शाम जब अन्ना जी को विलासराव देशमुख जी ने एक ख़त सौंपा तो लगा कि ये खत उन स्टुपिट कामनमे्न्स की ओर से अन्ना जी लिया था जो बरसों से सुबक और सुलग रहा था.अपने दिल ओ दिमाग में सुलगते सवालों के साथ. उन सवालों के साथ जो शायद कभी हल न होते किंतु एक करिश्माई आंदोलन जो अचानक उठा गोया सब कुछ तय शुदा था. गांधी के बाद अन्ना ने बता दिया कि अहिंसक होना कितना मायने रखता है. सारे भरम को तोड़ती इस क्रांति ने बता दिया दिया कि आम आदमी की आवाज़ को कम से कम हिंदुस्तान में तो दबाना सम्भव न था न हो सकेगा. क्या हैं वे भरम आईये गौर करें...
- मध्यम वर्ग एक आलसी आराम पसंद लोगों का समूह है :इस भ्रम में जीने वालों में न केवल सियासी बल्कि सामाजिक चिंतक, भी थे ..मीडिया के पुरोधा तत्वदर्शी यानी कुल मिला कर "सारा क्रीम" मध्य वर्ग की आलसी वृत्ति से कवच में छिपे रहने की आदत से... परिचित सब बेखबर अलसाए थे और अंतस में पनप रही क्रांति ने अपना नेतृत्व कर्ता चुन लिया. ठीक वैसे जैसे नदियां अपनी राह खुद खोजतीं हैं
- क्रांति के लिये कोई आयकान भारत में है ही नहीं : कहा न भारत एक अनोखा देश है यहां वो होता है जो शायद ही कहीं होता हो .किस काम के लिये किस उपकरण की सहायता लेनी है भारतीय बेहतर जानते हैं.. इसके लिये हमारी वैचारिक विरासत की ताक़त को अनदेखा करती रही दुनियां कुछ लोग समझ रहे थे कहा भी तो था मेरे एक दोस्त ने शुरु शुरु में कि "न्यूज़-चैनल्स का रीयलिटी शो" है. सब टी आर पी का चक्कर है. किसी ने कहा ये भी तो था :-"अन्ना की मांग एक भव्य नाट्य-स्क्रिप्ट है.."
- भ्रष्टाचार की जड़ों पर प्रहार करना अब संभव नहीं : इस बारे में क्या कहूं आप खुद देख लीजिये हर बुराई का अंत है "भ्रष्टाचार" अमरतत्व युक्त नहीं है.
4 टिप्पणियां:
देर आयद!
दुरुस्त आयद!
मगर अभी भ्रष्ट व्यवस्था को बदलना बाकी है।
आगाज़ को अंजाम न समझा जाय... सारी अटकलों पर ताले लगेंगे .... देखते जाइए आगे क्या होता है ,,,, जय हिन्द
ji, vakai ye cheejen saamne aayi hain..
अन्नाजी ने दुरुस्त फ़रमाया कि ये मशाल जलती रहनी चाहिए।
जी हाँ
ये तो क़तरे हैं आग लगाने के लिए
अभी बरसों हैं प्यास बुझाने के लिए
प्रिय गिरीश जी,
आपको और हमारे इस सफ़ल जनांदोलन को बहुत बहुत बधाईयाँ !
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