ज़िंदगी भर नफ़ा नुकसान का
भान न रहा जब इस बात का एहसास हुआ तो पता लगा आँखें कमजोर हो चुकीं हैं . लोगों को
कहते सुना हैं ......... कि नालायक किस्म का इंसान हूँ . अब बित्ते भर की लियाकत होती तो भी कोई बात थी
अब तो लियाकत के नाम पर कहते हैं मेरे पास अंगुल भर भी लियाकत नहीं है ऐसा कहते
हैं लोग ... ! सही कहते होंगे लायक लोग ही हैं जो लायक और नालायक के बीच अच्छा
फर्क तय करके स-तर्क सबको समझा देते हैं .
बहुत साल पहले एक दफा मुझे
बतौर नज़राना एक भाई ने कुछ दिया हुज़ूर अपन ने तकसीम कर दिया . एक हिस्सा अपने तम्बाखू
मिक्स गुटके के वास्ते रख लिया ... यानी नज़राने का दसवां हिस्सा रख क्या लिया
बक्खा चपरासी को देकर बोला मोहन की दूकान से बढ़िया गुटका ले आ जा और बोलना हाथ धो
के तम्बाखू बनाए. नज़राना देने वाले को उससे ज़्यादा कीमत की लस्सी मंगा के पिला दी
और कहा ........ भैया, आपका खाम हुआ मन बहुत खुश है लगा मेरा कोई काम बन गया. बन्दा
भौंचक मुझे देखता रहा . वो क्या सभी देख रहे थे . तभी बड़े सा’ब जी ने बुलवाया . सा’ब
जी ने चैंबर में मुझे कुछ काम दिया मैंने लिया. बाहर अपने कमरे में दाखिल होने से
पहले कानों में कुछ शब्द सुनाई दिए तो ठिठक के आड़ से सुनाने लगा ........
पहला स्वर :- “नालायक हैं
छोटा साब .. बताओ... कोई आई लक्ष्मी ऐसे मिटाता है बताओ भला ?”
दूसरा स्वर :- “और लस्सी
उलटे पिला दी कल बोल रए थे बेटी का जन्म-दिन है केक के लिए पैसे नई हैं ”
पहला स्वर :- “नालायक, है
यार छोडो..”
दूसरा स्वर :- “यार भाई, इनकी जे हरकतें हमाए लिए कित्ती
मुश्किल हैं बड़ी मुश्किल से लोगों जेब से
नोट निकलते हैं ... अरे उड़ाना ही था तो लिए काहे .. न लेते हरिश्चंद की औलाद ऐसे
में सिस्टम कैसे चलेगा बताओ भला ?”
फिर धीरे से कमरे में दाखिल
हुआ माथे पर सिलवटें आ ही चुकीं थीं . भाई लोग समझे सा’ब ने बत्ती दे दी मैं भी
अभिनेता सरीखा ऐसा लुक दे रहा था जैसे बड़े सा’ब ने मुझे बत्ती ही दी हो . उनकी हर
बात पे मुझे मज़ा आ रहा था पर “सिस्टम कैसे चलेगा ? इस बात को लेके परेशान था.” नौकरी लगे एक साल बीता था
डर गया सिस्टम में घुसा इस वज़ह से था कि अच्छे से काम करूँगा एक अच्छी व्यवस्था के
लिए काम करूंगा .
सिस्टम कैसे चलेगा ... ? सुनकर
मेरा माथा ठनका सोचने लगा सन्निष्ठा की शपथ लेकर दुराचरण करना गलत है यही समझाने
का प्रयोग मेरे व्यक्तित्व को इस तरह पोट्रेट करेगा . वास्तव में मैनें नज़राना इस
लिए लिया था ताकि मैं उसके नज़राने की धज्जियाँ उड़ा के उसे बताऊँ कि तुम्हारे धन की
मुझे ज़रुरत नहीं है . तुम्हारे धन का दुरुपयोग ही होगा .... !
मानता हूँ मेरा प्रयोग गलत
था मुझे “नज़राना” लेना ही न था. लिया और बांटा फिर भी इलज़ाम मिला कि मैं सिस्टम के
खिलाफ जा रहा हूँ ..... उसकी गति को रोक रहा हूँ .... शायद मेरे जैसे कुछ और होंगे
तो सिस्टम का बट्टा बैठ जाएगा . फिर उस बट्टे को कोई उठा न पाएगा........
बक्खा - का सोच रए हो छोटे
सा’ब ........ लो साब जे गुटखा
पहला स्वर :- साब, बड़े साब
नाराज़ हैं का ?
दूसरा स्वर :- साब, हम तो
हैं .... चिंता न करो ....... बीस साल का अनुभव है ..... आपकी फाईल मैं निपटा देता
हूँ ... लाइए ...... दीजिये ........ ! रामभक्त हनुमान सा मेरी फ़ाइल टेबल से उठा
पढने लगा .. लिखा था “वेलडन.. कीपइट अप.....”(मेरी तरफ मुखातिब हो ) साब इत्ता
अच्छा नोट लिखा और आप मुंह लटके हो .....
मैं :- पर सिस्टम
............
पहला दूसरा स्वर .....
हकलाते हुए.......... साब......... सिस्टम ........ समझे नहीं ........
मैंने बात सम्हालते हुए कहा
– भाई, बड़ा खराब सिस्टम है ... काम आप लोग किये वेलडन मुझे मिला.... आप इतना अच्छा
काम करे हो तो तारीफ़ आपकी ही होनी चाहिए ..है .. न .........?
दौनों एक साथ बोले- साब आप
ये सोच रहे थे ......... अरे साब सिस्टम में टीमवर्क ही तो होता है ..... ये आपको
लिखा है .....जो ये हमारे लिए भी गरिमा की
बात है . पर साब आपने तो डरा ही दिया था ..... हमें लगा
बड़े साब नाराज़ हैं ......
आज 24 बरस बाद समझा कि कितना सही कहते हैं लोग ......... वाकई लायकी तो मुझमें है इच्च नई .......