13.2.11

वही क्यों कर सुलगती है ? वही क्यों कर झुलसती है ?






वही  क्यों कर  सुलगती है   वही  क्यों कर  झुलसती  है ?
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
न खुल के रो सके न हंस सके पल –पल पे बंदिश है
हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है !

वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला
वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!
 
कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?

मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ?

तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं.

विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख  माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जसुदा तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
उसी की दी हुई धड़कन इस दिल में धड़कती है.

आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ  तो  होगी  इधर  सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर  में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और  उजला सा फ़लक भी है !
        * गिरीश बिल्लोरे मुकुल,जबलपुर



अपने माता-पिता को ओल्ड-एज़-होम भेजने वालों  विनम्र आग्रह करता हूं कि वे अपने आकाश और अपनी ज़मीन को वापस लें आएं

देवाला=देवालय,पूजाघर,बा=मां, फ़लक=आसमान
प्रेम-दिवस पर विशेष "इश्क़-प्रीत-लव" पर

11 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आज़ की रात फ़िर जागा उसी की याद में लोगो
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ तो होगी ज़रा सोचो
कहीं उसको जो भेजा हो तो वापस घर ले आना
वही तेरी ज़मीं है वो ही तेरा उजला फ़लक भी है !

-क्या बात कही है.

Rahul Singh ने कहा…

कुछ घरों में मांओं की (पिताओं की भी)जो हालत होती है, वह देख कर वृद्धाश्रमों का माहौल और सुधर जाए, बस यही कामना करना बेहतर लगता है.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मन को छूती रचना गिरिशजी ...... संवेदनशील

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

आप सभी का आभार

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

.........अपने माता-पिता को ओल्ड-एज़-होम भेजने वालों विनम्र आग्रह करता हूं कि वे अपने आकाश और अपनी ज़मीन को वापस लें आएं,
बस यही कामना है.
आभार........

Udan Tashtari ने कहा…

भावुक कर गै यह रचना...

Udan Tashtari ने कहा…

भावुक कर गई यह रचना.

मनीष सेठ ने कहा…

mata pita ki sewa se bad kar koi dharm nahi hai.
girishji man dukhi ho jata hai.old age home ko dekh kar.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

शुक्रिया साथियो

Satish Saxena ने कहा…

नारी के सम्मान में जो अभिव्यक्ति इस रचना में है वह कम ही देखी जाती है ! शुभकामनायें भारतीय नारी और गिरीश भाई को !

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