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शनिवार, फ़रवरी 12, 2011

एक बार तो दे दो दिल से आशीर्वाद :- "पुत्रीवति भव:"

सलमा अंसारी
                   एक बार तो दे दो  दिल से आशीर्वाद :- "पुत्रीवति भव:" दिल से आवाज़ क्यों नहीं निकलती क्या वज़ह है किन संस्कारों ने जकड़ी हैं आपकी जीभ ऐसा आशीर्वाद देने में क्यों नही उठते हाथ आपके कभी ? क्यों मानस पर छा जाता है लिंग  भेदी पर्दा ? इन सवालों के ज़वाब अब तो खोज लीजिये सरकार . क्या आप के मन में इस बयान से भी तनिक हलचल पैदा नहीं हो सकी लड़की को पैदा होते ही मार देना... . कितनी आर्त हो गई होगी यह मां इस बयान को ज़ारी करते हुए. मोहतरमा सलमा अंसारी का यह बयान हल्के से लेना हमारी भूल होगी. वास्तव में जब कलेजों में दर्द की लक़ीरें बिजली की तरह दौड़तीं हैं तब ही उभरीं हैं कराहें इसी तरह की. मुस्लिम औरतों के तालीम की वक़ालत करने वाली इन मोतरमा के दिल में हिंदुस्तान की नारियों के लिये दर्द ही नज़र आ रहा है मुझे तो. उनके बयान में एक आह्वान और एक सुलगती हुई क्रांति का सूत्रपात दिखाई दे रहा है.
देश के उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी के दिल में समाज के गरीब और पिछड़े लोगों के प्रति दर्द हैं। यही वजह है कि  उन्होंने 1998 में 'अल नूर फाउंडेशन' कायम किया। उनका यह फाउंडेशन गरीब और जरूरतमंद बच्चों को तालीम मुहैया कराने का काम करता है।  उत्तरप्रदेश में जन्मी सलमा का ज्यादातर वक्त विदेशों में बीता, क्योंकि उनके पिता संयुक्त राष्ट्र की सेवा में थे। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अंग्रेजी लिटरेचर की पढ़ाई की। (साभार:-दस्तक)
नज़्मों की बात से साभार 
             क्रांति जो भारत से लिंगभेद को ज़ड़ से हटा सकती है अगर सामाजिक स्तर से औरतों के समान अधिकार की यह क्रांति ने रफ़्तार पकड़ी तो तय है कि  भारत लिंगभेद मिटाने में में सबसे आगे होगा. भारत की आधी आबादी के लिये चिंतित होना ज़रूरी है . औरतें तालीम के अभाव में न रहें इस लिये केंद्र और राज्य सरकारों ने हर स्तर से प्रयास किये तो हैं पर हम ही हैं जो उसके पराये होने और लड़कों को वंश बेल बढ़ाने वाला माने बैठे हैं जबकि किसी भी धर्म ग्रंथ के किसी आख्यान में, ऋचाओं में, श्लोक में कहीं भी नारी को हेय नहीं माना है. यदि कोई उदाहरण हो तो बताएं भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जाने कब धीरे से औरतों के प्रति भेदभाव वाला पाठ शामिल हुआ समझ से परे है. विकास के परिपेक्ष्य में हमने औरतों की ताक़त का अनुमान ही नहीं लगाया.सदा यह कह के उसे नक़ारा कि "बेचारी महिला क्या करेगी ?"
वेब दुनियां से साभार 
वास्तव में यह सुन सुन के महिला-प्रजाति ने खु़द को कमज़ोर मान लिया. बरसों से  मेरी धारणा है कि दुनियां के सभी कामों में 90% काम औरत ही तो करती है. फ़िर कभी दैहिक-प्यास का शिकार, तो कभी सम्मान के लिये हत्या, कभी दहेज तो कभी रूढ़ियों की वेदी पर सुलगती औरतें क्यों क्या समाज ने कभीगौर से नही देखा अपनी बेटियों को जो घर से समाज तक कितना मान बढ़ातीं हैं  . उसका मूल्यांकन करिये उसकी क्षमता को जानिये. और दे दीजिये नवोड़ा-वधू को आशीर्वाद ! हां पूरे पवित्र मन से एक बार तो दे दो  दिल से कह दीजिये :- "पुत्रीवति भव:"
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और अंत में सुनिये सरस्वति वंदना :-
 सरस्वती वन्दना ----गिरीश पंकज जी के ब्लॉग सद्भावना दर्पण से
 आवाज़ : श्रीमति अर्चना चावजी 
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