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रविवार, मार्च 20, 2016

हरे मंडप की तपन


साभार : इंडिया फोरम से 
( एक विधुर पंडित विवाह संस्कार कराने के लिए अधिकृत है ... पर एक विधवा माँ  अपने बेटे या बेटी के विवाह संस्कार में मंडप की परिधि से बाहर क्यों रखी जाती है. उसे वैवाहिक सांस्कृतिक रस्मों से दूर रखना कितना पाशविक एवं निर्मम होता है इसका अंदाजा लगाएं ..... ऐसी व्यवस्था को अस्वीकृत करें . विधवा नारी के लिए अनावश्यक सीमा रेखा खींच कर विषमताओं को प्रश्रय देना सर्वथा अनुचित है आप क्या सोचते हैं....... ? विषमता को चोट कीजिये  )
 वैभव की  देह देहरी पे लाकर रखी गई फिर उठाकर ले गए आमतौर पर ऐसा ही तो होता है. चौखट के भीतर सामाजिक नियंत्रण रेखा के बीच एक नारी रह जाती है . जो अबला बेचारी विधवा, जिसके अधिकार तय हो जाते. उसे कैसे अपने आचरण से कौटोम्बिक  यश को बरकरार रखना हैं सब कुछ ठूंस ठूंस के सिखाया जाता है . चार लोगों का भय दिखाकर .
चेतना  दर्द और स्तब्धता के सैलाब से अपेक्षाकृत कम समय में उबर गई . भूलना बायोलाजिकल प्रक्रिया है . न भूलना एक बीमारी कही जा सकती है . चेतना पच्चीस बरस पहले की नारी अब एक परिपक्व प्रौढावस्था को जी रही है . खुद के जॉब के साथ साथ  संयम को संयुक्ता को पढ़ाना लिखाना उसके लिए प्रारम्भ में  ज़रा कठिन था . कहते हैं न  संघर्ष से आत्मविश्वास की सृजन होता है . वही कुछ हुआ चेतना में . एक सुदृढ़ नारी बन पडी थी . चेतना ने  आत्मबल बढाने के हर प्रयोग किये किस दबंगियत से लम्पट जीवों से मुकाबला करना है बेहतर तरीके से सीख चुकी थी .
बच्चों का इंतज़ार करते करते बालकनी में बैठी  आकाश पर निहारती चेतना ने एक पल अपने फ्लेट को निहारा फिर सोचने लगी 15 साल तक ब्याज और किश्तें चुका कर अपना हुआ फ़्लैट एक संघर्ष की कहानी है वैभव के साथ खुद की कमाई के आशियाने की कसम खाई थी पर वैभव के जाने के बाद कसम को पूरा करना कितना मुश्किल सा था. किराए के मकान में रहना उसे अक्सर भारी पड़ता था . इस फ़्लैट का डाउनपेमेंट के इंतज़ाम की गरज से   भावुकता और विश्वास के साथ  भाई के घर गई थी भाई ने कहा – चेतना देखो दस-बीस हज़ार उधार दिला सकता हूँ पर एक लाख मेरे लिए मुश्किल है . बहन बुरा मत मानना मेरी भी ज़िम्मेदारियाँ हैं  भाई की बात सुन कर चेतना को याद आ रहा था पिता जी के नि:धन पर वैभव के साथ वो  पहुंची थी तीसरे ही दिन  अस्थि संचय के बाद भैया ने बड़े शातिराना तरीके से मकान जमीन के लिए किसी पेपर पर दस्तखत कराए थे तब भैया ने कहा था – “बहन , तेरा भाई हर पल तेरे लिए बाबूजी की तरह मुस्तैद है .” सभी जानते हैं बाबूजी के श्राद्ध को फिजूल खर्ची बताकर  लेशमात्र खर्च न किया. पारिवारिक अर्थशास्त्र तो दस्तखत वाले दिन ही समझ चुकी थी . परन्तु वादा-खिलाफी का परीक्षण  भी हो गया . खैर युक्तियों से मुक्तिमार्ग खोजती चेतना ने वैभव के साथ ली कसम को पूरा किया.
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संयुक्ता के जॉब में आने के बाद संयुक्ता की पसंद के लडके से शादी की रस्म पूरी होनी है . दो दिन बाद बरात आएगी आज खल-माटी की रस्म है . भाभी ने कहा- बहन आप न जा पाओगी ...... मंगल कार्य में सधवा जातीं हैं . ..!
चेतना :- और, बाक़ी रस्मों को कौन कराएगा ?
भाभी  :- मैं हूँ न , आप चिंता मत करो,
चेतना :- पर क्यूं..?
भाभी  :-  सामाजिक रीत के मुताबिक़ विधवाएं हरे मंडप में भी नहीं आतीं थीं वो तो अब बदलाव का दौर है .
चेतना की आत्मा चीखने को बेताब थी पर बेटी की माँ वो भी वैभव सदेह साथ नहीं . जाने क्या सोच चुप रही.   
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चेतना :- भैया पंडित का इंतज़ाम हो गया है न
भाई   :-  हाँ, बिहारी लाल जी के पुत्र हैं ...  बताया था न कि अभिमन्यु शुकुल की पत्नी नहीं रहीं ......
चेतना :- अच्छा, तो ये विधुर हैं ..
भाई   :- हाँ, बहन, बहुत बुरा हुआ इनके साथ                                              
चेतना ( भाभी की तरफ देखकर ) :- विधवा को हरे मंडप में जाने का अधिकार नहीं और पंडित विधुर चलेगा क्यों भाभी ....... ?
                 सम्पूर्ण वातावरण में एक सन्नाटा पसर गया . भाई-भावज अवाक चेतना को निहारते चुपचाप अपराधी से नज़र आ रहे थे. और अचानक एक ताज़ा हवा बालकनी में लगे हरे मंडप की तपन को दूर करती हुई कमरे में आती है  
फिर क्या था ........ हर रस्म में चेतना थी हर चेतना में उत्सवी रस्में .. ये अलग बात है कि चेतना अपनी आँखें भीगते ही पौंछ लेती इसके पहले कि कोई देखे.  

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” girishbillore@gmail.com   

शनिवार, मार्च 19, 2016

चिंतन की बीमारी

                                                         सैपुरा (शहपुरा-भिटौनी) में मन्नू सिंग मास्साब की हैड मास्टरी  वाले बालक प्राथमिक स्कूल में एडमीशन लिया था तबई से हम चिंतनशील जीव हूं. रेल्वे स्टेशन से तांगे से थाने के पीछे वाले स्कूल में टाट पट्टी पर बैठ पढ़ना लिखना सीखते सीखते हम चिंतन करना सीख गए. पहली दूसरी क्लास से ही  हमारे दिमाग में चिंतन-कीट ने प्रवेश कर लिया था.  चिंतनशील होने की मुख्य वज़ह हम आगे बताएंगे पहले एक किस्सा सुन लीजिये        
 चिंतन की बीमारी ज्यों ही हमको लगी हम  चिंतनशील होने के कारण हम एक एक  घटना पर चिंतनरत हो जाया करते  थे .  पाकिस्तान से युद्ध का समय था पड़ौसी कल्याण सिंह मामाजी ने मामी को डाटा - ब्लेक आउट आडर है तू है कि लालटेन तेज़ जला रई है गंवार .. बस उसी सोच में थे कि कमरे के भीतर जल रहे लालटेन और ब्लेकआऊट का क्या रिश्ता हो सकता है.. कि मामा जी ने मामी की भद्रा उतार दी . मामाजी इतने गुस्से में थे कि वो मामी की शिकायत लेकर मां के पास आए और बोले- इस गंवार को बताओ दीदी, इंद्रा गांधी बोल रईं थी कि जनता मुश्किल समय में हमारा साथ दे और ये है कि.. मां हंस पड़ी उल्टे कल्याण मामा की क्लास लेली - पागल तुम हो पाकिस्तान का घुसपैठिया विमान एक तो शहपुरा-भिटौनी तक आ नहीं सकता. दूसरे आ भी गया तो उसे कल्याण तेरे घर के लालटेन की लाइट कैसे दिखेगी बता रेल्वे क्वार्टर में पक्की छत है कि नईं चल जा भाभी को अब ऐसे न झिझकारना. दिमाग में सवाल उठ रहे थे कि पाक़िस्तान का जहाज़ लालटेन ब्लैक आऊट जे सब क्या है.. चलो आज़ मास्साब से पूछूंगा . कि यकायक एक आवाज़ ठीक सर के ऊपर से हमारी खोपड़ी में जा टकराई - गिरीशकै छक्के चौअन....?    
मेरा ज़वाब था - छै: नारे चऊअन...!!
                            रजक मास्साब- तुमसे  हम पूछ कछु रए तुम बता कछु रए..सो रए  हो का .  सटाक एक चपत गाल पै आंखन में आंसू मन में उदासी लए  हम चिंतन शील हो गए .
                  सही उत्तर र देने के बावज़ूद मिले चापतोपहार  से हम क्रुद्ध न होकर चिंतन करने लगे थे . निष्कर्ष में हमने पाया  ये मास्साब लोग वो जीवात्मा धारण करते हैं जो  चपतियाने का मौका न  तज़ने की प्रेरणा देती है .
                    एक तो रामचरन भैया  तांगेवाले बड़े प्यार से अपने एन अपने बगल में बिठाते थे जो घोड़े के दक्षिणावर्त्य के एकदम समक्ष का हिस्सा उस पर घोड़े को वायु-विकार की बीमारी थी . हमसे पीछे बैठने वालों तक घोड़े के दक्षिणावर्त्य से निकसी हर हास्यस्पद ध्वनियां सहज सुनाई देती थी उस पर रामचरन बच्चों को नेक सलाह देते थे.... घोड़ा पादे तो हंसियो मति.. बाक़ी बच्चे चिल्लाते थे .. नईं तो भैया .. दाद हो जाएगी न... फ़िर तांगे में बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती . अपुन का हाल तब बुरा हो जाता था.. प्रदूषण की वज़ह से .  न तो हंस पाते न रो पाते न गुस्सा कर पाते ..ये सब घटनाएं दिमाग पर असर करतीं थीं . जमादारिन के बच्चे को न छूने की हिदायतें.. ?
मामी को हमेशा डांट मिलना, पुरुष रेल कर्मियों का दारू पीकर जलवा बिखेरना.. ये सब अजीब लगता था 
    औरतें तब भी रोतीं थीं.. आज भी रोटी हैं .  बच्चे आज भी पन्नी बीनते हैं. ट्रेन में पौंछा मारते हैं चाय पिलाते हैं... गाली भी खाते हैं.. बताओ भाई.. किसी विदेशी को "गली का करोड़पति कुत्ता" बनाने का आमंत्रण देती इस व्यवस्था के बारे में कितना चिंतन करतें हैं हम आप शायद बहुत कम .. इस आलेख के साथ लगी फ़ोटो में एक बच्चे को हमने ए.सी. कोच में पौंछा लगाते देखा. हम विचलित थे.. आज़ ये तस्वीर पुराने फ़ोल्डर में नज़र आई सोशल साईट पर भी दे डाली.. एक महाशय का कमेंट मिला "यही धंधा है इनका...
सहानुभूति के लिए अथवा चंद लाइक पाने के लिए फोटो भले ही लगा   दीजिये.  ऐसे हजारों बच्चे, जवान, बूढ़े और विकलांग हैं जिनके लिए भारतीय रेल जीवन रेखा है और ये वहीँ से कमाते हैं...
भाई साहब बड़े जोश से आगे लिखते हैं - मैं जब रेवाड़ी से दिल्ली अप-डाउन करता था तब कम से कम दस ऐसे भिखारी जैसी शक्लों को जानता था जो ऐसे ही दरिद्र बनकर शाम को पांच-सात सौ कमाकर जाते हैं..."
             हम लोग इतने नैगेटिव हो गए हैं कि सिर्फ़ विरोध करते हैं . सरकारें समाज विचारक दाएं बाएँ वाले लोग इनके बारे में क्या सोच रहे हैं मुझे लगता है कुछ भी नहीं .
                  ये  केवल विरोध कर किनारा करते हैं . इनको  आत्म चिंतन की बीमारी कभी न हुई ऐसा लगता है .. वरना इनकी सोच  शून्य न होती . कुंठा के बिरवें रोंपना कहां तक ठीक है.. अगर  आप को मेरा विचार पसंद नहीं तो मेरी सोच और सकारात्मक सोच बदल दूंगा न कदापि नहीं ..
                           लोग जिसे धंधा कह कर छुटकारा पाना चाहते हैं वे क्या खाक भारतीय होंगे..!! अगर सच्चे भारतीय हो तो पौंछा लगाने वाले बच्चों के लिए कोई सक्रीय क्यों नहीं होता . बच्चों को स्कूल जाने दो न जा सकें तो छोड़ आओ स्कूल . कठोर क़ानून बनाओ ....... ट्रेन में बच्चे काम करते नज़र न आएं भीख मत दो .. एक बार मिलकर कुछ ऐसा करो कि व्यवस्था कम से कम  बच्चों के लिए संवेदित हो जाए.

कल श्री श्री रविशंकर जी के कल्चरल उत्सव में युगपुरुष भी पहुँचे थे... युगपुरुष के भासड़ के मुख्य अंश ये हैं-
1-दो बार पूरी दमदारी से पूरी दुनिया को बताया कि मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री हूँ।
2-'अगर गुरु जी इनिशिएटिव लें तो' हम यमुना को साफ़ करेंगे (इनिशिएटिव माने पैसा और मेहनत)
3-मैं बहुत स्वार्थी आदमी हूँ (ब्रेकिंग न्यूज़)
4-गुरु जी के वॉलेंटियर्स बहुत अच्छे हैं, मैं उनसे माँगता हूँ कि अपने वॉलेंटियर्स हमें दे दें(पंजाब में चुनाव लड़ना है जी)
5-इतिहास में पहली बार युगपुरुष ने बिना ऊँगली उठाए अपना भासड़ समाप्त किया(हालाँकि बहुत कंट्रोल करना पड़ा फिर भी केंद्र सरकार का नाम ले ही लिया )

शुक्रवार, मार्च 18, 2016

अश्वत्थामा हत: - गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

                           
साभार : listcrux.com  से 
 सोशल  मीडिया  पर  हो रही बातें  त्वरित  होतीं  हैं . जो त्वरित है वो अधपका हुआ करता है .  अधपका भोजन और अधकचरी बात नुकसान देह होती हैं . अश्वत्थामा हतो हत: ………त्वरित  अभिव्यक्ति  में गर्माहट  हो  सकती  है चिंतन नहीं ..... !
 किसी  को  नीचा  दिखाना  अपमानित  करने वालों को  यदि   खुद  पर  कोई  टिप्पणी मिले  तो  "असहिष्णुता" का आरोप ....... लगाना आज का शगल है . लोग अपने झुण्ड और झंडे को लेकर अति संवेदित और भावुक हैं .  मेरा  मानना है कि ..... जब  सात  रंग  एक  साथ  मिलकर  पारदर्शी  हो जाते  हैं  तो  कई  विचारधाराएं  सर्वहारा  के  लिए ! आम  आदमी  के  लिए ! उपयोगी  क्यों नहीं हो सकती .भाई  ये देश देखना एक दिन  लांछन गाली-गुफ्तार को  दर  किनार  कर    आगे  बढेगा ......   मुंह चला  कर  देश  का अपमान  कराने  वाले  झाड़ियों  में  लुकाछिप  जाएंगे झाड़ी के पीछे स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाते .. बदबू फैलाते नज़र आएँगे. मुझे यकीन है  हिन्दुस्तान  आगे  आएगा सियासत और समाज  के ढाँचे  में मौलिक  बदलाव  के  साथ……  
पता है न सबको जब नस्लें  जाग जाती हैं  तो  भारत  के  भाग्य में सकारात्मक  बदलाव आता है ........रावण का साम्राज्य, कंस का वैभव नन्द का अंत और अंग्रेजों का वापस जाना पुष्टिकारक घटनाएं हैं .
आज की  चिंता तो बस इतनी  है कि लोग  संसद जैसी जगह की पवित्रता बनाए रखें . देश किसी लपलपाती  जीभ से नहीं मेहनती हाथों से संवारा जाता है . न हिन्दू महान न मुस्लिम ......... सबसे महान देश  है . अगर बाबा रामदेव ने दवाएं बेचनी शुरू कीं तो माथे में दर्द ...... अगर श्री श्री ने सांस्कृतिक आयोजन किया तो पेट में दर्द ...... अगर मोदी न बोले तो सीने में दर्द अगर बोले तो कमर में दर्द ........ भाई आपके दर्द का इलाज़ करने हम भारतीयों  के पास न तो समय है न दवा . कुछ दिन नींद की गोली लेके सोने की सलाह दे रहा हूँ . बुरा न मानें एक स्लीपिंग पिल्स का पत्ता डाक्टर की सलाह पर मांगा लीजिये .
किसी को धर्म तो किसी को सम्प्रदाय की चिंता है तो कोई काफी हाउस में बैठा मौजूदा हालात पे गरज़ता नज़र आ रहा है . लोग दिमाग में ज़हर  लिए घूम रहे हैं भीड़ देखी नहीं कि बस छिड़क देते हैं ज़हरीले  विचार . हर बार छिपे और इस बार उजागर हुई जे एन यू घटना के बाद तो के लोग अजीब सदमें में हैं . बहुत कुछ एक्सपोज़ हुआ है .
देख रहा हूँ कोई  बाबा भीमराव जी पर अपना हक़ जमाए है तो कोई गांधी जी पर तो कोई किसी रंग पर तो कोई किसी ढंग पर अरे भाई ....... भारत किसी की निजी मिलकियत नहीं
न ही किसी की पुस्तैनी जागीर ......... ये अमन पसंद लोगों का देश है . शाम घर लौटो तो टीवी पे चिकल्लस , अखबार उठाओ तो विवादित बोल .........   यानी कुल मिला कर असहज वातावरण .

सोशलएप का  एक ग्रुप है सामाजिक जो बासे लतीफे उल-ज़लूल वीडियो भेजता है तो दूसरे पे   घटिया सियासी बकवास मानो अक्ल का अजीर्ण सा हो गया . ये जानते हुए  कि मनु-स्मृति के आधार पर भारतीय संविधान नहीं लिखा गया उस किताब की प्रति जला कर जाने क्या साबित कर रहे हैं लोग . जहां तक मैं जान पाया हूँ कि  कुछ लोगों का उद्देश्य होता है कि जनमन को प्रोवोग किया जावे भारत में अस्थिरता का माहौल बनाया जावे . तेज़ी से बढ़ती टेक्नोलोजी का भरपूर दुरुपयोग जारी है . चारों ओर से   “अश्वत्थामा  हत:.. अश्वत्थामा  हत: ” का शोर सुनाई दे रहा है ...... सृजनात्मकता मिलेगी आपको लापतागंज में .. जो आपके अंतस में गुमशुदा है ...... रोज़िन्ना शाम खोलिए मत टीवी , बंद कर दीजिये वाट्सएप , फेसबुक ट्वीटर, बस एक घंटे के लिए आँख बंद कर अपने बच्चों को निहारिये दिन भर अभावों से जूझते लोगों के बारे में सोचिये आपकी “विराट-सत्य” से भेंट हो जाएगी .        

सोमवार, मार्च 14, 2016

चिरंजीव कन्हैया ........

चिरंजीव कन्हैया .....                             “समझदार बनो भारत को पढो ”
भारत के सामाजिक सांस्कृतिक मुद्दों को सदा ही जाति धर्म के चश्में से राजनैतिक फायदे के लिए देख कर सम्वाद करना  तुम्हारा शगल ही है. भारतीय सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन के लिए किसी सियासी हस्तेक्षेप की कतई ज़रुरत नहीं है . समाज खुद को जिस सहजता से परिवर्तित करता है उसमें बाह्यबल की ज़रा सी भी ज़रुरत नहीं है . भारतीय व्यवस्था ने स्मृतियों खासकर मनुस्मृति में प्रावाधित व्यवस्था को अंगीकृत कदापि नहीं किया न ही उसे स्वीकारने की कोई ललक नज़र आ रही है . जो स्वीकृत ही नहीं है उस पर अनर्गल प्रलाप अपने सियासी नफे के लिए करना एक दुखद बिंदु है .
सियासी हस्तक्षेप शीर्षक से
                     राष्ट्रीय जागरण में इस आलेख
                      का  प्रकाशन 18 मार्च 2016
                      अंक में किया ।  प्रकाशित आलेख
                      इसी ब्लॉग पोस्ट का  हिस्सा है
   
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन तेज़ी से आ रहे हैं . न केवल बदलाव आ रहे हैं वरन उसे सामाजिक सम्मति भी प्राप्त होती नज़र आ रही है. विजातीय-विवाह को ही लीजिये अब घरों में आने वाले हर दूसरे-तीसरे आमंत्रण पत्र में आप देखेंगे कि जाती-धर्म-सम्प्रदाय के मसाले गायब हैं . न ही माँ-बाप इस बात से डरते कि हमें जात से बाहर कर दिया जावेगा . अब सबको मालूम है कि विवाह एक व्यक्तिगत मसला है . अगर कोई लड़का या लड़की अन्य जाती या धर्म के लडके या लड़की से विवाह करते हैं तो ये उनका निजी मुद्दा है . परिवार भी  किसी प्रकार से उसमें अनाधिकृत बाधा नहीं डालता . बल्कि सामाजिक सहमति के लिए प्रयास करता है . समाज भी ऐसे विवाहों को सहज सहमति दे देता है . कुछ अपवादों को छोड़ना ही होगा जैसे खाप पंचायतें .
आर्यसमाज के बाद युग निर्माण योजना के रास्ते जातिगत भेदभाव से मुक्ति के लिए भारतीय सामाजिक चिंतन में परिवर्तन का सूत्रपात आचार्य श्रीराम शर्मा ने किया . उनका विरोध अवश्य हुआ पर बदलाव सबने देखे.
जिस देश के पास विवेकानंद जैसा चिंतन-स्रोत हो उसे सियासत के ज़रिये सामाजिक बदलाव की आवाश्यकता नहीं . देश काल परिस्थिति के अनुसार धर्म के बाह्य स्वरुप में बदलाव संभव है लेकिन उसके मूल स्वरुप यानी मानव कल्याण की अवधारणा जस की तस रहती है . इसी कारण भारतीय सामाजिक व्यवस्था “सनातनी अर्थात अनादी से जारी” मानी जाती है. यहाँ तक कि देश में अपने आराध्य चुनने का हर व्यक्ति को अधिकार है . ए आर रहमान और उन जैसे जाने कितने उदाहरण हैं . हमारे शहर जबलपुर में ही एक ऐसे महान गायक हुए जो “लुकमान-चचा” के नाम से जाने जाते हैं . जब वे सिय-विजनवास का गायन करते थे  तो लगता कि हम उस दृश्य को देख रहे हैं तो दूसरी और ऊंट बिलहरवी एवं प्रो. पन्नालाल श्रीवास्तव नूर साहब, साज़ जबलपुरी की शायरी किसी मुस्लिम कवि से कमतर न थी. ये तो मेरे शहर की मिसालें थीं देश में रफ़ी साहब बिस्मिल्ला खान साहब, नौशाद अली, कृष्ण बिहारी नूर जैसी हस्तियों से तो आप सभी वाकिफ भी हैं. फिर क्या वज़ह है कि देश में वैचारिक दरारें पैदा की जावें ? मुझे तो इसमें सिर्फ सियासती घुसपैठ नज़र आ रही है . जहां भी  जातिगत धर्मगत  संघर्ष हुए हैं वो सियासती चालों की परिणिती है.  
भारत देश इतना अधिक संकट में न था जितना अब है . किसी में धैर्य नहीं विश्वविद्यालय तो विचार-शीलता के स्थान पर कटुता के लांचिंग पैड साबित हो रहे हैं. नाट्य कर्म किसी एक विचारधारा के खिलाफ अपना एजेंडा लिए घूम रहा है.  कोई काश्मीर के विभाजन की मांग को बिना देश की सुरक्षा पर सोचे अनाप शनाप बोले जा रहा है . तो नवप्रसूत सियासी युवा सैनिकों को रेपिस्ट करार दे रहा है. नक्सलवाद पर चुप्पी साधे ये लोग ब्राह्मण-वाद मनु-वाद, आदि शब्दों का अनुप्रयोग जिन हालातों में बारहा कर रहे हैं उससे लगता है कि मामला सामाजिक सुधार का न होकर सियासी नफे-नुकसान का है .
अगर कहूं कि मुस्लिम निरंकार ब्रह्म (अल्लाह) के उपासक हैं और हिन्दू सगुन के तो किसी को कोई शिकायत न होगी . न ही कोई “अहम ब्रम्हास्मि” अर्थात मुझमें ईश्वर है  या “अल्ला हू” अर्थात सब ईश्वर (अल्लाह ) का है इन सिद्धांतों  को लेकर कोई भी नहीं लड़ता क्योंकि ये ईश्वर लड़ाई की वज़ह हो ही नहीं सकते तभी तो भारतीय संस्कृति को गंग-औ जमुनी तहजीब माना गया है.  तो फिर संघर्ष का कारण क्या है ......... कारण का सूक्ष्म अवलोकन कीजिये कारण सिर्फ सत्ता की तरफ भागती सियासत को इंगित करती है . तुम अच्छे राजनेता बनो पर आयातित उन्माद के साथ नहीं .......... देश की संप्रभुता को मज़बूत करो 
तुम्हारा 
शुभाकांक्षी
गिरीश मुकुल

           

शनिवार, मार्च 05, 2016

सिस्टम कैसे चलेगा ... ?

ज़िंदगी भर नफ़ा नुकसान का भान न रहा जब इस बात का एहसास हुआ तो पता लगा आँखें कमजोर हो चुकीं हैं . लोगों को  कहते सुना हैं ......... कि नालायक किस्म का इंसान हूँ .  अब बित्ते भर की लियाकत होती तो भी कोई बात थी अब तो लियाकत के नाम पर कहते हैं मेरे पास अंगुल भर भी लियाकत नहीं है ऐसा कहते हैं लोग ... ! सही कहते होंगे लायक लोग ही हैं जो लायक और नालायक के बीच अच्छा फर्क तय करके स-तर्क सबको समझा देते हैं .
बहुत साल पहले एक दफा मुझे बतौर नज़राना एक भाई ने कुछ दिया हुज़ूर अपन ने तकसीम कर दिया . एक हिस्सा अपने तम्बाखू मिक्स गुटके के वास्ते रख लिया ... यानी नज़राने का दसवां हिस्सा रख क्या लिया बक्खा चपरासी को देकर बोला मोहन की दूकान से बढ़िया गुटका ले आ जा और बोलना हाथ धो के तम्बाखू बनाए. नज़राना देने वाले को उससे ज़्यादा कीमत की लस्सी मंगा के पिला दी और कहा ........ भैया, आपका खाम हुआ मन बहुत खुश है लगा मेरा कोई काम बन गया. बन्दा भौंचक मुझे देखता रहा . वो क्या सभी देख रहे थे . तभी बड़े सा’ब जी ने बुलवाया . सा’ब जी ने चैंबर में मुझे कुछ काम दिया मैंने लिया. बाहर अपने कमरे में दाखिल होने से पहले कानों में कुछ शब्द सुनाई दिए तो ठिठक के आड़ से सुनाने लगा ........
पहला स्वर :- “नालायक हैं छोटा साब .. बताओ... कोई आई लक्ष्मी ऐसे मिटाता है बताओ भला ?”
दूसरा स्वर :- “और लस्सी उलटे पिला दी कल बोल रए थे बेटी का जन्म-दिन है केक के लिए पैसे नई हैं ”
पहला स्वर :- “नालायक, है यार छोडो..”
दूसरा स्वर  :- “यार भाई, इनकी जे हरकतें हमाए लिए कित्ती मुश्किल हैं बड़ी मुश्किल से लोगों  जेब से नोट निकलते हैं ... अरे उड़ाना ही था तो लिए काहे .. न लेते हरिश्चंद की औलाद ऐसे में सिस्टम कैसे चलेगा बताओ भला ?”
फिर धीरे से कमरे में दाखिल हुआ माथे पर सिलवटें आ ही चुकीं थीं . भाई लोग समझे सा’ब ने बत्ती दे दी मैं भी अभिनेता सरीखा ऐसा लुक दे रहा था जैसे बड़े सा’ब ने मुझे बत्ती ही दी हो . उनकी हर बात पे मुझे मज़ा आ रहा था पर “सिस्टम कैसे चलेगा ? इस बात  को लेके परेशान था.” नौकरी लगे एक साल बीता था डर गया सिस्टम में घुसा इस वज़ह से था कि अच्छे से काम करूँगा एक अच्छी व्यवस्था के लिए काम करूंगा .
सिस्टम कैसे चलेगा ... ? सुनकर मेरा माथा ठनका सोचने लगा सन्निष्ठा की शपथ लेकर दुराचरण करना गलत है यही समझाने का प्रयोग मेरे व्यक्तित्व को इस तरह पोट्रेट करेगा . वास्तव में मैनें नज़राना इस लिए लिया था ताकि मैं उसके नज़राने की धज्जियाँ उड़ा के उसे बताऊँ कि तुम्हारे धन की मुझे ज़रुरत नहीं है . तुम्हारे धन का दुरुपयोग ही होगा .... !
मानता हूँ मेरा प्रयोग गलत था मुझे “नज़राना” लेना ही न था. लिया और बांटा फिर भी इलज़ाम मिला कि मैं सिस्टम के खिलाफ जा रहा हूँ ..... उसकी गति को रोक रहा हूँ .... शायद मेरे जैसे कुछ और होंगे तो सिस्टम का बट्टा बैठ जाएगा . फिर उस बट्टे को कोई उठा न पाएगा........
बक्खा - का सोच रए हो छोटे सा’ब ........ लो साब जे गुटखा
पहला स्वर :- साब, बड़े साब नाराज़ हैं का ?
दूसरा स्वर :- साब, हम तो हैं .... चिंता न करो ....... बीस साल का अनुभव है ..... आपकी फाईल मैं निपटा देता हूँ ... लाइए ...... दीजिये ........ ! रामभक्त हनुमान सा मेरी फ़ाइल टेबल से उठा पढने लगा .. लिखा था “वेलडन.. कीपइट अप.....”(मेरी तरफ मुखातिब हो ) साब इत्ता अच्छा नोट लिखा और आप मुंह लटके हो .....
मैं :- पर सिस्टम ............
पहला दूसरा स्वर ..... हकलाते हुए.......... साब......... सिस्टम ........ समझे नहीं ........
मैंने बात सम्हालते हुए कहा – भाई, बड़ा खराब सिस्टम है ... काम आप लोग किये वेलडन मुझे मिला.... आप इतना अच्छा काम करे हो तो तारीफ़ आपकी ही होनी चाहिए ..है .. न .........?

दौनों एक साथ बोले- साब आप ये सोच रहे थे ......... अरे साब सिस्टम में टीमवर्क ही तो होता है ..... ये आपको लिखा है .....जो  ये हमारे लिए भी गरिमा की बात है .   पर साब आपने तो डरा ही दिया था ..... हमें लगा बड़े साब नाराज़ हैं ......
आज 24 बरस बाद समझा कि कितना सही कहते हैं लोग ......... वाकई लायकी तो मुझमें है इच्च नई .......  

बुधवार, फ़रवरी 24, 2016

डिज़िटल विश्व : असंभव सम्भव होगा


2016 Virtual Reality का वर्ष है । हालांकि इसकी पुष्टि  महाभारत काल  में संजय ने कर दी थी । इस पर एक वीडियो 3 साल पहले से मौजूद है । विज्ञान का यह चमत्कार महाभारत काल को झूठा अथवा मिथक समझने वालों की आँखे खोल देगा । सनातन काल यानी अनादि काल  से चली आ रही व्यवस्था के लचीले होने की वज़ह से भारत में एकाधिक अवधारणाऐं   बहुत आज भी अस्तित्व में हैं । जो सख्त है वो टूटता है । पंथ मत अवधारणा परिवर्तनशील हों वर्ना परिवर्तन से अप्रभावित रह कर रूढ़ि एवं अप्रिय लगती हैं । अगर भारतीय सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था को दर्शन के ऐनक से देखें तो अपेक्षाकृत अधिक बदलाव हुए हैं । मित्रो हिंदुत्व कोई धर्म नहीं वरन सनातन परन्तु परिवर्तनशील व्यवस्था है । यहाँ जनतंत्र सर्वोच्च है । बार बार स्वीकार्य हुआ । हर्ष के काल में ग्राम स्तरीय वैसी व्यवस्था थी जैसी आज की पंचायती राज व्यवस्था । रामायण काल में आदिवासी कबीलों को स्वायत्ता थी । पर  कुछ ख़ास  वर्ग के लोग ये व्यवस्था नहीं चाहते लोग रामायण और महाभारत काल को नकारते नज़र आते हैं । ताकि प्राचीनतम प्रणालियों का अंत हो । इस हेतु प्रमाण ठीक उसी तरह सक्रियता से मिटाने की कोशिश जारी हैं जैसे  कई संस्कृतियों को नष्ट किया गया और किया जा रहा है  । तात्पर्य ये कि एक तरह की नवसाम्प्रदायिकता को गढ़ा जा रहा है । मेरा मानना है हर मान्यता को उसके प्रतीकों के चिन्हों के साथ नष्ट न किया जावे अन्यथा सभ्यता के स्थूल प्रतीक भी न मिलेंगे न अक्षर-साहित्य होगा । पर ध्यान रहे बाबा के बाद कविता भले ख़त्म मानी जा रही हो अनुगुंजित शब्द व्योम में गूंजते है । जो कभी न कभी Virtual Reality मेथड के ज़रिये वापस ले आए जा सकते हैं ।  राम थे तो उनका दर्शन जो ध्वनि में मौज़ूद था ठीक वैसे ही पुनर्लेखित किया गया जैसे सल्ल ने कुरआन परा ध्वनि से प्राप्त आदेशों संदेशों को लिखा । उसके पहले वेद कहे गए उनको लिखा गया । विद्वान एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व जब भी जो भी बोलते हैं वो प्रभावी ही होता है । ध्वनि में गाम्भीर्य होता है । आप किसी भी विद्वान् को सुनिए उसकी वाणी सहज ज़ेहन में प्रवेश करती है । ऐसी वाणी में अधिक स्थायित्व भी होता है । व्योम में तैरती ये ध्वनियाँ लेखकों विचारकों का ज्ञान स्रोत है । जिनके मष्तिष्क इतने बेहतरीन स्कैनर एवं रिकार्डर होते है जो ऐसी गंभीरता भरी धनात्मक  ध्वनि तंरगों को अपने में समाहित कर लतीं हैं । आप समझिये शास्त्रों में परा, पश्यन्ति, मध्यमा, वैखरी ये चार ध्वनियाँ वर्गीकृत हैं । जिसमें परा को हम लेखक कवि विचारक चिंतक शीघ्र पकड़ ही लेते हैं । ऐसे ही  घटनाएं अगर पुनर्जीवित अथवा पुनः दिखने लगें तो इसे अस्वीकार्य नहीं किया जा सकता । क्योंकि दृश्य तरंगो में बदले जा ही रहे हैं तो मानव मशीनों की सहायता से अगले  30 से 40 बरस में यह सहजता से कर पाएगा । तब मैं तो न रहूँगा पर कुछ मुझे पुनर्जीवित कर सकेंगे । ये एक स्वप्न नहीं पर सत्य है क्योंकि जिस गति से विज्ञान के क्षेत्र में डिज़िटल तकनीकी का दखल बढ़ रहा है उससे तय है क़ि ऐसा संभव हो  
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल

बुधवार, फ़रवरी 17, 2016

यूनिवर्सिटीयों को ब्रेनबम नहीं ईमानदार व्यक्तित्व बनाने दो

"भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में सम्मिलित है। इसकी 19, 20, 21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित ६ प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करतीं हैं। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान में धारा १९ द्वारा सम्मिलित छह स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है." {साभार विकी}
                              राष्ट्रद्रोही नारों को  जे एन यू काण्ड में कन्हैयानामक युवक जो जे एन यू  का प्रेसीडेंट है गिरफ्तार हुआ तो हायतौबा मच गई . सर्वाधिक सब्सिडी पाने वाले इस यूनिवर्सिटी के छात्र यूनिवर्सिटी  के उद्देश्यों को धता बताते हुए  छात्र यदि अफ़ज़ल गुरु या बट को याद करते हैं इतना ही नहीं इन कुछ छात्रों ने जिनके पीछे बहुत कुछ ताकतें काम करती प्रतीत होतीं हैं देशद्रोह सूचक नारे लगाते हैं ........ बावजूद इसके कि हाफ़िज़ सईद { जिस पर  कोई भरोसा नहीं कर सकता है } ने  किनारा किया हो . हमारा अनुमान है वास्तव में इसके पीछे बरसों से एक ख़ास प्रकार का समूह सक्रीय है . जो केवल मानसिक रोगी बेहिसाबी बहस के रोग से ग्रसित हैं . इनकी संख्या इतनी है कि वे भारी मात्रा में अनिर्बान भट्टाचार, उमर खालिद, कन्हैया जैसे सैकड़ों  ब्रेन-बम तैयार हर शहर तैयार कर सकते हैं. 
इस देश के युवा में निर्माण की अदभुत क्षमता है किन्तु ब्रेनबम बनाने वालों ने उनको इस कदर दिग्भ्रमित किया कि उनकी आवाज़ रटाए हुए शब्द सुनकर बिट्टा जैसे व्यक्ति का ही नहीं देश के बच्चे बच्चे का मन दु:खी हुआ है जिनने 12 -13 दिन पहले अपनी आज़ादी और संविधान के प्रति आस्था व्यक्त की थी. 
दिग्भ्रमित युवा मकबूल बट, अफ़ज़ल गुरु अब कश्मीर पर विशेष संवेदना के प्रतीक बन चुके हैं . वैसे इनके पीछे बेहद खतरनाक बौद्धिक षडयंत्रकारियों की संख्या कुछ अधिक ही होना संभव है .  इस बीच स्थितियां खुल के  क्रमश: खुल कर सामने आ रहीं हैं विगत कई वर्षों से अफ़ज़ल गुरु को महिमा मंडित किया जाने का सिलसिला जे एन यू में जारी रहा है . यूनिवर्सिटी प्रशासन एवं स्थानीय प्रशासन के कानों में भनक पड़ी भी होगी तो भी ऐसे तत्वों के खिलाफ अफ़ज़ल गुरु के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अपमान के लिए केस दर्ज क्यों नहीं हुआ. 
भारत की सुप्रीम अदालत के निर्णय के खिलाफ असंवैधानिक "ज्युडिशियल-मर्डर" जैसे शब्द का प्रयोग एक न्यायालयीन अपमान का मुद्दा भी है . 
खैर अगर हम सोशल मीडिया पर देखें तो सर्वत्र इन हरकतों की घोर निंदा जारी है . जो इस तथ्य की पुष्टि के लिए पर्याप्त है कि देश को राष्ट्र-द्रोही गतिविधियाँ कतई स्वीकार्य नहीं . बन्दूंको के बल पर आज़ादी की मांग करने वाले "ब्रेनबम" राष्ट्रद्रोही हैं ये तो अदालत तय करेगी जिन पर हमारा अटूट भरोसा है पर यूनिवर्सिटीज के वाइस-चांसलर्स एवं एवं चान्सलर्स को ये तय करना ही होगा कि कि- यूनिवर्सिटीयां ब्रेनबम बनाने की फैक्ट्री नहीं वरन ईमानदार व्यक्तित्व बनाने  का मंदिर है . 
भारतीय मीडिया ने इस विषय पर जो सजगता दिखाई उसे देखकर लगा कि चौता स्तम्भ केवल टी आर पी के चक्कर में नहीं वरन सचाई को उजागर करने एवं गलत बातों को रोकने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निबाह रहा है .

      

बुधवार, फ़रवरी 10, 2016

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी से राष्ट्रीय बालश्री सम्मान प्राप्त बाल-प्रतिभाओं ने की मुलाक़ात


बालश्री विजेता बच्चों के साथ मान. शिवराज सिंह जी , महिला बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह जी, एवं श्री जे एन कन्सौटिया, प्रमुख-सचिव, महिला बाल-विकास      

मध्य प्रदेश के इतिहास में ये पहला अवसर था की राष्ट्रीय स्तर के 9 बालश्री सम्मान प्रदेश के झोली में आए हैं. । महिला सशक्तिकरण संचालनालय अंतर्गत संचालित जवाहर बालभवन एवं अधीनस्त संभागीय बालभवनों के बाल कलाकारों क्रमश:  मास्टर निनाद अधिकारी (संतूर, जवाहर बालभवन, भोपाल ) कुमारी हिबा खान (कला, जवाहर बालभवन, भोपाल,) कुमारी कृति मालवीय ( लेखन जवाहर बालभवन, भोपाल) मास्टर तनय तलैया (साइंस,संभागीय बालभवन उज्जैन) कुमारी प्रियंका पाटकर (लेखन,संभागीय बालभवन ग्वालियर, ) शुभमराज अहिरवार, (कला, संभागीय बालभवन जबलपुर), कुमारी चंद्रिका अग्रवाल (कला- संभागीय बालभवन सागर, ), कुमारी रूचि तिवारी (कला- अभिनव बालभवन भोपाल,), तथा मास्टर ईशान शुक्ला (लेखन- अभिनव बालभवन भोपाल) के क्षेत्र में प्राप्त हुए हैं . देश के 63 बालश्री सम्मान हेतु चयन प्रक्रिया चयनित किया जिसमें मध्य-प्रदेश इन 09 बच्चों का चयन हुआ. राष्ट्रीय बालभवन, के तत्वावधान में विज्ञान-भवन में गत 3 फरवरी 2016 को मान. मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन इरानी ने हर बच्चे को 15-15 हज़ार रूपए के किसान विकास पत्र, एक ट्राफी, पुस्तकें प्रदान कर सम्मानित किया .
श्री विशाल नाडकर्णी विशेष-कर्तव्यस्थ अधिकारी , (महिला बाल मंत्री कार्यालय) श्रीमती तृप्ति त्रिपाठीसंचालक जवाहर बालभवन भोपालश्री एम. एस. पवारसहायक संचालक भोपालसंभागीय बाल भवनों के सहायक संचालक गिरीश बिल्लोरेजबलपुरश्री हीरेन्द्र सिंह ग्वालियरके अलावा श्री आर. सी मिश्रा
विगत 8 फरवरी 2016 को मध्य-प्रदेश के बालश्री से सम्मानित बच्चों महिला बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह से भेंट की. तथा उनकी अगुआई में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी से मिले. बच्चों ने अपने भाव एक कविता के रूप में मुख्यमंत्री जी को भेंट की . बालश्री विजेताओं को बधाई देकर स्नेह व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री महोदय ने इन प्रतिभाओं के लिए विशेष कार्यक्रम बनाने का दायित्व माननीया मंत्री जी को सौंपा .
           
              मानी शुभम राज की बात ... शुभम के पिता श्री जगदीश राज़ मिलेंगे सी एम साहेब

                      जबलपुर के शुभमराज ने भेंट के दौरान बताया कि - उनके सब्जी विक्रेता पिता श्री जगदीशराज अहिरवार की बरसों से आपसे मिलाने इच्छा है . मुख्यमंत्रीजी ने शुभम का पूरा पता फोन नंबर प्राप्त कर वादा किया कि वे शुभम के पिता से अवश्य मिलेंगे .

सिंहस्थ में देंगे सांस्कृतिक प्रस्तुतियां बालभवनों  के बच्चे

                  श्री जे एन कन्सौटिया प्रमुख सचिव महिला बाल विकास, ने बालश्री विजेता बच्चों से मुक्तरूप से बातचीत की तथा सिंहस्थ में प्रदेश के सभी बालभवनों की संयुक्त-सांस्कृतिक प्रस्तुति के लिए तैयारी करने के लिए कहा.

                        आयुक्त महिला-सशक्तिकरण एवं विशेष कर्तव्यस्थ श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव से भेंट कर बच्चों ने उनसे प्रोत्साहन पाया. स्मरण हो कि महिला सशक्तिकरण संचालनालय द्वारा अपने अंतर्गत संचालित हो रहे बालभवनो में नवाचार करने के लिए निरंतर प्रेरित किया जा रहा है.                                      
                              इस अवसर पर श्री विशाल नाडकर्णी विशेष-कर्तव्यस्थ अधिकारी , (महिला बाल मंत्री कार्यालय) श्रीमती तृप्ति त्रिपाठी, संचालक जवाहर बालभवन भोपाल, श्री एम. एस. पवार, सहायक संचालक भोपाल, संभागीय बाल भवनों के सहायक संचालक गिरीश बिल्लोरे, जबलपुर, श्री हीरेन्द्र सिंह ग्वालियर, के अलावा श्री आर. सी मिश्रा की उपस्थिति उल्लेखनीय रही.


रविवार, फ़रवरी 07, 2016

साँसों के मशवरे है इक अमर-गीत गालूँ ?


साँसों का मशवरा है कब टूट जाना होगा..
उसे टूटने से पहले इक  अमर गीत गालूँ..!!
जिसमें न सिर्फ तुम हो, जिसमें न सिर्फ हम हों
न हर्फ़ हों न सुर हों, न ताल-लय हो उसमें -
बस प्रीत राग छलके.. गीत आज छलके 
इक ऐसा गीत लिक्खो कि याद में छिपालूँ
कब टूटती हैं साँसे, कब रुकेंगी आंसें -
कब बंद होतीं आँखें, झपकेंगी कब ये आँखें
इक लोरी तो सुनाओ, सोना है ज़ल्द मुझको ..
कल का सफ़र है लंबा, आराम ज़रा पालूँ...

कुछ लोग बरसते हैं कुछ लोग तरसतें हैं
कमजोर कोई देखा जी भर के गरजते हैं
रब जानता है मुझको रब मेरा भी है लोगो
साँसों के मशवरे है इक अमर-गीत गालूँ ?


गुरुवार, फ़रवरी 04, 2016

बालश्री सम्मान : दिल्ली के विज्ञान भवन में चमका नगर का सितारा शुभमराज अहिरवार



      संभागीय बालभवन जबलपुर में संचालित सतत रचनात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियों के चलते  संस्कारधानी को निरंतर मान-सम्मान एवं यश अर्जित करने के अवसर मिल रहे हैं  बाल भवन के विद्यार्थी मास्टर शुभमराज अहिरवार को राष्ट्रीय  बालश्री सम्मान 2013 के लिए नई-दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमति स्मृति जुबिन ईरानी ने दिनांक 3/2/2016 को अलंकृत किया. समारोह में कला-साहित्य-संगीत- नृत्य की  62 बाल प्रतिभाओं को देश के प्रतिभावान बच्चों को दिए जाने वाले सर्वोच्च  “बालश्री सम्मान” दिया गया है . प्रदेश के जवाहर बालभवन से 5 तथा संभागीय बालभवनों क्रमश: जबलपुर, उज्जैन, ग्वालियर, सागर   से एक एक प्रतिभाशाली बच्चों सहित 09 बच्चे  सम्मानित हुए.  

प्रदेश की महिला बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह , प्रमुख सचिव श्री जे एन कन्सौटिया  आयुक्त एवं विशेष कर्ताव्यस्थ अधिकारी  महिला सशक्तिकरण श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव , राज्य स्तरीय बालभवन की निदेशक श्रीमती तृप्ति मिश्रा , संयुक्त-संचालक द्वय श्री उमाशंकर नगाइच एवं सुश्री  सीमा शर्मा  संभागीय  उपसंचालक गण श्रीमति मनीषा लूम्बा , एवं श्री आर. सी . त्रिपाठी श्री हरीश खरे, श्री दीपक संकत एवं श्री एम एस पवार, सतशुभ्र मिश्र मनीष शर्मा  सहित विभागीय अधिकारियों ने बालभवनों  प्रशंसा करते हुए सृजनशीलता को सर्वोपरी निरूपित किया .
महिला बाल विकास मंत्री श्रीमति मायासिंह जी ने उपलब्धियों  की प्रशंसा करते हुए बालश्री विजेता बच्चों एवं बाल-भवनों के निदेशकों को दिनांक 08 फरवरी 2016 को भोपाल आमंत्रित किया है. जबलपुर से मास्टर शुभमराज एवं संचालक संभागीय बालभवन गिरीश बिल्लोरे  भोपाल जावेंगे .
बालभवन जबलपुर की इस उपलब्धि पर संचालक ने अनुदेशक श्रीमती रेणु पांडे एवं बालश्री अवार्डी शुभम को शुभकामना देते कहा- “शहर को आचार्य बिनोवा जी ने जो नाम दिया उसकी गरिमा न केवल शहरवासी वरण शहर के बच्चे भी बरकरार रखने के लिए सक्षम हैं. इन बच्चों की सृजनशीलता का आभास - रंगों की उड़ान , प्रथम सबला सम्मेलन सहित कई अवसरों पर नगरवासियों को हुआ है.” जिसका श्रेय जबलपुर के माननीय जनप्रतिनिधियों  एवं मीडिया को जाता है. अभिभावकों से अनुरोध है कि अपने बच्चों की रचनात्मक-अभिरुचि को बढ़ावा देने संभागीय बालभवन जबलपुर में अवश्य आएं .


   

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