14.4.14

सक्षम चिरंजीवी भव:

इन दिनों हमारे नेता सक्षम जी खूब मज़े ले रहे हैं सियासत के भी सियासियों के भी पेशे से तो सक्षम जी मस्ती के थोक व्यापारी हैं.. पए इनका बिज़नस  अन्य से अलहदा है.कल की ही बात है... माइक मिला तो बस लगे हाथ में लेके कुछ कुछ बोलने .. मानो बोल रहे हों -" प्यार कैसे किया जा सकता है इस अंटी से पूछो ...!" बेचारे सक्षम जी क्या जाने ये क्या सभी ऐसेइच्च तो करतीं हैं.. हम सारे पति टाइप के लोगों की औक़ात इससे ज़्यादा कहां..? बताओ भला .. आप पार्टी के बाद ऐसा असर हुआ कि झाड़ू इकदम स्टार बन गई.. आव देखा देखा न ताव वो तो एक दिन हम पे ही तन गई. 
  फ़िर एकाएक चुप हो गये वे टी.वी. देख देख के जान चुके हैं कि - हिंदुस्तान में सारे फ़साद की जड़ में माइक का बड़ा भारी योगदान है.. ! अस्तु सक्षम जी माइक को कच्चा चबा जाने के गुंताड़े में लग गये एन वक़्त पे सामाजिक संस्था के कर्ताधर्ता ने सक्षम जी को समझाया-"न बेटे ऐसा नहीं करते लो सौंफ़ खाओ.. !!"

         सौंफ़ के शौकीन भाई सक्षम ने सौंफ़ मुट्ठी भरी और मुंह में दस पच्चीस दाने मुंह में गये होंगे बाक़ी केज़री कक्का वाली दिल्ली सरकार सरीखे बिखर गए ज़मीन पर . और कोई होता तो ज़मीन से उठा के खाने लगता पर अपने सक्षम जी सरकार ओह सारी सौंफ़ का एक भी दाना ज़मीन से उठाया नहीं फ़िर डब्बे में हाथ घुसेड़ा और एक मुट्ठी फ़िर .. फ़िर वही हुआ तब तक किसी ने उनको ढोलक दिखा दी.. भाई ने पास पड़े काडलैस माइक से बज़ाने का असफ़ल प्रयास किया किसी ने टोका-"बेटे, हाथ से बजाओ.."
            ढोलक बजी पर उत्ती तेज़ नहीं.. बच्चे का हाथ बच्चे का ही होता है.. आप रोजिन्ना अखबारों समाचारों में देख ही रहे हैं .. राहुल बाबा के हाल.. ढुलकिया बज़ा ही नईं पा रए .. बताओ.. भला बच्चों से ढोलक बजी है कभी. 
  अर्र ये क्या कहानी बताते बताते हम राहुल बाबा तक आ गए .. माफ़ करना भाई ग़लती से गलती हो गई.. कोई सियासी लेख थोड़े न लिख रहे हैं हम पर आज़ कल उपमाओं  की तलाश में हमने खबरिया उर्फ़ ज़बरिया चैनल’स पर खबरों की बौछार की वज़ह से मिली निकटतम उपमाओं का स्तेमाल कर लिया माफ़ करना सुधि पाठको.. 
हां तो हम कह रए थे कि-" अर्र, भूल गये क्या कह रए थे.. ?".. हां याद आया सक्षम जी ने ढोलक बजाई.. फ़िर क्या हुआ... किस्सा गो... अरे भाई फ़िर क्या कुछ नहीं हम सब वापस आ गए ... अपने अपने घर मस्तीखोरी के होलसेल डीलर सक्षम से मिल के .. अभी तक उसकी शैतानियां याद आ रहीं हैं.. सक्षम मेरे भांजे अमित जोशी का बेटा है.. चिरंजीवी भव:  

12.4.14

महिला वोटर्स में 12.21% की बढ़त जबकि मात्र 7.31% पुरुष वोटर्स बढ़े

भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था अब एक रोचक नुक्कड़ तक जा पहुंची है.. जहां से एक रास्ता जाता दिखाई देता है प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्था के शिखर पर पहुंचने का तो दूसरा आत्मविश्वास से लबालब जनतंत्र के मुख्य बिंदू यानी "वोटर" की "आत्मविश्वासी-पहल" तक जाने का. दौनों ही रास्ते पाज़िटिविटी से लबालब हैं ... ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि अब मतदाता आत्मशक्ति से भरा पूरा नज़र आ रहा है.
         वोट अब कीमती इस लिये भी है कि वोटर ने उसकी ताक़त को पहचान लिया. इस पहचान से परिचित कराने का श्रेय भारत के शक्तिवान निर्वाचन आयोग को देना भी गलत फ़ैसला नहीं है. मध्य-प्रदेश के आंकड़ों को देखिये पिछले लोकसभा चुनाव के सापेक्ष 09.71% वोटों का इज़ाफ़ा हुआ . और महिलाओं ने अपना पोलिंग परसेंट बढ़ाकर 12.21% जबकि पुरुष वोटर्स मात्र 7.31%  की वृद्धि दर्ज कर पाए. 
प्रथम चरण में ग्रीन ज़ोन में जिन ज़िलों को रखा जाता है वो बेशक सराहना के पात्र हैं
छिन्दवाड़ा
81.08
76.89
79.05
होशंगाबाद
71.11
59.65
65.76
मण्डला
69.21
64.08
66.68
बालाघाट
69.14
67.04
68.1

शहडोल, सतना और जबलपुर, जिलों को पीले ज़ोन में रखा जा सकता है... 
शहडोल
65.6
58.57
62.2
सतना
64.82
60.28
62.68
जबलपुर
62.2
54.48
58.53

सबसे पीछे रहने वाले ज़िलों में रीवा, सीधी जिले रहे जिनको लाल क्षेत्र में वर्गीकृत किया है
रीवा
55.84
51.58
53.84
सीधी
59.72
53.67
56.86

जिन जिलों में महिलाओं ने पोलिंग में कम हिस्सेदारी दिखाई उनका वोटिंग प्रतिशत भी कम ही रहा. 

क्यों बढ़ा मतदान का प्रतिशत ?

           वोटिंग के बाद अचानक सभी आश्चर्य चकित हैं कि क्या हुआ कि अचानक मतदान के प्रतिशत में एकाएक वृद्धि हो गई. बात दरअसल ये थी कि निर्वाचन आयोग का लक्ष्य था कि कम से कम दस फ़ीसदी इज़ाफ़ा हो. इस लक्ष्य को लेकर 

नीरो नै पीरो न लाल रंग ले अपनई रंग में ..!!


नीरो नै पीरो न लाल
रंग ले अपनई रंग में ..!!
*********
प्रीत भरी पिचकारी नैनन सें मारी
मन भओ गुलाबी, सूखी रही सारी.
हो गए गुलाबी से गाल
रंग ले अपनई रंग में ..!!
*********

कपड़न खौं रंग हौ तो रंग   छूट  जाहै

तन को रंग पानी से तुरतई मिट जाहै
सखियां फ़िर करहैं सवाल-
रंग ले अपनई रंग में..!!
*********




प्रीत की नरबदा मैं लोरत हूं तरपत हूं
तोरे काजे खुद  सै
रोजिन्ना  झगरत हूं
मैंक दे नरबदा में जाल –
रंग ले अपनई रंग में..!!
********


10.4.14

तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ?


तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ?
गुमसुम क्यों हो  कारण क्या है ?
जलते देख रहे हो तुम भी प्रश्न व्यवस्था के परवत पर
क्यों कर तापस वेश बना के, जा बैठै बरगद के तट पर  
हां मंथन का अवसर है ये  स्थिर क्यों हो कारण क्या है
अस्ताचल ने भोर प्रसूती उदयाचल में उभरी शाम
निशाआचरी संस्कृति में नित उदघोष वयंरक्षाम
रावण युग से ये युग आगे रक्ष पितामह रावण क्या है
एक दिवंगत सा चिंतन ले, चेहरों पे ले बेबस भाव
व्यवसायिक कृत्रिम मुस्कानें , मानस पे है गहन दबाव
समझौतों के तानेबाने क्यों बुनते हो कारण क्या है ?
भीड़ तुम्हारा धरम बताओ, क्या है क्या गिरगिट जैसा है
किस किताब से निकला है ये- धर्म तुम्हारा किस जैसा है ,
हिंसा बो  विद्वेष उगाते फ़िरते हो क्यों, कारण क्या है ?

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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