वेदानां-सामवेदोSस्मि

चित्र : गूगल से साभार 

गीता में सामवेद की व्याख्या करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अभिव्यक्त किया है कि वेदों में मैं सामवेद हूं ।
ईश्वरीय अनुभूति के लिए अगर वेद है ज्ञान तो साम है गान को महर्षियों ने अभिव्यक्त किया है ।
परंतु साम क्या है ..?
जब ऋषियों ने यह महसूस किया कि केवल मंत्र को सहजता से पढ़ना क्या चाहो उसे विस्तार देना आसान नहीं है तब उन्होंने यह महसूस किया कि हर ऋचाओं में प्राकृतिक रूप से लयात्मकता मौजूद है तब उन्होंने रिचा और मंत्र को छांदस मानते हुए काव्य की संज्ञा दी । संस्कृत भाषा ही छांदस भाषा है । इसे आप सब समझ पा रहे होंगे अगर आप ने ईश्वर की आराधना के लिए संस्कृत में लिखे गए स्त्रोतों का गायन एवं तथा वेदों के मंत्रों का जाप किया हो तो आप इसे सहजता महसूस कर पाते होंगे । यदि नहीं तो एक बार ऐसा महसूस करके देखिए यह । यह कोई नई बात नहीं है जो मैं बता रहा हूं यह सब कुछ लिखा हुआ है विभिन्न ग्रंथों में पुस्तकों में आलेखों में बस आपको उस तक पहुंचना है किताबों में ना भी पढ़ें तो आप इसे महसूस कर सकते हैं ।
आपने संगीत रत्नाकर में ध्वनि शक्तियों के बारे में पढ़ा होगा । ध्वनि की 22 शक्तियां होती है । इन्हें षड्ज में सन्निहित या समावेशित किया गया है ।
इस बिंदु पर मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना है संगीत के विद्यार्थी इसे बेहतर जानते हैं ।
2 अक्टूबर 2014 की घटना मुझे बेहतर तरीके से याद है । उस दिन शासकीय अवकाश था परंतु गांधी जयंती मनाने के लिए मैंने बच्चों को खासतौर पर संगीत के बच्चों को बुलाया और उनसे जाना कि वह किस तरह से अभ्यास करते हैं साथ ही उस दिन हमने महात्मा गांधी का स्मरण भी किया उनके प्रिय भजनों का गायन भी बच्चों से सुना । उस दिन बात करते-करते अचानक मन में एक विदुषी स्वर्गीय कमला जैन का स्मरण हो आया बात 1975 या 76 की है .... हिंदी दिवस के अवसर पर एक काव्य गोष्ठी रेल विभाग द्वारा आयोजित की गई थी जिसमें रेल विभाग में पदस्थ स्टेशन मास्टर के पुत्र होने के कारण मुझे काव्य पाठ के लिए मुझे भी आमंत्रण मिला था । विदुषी श्रीमती कमला जैन ने अपने भाषण में ओमकार के महत्व को रेखांकित करते हुए उसके वैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव का विश्लेषण किया था । अतः मैंने प्रयोग के तौर पर बच्चों से ओंकार के घोष की अपेक्षा की थी । तब तक मैं यह एहसास कर चुका था कि वास्तव में ओम के सस्वर अभ्यास ध्वनि में आकर्षण पैदा होता है क्योंकि यह अभ्यास मैंने कर रखा था । परिणाम स्वरूप यह अभ्यास बच्चों की शिक्षिका डॉ शिप्रा सुल्लेरे ने अपनी कक्षाओं में भी सप्तक में कराया जिसका परिणाम यह है कि अब मेरे संस्थान के बच्चे बाहर जब प्रस्तुतियां देते हैं तो फीडबैक के तौर पर मुझे यह जानकारी मिलती है आपके बच्चे काफी सुरीले हैं ।
यह सत्य है कि- विश्व की समस्त सभ्यताओं से पुरानी भारतीय सनातनी सभ्यता में सामवेद जो अन्य वेदों पृथक ईश्वर आराधना तथा ईश्वर को महसूस करने का क्रिएटिव अर्थात सृजनात्मक रूट चार्ट या रोड मैप है ।
विद्वान यह मानते हैं कि संगीत मस्तिष्क, मेधा, स्वास्थ्य, चिंतन, व्यवहार, सभी को रेगुलेट करता है नियंत्रण भी रखता है । संगीत का अभ्यास हमारे डीएनए में भी परिवर्तन लाता है । और अंत में सर्वे जना सुखिनो भवंतु वेद वाक्य को साकार भी कर देता है ।
नाट्य, चित्र निर्माण, गीत समस्त ललित कलाओं पर अगर आप ध्यान दें तो यह सब शब्द रंग के बेहतर संयोजन का उदाहरण है यह इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अगर किसी भी क्रिएशन में उचित क्रम बाध्यता नहीं होती तो निश्चित तौर पर वह प्रभावी नहीं हो पाता . कुछ कवि गद्य को कविता कहने की भूल कर रहे हैं कविता में अपनी लयात्मकता है वह उसका लालित्य हुए संप्रेषण क्षमता को प्रभावी बनाती है तो नाटक या कथानक लघु कथा आदि में शब्दों भावों के सुगठित संयोजन से जो लयात्मकता दृष्टिगोचर होती है उससे पाठक अथवा श्रोता या दर्शक एक रिश्ता कायम कर लेता है ।
आज मुझे संगीत की बात करनी है आते हैं अत्यधिक ध्यान वही केंद्रित रखना चाहूंगा । मनुष्य के विकास के साथ उसने संगीत को जीवन में समावेश करने के हर सभ्यता में प्रयास किए हैं । संगीत आया कहां से ? इस बारे में बरसों से एक सवाल मेरी मस्तिष्क में घूमता रहा है....ध्वनियाँ कहां से प्राप्त की गई हैं ? यह प्रश्न के उत्तर में यह महसूस करता हूं और आप सब की सहमति चाहता हूं अगर सही हूं तो संगीत के लिए ध्वनि बेशक हवा बरसात सरिता के कलकल निनाद से पंछियों पशुओं की आवाजों से प्राप्त की गई है । लोकजीवन ने इसे सिंक्रोनाइज करके लोक संगीत का निर्माण किया होगा है या नहीं निश्चित तौर पर आप सहमत होंगे और उसके पश्चात विस्तार से अन्वेषण कर मनुष्य ने संगीत के शास्त्रीय स्वरूप का निर्माण अवश्य किया है ... ऐसा मेरा मानना है ।
यह सब कुछ पर हो जाने के बाद अब यह तय करना जरूरी है कि संगीत की जरूरत क्यों है जीवन को ?
आइए इसे भी तय कर लेते हैं..... एक अदृश्य अनुभूति को समझिए जो आपके शरीर को इस योग्य बनाती है कि आप किसी परम उद्देश्य को पूर्ण करने जिसके लिए आपको धरती पर प्रकृति अर्थात माँ ने जन्म दिया है । संगीत से जीवन सुगठित एवं संवेदी होता है । क्योंकि हम कंप्यूटर या रोबोट नहीं है हमें भावात्मक था जन्म के साथ दी गई है इन्हीं भावों के जरिए हम स्वयं को कम्युनिकेट एवं अभिव्यक्त करते हैं । हमारी अभिव्यक्ति में अथवा कम्युनिकेशन में अगर लयात्मक ता नहीं है तो हम सफल नहीं हो सकते । चाहे तो आप इस विषय पर रिसर्च कर सकते हैं एक एक शब्द यहां मैंने अपनी मानसिक रिसर्च के उपरांत कहा है ।
संगीत शारीरिक अनियमितताओं को नियमित करने का बेहतर तरीका है जिसके परिणाम स्वरूप हम अव्यवस्थित जीवन क्रम को व्यवस्थित जीवन क्रम में बदल देते हैं ।
नास्तिकों को छोड़ दिया जाए तो ईश्वर पर भरोसा करने वालों के लिए यह बताना आवश्यक है कि संगीत में जीवन ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारने की क्षमता के विकास का गुण होता है । आप जब शिव आराधना करते हैं रावण के लिखे हुए शिव तांडव को पढ़ते हैं अथवा पुष्पदंत रचित शिव महिम्न स्त्रोत का पाठ करते हैं तो आप महसूस कर दीजिए उस समय आप कितना प्रभावी ढंग से ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारते हुए उस में विलीन हो जाना चाहते हैं ।         

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