Ad

शनिवार, जून 26, 2010

न पक इतना कि डाली से नाता टूट जाएगा- पके अमरूदों डाली से गिर जाने की आदत है !

न तुझसे कोई शिक़वा है, न एक भी शिकायत है
खु़दा जाने , तेरे दिल में क्यों पलती अदावत है !
तुझे महफ़ूज़ रक्खा जिन आस्तीनों ने अब तक
ये क्या कि आज़कल तुझको उनसे भी शिक़ायत है !
न पक इतना कि डाली से नाता टूट जाएगा-
पके अमरूदों डाली से गिर जाने की आदत है !
अग़रचे हो सही शायर हुदूदें लांघना मत तुम
ये क्या सांपों की बस्ती के सपोलों की सी आदत है..?
ख़ुदा की राह पे चलना कोई सीखे या न सीखे
किसी वादे को न तोड़ें यही उसकी इबादत है.!

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में