1 अक्टूबर में राय बहादुर डॉ हीरालाल की 150 वी जयंती पर विशेष...........
अगर बात उनके विशेष कार्यों की हो तो मध्य प्रांत के गजेटियर की कल्पना उनके बिना संभव नहीं थी। जो आज भी शोध छात्रों के लिए मील का पत्थर हैं। और अपने अद्भुत कामो को अभिलेखों के तौर पर भावी पीढ़ी को सौंप गए| 👉गजेटीयर्स प्रकाशन के लिए 1910 में उन्हें रायबहादुर की उपाधि मिली
वे नृविज्ञान, मानव विज्ञान, अभिलेख विज्ञान, पुरा विज्ञान, भारतीय इतिहास, हिंदी साहित्य, भाषा विज्ञान, फिलॉस्फी एवं पांडुलिपि विज्ञान के अधिकारी विद्वानों में से एक थे
उनकी जीवनी व कार्यों की कुछ खास बातें :-
👉वह भारत की मुख्य भाषाओं के साथ-साथ जनजाति बोलियों जैसे गौंड़ी, कोरकू, गदबी आदि कई भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने मध्य प्रदेश की भाषाओं और बोलियों का सर्वेक्षण किया और आदिवासी समाज के विभिन्न बोलियों के ग्रामोफोन रिकॉर्ड तैयार किए
👉जनगणना अधिकारी, अकाल राहत अधिकारी, पुरातत्ववेत्ता, विज्ञान विषय के शिक्षक और डिप्टी कमिश्नर जैसी अनेक भूमिकाओं का निर्वहन किया
👉 सारे क्षेत्रों के विशेषज्ञ होने के कारण रिसर्च के लिए जर्मनी ने मांगा था ब्रेन
👉 भारत में सर्वप्रथम सहशिक्षा प्रारंभ की
👉 छत्तीसगढ़ एवं अन्य जगह पिछड़े और पहुंच विहीन क्षेत्रों में शालाएं खोली
👉 1909 एवं 1911 की भारत की जनगणना का कार्य किया
👉 इतिहास पुरातत्व साहित्य भूगोल आदि कई क्षेत्रों के संबंध में कई पुस्तकों और लेखों का लेखन किया
👉 वह भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के अवैतनिक संवाददाता भी रहे
👉 भारत के जातियों-जनजातियों समुदाय उप समुदायों पर रिसर्च करके उनके संबंध में 1908 में एथनोग्राफिक्स नोट्स, 1916 में ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ द सेंट्रल प्रॉविसेंस ऑफ इंडिया जैसी वृहद खंडों का प्रकाशन किया | 1914 में मध्य प्रांत और बरार के शिलालेख नामक पुस्तक लिखी जो एक प्रमाणित कृति मानी जाती है मध्यप्रदेश और उन के जिलो के इतिहास की पुस्तकें लिखें
👉10 हजार संस्कृत और प्राकृत पांडुलिपियों की खोजीं, जिनका पहले ज्ञान नहीं था।
👉 अपने उल्लेखनीय कार्यों के चलते उन्हें 31 प्रशंसा पत्रों से सम्मानित किया गया
👉 हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना की
👉 कटनी में संस्कृत पाठशाला की स्थापना की जो वर्तमान में संस्कृत महाविद्यालय के रूप में मौजूद है
👉 सन 1930 में कटनी में ग्रंथालय की स्थापना की जो तत्समय प्रदेश का मुख्य ग्रंथालय था
👉 स्नातक एवं स्नातकोत्तर में हिंदी चालू करवाया
👉 ऑल इंडिया ओरिएंटल कांफ्रेंस के अध्यक्ष भी रहे
👉 काशी नागरी प्रचारिणी सभा के आजीवन अध्यक्ष भी रहे
👉 मद्रास और नागपुर में आयोजित इंडियन साइंस कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे
👉वे गद्य और पद्य के सुयोग लेखक थे नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी.लीट की उपाधि प्रदान की गई
👉 यूरोप में आयोजित पुरातात्विक अधिवेशन में डॉ हीरालाल द्वारा भारत का प्रतिनिधित्व किया गया
👉अपनी वसीयत में हीरालाल ने तत्कालीन रॉबर्टसन कॉलेज के लिए 10 हजार और अन्य संस्थाओं के लिए 3 हजार की स्कॉलरशिप का उल्लेख किया है
👉 पंडित मदन मोहन मालवीय ने उन्हें विभाग के अध्यक्ष बनने का आमंत्रण दिया परंतु उन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर भारत कला भवन के लिए एक पुरातत्व महत्व की ब्रह्मा की मूर्ति भेंट की
👉 नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद को भी विनम्रतापूर्वक अस्वीकार किया
👉 चिड़ियों की बोलियों पर भी उन्होंने शोध किया और चिड़ियों की विभिन्न बोलियों को ग्रामोफोन रिकॉर्ड में तैयार किया
👉1922 में वे डिप्टी कमिश्नर पद से नरसिंहपुर से सेवानिवृत हुए, जिसके बाद भी उनका शोध कार्य चलता रहा।
👉 ताम्रपत्र और शिलालेख के अध्ययनके क्षेत्र में वे विश्वविख्यात थे
👉पुरातत्व के उच्च कोटि विद्वान होने चलते उन्हें चेदि कीर्ति चंद्र भी कहा जाता था।
👉 उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी उनकी किताबें व लेख व पुरातात्विक महत्व की प्राचीन मूर्तियां नागपुर भोपाल सागर व जबलपुर विश्वविद्यालय व संग्रहालय में दान दे दी गई
👉 राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनके निधन पर निम्न पंक्तियों में अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की :- अयी अतीत तेरे ढेले भी, दुर्लभ रत्न तुल्य चिरकाल पर तेरा तत्वज्ञ स्वयं ही एक रत्न था हीरालाल||
👉1936 में तत्कालीन सरकार द्वारा जबलपुर स्थित डॉ हीरालाल जी के गांव बंधा का नामकरण उनकी स्मृति में हीरापुर बंधा किया गया
👉भारत सरकार ने 31 दिसंबर 1987 को उनकी स्मृति में डाक टिकट का विमोचन किया
(यह महान विभूति 19 अगस्त 1934 को हो ब्रह्मलीन हो गई )
*संकलनकर्ता-: एड निशांत राय, एड रामकिशोर शिवहरे*
अगर बात उनके विशेष कार्यों की हो तो मध्य प्रांत के गजेटियर की कल्पना उनके बिना संभव नहीं थी। जो आज भी शोध छात्रों के लिए मील का पत्थर हैं। और अपने अद्भुत कामो को अभिलेखों के तौर पर भावी पीढ़ी को सौंप गए| 👉गजेटीयर्स प्रकाशन के लिए 1910 में उन्हें रायबहादुर की उपाधि मिली
वे नृविज्ञान, मानव विज्ञान, अभिलेख विज्ञान, पुरा विज्ञान, भारतीय इतिहास, हिंदी साहित्य, भाषा विज्ञान, फिलॉस्फी एवं पांडुलिपि विज्ञान के अधिकारी विद्वानों में से एक थे
उनकी जीवनी व कार्यों की कुछ खास बातें :-
👉वह भारत की मुख्य भाषाओं के साथ-साथ जनजाति बोलियों जैसे गौंड़ी, कोरकू, गदबी आदि कई भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने मध्य प्रदेश की भाषाओं और बोलियों का सर्वेक्षण किया और आदिवासी समाज के विभिन्न बोलियों के ग्रामोफोन रिकॉर्ड तैयार किए
👉जनगणना अधिकारी, अकाल राहत अधिकारी, पुरातत्ववेत्ता, विज्ञान विषय के शिक्षक और डिप्टी कमिश्नर जैसी अनेक भूमिकाओं का निर्वहन किया
👉 सारे क्षेत्रों के विशेषज्ञ होने के कारण रिसर्च के लिए जर्मनी ने मांगा था ब्रेन
👉 भारत में सर्वप्रथम सहशिक्षा प्रारंभ की
👉 छत्तीसगढ़ एवं अन्य जगह पिछड़े और पहुंच विहीन क्षेत्रों में शालाएं खोली
👉 1909 एवं 1911 की भारत की जनगणना का कार्य किया
👉 इतिहास पुरातत्व साहित्य भूगोल आदि कई क्षेत्रों के संबंध में कई पुस्तकों और लेखों का लेखन किया
👉 वह भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के अवैतनिक संवाददाता भी रहे
👉 भारत के जातियों-जनजातियों समुदाय उप समुदायों पर रिसर्च करके उनके संबंध में 1908 में एथनोग्राफिक्स नोट्स, 1916 में ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ द सेंट्रल प्रॉविसेंस ऑफ इंडिया जैसी वृहद खंडों का प्रकाशन किया | 1914 में मध्य प्रांत और बरार के शिलालेख नामक पुस्तक लिखी जो एक प्रमाणित कृति मानी जाती है मध्यप्रदेश और उन के जिलो के इतिहास की पुस्तकें लिखें
👉10 हजार संस्कृत और प्राकृत पांडुलिपियों की खोजीं, जिनका पहले ज्ञान नहीं था।
👉 अपने उल्लेखनीय कार्यों के चलते उन्हें 31 प्रशंसा पत्रों से सम्मानित किया गया
👉 हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना की
👉 कटनी में संस्कृत पाठशाला की स्थापना की जो वर्तमान में संस्कृत महाविद्यालय के रूप में मौजूद है
👉 सन 1930 में कटनी में ग्रंथालय की स्थापना की जो तत्समय प्रदेश का मुख्य ग्रंथालय था
👉 स्नातक एवं स्नातकोत्तर में हिंदी चालू करवाया
👉 ऑल इंडिया ओरिएंटल कांफ्रेंस के अध्यक्ष भी रहे
👉 काशी नागरी प्रचारिणी सभा के आजीवन अध्यक्ष भी रहे
👉 मद्रास और नागपुर में आयोजित इंडियन साइंस कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे
👉वे गद्य और पद्य के सुयोग लेखक थे नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी.लीट की उपाधि प्रदान की गई
👉 यूरोप में आयोजित पुरातात्विक अधिवेशन में डॉ हीरालाल द्वारा भारत का प्रतिनिधित्व किया गया
👉अपनी वसीयत में हीरालाल ने तत्कालीन रॉबर्टसन कॉलेज के लिए 10 हजार और अन्य संस्थाओं के लिए 3 हजार की स्कॉलरशिप का उल्लेख किया है
👉 पंडित मदन मोहन मालवीय ने उन्हें विभाग के अध्यक्ष बनने का आमंत्रण दिया परंतु उन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर भारत कला भवन के लिए एक पुरातत्व महत्व की ब्रह्मा की मूर्ति भेंट की
👉 नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद को भी विनम्रतापूर्वक अस्वीकार किया
👉 चिड़ियों की बोलियों पर भी उन्होंने शोध किया और चिड़ियों की विभिन्न बोलियों को ग्रामोफोन रिकॉर्ड में तैयार किया
👉1922 में वे डिप्टी कमिश्नर पद से नरसिंहपुर से सेवानिवृत हुए, जिसके बाद भी उनका शोध कार्य चलता रहा।
👉 ताम्रपत्र और शिलालेख के अध्ययनके क्षेत्र में वे विश्वविख्यात थे
👉पुरातत्व के उच्च कोटि विद्वान होने चलते उन्हें चेदि कीर्ति चंद्र भी कहा जाता था।
👉 उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी उनकी किताबें व लेख व पुरातात्विक महत्व की प्राचीन मूर्तियां नागपुर भोपाल सागर व जबलपुर विश्वविद्यालय व संग्रहालय में दान दे दी गई
👉 राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनके निधन पर निम्न पंक्तियों में अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की :- अयी अतीत तेरे ढेले भी, दुर्लभ रत्न तुल्य चिरकाल पर तेरा तत्वज्ञ स्वयं ही एक रत्न था हीरालाल||
👉1936 में तत्कालीन सरकार द्वारा जबलपुर स्थित डॉ हीरालाल जी के गांव बंधा का नामकरण उनकी स्मृति में हीरापुर बंधा किया गया
👉भारत सरकार ने 31 दिसंबर 1987 को उनकी स्मृति में डाक टिकट का विमोचन किया
(यह महान विभूति 19 अगस्त 1934 को हो ब्रह्मलीन हो गई )
*संकलनकर्ता-: एड निशांत राय, एड रामकिशोर शिवहरे*