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12.1.22

ग़ज़ल : उनके फनों को अब तो कुचलने का वक्त है ।।

मौसम बहुत ही सर्द है, सम्हलने का वक्त है 
हर इक कदम फूँक के, चलने का वक्त है ।।
कीड़े खत्म हो  गए, इन झाड़ियों से अब-
गिरगिट का फैसला,जगह बदलने का वक्त है ।।
जाने टिकट दें कि ना दें आला हजूर आप
वो सोचने लगा है, दल बदलने का वक्त है ।।
मसलों को मसलने का हुनर, सीखा है आपसे
उसी हुनर से आपको, मसलने का वक्त है ।।
फ़नकार भी उगलने लगे ज़हर सुबहो-शाम,
उनके फनों को अब तो कुचलने का वक्त है ।।


27.7.20

गुमशुदा हैं हम, ख़ुद अपने बाज़ार में ।

ग़ज़ल 
गुमशुदा हैं हम, ख़ुद अपने बाज़ार में ।
ये हादसा हुआ है, किसी ऐतबार में ।।
कुछ मर्तबान हैं, तुम रखना सम्हाल के -
पड़ जाए है फफूंद भी, खुले अचार में ।।
रोटियों पे साग थी , खुश्बू थी हर तरफ -
गूँथा है गोया आटा, तुमने अश्रुधार में ।।
अय माँ तुम्हारे हाथ की रोटियाँ कमाल थीं-
बिन घी की मगर तर थीं तुम्हारे ही प्यार में ।।
हाथों पे हाथ, सर पे दूध की पट्टियाँ-
जाती न थी माँ जो हम हों बुखार में ।।

11.1.11

डटके पियो शराब,पूजा घरों में आप बेदम निढाल होके उसकी शरण पड़ो .

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एक बूँद भी मिल जाए तो बस  आचमन करो
पीते जो हो तो बादाकशों सा आचरण करो .
ऐ साकी तुझसे  बूँद का नाता नहीं मेरा 
सागर में आके मेरे गंगो-जमुन भरो
डटके पियो शराब,पूजा घरों में आप
बेदम निढाल होके उसकी शरण पड़ो .
लाखों नशे हैं दौरे -तिज़ारत के आज़कल 
मय आशक़ी का  मेरे बादा में तुम भरो .
तस्वीर है कि बुत है या कुछ भी नही है वो 
पूजा करो इबादत करो ये बात कम करो 
वो धूप है कि छांव है किसको पता है क्या-
वो जो भी है कुछ तो है अब तो नमन करो !
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26.6.10

न पक इतना कि डाली से नाता टूट जाएगा- पके अमरूदों डाली से गिर जाने की आदत है !

न तुझसे कोई शिक़वा है, न एक भी शिकायत है
खु़दा जाने , तेरे दिल में क्यों पलती अदावत है !
तुझे महफ़ूज़ रक्खा जिन आस्तीनों ने अब तक
ये क्या कि आज़कल तुझको उनसे भी शिक़ायत है !
न पक इतना कि डाली से नाता टूट जाएगा-
पके अमरूदों डाली से गिर जाने की आदत है !
अग़रचे हो सही शायर हुदूदें लांघना मत तुम
ये क्या सांपों की बस्ती के सपोलों की सी आदत है..?
ख़ुदा की राह पे चलना कोई सीखे या न सीखे
किसी वादे को न तोड़ें यही उसकी इबादत है.!

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

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