते हैं। परंतु विगत कई वर्षों से इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा ना के बराबर ही हुई है। बेशक उसका कारण जियो पोलिटिकल सिचुएशन और कोविड-19 की भयावह स्थिति भी हो सकती है इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
   मित्रों पाकिस्तान के आजादी के उत्सव में बलूच और सिंधुदेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानसिक और भौतिक रूप से उपस्थित नहीं रहते। इन दोनों स्वतंत्रता की पक्षधर राज्य इन दिनों सोशल मीडिया पर तेजी से सक्रिय हुए हैं। लेकिन कोई भी आंदोलन केवल सोशल मीडिया के जरिए सफल नहीं हो सकता । आंदोलनकारियों को सुभाष चंद्र बोस की तरह अपनी रणनीति बनानी होगी तब वह किसी हालत में पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक अव्यवस्था सामाजिक प्रतिकूलता एवं अपनी राष्ट्रवादी आस्थाओं के साथ आगे बढ़ सकते हैं। ट्विटर पर आज स्पेस में पता चला कि स्टूडेंट्स का हड़ताल वाला आव्हान वर्तमान में लापता 15 स्टूडेंट्स की रिहाई की घोषणा तक चल सकता है और इस पर भी प्रो आर्मी पाकिस्तानी डेमोक्रेटिक सिस्टम ने अगर उन्हें रिलीज नहीं किया तो वह पूरी यूनिवर्सिटी को लगातार बंद रख सकते हैं।
     एफएटीएफ द्वारा लगे प्रतिबंधों में अगर मानव अधिकार को भी शामिल किया जाए तो पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से मुक्ति तो नहीं मिल सकती बल्कि उन्हें ब्लैक लिस्ट में भी जाना पड़ सकता है। भारत में संप्रदाय विशेष के लिए गाहे-बगाहे प्रश्न उठाने वाले पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व एवं उनके कैबिनेट के लोग आत्म निरीक्षण कर कम से कम मानव अधिकारों के संबंध में ना तो गंभीर है और ना ही संवेदित नजर आते हैं ।
    वर्तमान परिस्थितियों को पर गौर करें तो पाकिस्तान की स्थिति 1971 वाली स्थिति हो सकती है इसमें कोई दो राय नहीं। यह पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी आई एस आई और मिलिट्री स्वयं भी जानती है ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

सोमवार, नवंबर 08, 2021

भारत केवल एक भूमि नहीं बल्कि विचार भी है


  भारत एक भूखंड का नाम नहीं है बल्कि भारत एक विचार भी है इस विचार में अंतर्निहित है-
[  ] भारत की सभ्यता
[  ] सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार
[  ] आध्यात्मिक जीवन धारा
[  ] सांस्कृतिक वैभव
[  ] वैश्विक सहिष्णुता
       भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है कोई भी नकार नहीं सकता। भ्रांति वर्ष या उदाहरणों की साक्ष्यों की उपलब्धता ना होने के कारण यह कई बार कहा गया है कि भारत की सभ्यता का विकास बिंदु लगभग 5000 वर्ष पुराना है। इस संबंध में चिंतन एवं अध्ययन से पता चलता है कि भारत की सभ्यता का विकास वर्तमान मन्वंतर में 25000 वर्ष पूर्व हुआ। इसके पूर्व भारतीय सभ्यता वनचारी सभ्यता थी इसमें कोई शक नहीं। वनचारी सभ्यता का अर्थ समझने के लिए श्रीयुत श्रीधर वाकणकर को संदर्भित किया जा सकता है। उनकी खोज से स्पष्ट हो जाता है कि मध्य भारत में भी प्राचीन मानव के आवासीय प्रमाण मिले हैं। और यह प्रमाण लगभग डेढ़ लाख से दो लाख वर्ष पूर्व के हैं। यहां यह प्रमाण नहीं मिलते कि भारत में मनुष्य प्रजाति का प्राणी अफ्रीका से आया था। इसके पीछे मेरा अवलोकन है कि-"जहां मानव प्रजाति के पूर्व अन्य स्पीशीज के सृजन का अवसर प्रकृति ने दिया वहां कालांतर में मानव सभ्यता का विकास हुआ है। अब यह कहना सर्वथा संदिग्ध होगा कि- अफ्रीका से मानव प्रजाति का झील विकसित हुआ"
    डायनासोर जो मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के नजदीक स्थित जिला डिंडोरी के जंगलों में पाए जाते थे। इस बात की गवाही देते हैं वहां मिले फॉसिल। अर्थात डायनासोर  और उससे छोटे जीवो का अस्तित्व भारत में रहा है ऐसी घटनाएं और जगह भी हो सकती हैं इससे असहमति नामुमकिन है। सुधि पाठक जन इसका तात्पर्य है कि जीव विकास के लिए अनुकूल परिस्थिति जब मध्यप्रदेश में करोड़ों साल पूर्व रही है तो मानव जीवन के अस्तित्व में आने की परिस्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता।
[  ] सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार
शनै शनै वनवासी मानव जीवन ने अपने आप को विकसित किया और यह विकास बौद्धिक कारणों से कर लिया। जिसका का प्रथम चरण का समूह में रहना आत्मरक्षा के प्रयास का नाम जैसे गुफाओं में रहना आदि आदि। फिर धीरे-धीरे समूह का विस्तार हो जाना यह प्रक्रिया मेरे अनुमान से लगभग पच्चीस से पचास हजार वर्ष में पूर्ण हुई होगी। इस प्रकार क्रमश: परंतु धीरे-धीरे सभ्यता विकसित होती रही।
[  ] आध्यात्मिक जीवन धारा-
भारत की आध्यात्मिक जीवन धारा  की रीढ़ की हड्डी है । भारत में जिन सिद्धांतों को हजारों साल पहले प्रतिपादित कर दिया वे मानवता के सिद्धांत थे । द्वैत अद्वैत के मूल आधार पर विश्व बंधुत्व का उद्घोष करता हुआ यह मंत्र सर्वे जना सुखिनो भवंतु मानव संस्कृति का मूल आधार है। इसके बिना कोई भी संस्कृति दीर्घकाल तक व्यवस्थित और स्थापित नहीं रह सकती। भारत का अध्यात्म कहता है कि जब मानवीय मूल्यों का संरक्षण करना हो तो शत्रु को भी प्रोटेक्शन दो और जब न्याय का महत्व रेखांकित करना हो तो महाभारत करो। शब्दों का खेल नहीं बल्कि हमारी सभ्यता की मूलभूत विशेषता है। महाभारत क्यों हुआ कृष्ण ने दुर्योधन से न्याय हित  में कुल 5 गांव मांगे थे दुर्योधन मान लेते पांडव युद्ध के लिए आगे ना बढ़ते। न्याय को न करने वाला सदैव शूलों की शैया पर लेटता है । वरदान जो अभिशाप बन जाता है इच्छा मृत्यु का वरदान बीच में जैसे पवित्र व्यक्ति के लिए अभिशाप बन गया। अभिशाप इसलिए कि नुकीले वाणों से बनी सैया पर एक लंबी अवधि तक उन्हें लेटे रहना पड़ा। उन्होंने द्रोपती के चीरहरण के समय महिला के हित में एक भी आवाज ना उठाई। वास्तव में यह एक संदेश भी है कि यदि आप कमजोर के हितों के रक्षक नहीं है तो आपको उसका परिणाम अवश्य मिलेगा। अफगानिस्तान की परिस्थितियों को देखिए जुल्म जुर्म और आक्रांता का दस्तावेज बन गया है अफगानिस्तान। इतिहास में कभी भी इन्हें सकारात्मक नजरिए से कोई नहीं देखेगा। मुझे तो संदेह है कि ऐसी विचारधारा भी बहुत जल्दी समाप्त हो जाएगी जो कमजोर वर्ग के लिए हिंसक हो। आपने देखा होगा माया इंका,मिस्त्र की सभ्यता
,मेसोपोटामिया की सभ्यता,सुमेरिया की सभ्यता,असीरिया की सभ्यता,चीन की सभ्यता,यूनान की सभ्यता,रोम की सभ्यता समाप्त हुई इसके पीछे उनकी आध्यात्मिक विचारधारा में कमियां निश्चित रूप से मौजूद रही है।
[  ] सांस्कृतिक वैभव-
भारत के सांस्कृतिक विकास में धर्म जो संप्रदाय नहीं है,मानवीय मूल्य, आध्यात्मिक दर्शन, मानवता के प्रति प्रतिबद्धता, जन के अधिकारों जैसे तत्वों का न्याय और निष्ठा का समावेशन किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप हमारा सांस्कृतिक स्वरूप वैभवशाली है। और यही वैभव आकृष्ट करता है दुनिया को।
[  ] वैश्विक सहिष्णुता
क्योंकि भारत में विश्व बंधुत्व का समावेश है अतः भारत का सदैव प्रयास होता है कि विश्व के साथ संबंध सकारात्मक रहे। इसके उदाहरण सम्राट अशोक के काल के पूर्व द्वापर और उसके पूर्व त्रेता युग के इतिहास में परिलक्षित होता है।
    इंडोनेशिया बाली जावा सुमात्रा श्रीलंका इत्यादि क्षेत्रों की यात्रा कर बुद्ध ने भी यही साबित किया है।
   अखंड भारत यही है इस का भौगोलिक स्वरूप राजनीतिक स्वरूप सामाजिक एवं आर्थिक स्वरूप भले ही सीमा में बंधा हुआ हो परंतु वैचारिक रूप से जहां एक भारतीय जाता है वहां एक भारत जन्म ले लेता है। अन्य संप्रदायों को बल छल कपट और लालच देकर अपनी संस्कृति और पूजा प्रणाली वितरित करते हुए हमने देखा है आप भी देखते हैं। लेकिन भारतीय ऐसा नहीं करते। भारतीय सनातन के विस्तार के लिए कार्य नहीं करते। क्योंकि सनातन में सन्निहित मूल्यों का क्षरण नहीं होता। अगर आप अमृत की परिभाषा जानना चाहते हैं तो सनातन के मूल्यों को देख सकते हैं। सनातन को स्वीकार नाना स्वीकार ना यहां यह सवाल नहीं है और ना ही मैं सनातन का प्रचारक हूं पर सनातन व्यवस्था अनूठी सामाजिक व्यवस्था है क्यों अनादि है अनंत है।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

शुक्रवार, नवंबर 05, 2021

पलारी पटाखे और प्रदूषण

न्यूज़ चैनल हल्ला मचाते हुए प्रदूषण पर बेहद टेंशन क्रिएट कर रहे हैं। यह उनकी जिम्मेदारी है और वह बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। परंतु दिवाली के पटाखे पीएम 2.5 के लिए उत्तरदाई है अथवा एयर पोलूशन कास्ट 999 जो लगभग 1000 है यह चिंता जायज है। परंतु दुर्भाग्य इस बात का कि केवल दिवाली की आतिशबाजी को ही उत्तरदायित्व दिया जाता है। (मेरे मित्र समीर शर्मा अनिवासी भारतीय दुबई से इन दिनों अयोध्या और भारत भ्रमण के लिए आए हुए हैं) ने बताया कि जल्द ही अपनी लद्दाख यात्रा का विवरण सामने रखेंगे परंतु मोटी तौर पर सोनम वांगचुक से मुलाकात के बाद उन्होंने पाया कि पलारी को खाद में बदलने का सफल प्रयोग उन्होंने अपनी आंखों से देखा है।
     इस संदर्भ में सोनम के प्रयासों को हाईलाइट करने एवं उसे जनता के बीच लाने की जरूरत है। यहां असहमति बिल्कुल नहीं है कि प्रदूषण में पटाखा जलाना एक अपने आप में प्रदूषण का कारक है। दिल्ली में लगभग सवा करोड़ गाड़ियों से उत्सर्जित प्रदूषण 41% पलारी जलने से 22% धूल से 35% शेष अन्य कारणों से होता है, पलारी का प्रदूषण  3-4 महीनों तक प्रदूषित करता  है।। स्थाई तौर पर फैक्ट्रियां  16% से अधिक स्थाई तौर से प्रदूषण दूषित करने की जिम्मेदार पाई गई है । यह 365 दिनों का गुणा भाग है प्रतिशत के गणितीय योग में कुछ अंतर आ सकता है परंतु मेरा उद्देश्य केवल यह सिद्ध करना है कि पटाखे विषाक्त नुकसानदायक हैं परंतु बाकी मुद्दों पर भी सुप्रीम कोर्ट को स्ट्रिक्ट गाइडलाइन जारी करनी चाहिए और प्रदेश सरकारों को इसका कड़ाई से पालन कराना चाहिए। एक रिपोर्ट में यह देखा गया कि जिन महानगरों में प्रदूषण की मात्रा अधिक रही वहां कोविड-19 सर्वाधिक प्रभावी रहा है। अतः सरकार एवं जनता दोनों को ही मिलकर स्वास्थ्य के मद्देनजर कठोर निर्णय लेने चाहिए। सचमुच में मामला 362 दिनों का है प्रदूषण रोकने के लिए स्थाई रूप से उठाए गए कदमों की पतासाजी की जाए तो पता चलता है कि ना तो हमने और ना ही व्यवस्था ने कोई कठोर कदम अब तक उठाए हैं। क्या होने चाहिए कठोर कदम आइए देखते है
[  ] पटाखा निर्माण करने वाली कंपनियों को केवल ग्रीन पटाखे निर्माण की अनुमति दी जावे।
[  ] पलारी जलाने के स्थान पर कोई स्थाई व्यवस्था जो पूसा संस्थान अथवा सोनम वांगचुक द्वारा की जा रही प्रयोग पर आधारित हो करना अब बिल्कुल अनिवार्य है।
[  ] वाहनों के अत्यधिक उपयोग पर हमें यानी आम जनता को रूप लगाना चाहिए यह स्वायत्त अनुशासन की श्रेणी में आएगा।
[  ] इलेक्ट्रिकल व्हीकलस की आयात एवं उनके संचालन अथवा भारत में असेंबल करने के लिए तेजी से सकारात्मक कार्य अगले 2 साल में कर लेने से हम प्रदूषण स्तर को ग्लास्गो सम्मिट में भारत के प्रधानमंत्री जी की उद्घोषणा को सफल बना सकते हैं।
[  ] छोटे नगरों में ओपन नाली एवम नालों कवर करना चाहिए स्मार्ट सिटी परियोजनाओं वाले शहरों में तो यह कार्य तुरंत हो सकता है
[  ] प्रदेश सरकारों को स्मार्ट ग्राम प्रबंधन कार्यक्रम भी चलाना चाहिए।
[  ] माननीय सुप्रीम कोर्ट को पूरे देश भर के लिए जारी गाइडलाइन को एक बार रिव्यु करना जरूरी है। यह कार्य मोटो भी हो सकता है या किसी पीआईएल के जरिए भी।
[  ] उन प्रदेशों पर विशेष रुप से दबाव बनाया जाए जो ग्रीन पटाखे बनाने वाली कंपनियों को अंधाधुंध लाइसेंस दे रहे हैं।
समस्या को जड़ से काट दिए जाने के प्रयास होने चाहिए ना की अनर्गल प्रलाप होना चाहिए। वैश्विक स्तर पर टीवी चैनलों पर होने वाली आरोप-प्रत्यारोप की बहस से उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण है आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए सामाजिक वैज्ञानिक एवं प्रशासनिक एकात्मता का। दीपोत्सव के 4 दिन महत्वपूर्ण है परंतु बाकी प्रयास भी जरूरी है

शनिवार, अक्तूबर 30, 2021

जश्ने जमानत और ड्राइवर अनिल का चिंतन


💐💐💐💐
भारत का इतिहास और कारागारों का इतिहास महान घटनाओं का साक्षी है। आज एक और महान घटना घटित हुई मेरा ड्राइवर अनिल बर्मन इस घटना को लेकर बेहद चकित है। अनिल का कहना है कि आर्यन खान ने ऐसा कौन सा महान कार्य किया जिसके कारागार से रिलीज होने पर मन्नत में लोगों की भीड़ जमा हुई है।
यद्यपि उत्तर देने के लिए मैं बौद्धिक स्तर पर स्वयं को सक्षम नहीं पा रहा हूं परंतु उत्तर तो देना था। तो मैं आप सब के विचार समझने के लिए यह विषय रख देता हूं आपके सामने।
  जमानत पर रिहाई के बाट नशा खोर बच्चा जिसकी उम्र 23 साल है के स्वागत के लिए जनता का सड़कों पर आना अपराध के ग्लैमरस होने की प्रक्रिया है।
   एक झूठी खबर के आधार पर भारत से लेकर पूरे विश्व में यह खबर फैल जाना कि एक संप्रदाय विशेष खतरे में है जबकि इस देश का प्रधानमंत्री महामहिम पोप जॉन पौल से मिलने वेटिकन सिटी गया हो यह खबर मीडिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि एक नशा करने वाला आज कारागार से मुक्त हुआ है।
    राष्ट्र की प्रगति के समाचारों के बीच ड्रग एडिक्ट्स के अपराधों को इस तरह से पोट्रेट करना इस देश के कुछ एक मीडिया समूह के मानसिक स्तर का खुला प्रदर्शन है। वह तो इस घटना को नवजात कृष्ण के बंदी ग्रह से बाहर आने के बराबर साबित करने पर बदस्तूर कार्य कर रहे हैं। साथियों इस राष्ट्र की मजबूरी क्या है समझ से परे है। एक दसवीं पास वाहन चालक जब इस तरह के घटनाक्रम से व्यथित हो सकता है तो आम आदमी जो संभवत है उससे कुछ ज्यादा पढ़ा लिखा होगा संकुचित विचारधारा लेकर इतना उत्साहित क्यों है?
   इस देश में नशा करने वाली पीढ़ी को इतना श्रेष्ठ दर्जा देना उस पर दिनभर खबर चलाना हमारा दुर्भाग्य है। मैं आज अपने वाहन चालक के सवाल से आहत हूं सोचता हूं क्या जवाब दूं आप मेरी मदद कीजिए

बुधवार, अक्तूबर 27, 2021

क्यों नहीं खेलना चाहिए पाकिस्तान के साथ क्रिकेट


   पाकिस्तान एक संप्रदाय सापेक्ष राष्ट्र है। इस राष्ट्र की बुनियादी शैक्षणिक व्यवस्था केवल और केवल इस्लाम आधारित है। पाकिस्तान एक ऐसा राष्ट्र बन कर रह गया है जो विश्व की किसी भी संस्कृति से अब मेल नहीं खाता। इस देश से कोई भी राष्ट्र और मानवतावादी दृष्टिकोण के पक्षधर पाकिस्तान की सामाजिक परिस्थितियों से कभी भी समन्वय स्थापित कर सकने में सफल नहीं रहेगी। मुस्लिम एक एकात्मवाद जिसे मुस्लिम ब्रदरहुड या मुस्लिम उम्मा माना जा सकता है वैश्विक परिदृश्य में किसी भी स्तर पर विश्व के अन्य देशों के साथ सामान्य दृष्टि तब तक कायम नहीं कर सकता जब तक कि पाकिस्तान अपनी संप्रदायिक सोच को जबरन दूसरे आध्यात्मिक चिंतन पर स्थापित करने की कोशिश करता रहेगा। हाल ही में पाकिस्तान के गृह मंत्री ने भारत-पाकिस्तान के टी20 मैच में पाकिस्तान की विजय को इस्लाम की विजय कहा है।
इतना ही नहीं पाकिस्तान के अल्प बुद्धि प्रधानमंत्री ने भी कश्मीर को लेकर कटाक्ष किया है। जहां तक मोहम्मद शमी का सवाल है हिंदुस्तान का यह अनोखा खिलाड़ी भारत का ही वफादार खिलाड़ी तब तक कहा जाएगा जब तक कि वह हिंदुस्तान की अस्मिता और एकात्मता को जिंदाबाद करता रहेगा। शमी को ना तो किसी ने ट्रोल किया है और ना ही आज तक किसी भी मुस्लिम खिलाड़ी को धर्म के आधार पर भारत में किसी भी तरह की गैर बराबरी रखी है। परंतु  पाकिस्तान की 70 साल पुरानी क्रिमिनल सोच का है और वामपंथी मीडिया की बदतमीजी का एजेंडा सर्वव्यापी है जिसने भारत कि रियल सेक्यूलर इमेज को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है।
   कुल मिलाकर पाकिस्तान एक ऐसा चूर्ण बेच रहा है जो एक मानसिक दिवालियापन और घोर असामाजिक असहिष्णु वातावरण का जनक है। खेलकूद स्पर्धा जैसे मुद्दे ना तो इस्लामिक होते हैं ना ही अन्य किसी संप्रदाय से संबंधित। परंतु राजनीतिक स्तर पर इस तरह के वार्तालाप से यह सुनिश्चित हो चुका है कि पाकिस्तान की राजनैतिक परिस्थितियां पाकिस्तान के लिए आत्मघाती एवं दुर्भाग्यपूर्ण है।
    इन परिस्थितियों को देखते हुए न केवल भारत बल्कि मानवतावादी विश्व को चाहिए कि पाकिस्तान के साथ सांस्कृतिक संबंधों को भी समाप्त कर दिया जावे। परंतु यह संभव नहीं है.
   फ्रांस और अन्य गैर इस्लामिक राष्ट्रों ने जिस तरह पाकिस्तान के लोगों की मानसिक अतिचार के विरुद्ध आवाज बुलंद की है उस पर अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र भी मौन साध कर रखे हैं इसका आशय यह है कि अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र भी मानवता वादी चिंतन को बढ़ावा देने में आगे आ रहे हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सहित उन सभी संस्थानों को पाकिस्तान के साथ संपर्क तुरंत समाप्त कर देना चाहिए।

बुधवार, अक्तूबर 13, 2021

पंडों के खिलाफ भड़काना प्रगतिशील लेखकों का प्रमुख एजेंडा

 
      सनातन संस्कृति में प्रयागराज के पंडों का अपना अलग महत्व है। हिंदू धर्म से अन्य संप्रदाय में जाने वाले लोगों के रिकॉर्ड रखने के लिए तथा उन्हें यह अवगत कराने के लिए कि वे लोग किस वंश से संबंध रखते हैं जैसे महत्वपूर्ण कार्य पंडे ही किया करते थे। यह कार्य एक सुनियोजित व्यवस्थित ढंग से निष्पादित होता है। पंडे गांव गांव जाकर वंश का रिकॉर्ड रखे हैं । सनातन व्यवस्था के तहत पूर्वजों के संबंध में विस्तृत जानकारी का मेंटेनेंस या संधारण सामान्य दिनों में अथवा श्राद्ध पक्ष में भी होता है। पंडों का कार्य देशभर के गांव में घर घर जाकर डाटा कलेक्शन का कार्य होता था। इस कार्य में किसी भी तरह की सरकारी इमदाद या प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती थी। आप जब अपने पंडे के पास जाइएगा
आपको आपके परिवार का इतिहास उपलब्ध हो जाएगा।
    और यह जानकारी बड़ी सटीक तथा प्रभावी होती थी। वर्तमान में भी बहुत सारे पंडे इस व्यवस्था को निरंतरता दे रहे। परंतु वामपंथी सहित इस संदर्भ में बेहद नकारात्मक और गंदे तरीके से सनातन को अपमानित करने के लिए लगातार लिख पढ़ रहा है और अभी भी यह सिलसिला रुका नहीं है। काफी हाउस में सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए साहित्य का सृजन कर रहे हैं और उनका मूल विषय सनातन धर्म के विरोध अलावा और कुछ नहीं। इस आर्टिकल के माध्यम से सभी सनातनीयों को साफ संदेश दे रहा हूं ऐसे किसी भी बुरे प्रयास के खिलाफ जागृत हो और सनातन के प्रति अपना इसने बरकरार रखें
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

सोमवार, अक्तूबर 11, 2021

अवतरण दिवस और जन्म दिवस : आनंद राणा

कल एक वरेण्य संपादक श्रीयुत काशीनाथ शर्मा  जी ने अवतरण दिवस और जन्म दिवस को लेकर मेरी वाॅल पर प्रकारांतर से द्वंद्वात्मक टिप्पणी के साथ जिज्ञासा व्यक्त की। मैंने उत्तर देने का प्रयत्न किया-:
महात्मन्, आप नाहक विरोधाभास में हैं और अंर्तद्वंद्व की अवस्था में है।, जबकि दोनों के प्रसंग और संदर्भ पृथक - पृथक होते हुए भी अद्वैत हो जाते हैं। आचार्य शंकर ने दो सत्य कहे हैं एक पारमार्थिक दूसरा व्यावहारिक। मैं पारमार्थिक दृष्टि की बात कर रहा हूँ जो परम सत्य है। आपकी दृष्टि व्यावहारिक हो सकती है जो आभास मात्र है।
"मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पय:, जातौ जातौ नवाचारा: नवा वाणी मुखे मुखे.".. परम आदरणीय महोदय जी, उपर्युक्त दो पंक्तियाँ सार्वभौमिक और सार्वजनीन हैं और क्या सही माने? इस बात का पटाक्षेप कर देतीं हैं तथापि आपने जिज्ञासा व्यक्त की है,तो ध्यातव्य हो कि अद्वैत का द्वैत भाव आत्मा और शरीर के रुप में अभिव्यक्त होता है तो आत्मा अजर, अमर है उसी के आलोक में अवतरण है जबकि शरीर का जन्म है तो मृत्यु भी है आत्मा का शरीर के साथ आगमन अवतरण हो वहीं शरीर का जन्म यद्यपि इस पर एक संगोष्ठी हो सकती है पर समय ही व्यर्थ होगा और अनावश्यक छिद्रान्वेषण?चूंकि आपने मुझे पोस्ट किया है इसलिए आदि शंकराचार्य जी कि यह टीका प्रेषित है "जायते  न उत्पद्यते जनिलक्षणा वस्तुविक्रिया न आत्मनो विद्यते इत्यर्थः। तथा  न म्रियते वा । वाशब्दः चार्थे। न म्रियते च इति अन्त्या विनाशलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते।  कदाचिच्छ ब्दः सर्वविक्रियाप्रतिषेधैः संबध्यते न कदाचित् जायते न कदाचित् म्रियते इत्येवम्। यस्मात्  अयम्  आत्मा  भूत्वा  भवनक्रियामनुभूय पश्चात्  अभविता  अभावं गन्ता  न भूयः  पुनः तस्मात् न म्रियते। यो हि भूत्वा न भविता स म्रियत इत्युच्यते लोके। वाशब्दात् न शब्दाच्च अयमात्मा अभूत्वा वा भविता देहवत् न भूयः। तस्मात् न जायते। यो हि अभूत्वा भविता स जायत इत्युच्यते। नैवमात्मा। अतो न जायते। यस्मादेवं तस्मात्  अजः  यस्मात् न म्रियते तस्मात्  नित्य श्च। यद्यपि आद्यन्तयोर्विक्रिययोः प्रतिषेधे सर्वा विक्रियाः प्रतिषिद्धा भवन्ति तथापि मध्यभाविनीनां विक्रियाणां स्वशब्दैरेव प्रतिषेधः कर्तव्यः अनुक्तानामपि यौवनादिसमस्तविक्रियाणां प्रतिषेधो यथा स्यात् इत्याह  शाश्वत  इत्यादिना। शाश्वत इति अपक्षयलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते। शश्वद्भवः शाश्वतः। न अपक्षीयते स्वरूपेण निरवयवत्वात्। नापि गुणक्षयेण अपक्षयः निर्गुणत्वात्। अपक्षयविपरीतापि वृद्धिलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते पुराण इति। यो हि अवयवागमेन उपचीयते स वर्धते अभिनव इति च उच्यते।  अयं  तु आत्मा निरवयवत्वात् पुरापि नव एवेति  पुराणः  न वर्धते इत्यर्थः। तथा  न हन्यते । हन्तिः अत्र विपरिणामार्थे द्रष्टव्यः अपुनरुक्ततायै। न विपरिणम्यते इत्यर्थः।
हन्यमाने  विपरिणम्यमानेऽपि  शरीरे । अस्मिन् मन्त्रे षड् भावविकारा लौकिकवस्तुविक्रिया आत्मनि प्रतिषिध्यन्ते। सर्वप्रकारविक्रियारहित आत्मा इति वाक्यार्थः। यस्मादेवं तस्मात् उभौ तौ न विजानीतः इति पूर्वेण मन्त्रेण अस्य संबन्धः।।
य एनं वेत्ति हन्तारम् इत्यनेन मन्त्रेण हननक्रियायाः कर्ता कर्म च न भवति इति प्रतिज्ञाय न जायते इत्यनेन अविक्रियत्वं हेतुमुक्त्वा प्रतिज्ञातार्थमुपसंहरति" "वासांसि वस्त्राणि जीर्णानि दुर्बलतां गतानि यथा लोके विहाय परित्यज्य नवानि अभिनवानि गृह्णाति उपादत्ते नरः पुरुषः अपराणि अन्यानि तथा तद्वदेव शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति संगच्छति नवानि देही आत्मा पुरुषवत् अविक्रिय एवेत्यर्थः।।
कस्मात् अविक्रिय एवेति आह".... अवतरण का तादात्म्य आत्मा से है इसलिए आपकी शंकाएं और आशंकाएँ निर्मूल हैं। फिर जाकी रही भावना जैंसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैंसी।
इसलिए दोनों अभिव्यक्तियाँ अपने - अपने स्थान पर सही हैं।
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डॉ. आनंद सिंह राणा 
🙏🙏🙏

गुरुवार, सितंबर 30, 2021

दलित एक अमानवीय शब्द है

    
बाबा भीमराव अंबेडकर और बाबू जगजीवन राम को देखकर लगता है कि यह हमारे देश के जीवंत नायक हैं। संविधान ने जाति और ट्राईबल को शेड्यूल में रखकर उन्हें शेड्यूल्ड कास्ट शेड्यूल्ड ट्राइब की श्रेणी में विभाजित किया है। सुप्रीम कोर्ट भी यह चाहता है कि ऐसे अपमान कारी शब्दों का प्रयोग ना किया जाए जिससे किसी वर्ग को लज्जा भाव का एहसास हो। मैं भी इस तथ्य का पुरजोर समर्थन करता हूं। स्पष्ट रूप से बताना चाहता हूं कि दलित शब्द एक ऐसी भावना को जन्म देता है जो बदलते भारत की सुखद तस्वीर को घृणा में परिवर्तित कर देती है। इतना ही नहीं दलित शब्द का इस्तेमाल कर सियासत का पारा गर्म या ठंडा करने वाले लोगों के लिए भी यह सर्वथा अनुचित कदम है। 
यहां यह समझने की जरूरत है कि एट्रोसिटी एक्ट प्रभावशाली है और इसका प्रयोग करते हुए इस दलित शब्द को किसी या किन्ही जाति वर्ग को संबोधित करना सामंतवादी प्रकृति का परिचय है। संपूर्ण विशेष जातियों को जिन्हें शेड्यूल्ड कर रखा है को दलित शब्द कहकर उन संवर्ग के लोगों के मन को दुख पहुंचाने वाली बात है। महा मना भीमराव अंबेडकर जी एवं बाबू जगजीवन राम जी के व्यक्तित्व एवं उनके कृतित्व के अलावा बहुत सारे ऐसे व्यक्तित्व हैं जो वाकई हमारे आईकान है और हमें ऐसे  व्यक्तियों की जरूरत होगी भारत को महान बनाने के लिए। मैं जातीय व्यवस्था के बहुत सारे पहलुओं पर निरापद मार्ग का पक्षधर हूं। वैसे बहुत इंतजार नहीं करना होगा मध्यकाल एवं उसके उपरांत बनाई गई है जाति व्यवस्था बहुत शीघ्र समाप्त हो जाएगी। 


दलित एक अमानवीय शब्द है इसे भाषा से ही पथक करना होगा प्रत्येक विशेष वर्ग का व्यक्ति मानव है ना कि वह दलित है या सवर्ण है बल्कि वह भारतीय है

इस आर्टिकल में अभी इतना ही विस्तार से अगले आर्टिकल की प्रतीक्षा कीजिए

सोमवार, सितंबर 27, 2021

एमबीए चायवाला प्रफुल्ल बिल्लोरे

        MBA CHAIWALA 
  प्रफुल्ल बिल्लोरे एक ऐसा नाम है जिन्होंने जिंदगी को शर्तों पर जीने का इरादा तय कर लिया था। 1996 में धार जिले के एक कस्बे में जन्मे प्रफुल्ल ने वो कर दिखाया जो देख कर तो अच्छा लगेगा पर उसे कर पाने हौसला कुछ लोगों में ही मिलेगा। एमबीए में एडमिशन के लिए परेशान प्रफुल्ल ने अपनी यायावरी इस वजह से शुरू की किस गोरा उन्हें कोई एक मुकम्मल मंजिल हासिल हो जाए। जी हां मैं अहमदाबाद के एमबीए चायवाला प्रफुल्ल की बात कर रहा हूं। यहां एमबीए का अर्थ  डिग्री नहीं है बल्कि मिस्टर बिल्लोरे अहमदाबाद है। इस युवक की जिंदगी बड़ी रोचक है असफलताओं पर निराश होना मानव प्रवृत्ति है परंतु असफलताओं से सीख कर सफल हो जाना एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी उदाहरण ही कहे जाएंगे।
   यूं ही मेरी मुलाकात थी प्रफुल्ल से ट्विटर पर हुई मैंने पूछा आर यू एन डी उत्तर मिला धार से हूं।
एमबीए चायवाला एक ब्रांड एक सोच एक सफलता की चाबी एक इच्छा शक्ति हां यही है प्रफुल्ल का जीवन परिचय और पहचान।
    प्रफुल्ल कहते हैं कि अपनी सफलता के लिए पेरेंट्स और परिस्थिति को दोष नहीं देना चाहिए बल्कि परिस्थितियों पर काबू कर लेना चाहिए। लगभग 5 से 6 करोड़ के टर्नओवर वाले उनके एमबीए चायवाला का मतलब ही शून्य से शिखर की यात्रा है।
    प्रफुल्ल एक आईकॉनिक चाय वाले बन गए हैं उनका सपना है कि विश्व में इनका ब्रांड कमाल करे। 
    प्रफुल्ल बिना संकोच स्वीकारते हैं कि- उन्हें अहमदाबाद में चाय बेचने का धंधा परिवार से 6 माह तक छुपा के रखना पड़ा। प्रफुल्ल जानते थे कि जीत के मायने क्या होते हैं और जीत कैसे हासिल की जाती है। एक कंजरवेटिव एनवायरमेंट प्रोग्रेसिव टैलेंट को रोकता है यह सच है सारा समाज यही करता है। एमबीए की तैयारी करने वाला लड़का अगर चाय का ठेला लगा ले सदमा तो लगेगा ही। माता-पिता को इस बात का भय होगा कि समाज क्या कहेगा चार लोग क्या कहेंगे।
   सच बताऊं मैं तो उन चार लोगों को चार दशक से तलाश रहा हूं जो कुछ कहते हैं और उनके डर से कुछ लोग अपने रास्ते बदल देते हैं या हार जाते हैं यह थक जाते हैं। 
मुझे लगता है कि प्रफुल्ल बिल्लोरे ने उन चार लोगों को कहीं काल कोठरी में कैद करके गोया रख दिया हो। उन चार लोगों की बात प्रफुल्ल को सुनाई नहीं देती और प्रफुल्ल ने इंदौर दिल्ली गुड़गांव और जाने कहां कहां की यात्रा की पर ठहराव के लिए गुजरात का अहमदाबाद शहर चुना। आपको आश्चर्य होगा कि जिस कॉलेज में एमबीए चाय वाले को एडमिशन चाहिए था और वह क्वालीफाई नहीं कर पाए उसी कॉलेज में नितिन गडकरी साहब के साथ मंच शेयर करते हुए प्रफुल्ल में मोटिवेशनल स्पीच दी मैं भी हतप्रभ हूं आश्चर्यचकित होने का कारण है अपनी आईडियोलॉजी को शिखर तक पहुंचाने की हुनर !
आईआईएम और कई संस्थान अब तो प्रफुल्ल को बुलाते हैं ताकि उनके स्टूडेंट सीख सकते हैं इस सफलता की चाबी है तो पर उसे सफलता का ताला खुलता कहते हैं। अपमान और अभाव सब का सामना करना पड़ा था प्रफुल्ल बिल्लोरे को पर संकल्प बड़े थे और प्रफुल्ल भी तो सपने पूरे करने पर अड़े थे। यह तो प्रफुल्ल की शुरुआत है आगे आगे देखिए क्या उनका आने वाला कल उनके जीवन में कितने सुनहरी सुबह उगाए का इसे मालूम शुभकामनाओं सहित 
Quality and Billore containing 7 letters ok it means another name of quality...👌 
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शनिवार, सितंबर 25, 2021

विश्व में भारत के बढ़ते हुए प्रभाव के प्रमाण मिल रहे हैं..!

*विश्व में भारत के बढ़ते हुए प्रभाव के प्रमाण मिल रहे हैं..!*
           प्रधान सेवक की 23 सितंबर 2021 से प्रारंभ हुई अमेरिका यात्रा भारत के लिए जितनी महत्वपूर्ण एवं जरूरी थी  उससे ज्यादा ग्लोबल ट्रस्टीशिप के कांसेप्ट को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रभावी कदम है। एक और विस्तार वादी चीन और आतंकवाद के पनाहगाह राष्ट्रों के लिए खतरे की घंटी अवश्य साबित होगा इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दिनांक 25 सितंबर 2021 को मध्य रात्रि भारतीय समय अनुसार लगभग 2:00 क्वाड मीटिंग समाप्त हो गई । मुख्य तौर पर इस बैठक में इंडो प्रशांत सागर में क्वाड ने अपनी दखलअंदाजी को सैद्धांतिक सहमति दे दी है। अब रोनाल्ड रिगन सामरिक जहाज की मौजूदगी  दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में रहेगी। बैठक के पूर्व चीन ने स्पष्ट कर दिया था कि क्वाड को अन्य देशों के महत्व का ध्यान रखना चाहिए। चीन का आशय स्पष्ट रूप से अपनी स्वेच्छाचारिता को सुरक्षित रखने के लिए वैश्विक धमकी के रूप में समझा जा सकता है। कुल मिलाकर यह बैठक अर्थ चीन के नकारात्मक चिंतन के विरुद्ध एकजुटता का संदेश जारी करना रहा है।
  दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अमेरिकी नेवल  वार शिप की मौजूदगी चीन के अस्तित्व पर बहुत बड़ा सवालिया निशान बन जाएगी। पाकिस्तान मूल के कैनेडियन पत्रकार अनीस फारुकी रोनाल्ड रिगन की तैनाती को ऐतिहासिक मानते हैं। 
  दक्षिण चीन सागर का सामरिक दुरुपयोग करने वाला चीन आश्चर्यचकित जरूर रहेगा। मेरा व्यक्तिगत अनुमान है कि बैठक के पूर्व जो वाइडन एवं क्वाड सदस्यों ने इसमें पर पूर्व में ही आम सहमति बना ली होगी। अमेरिकी नेवल फ्लीट डिक्लेरेशन से चीन पाकिस्तान तालिबान का चिंतित होना स्वाभाविक है। रोनाल्ड रिगन में लगभग 6000 के आसपास नेवल और एयर फोर्स के सैनिक मौजूद होते हैं। रोनाल्ड रिगन एयरक्राफ्ट कैरियर एक तरह से आर्मी बेस माना जा सकता है।  पूर्व राजनयिक विष्णु प्रकाश कहते हैं कि यह आने वाले दशक के लिए बड़ी महत्वपूर्ण तैयारी है। परंतु अमेरिका की प्राथमिकताएं अक्सर बदलती रहती है परंतु अगर अमेरिका रोनाल्ड रिगन को स्थाई रूप से स्थापित कर दिया जाता है तो दीर्घकालीन सकारात्मक परिणाम अवश्य देखने को मिलेंगे। दूसरी ओर पाकिस्तानी पत्रकार फखर यूसुफजई सीपैक को लेकर चिंतित नजर आए उनका मानना है कि सी पैक पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए कतई भी सहयोगी नहीं है इसका समर्थन पूर्व राजनयिक विष्णु प्रकाश भी करते हैं वास्तव में सीपैक केवल पाकिस्तान के दोहन का साधन है। भारत  उपमहाद्वीप में चीन का बढ़ता हुआ दबाव निकट भविष्य में तरल होने की संभावना है। 
   रात्रि 2:48 कॉल विदेश मंत्रालय ने प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी हर्षवर्धन श्रन्गला ने भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के प्रथम दो दिवस ऑफिशियल ब्रीफिंग देते हुए पीएम मोदी के साथ उपराष्ट्रपति कमला हैरिस एवं राष्ट्रपति जो वाइडन के बीच हुई वार्ताओं का ब्यौरा दिया । दोनों राष्ट्राध्यक्ष की कोविड-19 के के संदर्भ में एक साथ काम करने अफगानिस्तान के संदर्भ में भी बातचीत की गई इसके साथ-साथ आर्थिक मुद्दों द्विपक्षीय वार्ता जिसमें व्यापार बढ़ाने पर भारतीयों के लिए H1B वीजा के संदर्भ में भी विस्तृत बातचीत की गई। जो वायडन ने भारत के लिए सुरक्षा परिषद में सीट बढ़ाने एवं स्थाई सदस्यता का खुलकर समर्थन करने के समाचार भी इस यात्रा के दौरान मिले हैं। आतंकवाद के मुद्दे पर काउंटरटेररिज्म ग्रुप के गठन को भी दोनों नेताओं ने मंजूरी दी है। कुल मिलाकर यह वार्ता बहुत महत्वपूर्ण एवं भारत के वैश्विक प्रभाव में इजाफे की प्रथम सूचना है। इस बैठक के पूर्व जलवायु परिवर्तन के मसले पर मोदी जी ने सोलर एनर्जी बनाने वाली कंपनी के सीईओ से विस्तार से चर्चा की थी और जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर बैठक में सकारात्मक बिंदु उभर कर आए हैं। कम से कम दक्षिण एशिया में अगर पर्यावरण सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को हल कर लिया जाता है तो यह है उपलब्धि ही होगी
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

बुधवार, सितंबर 22, 2021

Will Pakistan be partitioned again?


पाकिस्तान की गले की फांस बने दो आंदोलन उसकी अस्थिरता का सबसे मुख्य कारण है इन दिनों । जब से सोशल मीडिया पर आवाज़ बुलंद करने का अवसर मिला है आम आदमी को तबसे वैचारिक आंदोलनों को बल मिला है । सिंधु स्वतंत्रता की लहर 1967 में  जी एम सैयद की कल्पना से उभरी है। यह आंदोलन एक साहित्यिक भाषाई आंदोलन था जब पाकिस्तान में उर्दू भाषा राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया गया, इस आंदोलन में आगे चलकर पीर अली मोहम्मद राशिद का भी बहुत अधिक योगदान जीएम सैयद के साथ देखा गया था। वर्तमान में इस आंदोलन का नेतृत्व अल्ताफ हुसैन के हाथों में है । 
  सिंधी देश जिसे सिंधु देश के रूप में वहां के लोग समर्थन दे रही है उनकी आबादी 7 करोड़ है। नक्शे में आप ध्यान दें तो पाएंगे कि उसकी पूर्वी एक सीमा भारत से मिलती है।

इस आंदोलन की एक और वजह थी औद्योगिक एवं व्यापारिक रूप से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का 70% हिस्सा सिंध प्रांत से पाकिस्तान को हासिल होता है। परंतु इसके विपरीत उनका महत्व इस भागीदारी पाकिस्तान की राजनीतिक गतिविधियों प्रशासनिक सेवाओं सुविधाओं के मामले में लगभग नगण्य है। इसके विपरीत सत्ता का पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी में पाकिस्तानी पंजाब का दबदबा है।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता आतंकवाद तथा तालिबानी चिंतन पर आधारित टीटीके जैसे संगठनों से नकारात्मक रूप से प्रभावित एवं पीड़ित जनता अब शांति चाहती है। यह आंदोलन बलोच आंदोलन से कुछ अलग  है। इस आंदोलन में पाकिस्तानी सेना आईएसआई और राजनीतिक पार्टियों ने घुसपैठ कर रखी है। यह अपने इस सूबे के मुख्यमंत्रियों पर भी खुलकर  नाराजगी व्यक्त करते हैं यहां तक की प्रोविंशियल गवर्नमेंट के प्रतिनिधियों से भी उनकी नाराजगी उनकी बातों से झलकती है। कुल मिलाकर आंदोलन एक बेहतरीन नेतृत्व चाहता है परंतु वर्तमान में सिंध आंदोलन के अल्ताफ हुसैन वर्तमान में अत्यधिक शुद्र नजर नहीं आ रहे। आंदोलनकारियों का दावा है कि अगर उन्हें एक ऐसा बिंदु मिल जाए जहां से आंदोलन निर्णायक हो सके आजाद होने से सिंधु देश नहीं कुछ दिन या कुछ घंटे लगेंगे। इस वीडियो में आप पाकिस्तानी सिंधी आंदोलनकारी को सुन रहे हैं। आपने यह  सुना होगा कि आंदोलनकारी जिस बिंदु की कल्पना कर रहे हैं उस बिंदु को भारत का खुला सामरिक समर्थन के रूप में पहचाना जा सकता है। परंतु भारत के विरुद्ध पाकिस्तान अब कभी भी कन्वेंशनल युद्ध नहीं कर सकता। पाकिस्तान  आर्मी नियंत्रित डेमोक्रेसी आई एस आई तथा आर्मी सभी जानते हैं कि अगर अब भारत से युद्ध हुआ तो पाकिस्तान सिंधु देश से हाथ धो बैठेगा।

    उधर बलूचिस्तान अपनी आजादी के लिए पूरी तरह से   बिसात बिछा रहा है . 
   विश्व के सभी महत्वपूर्ण देश चीन और टर्की को छोड़कर पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक रुझान नहीं रखते। यही है भारत की कूटनीतिक सफलता। आपको याद होगा कि सन 1971 में पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में बदलना पाकिस्तान की सियासत में पंजाब के दबदबे एवं संस्कृति विविधता थी जैसे पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेटिक सरकार अब तक नहीं समझ पाई है।





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