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शनिवार, दिसंबर 29, 2012

क्यों कि मर चुका हूं बेटी लोग कहते हैं मैं आज़ाद हूं

तुम कौन हो
क्या हो
जानता नहीं फ़िर भी
आज तुम्हारे लिये
मेरे अश्रु मेरे बे़बस चेहरे पर
अचानक हौले हौले
सरकते-सरकते   सूख जाते हैं
एक लक़ीर सी खिंचती है हृदय पर
जब सोचता हूं कि
उस निर्दयी सुबह ने
तुमको अचानक क्यों दिया था ये दर्द
शायद बेबस तब भी था ..
दूर खड़ा निहारता तुमको
नि:शब्द तब भी शोक मग्न था
आज भी शोकमग्न हूं ...!!

शोकाकुल बने रहना मेरी नियति है
बेटी करूं भी क्या........
अपने ही देश में समझौतों की खुली दुकानों में जा  मैने भी
किये हैं.....
चुपचाप सहने के
चुप रहने के सौदे
व्यवस्था के खिलाफ़ कुछ भी बोलना
मेरे बस में क्यों नहीं है
क्यों कि मर चुका हूं बेटी
लोग कहते हैं मैं आज़ाद हूं
पर अर्ध-सत्य है..
सत्य तुम जानती हो बेटी
क्योंकि मैं सिर्फ़ शोक मग्न हूं
शायद इस बार न मना सकूं..
नये वर्ष का हर्ष..
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                  दामिनी के लिये श्रृद्धांजलियां 
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