महाकौशल की वीरांगना अवन्तिबाई का स्वतन्त्रता आंदोलन में योगदान

आईये गर्व और नमन् करें..नई दुनिया समाचार पत्र के साथ.. भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 की संपूर्ण भारत में किसी भी रियासत परिवार से प्रथम महिला शहादत(20 मार्च 1858) वीरांगना क्षत्राणी..रानी अवंतीबाई लोधी की रही है..(क्योंकि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की शहादत 18 जून 1858 को और बेगम हजरत महल 7 अप्रैल 1879 - यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूँ कि कित्तूर रियासत (कर्नाटक) की रानी चेन्नमा पहली वीरांगना थीं जिन्होंने 1829 में शहादत दी थी, परंतु यहाँ बात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 की हो रही है ) उनके  अवतरण दिवस के 2 दिन पूर्व  सभी आत्मीय जनों को हार्दिक बधाईयाँ (16 अगस्त सन् 1831)(कमिश्नरी जबलपुर, जिला मंडला, रियासत रामगढ़.. संस्थापक गोंड साम्राज्य के वीर सेनापति मोहन सिंह लोधी.. 681 गाँव, सीमायें अमरकंटक सुहागपुर कबीर चौंतरा , घुघरी, बिछिया, रामनगर तक ) .. ब्रिटिश काल में तहसील रामगढ़, सदर मुकाम रामगढ़ ) ..प्रस्तुत शोध आलेख के लिए के लिए सर्वप्रथम नई दुनिया समाचार पत्र के यशस्वी संपादक श्री कमलेश पांडे जी का आभार व्यक्त करता हूँ कि उनके मार्गदर्शन में - वरिष्ठ और उम्दा पत्रकार महोदया अनुकृति श्रीवास्तव जी ने बड़ी लगन और सूक्ष्म विश्लेषण के साथ तैयार किया है..इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत की ओर से इतिहास के विद्यार्थी के रुप में मैंने अपना योगदान दिया 🙏 वीरांगना का गौरवमयी इतिहास प्रस्तुत करने के पूर्व मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि जिस तरह इतिहास लेखन के दौरान महारथी शंकरशाह और उनके सुपुत्र रघुनाथशाह के साथ अन्याय हुआ है.. उससे भी बड़ा अन्याय वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी के साथ हुआ है.. इस षड्यंत्र में तथाकथित परजीवी और अंग्रेज़ों से भयाक्रांत बुद्धिजीवी इतिहासकार +अंग्रेजी पैटर्न और उनके स्रोतों को ब्रह्म वाक्य मानकर कैम्ब्रिज विचारधारा के इतिहासकार +मार्क्सवादी इतिहासकार और एक दल विशेष के इतिहासकार शामिल रहे हैं..जबकि रानी अवंतीबाई लोधी का कद और बलिदान किसी भी तरह से.. झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई और अवध की बेगम हजरत महल की तुलना उन्नीस नहीं रहा है.. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर लिखे गए इतिहास में तथाकथित महान् इतिहासकारों ने उनके बारे एक पृष्ठ तो छोड़िये.. एक पंक्ति नहीं लिखी है.. और तो और एक उद्भट विद्वान और जाने-माने इतिहासकार राय बहादुर हीरालाल जी ने अपने गजेटियर "मंडला मयूख" में रानी अवंतीबाई लोधी के पलायन कर जाने का उल्लेख किया है क्योंकि वे अंग्रेजों के प्रभाव में थे.. Now what is reality? रानी अवंतीबाई लोधी ने अंग्रेजों से लगातार 9 माह संघर्ष किया है.. जिसमें 6 प्रमुख युद्ध लड़े(देवहारगढ़ के जंगलों 🌲🌲में छापामार युद्धों के अतिरिक्त) .. जिसमें 5 युद्धों में अंग्रेजों के धूल चटाई.. छठवें युद्ध में अपनी अंगरक्षिका गिरधाबाई के साथ स्वत:प्राणोत्सर्ग कर स्वतंत्रता संग्राम में पूर्णाहुति दी... इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत 💐 💐 💐
विशेष आभार : श्री आनंद राणा जी

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