वरिष्ठ महिला कहानीकार साहित्यकार मैत्रेई पुष्पा जी ने अपनी फेसबुक वॉल पर निम्नानुसार पंक्तियां लिखकर हैदराबाद पुलिस का हौसला बढ़ाया है
*न भाषण से होगा न अनशन से होगा*
*दरिन्दों का ख़ात्मा सिर्फ़ गन से होगा
जब कभी साहित्यकार विचारक चिंतक बेचैन हो जाते हैं तब ऐसा लिखते हैं जैसा आदरणीय मैत्रेई पुष्पा ने लिखा है .
मैत्रेई पुष्पा जी उतनी ही संवेदनशील है जितना बाकी सृजन करता होते हैं । हम कभी नहीं चाहते कि कोई मारा जाए परंतु बात पर हम सब एकमत हैं अगर रेप किया है भारतीय अस्मिता पर किसी भी तरह की चोट करने की कोशिश की तो फैसला गन से ही होना चाहिए ।
हैदराबाद पुलिस ने जो किया उससे बहुत सारे संदेश निकल कर जा रहे हैं व्यवस्था जनतंत्र में जनता की आवाज को सुन पा रही है अब उन्नाव की बारी है । हर उस मानव अधिकार की झंडा बरदारी करने वालों को समझ में आना चाहिए की राष्ट्रीय हितों और महिलाओं के ईश्वर दत्त अधिकारों के हनन से बड़ा कोई अधिकार नहीं है और अगर अब कोई भी आयातित विचारधारा पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध करेगा तो बेशक एक्सपोज हो जाएगा जिसे भी बोलना है वह पुलिस के इस कदम को सही बताए तो बोले वरना मुंह में कपड़ा बांधकर चुपचाप रहे । हम साहित्यकार बिल्कुल हिंसा पसंद नहीं करते इसका यह आशय नहीं है कि किसी के अधिकार का अतिक्रमण करने वाले को जिंदा रहने का हक भी देते हैं .
महायोगी कृष्ण श्री कृष्ण ने महाभारत की अनुमति दी थी । जरूरत होने पर शस्त्र उठाना ही बुद्धिमत्ता है भारतीय दर्शन यह कहता है और इसे अस्वीकार करना मूर्खता ही है ।
उन्नाव कठुआ जबलपुर भोपाल हबीबगंज जैसी घटनाएं सामने आ भी जा रहे हैं मीडिया भी परेशान है सोशल मीडिया पर उन्मुक्त आवाजें उठती जा रहे हैं 7 वर्षों से इन आवाजों को सुनने वाला ऐसा लगता था कि कोई नहीं । नारी हिंसा के खिलाफ अगर यह कदम उठाया तो सिर्फ वॉरियर्स ने सोशल वारियर्स ने बेशक एक कदम कई सारे रास्ते निर्धारित करेगा जहां संदेश जाना था वहां पहुंच भी गया है ।
समाज को भी समझ लेना चाहिए कि अपनी पुरुष संतानों को सम्मान करना सिखाए । समाज को चाहिए कि अगर घर का कोई बच्चा इस तरह के कार्यों में संलग्न है तो उसे प्रताड़ना देने से किसी के मानव अधिकार का हनन नहीं होता आखिर विक्टिम समाज यानि महिलाओं का बेटियों का भी तो अधिकार है, कश्मीर में जिस तरह से आम लोगों मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ था उसके जवाब में 370 का हट जाना बहुत सराहनीय कदम था ठीक उसी तरह महिलाओं के खिलाफ बेटियों के खिलाफ अत्याचार करने वालों के साथ अगर एनकाउंटर कर दिया तो कोई बुराई नहीं है । आधी रात को खुल जाने वाली अदालतों में खर्राटे मारती हुई फाइलिंग बरसों धूल की चादर ओढ़तीं रहें तो जनता अगर कोई निर्णय लेती है तो गलत क्या है . टनों मॉम पिघलने के बाद भी लाखों पढ़ने लिखे जाने के बाद भी अगर व्यवस्था दंडित ना कर सके तो यह स्थिति आनी ही थी ।
यहां समाज को भी समझना होगा कि भारत में अब यह नहीं चलेगा लिहाजा
अभिभावक भी संभल जाए और समझ जाएं कि उन्हें अपने पुरुष संतानों को क्या सिखाना है और अगर आप ना समझ पाए तो अपने बुजुर्गों की गोद में उन्हें अवश्य भेजें कम से कम उनके पास वक्त होगा बच्चों को संस्कारित करने के लिए । अगर माता-पिता यह नहीं कर सकते तो उन्हें भी माता पिता के पद पर रहने का कोई हक नहीं छोड़ देना चाहिए उन्हें अपने इस गरिमामय पद ।
अपने जीवन काल में आपने भी देखे होंगे बदतमीज लोगों को जो सामने से गुजरती हुई महिला को लगभग खा जाने वाली निगाहों से देखते हैं ।
मुझे मेरी पत्नी एक किस्सा सुनाया करती है ,,,,, वे 89-90 में वे अपने पिता के साथ जो वयोवृद्ध थे राज्य सरकार के राजस्व विभाग में अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए थे ट्रेन से जबलपुर से हरदा जा रहे थे । पिपरिया आते-आते तक शोहदों ने बुजुर्ग पिता से यानी मेरे ससुर जी से अभद्र हरकत शुरू कर दी . और फिर बागरा तवा के टनल में अभद्रता की हदें पार करते हुए अभद्र वार्तालाप भी करने लगे । पत्नी को यह बात नागवार गुजरी और उसने अपने पिता का छाता लेकर उन पर आक्रमण कर दिया । ऐसा नहीं था कि ट्रेन में पुलिस वाला नहीं था पुलिस वाला था एक नहीं दो पुलिस वाले थे एक गेट पर खड़ा और दूसरा सो रहा था । मेरी पत्नी ने गेट पर खड़े पुलिस वाले का डंडा छीना और उन लड़कों पर आक्रमण शुरू कर दिया अब तो भी अगली स्टेशन गुर्रा फटाफट कोच से बाहर हो गए । यह उस दौर की कहानी है जब महिलाओं के लिए प्रतिबंध आम बात थी । पर अब स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं परंतु समाज का रवैया वैसा ही है संस्कार ही ऐसा नहीं है कि से निचले स्तर के लोग ही इस तरह का व्यवहार करते हैं । ऐसे व्यवहारों के लिए संभ्रांत परिवार की बिगड़ैल औलादे यहां तक कि प्रौढ़ एवं बुजुर्ग जो संस्कार हीन होते हैं यह सब करते हुए आपको नजर आ जाएंगे । विद्यालयों महाविद्यालयों सरकारी संस्थाओं गैर सरकारी इंस्टीट्यूशंस में कुल मिलाकर कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां आज भी महिला को सुरक्षित होने का दावा किया जा सकता है । मध्य रात्रि को कोर्ट खुलवाने वाले ट्विटर पर फेसबुक पर अथवा अन्य किसी सोशल मीडिया पर अपनी बात कह कर यश अर्जित करने वाले माया नगरी के लोग भी कम नहीं है । इसकी मूल वजह यह है कि हम अपनी सांस्कृतिक नैतिकता को बलाए तक रख देते हैं । पोर्न फिल्में देखना, वर्जनाओं के विरुद्ध अपने आप को क्रांतिकारी सिद्ध करने की कोशिश करने वाले लोग अपनी संतानों को ऐसे कोई संस्कार नहीं दे पा रहे हैं जो भारतीय परिवेश के अनुकूल हों ।
शिवाजी की कहानी याद होगी वारियर शिवाजी के सैनिक जब लूट का माल लेकर दरबार में दाखिल हुए तो उन्होंने एक डोली में एक अनिद्य सुंदर स्त्री को भी शिवाजी के समक्ष प्रस्तुत किया । शिवाजी ने कहा वाह कितनी सुंदर हो बिल्कुल मेरी मां की तरह सैनिकों को काटो तो खून ना था ।
यह थे तब के संस्कार पर अब अब हम संस्कृति संस्कार की बात करने वालों को मूर्ख समझते हैं परिणाम स्वरूप सामाजिक विद्रूपता और हैदराबाद उन्नाव कठुआ जैसी स्थितियां सामने आती हैं । हैदराबाद पुलिस ने जो किया अगर मानव अधिकार आयोग अथवा ऐसे कोई संगठन या विचारधारा वाले लोग इस पर कोई भी आपत्ति उठाते हैं तो देश के लिए शिकारियों नहीं भी हो सकता होगा । हां मैं सब से कहूंगा कि अनुशासन बना कि रखें आपकी आवाज बहुत दूर तक जा चुकी है बस अब थोड़ा वक्त व्यवस्था को भी दिया जाए और ज्यादा वक्त खुद को सुधारने में खपा दिया जाए .
*न भाषण से होगा न अनशन से होगा*
*दरिन्दों का ख़ात्मा सिर्फ़ गन से होगा
जब कभी साहित्यकार विचारक चिंतक बेचैन हो जाते हैं तब ऐसा लिखते हैं जैसा आदरणीय मैत्रेई पुष्पा ने लिखा है .
मैत्रेई पुष्पा जी उतनी ही संवेदनशील है जितना बाकी सृजन करता होते हैं । हम कभी नहीं चाहते कि कोई मारा जाए परंतु बात पर हम सब एकमत हैं अगर रेप किया है भारतीय अस्मिता पर किसी भी तरह की चोट करने की कोशिश की तो फैसला गन से ही होना चाहिए ।
हैदराबाद पुलिस ने जो किया उससे बहुत सारे संदेश निकल कर जा रहे हैं व्यवस्था जनतंत्र में जनता की आवाज को सुन पा रही है अब उन्नाव की बारी है । हर उस मानव अधिकार की झंडा बरदारी करने वालों को समझ में आना चाहिए की राष्ट्रीय हितों और महिलाओं के ईश्वर दत्त अधिकारों के हनन से बड़ा कोई अधिकार नहीं है और अगर अब कोई भी आयातित विचारधारा पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध करेगा तो बेशक एक्सपोज हो जाएगा जिसे भी बोलना है वह पुलिस के इस कदम को सही बताए तो बोले वरना मुंह में कपड़ा बांधकर चुपचाप रहे । हम साहित्यकार बिल्कुल हिंसा पसंद नहीं करते इसका यह आशय नहीं है कि किसी के अधिकार का अतिक्रमण करने वाले को जिंदा रहने का हक भी देते हैं .
महायोगी कृष्ण श्री कृष्ण ने महाभारत की अनुमति दी थी । जरूरत होने पर शस्त्र उठाना ही बुद्धिमत्ता है भारतीय दर्शन यह कहता है और इसे अस्वीकार करना मूर्खता ही है ।
उन्नाव कठुआ जबलपुर भोपाल हबीबगंज जैसी घटनाएं सामने आ भी जा रहे हैं मीडिया भी परेशान है सोशल मीडिया पर उन्मुक्त आवाजें उठती जा रहे हैं 7 वर्षों से इन आवाजों को सुनने वाला ऐसा लगता था कि कोई नहीं । नारी हिंसा के खिलाफ अगर यह कदम उठाया तो सिर्फ वॉरियर्स ने सोशल वारियर्स ने बेशक एक कदम कई सारे रास्ते निर्धारित करेगा जहां संदेश जाना था वहां पहुंच भी गया है ।
समाज को भी समझ लेना चाहिए कि अपनी पुरुष संतानों को सम्मान करना सिखाए । समाज को चाहिए कि अगर घर का कोई बच्चा इस तरह के कार्यों में संलग्न है तो उसे प्रताड़ना देने से किसी के मानव अधिकार का हनन नहीं होता आखिर विक्टिम समाज यानि महिलाओं का बेटियों का भी तो अधिकार है, कश्मीर में जिस तरह से आम लोगों मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ था उसके जवाब में 370 का हट जाना बहुत सराहनीय कदम था ठीक उसी तरह महिलाओं के खिलाफ बेटियों के खिलाफ अत्याचार करने वालों के साथ अगर एनकाउंटर कर दिया तो कोई बुराई नहीं है । आधी रात को खुल जाने वाली अदालतों में खर्राटे मारती हुई फाइलिंग बरसों धूल की चादर ओढ़तीं रहें तो जनता अगर कोई निर्णय लेती है तो गलत क्या है . टनों मॉम पिघलने के बाद भी लाखों पढ़ने लिखे जाने के बाद भी अगर व्यवस्था दंडित ना कर सके तो यह स्थिति आनी ही थी ।
यहां समाज को भी समझना होगा कि भारत में अब यह नहीं चलेगा लिहाजा
अभिभावक भी संभल जाए और समझ जाएं कि उन्हें अपने पुरुष संतानों को क्या सिखाना है और अगर आप ना समझ पाए तो अपने बुजुर्गों की गोद में उन्हें अवश्य भेजें कम से कम उनके पास वक्त होगा बच्चों को संस्कारित करने के लिए । अगर माता-पिता यह नहीं कर सकते तो उन्हें भी माता पिता के पद पर रहने का कोई हक नहीं छोड़ देना चाहिए उन्हें अपने इस गरिमामय पद ।
अपने जीवन काल में आपने भी देखे होंगे बदतमीज लोगों को जो सामने से गुजरती हुई महिला को लगभग खा जाने वाली निगाहों से देखते हैं ।
मुझे मेरी पत्नी एक किस्सा सुनाया करती है ,,,,, वे 89-90 में वे अपने पिता के साथ जो वयोवृद्ध थे राज्य सरकार के राजस्व विभाग में अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए थे ट्रेन से जबलपुर से हरदा जा रहे थे । पिपरिया आते-आते तक शोहदों ने बुजुर्ग पिता से यानी मेरे ससुर जी से अभद्र हरकत शुरू कर दी . और फिर बागरा तवा के टनल में अभद्रता की हदें पार करते हुए अभद्र वार्तालाप भी करने लगे । पत्नी को यह बात नागवार गुजरी और उसने अपने पिता का छाता लेकर उन पर आक्रमण कर दिया । ऐसा नहीं था कि ट्रेन में पुलिस वाला नहीं था पुलिस वाला था एक नहीं दो पुलिस वाले थे एक गेट पर खड़ा और दूसरा सो रहा था । मेरी पत्नी ने गेट पर खड़े पुलिस वाले का डंडा छीना और उन लड़कों पर आक्रमण शुरू कर दिया अब तो भी अगली स्टेशन गुर्रा फटाफट कोच से बाहर हो गए । यह उस दौर की कहानी है जब महिलाओं के लिए प्रतिबंध आम बात थी । पर अब स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं परंतु समाज का रवैया वैसा ही है संस्कार ही ऐसा नहीं है कि से निचले स्तर के लोग ही इस तरह का व्यवहार करते हैं । ऐसे व्यवहारों के लिए संभ्रांत परिवार की बिगड़ैल औलादे यहां तक कि प्रौढ़ एवं बुजुर्ग जो संस्कार हीन होते हैं यह सब करते हुए आपको नजर आ जाएंगे । विद्यालयों महाविद्यालयों सरकारी संस्थाओं गैर सरकारी इंस्टीट्यूशंस में कुल मिलाकर कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां आज भी महिला को सुरक्षित होने का दावा किया जा सकता है । मध्य रात्रि को कोर्ट खुलवाने वाले ट्विटर पर फेसबुक पर अथवा अन्य किसी सोशल मीडिया पर अपनी बात कह कर यश अर्जित करने वाले माया नगरी के लोग भी कम नहीं है । इसकी मूल वजह यह है कि हम अपनी सांस्कृतिक नैतिकता को बलाए तक रख देते हैं । पोर्न फिल्में देखना, वर्जनाओं के विरुद्ध अपने आप को क्रांतिकारी सिद्ध करने की कोशिश करने वाले लोग अपनी संतानों को ऐसे कोई संस्कार नहीं दे पा रहे हैं जो भारतीय परिवेश के अनुकूल हों ।
शिवाजी की कहानी याद होगी वारियर शिवाजी के सैनिक जब लूट का माल लेकर दरबार में दाखिल हुए तो उन्होंने एक डोली में एक अनिद्य सुंदर स्त्री को भी शिवाजी के समक्ष प्रस्तुत किया । शिवाजी ने कहा वाह कितनी सुंदर हो बिल्कुल मेरी मां की तरह सैनिकों को काटो तो खून ना था ।
यह थे तब के संस्कार पर अब अब हम संस्कृति संस्कार की बात करने वालों को मूर्ख समझते हैं परिणाम स्वरूप सामाजिक विद्रूपता और हैदराबाद उन्नाव कठुआ जैसी स्थितियां सामने आती हैं । हैदराबाद पुलिस ने जो किया अगर मानव अधिकार आयोग अथवा ऐसे कोई संगठन या विचारधारा वाले लोग इस पर कोई भी आपत्ति उठाते हैं तो देश के लिए शिकारियों नहीं भी हो सकता होगा । हां मैं सब से कहूंगा कि अनुशासन बना कि रखें आपकी आवाज बहुत दूर तक जा चुकी है बस अब थोड़ा वक्त व्यवस्था को भी दिया जाए और ज्यादा वक्त खुद को सुधारने में खपा दिया जाए .