17.7.21

“वेनेजुएला की तरह भारत को भोगना पड़ सकता है मुद्रा प्रसार का दर्द....यदि हम न माने तो !”

“वेनेञ्जुला की तरह भारत को  भोगना पड़ सकता है मुद्रा प्रसार का दर्द....यदि हम न माने तो !” : गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”      

 वेनेजुएला दक्षिण अमेरिका के उत्तर में स्थित है; भूगर्भीय, इसकी मुख्य भूमि दक्षिण अमेरिकी प्लेट पर स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 916,445 किमी2 (353,841 वर्ग मील) और भूमि क्षेत्र 882,050 किमी2 (340,560 वर्ग मील) का है, जिससे वेनेज़ुएला दुनिया का 33वां सबसे बड़ा देश है। इस देश की राजधानी करासस है।

इस देश की वर्तमान में आर्थिक, राजनैतिक  परिस्थितियाँ जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और हाइपर-इंफ्लेशन के जानकार स्टीव हैंक के मुताबिक़ पिछले 12 महीनों में वेनेज़ुएला में महंगाई 65000 फ़ीसदी तक बढ़ गई है. यह “अति-तीव्र-मुद्रा-प्रसार” का मौजूदा उदाहरण है ।  



इस क्रम में उदय कोटक ने भारत सरकार को  एक सलाह दी ...!                   

        दूसरे विश्व युद्ध में औपनिवेशिक भारत को जिन आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था । और उसके बाद अधिकांश देश मुद्रा प्रसार के शिकार हो गए थे। विश्व के कई देशों का का आर्थिक सदमे में जाना विश्व समुदाय के लिए और नागरिकों के लिए संकट का सबसे खतरनाक दौर था।

    कोविड-19 के बाद ऐसे ही परिस्थितियां बन रहे हैं मूल्यों में वृद्धि 20% से 30% तक देखी जा रही है जो कमोबेश मुद्रा प्रसार की ओर अर्थव्यवस्था को ले जाने का रास्ता निर्मित कर रहा है। दूसरा विश्व युद्ध के साथ-साथ महामारी और अकाल विश्व के हर छोटे बड़े देश के लिए मानो नर्क की स्थिति निर्मित कर रही थी। यह वह दौर था जब विकसित राष्ट्र भी अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर टेंशन में थे। ब्रिटेन की हालत तो सबसे ज्यादा खराब थी और उसने अपनी कालोनियां ट्रांसफर ऑफ पावर के जरिए उन देशों की जनता को सौंपना प्रारंभ कर दिया जो उनकी कॉलोनी के रूप में पहचाने जाते थे। मित्रों यह वही दौर था जब भारत ने जन्म लिया था और पाकिस्तान तथा चीन भारत को मरा हुआ जानवर समझ कर चील की तरह हमलावर थे। लेकिन हम वही भारतीय हैं जिन्होंने वेनेजुएला की तरह अपने आप को विकास के रास्ते पर चलने को प्रेरित किया। एक बौने कद के बड़े विचारक प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी के भाषण आज भी आप विभिन्न वेबसाइट पर जाकर सुन सकते हैं। 1 दिन का व्रत भारत को महान संदेश दे गया। परंतु वर्तमान परिस्थिति में भारत में शास्त्री की उस आवाज को फिर से समझने के बजाय भारतीय लोग आयातित विचारधारा से प्रभावित होकर सब्सिडी आधारित उत्पादों के संयमित उपभोग के लिए बेचैन हैं ।



   मित्रों किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर मुद्रा प्रसार  ऐसा घातक परिणाम देता है जो राजनैतिक, सामाजिक, व्यापारिक रूप से उस देश को दुगने वेग से वापस भेज देता है उन परिस्थितियों में जहां से उसने यात्रा शुरू की थी।

वेनेजुएला की परिस्थिति भी ऐसी ही है। वेनेजुएला के लोग एक बहुत बड़े घमंड के साथ स्वयं को प्रस्तुत कर रहे थे कि उनके देश में तेल का अक्षय भंडार है और उस अक्षय भंडार से वे कभी भी किसी से पीछे नहीं हो सकते।

        वर्तमान में देश की मुद्रा स्थिति 2665 प्रतिशत है और यह देश 1000000 बुलीवर के नोट छापने के लिए तैयार है । जितेंद्र सिंह राणा  को आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर वह 39 का बिल बनाते हैं तो कोई भी वेनेजुएला का पर्यटक 10 लाख बुलीवर का नोट दे सकता है। स्थिति साफ है की मुद्रास्फीति वेनेजुएला में अपने चरम पर है। उसके क्या कारण है

[  ] सन 1999 राष्ट्रपति मादुरो ने जब सत्ता संभाली तब वेनेजुएला दक्षिण अमेरिका का एकमात्र ऐसा देश था जहां अकूत मात्रा में पेट्रोल पाया गया।

[  ] तब वेनेजुएला की आर्थिक स्थिति नागरिकों को विश्व की श्रेष्ठतम सुविधाएं देने के लायक थी। परंतु सत्ता में बने रहने की लालच ने मादुरो ने लाखों घर मुफ्त में बनवा कर जनता को दिए

[  ] पेट्रोल पर सब्सिडी आज भी दे रहा है

[  ] पेट्रोल उत्पादक कंपनी को अनावश्यक रूप से कर्मचारियों को भर्ती करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जो अब तक जारी है। इससे सरकार को अतिरिक्त वित्तीय प्रबंधन करना पड़ा

[  ] 1999 में कच्चे तेल की कीमत बहुत अधिक थी किंतु ओपेक की सक्रियता एवं पेट्रोलियम कच्चे तेल की कीमतों को रेगुलेट करने की क्षमता के कारण कीमतों में आशा के विपरीत गिरावट आई।

[  ] यह देश सोशल विजनरी देश नहीं है बल्कि यहां के लोग उन भारतीयों की तरह ही है जो पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर मातमी जुलूस निकालने लगते हैं। ना तो इस देश की सरकार उन्हें अन्य उत्पादन कार्यों में लगा पाई और ना ही इस देश के नागरिक अन्य किसी काम के लायक रहे। जानकार कहते हैं कि वेनेजुएला की आबादी केवल शासकीय योजनाओं का लाभ उठाकर जीने वाली आबादी बनकर रह गई। और उस आबादी का विकास तो बिल्कुल भी नहीं होता जो घर बैठकर खाती हो।

[  ] भारत में यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे तेज होने लगी है। सब्सिडी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक से हटकर और कुछ नहीं।

[  ] वेनेजुएला की सरकार हर हालत में तेल का उत्पादन स्वयं अपनी कंपनी से कराती है। आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं कि प्राइवेट प्लेयर अगर किसी व्यवसाय को नहीं कर पाए तो उस देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। और ऐसा ही हुआ है वेनेज़ुएला के साथ । इधर भारत में हाल के दौर में जब भारत में सरकारी कंपनियों में पूंजी की सहभागिता बढ़ाई गई तब लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया।

[  ] डब्ल्यूटीओ के समझौते के अनुसार विश्व की सरकारों को सब्सिडी और सरकारी नियंत्रण में कमी लाने की शर्त सबसे प्रभावी शर्त है । भारत में अत्यधिक सब्सिडी की शिकायत कनाडा की अगुवाई में डब्ल्यूटीओ के दफ्तर में कई बार पहुंची है। यूरोपीय देशों ने 2018 से 2019 तक भारत के खिलाफ नकारात्मक वातावरण बना दिया था।  दुर्भाग्यवश कोविड-19 पेंडामिक की स्थिति में सभी को प्रभावित कर दिया है। वरना यूरोपीय संघ भारत के व्यापारिक एवं उत्पादन क्षमता के विरुद्ध तेजी से सक्रिय था।

[  ] वैश्विक महामारी के चलते विश्व के कई देशों को मुद्रा संकट का सामना करना पड़ रहा है भारत की स्थिति भी वही है अगर भारत कोटक की सलाह मान ले ऐसी स्थिति में भारत गंभीर मुद्रा संकट से घिर सकता है ।


14.7.21

अफगान सरकार ने भारत रूस ईरान और अमेरिका से मांगी सहायता


   मीडिया खबरों की माने तो अमेरिकी सेना की वापसी के साथ ही अफगान सरकार को विश्वास है कि हवाई हमलों के जरिये तालिबान को रोका जा सकता है. हालांकि अभी अफगान को तालिबान को रोकने के लिए काफी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है.
    उपरोक्त समाचार से स्पष्ट होता है कि अफगान सरकार ने 4 बड़े देशों से तालिबान से अफगानिस्तान को बचाने के लिए मदद की दरकार की है। स्पीड चलाने वाली वानी रफत ने अपने टि्वटर हैंडल से एक फेक न्यूज़ जारी की है जिसके तहत वह यह साबित करने की कोशिश में लगी हुई है कि अफगान के आंतरिक मामलों में भारत सरकार अनावश्यक रूप से गोला बारूद मुहैया करा रही है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक टि्वटर स्पेस में कश्मीर और पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर के मुद्दों पर बहुत से भड़ास निकाली जा रही है। अब कान समस्या को लेकर भारत सरकार का नजरिया क्या है या क्या रहेगा इस पर कोई भी बात करना बहुत जल्दबाजी है। भारत की जनता को ऐसे किसी भी प्रकार के नैरेटिव से बचना चाहिए जिसमें भारत की विदेश नीति पर खास तौर पर वर्तमान में जब अफगान की सरकार और तालिबान के बीच की स्थिति और अभी स्पष्ट नहीं हो जाती ।  दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और चीन सहित रूस के अपने-अपने नजरिए अफगानिस्तान को लेकर हैं कश्मीर वर्तमान में भारत का अभिन्न अंग है वह भी पीओके के साथ अभिन्न अंग है जो भविष्य में हमारे पास निश्चित तौर पर आ सकता है। यहां आज भी पाकिस्तानी नैरेटिव को बहुत तरजीह दी जाती है भले ही उसका प्रतिशत कम हो। इस देश में बात करने वाले अधिकांश लोग यह समझते हैं कि भारत सरकार अपनी विदेश नीति पर चर्चा करती रहे। लेकिन यह अनुकूल समय नहीं है कि हम भारत सरकार से ऐसी कोई उम्मीद करें। राष्ट्र सर्वोपरि है राष्ट्रीय मानव का सर्वोपरि है।
बेदर्द तालिबान के क्रूर लड़ाके

  बहरहाल इस पर सरकार की पैनी नजर है 5 अगस्त 2019 के बाद कश्मीर किसी चर्चा के लिए शेष नहीं रह जाता कश्मीर भारत का हिस्सा था है और रहेगा और भविष्य में पी ओ के भारत में आ जाए तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। परंतु पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी पाकिस्तान के नजरिए से सोच रहे हैं। वी भारत को झूठा और तालिबान को जांबाज जंगजू मानते हैं। इसका खुलासा ट्विटर पर आप स्पेस सुविधा के अंदर देख सकते हैं जो हाल ही में ट्विटर ने मुहैया कराई है।
टि्वटर ने इन दिनों स्पेस नामक सुविधा अपने खाता धारियों को मुहैया कराई है। भले ही यह एक अच्छी व्यवस्था हो किंतु यह ऐसे नैरेटिव सेटलर्स के लिए चारागाह बन गई है जो भारत विरोधी अभिव्यक्ति करते हैं।
13 से 14 जुलाई 2021 को मीडिया से प्राप्त होने वाली खबरों के संदर्भ में सोच कर ही अजीब परिस्थितियों का एहसास होते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। एक मीडिया चैनल के अनुसार आज तक 85% अफगानिस्तान में तालिबान का साम्राज्य स्थापित हो चुका है
   जहां तक वर्तमान में अफगानिस्तान में तालिबान बढ़ती हुई हैसियत का सवाल है हमें भारत सरकार के आधिकारिक कदमों की प्रतीक्षा करना उचित होगा। ना ही यह कयास लगाए जाने चाहिए कि भारत कोई ऐसा कदम उठाएगा जो अप्रिय हो और ना ही ऐसे मंतव्य को स्थापित करना चाहिए। जहां तक मीडिया का सवाल है उनके अपनी नजरिया है उनके अपने अधिकार है इस पर कुछ कहना भी उचित नहीं है। परंतु आम भारतीय होने के नाते हम सभी भारतीयों को भारत सरकार के आधिकारिक प्रयासों को देखते रहना है।

12.7.21

परिंदे हंसते हैं उस पर...!

       उम्मीद ना थी कि हम कभी इतना एकाकी महसूस करेंगे। उसे बहुत तकलीफ हो रही थी जब उसने अपने बच्चों को बाहर पढ़ने भेजा। वह जानता था यह अब वापस नहीं आने वाले। परंतु अनिश्चितता भरे इस जीवन क्रम में बच्चों के हर फैसले को स्वीकारना उसकी नियति थी। भले ही यह शहर गांव के लिए उम्मीदों का शहर हो पर इस शहर में रहने वाला बच्चा इस शहर को पता नहीं क्या समझता है। उसे क्या मालूम था कि अब नन्हीं पाखी के पर निकल आए हैं। समझाने की तो बहुत कोशिश की परंतु पाखी के अपने अकाट्य तथ्य थे। कस्बा नुमा  शहर जिसे वह अपना शहर कहता है बच्चों के लिए सुविधा ही गांव से हटकर कुछ और नहीं। बहुत समझाया था कि  कॉलेज यूनिवर्सिटी महत्वपूर्ण नहीं होती महत्वपूर्ण होता है तुम्हारी अध्ययन शीलता। उसे अच्छी तरह से बार-बार समझाने के बाद बेटी जिद के आगे झुकना पड़ा। अपने शहर से कुछ बड़े शहर के किसी बेहतर  कॉलेज की तलाश में जाने के लिए कार में सवार होकर पत्नी और पाखी के साथ उसका जाना सुनिश्चित हो गया था। एक विचार बार-बार मन में उभर रहा था कि पता नहीं पाखी को फिर वापस आएगा या नहीं बस यह सवाल उसकी चिंता बन चुका था ।
    जब वह एक कॉलेज का जायजा ले रहा था जो काउंटर पर बैठे काउंसलर ने बताया कि हमारे कॉलेज में अभिषेक बच्चन भी आए थे। सेलिब्रिटीज का आना जाना लगा रहता है। 
अचानक उसके मुंह से निकला-" मिस्टर शर्मा आप जानते हैं आप क्या कह रहे हैं?"
  एक पल के लिए मिस्टर शर्मा शरमा गए । शर्मा जी के शरमाने की वजह यह न थी कि वे जान चुके थे कि उनने गलत जानकारी दी है । बल्कि उन्हें मेरे प्रश्न का उत्तर तुरंत नहीं मिल पा रहा था। आखिर  15000 पगार वाला काउंसलर सबकी साइकोलॉजी को क्या समझता। फिर जब उसने काउंसलर से कहा-"आप कोई प्रोडक्ट बेच रहे हैं क्या ?"
तब काउंसलर को समझ में आया कि किसी सिरफिरे से पाला पड़ गया है। फिर भी खिसियानी हंसी हंसते हुए शर्मा जी ने कहा-"सर , नहीं सर हमारे बच्चे पढ़ते भी हैं।
वह- कितने बच्चे आईएएस बने हैं और आईपीएस
शर्मा जी- सर स्टेट में बहुत गए हैं सीए बने हैं...!
     तक्षशिला वाला दौर होता तो शायद द्वारपाल ही उसे सब परिवार वापस लौटा देता। 21वीं शताब्दी में एजुकेशन बेचने वाले कुकुरमुत्ते जैसे कॉलेजों का उद्देश्य क्या होता है आप सब समझते हैं।
     वह जिसका नाम अभी तक मैंने इस कहानी में लिखा नहीं है हो सकता है कि वह आप हो सकता है कि वह मैं हूं कोई भी हो नाम आप अपनी सुविधा के हिसाब से रख लीजिए।
   वह उसकी पत्नी और बेटी वापस अपनी कार की तरफ जाने लगे एडमिशन डेस्क से उठकर शर्मा जी पीछे तक आए और उन्होंने कहा सर हमसे क्या गलती हो गई है। वह बोल पड़ा- शिक्षा कोई प्रोडक्ट नहीं है कृपया अपनी सेठ को बता देना। 
   शैक्षिक संस्थानों की स्थिति दुकानों या व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से बढ़कर नहीं है यह तो सुधि पाठक समझ गए होंगे।
      खैर अब बारी थी और कॉलेजों को समझने की। बिटिया से यही तय कर चुका था कि अगर मुझे महाविद्यालय में कोई खास बात नजर आई तो जरूर मैं तुम्हारा एडमिशन उसी कॉलेज में कराऊंगा।
   बहुत कॉलेजों को समझने की कोशिश की पर उस जड़ बुद्धि को तक्षशिला कहां मिलने वाला था। लौट लौट कर उसे अपने शहर की विद्वान प्रोफेसर्स की याद आ रही थी । पर नई पीढ़ी को कौन समझा सकता है मन में डर यह भी था कि कहीं बेटी यह आरोप ना लगाए -"कि बेटा होता तो ज़रूर भेजते..?
    एंपावरमेंट के इसी फलसफे को नजरअंदाज ना कर सका। परंतु बेहतर कॉलेज चुनना मेरी जिम्मेदारी थी।
    यह अंतिम कॉलेज था अगर पसंद आया तो वापिस जाना तय था। उसने अपनी पत्नी और बेटी को कॉलेज की कैंटीन और उसकी अवलोकन के लिए भेज दिया। और वह कैंपस में बच्चों से वर्ल्ड इकोनामिक सिस्टम पर बात करने लगा। एक बच्चे से उसने फिसकल पॉलिसी पर बात की और मन ही मन बहुत खुश हुआ जो वह चाह रहा था वह यहां मौजूद है। अब बारी थी हॉस्टल देखने की। उसके मन में वार्डन की कर्कश आवाज में जो आकर्षण पैदा किया अद्भुत था। वह जानता था इस कर्कश कठोर आवाज के पीछे एक सुरक्षा चक्र जरूर है। और फिर प्रवेश की औपचारिकताएं पूर्ण कर पाखी को उसी हॉस्पिटल में सौंप दिया गया।
                   *******
   डिग्री होते होते कैंपस सिलेक्शन और वह भी रिनाउंड फाइनेंसियल कंपनी में खुशी तो बहुत हुई परंतु वह चाहता था कि पाखी कुछ ऐसा करें कि उसका वज़ूद और बच्चों के लिए सागरदीप बने।
    मल्टीनेशनल कंपनियों का अपना एक चक्रव्यूह होता है। इनमें जाने के बाद बाहर आने का रास्ता मिलना नामुमकिन है। वह चाहता था कि पाखी कम से कम एमबीए या सीए जरूर करें। परंतु यह हो ना सका कंपनी ने आश्वासन दिया था कि हम सीए कराएंगे। फिर कंपनी की पॉलिसी बदल गई सच क्या है कंपनी जानती है ।
                   ******
लॉकडाउन के पहले दौर के बाद ऐसा लगा था कि शायद पाखी साथ में रहेगी। परंतु आप तो जानते हैं हमारे पिताजी जी रिटायर होकर वापस अपने गांव कहां जा सके वहां शेष क्या है..? पिताजी के मस्तिष्क में वो गांव है...! पर अब तो सब कुछ बदल गया अब वह गांव वैसा नहीं है जैसा उसने गर्मियों सर्दियों की छुट्टीयों है बरसों पहले देखा था। 
    गुप्ता जी के बच्चे भेजो अमेरिका में हैं लौटे नहीं क्यों लौटेंगे ...! शर्मा जी पांडे जी इन सब की बच्चों की यही स्थिति है। कस्बा नुमा शहर में रखा क्या है। वही चेहरे ना अब तो और झुर्रीदार हो गए होंगे । मोहल्ले के बहुतेरे लोग वही विंटेज टाइप की जिंदगी जी रहे हैं। ऐसे शहरों में जाने की जरूरत क्या। गांव से आने वाला कस्बे में मुस्कुराता है उसे कस्बा पसंद आ जाता है कस्बे वाला बड़े शहर को नहीं छोड़ता बड़े शहर वाला मेट्रोपॉलिटन को नहीं छोड़ता और मेट्रो वाला अगर गलती से बच्चे यूएस कनाडा पहुंच गया तो फिर आप मुंबई वाली माता जी की तरह इंतजार करते रह जाएंगे जिसे मीडिया ने बहुत ही स्पेस दिया था हां कंकाल होने पर । 
आजकल उसने आकाश की ओर निहारना बंद कर दिया है। वह पंछी बातें करते अपने अपने ठिकानों पर लौटते हैं जानते हो क्या बातें करते हैं शायद किसी को नहीं मालूम कुछ व्यक्ति ने सुनी है हां पाखी के पापा ने कई बार सुनी है ... . एक पंछी,  पाखी के पापा को देखकर न केवल हंसते हैं आपस में यह भी कहते हैं .. ."हां हम इन लोगों से बहुत अच्छे हैं।"
    पाखी के चिंतन में खोया अचानक खुद फोन लगाता है...!
कैसी हो बेटा.. ?
एकदम बढ़िया थोड़ा व्यस्तता चल रही है कंपनी का काम बहुत है...!
वर्क फ्रॉम होम की फैसिलिटी है तो फिर तुम आ सकती हो...?
"मुश्किल है पापा, आप कुछ के अनुकूल वातावरण मुहैया नहीं करा पाएंगे...!"
      अपराध बोध में वह अब तक सदमे से उबर नहीं पा रहा और ना कभी उबर पाएगा।
     

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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