21.8.23

सॉफ्ट पावर की ताकत मध्यमवर्ग ने बढ़ाई है..!

भारत के मध्यम वर्ग की ताकत ने ने किया है भारत को गौरवान्वित 
अमेरिकी उपराष्ट्रपति एवं यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री भी भारतीय मूल के हैं । 
यह तो पॉलिटिकल स्टेटस प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के लोग हैं इसके अतिरिक्त विश्व के बड़े अंतरराष्ट्रीय कंपनीयों एवं उद्योग घरानों में भारतीय मूल के लोगों की मौजूदगी भारत को गौरव प्रदान करती है।
अमेरिका में होने जा रहे 2025 के आम चुनाव में राष्ट्रपति के तौर पर जिस नाम का जिक्र हो रहा है उन्हें विवेक रामास्वामी कहते हैं। विवेक रामास्वामी एक भारतीय मूल के अमेरिकन बिजनेसमैन हैं।
  ऐसी क्या बात है भारतीयों में जो उन्हें अन्य लोगों से खास बनाती है?
इस बात की पड़ताल करें तो पता चलता है कि-
[  ] दक्षिण एशियाई मूल के सभी नागरिक बेहद मेहनती है तथा ईमानदार भी। विशेष रूप से भारतीय डायस्पोरा ने यूरोपीय देशों में अपना खास स्थान बना रखा है।
[  ] भारतीय मूल के लोगों में ज्ञान के साथ कार्यक्षमता और उनका पूछ राष्ट्र के प्रति सकारात्मक रवैया विश्व को प्रभावित एवं आकर्षित करता है।
[  ] भारतीयों की विशेषता है कि वह देश काल परिस्थिति के अनुसार स्वयं को अनुकूलित कर लेते हैं। यह भी एक कारण है कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था के लिए वे महत्वपूर्ण घटक बन जाते हैं।
[  ] ऐसा नहीं है कि आज के दौर में ही भारतीयों ने विश्व पर अपना प्रभाव छोड़ा है बल्कि प्राचीन भारतीय इतिहास से लेकर मध्यकालीन ऐतिहासिक परिस्थितियां बताती है कि-" भारतीयों का सम्मान उस दौर में भी विश्व करता रहा है। प्राचीन एवं मध्य कल में भारतीय व्यापार वाणिज्य विश्व के व्यापार वाणिज्य का 30 प्रतिशत से अधिक रहा है।" लुटेरों के कारण पिछले 1300 वर्षों में भारतीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक विस्तार में कमी अवश्य हुई है।
[  ] ईसा पूर्व 600 वर्षों की स्थिति देखी जाए तो जहां दक्षिण एवं उत्तर पूर्व एशियाई भूमि भागों पर भारतीय संस्कृति का विस्तार चोल वंश ने किया वहीं दूसरी ओर पूर्वी तथा मध्य एशिया तक महात्मा बुद्ध के धम्म का विस्तार हुआ है, इसे इतिहास प्रमाणित करता है। यह अलग बात है कि अवेस्ता के प्रभाव से सीरिया से बुद्धिज्म को वापस आना पड़ा।
[  ] वर्तमान परिस्थितियों में 1980 के बाद से भारतीय मध्य वर्ग ने जिस तरह से त्याग और प्रतिबद्धता के साथ अपना विकास किया है उसके परिणाम स्वरूप भारत का सॉफ्ट पावर वैश्विक रूप से समादरित हुआ है।
[  ] विज्ञान साहित्य संस्कृति एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भारत के सॉफ्ट पावर ने स्वयं को अभी प्रमाणित कर दिया। इस क्रम में कोविद महामारी का जिक्र करना जरूरी है। क्योंकि इसी अवधि में भारत मददगार के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने में सफल रहा।
[  ] मध्यमवर्ग के बारे में आयातित विचारधारा के लोग नकारात्मक टिप्पणियां 1990 तक करते रहे हैं। मैंने कई विद्वानों को सुना है जो मध्यवर्ग की निंदा किया करते थे। मध्यवर्ग ने इन सब बातों को अनसुना करते हुए अपने सॉफ्ट पावर को प्रोत्साहित करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मध्यमवर्ग हमेशा से ही शिक्षा के प्रति आकृष्ट रहा है। पॉलिटिकल परिस्थितियों में उसकी भूमिका एक शांतिपूर्ण सहयोगी के रूप में रही है। इसी मध्यवर्ग के बच्चों ने अगले दो दशकों में जिस तरह से स्वयं को स्थापित किया तथा विदेशों में जाकर अपने अस्तित्व को स्थापित कर दिया काबिले तारीफ है।
         जहां तक मैंने अध्ययन किया तो पाया कि अफ्रीका के कई देश तथा अन्य उपनिवेश जो फ्रांस जर्मनी इंग्लैंड के उपनिवेश हुआ करते थे वह आज भी विदेशी व्यवस्था से बाहर नहीं निकल पाए हैं। अब तो वह लगभग उसी स्थिति में है जैसा की उपनिवेश के समय वे किसी देश की कॉलोनी थे। जबकि भारत ने स्वयं को बदला है। प्रजातंत्र संविधान के साथ-साथ विकास में सब की भागीदारी के सिद्धांत को अपना कर भारतीय समाज सुदृढ़ से अति सुदृढ़ता की ओर अग्रसरित है।
   ऐसा नहीं है कि हम पूर्ण रूप से वैश्विक प्रभाव छोड़ रहे हैं ! क्योंकि हमारे पास अभी वर्ग संघर्ष जातिय भेदभाव शेष है। इसे समाप्त करना तथा एकात्मता के साथ विकास की गतिविधियों को आगे लाना हमारा नागरिक कर्तव्य है और राष्ट्र धर्म भी यही है।
  एक दौर था जब भारत की टीम ओलंपिक खेलों में बमुश्किल कुछ हासिल कर पाती परंतु अब खिलाड़ियों ने भारत को तीनों धातुओं के मेडल जीत कर गौरव प्रदान किया है। कुल मिलाकर अब भारत जिस स्थिति में आया है उसका मूलभूत कारण है भारत का मध्यम वर्ग जो भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूती प्रदान करता है।

 

14.8.23

गुमशुदा चारपाई उर्फ खटिया : योगेश उपाध्याय

चारपाई यानी खटिया का  कमर दर्द, सर्वाइकल और चारपाई... के बीच एक गहरा संबंध है। संबंध तो किसी किसी  दुराचरी दुष्ट से भी है जिसकी खटिया खड़ी हो जाती है या कर दी जाती है .. आइए जानते हैं खटिया के गुण योगेश उपाध्याय जी से...   
हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे..सोने के लिए खाट हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है। हमारे पूर्वज क्या लकड़ी को चीरना नहीं जानते थे ? वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं। चारपाई भी भले कोई साइंस नहीं है, लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है। उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है। जब हम सोते हैं, तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खू'न की जरूरत होती है। क्योंकि रात हो या दोपहर में लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते हैं। पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की जोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।दुनिया में जितनी भी आरामकुर्सियां देख लें, सभी में चारपाई की तरह जोली बनाई जाती है। बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपड़े की जोली का था, लकड़ी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया गया है। चारपाई पर सोने से कमर और पीठ का दर्द का दर्द कभी नही होता है। दर्द होने पर चारपाई पर सोने की सलाह दी जाती है। डबलबेड के नीचे अंधेरा होता है, उसमें रोग के कीटाणु पनपते हैं, वजन में भारी होता है तो रोज-रोज सफाई नहीं हो सकती। चारपाई को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया कीटनाशक है। खटिये को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं। अगर किसी को डॉक्टर Bed Rest लिख देता है तो दो-तीन दिन में उसको English Bed पर लेटने से Bed -Soar शुरू हो जाता है । भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है । चारपाई पर  Bed- Soar नहीं होता क्योंकि इसमें से हवा आर-पार होती रहती है । गर्मियों में इंग्लिश Bed गर्म हो जाता है इसलिए AC की अधिक जरुरत पड़ती है जबकि सनातन चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है ।बान की चारपाई पर सोने से सारी रात Automatically सारे शरीर का Acupressure होता रहता है । गर्मी में छत पर चारपाई डालकर सोने का आनंद ही और है। ताज़ी हवा, बदलता मौसम, तारों की छांव,चन्द्रमा की शीतलता जीवन में उमंग भर देती है । हर घर में एक स्वदेशी बाण की बुनी हुई (प्लास्टिक की नहीं ) चारपाई होनी चाहिए। आज सनातन के सामने विज्ञान भी नतमस्तक है...

जय सनातन धर्म, जय श्रीराम, जय गोविंदा ✨🙏💖🕉️

3.8.23

पाकिस्तान में अधिकार सम्पन्न महिलाएं

 "अधिकार संपन्न कलस जनजाति की महिलाएं...!"
पाकिस्तान में महिला अधिकारों को लेकर हम सब केवल इतना जानते हैं कि वहां महिलाओं को अधिकार नहीं है। परंतु हिंदूकुश पर्वत माला में निवास कर रही कलस जनजाति जिसकी जनसंख्या 2018 के मुताबिक केवल 4000 थी जो अब बढ़कर लगभग 6000 है। कलस जन जाति में महिलाओं की स्थिति पाकिस्तान के अन्य स्थानों की अपेक्षा बेहतर है। यह जनजाति अफगानिस्तान पाकिस्तान सीमा पर कैलाश वैली के नाम से प्रसिद्ध है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा राज्य के चितराल जिले बुमबुरेत,रूमबुर,बिरर, नामक स्थानों में 
कलस जनजाति निवास करती है।
अफगानिस्तान में नूरिस्तानी जनजाति भी इसी जनजाति की एक शाखा है।
कलस जनजाति महिला प्रधान जनजाति है जहां किसी की मृत्यु पर एक अजीबो गरीब रस्म भी अदा की जाती है। पाकिस्तान में इस जनजाति को काफिर माना जाता है।
इस जनजाति में मृत्यु के समय मृत्यु भोज के रूप में बकरियों की बलि देकर अधिक से अधिक दूरदराज के गांवों मैं रहने वाले लोगों को खिलाया जाता है। जनजाति के लोगों का मानना है कि वह किसी को भी हंसी खुशी के साथ विदा करने पर विश्वास रखते हैं।
लोगों का मानना है कि यह जनजाति सिकंदर के साथ ईरान से अखंड भारत में आई थी तो कुछ लोग यह मानते हैं कि डीएनए के हिसाब से वह हिंदुस्तान से पलायन करके पहाड़ियों पर निवास करने लगी है। इस जनजाति के तीन त्यौहार होते हैं एक त्योहार शीत ऋतु प्रारंभ होने के पहले मनाया जाता है जिसमें अपने आराध्य से यह आव्हान किया जाता है कि यह शीत ऋतु उन्हें सुख प्रदान करें। यह त्यौहार जोशी त्यौहार कहलाता है। दूसरा त्यौहार शीत ऋतु के उपरांत मनाया जाता है जिसे उचाव कहते हैं, यह शीत ऋतु के समाप्त होने के उपरांत मनाया जाता है और ईश्वर को इस त्यौहार के माध्यम से उत्सव मना कर धन्यवाद दिया जाता है और यह कहा जाता है कि आपने इस शीत ऋतु में हमें सुरक्षा दी हम आपके आभारी हैं। एक अन्य त्यौहार जिसे कैमोस कहते हैं यह 14 दिनों तक मनाया जाता है। यह त्यौहार युवाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। युवा लड़कियां अपना मनपसंद पति चुनती है और  उसके घर चली जाती है। उसके कुछ दिनों के बाद वर पक्ष की ओर से वधु के घर उपहार भेज कर विवाह की पुष्टि की जाती है।
  यह परंपरा हमारे देश के छत्तीसगढ़ की जनजातियों में प्रचलित घोटूल व्यवस्था की तरह ही है।
जन्म के समय प्रसूता को गांव के बाहर बने एक भवन में 14 से 15 दिन तक रखा जाता है। वहां पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है। रजस्वला लड़कियों एवं महिलाओं  को भी 3 से 4 दिन तक इसी भवन में रहना होता है।
  कलस जनजाति के परिवार ताजा फल सूखे मेवे तथा अनाज में गेहूं आधारित व्यंजन उपयोग में लाते हैं।
कलस जनजाति के परिवारों में औसत उम्र पाकिस्तान की आबादी की औसत उम्र से अधिक होती है।
इस संबंध में अपनी बात कहते हुए जनजाति की एक लड़की ने बताया कि हम प्रकृति से प्राप्त भोजन ग्रहण करते हैं तथा हमेशा प्रसन्न रहने की कोशिश करते हैं साथ ही हम किसी का अपमान नहीं करते इस कारण ही हम सुंदर और लंबी उम्र पाते हैं।
  कलस जनजाति अपने लिए कपड़े स्वयं बनाते हैं यहां महिलाओं की पोशाक बहुत सुंदर तरीके से डिजाइन की जाती है। कलस जनजाति की महिलाएं चितराल जिले के चितराल नगर बाजार से कपड़े  खरीद अपनी पोशाक तैयार करती हैं।
पाकिस्तान के लोग इन्हें अपवित्र मानते हैं क्योंकि यहां के लोग शराब का सेवन करते हैं तथा महिलाओं को अधिक अधिकार प्राप्त हुए हैं जो पाकिस्तानी संस्कृति के विरुद्ध है।कलस जनजाति के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस जनजाति में महिलाएं स्वच्छंद यौनाचार में संलिप्त है। इस तरह की अफवाह एवं असमानता को देखते हुए जनजाति के लोग पाकिस्तान से आने वाले सैलानियों से नाराज हैं।
पाकिस्तान में जनजाति विकास के लिए कोई सरकारी कार्यक्रम के बारे में अब तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई।
कलस जनजाति का धर्म- इनका धर्म भारतीय, हिंद-ईरानी धर्मों से मिलता जुलता है। कलस  एकेश्वरवाद को मानते हैं। पैगंबरवाद पर इनका विश्वास नहीं है।
    कुछ लोगों की मान्यता है कि इस जनजाति के लोग सिकंदर के सैनिकों के वंशज हैं तथा इनका धर्म यूनानी है। नवीनतम रिसर्च से ज्ञात होता है कि यह प्राचीन भारतीय ईरानी परिवारों से संबंध हैं।

पाकिस्तान जैसे राष्ट्र में इनकी संख्या कम होना स्वभाविक है इस जनजाति से धर्म परिवर्तन हुआ है। इस जनजाति के लोग धर्म परिवर्तन को गलत मानते हैं। संस्कृति बची हुई है उसमें संघर्षशील परिवारों का महत्वपूर्ण योगदान है यह चकित कर देने वाला तथ्य है।

27.7.23

मानवता के आइकॉन कलैक्टर टी अंबाजगेन : श्री महेन्द्र शुक्ला की फेसबुक पोस्ट

टी अंबाजगेन कलेक्टर साहब ,धन्य है वे माता-पिता  जिन्होंने इन्हे मानव सेवा के संस्कार दिए .!

80 साल की बूढ़ी माता घर में बिल्कुल अकेली। कई दिनों से भूखी। बीमार अवस्था में पड़ी हुई। खाना-पीना और ठीक से उठना-बैठना भी दूभर। हर पल भगवान से उठा लेने की फरियाद करती हुई .!

 खबर तमिलनाडु के करूर जिले के कलेक्टर टी अंबाजगेन के कानों में पहुंचती है। दरियादिल यह आइएएस अफसर पत्नि से खाना बनवाते है फिर टिफिन में लेकर निकल पड़ते है, वृद्धा के चिन्नमालनिकिकेन पट्टी स्थित झोपड़ी में .!

जिस बूढ़ी माता से पास-पड़ोस के लोग आंखें फेरे हुए थे, कुछ ही पल में उनकी झोपड़ी के सामने जिले के सबसे रसूखदार अफसर मेहमान के तौर पर खड़ा नजर आता है .!

 वृद्धा समझ नहीं पातीं क्या मामला है डीएम कहते हैं-माता जी आपके लिए घर से खाना लाया हूं, चलिए खाते हैं .!

वृद्धा के घर ठीक से बर्तन भी नहीं होते तो वह कहतीं हैं साहब हम तो केले के पत्ते पर ही खाते हैं। डीएम कहते हैं-अति उत्तम। आज मैं भी केले के पत्ते पर खाऊंगा .!

 किस्सा यही खत्म नहीं होता चलते-चलते डीएम वृद्धावस्था की पेंशन के कागजात सौंपते हैं। कहते हैं कि आपको बैंक तक आने की जरूरत नहीं होगी, घर पर ही पेंशन मिलेगी डीएम गाड़ी में बैठकर चले जाते हैं, आंखों में आंसू लिए वृद्धा आवाक रहकर देखती रह जातीं हैं .!

18.6.23

अफगानी तालिबान को बुद्ध याद आए ...!

 

 साभार गूगल फोटो 


मुल्ला उमर अब एक इतिहास बन कयामत के फैसले का इंतज़ार कर रहा है, उधर तालिबान कुछेक पुराने कामों पर पुनर्विचार कर रहा है. इस क्रम में 5वीं सदी में बने बामियान के बुद्ध इनको याद आ रहे हैं हैं. बामियान में दो बुद्ध मूर्तियाँ 2001 तक मोजूद थीं.   मूर्तियों में पहली बड़ी मूर्ती 55 फीट  जिसे सलसल कहा  गया तथा दूसरी मूर्ती समामा जो 37 फीट की  थी. इन पहाड़ियों  में अनेकों गुफाएं हैं जिनका उपयोग यात्री गण (व्यापारी एवं बौद्ध भिक्षुक तथा अन्य लोग ) आश्रय स्थल के रूप में करते थे.

इससे पहले कि हम इस विषय पर कुछ बात करें सबसे पहले बुद्ध का बामियान से सम्बन्ध कैसे बना इस इतिहास पर एक दृष्टि डालते हैं.

*बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं का  इतिहास*

माना जाता है कि सिल्क रोड जिसकी लम्बाई 65000 किलोमीटर है  का निर्माण 130 ईसा पूर्व किया गया था.  यह मार्ग चीन से भारत होते हुए अफगानस्तान, ईरान(बैक्ट्रिया जिसे बाख़्तर या तुषारिस्तानतुख़ारिस्तान और तुचारिस्तान भी कहा गया है  ) , तुर्की होते हुए यूरोप पहुंचता है. इस मार्ग का निर्माण किसने कराया इस की पुष्टि हेतु कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं हैं.

इस मार्ग ने अंतर महाद्वीपीय संबंध को स्थापित किया है. सिल्क रुट का चीनभारतमिस्रईरानअरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा। 

 इस मार्ग से व्यापार के अलावा,  ज्ञानधर्मसंस्कृतिभाषाएँविचारधाराएँभिक्षुतीर्थयात्रीसैनिकघूमन्तू जातियाँऔर बीमारियाँ भी फैलीं। व्यापारिक नज़रिए से चीन रेशमचाय और चीनी मिटटी के बर्तन भेजता थाभारत मसालेहाथीदांतकपड़ेकाली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोनाचांदीशीशे की वस्तुएँशराबकालीन और गहने आते थे। हालांकि 'रेशम मार्गके नाम से लगता है कि यह एक ही रास्ता था वास्तव में बहुत कम लोग इसके पूरे विस्तार पर यात्रा करते थे। अधिकतर व्यापारी इसके हिस्सों में एक शहर से दूसरे शहर सामान पहुँचाकर अन्य व्यापारियों को बेच देते थे और इस तरह सामान हाथ बदल-बदलकर हजारों मील दूर तक चला जाता था। शुरू में रेशम मार्ग पर व्यापारी अधिकतर भारतीय और बैक्ट्रियाई थेफिर सोग़दाई हुए और मध्यकाल में ईरानी और अरब ज़्यादा थे। रेशम मार्ग से समुदायों के मिश्रण भी पैदा हुएमसलन तारिम द्रोणी में बैक्ट्रियाईभारतीय और सोग़दाई लोगों के मिश्रण के सुराग मिले हैं।

इस रोड माध्यम से एशियाई अखंड भारत से सर्वाधिक व्यापार हुआ करता था। किंतु हिंदूकुश पहाड़ी के क्षेत्र में  जनजाति कबीलो द्वारा व्यापारियों के साथ लूटपाट की जाती थी। भारतीय एवं चीनी व्यापारियों ने इन लोगों को भी अपने व्यापार का साझीदार बनाया। बौद्ध मत  के प्रचार प्रसार से प्रभावित होकर हिंदूकुश पहाड़ी के क्षेत्र में लोगों ने बुद्ध की दो बड़ी प्रतिमाएं स्थापित कर दी इससे व्यवसायिक एवं सांस्कृतिक एकात्मता का सिलसिला भी प्रारंभ हो गया। कहते हैं कि कुषाणों ने बुद्ध की प्रतिमाओं को स्थापित कराया था ताकि भारतीय एवं चीनी व्यापारियों के साथ संबंध प्रगाढ़ हो सके ।      

 विश्व धरोहर को पुन: 2022   संरक्षित करने की पेशकश करने की इच्छा नए तालिबान ने की है, जबकि तालिबान का पुरोधा मुल्ला उमर इन मूर्तियों को खत्म करके बेहद प्रसन्न हुआ था.

*क्या वजह है इस पेशकश की ..!*

दरअसल इस क्षेत्र में स्थित मैंस अनसक इलाके में  में तांबे का भंडार है. नए तालिबान अपनी सत्ता चलाने तथा रियाया के लिए रोटी की व्यवस्था करने के लिए धन जुटाना चाहता है. चीन इस के लिए विनियोजन को तैयार है अत: धन कमाने के लिए चीन के सामने तालिबान ने यह पेशकश की है.   

*कैसा  है भारतीयों के प्रति तालिबानों का नजरिया एवं व्यवहार ..!*

इसमें को दो राय नहीं कि अफगानी अवाम एवं स्वयम तालिबान भारत के साथ अपनापन रखते हैं. वे भारतीयों से जिस गर्मजोशी एवं आत्मीयता से मिलते हैं उतनी गर्म जोशी उनके दिल में पाकिस्तानियों के लिए नहीं हैं. हाल में यू ट्यूब पर कुछ भारतीय व्लागर्स के वीडियो देख कर तो यही लगा.

*कुल मिला कर श्री नरेन्द्र मोदी का रूस के राष्ट्रपति पुतिन को दी गई सलाह है जिसमें वे कहते हैं कि – “आज का दौर युद्धों के लिए नहीं है.*  

     


5.6.23

बालासोर रेल हादसा: दुर्घटना या साजिश ?


आलेख : गिरीश बिल्लोरे 
  बालासोर रेल हादसे के बाद चर्चा यह है कि यह हादसा दुर्घटना है अथवा यह किसी साजिश का परिणाम है । लगातार चलने वाले चैनलस, अपना अपना कैलकुलेशन अपने-अपने एंगल से आपके सामने रख रहे हैं । अखबार अपनी अपनी बात अपने अपने तरीके से कह रहे हैं।
    सबको अपनी अपनी बात कहने का हक है परंतु सबको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की विषम परिस्थिति में किसी भी तरह का पैनिक जनता के बीच में न फैले।
   इस संबंध में रेलवे  के सुरक्षा आयुक्त द्वारा अपने हिस्से का कार्य पूर्ण किया जा चुका है अथवा नियमानुसार पूर्ण होगा भी ऐसा सबको भरोसा है। परंतु रेलवे बोर्ड की सलाह पर जांच सीबीआई को करने के लिए सौंपा जाना किस बात की संभावना की ओर संकेत है कि-" इस घटना में कोई न कोई संदिग्ध परिस्थिति अवश्य ही उत्पन्न हुई है या आंतरिक सुरक्षा में कोई सेंधमारी की  संभावना व्यक्त की गई है , मीडिया समाचारों की माने तो आगे रेलवे बोर्ड इस घटना की जांच सीबीआई से कराने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा है । 
  इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि-" मौजूदा टेक्निकल फैलयुर तकनीकी असफलता / किसी न किसी टेंपरिंग या बाहरी हस्तक्षेप से होना संभव माना जा रहा है।" 
  और अगर ऐसा हुआ तो ऐसी घटना विश्व की सबसे व्यवस्थित एवं बड़ी रेल संचालन प्रणाली के लिए खतरे की घंटी है। अर्थात भारतीय रेल परिचालन प्रणाली में आतंकवादी गतिविधियों का प्रवेश संभव है। यह तो भविष्य में स्पष्ट होगा परंतु 8 फरवरी 2023 को मैसूर डिविजन में एक गाड़ी 12649 के कुलीज़न की  ऐसी ही घटना पर समय रहते नियंत्रण करने की जानकारी प्राप्त हुई है। 
यहां बालासोर पहुंचने वाली ट्रेन अपने को छोड़कर लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी वाली ट्रैक पर चली जाती है। जिससे उसके डब्बे एक अन्य मेन लाइन तक बिखर जाते हैं। जिससे कोलकाता जाने वाली एक ट्रेन को गुजारना था। और हुआ वही
बेंगलुरु कोलकाता सुपरफास्ट एक्सप्रेस उस ट्रक से गुजरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गई तथा दुर्घटनाग्रस्त बोगियों में सवार पैसेंजर्स को और अधिक नुकसान पहुंचा।
मालगाड़ी से टकराने वाली पैसेंजर ट्रेन किन कारणों से अपना ट्रैक बदलती है  इस पर अपना मत व्यक्त करते हुए रेल विभाग के एक इंजीनियर सुधांशु मणि बताते हैं कि-
[  ] रेलगाड़ी केवल रेल लाइन की सेटिंग के अनुसार चलती है। ड्राइवर यानी लोको पायलट अपने मन से किसी भी ट्रैक पर गाड़ी को नहीं ले जा सकते।
[  ] यह अवश्य है कि आसन्न खतरे को देखकर रेल ड्राइवर अर्थात लोको पायलट गाड़ी की गति को कम या स्थिर अवश्य कर सकते हैं।
[  ] इस दुर्घटना का प्रारंभिक कारण ट्रेन का मालगाड़ी वाले ट्रैकिंग प्रवेश कर जाना रहा है। वास्तव में ट्रेन लूप लाइन में रेल की पटरी के सेट हो जाने के कारण चली गई। अर्थात पटरी की सेटिंग में किसी भी तरह की मानवीय अथवा यांत्रिकीय त्रुटि के कारण अथवा जानबूझकर किए गए प्रयास से दुर्घटना हुई।
[  ] यह सच है कि-" लूप लाइन में ट्रेन को ले जाने के लिए ड्राइवर को सिग्नल नहीं था। परंतु दुर्घटना के फुटेज देखने से लगता है कि-" ड्राइवर अपनी गाड़ी को रोक पाने में असफल रहे ।
[  ] परंतु अभी तक यह तथ्य सामने नहीं आया है कि-" इनकी गति कितनी थी?" स्टेशनों पर न रुकने वाली ट्रेन की गति के संबंध में विमर्श आवश्यक है।लोको पायलट को भी इसी आधार पर क्लीन चिट नहीं दी जा सकती 
  आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2021 तक भारत में पटरी को छोड़ने के मामले 1127 रिपोर्ट हुए हैं। भारतीय रेल परिचालन व्यवस्था को दुर्घटना रहित बनाने के लिए कवच नामक एक कार्यक्रम को भारतीय रेल बजट में स्थान दिया गया है . यह कार्यक्रम रिसर्च एवं डेवलपमेंट के साथ-साथ उन सभी प्रयासों को लागू करेगा जिससे कुलिजन यानी आमने-सामने की भिड़ंत अथवा अन्य दुर्घटनाओं को रोका जा सके। इस कार्यक्रम में तेजी लाना आवश्यक है।
   अंततः भारत सरकार एवं भारतीय रेल विभाग को सुरक्षा के लिए r&d Research And Development तथा टेक्निकल सपोर्ट देने वाले ऐसे संस्थान की आवश्यकता पर कार्य करना चाहिए जो रेल दुर्घटनाओं को रोक सके। वैज्ञानिकों शोधकर्ताओं को भी इस दिशा में निरंतर काम करने की तथा सरकार को मदद करने की जरूरत है।

   
  

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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