Ad

शनिवार, फ़रवरी 19, 2011

संगीता पुरी जी की कहानी मेरी जुबानी:अर्चना चावजी (पाडकास्ट)

साभार: "स्वार्थ"ब्लाग से
               आज इस व्‍हील चेयर पर बैठे हुए मुझे एक महीने हो गए थे। अपने पति से दूर बच्‍चों के सानिध्य में कोई असहाय इतना सुखी हो सकता है , यह मेरी कल्‍पना से परे था। बच्‍चों ने सुबह से रात्रि तक मेरी हर जरूरत पूरी की थी। मैं चाहती थी कि थोडी देर और सो जाऊं , ताकि बच्‍चे कुछ देर आराम कर सके , पर नींद क्‍या दुखी लोगों का साथ दे सकती है ? वह तो सुबह के चार बजते ही मुझे छोडकर चल देती। नींद के बाद बिछोने में पडे रहना मेरी आदत न थी और आहट न होने देने की कोशिश में धीरे धीरे गुसलखाने की ओर बढती , पर व्‍हील चेयर की थोडी भी आहट बच्‍चों के कान में पड ही जाती और वे मां की सेवा की खातिर तेजी से दौडे आते , और मुझे स्‍वयं उठ जाने के लिए फिर मीठी सी झिडकी मिलती। ( आगे=यहां ) संगीता पुरी जी की कहानी का वाचन करते हुए मैं अभिभूत हूं.


Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में