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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक हथे पूरन दद्दा जू...

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      आसौं बून्देली दिवस पै कछू होय नै होय हमौरे उनखौं भूलबे को पाप या नैं करबी ..!    जबलपुर सै बुंदेली की अलख जगाबे वारे कक्का जी के लानें विवेक भैया का लिख रय हैं तन्नक ध्यान से पढ़ियो ...  बुंदेली और स्व डॉ पूरनचंद श्रीवास्तव जी जैसे बुंदेली विद्वानो की सुप्रतिष्ठा जरूरी    .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज , नयागांव ,जबलपुर ४८२००८ ईसुरी बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध लोक कवि हैं ,उनकी रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का चित्रण है। उनकी ख्‍याति फाग के रूप में लिखी गई रचनाओं के लिए सर्वाधिक है,  उनकी रचनाओं में बुन्देली लोक जीवन की सरसता, मादकता और सरलता और रागयुक्त संस्कृति की रसीली रागिनी से जन मानस को मदमस्त करने की क्षमता है। बुंदेली बुन्देलखण्ड में बोली जाती है। यह कहना कठिन है कि बुंदेली कितनी पुरानी बोली हैं लेकिन ठेठ बुंदेली के शब्द अनूठे हैं जो सादियों से आज तक प्रयोग में आ रहे हैं। बुंदेलखंडी के ढेरों शब्दों के अर्थ बंगला तथा मैथिली बोलने वाले आसानी से बता सकते हैं। प्राचीन काल में राजाओ के परस्पर व्यवहार में  बुंदेली में पत्र व्यवहार, संदेश, बीजक, राजपत्र, म

*धर्मयुद्ध : क्रूसेड्स, ज़ेहाद, महाभारत एवम लंका-विजय..!*

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बाबूजी ने बताया था कि उनकी टेक्स्ट बुक में *एथेंस के सत्यार्थी* शीर्षक से एक पाठ था । उनके अनुसार एथेंस के सत्यार्थी तिमिर से प्रकाश की कल्पना करते हुए ज्योतिर्मय होना चाहते थे । जबकि सनातनी दर्शन में हम प्रकाश से महाप्रकाश में विलीन हो जाना चाहते हैं !  अब्राहम धर्मों के लोग कहते हैं - अल्लाह सबका है हर चीज पर उसका अधिकार है !  हम कहतें हैं - सबमें ब्रह्म है । परस्पर विरोधी विचार होने के बावज़ूद दौनों ही विचार युद्ध से विमुख करते हैं ।  ईसा मसीह कभी हिंसा पर भरोसा नहीं करते थे । तो फिर  फिर क्रूसेट क्यों हुए थे ? अथवा फिर ज़ेहाद क्यों होते हैं ? इसके अलावा सनातन आर्यावर्त्य के धर्मयुद्ध लंका-विजय एवम महाभारत हैं आइये सबसे पहले जानते हैं कि-  *धर्मयुद्ध क्या है ?*  क्रुसेड्स एवम ज़ेहाद से भिन्न हैं आर्यावर्त्य के धर्मयुद्ध ।  रामायण और महाभारत पढ़कर भी अगर हम यह नहीं जान सके की सनातन में धर्म युद्ध क्यों हुए थे अथवा धर्मयुद्ध क्या हैं ? तो इस परिभाषा को जानिए .... *"धर्मयुद्ध का अर्थ न्याय के समर्थन में किये गए युद्ध । जो भूमि सत्ता एवम कमज़ोर लोगों को धमकाने के लिए न किए

disability : only a matter of perception.” by Humans of Bombay

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“As long as I remember, I’ve always been on a wheelchair but the disability never bothered me. I loved going to school; I was great at academics! I'd have doctor appointments but after, my parents would take me to the beach and we’d make a day out of it. I’d tell my friends that I’m going out on a picnic; I didn’t want anyone to pity me. In my 10th, I prepared extra hard for my exams– I wanted to get admission based on merit and not through the disability quota; I was on cloud nine when I scored 95%. But during the felicitation ceremony, people said– ‘You’ve scored so well despite your wheelchair’, news reporters bombarded me about my disability. I didn’t like the fact that people were treating me specially. So, I continued focusing on my academics and got into a reputed engineering college. In fact, I was the first wheelchair student there! The next few months were great, until I fell ill– I had to be put on a ventilator. My exams were coming up so my relat

बिटक्वाइन के कारण मुझे हुआ ₹ 872,871.30..?

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राम धई.. बिस्वास न करहौ हमें ₹ 872,871.30 को घाटाया लग  गओ बड्डे 2009 में इसके बिटक्वाइन के विज्ञापनों को सिर्फ इस लिए ब्लॉक कर दिया कि वे एक क्वाइन के बदले ₹100  मांग रहे थे । जान न पहचान विज्ञापन के ज़रिए मेलबॉक्स में खड़े मेहमान ... एक दिन स्पैमर किया फिर ब्लाक कर दिया । भारतीय गृहस्थ बेहतरीन अर्थशास्त्री होता है ठीक हम भी सबके जैसेईच्च ठहरे ।   100 रुपए भी क्यों वेस्ट करूं ? एक एक पैसा कीमती है मानकर और आभासी दुनिया पर घोर अविश्वास के चलते हमने इसे प्रमोट करने वालों की आई डी ब्लॉक कर रखीं थीं । 2017 एवम 18 में पता चला कि वर्चुअल करेंसी भारत में क़ानूनी खांचे में हैं सुनकर मन ही मन खुशी हुई । वास्तविकता क्या थी हमें तब नहीं मालूम था ।  अक्सर अत्यधिक भय और क्रिएटेड एनवायरमेंट के कारण हम सभी ऐसे पचड़ों में नहीं फंसते । फंसना भी नहीं चाहिए । तब किसी को भी पता न था कि क्रिप्टो करेंसी क्या बला है । अपने अमिताबच्चन अरे बड्डे अमिताभ बच्चन ने खरीदे थे बिटक्वाइन अरबपति की सीमा रेखा (वो वाली नईं..!) लांघने वाले हैं ।    देखो भैया अब एक बिटक्वाइन की कीमत मालूम है तो एक बिटक्वाइन का मूल

महाकौशल की वीरांगना अवन्तिबाई का स्वतन्त्रता आंदोलन में योगदान

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आईये गर्व और नमन् करें..नई दुनिया समाचार पत्र के साथ.. भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 की संपूर्ण भारत में किसी भी रियासत परिवार से प्रथम महिला शहादत(20 मार्च 1858) वीरांगना क्षत्राणी..रानी अवंतीबाई लोधी की रही है..(क्योंकि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की शहादत 18 जून 1858 को और बेगम हजरत महल 7 अप्रैल 1879 - यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूँ कि कित्तूर रियासत (कर्नाटक) की रानी चेन्नमा पहली वीरांगना थीं जिन्होंने 1829 में शहादत दी थी, परंतु यहाँ बात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 की हो रही है ) उनके  अवतरण दिवस के 2 दिन पूर्व  सभी आत्मीय जनों को हार्दिक बधाईयाँ (16 अगस्त सन् 1831)(कमिश्नरी जबलपुर, जिला मंडला, रियासत रामगढ़.. संस्थापक गोंड साम्राज्य के वीर सेनापति मोहन सिंह लोधी.. 681 गाँव, सीमायें अमरकंटक सुहागपुर कबीर चौंतरा , घुघरी, बिछिया, रामनगर तक ) .. ब्रिटिश काल में तहसील रामगढ़, सदर मुकाम रामगढ़ ) ..प्रस्तुत शोध आलेख के लिए के लिए सर्वप्रथम नई दुनिया समाचार पत्र के यशस्वी संपादक श्री कमलेश पांडे जी का आभार व्यक्त करता हूँ कि उनके मार्गदर्शन में - वरिष्ठ और उम्दा पत्र

आओ....खुद से मिलवाता हूँ..!! भाग 03

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  आओ....खुद से मिलवाता हूँ..!! भाग 03 जन्म से आगे के 3 साल में भी जन्म से 12 माह की अवधि सबसे महत्वपूर्ण होतीं हैं । यही शैशवावस्था सम्पूर्ण विकास का आधार है । किन्तु दक्षिण एशिया में इसे सबसे उपेक्षित रखा गया था आज़ादी के पूर्व से आज़ादी के 20 साल बाद तक । जन्म से लेकर 3 वर्ष की उम्र में शिशु को जिस श्रेणी की देखभाल की ज़रूरत होती है, उन मुद्दों पर किसी का ध्यान ही न था। 1 किशोरावस्था में बालिकाओं की उपेक्षा 2 अपरिपक्व आयु में विवाह 3 प्रसव पूर्व उचित देखभाल न होना 4 प्रसव की घटना को गम्भीरता से न लेना 5 जन्म के घण्टे भर में माँ का दूध न पिलाना ये सब उस देश में होना जारी था जहां शेर के दांत बालक ने गिने थे, जी हाँ जहाँ का बालक नाग नाथ देता है और न जाने कितनी कथाएं बाल साहस की उपलब्धियों से भरी पड़ीं हों.... मित्रों एवम सुधिजन आज से जन्माष्टमी का पर्व मनाए जाने की शुरुआत हो जावेगी ऐसा माहौल तत्कालीन भारत में भी था पर जन्मे अजन्मे बच्चों पर कोई नज़र न थी । इसे प्राकृतिक घटना और भगवान के भरोसे होने वाली घटना मानके होने दिया जाता रहा है । पर यहाँ एक बात बहुत आवश्यक है बताना

आओ....खुद से मिलवाता हूँ..!! भाग 02

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  आओ....खुद से मिलवाता हूँ..!! भाग 02 जब बीते क्षण याद आएं तब चेहरे तैरा करते हैं ज़ेहन में । कुछ ध्वनियाँ भी गूंजा करतीं - बन गीत मेरे आकुल मन में ।। माँ, मौसी ने माना कान्हा मुझको जब चंचल हो कर मुस्काता हूँ ।। सालीचौका में मुझे एक रेलवे वाला गैंगमेन बहुत स्नेह करता था तब मेरी उम्र कोई एक बरस की होगी नाम था - हरि । माँ ने बताया हरि कुछ दिनों के लिए अपने गांव गया तो मैं बीमार पड़ गया । कौन था हरि ? ज़रूर उससे कोई सम्बंध होगा पूर्व जन्म का ऐसा सब कहते थे । पर बाद में आदि गुरु के बारे में सुना घर में सत्संग से कुछ समझा तो पता लगा कि- हरि सबके होते हैं सबमें होते हैं । यही है अद्वैत..! हरि कोई निर्देशक नहीं उससे डरो मत वो भयावह नहीं न वो किसी को दण्ड देता है न किसी को मारता है न ही ऐसा कोई फैसला करेगा या करता है कि तुम स्वर्ग जाओगे वो नर्क जाएगा । क्योंकि न स्वर्ग है न नर्क । न अप्सराएँ हैं न देवता न गन्धर्व ये प्रतीक-संज्ञा हैं जैसे कुबेर धन का देवता न कुबेर तो इकोनामी है । गन्धर्व वे हैं जो कला के संवाहक हैं । अप्सराएँ वो मनोदशा है जो लोक रंजन के लिए प्रफुल्लित कर द

आओ....खुद से मिलवाता हूँ..!! भाग 01

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आओ खुद से मिलवाता हूँ ! जीवन के रंग दिखलाता हूँ ! ये परबत पथ कितने सहज सरल संग साथ चलो समझाता हूँ !! बचपन किसे कितना याद है मुझे नहीं लगता कि बचपन याद रहता है । आत्मकथा का पहला पन्ना तो बचपन है नsss ! बचपन जिसे श्रुति के आधार पर ही लिखा जा सकता है । सो लिख रहा हूँ । घरेलू संवादों से ज्ञात हुआ कि आज़ाद-भारत की उम्र सोलह बरस दो माह उनतीस दिवस की तब 29 नवम्बर 1962 को रेलवे कॉलोनी सालीचौका में मेरा जन्म हुआ था । स्कूली रिकार्ड में जाने कैसे 1963 लिख गया यह रिसर्च का विषय है पर कोई फायदा नहीं इस खोजबीन में जो होना था सो हो गया ना अदालत मानेगी सरकारी दस्तावेज क्योंकि मैट्रिकुलेशन में जो भी लिखी गई वही अंतिम है। अभी बीते 27 जून को मुझे पता चला कि मेरी जन्म तिथि 27 जून 1963 है और यह शुभ सूचना सर्विस रिकॉर्ड देखकर स्टाफ ने मुझे बधाई दी। बधाई स्वीकार की मैंने चाय मंगवा ली, नकली जन्मदिन पर चाय ही पिलाई जा सकती है वैसे भी कोविड-19 का दौर अनुबंध भूमि प्रतिबंधों को अधिरोपित करता है । माँ ने कई बार बताया कि मैं जन्म के बाद 9वें माह में चलना सीख चुका था , माँ बताती

राजाधिराज श्री राम की कथा

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"राजाधिराज श्रीराम की कथा !"  एक  था रावण बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ा, विश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य वयं-रक्षाम का उदघोष करता . यह तथ्य किशोरावस्था में मैंने  आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ज़रिये  जाना था .  रावण के पराक्रम उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद  पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा ? राम   को हम भारतीय जो  आध्यात्मिक धार्मिक भाव से देखते हैं ।   राम को मैने भी कभी एक राजा के रूप में आम भारतीय की तरह मन में नहीं बसाया. मुझे उनका करुणानिधान स्वरूप ही पसंद है. किंतु जो अधिसंख्यक आबादी के लिये करुणानिधान हो वो किसी को मार कैसे सकता है ? और जब एक सम्राठ के रूप में राम को देखा तो सहज दृष्टिगोचर होती गईं सारी रामायण कालीन स्थितियां राजा रामचंद्र की रघुवीर तस्वीर साफ़ होने लगी                                        रामायण-कालीन वैश्विक व्यवस्था का दृश्य  रावण के संदर्भ में  हिंदी विकीपीडिया  में दर्ज़ विवरण को देखें जहां बाल्मीकि के हवाले से (श

चुभता है वो 'पल' जब भी याद आता है...!

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#संस्मरण  *चुभता है वो 'पल' जब भी याद आता है...!* *गिरीश बिल्लोरे मुकुल* उस शाम दिव्यांग सहायता के लिए  मेरे   एलबम बावरे-फ़कीरा का विमोचन होना था । भव्य आयोजन में आगन्तुकों की देखभाल ये व्यवस्था वो व्यवस्था कार्ड वितरण सब कुछ अपने तरीके से यंत्रवत जारी था । सतीश भैया ( बड़े भैया ) का प्रबंधकीय कौशल एवं टीम मैनेजमेंट का स्किल गज़ब ही होता है । हम तो छोटे होने के सारे फायदे उठा रहे हैं।  सुलभा यानी हमारी सहचरी को चिंता थी कि हमने कुछ खाया नहीं सुबह का एक प्लेट पोहा बस तीन चार बजे तक ये काम वो काम निपटाने की धुन में कब शाम के 5 बज गए होश न था । शाम को लगभग 5 बजे तक घर आया पर भूख न तो समझ में आ रही थी न ही महसूस हो रही थी । बस 15 मिनिट में कपड़े बदले और फुर्र । सुलभा के मन में एक कसक थी कि आज भोजन का निरादर हुआ है । और हम सोच रहे थे कि ... रोटी तो रोज़ खा लेता हूँ पर आज काम सबसे पहले ज़रूरी है । सच ये भी था कि - उस शाम के बारे में मुझे कुछ भय भी था । प्रिय मित्र राजेश पाठक ने कहा - यार गिरीश भाई, 1200 की स्ट्रैंथ ज़रूरत से ज़्यादा है !

Lamtera : loudly soul generated voice of spiritual person..

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बुंदेली लोक गायन में 3 गायन शैलीयाँ  मुझे बहुत भावुक कर देती है जिनको #बम्बूलियाँ, #देवीजस और  #लमटेरा के नाम से जानते हैं । यूं तो बुंदेली लोक गायन में ढिमरयाई, फाग, राई, बरेदी, बधाई,  भी हैं । पर ये तीन आध्यात्मिक चिंतन से सराबोर होने के कारण मोहित करतीं हैं । इन से मेरा बचपन से रिश्ता बन गया था । #बाबूजी रेलवे में स्टेशन मास्टर हुआ करते थे तब मैंने इनकी ध्वनियों को सुना था ।  *गांव के रेलवे स्टेशन के पास से गुज़रते क़ाफ़िले से उभरती मधुर समवेत आवाज़ें जो बैलों की गले की लकड़ी और पीतल की घंटियों , पहियों की खड़ख़ड़ाहट, के साथ सम्मिश्रित ( synchronise ) होकर कुछ इस तरह बन जाती थीं...गोया गंधर्वों के झुंड के झुंड सपरिवार धरा पर उतर आए हों शिव को तलाशने वह भी बेटी शांकरी के अंचल में* मां नर्मदा के भक्त बुंदेलखंड में कुछ इसी तरह का दृश्य बनाया करते थे । ऐसे दृश्य अक्सर मैंने सुबह-सुबह देखे-सुने हैं । तब जब बहुत कम उम्र थी मन में संगीत के प्रति अनुराग पैदा हो गया । शनै: शनै: जब नर्मदा के महत्व को समझा तो जाना कि पूरे नर्मदा तट ही नहीं आध्यात्मिक चिंतन के वे तट हैं जहां गुरुवर शंकराचार्य साधना स्थ