सुशील कुमार ON SATURDAY, FEBRUARY 19, 2011
भईया , ब्लॉग पर आकर सिर्फ़ गाल बजाने से कुछ नहीं होगा। आप कुछ साहित्यकारों जैसे डा. नामवर सिंह, सर्वश्री राजेन्द्र यादव, अशोक वाजपेयी,मंगलेश डबराल, अरुण कमल, ज्ञानेन्द्रपति, नरेश मेहता, एकांत श्रीवास्तव, विजेन्द्र, खगेन्द्र ठाकुर इत्यादि या आपको जो भी लब्ध-प्रतिष्ठ लेखक-कवियों के नाम जेहन में हैं, के नेट पर योगदान को बतायें और यहाँ चर्चा करें। पूरा खुलासा करें कि कौन-कौन सी चीजें नेट पर हिन्दी साहित्य में ऐसी आयी हैं जो अभिनव हैं यानि नूतन हैं और उन पर प्रिंट के बजाय सीधे नेट पर ही काम हुआ है, । तभी आपके टिप्प्णी की सार्थकता मानी जायेगी और आपको ज्ञान-गंभीर पाठक माना जायेगा, केवल शब्दों की बखिया उघेरने और हवा में तीर चलाने से काम नहीं चलने को है, वर्ना "मैं तेरा , तू मेरा" यानि तेरी-मेरी वाली बात ब्लॉग पर तो लोग करते ही हैं। (आगे यहां से )
इस आलेख का औचित्य आपसे जानना चाहता हूं आपको चैट आमंत्रण भेजा है जिसे आपने स्वीकारा मै चाहता हूं कि आप वीडियो चैट के ज़रिये ब्लाग जगत के सामने आएं ताक़ि सब आपको जान सकें ?
मुझे ब्लॉग या मिडिया से विरोध ही है! सुशील आगे कहते हैं :-" पूर्णिमा वर्मन हो या सुमन कुमार घई जी , इनको साहित्य की अद्यावधि गतिविधियों की जानकारियाँ नहीं रहती।" .........। अविनाश वाचस्पति जी को ही ले लीजिये, नेट पर समय देने को तैयार हैं अपनी स्वास्थ्य खराब करके भी , टिप्पणी सवा एक बजे रात में जगकर लिखने की क्या जरुरत थी उन्हें? पर उन्होंने यह मुगलता पाल रखा है कि हिन्दी पर बहुत अच्छा काम नेट में हो रहा है। जितने भी आप्रवासी वेबसाईट हैं सब मात्र हिन्दी के नाम पर अब तक प्रिंट में किये गये काम को ही ढोते रहे हैं, वे स्वयं कोई नया और पहचान पैदा करने वाला काम नहीं कर रहे ,न कर सकते क्योंकि वह उनके क्षमता से बाहर है। पर ऐसा क्यों है, यही मूल चिंता का विषय है।
इस आलेख में के ज़रिये एक बात तो स्थापित हो गई नागफ़नी जवां हो चुकी है. यानी एकदम जावां हुए कांटों से गुज़ारा करना होगा हमको अब यह तय शुदा है. मेरी नज़र में सुशील जी ने चिट्ठाकारिता के स्वरूप पर चर्चा न करते हुआ एक भड़ास निकाल दी आपने.और तो और इससे राहत न मिली तो व्यक्तिगत आलोचना करते हुए उन पति-पत्नी की याद दिला दी जो एक छत के नीचे न्यूनतम समझौते यानी केवल सात + सात =चौदह कसमों के सहारे एक-दूसरे के साथ रहतें हैं. फ़िर इन देहों की वज़ह से उत्पन्न पैदावार को सम्हालने की वज़ह से शेष ज़िंदगी गुज़ार देतें हैं. ज़िन्दगी खत्म हो जाती है एक दूसरे को गरियाते-लतियाते उनकी. अच्छा हुआ कि आपने चिंता करके घरेलू -किस्म के व्यक्तित्व का परिचय दिया अब गेंद आपके पाले में है चिंता नहीं अपने निष्कासन पर चिंतन कीजिये. वैसे मुझे तो दु:ख ही हुआ आपके हटाये जाने पर. पर क्या करें ?
अरे हां भूल ही गया था आपने जो लिखा उसका ओर छोर यानी सूत्र पकड़ने का प्रयत्न कर रहा हूं.... पर सच कहूं लगा कभी कभार तरंग मे लिखे गये आलेख (साहित्य नहीं) सूत्र हीन ही होते हैं.
कुछ लाइने देखिये :-
- ”मुझे ब्लॉग या मिडिया से विरोध ही है” इसका अर्थ क्या है..? वैसे इससे न तो ब्लाग खत्म होंगे न ही मीडिया.
- " पूर्णिमा वर्मन हो या सुमन कुमार घई जी , इनको साहित्य की अद्यावधि गतिविधियों की जानकारियाँ नहीं रहती।" .........। ”:- इसका भी अर्थ बताएं ज़रा.
फ़िर अचानक बेचारे अविनाश पर आक्रमण ? खैर जो भी आपसी मामला हो आपलोग आपस में निपट लें नुक्कड़ पर "गोबर की थपाल" रखने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी .आपके अलावा हम लोग भी सदस्य हैं नुक्कड़ ब्लाग के अगर अविनाश उद्दंड हैं आपकी नज़र में तो आप ने कौन सा ..?
अविनाश जी आपसे अनुरोध है कि इनके आलेख को माडरेट न करॆं लगे रहने दें नुक्कड़ पर अभी काफ़ी विमर्श करने हैं सुशील जी से शायद हिंदी ब्लागिंग का सुधार हो जाए
14 टिप्पणियां:
आलेख का औचित्य समझ के परे है..लगता है नेट की बात सिर्फ माध्यम है, उद्देश्य -कौन जाने!!
khisiyane par kya hota hai.. aisa hi kuchh...
शुक्भारिया रतीय नागरिक/समीर जी सच है.
प्रवासियों की से ओर
ज़वाब कल शाम को मिलेंगे उनको इसी ब्लाग पर
ब्लॉगिंग की दुनिया से निकल कर देश-विदेश की सैर?
एक बहुत हसीन कल्पना!
जे बात ...अरे हम हैं न...नुक्कड सरीखे चौक चौराहे की न किसी सडक पर हम भी खडे हैं न ...अब साहित्यकार आएं या ब्लॉगर साबका तो होगा ही । चलिए शायद अबके फ़ागुन यही चाहता हो ...हम तो तैयार हैं ...दूसरी पालटी से पूछा जाए ...
aadarniya girish ji , main apna nukkad waala comment yaha post kar raha hoon...
आदरणीय गुरुजनों और मित्रो ,
मैं तो इतना जानता हूँ की , आज जितनी हिंदी नेट पर पढ़ी जाती है , उतनी कही भी किसी भी किताब या magazine में नहीं पढ़ी जाती [ मैं ट्रेन में पढने वालो की बात नहीं कर रहा हूँ , मैं गंभीर रूप से पढने वालो की बात कर रहा हूँ ] ..जिसे भी थोडा भी हिंदी साहित्य में रूचि है आज वो नेट पर है ...और नेट से ज्यादा अच्छे और स्वतंत्र और स्वस्थ अभिव्यक्ति कहीं नहीं है , और देखा जाए तो पिछले ५ वर्षो में जितने अच्छे लेखक और कवी हिंदी साहित्य को , नेट के कारण मिले है वो पिछले २५ सालो में magazines को नहीं मिल पाए है और ये संभव हुआ है सिर्फ नेट पर हिंदी साहित्य की असीमित संभावनाओ के कारण. मुझे अपना ही उदहारण याद आ रहा है की , पहले मेरी कविताये नेट पर /ब्लॉग पर छपी और पढ़ी गयी , और फिर हंस और दूसरी सारी पत्रिकाओ में छपी . आज के हिंदी लेखक या कवी को इससे पहले ये ख़ुशी कभी हासिल नहीं हुई , क्योंकि पहले तथाकथित हिंदी साहित्य के ठेकेदारों ने अपना दबदबा बन रखा था साहित्य जगत पर. .. और सुशील जी आप inferiority complex के शिकार है , पहले बहुत से नवजात कवी और लेखको पर अपना निशाना साधा [ जैसे की मैं .. याद है आपको , मैं आज तक नहीं भूला हूँ. वो तो धन्यवाद समीर जी की की उन्होंने एक अपने एक लेख में मेरे बारे में लिखकर मुझे फिर से लिखने की प्रेरणा दी, वो तो धन्यवाद प्राण शर्मा जी का और दुसरे सारे साहित्यकारों का जिन्होंने मुझे हमेशा पसंद किया और मुझे प्रेरित किया ] , लेकिन आज तो आप बहुत आगे निकल गए , आदरणीय पूर्णिमा जी के बारे में कह डाला , गुरु जी अविनाश जी के बारे में कह डाला [ वो जरुर कहते होंगे ... you too brutaas ] ...... आप अपने हिंदी साहित्य से जुड़े रहिये , किसी के बारे में मत कहिये ... हिंदी साहित्य को जहाँ जाना है , वहां वो जा रहा है और अगर आप आनेवाले १० साल जीवित रहे तो देखियेंगा की प्रिंट के अलावा नेट पर भी हिंदी साहित्य को बोलबाला होंगा . और मैं तो यही कहूँगा की हिंदी साहित्य अब सिर्फ नेट पर ही ज्यादा उपलब्ध होंगा . आज ब्लॉग्गिंग बहुत ही सशक्त माध्यम है और भारत को हिंदी ब्लोग्गेर्स की बहुत जरुरत है .. आप अपनी सुधि देखिये , बाकी , हम तो भारत के हिंदी ब्लोग्गेर्स है , हिंदी साहित्य को जहाँ ले जाना है , वहां तो ले ही जायेंगे .. मुझे तो शक होता है की आप सही में हिंदी को प्रेम करते है , क्योंकि अगर ऐसा होता तो आप अविनाश जी को कभी कुछ नहीं कहते .. आज हिंदी ब्लॉग्गिंग में और हिंदी साहित्य में उनका योगदान , बहुत ही ज्यादा है ...बाकी तो मुझे कुछ नहीं कहना है क्योंकि , हिंदी ब्लॉग्गिंग करना है हिंदी साहित्य को आगे ले जाना है .. प्राणाम !!!
नेट और साहित्य ...आइए बहसियाते हैं ....लिखी जा रही पोस्ट का शीर्षक ...उम्मीद है कि बहस आगे बढेगी जरूर
aabhaar sabhee kaa ajay b hai bahut zarooree hai
ाभी और बहस की गुंजाइश है देखते हैं आने वाले क्या कहते हैं। धन्यवाद।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फ़लेषु कदाचन:
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु। चरैवेति चरैवेति
मैं अपनी पोस्ट लिक चुका हूं और बहस की गुंजाईश भी ..
नेट बनाम साहित्य
सुशील जी तो लिखकर गायब ही हो गए..
कम से कम जवाब तो देना चाहिए पाठकों की आपत्तियों का..
Karne waale apna kaam karte jaate hain ... bolne waale bolte rahte hain ...
Kya fark padhta hai ..
गायब नहीं हुए हैं अपना कविता संग्रह लेकर आ रहे हैं तुम्हारे शब्दों से अलग। तब सब के मुंह और कलम दोनों बंद हो जाएंगे। मैं उनकी कविताओं की फैन हूं।
एक टिप्पणी भेजें