10.12.19

बलात्कार' जैसा शब्द हमेशा के लिए गायब हो सकता है : शरद कोकास

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*समाज के शब्दकोष से 'बलात्कार'  जैसा शब्द हमेशा के लिए गायब हो सकता है -कुछ व्यवहारिक सुझाव दे रहे हैं शरद कोकास*

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पिछले कुछ दिनों से हैदराबाद की घटना पर सोशल मीडिया में विभिन्न तबके के लोगों के , स्त्री पुरुषों के , बुद्धिजीवियों के विभिन्न तरह के विचार  पढ़ने को मिल रहे हैं । इनमें कुछ आक्रोश से भरे हैं , कुछ भावनात्मक हैं  , कुछ में स्त्रियों के लिए अनेक टिप्स हैं , सुरक्षा और आत्मरक्षा के लिये सुझाव हैं , कानूनी सहायता की बातें हैं , अब तक हो चुकी कार्यवाही की रपट है , तरह तरह के आँकड़े हैं , अरब देशों के कानून की दुहाई है आदि आदि ।

मुझे लगता है ऐसी घटनाएं जब भी घटित होती हैं और उन अनेक घटनाओं में से जो घटनाएं  सुर्खियों में आ जाती हैं उन पर चर्चा शुरू हो जाती है । फिर कुछ समय बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है । ऐसा करते हुए बरस बीत जाते हैं ।  अभी सोलह दिसम्बर की तारीख आनेवाली है । निर्भया को सात साल हो जायेंगे ।

समय ऐसा ही बीतता जायेगा ।  एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी आ जायेगी । हम विभिन्न उपाय करते रहेंगे और उम्मीद करते रहेंगे कि समाज मे अब सकारात्मक परिवर्तन होगा ।

जब भी मैं इस दिशा में सोचता हूँ तो मुझे लगता है क्या हम ऐसा कुछ नहीं कर सकते कि भले ही देर लग जाये लेकिन एक या दो पीढ़ी के बाद स्थायी रूप से ऐसा कुछ परिवर्तन हो ?

कुछ उपाय मेरे मन में आये हैं और मुझे लगता है कि इन समस्याओं और उनके समाधान को लेकर एक पीढ़ी की यदि अच्छी तरह से ब्रेन ट्रेनिंग की जाए तो सम्भव है हम समाज के सामूहिक अवचेतन का परिष्कार कर सके ।

सामान्यतः एक पीढ़ी हम पन्द्रह वर्ष की मानते हैं । यदि हम इस दिशा में अभी से सक्रिय हो जायें तो क्या इस शिक्षा के माध्यम से  पन्द्रह या बीस साल बाद बलात्कार जैसा शब्द समाज के शब्दकोश से गायब हो सकता है ?

इस दिशा में सोचते हुए जो विचार मेरे मन मे आये हैं उन्हें आपके सामने रख रहा हूँ । आपकी इनसे असहमति भी हो सकती है किंतु विचार करने में क्या हर्ज है ।

यह सम्भव हो सकता है अगर हम सिर्फ इतना करें कि...

1.हम अपने बेटों को जन्म से ही *ब्रेन ट्रेनिंग* के माध्यम से यह बताएँ कि उनकी और उनकी बहनों या अन्य लड़कियों की देह में केवल जननांग का अंतर है अन्यथा वे हर बात में बराबर हैं । उन्हें जननांगों के बारे में बचपन से समझायें कि उनका उपयोग क्या है । अन्य प्राणियों की देह और मनुष्य की देह में क्या अंतर है । देह की संरचना बताते हुए बेटों को बतायें कि बेटियों को भी शरीर मे उतना ही कष्ट होता है , उतनी ही बीमारियां होती हैं । जबरन छूने से , च्यूंटी काटने से , ज़ोर से पकड़ने से, मारने से शरीर मे उतना ही दर्द होता है । चोट लगने से वैसा ही घाव होता है। अनुभूति के स्तर पर मस्तिष्क की भूमिका के बारे में उन्हें बतायें ।

2.शरीर में हार्मोन्स की भूमिका  हम बच्चों को विस्तार से नहीं समझा सकते किंतु छुपाए जाने वाले विषयों पर 'सहज होकर' तो बात कर सकते हैं ? हम उन्हें जननांगों के बारे में बताते हुए यह तो बता सकते हैं कि सजीव होने के कारण उनमें कुछ प्राकृतिक क्रियाएं एक सी घटित होती हैं यथा मलमूत्र विसर्जन , पोषण , चयापचय, प्रजनन , जन्म और मृत्यु ।

3.यह भी बतायें कि बेटों की तरह बेटियों का भी हर बात में बराबरी का हक़ है पढ़ने लिखने में, खाने पीने में, खेलने कूदने में , घर मे लाई वस्तुओं का उपभोग करने में , प्यार और दुलार पाने में भी । देह और मस्तिष्क के स्तर पर दोनों बराबर है । बच्चों के हर सवाल का जवाब दें ।

*4.उनसे झूठ नहीं बोलें कि उन्हें अस्पताल से लेकर आये हैं या कोई परी देकर गई है। उन्हें बतायें कि वे मां के पेट से आये  हैं । मां के पेट में कैसे आये यह भी बतायें और किस तरह बाहर आये यह भी । इसमें शर्म न करें यह कोई गंदी बात नहीं है । केवल इतनी सी बात समझाने से उनका जीवन बदल सकता है।*

5.जितने काम लड़कियों को सिखाते हैं उतने ही काम लड़कों को सिखाएं मसलन खाना पकाना , बर्तन कपड़े धोना, झाड़ू पोछा करना, घर साफ करना, कपड़े सीना, गाड़ी चलाना , इत्यादि ।

*6.और सबसे महत्वपूर्ण बात कि समझ आते ही उन्हें यौनिकता के बारे में बतायें। उन्हें बतायें कि स्त्री को मासिक धर्म क्यों होता है । स्वप्नदोष क्या होता है, हस्तमैथुन क्या होता है। यह प्राकृतिक आनन्द यदि उन्हें मिलता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है । लेकिन जबरन बलात्कार में बुराई है ।उन्हें प्रजनन शास्त्र के बारे में बतायें। उन्हें बतायें कि यद्यपि सेक्स मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है लेकिन जबरिया सेक्स बलात्कार कहलाता है चाहे वह पत्नी के साथ क्यों न हो । उन्हें बतायें कि यौन प्रताड़ना किसे कहते हैं । उन्हें बतायें कि यौन सुख की अनुभूति स्त्री पुरुष में अलग अलग होती है और शरीर का मन से क्या सम्बन्ध होता है । यह भी कि अपराध किसे कहते हैं।*

(माफ कीजियेगा अगर आप इन बातों में गंदगी देख रहे हों तो । यह बातें गंदी नहीं है । यदि उचित माध्यम से उन्हें यह बातें नहीं बताई जाएंगी तो बच्चे पोर्न फिल्म और साहित्य का सहारा लेंगे और 'स्वप्न दोष का इलाज' ' लिंग के टेढ़ेपन का इलाज' ' 'सफेद पानी का इलाज ' जैसे ' गुप्त ज्ञान' को दीवारों पर इश्तेहार के रूप में लिखने वाले आपके बच्चों का शोषण करेंगे । वैसे इनके लिये पुस्तकें भी उपलब्ध हैं । जैसे एकलव्य प्रकाशन भोपाल की 'बिटिया करे सवाल' जिसमे प्रजनन व मासिक धर्म सम्बन्धी जानकारी है।)

*ध्यान रहे यह बातें यौन शिक्षा या सेक्स एजुकेशन से बिल्कुल अलग हैं हम उन्हें मानसिक तौर पर तैयार करते हुए उन्हें स्त्री का सम्मान करना सिखा रहे हैं।*

7.मुझे विश्वास है बेहतर ढंग से जब उनके मां बाप , शिक्षक , प्रशिक्षक आदि द्वारा हीउन्हें यह बातें बताई जाएंगी तो वे अपनी पिछली पीढ़ी से अधिक समझदार होंगे । जब वे अच्छी तरह इन बातों को समझ लें उन्हें यह भी बतायें कि वे उनसे पहले की पीढ़ी के लोगों को यानि अपने पिताओं, चाचाओं, मामाओं, फुफ़ाओं और नाना दादाओं को भी यह बात बतायें क्योंकि 15 साल बाद भी पहले की पीढ़ी तो 30 , 45 या 60 साल की रहेगी । हो सकता है यह नई पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से कहे कि *आपने स्त्री का जितना अपमान कर लिया सो कर लिया अब करेंगे तो आपको सरे आम जुतियाया जाएगा ।*

*इस प्रोग्राम की उस वर्ग में सबसे अधिक ज़रूरत होगी जिसे हम निम्न तबका कहते हैं*

8. हो सकता है आपको यह पंद्रह साल का ब्रेन ट्रेनिंग वाला कार्यक्रम पसंद न आये तो ठीक है । इसे भी जारी रखिये  और चाहें तो इन पन्द्रह सालों में बलात्कारियों को सजा देना हो , लम्बे मुकदमे चलाने हो , मोमबत्तियां जलानी हो , धर्म के नाम पर अपराध को उचित ठहराना हो , फेसबुक से लेकर संसद तक जितनी बहस करनी हो , व्यवस्था परिवर्तन के लिए आंदोलन करना हो , स्त्रियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देना हो , यानि जो करना हो करते रहें । विरोध भी बदस्तूर जारी रहे क्योंकि अंततः हमारा उद्देश्य एक बेहतर समता मूलक समाज की स्थापना ही है ।

*शरद कोकास*

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8.12.19

Revenge : never justice my reaction on Chief Justice of India statement


*भारत के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी पर त्वरित टिप्पणी*
बदला कभी भी न्याय नहीं हो सकता  एकदम सटीक बात कही है  माननीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने ।
     सी जे आई का यह बयान आज यानी दिनांक 8 दिसंबर 2020 को सुर्खियों में है । यह अलग बात है कि लगभग इतने ही दिन यानी 8 दिन शेष है निर्भया कांड के 7 वर्ष पूर्ण होने के और अब तक अपराधी भारतीय जनता के टैक्स का खाना खा खा कर जिंदा है ।
     भारतीय सामाजिक एवं  जीवन दर्शन भी यही कहता है । सांस्कृतिक विकास के अवरुद्ध हो जाने से सामाजिक विसंगतियां पैदा होती हैं । इस पर किसी किसी की भी असहमति नहीं है ।
  निश्चित तौर पर यह बयान हैदराबाद एनकाउंटर के बाद आया है। माननीय मुख्य न्यायाधीश जी के प्रति पूरा सम्मान है  उनका एक एक शब्द  हम सबके लिए  आदर्श वाक्य  के रूप में  स्वीकार्य है  ।
मेरी व्यक्तिगत राय है कि :- हैदराबाद पुलिस का एक्शन  बदला नहीं है  उसे  रिवेंज की श्रेणी में  रखा नहीं जा सकता  ऐसा मैं सोचता हूं और  यह मेरी व्यक्तिगत राय है किसी की भी सहमति असहमति  इससे यह राय नहीं दी गई है । यह एक सामान्य सी बात है कि पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह निर्णय करें । पुलिस भी इस बात से सहमत रहती है ।
जहां तक हैदराबाद में हुए एनकाउंटर की घटना को परिभाषित करने का मुद्दा है इस घटना को रिवेंज या बदला नहीं कहा जा सकता । बदला दो पक्षों के बीच में हुई क्रिया और प्रतिक्रिया से उपजी एक घटना है जिसमें उभय पक्षों की व्यक्तिगत हित के लिए संघर्ष की स्थिति पैदा होती है ।
       यहां विक्टिम और क्रिमिनल के बीच पुलिस, मीडिया, व्यवस्था, समाज  तीसरे पक्ष के रूप में दर्शक हैं । इस दृष्टिकोण से सोचा जाए तो आप स्वयं समझदार हैं कि मामला क्या है ।हम सबसे विद्वान हैं हमारी न्याय पालिका, हम ऐसा मानते हैं । न्यायपालिका मौजूदा कानूनों के अंतर्गत निर्णय लेती है । और यही एक प्रजातांत्रिक स्तंभ का दायित्व है परंतु यदि न्याय में विलंब अथवा देर हो तो उससे अगर कोई उत्प्रेरण की स्थिति बने उसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता परंतु पुलिस प्रशासन को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है यहां पुलिस कानून को अपने हाथ में लेती नजर नहीं आ रही ।
अगर ऐसा लग रहा है कि बेहद एवं आक्रोश के वशीभूत होकर ऐसा कोई क़दम उठा ले कि संसद से सड़क तक जब चारों ओर उन्हें मृत्युदंड देने का अनु गुंजन हो रहा हो ऐसी स्थिति में कानून जो न्याय दिलाने की गारंटी तो दे रहा है लेकिन विलंब के बारे में मॉल है इस पर सद्गुरु भी बहुत स्पष्ट है . कोई भी विचारशील व्यक्ति असहमति दे ही नहीं सकता ना कोई कभी न साहित्यकार क्योंकि रचना शील व्यक्ति सृजक होता है विध्वंसक नहीं पर अगर उसे ऐसा लगता है जैसा सतगुरु ने कहा कि यहां न्याय पाने में या न्याय मिलने में इतना विलंब होता है जिसे हम निर्मम विलंब भी कह सकते हैं.... तो कानून कमजोर नजर आने लगता है इस लिंक पर जाइए और देखिए सतगुरु ने क्या कहा...?
   यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि बलात्कार और फिर बर्बरता के साथ हत्या या टॉर्चर कर देना पुराने कानूनों से ही परिभाषित है इसे जघन्य से जघन्यतम अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए इसे देशद्रोह के अपराध के समकक्ष रखकर न्यूनतम सुनवाई के साथ शीघ्र और अधिकतम दंड की श्रेणी में रख देना चाहिए कम से कम विधायिका यह दायित्व निर्वहन कर सकती है मीडिया भी चाहे परंपरागत मीडिया हो या सोशल मीडिया इस मुद्दे को इस तरह से उठाते हुए बदलाव की मांग कर सकती है यह हमारा प्रजातांत्रिक अधिकार है । यहां माननीय मुख्य न्यायाधीश की अभिव्यक्ति को सम्मान देने के लिए कम से कम इतना तो किया जा सकता है कि कानूनों में शीघ्र और समुचित बदलाव लाने की जरूरत पर तेज़ी से काम हो  ।
 *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

7.12.19

दरिन्दों का ख़ात्मा सिर्फ़ गन से होगा : मैत्रेयी पुष्पा

वरिष्ठ महिला कहानीकार साहित्यकार मैत्रेई पुष्पा जी ने अपनी फेसबुक वॉल पर निम्नानुसार पंक्तियां लिखकर हैदराबाद पुलिस का हौसला बढ़ाया है
*न भाषण से होगा न अनशन से होगा*
*दरिन्दों का ख़ात्मा सिर्फ़ गन से होगा
जब कभी साहित्यकार विचारक चिंतक बेचैन हो जाते हैं तब ऐसा लिखते हैं जैसा आदरणीय मैत्रेई पुष्पा ने लिखा है .
मैत्रेई पुष्पा जी उतनी ही संवेदनशील है जितना बाकी सृजन करता होते हैं । हम कभी नहीं चाहते कि कोई मारा जाए परंतु बात पर हम सब एकमत हैं अगर रेप किया है भारतीय अस्मिता पर किसी भी तरह की चोट करने की कोशिश की तो फैसला गन से ही होना चाहिए ।
हैदराबाद पुलिस ने जो किया उससे बहुत सारे संदेश निकल कर जा रहे हैं व्यवस्था जनतंत्र में जनता की आवाज को सुन पा रही है अब उन्नाव की बारी है । हर उस मानव अधिकार की झंडा बरदारी करने वालों को समझ में आना चाहिए की राष्ट्रीय हितों और महिलाओं के ईश्वर दत्त अधिकारों के हनन से बड़ा कोई अधिकार नहीं है और अगर अब कोई भी आयातित विचारधारा पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध करेगा तो बेशक एक्सपोज हो जाएगा जिसे भी बोलना है वह पुलिस के इस कदम को सही बताए तो बोले वरना मुंह में कपड़ा बांधकर चुपचाप रहे । हम साहित्यकार बिल्कुल हिंसा पसंद नहीं करते इसका यह आशय नहीं है कि किसी के अधिकार का अतिक्रमण करने वाले को जिंदा रहने का हक भी देते हैं .
महायोगी कृष्ण श्री कृष्ण ने महाभारत की अनुमति दी थी । जरूरत होने पर शस्त्र उठाना ही बुद्धिमत्ता है भारतीय दर्शन यह कहता है और इसे अस्वीकार करना मूर्खता ही है ।
उन्नाव कठुआ जबलपुर भोपाल हबीबगंज जैसी घटनाएं सामने आ भी जा रहे हैं मीडिया भी परेशान है सोशल मीडिया पर उन्मुक्त आवाजें उठती जा रहे हैं 7 वर्षों से इन आवाजों को सुनने वाला ऐसा लगता था कि कोई नहीं । नारी हिंसा के खिलाफ अगर यह कदम उठाया तो सिर्फ वॉरियर्स ने सोशल वारियर्स ने बेशक एक कदम कई सारे रास्ते निर्धारित करेगा जहां संदेश जाना था वहां पहुंच भी गया है ।
समाज को भी समझ लेना चाहिए कि अपनी पुरुष संतानों को सम्मान करना सिखाए । समाज को चाहिए कि अगर घर का कोई बच्चा इस तरह के कार्यों में संलग्न है तो उसे प्रताड़ना देने से किसी के मानव अधिकार का हनन नहीं होता आखिर विक्टिम समाज यानि महिलाओं का बेटियों का भी तो अधिकार है, कश्मीर में जिस तरह से आम लोगों मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ था उसके जवाब में 370 का हट जाना बहुत सराहनीय कदम था ठीक उसी तरह महिलाओं के खिलाफ बेटियों के खिलाफ अत्याचार करने वालों के साथ अगर एनकाउंटर कर दिया तो कोई बुराई नहीं है । आधी रात को खुल जाने वाली अदालतों में खर्राटे मारती हुई फाइलिंग बरसों धूल की चादर ओढ़तीं रहें तो जनता अगर कोई निर्णय लेती है तो गलत क्या है . टनों मॉम पिघलने के बाद भी लाखों पढ़ने लिखे जाने के बाद भी अगर व्यवस्था दंडित ना कर सके तो यह स्थिति आनी ही थी ।
यहां समाज को भी समझना होगा कि भारत में अब यह नहीं चलेगा लिहाजा
अभिभावक भी संभल जाए और समझ जाएं कि उन्हें अपने पुरुष संतानों को क्या सिखाना है और अगर आप ना समझ पाए तो अपने बुजुर्गों की गोद में उन्हें अवश्य भेजें कम से कम उनके पास वक्त होगा बच्चों को संस्कारित करने के लिए । अगर माता-पिता यह नहीं कर सकते तो उन्हें भी माता पिता के पद पर रहने का कोई हक नहीं छोड़ देना चाहिए उन्हें अपने इस गरिमामय पद ।
अपने जीवन काल में आपने भी देखे होंगे बदतमीज लोगों को जो सामने से गुजरती हुई महिला को लगभग खा जाने वाली निगाहों से देखते हैं ।
मुझे मेरी पत्नी एक किस्सा सुनाया करती है ,,,,, वे 89-90 में वे अपने पिता के साथ जो वयोवृद्ध थे राज्य सरकार के राजस्व विभाग में अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए थे ट्रेन से जबलपुर से हरदा जा रहे थे । पिपरिया आते-आते तक शोहदों ने बुजुर्ग पिता से यानी मेरे ससुर जी से अभद्र हरकत शुरू कर दी . और फिर बागरा तवा के टनल में अभद्रता की हदें पार करते हुए अभद्र वार्तालाप भी करने लगे । पत्नी को यह बात नागवार गुजरी और उसने अपने पिता का छाता लेकर उन पर आक्रमण कर दिया । ऐसा नहीं था कि ट्रेन में पुलिस वाला नहीं था पुलिस वाला था एक नहीं दो पुलिस वाले थे एक गेट पर खड़ा और दूसरा सो रहा था । मेरी पत्नी ने गेट पर खड़े पुलिस वाले का डंडा छीना और उन लड़कों पर आक्रमण शुरू कर दिया अब तो भी अगली स्टेशन गुर्रा फटाफट कोच से बाहर हो गए । यह उस दौर की कहानी है जब महिलाओं के लिए प्रतिबंध आम बात थी । पर अब स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं परंतु समाज का रवैया वैसा ही है संस्कार ही ऐसा नहीं है कि से निचले स्तर के लोग ही इस तरह का व्यवहार करते हैं । ऐसे व्यवहारों के लिए संभ्रांत परिवार की बिगड़ैल औलादे यहां तक कि प्रौढ़ एवं बुजुर्ग जो संस्कार हीन होते हैं यह सब करते हुए आपको नजर आ जाएंगे । विद्यालयों महाविद्यालयों सरकारी संस्थाओं गैर सरकारी इंस्टीट्यूशंस में कुल मिलाकर कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां आज भी महिला को सुरक्षित होने का दावा किया जा सकता है । मध्य रात्रि को कोर्ट खुलवाने वाले ट्विटर पर फेसबुक पर अथवा अन्य किसी सोशल मीडिया पर अपनी बात कह कर यश अर्जित करने वाले माया नगरी के लोग भी कम नहीं है । इसकी मूल वजह यह है कि हम अपनी सांस्कृतिक नैतिकता को बलाए तक रख देते हैं । पोर्न फिल्में देखना, वर्जनाओं के विरुद्ध अपने आप को क्रांतिकारी सिद्ध करने की कोशिश करने वाले लोग अपनी संतानों को ऐसे कोई संस्कार नहीं दे पा रहे हैं जो भारतीय परिवेश के अनुकूल हों ।
शिवाजी की कहानी याद होगी वारियर शिवाजी के सैनिक जब लूट का माल लेकर दरबार में दाखिल हुए तो उन्होंने एक डोली में एक अनिद्य सुंदर स्त्री को भी शिवाजी के समक्ष प्रस्तुत किया । शिवाजी ने कहा वाह कितनी सुंदर हो बिल्कुल मेरी मां की तरह सैनिकों को काटो तो खून ना था ।
यह थे तब के संस्कार पर अब अब हम संस्कृति संस्कार की बात करने वालों को मूर्ख समझते हैं परिणाम स्वरूप सामाजिक विद्रूपता और हैदराबाद उन्नाव कठुआ जैसी स्थितियां सामने आती हैं । हैदराबाद पुलिस ने जो किया अगर मानव अधिकार आयोग अथवा ऐसे कोई संगठन या विचारधारा वाले लोग इस पर कोई भी आपत्ति उठाते हैं तो देश के लिए शिकारियों नहीं भी हो सकता होगा । हां मैं सब से कहूंगा कि अनुशासन बना कि रखें आपकी आवाज बहुत दूर तक जा चुकी है बस अब थोड़ा वक्त व्यवस्था को भी दिया जाए और ज्यादा वक्त खुद को सुधारने में खपा दिया जाए . 

4.12.19

वेदानां-सामवेदोSस्मि

चित्र : गूगल से साभार 

गीता में सामवेद की व्याख्या करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अभिव्यक्त किया है कि वेदों में मैं सामवेद हूं ।
ईश्वरीय अनुभूति के लिए अगर वेद है ज्ञान तो साम है गान को महर्षियों ने अभिव्यक्त किया है ।
परंतु साम क्या है ..?
जब ऋषियों ने यह महसूस किया कि केवल मंत्र को सहजता से पढ़ना क्या चाहो उसे विस्तार देना आसान नहीं है तब उन्होंने यह महसूस किया कि हर ऋचाओं में प्राकृतिक रूप से लयात्मकता मौजूद है तब उन्होंने रिचा और मंत्र को छांदस मानते हुए काव्य की संज्ञा दी । संस्कृत भाषा ही छांदस भाषा है । इसे आप सब समझ पा रहे होंगे अगर आप ने ईश्वर की आराधना के लिए संस्कृत में लिखे गए स्त्रोतों का गायन एवं तथा वेदों के मंत्रों का जाप किया हो तो आप इसे सहजता महसूस कर पाते होंगे । यदि नहीं तो एक बार ऐसा महसूस करके देखिए यह । यह कोई नई बात नहीं है जो मैं बता रहा हूं यह सब कुछ लिखा हुआ है विभिन्न ग्रंथों में पुस्तकों में आलेखों में बस आपको उस तक पहुंचना है किताबों में ना भी पढ़ें तो आप इसे महसूस कर सकते हैं ।
आपने संगीत रत्नाकर में ध्वनि शक्तियों के बारे में पढ़ा होगा । ध्वनि की 22 शक्तियां होती है । इन्हें षड्ज में सन्निहित या समावेशित किया गया है ।
इस बिंदु पर मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना है संगीत के विद्यार्थी इसे बेहतर जानते हैं ।
2 अक्टूबर 2014 की घटना मुझे बेहतर तरीके से याद है । उस दिन शासकीय अवकाश था परंतु गांधी जयंती मनाने के लिए मैंने बच्चों को खासतौर पर संगीत के बच्चों को बुलाया और उनसे जाना कि वह किस तरह से अभ्यास करते हैं साथ ही उस दिन हमने महात्मा गांधी का स्मरण भी किया उनके प्रिय भजनों का गायन भी बच्चों से सुना । उस दिन बात करते-करते अचानक मन में एक विदुषी स्वर्गीय कमला जैन का स्मरण हो आया बात 1975 या 76 की है .... हिंदी दिवस के अवसर पर एक काव्य गोष्ठी रेल विभाग द्वारा आयोजित की गई थी जिसमें रेल विभाग में पदस्थ स्टेशन मास्टर के पुत्र होने के कारण मुझे काव्य पाठ के लिए मुझे भी आमंत्रण मिला था । विदुषी श्रीमती कमला जैन ने अपने भाषण में ओमकार के महत्व को रेखांकित करते हुए उसके वैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव का विश्लेषण किया था । अतः मैंने प्रयोग के तौर पर बच्चों से ओंकार के घोष की अपेक्षा की थी । तब तक मैं यह एहसास कर चुका था कि वास्तव में ओम के सस्वर अभ्यास ध्वनि में आकर्षण पैदा होता है क्योंकि यह अभ्यास मैंने कर रखा था । परिणाम स्वरूप यह अभ्यास बच्चों की शिक्षिका डॉ शिप्रा सुल्लेरे ने अपनी कक्षाओं में भी सप्तक में कराया जिसका परिणाम यह है कि अब मेरे संस्थान के बच्चे बाहर जब प्रस्तुतियां देते हैं तो फीडबैक के तौर पर मुझे यह जानकारी मिलती है आपके बच्चे काफी सुरीले हैं ।
यह सत्य है कि- विश्व की समस्त सभ्यताओं से पुरानी भारतीय सनातनी सभ्यता में सामवेद जो अन्य वेदों पृथक ईश्वर आराधना तथा ईश्वर को महसूस करने का क्रिएटिव अर्थात सृजनात्मक रूट चार्ट या रोड मैप है ।
विद्वान यह मानते हैं कि संगीत मस्तिष्क, मेधा, स्वास्थ्य, चिंतन, व्यवहार, सभी को रेगुलेट करता है नियंत्रण भी रखता है । संगीत का अभ्यास हमारे डीएनए में भी परिवर्तन लाता है । और अंत में सर्वे जना सुखिनो भवंतु वेद वाक्य को साकार भी कर देता है ।
नाट्य, चित्र निर्माण, गीत समस्त ललित कलाओं पर अगर आप ध्यान दें तो यह सब शब्द रंग के बेहतर संयोजन का उदाहरण है यह इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अगर किसी भी क्रिएशन में उचित क्रम बाध्यता नहीं होती तो निश्चित तौर पर वह प्रभावी नहीं हो पाता . कुछ कवि गद्य को कविता कहने की भूल कर रहे हैं कविता में अपनी लयात्मकता है वह उसका लालित्य हुए संप्रेषण क्षमता को प्रभावी बनाती है तो नाटक या कथानक लघु कथा आदि में शब्दों भावों के सुगठित संयोजन से जो लयात्मकता दृष्टिगोचर होती है उससे पाठक अथवा श्रोता या दर्शक एक रिश्ता कायम कर लेता है ।
आज मुझे संगीत की बात करनी है आते हैं अत्यधिक ध्यान वही केंद्रित रखना चाहूंगा । मनुष्य के विकास के साथ उसने संगीत को जीवन में समावेश करने के हर सभ्यता में प्रयास किए हैं । संगीत आया कहां से ? इस बारे में बरसों से एक सवाल मेरी मस्तिष्क में घूमता रहा है....ध्वनियाँ कहां से प्राप्त की गई हैं ? यह प्रश्न के उत्तर में यह महसूस करता हूं और आप सब की सहमति चाहता हूं अगर सही हूं तो संगीत के लिए ध्वनि बेशक हवा बरसात सरिता के कलकल निनाद से पंछियों पशुओं की आवाजों से प्राप्त की गई है । लोकजीवन ने इसे सिंक्रोनाइज करके लोक संगीत का निर्माण किया होगा है या नहीं निश्चित तौर पर आप सहमत होंगे और उसके पश्चात विस्तार से अन्वेषण कर मनुष्य ने संगीत के शास्त्रीय स्वरूप का निर्माण अवश्य किया है ... ऐसा मेरा मानना है ।
यह सब कुछ पर हो जाने के बाद अब यह तय करना जरूरी है कि संगीत की जरूरत क्यों है जीवन को ?
आइए इसे भी तय कर लेते हैं..... एक अदृश्य अनुभूति को समझिए जो आपके शरीर को इस योग्य बनाती है कि आप किसी परम उद्देश्य को पूर्ण करने जिसके लिए आपको धरती पर प्रकृति अर्थात माँ ने जन्म दिया है । संगीत से जीवन सुगठित एवं संवेदी होता है । क्योंकि हम कंप्यूटर या रोबोट नहीं है हमें भावात्मक था जन्म के साथ दी गई है इन्हीं भावों के जरिए हम स्वयं को कम्युनिकेट एवं अभिव्यक्त करते हैं । हमारी अभिव्यक्ति में अथवा कम्युनिकेशन में अगर लयात्मक ता नहीं है तो हम सफल नहीं हो सकते । चाहे तो आप इस विषय पर रिसर्च कर सकते हैं एक एक शब्द यहां मैंने अपनी मानसिक रिसर्च के उपरांत कहा है ।
संगीत शारीरिक अनियमितताओं को नियमित करने का बेहतर तरीका है जिसके परिणाम स्वरूप हम अव्यवस्थित जीवन क्रम को व्यवस्थित जीवन क्रम में बदल देते हैं ।
नास्तिकों को छोड़ दिया जाए तो ईश्वर पर भरोसा करने वालों के लिए यह बताना आवश्यक है कि संगीत में जीवन ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारने की क्षमता के विकास का गुण होता है । आप जब शिव आराधना करते हैं रावण के लिखे हुए शिव तांडव को पढ़ते हैं अथवा पुष्पदंत रचित शिव महिम्न स्त्रोत का पाठ करते हैं तो आप महसूस कर दीजिए उस समय आप कितना प्रभावी ढंग से ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारते हुए उस में विलीन हो जाना चाहते हैं ।         

3.12.19

यौनिक-हिंसा: समाज और व्यवस्था के लिए कुछ सुझाव


                         आलेख-गिरीश बिल्लोरे मुकुल
2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला भारत की राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 को हुई बलात्कार एवम हत्या की घटना रोंगटे खड़े कर दिए थे यह सत्य है कि संचार माध्यम के त्वरित हस्तक्षेप के कारण प्रकाश में आयी वरना यह भी एक सामान्य सा अपराध बनकर फाइलों में दबी होती।
सोशल मीडिया ट्वीटर फेसबुक आदि पर काफी कुछ लिखा गया। इस घटना के विरोध में पूरे नई दिल्ली,  कलकत्ता  और बंगलौर  सहित देश के छोटे-छोटे कस्बों तक में एक निर्णायक लड़ाई सड़कों पर नजर आ रही थी ।   बावजूद इसके किसी भी प्रकार का परिवर्तन नजर नहीं आता इसके पीछे के कारण को हम आप सब जानते हैं ।
बरसों से देख रहा हूं कि नवंबर से दिसंबर बेहद स्थितियों को सामने रख देते हैं । ठीक 7 साल पहली हुई इस घटना के बाद परिस्थितियों में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आ रहा है । हम अगले महीने की 26 तारीख को नए साल में भारतीय गणतंत्र की वर्षगांठ मनाएंगे पता नहीं क्या स्थिति होगी तब मुझे नहीं लगता कि हम तब जबकि महान गणतंत्र होने का दावा कर रहे होंगे तब हां तब ही किसी कोने में कोई निर्भया अथवा प्रियंका रेड्डी का परिवार सुबक रहा होगा तब तक टनों से मोम पिलाया जा चुका होगा । अधिकांश जनता आम दिनों की तरह जिंदगी बसर करने लगे होंगे... हां उनके हृदय में डर अवश्य बैठ चुका होगा । ना तो समाज में और ना ही व्यवस्था में कोई खास परिवर्तन नजर आएगा परंतु परिवर्तन आ सकता है अगर समाज में लोग यह सोचें कि :- हम रेपिस्ट को केवल फांसी के फंदे पर देखना चाहते हैं अगर वह अपना खून है तो भी ..! शायद बदलाव शुरू हो जाएगा, परंतु सब जानते हैं ऐसा संभव नहीं है ।
व्यवस्था भी कानूनी व्यवस्थाओं का परिपालन करते-करते बरसों बिता देगी परंतु फांसी के फंदे तक रेपिस्ट नहीं पहुंच पाएंगे आप जानते हैं कि अब तक आजादी के बाद कुल 57 केस में फांसी की सजा हो पाई है । इसका अर्थ है कि कहीं ना कहीं रेपिस्ट न्याय व्यवस्था में लंबे लंबे प्रोसीजर्स के चलते लाभ उठा ही लेते हैं और जिंदा बनी रहते हैं कि वह लोग हैं जिन्हें जीने का हक नहीं है . एक साहित्यकार होने के बावजूद केवल रेप के मामलों में शीघ्र और अंततः फांसी की सजा की मांग क्यों कर रहा हूं..?
जी हां आपके ऐसे सवाल उठ सकते हैं लेकिन पूछना नहीं यह जघन्य अपराध है और इसका अंत फांसी के फंदे से ही होगा यह जितना जल्दी हो उतना समाज को और उन दरिंदों को संदेश देने के लिए काफी है जो रेप को एक सामान्य सा अपराध मानते हैं ।
सुधि पाठको , साहित्यकार हूं कवि हूं संवेदनशील हूं इसका यह अर्थ नहीं है कि न्याय के पासंग पर यौन हिंसा को साधारण अपराधों की श्रेणी में रख कर तोलूं । यहां ऐसे अपराधों के लिए केवल मृत्युदंड की अपेक्षा है ।
निर्भया कांड के बाद व्यवस्था ने व्यवस्थित व्यवस्था ना करते हुए ... इन अपराधों को स्पेस दिया है यह कहने में मुझे किसी भी तरह का संकोच नहीं हो रहा । हबीबगंज प्लेटफॉर्म पर हुए कांड के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ नए बदलाव लाने की कोशिश भी की है 50 महिला केंद्रों की स्थापना प्रत्येक जिले में कर दी गई है न्याय के मामले में मध्यप्रदेश की अदालतों में तेजी से काम हुआ है इसकी सराहना तो की जानी चाहिए लेकिन क्या यह पर्याप्त है मुझे लगता है कदापि नहीं आप भी यही सोच रहे होंगे कुछ सुझाव व्यवस्था के लिए परंतु उसके पहले कुछ सुझाव समाज के लिए बहुत जरूरी है अगर आप अभिभावक हैं तो अपनी पुरुष संतान को खुलकर नसीहत देने की पहल आज ही कर दीजिए कि महिलाओं के प्रति बेटियों के प्रति नकारात्मक और हिंसक भाव रखने वाले बच्चों यानी पुरुष संतानों के लिए घर के दरवाजे कभी नहीं खुल सकेंगे ।
समाज ऐसा कदम नहीं उठाएगा जीने का सुधरने का एक मौका और चाहेगा परंतु इन्हीं मौकों के कारण महिलाओं का शोषण करने को स्पेस मिलता है जो सर्वदा गैर जरूरी है क्या अभिभावक ऐसा करना चाहेंगे मुझे नहीं लगता जो पुत्र मोह में फंसे हैं ऐसा धृतराष्ट्री समाज कदापि अपनी पुरुष संतान के खिलाफ कोई कठोर कदम उठाएगा । यह वही समाज है जहां लड़कों के लिए व्रत किए जाते हैं यह वही समाज है जहां कुछ वर्षों पूर्व तक बेटियों के जन्म से उसे उपेक्षित भाव से देखा जाता है इतना ही नहीं बेटी की मां के प्रति नेगेटिविटी का व्यवहार शुरू हो जाना सामान्य बात है .
यह वही समाज है जहां पुत्रवती भव् होने का आशीर्वाद दिया जाता है । समाज से किसी को भी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है । अगर आप मेरी बात को समझ पा रहे हैं तो गौर कीजिए बेटियों के प्रति स्वयं नजरिया पॉजिटिव करिए तो निश्चित तौर पर आप देवी पूजा करने के हकदार है वरना आप देवी पूजा करके केवल ढोंग करते हुए नजर आते हैं ।
बातें कुछ कठिन और कड़वी है पर उद्देश्य साफ है की औरत को लाचार मजबूर बना देने की आदत व्यवस्था यानी सरकार में नहीं समाज में है । अतः समाज को स्वयं में बदलाव लाने की जरूरत है बलात्कारी पुत्र के होने से बेहतर है बेटी के माता-पिता बन जाओ विश्वास करो डीएनए ट्रांसफर होता है आपका वंश चलता है आपकी वंशावली से आप की पुत्री का नाम मत काटो और आशान्वित रहो की बेटी सच में बेटों के बराबर है ।
धार्मिक संगठनों सामाजिक एवं जातिगत संगठनों थे उम्मीद की जा सकती है कि वे बेटियों की सुरक्षा के लिए सच्चे दिल से कोशिश है करें । अगर समाज सेवा का इतना ही बड़ा जज्बा भी कर आप समाजसेवी के ओहदे को अपने नाम के साथ जोड़ते हैं जो आपकी ड्यूटी बनती है आपका फर्ज होता है कि आप लैंगिक विषमताओं को समाप्त करें फोटो खिंचवाने का फितूर दिमाग से निकाल दें ।
आध्यात्मिक एवं धार्मिक गुरुओं से अपेक्षा की जाती है कि वे ईश्वर के इस संदेश को लोक व्यापी करें जिसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि- हर एक शरीर में आत्मा होती है और ईश्वर की परिकल्पना नारी के बिना अधूरा ही होता है इसका प्रमाण सनातन में तो अर्धनारीश्वर का स्वरूप के तौर पर लिखा हुआ है ।
नदी को लेकर सामाजिक व्यवस्था में बेहद विसंगतियां है । कुछ नहीं अभी अपनी मादा संतानों को सुकोमल बने रहने का पाठ पढ़ाती हैं । जबकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की हर सड़क चाहे वह हैदराबाद की हो जबलपुर की हो भोपाल की हो जयपुर की हो नई दिल्ली की हो महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच ना हो कर हिंसक नजर आने लगी हैं । समाज अगर अपना नजरिया नहीं बनता तो ऐसी घटनाएं कई बार सुर्खियों में बनी रहेगी और आपका विश्व गुरु कहलाने का मामला केवल मूर्खों का उद्घोष ही साबित होगा ।
अब समाज यह तय करें क्यों से करना क्या है सामाजिक कानून कठोर होने चाहिए सामाजिक व्यवस्था इस मुद्दे को लेकर बेहद अनुशासन से बांध देने वाली होनी चाहिए अगर बच्चे के यानी नर संतान के आचरणों में जरा भी आप गलती देखते हैं या गंदगी देखते हैं तो तुरंत आपको उसके ऊपर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हुए उसे काउंसलिंग प्रोसेस पर बड़ा करना ही होगा अच्छे मां-बाप की यही पहचान होगी ।
धार्मिक जन जिसमें टीकाकारों कथावाचकों, साधकों योगियों को भी अब सक्रिय होने की जरूरत है । यहां हम उन ढोंगीयों का आव्हान नहीं कर रहे हैं बल्कि उनसे हमारी अपेक्षाएं हैं जो वाकई में समाज के लिए सार्थक कार्य कर रहे हैं ।
व्यवस्था पर भी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि व्यवस्था केवल घोषणा वीर ना रहे बल्कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने की कोशिश करें कुछ बिंदु मेरे मस्तिष्क में बहुत दिनों से गूंज रहे हैं उन पर काम किया जा सकता है....
1 1000 की जनसंख्या कम से कम 50 किशोरयाँ लड़कियां तथा कम से कम 50 महिलाएं आत्मरक्षा प्रशिक्षण प्राप्त हो
2 हर विद्यालय में अनिवार्य रूप से सेल्फ डिफेंस का प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाए
3 हर सिविल कोर्ट मुख्यालय में 24 * 7 अवधि के लिए विशेष न्यायिक इकाइयों की स्थापना की जावे
4 हर थाना क्षेत्र में एक एक वन स्टॉप सेंटर की स्थापना हो जहां एफ आई आर चिकित्सा सुरक्षा की व्यवस्था हो
5 प्रत्येक जिला मुख्यालय में फोरेंसिक जांच की व्यवस्था की जा सकती है । यकीन मानिए चंद्रयान मिशन मिशन पर हुई खर्च का आधा भाग इस व्यवस्था को लागू कर सकता ।
6 रेप या यौन हिंसा रोकने के लिए सबसे अधिक फुलप्रूफ व्यवस्था की जानी चाहिए । घटना के उपरांत 3 दिन के बाद हैदराबाद में प्राथमिकी दर्ज की गई यह स्थिति दुखद है । जब हम तकनीकी रूप से बहुत सक्षम हो गए हैं ऐसी स्थिति में इस बात को तय करने की बिल्कुल जरूरत नहीं कि क्षेत्राधिकार किसका है अतः ऐसी टीमों का गठन करना जरूरी है जो मोबाइल हो और कहीं भी प्राथमिकी दर्ज करने का कार्य कर सकें फिर अन्वेषण के लिए भले जिस पुलिस अधिकारी का क्षेत्राधिकार हो उसे सौंप देना पड़े मामला सौंपा जा सकता है ।
7 :- अन्वेषण परिस्थिति जन्य साक्षी को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए
8 :- अन्वेषण हेतु केवल 7 दिनों का अवसर देना उचित प्रतीत होता है अगर साक्ष्यों की अत्यधिक जरूरत है तो अन्वेषण के लिए एसपी एडिशनल एसपी स्तर के अधिकारी से अनुमति लेकर ही अधिकतम अगले 7 दिन की अवधि सुनिश्चित की जा सकती है । अर्थात कुल मिलाकर 14 या 15 दिनों में अन्वेषण का कार्य प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों से कराया जाना उचित होगा ।
9:- भले ही स्थापना व्यय कितना भी हो प्राथमिक अदालतें गठित कर ही देनी चाहिए जो डिस्ट्रिक्ट जज की सीधी मॉनिटरिंग में कार्य करें इनके लिए विशेष न्यायाधीशों की तैनाती बेहद आवश्यक है ।
10:- सार्वजनिक यातायात साधनों में निजी सेवा प्रदाताओं से इस बात की गारंटी लेना चाहिए कि वह जिस वाहन चालक कंडक्टर को भेज रहे हैं अपराधिक प्रवृत्ति के तो नहीं है
11 :- हर सार्वजनिक यातायात व्यवस्था के प्रबंधन के लिए बंधन कारी होना चाहिए कि महिला सुरक्षा के लिए उसके परिवहन वाहन में क्या प्रबंध किए गए हैं निरापद प्रबंध के नियम भी बनाए जाने अनिवार्य है .
12 :- ट्रांसपोर्टेशन व्यवसाय जैसे ट्रक मालवाहक अन्य कार्गो वाहन के चालू किया उसके कंडक्टर की आपराधिक पृष्ठभूमि का परीक्षण करने के उपरांत ही उन्हें लाइसेंस जारी किया जावे
13 :- महिलाओं को लड़कियों को जीपीएस की सुरक्षा तथा आईटी विशेषज्ञ से ऐसी तकनीकी का विकास की अपेक्षा है जिससे खतरे या आसन्न खतरों की सूचना कंट्रोल रूम तथा महिला या बालिका द्वारा एक क्लिक पर भेजी जा सके ऐसी डिवाइस बनाना किसी भी आईटी विशेषज्ञ के लिए कठिन नहीं होगा ।
14 :- पॉक्सो तथा अन्य यौन हिंसा की रोकथाम के लिए बनाई गई नियम अधिनियम प्रावधान आदेश निर्देश को एक यूनिफॉर्म पाठ्यक्रम के रूप में बालक बालिकाओं को पढ़ाना अनिवार्य है
15 :- अन्वेषण के उपरांत मामला दाखिल करने के लिए पुलिस को केवल अधिकतम 20 दिनों की अवधि देनी अनिवार्य है साथ ही निचली अदालत में मामले के निपटान के लिए केवल 20 दिनों का समय दिया जाना उचित होगा।
16 :- कोई भी मामला 20 दिन से अधिक समय लेता है तो हाईकोर्ट को मामले को अपनी मॉनिटरिंग में लेते हुए विलंब की परिस्थिति का मूल्यांकन करने का अधिकार होना चाहिए ।
17 :- उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए क्रमशः 25 दिनों की अवधि नियत की जानी चाहिए जिसमें अपील करने के लिए मात्र हाईकोर्ट की स्थिति में 10 दिवस तथा सुप्रीम कोर्ट की स्थिति में 15 दिवस कुल 25 दिवस ( निचली अदालत के फैसले के उपरांत) देना उचित होगा । यहां विशेष अदालत द्वारा दिए गए फैसले के विरुद्ध 10 दिनों के अंदर अपील की जा सकती है तदोपरांत अगर निर्णय से असंतुष्ट हैं तो 15 दिनों में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है ।
अगर व्यवस्था और समाज चाहे तो उपरोक्त अनुसार कार्य करके एक विश्वसनीय व्यवस्था कायम कर सकते 

27.11.19

वयोवृद्ध फिल्म कलाकार श्रीमती पुष्पा जोशी का निधन

 फिल्म रेड की दादी श्रीमती पुष्पा जोशी Pushpa Joshi  का दुखद निधन
85 वर्ष की उम्र में अजय देवगन की फिल्म रेड में दादी की भूमिका निभाने वाली श्रीमती पुष्पा जोशी का आज शाम मुंबई में निधन हो गया । पिछले सप्ताह  फिसल कर  गिर जाने से जाने के कारण उनका फैक्चर हुआ जिसका सफलतापूर्वक ऑपरेशन भी मुंबई में ही हुआ था ।  किन्तु दिनांक 26 नवंबर 2019 को रात्रि 11:40 बजे उनका मुंबई में दुखद निधन हो गया ।
जबलपुर निवासी 87 वर्षीय श्रीमती पुष्पा जोशी के पति स्वर्गीय श्री बी आर जोशी डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत थे । जबकि उनके पुत्र आभास  जोशी एवं संगीतकार श्रेयस जोशी है पुत्र श्री रविंद्र जोशी  जितेंद्र जोशी श्री बृजेंद्र जोशी तथा दो पुत्रियां हैं । श्रीमती जोशी के बड़े पुत्र जी संगीतकार थे जिनका निधन हो चुका है । प्रेम नगर जबलपुर निवासी जोशी परिवार कि बुजुर्ग मातुश्री का पूरा जीवन सत्य साई सेवा समिति के साथ नारायण सेवा में बीता । मुझे उनके कर्मठ जीवन एवं हंसमुख स्वभाव ने हमेशा आकृष्ट किया है । निरंतर लोक सेवा के कार्यों में संलग्न मां पुष्पा जोशी जबलपुर से मुंबई अपने पुत्र श्री रविंद्र जोशी के साथ रहने गईं जहां उनकी  पौत्र वधु ने आभास श्रेयस के यूट्यूब चैनल के लिए एक फिल्म बनाई जो अजय देवगन के प्रोडक्शन हाउस को पसंद आई उसी ज़ायका फिल्म को देखकर उन्हें इलियाना डिक्रूज एवं अजय देवगन अभिनीत रियलिस्टिक स्टोरी पर बनी फिल्म में दादी की भूमिका के लिए आमंत्रित किया गया । बहुत दिनों के बाद उन्होंने यह आमंत्रण स्वीकार किया और भी 85- 86 वर्ष की उम्र में वर्ष की उम्र में रजत फलक पर नजर आए और उन्हें उनके काम के लिए बहुत सराहना मिली ।
श्रीमती जोशी मेरी मातुश्री  स्वर्गीय प्रमिला देवी की मित्र थीं
           यूट्यूब पर पुत्रवधू एवं पुत्र श्री रविंद्र जोशी Ravindra Joshi  द्वारा निर्मित एवं प्रदर्शित फिल्म में प्रभावी अभिनय करने के कारण चर्चा में आईं और उन्हें फिल्म रेड में उन्हें 85 वर्ष की उम्र में अभिनय का अवसर मिला । इसके अलावा उन्होंने रामप्रसाद की तेरहवीं फिल्म में भी अभिनय किया है । फेविक्विक द्वारा विगत माह जारी एक एडवर्टाइजमेंट बेहद प्रभावी रहा है ।
जन्म दिनांक 27 अगस्त 1936
निधन 26/10/2019

मती जोशी ने अपने पुत्र की कविता छोडूंगी ना आज अभी जीवन बाकी है अपने फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट भी की थी , हमेशा से ज़िंदादिल श्रीमती जोशी एक आइकॉन हीं थीं ।  आखरी सांस तक कार्य करते रहने वाली श्रीमती पुष्पा जोशी को विनम्र श्रद्धांजलि

24.11.19

ट्रांसफर ऑफ़ मेमोरी कैसे होती है

【साभार : गूगल 】
*कहाँ सुरक्षित रख सकते हैं आप अपनी स्मृतियाँ...!*
ईशा फाउंडेशन के प्रवर्तक एवं संचालक सद्गुरु कहते हैं कि मृत्यु के बाद अशरीरी व्यक्ति अर्थात प्राण बीता जीवन याद रख सकता है अपनी पुरानी यादों को.भी ।
*यह कैसे होता है...?*
अभी मैं सद्गुरु की बातों का समर्थन करते हुए कहूंगा की यादें किस तरह से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक या एक जनक से दूसरे जनक तक स्थानांतरित होती है *ट्रांसफर ऑफ़ मेमोरी* का एक सिद्धांत मैं सामने रखना चाहता हूं । आपके डीएनए में जो आपके बच्चे के जन्म तक मौजूद है वह गर्भाधान के समय उसमें ट्रांसफर हो जाता है और फिर जो आपकी पत्नी का डीएनए है उसने जो भी कुछ मौजूद होता है यादों के तौर पर वह भी उस भ्रूण में ट्रांसफर हो जाता है । और इसका परिणाम 9 माह पूर्ण होते ही आप आसानी से देख सकते हैं या तो वह बच्चा आपकी तरह दिखाई देगा या फिर वह आपकी पत्नी की तरह या नहीं बच्चे की मां की तरह यानी समस्त यादें ट्रांसफर हो गई है । फिर घरेलू वातावरण का प्रभाव भ्रूण कल से यानी जब बच्चा गर्भावस्था में विकसित होता है तब की यादें उसके शरीर में जुड़ती हैं आपको याद होगा अभिमन्यु का कथानक जिसने गर्भावस्था में ही चक्रव्यूह तोड़ने के प्रोसेस को समझ लिया था इससे बेहतर कोई उदाहरण ना होगा आप सब को समझाने के लिए भ्रूण जब उसका स्वरूप विकसित होता रहता है तब आप माता को जो भी सुनाते हैं समझाते सिखाते हैं अथवा जितना भी उसे प्रताड़ित करते हैं या खुशी देते हैं उसका असर बच्चे की स्मृति में जुड़ता चला जाता है और फिर ठीक उसी तरह नजर आता है बच्चा जैसा आप उसे विकसित करते हैं । यह है शारीरिक यादों का स्थानांतरण ट्रांसफर आफ मेमोरी का सिद्धांत इसे आप कह सकते हैं अगर चाहे तो । सद्गुरु कहते हैं कि काया और अदेह शरीर जीवन के दो स्वरूप होते हैं ।
मैं सहमत हूं ....अदेह शरीर एक उर्जा पिंड होता है क्योंकि यह अपने डीएनए में शरीर के साथ रहते वक्त इतना सिंक्रोनाइज हो जाता है की इमोशन आचार विचार व्यवहार विचारधारा कार्यप्रणाली जैसी चीजें डीएनए में स्टोर कर देता है ।
विज्ञान भी इससे सहमत है असहमति का सवाल इस वजह से भी नहीं कि अब हम डीएनए को खोज चुके हैं ।
शरीर की स्मृतियां आपके शरीर से आप के वंशज के शरीरों में कैसे पहुंच जाते हैं ? यह सवाल करना अब ग़ैरजरूरी है क्योंकि डीएनए एकमात्र वह व्यवस्था है जिसमें आपकी मौजूदा कायिक यादों को समेट कर रखता है ।
कायिक यादें क्या है ?
कायिक यादों का अर्थ साफ तौर पर बॉडी के स्ट्रक्चर प्रवृत्ति व्यवहार आदि के अलावा और कुछ नहीं ।
शरीर का ढांचा कैसा बनेगा उसने क्या बदलाव होंगे वह सब निर्भर करता है... इस बात पर कि क्या क्या ट्रांसफर हुआ । ट्रांसफर प्रक्रिया में फिजिकल यानी कायिक गुणधर्म किसी जीवित व्यक्ति के डीएनए में सुरक्षित हो जाते हैं । और जब वह व्यक्ति रीप्रोडक्टिव प्रक्रियाओं में शामिल होता है तो वह डीएनए में स्टोर यानी संग्रहित होने के कारण संतान में स्थानांतरित हो जाता है । आपने देखा होगा जो जातियां अपराध करती हैं उनकी संतानें भी अपराध करतीं हैं । और जो लोग अध्ययन करते हैं उनकी संतानें भी अच्छा अध्ययन करने की अभ्यस्त होती हैं अर्थात जो भी डीएनए में सुरक्षित हो जाता है उसका आने वाली पीढ़ी बखूबी उपयोग करती हैं यहां यह स्पष्ट कर दूं अपवाद स्वरूप कुछ बातों को छोड़ दिया जाए तो सामान्य रूप से यही होता है आपने देखा होगा और महसूस भी किया होगा जींस में बदलाव केवल व्यवहार आचार में बदलाव से आते हैं लेकिन यह तुरंत हो जाए ऐसा नहीं है बदलाव पीढ़ियों में ही आ सकते हैं। डार्विन गलत नहीं है ना ही हमारी सामाजिक व्यवस्था में प्रचलित लोकोक्तियां एवं मुहावरे जिनमें यह कहा जाता है कि आपकी संतान पर आपकी व्यवहार का असर दिखाई देता है । और ऐसा होता भी है । सामान्य रूप से राजा का बेटा राजा होता है आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि यह है एक सामान्य और शाश्वत घटना है जिसे आप हम सभी जानते हैं। कभी आप अपने पुराने एल्बम से फोटो निकालिए । जिसमें आपके दादा परदादा का चित्र हो आप देखेंगे आपकी ही पीढ़ी के किसी व्यक्ति का चेहरा मोहरा किसी पूर्वज से मिलता है । यह है डीएनए के खजाने में आपकी स्मृतियों का
संग्रहित होकर आने वाली समय तक सुरक्षित रहना ।
आप इस सिद्धांत से सहमत अवश्य होंगे । अपने अगले किसी आर्टिकल में मैं अनिवार्य रूप से अदेह शरीर ने स्मृतियों के संग्रह का विश्लेषण करूंगा तब तक के लिए इजाजत दीजिए नमस्कार
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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