एक हथे पूरन दद्दा जू...
आसौं बून्देली दिवस पै कछू होय नै होय हमौरे उनखौं भूलबे को पाप या नैं करबी ..! जबलपुर सै बुंदेली की अलख जगाबे वारे कक्का जी के लानें विवेक भैया का लिख रय हैं तन्नक ध्यान से पढ़ियो ... बुंदेली और स्व डॉ पूरनचंद श्रीवास्तव जी जैसे बुंदेली विद्वानो की सुप्रतिष्ठा जरूरी .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज , नयागांव ,जबलपुर ४८२००८ ईसुरी बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध लोक कवि हैं ,उनकी रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का चित्रण है। उनकी ख्याति फाग के रूप में लिखी गई रचनाओं के लिए सर्वाधिक है, उनकी रचनाओं में बुन्देली लोक जीवन की सरसता, मादकता और सरलता और रागयुक्त संस्कृति की रसीली रागिनी से जन मानस को मदमस्त करने की क्षमता है। बुंदेली बुन्देलखण्ड में बोली जाती है। यह कहना कठिन है कि बुंदेली कितनी पुरानी बोली हैं लेकिन ठेठ बुंदेली के शब्द अनूठे हैं जो सादियों से आज तक प्रयोग में आ रहे हैं। बुंदेलखंडी के ढेरों शब्दों के अर्थ बंगला तथा मैथिली बोलने वाले आसानी से बता सकते हैं। प्राचीन काल में राजाओ के परस्पर व्यवहार में बुंदेली में पत्र व्यवहार, संदेश, बीजक, राजपत्र, म