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बुधवार, अक्तूबर 13, 2021
पंडों के खिलाफ भड़काना प्रगतिशील लेखकों का प्रमुख एजेंडा
सोमवार, अक्तूबर 11, 2021
अवतरण दिवस और जन्म दिवस : आनंद राणा
गुरुवार, सितंबर 30, 2021
दलित एक अमानवीय शब्द है
दलित एक अमानवीय शब्द है इसे भाषा से ही पथक करना होगा प्रत्येक विशेष वर्ग का व्यक्ति मानव है ना कि वह दलित है या सवर्ण है बल्कि वह भारतीय है
सोमवार, सितंबर 27, 2021
एमबीए चायवाला प्रफुल्ल बिल्लोरे
शनिवार, सितंबर 25, 2021
विश्व में भारत के बढ़ते हुए प्रभाव के प्रमाण मिल रहे हैं..!
बुधवार, सितंबर 22, 2021
Will Pakistan be partitioned again?
मंगलवार, सितंबर 14, 2021
भारतीय भाषाओं के उन्नयन के साथ हिंदी का विकास संभव है
*Dismantle Hinduism : सनातन के विरुद्ध आधारहीन वैश्विक अभियान ... भारतीय दार्शनिक और चिंतक शुतुरमुर्ग बने !* आर्टिकल 01
इन दिनों सनातन के खिलाफ अमेरिका में लगभग 40 यूनिवर्सिटीज मिलकर एक बहुत बड़ा आयोजन कर रही है जो सनातन धर्म या हिंदुत्व के विरुद्ध एक नैरेटिव सेट करने का प्रयास है। मैं इस प्रयास की घोर निंदा करता हूं और भारतीय समाज को आगाह कर देना चाहता हूं कि अगर यही परिस्थितियां बनी रही तो प्रत्येक भारतीय को शस्त्र उठाना आवश्यक हो जाएगा। भारत विस्तार वादी धर्म का प्रवर्तक भूभाग नहीं है। भारत सनातन मान्यताओं को आत्मसात करने के लिए किसी पर दबाव नहीं डालता। फिर तथाकथित आयातित विचारक भारत के खिलाफ उसके चिंतन के विरुद्ध इतना बड़ा अभियान क्यों चला रहे हैं और हमारे बुद्धिजीवी शुतुरमुर्ग क्यों है।
इन सब बातों को समझने के लिए सबसे पहले हम भारतीय सनातन व्यवस्था और धर्म के विभिन्न पहलू उजागर करते हैं और यह भी कोशिश करते हैं कि आप तक हम सनातन के मूल तत्व को संप्रेषित कर सकें।
भारतीय दर्शन का आधार सनातन क्या है यह सबसे पहले समझना जरूरी है। सनातन धर्म व्यवस्था है जो आदि से अनंत तक विस्तारित है परिवर्तनशील है। कुछ लोगों का मत है कि सनातन धर्म नहीं एक परंपरा या सटीक व्यवस्था है।
आइए सबसे पहले हम धर्म को समझ लेते हैं
धर्म क्या है...?
इतिहास में धर्म का विवरण रखने का औचित्य क्या है ? यह प्रश्न मैंने अपने आप से भी लिखने के पूर्व किया। लेकिन ऐसा प्रतीत हुआ कि मानव कुछ ना कुछ विशेष गुण धर्म के साथ विकसित होता है। जब विज्ञान की ओर मनुष्य का ध्यान ही नहीं था पाषाण से लौह, और फिर लौह से अन्य धातु युग तक की यात्रा बिना किसी अनुशासनिक प्रणाली के संभव नहीं है। चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो या फिर कबीले में रहने की व्यवस्था। और यही जीवन व्यवस्था उसे यानी मनुष्य जाति को आवश्यकता और उसकी पूर्ति के लिए अन्वेषण एवं अविष्कार की प्रेरणा देती है। अति आवश्यक है कि हम धर्म के इस बिंदु को अवश्य पढ़ें। और जाने कि किन परिस्थितियों में मनुष्य ने अपने आप को आदिम युग से सभ्य मानव के रूप में विकसित कर दिया…?
धर्म की परिभाषाओं को आपने देखा भी होगा । यहां फिर से लिखने की जरूरत नहीं है। फिर भी मैं अपने नजरिए से धर्म को क्या समझता हूं वह बता देता हूं मौजूदा परिभाषा भी प्रस्तुत हैं ।
मेरे नजरिए से धर्म-"ईश्वरीय आस्था युक्त परिवर्तनशील वैज्ञानिक प्रक्रिया है..!°
• धर्म में जड़त्व तो नहीं बल्कि प्रगति शीलता के बिंदुओं का समावेश होता है और ये बिंदु रिचुअल्स और मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ सिंक्रोनाइज होते हैं, ऐसा व्यक्ति ही धार्मिक कहलाता है जो स्वयं से पृथक एक शक्ति को स्वीकार करता है उस शक्ति को ब्रह्म अथवा ईश्वर तत्व की संज्ञा दी जाती है।
• धर्म देश काल परिस्थिति के अनुसार लागू होता है, क्योंकि उसकी प्रकृति ही परिवर्तनशील है।
• ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार ने वाला धर्म की परिभाषा को समझ सकता है ।
• जो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता है वह कुछ प्रक्रियाओं का पालन करता है।
• केवल पूजा प्रणाली ही धर्म नहीं है। किंतु पूजा प्रणाली धर्म का एक हिस्सा है। ऋग्वेद इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जहां जो देता है अर्थात वह देवता है और ऋग्वेद के मंत्रों जिसे हम ऋचा कहते हैं अर्थ को समझना होगा। हवन या यज्ञ एक और वायुमंडल की शुद्धता का प्रयोग है तो दूसरी ओर जीवन यापन के लिए प्राप्त होने वाले संसाधनों के लिए उन देने वाले यानी देवताओं के प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन भी है। वेद में उस सरस्वती नदी का जिक्र आया है, जो वर्तमान में विलुप्त है उसी देवता माना है तो उसे यज्ञ के माध्यम से आहुतियां देने का अनुमान लगाया गया जबकि वेदों में जिस सरस्वती का देवी स्वरूप आह्वान किया गया है वह बुद्धि के दाता सरस्वती यानी शारदा है ना कि सरस्वती। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि नदियां जीवित होती हैं ना कि देव स्वरूप। इसकी पुष्टि में विद्वान आचार्य मृगेंद्र विनोद जी द्वारा प्रस्तुत विवरणों को देखा जाए तो पता चलता है कि सरस्वती नदी का यज्ञ नदी के तट पर जाकर ही किया जाता था और यह लगभग 18 वर्ष में पूर्ण होता था ना कि यज्ञ आहुति के द्वारा सरस्वती नदी का आह्वान किया जाता था।
• धर्म में मान्यताओं को देश काल परिस्थितियों के अनुसार बदलाव की सुविधा मौजूद है ।
• धर्म किसी संस्थान का डॉक्ट्रिन नहीं होता। आप सोचते होंगे कि ईश्वर की आराधना करने की प्रक्रिया डॉक्ट्रिन नहीं है ..? प्रक्रिया डॉक्ट्रिन है पर धर्म डॉक्ट्रिन नहीं है। जैसे आपके शरीर में बहुत सारे अंग है परंतु अंग आप नहीं है बल्कि आप अपने अंगों का समुच्चय हैं। धर्म क्योंकि प्रक्रिया नहीं है घर एक अवधारणा है और उस अवधारणा को करने समझने देखने के लिए प्रक्रियाओं की जरूरत होती है अतः केवल प्रक्रिया ही धर्म नहीं हो सकती।
सबसे पहले हम विचार करतें हैं कि हम सनातनी है अर्थात हम हिंदू धर्म के मानने वाले हैं । इसका अर्थ यह है कि सनातन व्यवस्था में एक व्यवस्था जो आस्था के साथ ईश्वर पर विश्वास करती है उस तक (ईश्वर तक) पहुंचने के प्रयत्नों को बल देती है ।
अंततः यह यह कहना और मानना ही होगा कि :- "धर्म एक व्यवस्था है जो आस्था के साथ नैसर्गिक है। सनातन है अर्थात कंटीन्यूअस है और इसमें मानवता के घटक देश काल परिस्थिति के अनुसार समावेशित होते रहते हैं ।"
सनातन में रूढ़िवाद मौजूद नहीं है । सनातन का बड़ी नदी का प्रांजल प्रवाह है जिसमें कई छोटी नदियां क्रमशः शामिल होती जाती हैं और मुख्य नदी किसी भी सहायक नदी का विरोध नहीं करती।
रूढ़ियां सनातन धर्म में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं, अतः सनातन में विमर्श या वार्ताएं होती हैं यही वार्ताएं अंतिम निर्णय पर पहुंचती है ऐसे निर्णय बाधाओं को तोड़ते हैं।
ऐसा लगता है यहां रूढ़ियों की परिभाषा देने की जरूरत नहीं है आप जानते हैं रूढ़ियाँ क्या होतीं हैं ?
सनातन रूढ़ियों को तोड़ता है। सनातन विकल्प की मौजूदगी को स्वीकारता है। उदाहरण के तौर पर एक कहावत है- फूल नहीं तो फूल की पत्ती चढ़ा दीजिए प्रभु प्रसन्न हो जाएंगे। इस कथन का अर्थ है कि विकल्पों को उपयोग में लाया जाए।
मनु स्मृति के अनुसार धर्म की परिभाषा
धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं।
चलिए अब धर्म की कुछ परिभाषाओं को देखते हैं-"धर्म का परिभाषा क्या हैं?"
धर्म संस्कृत भाषा का शब्द हैं जोकि धारण करने वाली धृ धातु से बना हैं। "धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं। अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यहभी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि-
"धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह: धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं (मनु स्मृति)
[ ] जैमिनी मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र में धर्म का लक्षण हैं लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म के लक्षण हैं।
[ ] वैदिक साहित्य में धर्म वस्तु व्यक्ति समष्टि के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थों में जैसे जलाना और प्रकाश करना अग्नि जैसे बिंदुओं को धर्म माना हैं तो प्रजा का पालन और रक्षण राजा का धर्म तथा राजाज्ञा का पालन करना प्रजा का धर्म बताया गया है ।
[ ] आध्यात्मिक संदर्भों में व्यक्ति में अंतर्निहित भावों जैसे धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों बचाव, हरण का त्याग, शौच शुद्धता, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि एवम ज्ञान, विद्या, सत्य, अक्रोध आदि को धर्म के लक्षण के रूप में निरूपण किया है। सदाचार परम धर्म हैं
[ ] महाभारत में कहा है कि-
"धारणाद धर्ममित्याहु:,धर्मो धार्यते प्रजा:..!
अर्थात जो धारण योग्य है फलतः
जिसे प्रजाएँ धारण करती हैं- धर्म हैं।"
[ ] कणाद ने धर्म का लक्षण यह किया हैं- "यतोअभयुद्य निश्रेयस सिद्धि: स धर्म:"
अर्थात सामष्टिक रुप से सामाजिक अभ्युदय यानी विकास जिसे अंग्रेजी में डेवलपमेंट कहां गया है । वह धर्म है और आराधना योग आदि प्रणालियों को अपनाकर आत्मोत्तथान करने की प्रक्रिया धर्म का लक्षण है।
[ ] स्वामी दयानंद के अनुसार धर्म की परिभाषा -जो पक्षपात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार हैं उसी का नाम धर्म और उससे विपरीत का अधर्म हैं।-
[ ] स्वामी जी कहते हैं कि "पक्षपात रहित न्याय आचरण सत्य भाषण आदि युक्त जो ईश्वर आज्ञा वेदों से अ-विरुद्ध हैं, उसको धर्म मानता हूँ !
महर्षि दयानंद धर्म के पालन के लिए किए गए कार्यों और कृत कार्य के लिए प्राण उत्सर्ग तक प्रस्तुत रहने के धर्म को स्वीकार करने का आग्रह करते हैं।
कार्ल मार्क्स ने सनातन धर्म के दार्शनिक पक्ष यहां तक कि लाक्षणिक पक्ष को पढ़ा ही नहीं था। कार्ल मार्क्स वे नास्तिक थे । जो उनकी च्वाइस थी। वे चर्च के राजनीतिक प्रभाव एवम हस्तक्षेप के विरुद्ध थे। वे संप्रदाय के डाक्ट्रिनस के नजदीक ज्यादा रहे हैं, इसलिए उन्होंने धर्म को अफीम की संज्ञा दी है। अगर कार्ल मार्क्स भारतीय दर्शन को समझ ही लेते तो इस वाक्य का जन्म ना होता जिस का दुरुपयोग आयातित विचारधारा के पैरोकार वामपंथ द्वारा भारत में किया जाता है ।
धर्म की परिभाषाएं लाक्षणिक हैं । धर्म को लक्षणों एवम उसमें शामिल सात्विक प्रक्रियाओं के जरिए पहचाना जा सकता है।
सुधि पाठकों धर्म Dharm एक वह शब्द है जो Religion से अलग है ।
Oxford dictionary एवम हिंदी डिक्शनरी में से धर्म Dharma शब्द को religion अर्थात संप्रदाय के रूप में नहीं रखना चाहिए। धर्म और संप्रदाय शब्द मूल रूप से प्रथक प्रथक हैं ।
संप्रदाय का तात्पर्य क्या है..?
अब तक आपने जाना कि डिक्शनरी में तो सम्प्रदाय को धर्म कहा जाता है ।परंतु एक तथ्य यह भी है कि भारत में मौजूद सनातन धर्म के व्यापक विश्लेषण के साथ साथ धर्म की परिभाषा को उसके स्वरूप एवम लक्षण के आधार या एंगल से समझने के बावजूद ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में उसे रिलीजन ही लिखा है !
धर्म की परिभाषा महर्षि गौतम / महाभारत में भी दी है, इस एक पंक्ति की परिभाषा को पुन: देखें- “जो धारण करने योग्य हो वह धर्म है !”
क्या इस परिभाषा को समग्र रूप से स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए ? अवश्य मिलनी चाहिए क्योंकि यह परिभाषा सुनिश्चित करने के लिए सुव्यवस्थित तथा स्थापित सारभूत सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक सत्य एवं तथ्य है ।
मूल रूप से धर्म की परिभाषा का और अधिक गहराई से अध्ययन कर विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि
[ 1 ] भौतिक रूप से प्राप्त शरीर और उसको संचालित करने वाली ऊर्जा जिसे प्राण कहा जा सकता है के द्वारा...
[ 2 ] धारण करने योग्य को ही धारण किया जाता है। उदाहरणार्थ नित्य प्रातः उठना प्राणी का भौतिक धर्म है, परंतु यह ऐसी प्रक्रिया है जो शरीर के सोने और जागने की अवधि को सुनिश्चित करती है । जागते ही शरीर के अंदर जीवंत भाव धरती से उस पर अपने पैर रखने के लिए अनुमति चाहते हैं तथा उसे प्रणाम करते हैं यह क्रिया संस्कार है । शरीर को भौतिक रूप से एक धर्म का निर्वहन करना है वह धर्म है दैनंदिन कर्मशील रहना।
[3] पिता,माता, गुरु, भाई, बहन , पत्नी, अधिकारी, सिपाही, सेवक, आदि के रूप में जो धारण करने योग्य हो को धर्म कहा जाना एक स्थापित नैरेटिव है, जो कि एक सनातन प्रक्रिया है सामान्य रूप से जब हम में वाणी समझ भाव का विकास नहीं हुआ था तब भी हम शरीर को सुलाते थे और जगाते भी रहे होंगे...! फिर हम जागृत अवस्था में आहार के लिए भटकते भी होंगे आहार हासिल करने के लिए शरीर कुछ कार्य अवश्य करता होगा। यहां आहार की उम्मीद करना कामना है और आहार के लिए श्रम करना पुरुषार्थ है। यह व्यवस्था ही रही थी, जब हमारा धर्म कामना और अर्जन पर केंद्रित रहा ।
[4] आदि काल से अब तक यानी सनातन जारी यह व्यवस्था शनै: शनै: विकास के बावजूद हमारी व्यवस्था और हमारे डीएनए में मौजूद है। हम रात को सोना नहीं भूलते और सुबह जागना नहीं भूलते विशेष परिस्थितियों को छोड़कर शरीर अपना धर्म निभाता है । फिर धीरे-धीरे विकास के साथ शारीरिक संरचना में सूक्ष्म शरीर का एहसास मनुष्य ने किया अर्थात मनुष्य सोचने लगा और फिर उसी सोच के आधार नियमों को धारित या उन से विरत रहने लगा । सनातन यानी प्रारंभ से ही तय हो गया कि क्या धारित करना है और क्या धारित नहीं है ।
धारित करने और ना करने का मूलभूत कारण जीवन क्रम को सुव्यवस्थित स्थापित करना था।
धर्म यानी जीवन की व्यवस्था को चलाने के लिए क्या धारण करना है क्या धारण नहीं करना है के बारे में आत्म विमर्श या अगर वह समूह में रहने लगा होगा तो सामूहिक विमर्श अवश्य किया होगा। मनुष्य ने तब ही तय कर लिया होगा कि क्या खाना है क्या नहीं खाना है कैसे रहना है स्वयं की अथवा अपने समूह की रक्षा किस प्रविधि से करना है समूह में आपसी व्यवहार कैसे करना है ?
एक लंबी मानसिक मंत्रणा के बाद तय किया होगा। धर्म का प्रारंभ यहीं से होता है।
आप एक कुत्ता पालते हैं अथवा अन्य कोई पशु पालते हैं आपका उनके लालन-पालन का उद्देश्य सर्वथा धर्म सम्मत होता है। अगर उस पालतू पशु को आप घर में छोड़कर जाते हैं तो आप चिंतित रहते हैं कि उसे भोजन कराना है अब आप उस पशु के लिए कमिटेड हैं और आप निश्चित समय सीमा में लौटते हैं ऐसी व्यवस्था करते हैं कि आपके पालतू पशु को समय पर भोजन मिल जाए । और आप इसके लिए प्रतिबद्ध है स्वामी के रूप में यही आपका धर्म है। जब आप पशु के लिए इतना कमिटेड है तो आप अपनी पत्नी और संतानों के लिए भी कमिटेड होंगे ही पति के रुप में आपका यह कमिटमेंट आपका धर्म है।
अपने कमिटमेंटस को पूरा करने के लिए आपके यत्न प्रयत्न अर्थ का उपार्जन अब करने लगे हैं पहले हम-आप जब आदिमानव थे तब आप क्या करते रहे होंगे ?
तभी आप अगर ऐसी व्यवस्था में रह रहे होंगे तो भी अपने धर्म का निर्वाह जरूर कर रहे थे। क्योंकि तब आपका धर्म था जन की संख्या में वृद्धि करना। उसके लिए आपके पुरुषार्थ का द्वितीय तत्व काम यानी कामना यानी उम्मीद जो आवश्यकता अनुसार जुटानी होती थीं पर अपना श्रम और सामर्थ्य लगाते थे।
ईश्वर अथवा ब्रह्म की कल्पना ईश उपनिषद में कुछ इस तरह से की है
"पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।।
!!ॐ शांति: शांति: शांतिः !!
ब्रह्म जो अदृश्य है, वह अनंत और पूर्ण है। उसी पूर्ण यानी ब्रह्म से पूर्ण जगत की उत्पत्ति होती है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व विस्तारित हुआ है। और यही विस्तार अनंत के होने का प्रमाण है।
अलौकिक ब्रह्म की कल्पना यानी निर्गुण ब्रह्म की कल्पना के साथ साथ सगुण ब्रह्म की कल्पना सनातन इसलिए करता है ताकि उस क्रिया का अभ्यास किया जा सके जिसे साधना अथवा अनुष्ठान और सीधे शब्द में कहें तो योग कहते हैं।
योग ध्यान सगुण ब्रह्म से निर्गुण ब्रह्म तक पहुंचने का सरपट मार्ग है। यह किसी परम ब्रह्म परमात्मा का आदेश नहीं है क्योंकि ब्रह्म में निहित तत्व ऊर्जा के अतिरिक्त कुछ नहीं है। ब्रह्म निरंकार है। अनंत है इस अनंत में ऊर्जा का अकूत भंडार है।
निर्गुण ब्रह्म की पूजा बहुत सारे लोग करते हैं और यह दावा करते हैं कि वे ही मात्र ब्रह्म के संदेशवाहक हैं । वास्तव में यह एक सतत परा भौतिक क्रिया है ब्रह्म को एक ओर स्वयं आकारहीन माना जाता है वही लोग यह कहते हैं कि ईश्वर ने मुझे यह कहने के लिए जमीन पर भेजा है कि दुनिया के नीति नियमों का संचालन करने के लिए नियमों का निर्धारण करो । वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है अगर यह सत्य है तो आप और हम रोज ब्रह्म से साक्षात्कार करते हैं हजारों हजार विचार मस्तिष्क में संचालित होते हैं ।
हमको मस्तिष्क में प्राप्त होने वाले ये बेतार से संदेश कौन भेजता है ?
मैं आस्तिक हूं तो मैं मानता हूं कि ईश्वर यह संदेश मुझे भेज रहे हैं। फल:स्वरूप मैं स्वयं का और हम सब स्वयं के देवदूत हैं ऐसा मेरा मत है और यही मैं मानता हूं ।
गुरुवार, सितंबर 09, 2021
युवा कृषि वैज्ञानिक डॉ आकाश पारे राजकीय सम्मान के साथ तमिलनाडु सरकार ने विदा किया
तमिलनाडु के तंजौर में पदस्थ जबलपुर मूल के कृषि वैज्ञानिक डॉ आकाश पारे जिनका बचपन जबलपुर में बीता था निधन दिनांक 7 सितंबर 2021 को तंजौर में हो गया । पंडित लज्जा शंकर झा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के सेवानिवृत्त स्वर्गीय शिक्षक श्री प्रकाश चंद्र पारे एवं हितकारिणी विद्यालय परिवार की शिक्षिका श्रीमती लीला पारे के कनिष्ठ पुत्र श्री आकाश पारे बचपन से ही मेधावी छात्र रहें है ।
वेब पंडित लज्जा शंकर झा मॉडल हाई स्कूल के छात्र थे। उनकी, शिक्षा जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्री , तथा डॉक्ट्रेट की डिग्री , तदोपरांत तंजावुर से एक और विषय में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ आकाश ने कम समय में ही कृषि उत्पादन एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा दिखानी प्रारंभ कर दी थी। तंजावुर यूनिवर्सिटी में बतौर सहायक प्राध्यापक और फिर प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए। बड़े भाई विकास एवं डॉ आकाश ने बचपन से ही अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे। डॉ आकाश की रिसर्च आधारित पुस्तकें विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रमुखता से पढ़ी जाती हैं। कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान के लिए उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। उनका बेहद कम उम्र में जाना भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान एवं कृषि विकास के क्षेत्र में एक अध्याय का रुक जाना है। डॉ आकाश ना केवल तमिलनाडु सरकार के लिए बल्कि संपूर्ण भारत के लिए वह अति महत्वपूर्ण युवा कृषि वैज्ञानिक के रूप में जाने पहचाने जाते रहे हैं। 40 वर्षीय डॉक्टर आकाश विगत 3 माह से लंगस कैंसर से पीड़ित रहे तथा उनका निधन 7 सितंबर 2021 को तंजावूर में इलाज के दौरान हो गया। डॉ आकाश का जाना हमारी एवं राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है।
डॉ आकाश अपने पीछे अपनी मां पत्नी श्रीमती अदिति एवं दो बच्चों को छोड़ गए हैं। नार्मदेय ब्राह्मण समाज जबलपुर शोकाकुल परिवार को इस गहन दुख को सहने की शक्ति के लिए प्रभु से प्रार्थनारत हैं ।
मंगलवार, अगस्त 31, 2021
बलोच युवाओं के लापता का सवाल पर यू एन ओ की रहस्यमयी चुप्पी.....!
सिंध देश और बलूचिस्तान के नागरिक इन दिनों पाकिस्तान के आर्मी प्रशासन से बेहद परेशान और दुखी हैं। आर्मी प्रशासन जब देखो तब इन समुदायों को बिना किसी अपराध के घर से उठाकर
ले जाता है और बरसो उनकी कोई खोज खबर
नहीं मिलती भी है तो किसी सड़क के किनारे
क्षत-विक्षत मृत देह के रूप में या कमजोर शरीर वाले ना पहचान में आने वाले व्यक्ति
के रूप में। जब यह पूछा गया कि क्या आप ऐसे ही कोई फिगर शेयर कर सकते हैं जिससे हम
अनुमान लगा सके कि बलोच युवाओं को टॉर्चर किया जा रहा है ?
बलूच एक्टिविस्ट ने बताया कि-"
जब से तालिबान संकट प्रारंभ हुआ है 3000 से अधिक डेड बॉडी
बरामद हुई हैं तथा लापता युवाओं की संख्या 50000 से अधिक है।
बलोच एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि
पाकिस्तान की अदालतों में उनके परिजनों को जिन्हें घर से उठाया जाता है के संबंध
में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं फाइल की जातीं हैं परंतु उन पर बहुत धीमी गति से
निर्णय आते हैं और निर्णय कुछ इस तरह आते हैं कि पाकिस्तान आर्मी उन्हें नियमों के
आधार पर प्रस्तुत करें।
और जो अपील है संयुक्त राष्ट्र संघ के
मानव अधिकार कार्यालय को प्रस्तुत की गई है उस पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मानव
अधिकार कार्यालय बहुत धीमी गति से विमर्श करता है तथा यह भी उल्लेखनीय है कि
प्रक्रिया इतनी जटिल है अगर
प्रॉपर प्रक्रिया का पालन किए बिना
कोई यह सूचना देता है कि अमुक व्यक्ति को पाकिस्तानी आर्मी ने अगवा कर लिया है तथा
पाकिस्तानी पुलिस ने एफ आई आर लिखने तक से इनकार कर दिया है तो वह पर्याप्त नहीं
है इसके लिए यूनाइटेड नेशन द्वारा प्रक्रिया गत कारणों से विचार नहीं किया जाता
नाही उस पर किसी तरह का एक्नॉलेजमेंट भेजा ही जाता है।
बलोच और सिंध देश के एक्टिविस्ट यह
मानते हैं कि विश्व का कोई भी देश उनके समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहा है। जब
उनसे यह प्रश्न किया गया कि क्या मुस्लिम उम्मा जैसे फैक्टर के चलते हुए भी आपको
कभी किसी इस्लामिक राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं किया इस पर बलोच एक्टिविस्ट का कहना था
कि- हमने अपनी स्वतंत्रता के लिए कभी भी ना तो संप्रदाय का सहारा लिया है और ना ही
भविष्य में कभी लेंगे इस कारण से ही हमें किसी भी मुस्लिम राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं
किया।
बलूचिस्तान के और सिंध के एक्टिविस्ट भारतीय व्यवस्था और जनता के समर्थन की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं। यूनाइटेड नेशन के मानवाधिकार कार्यालय बलूच एवं सिंध मानव अधिकार पर प्राप्त आवेदनों पर विचार ना करना चिंता का विषय है। यूएन की इस रहस्यमई चुप्पी का अर्थ क्या हो सकता है यह तो यूनाइटेड नेशंस ही जाने परंतु यह तय होना बहुत कठिन नहीं है कि यूनाइटेड नेशन उनके खिलाफ किस्तों में हो रहे घातक आक्रमण को जिनोसाइट का दर्जा नहीं देते ! किसी भी एक एक्स्ट्रा जुडिशल किलिंग को मॉसकिलिंग का दर्जा देना एक सही कदम होता है। परंतु पाकिस्तान को इतना अभयदान क्यों मिलता है यह समझ से परे है।
उनका कहना यह भी है कि जब से सीपैक का मामला चल रहा है तब से पाकिस्तान की आर्मी बलोच आवाम के मुखालिफ है। हाल में कुछ आक्रमणकारियों ने चीनी कंपनियों के एक वाहन पर हमला किया था और उस संदेह में मासूम बलोची युवाओं को बंदी बनाया गया है।
एक्टिविस्ट मानते हैं कि उन्हें (चीनियों को) गिरफ्तार युवाओं को मार कर दिखा देंगे और फिर उनसे भीख में डॉलर हासिल कर लेंगे।
कुल मिलाकर मानवता खतरे में है और मानवता के विरुद्ध कदम उठाने वाली पाकिस्तान आर्मी के सामने पाकिस्तान की तथाकथित डेमोक्रेटिक सरकार यहां तक की न्याय व्यवस्था भी बेहद दीन हीन सिद्ध हो रही है।
स्पेस में सिंध देश के एक्टिविस्ट एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यह कहते सुने गए कि हम भारत की शरण में आना चाहते हैं। तो दूसरी ओर बलोच लोगों का कहना है कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से प्रभावित है हम आपके ही अंग हैं। ऐसी स्थिति में देखना है कि भारत के बुद्धिजीवी पत्रकार योजनाकार और सामाजिक मानवतावादी विचारक क्या सोचते हैं जहां तक मेरी व्यक्तिगत राय है मुझे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को किसी भी देश में हो रहे मानव अधिकार अतिक्रमण पर ऐसे निर्णय बहुत जल्दी देने चाहिए ताकि संबंधित सरकार को समझ में आ जाएगी निरीह अजंता का भी कोई शुभचिंतक है।
(यह आर्टिकल ट्विटर पर जारी स्पेस में सुने वक्तव्य एवं विचारों पर आधारित है )
बुधवार, अगस्त 18, 2021
अफगानिस्तान की महिलाओं और बच्चों का ईश्वर ही मालिक है...
[ ] कहा जाता है कि आज उन महिलाओं ने प्रोटेस्ट किया जो अफगानिस्तान में रह गई हैं इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए तालिबान की मनसा संदिग्ध है।
[ ] महिलाओं को काम करने की आजादी देने वाला तालिबान एक शर्त लगाता है की महिलाओं को वही कार्य करने की अनुमति होगी जो शरिया के अनुकूल हो ।
[ ] आपने कुछ ऐसे दृश्य देखे होंगे कि तालिबान इस तरह से महिलाओं के पोस्टरों पर काला रंग पूछ रहे थे इससे सिद्ध होता है कि महिलाओं के अधिकारों के लिए तालिबान कितने सजग हैं।
[ ] तालिबान का चिंतन एक संप्रदाय विशेष का चिंतन है और रवीश कुमार जैसे पत्रकार मोदी जी और आम भारतीय जनता से कह रहे हैं कि हम भारतीय हिंदू मुस्लिम एकात्मता के खिलाफ वातावरण निर्माण कर रहे हैं। ग्राउंड रियलिटी कुछ और है जो एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के दृष्टिकोण से बिल्कुल मैच नहीं करती।
[ ] रवीश कुमार ने अपने वक्तव्य नुमा रिपोर्ट में यह पूछा है कि-"मोदी जी अथवा भारत सरकार तालिबान को अब आतंकवादी कहेगी या नहीं.. ?" एक पत्रकार का ऐसा बौद्धिक चिंतन बौद्धिक स्तर को परिभाषित करने में सक्षम है। जब अंतरराष्ट्रीय संवेदनशील परिस्थितियां हो तब बुद्धिमान पत्रकार को इस तरह के सवाल नहीं करने चाहिए जो उनके किसी अन्य प्रकार के नैरेटिव को विकसित करने की तथा उसे स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जाए।
[ ] इस बीच आज यानी 17-18 अगस्त 2021 को भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्पष्ट कर दिया है कि हम सिख और हिंदू अफगानीयों को शरण देंगे साथ ही वे अपने अफगानी भाइयों बहनों को सहयोग करेंगे।
[ ] विगत दो दिवसों से जिन दृश्यों को हमने टेलीविजन के जरिए देखा उसमें महत्वपूर्ण दृश्य एक यह भी है कि दिल्ली में निवास करने वाले काबुली वाले आंसू बहा रहे हैं और अपने परिवार अपने वतन को याद कर रहे हैं मुझे भी वह गीत याद आ रहा है जो शायद आप भी गुनगुन आएंगे ए मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान।
[ ] इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अफगानिस्तान की स्थिति सामान्य होने की कल्पना कोई भी नहीं कर सकता। कम से कम मैं तो नहीं बावजूद इसके कि तालिबान प्रवक्ता भले ही कितना दावा करें कि वह सामान्य जनजीवन बाहर करने का वादा करते हैं विश्वास योग्य नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो में एक पुराना वीडियो जो सोशल मीडिया पर ताजा वीडियो के रूप में बताया गया है प्रस्तुत कर रहा हूं वह भी इस उद्देश्य से की तालिबानी सोच को विश्व को समझने की जरूरत है।
हमें भारत सरकार पर और हमारे नेतृत्व पर कम से कम वर्तमान में विश्वास करना ही होगा और करना चाहिए
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सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौरा...
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संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चा...
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मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक...