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महिलाओं को ही करने होंगे खुद के सम्मान के प्रयास: बी.पी.गौतम

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बी.पी.गौतम स्वतंत्र पत्रकार 0 8979019871   सृष्टि का विस्तार हुआ, तो पहले स्त्री आई और बाद में पुरुष। सर्वाधिक सम्मान देने का अवसर आया, तो मां के रूप में एक स्त्री को ही सर्वाधिक सम्मान दिया गया। ईश्वर का कोई रूप नहीं होता, पर जब ईश्वर की आराधना की गयी, तो ईश्वर को भी पहले स्त्री ही माना, तभी कहा गया त्वमेव माता, बाद में च पिता त्वमेव। सुर-असुर में अमृत को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया, तो श्रीहरि को स्त्री का ही रूप धारण कर आना पड़ा और उन्होंने अपने तरीके से विवाद समाप्त कर दिया, मतलब घोर संकट की घड़ी में स्त्री रूप ही काम आया। देवताओं को मनोरंजन की आवश्यकता महसूस हुई, तो भी उनके मन में मेनका व उर्वशी जैसी स्त्रीयों की ही आकृति उभरी। रामायण काल में गलती लक्ष्मण ने की, पर रावण उठा कर सीता को ले गया, क्योंकि स्त्री प्रारंभ से ही प्रतिष्ठा का विषय रही है, इसी तरह महाभारत काल में द्रोपदी के व्यंग्य को लेकर दुर्योधन ने शपथ ली और द्रोपदी की शपथ को लेकर पांडवों ने अपनी संपूर्ण शक्ति लगा दी, जिसका परिणाम या दुष्परिणाम सबको पता ही है, इसी तरह धरती की उपयोगिता समझ में आने पर, धरती को सम्मान दे

मीडिया कुरीतियों से समाज को सजग करे :गोपाल प्रसाद

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गोपाल प्रसाद                 मीडिया का नैतिक कर्तव्य है की समाज में फैली हुई कुरीतियों से समाज को सजग करे, देश और समाज के हित के लिए जनता को जागरूक करे ; परन्तु ऐसा लगता है की धन कमाने की अंधी दौड़ में लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ अपनी सभी मर्यादाओं को लाँघ रहा है। सभी समाचार पत्रों में संपादक प्रतिदिन बड़ी-बड़ी पांडित्यपूर्ण सम्पादकीय लिख कर जनमानस को अपनी लेखनी की शक्ति से अवगत करते हैं परन्तु व्यावहारिक रूप में ऐसा लगता है की पैसा कमाने के लिए सभी कायदे कानूनों को तक पर रख दिया गया है . सभी समाचारपत्रों में अश्लील एवं अनैतिक विज्ञापनों की भरमार है , जिससे समाज के लोग गुमराह होते हैं . समाचारपत्र केवल एक लाइन लिखकर लाभान्वित हो जाता है . क्या कभी किसी समाचारपत्र ने ऐसे विज्ञापनों की सत्यता को जांचने की कोशिश की ? क्या ऐसे अश्लील और अनैतिक विज्ञापनों को समाचारपत्रों में छपने भर से वह अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो सकता है?  ऐसे बहुत से विज्ञापन हैं जिनमें कोई पता नहीं होता , केवल मोबाईल नंबर दे दिया जाता है क्योंकि लाख कोशिश करने के बाबजूद भी ऐसे विज्ञापनदाताओं ने अपना पता नहीं बताया।

क्यों कि मर चुका हूं बेटी लोग कहते हैं मैं आज़ाद हूं

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तुम कौन हो क्या हो जानता नहीं फ़िर भी आज तुम्हारे लिये मेरे अश्रु मेरे बे़बस चेहरे पर अचानक हौले हौले सरकते-सरकते   सूख जाते हैं एक लक़ीर सी खिंचती है हृदय पर जब सोचता हूं कि उस निर्दयी सुबह ने तुमको अचानक क्यों दिया था ये दर्द शायद बेबस तब भी था .. दूर खड़ा निहारता तुमको नि:शब्द तब भी शोक मग्न था आज भी शोकमग्न हूं ...!! शोकाकुल बने रहना मेरी नियति है बेटी करूं भी क्या........ अपने ही देश में समझौतों की खुली दुकानों में जा  मैने भी किये हैं..... चुपचाप सहने के चुप रहने के सौदे व्यवस्था के खिलाफ़ कुछ भी बोलना मेरे बस में क्यों नहीं है क्यों कि मर चुका हूं बेटी लोग कहते हैं मैं आज़ाद हूं पर अर्ध-सत्य है.. सत्य तुम जानती हो बेटी क्योंकि मैं सिर्फ़ शोक मग्न हूं शायद इस बार न मना सकूं.. नये वर्ष का हर्ष.. _________________________________________                    दामिनी के लिये श्रृद्धांजलियां  _________________________________________

विश्व की हर मां को मेरा विनत प्रणाम

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सव्यसाची स्व. मां         यूं तो तीसरी हिंदी दर्ज़े तक पढ़ी थीं मेरी मां जिनको हम सब सव्यसाची कहते हैं क्यों कहा हमने उनको सव्यसाची क्या वे अर्जुन थीं.. कृष्ण ने उसे ही तो सव्यसाची कहा था..? न वे अर्जुन न थीं.  तो क्या वे धनुर्धारी थीं जो कि दाएं हाथ से भी धनुष चला सकतीं थीं..?  न मां ये तो न थीं हमारी मां थीं सबसे अच्छी थीं मां हमारी..!  जी जैसी सबकी मां सबसे अच्छी होतीं हैं कभी दूर देश से अपनी मां को याद किया तो गांव में बसी मां आपको सबसे अच्छी लगती है न हां ठीक उतनी ही सबसे अच्छी मां थीं .. हां सवाल जहां के तहां है हमने उनको सव्यसाची   क्यों कहा..! तो याद कीजिये कृष्ण ने उस पवित्र अर्जुन को "सव्यसाची" तब कहा था जब उसने कहा -"प्रभू, इनमें मेरा शत्रु कोई नहीं कोई चाचा है.. कोई मामा है, कोई बाल सखा है सब किसी न किसी नाते से मेरे नातेदार हैं.." यानी अर्जुन में तब अदभुत अपनत्व भाव हिलोरें ले रहा था..तब कृष्ण ने अर्जुन को सव्यसाची सम्बोधित कर गीता का उपदेश दिया.अर्जुन से मां  की तुलना नहीं करना चाहता मैं क्या   कोई भी "मां" के आगे भगवान

स्व. श्री हीरालाल गुप्त “मधुकर” स्मृति समारोह सम्पन्न

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२४ दिसम्बर १९९७ से     निरंतर जारी श्री हीरालाल गुप्त   “ मधुकर ”   स्मृति समारोह का आयोजन     हीरालाल गुप्त   “ मधुकर ”   स्मृति समिति एवम सव्यसाची कला ग्रुप     के तत्वावधान में     ड्रीमलैण्ड फ़नपार्क जबलपुर में दिनांक २४ दिसम्बर २०१२ को आयोजित किया गया.     कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व उप महाधिवक्ता उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश श्री आदर्श मुनि त्रिवेदीजी ने की जबकि     मुख्य अतिथि के रूप में     श्री कृष्ण कान्त चतुर्वेदी पूर्व निदेशक कालिदास अकादमी   , मध्य प्रदेश उपस्थित थे.     15  वर्ष पूर्व प्रारम्भ किये गए "स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त स्मृति पत्रकारिता सम्मान " से इस वर्ष वरिष्ठ पत्रकार श्री चैतन्य भट्ट को सम्मानित किया गया.   कार्यक्रम में प्रो. एच. बी. पालन , विनोद शलभ ,  यशोवर्धन पाठक ,  इरफ़ान झांस्वी , डा. अजित वर्मा, श्री महेश मेहदेले, संजय पारे, अरुण टेमले सहित बड़ी संख्या में साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे.                  सव्यसाची स्वर्गीया श्रीमती प्रमिला बिल्लोरे स्मृति सम्मान से इस बार संस्कार

जो सतह में चल रहा है उसका अनुमान लगाओ तो सही रिज़ल्ट पर पहुंच जाओगे..

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कार्टूनिस्ट इरफ़ान             अराजक- व्यवस्थाओं के खिलाफ़ समुदाय के तेवर को कम आंकना किसी भी स्थिति में किसी भी देश के लिये आत्मघात से कम नहीं है. आज के दौर में विश्व का कोना कोना सूचना क्रांति की वज़ह से एक सूत्र में बंधा नज़र आता है तब तो शीर्षवालों को सतह की हर हलचल पर निगाह रखनी ज़रूरी है. सबकी बात समझ लेने वाली इंद्रियों को सक्रिय करना ही होगा.   मेरे प्रिय प्रोफ़ेसर (डा.) प्रभात मिश्र कहते थे -"जो सतह में चल रहा है उसका अनुमान लगाओ तो सही रिज़ल्ट पर पहुंच जाओगे.." प्रभात सर ने कहा तो मुझसे था पर सम-सामयिक बन गया है यह वाक्यांश ...  शीर्षवालों के लिये .              कृष्ण कालीन महाभारत आप को याद है न .. जो युद्ध न था .   बस क्रांति थीं.. हां इनमे कृष्ण थे अवश्य पर वो कृष्ण जो लक्ष्य थे विचार थे चिंतन थे...जिसे आप गीता कहते हैं  उनके पीछे चल पड़ा था समुदाय परंतु अब बिना कृष्ण यानी नेतृत्व के, केवल लक्ष्य को  अपना अगुआ मानके चलेगा समुदाय. चल भी रहा है.                           अब क्रांतियों का स्वरूप सहज ही बदल रहा है. सर्वमान्य नेतृत्व की अपेक्षा  क्रांतियां

वरिष्ठ पत्रकार श्री चैतन्य भट्ट को हीरा लाल गुप्त स्मृति अलंकरण एवम सव्यसाची स्वर्गीया श्रीमती प्रमिला बिल्लोरे स्मृति अलंकरण राजेश पाठक "प्रवीण" को

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                                                                                                 कल दिनांक 24 दिसंबर 2012 को शाम 6.30 बजे ड्रीम लेंड फन पार्क सिविक सेंटर जबलपुर मध्य प्रदेश में स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त स्मृति सम्मान समारोह आयोजित है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व उप महाधिवक्ता उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश श्री आदर्श मुनि त्रिवेदीजी तथा मुख्य अतिथि श्री कृष्ण कान्त चतुर्वेदी पूर्व निदेशक कालिदास अकादमी ,मध्य प्रदेश होंगे। 15 वर्ष पूर्व प्रारम्भ किये गए "स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त स्मृति पत्रकारिता सम्मान " से इस वर्ष वरिष्ठ पत्रकार श्री चैतन्य भट्ट को सम्मानित किया जायेगा .                                सव्यसाची स्वर्गीया श्रीमती प्रमिला बिल्लोरे स्मृति सम्मान से इस बार संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं मध्य प्रदेश के जाने माने उद्घोषक, राष्ट्र स्तरीय सामाजिक पत्रिका "सनाढ्य संगम" के यशस्वी संपादक , साहित्यकार श्री राजेश पाठक "प्रवीण" को नवाजा जायेगा। संस्कारधानी की भावना के अनुरूप इस कार्यक्रम में हम स्वर्गीय रामे

रैपिस्ट मस्ट बी हैंग्ड टिल डैथ

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           सरकार को नारी के साथ बलात्कार उसके खिलाफ़ सबसे जघन्य हिंसा मानने में अब देर नहीं करनी चाहिये.नारी की  गरिमा की रक्षा के लिये बलात्कार को किसी भी सूरत में हत्या से कमतर आंकना सिरे से खारिज करने योग्य है.   घरों में काम करने वाली नौकरानियां, दफ़्तरों का अधीनस्त अमला, इतना ही नहीं उंचे पदों पर काम कर रहीं महिलाएं तक भयभीत हैं. मुझसे नाम न लिखने की शर्त पर एक महिला अधिकारी कहतीं हैं-"हम कितना भी दृढ़ता दिखाएं आखिरकार औरत हैं पल भर में हमारा हौसला खत्म करने में कोई लापरवाही नहीं करता पुरुष प्रधान समाज . "  ब्लाग जगत की महत्वपूर्ण लेखिका  Aradhana Chaturvedi  ( आराधना चतुर्वेदी  रिसर्च स्कालर  )  खुद भयभीत हैं -" मैं दिल्ली में रहती हूँ. अकेले बाहर आती-जाती हूँ. शाम को जल्दी आने की कोशिश करती हूँ, पर सर्दियों में तो छः बजे अँधेरा हो जाता है.   अभी तक शॉक्ड हूँ कल की घटना से. बार-बार लग रहा है कि ये घटना मेरे साथ भी हो सकती है. सोच रही हूँ वेंटीलेटर पर गंभीर हालत में पड़ी उस लड़की के बारे में.  तबीयत ठीक नहीं, बाहर भी नहीं जा सकती...आंदोलन कर रहे जे.एन.यू.

गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे हैं- सियासी-परिंदे गावों पे मंडराने लगे हैं.

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साभार : http://yugaahwan.blogspot.in/ रजाई ओढ़ तो ली मैनें   मगर वो नींद न पाई , जो पल्लेदारों को  बारदानों में आती है.! वो रोटी कलरात जो मैने छोडी थी थाली में मजूरे को वही रोटी सपनों में लुभाती है. *********** फ़रिश्ते   आज कल   घर   मेरे   आने लगे हैं मुझे बेवज़ह कुछ रास्ते बतलाने लगे हैं मुझे मालूम है काम अबके फ़रिश्तों का फ़रिश्ते   घूस लेकर काम करवाने  लगे हैं. *********** तरक़्क़ी की लिस्टें महक़में से हो गईं जारी तभी तो लल्लू-पंजू इतराने लगे हैं....!! खुदा जाने नौटंकी बाज़ इतने क्यों हुए हैं वो जिनको लूटा उसी को भीख दिलवाने चले हैं. *********** जिन गमछों से आंसू पौंछते हमारे बड़े-बूढ़े- वो गमछे अब गरीबों को डरवाने लगे हैं. गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे अब सियासी-परिंदे गांवों पे मंडराने लगे हैं.

ये तन्हाई मुझे उस भीड़ तक लाती है.. !!

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 ये नज़्म कुछ खास दोस्तों को समर्पित है  ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ तक लाती है.. !! जिसे मैं छोड़ आया हूं ... कोसों दूर अय.. लोगो कि जिसमें तुम हो, तुम हो और तुम भी तो हो प्यारे.. वो जिसने मेरे चेहरे पे सियाही पोतना चाहा... ये भी हैं जो मिरे पांवों पे बांधा करते थे बेढ़ियां इक दिन अचानक जागते ही तोड़ आया हूं..!! ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ के पास लाती है.. !! जिसे मैं छोड़ आया हूं ...!! ********** अचानक एक दिन तुम सबसे टूटा दूर जा छिटका... तुम हैरत में हो ? क्या वज़ह थी मेरे जाने की..? तुम जो रास्ता बतला रहे हो लौट आने की...!! अरे पागल हो तुम .. ज़रा सोचो कभी बहता हुआ दरिया सुनेगा लौट आने की ? मेरे साहिल पे आके अब सुनों अनुगूंज तुम मेरी तुम्हारा शुक्रिया कि टूटके तुम से यकीं मानो बहुत कुछ मीत अपने जोड़ पाया हूं !! ********** गिरीश बिल्लोरे “ मुकुल ” **********