परिंदे हंसते हैं उस पर...!

       उम्मीद ना थी कि हम कभी इतना एकाकी महसूस करेंगे। उसे बहुत तकलीफ हो रही थी जब उसने अपने बच्चों को बाहर पढ़ने भेजा। वह जानता था यह अब वापस नहीं आने वाले। परंतु अनिश्चितता भरे इस जीवन क्रम में बच्चों के हर फैसले को स्वीकारना उसकी नियति थी। भले ही यह शहर गांव के लिए उम्मीदों का शहर हो पर इस शहर में रहने वाला बच्चा इस शहर को पता नहीं क्या समझता है। उसे क्या मालूम था कि अब नन्हीं पाखी के पर निकल आए हैं। समझाने की तो बहुत कोशिश की परंतु पाखी के अपने अकाट्य तथ्य थे। कस्बा नुमा  शहर जिसे वह अपना शहर कहता है बच्चों के लिए सुविधा ही गांव से हटकर कुछ और नहीं। बहुत समझाया था कि  कॉलेज यूनिवर्सिटी महत्वपूर्ण नहीं होती महत्वपूर्ण होता है तुम्हारी अध्ययन शीलता। उसे अच्छी तरह से बार-बार समझाने के बाद बेटी जिद के आगे झुकना पड़ा। अपने शहर से कुछ बड़े शहर के किसी बेहतर  कॉलेज की तलाश में जाने के लिए कार में सवार होकर पत्नी और पाखी के साथ उसका जाना सुनिश्चित हो गया था। एक विचार बार-बार मन में उभर रहा था कि पता नहीं पाखी को फिर वापस आएगा या नहीं बस यह सवाल उसकी चिंता बन चुका था ।
    जब वह एक कॉलेज का जायजा ले रहा था जो काउंटर पर बैठे काउंसलर ने बताया कि हमारे कॉलेज में अभिषेक बच्चन भी आए थे। सेलिब्रिटीज का आना जाना लगा रहता है। 
अचानक उसके मुंह से निकला-" मिस्टर शर्मा आप जानते हैं आप क्या कह रहे हैं?"
  एक पल के लिए मिस्टर शर्मा शरमा गए । शर्मा जी के शरमाने की वजह यह न थी कि वे जान चुके थे कि उनने गलत जानकारी दी है । बल्कि उन्हें मेरे प्रश्न का उत्तर तुरंत नहीं मिल पा रहा था। आखिर  15000 पगार वाला काउंसलर सबकी साइकोलॉजी को क्या समझता। फिर जब उसने काउंसलर से कहा-"आप कोई प्रोडक्ट बेच रहे हैं क्या ?"
तब काउंसलर को समझ में आया कि किसी सिरफिरे से पाला पड़ गया है। फिर भी खिसियानी हंसी हंसते हुए शर्मा जी ने कहा-"सर , नहीं सर हमारे बच्चे पढ़ते भी हैं।
वह- कितने बच्चे आईएएस बने हैं और आईपीएस
शर्मा जी- सर स्टेट में बहुत गए हैं सीए बने हैं...!
     तक्षशिला वाला दौर होता तो शायद द्वारपाल ही उसे सब परिवार वापस लौटा देता। 21वीं शताब्दी में एजुकेशन बेचने वाले कुकुरमुत्ते जैसे कॉलेजों का उद्देश्य क्या होता है आप सब समझते हैं।
     वह जिसका नाम अभी तक मैंने इस कहानी में लिखा नहीं है हो सकता है कि वह आप हो सकता है कि वह मैं हूं कोई भी हो नाम आप अपनी सुविधा के हिसाब से रख लीजिए।
   वह उसकी पत्नी और बेटी वापस अपनी कार की तरफ जाने लगे एडमिशन डेस्क से उठकर शर्मा जी पीछे तक आए और उन्होंने कहा सर हमसे क्या गलती हो गई है। वह बोल पड़ा- शिक्षा कोई प्रोडक्ट नहीं है कृपया अपनी सेठ को बता देना। 
   शैक्षिक संस्थानों की स्थिति दुकानों या व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से बढ़कर नहीं है यह तो सुधि पाठक समझ गए होंगे।
      खैर अब बारी थी और कॉलेजों को समझने की। बिटिया से यही तय कर चुका था कि अगर मुझे महाविद्यालय में कोई खास बात नजर आई तो जरूर मैं तुम्हारा एडमिशन उसी कॉलेज में कराऊंगा।
   बहुत कॉलेजों को समझने की कोशिश की पर उस जड़ बुद्धि को तक्षशिला कहां मिलने वाला था। लौट लौट कर उसे अपने शहर की विद्वान प्रोफेसर्स की याद आ रही थी । पर नई पीढ़ी को कौन समझा सकता है मन में डर यह भी था कि कहीं बेटी यह आरोप ना लगाए -"कि बेटा होता तो ज़रूर भेजते..?
    एंपावरमेंट के इसी फलसफे को नजरअंदाज ना कर सका। परंतु बेहतर कॉलेज चुनना मेरी जिम्मेदारी थी।
    यह अंतिम कॉलेज था अगर पसंद आया तो वापिस जाना तय था। उसने अपनी पत्नी और बेटी को कॉलेज की कैंटीन और उसकी अवलोकन के लिए भेज दिया। और वह कैंपस में बच्चों से वर्ल्ड इकोनामिक सिस्टम पर बात करने लगा। एक बच्चे से उसने फिसकल पॉलिसी पर बात की और मन ही मन बहुत खुश हुआ जो वह चाह रहा था वह यहां मौजूद है। अब बारी थी हॉस्टल देखने की। उसके मन में वार्डन की कर्कश आवाज में जो आकर्षण पैदा किया अद्भुत था। वह जानता था इस कर्कश कठोर आवाज के पीछे एक सुरक्षा चक्र जरूर है। और फिर प्रवेश की औपचारिकताएं पूर्ण कर पाखी को उसी हॉस्पिटल में सौंप दिया गया।
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   डिग्री होते होते कैंपस सिलेक्शन और वह भी रिनाउंड फाइनेंसियल कंपनी में खुशी तो बहुत हुई परंतु वह चाहता था कि पाखी कुछ ऐसा करें कि उसका वज़ूद और बच्चों के लिए सागरदीप बने।
    मल्टीनेशनल कंपनियों का अपना एक चक्रव्यूह होता है। इनमें जाने के बाद बाहर आने का रास्ता मिलना नामुमकिन है। वह चाहता था कि पाखी कम से कम एमबीए या सीए जरूर करें। परंतु यह हो ना सका कंपनी ने आश्वासन दिया था कि हम सीए कराएंगे। फिर कंपनी की पॉलिसी बदल गई सच क्या है कंपनी जानती है ।
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लॉकडाउन के पहले दौर के बाद ऐसा लगा था कि शायद पाखी साथ में रहेगी। परंतु आप तो जानते हैं हमारे पिताजी जी रिटायर होकर वापस अपने गांव कहां जा सके वहां शेष क्या है..? पिताजी के मस्तिष्क में वो गांव है...! पर अब तो सब कुछ बदल गया अब वह गांव वैसा नहीं है जैसा उसने गर्मियों सर्दियों की छुट्टीयों है बरसों पहले देखा था। 
    गुप्ता जी के बच्चे भेजो अमेरिका में हैं लौटे नहीं क्यों लौटेंगे ...! शर्मा जी पांडे जी इन सब की बच्चों की यही स्थिति है। कस्बा नुमा शहर में रखा क्या है। वही चेहरे ना अब तो और झुर्रीदार हो गए होंगे । मोहल्ले के बहुतेरे लोग वही विंटेज टाइप की जिंदगी जी रहे हैं। ऐसे शहरों में जाने की जरूरत क्या। गांव से आने वाला कस्बे में मुस्कुराता है उसे कस्बा पसंद आ जाता है कस्बे वाला बड़े शहर को नहीं छोड़ता बड़े शहर वाला मेट्रोपॉलिटन को नहीं छोड़ता और मेट्रो वाला अगर गलती से बच्चे यूएस कनाडा पहुंच गया तो फिर आप मुंबई वाली माता जी की तरह इंतजार करते रह जाएंगे जिसे मीडिया ने बहुत ही स्पेस दिया था हां कंकाल होने पर । 
आजकल उसने आकाश की ओर निहारना बंद कर दिया है। वह पंछी बातें करते अपने अपने ठिकानों पर लौटते हैं जानते हो क्या बातें करते हैं शायद किसी को नहीं मालूम कुछ व्यक्ति ने सुनी है हां पाखी के पापा ने कई बार सुनी है ... . एक पंछी,  पाखी के पापा को देखकर न केवल हंसते हैं आपस में यह भी कहते हैं .. ."हां हम इन लोगों से बहुत अच्छे हैं।"
    पाखी के चिंतन में खोया अचानक खुद फोन लगाता है...!
कैसी हो बेटा.. ?
एकदम बढ़िया थोड़ा व्यस्तता चल रही है कंपनी का काम बहुत है...!
वर्क फ्रॉम होम की फैसिलिटी है तो फिर तुम आ सकती हो...?
"मुश्किल है पापा, आप कुछ के अनुकूल वातावरण मुहैया नहीं करा पाएंगे...!"
      अपराध बोध में वह अब तक सदमे से उबर नहीं पा रहा और ना कभी उबर पाएगा।
     

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