वेड्नेस डे : "स्टुपिट कामन मैन की क्रांति "


wednesday  फ़िल्म को देखते ही अहसास हुआ  एक कविता का एक क्रांति का एक सच का  जो कभी भी साकार हो सकता है.अब इन वैतालों का अंत अगर व्यवस्था न कर सके तो ये होगा ही "अपनी पीठ पर लदे बैतालो को सब कुछ सच सच कौन बताएगा शायद हम सब .. तभी एक आमूल चूल परिवर्तन होगा... चीखने लगेगी संडा़ंध मारती व्यवस्था , हिल जाएंगी  चूलें जो कसी हुईं हैं... नासमझ हाथों से . अब आप और क्या चाहतें हैं ?
 अब भी हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठ जाना. ..?

सच तो ये है कि अब आ चुका है वक़्त सारे मसले तय करने का हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठना अब सबसे बड़ा पाप होगा 

      



टिप्पणियाँ

यही तो दिक्कत है कि आगे बढ़े कौन. अगर कोई बढ़ेगा तो उसे साम्प्रदायिक बताकर सूली पर चढ़ा देंगे ये राजनीतिबाज वोटों के लिये..
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
वस्तुतः हम अव्यवस्थातंत्र में जी रहे हैं...

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