22.3.13

मिस्टर लाल हर हाल में बेहाल


श्रीमान लाल 
                             
गिरीश बिल्लोरे “"मुकुल”                 
   मिस्टर लाल मेरे ज़ेहन में बसा वो चरित्र है जो न तो हटाए हटता न ही भगाए भागता.. हर हाल में बेहाल मिस्टर लाल का ऐसा चरित्र था कि आप दूर से असहज हो जाएं पास आकर उनके आपको मानसिक दुबलापन महसूस होने लगता .. न न आप चिंता मत कीजिये मिस्टर लाल अब आपसे कभी न मिल पाएंगे क्योंकि वे इन दिनों लापतागंजवासी हो गये.
           उफ़्फ़ ये क्या सोच लिया आपने  ? मैने कब कहा कि वो –परलोक सिधारें हैं ! अर्रे वो तो ऐसी जगह गये हैं जिसका हमको पताईच्च नईं है. जिस जगह का पता न हो वो लापतागंज ही तो कहायगा न भाई.. !
     मिस्टर जाति से मानव जाति के थे जीव थे पेशे से सेवानिवृत्त अफ़सर, वृत्ति से आत्ममुग्ध, आर्थिक स्थिति वास्तव में अच्छी पर जनता के लिये दुनियां के टाप टेन ग़रीबों की सूची के पहले स्थान पर अंकित व्यक्ति थे. तो अब आप पूछेंगे कि क्या फ़ोर्ब्स की तरह ऐसी कोई किताब निकलती है जिसमें टाप-10 ग़रीबों के नाम छपते हैं.. ? या कि फ़ोर्ब्स में ही ये नाम छापे जाते हैं..?
      अब आप इस कथा को बांच रहे हैं न ! तो बांचिये काय बीच बीच में बोल के हमको डिस्टर्ब कर रहे हैं.. ! बताईये भला कोई ग़रीबों पर लिख के अपनी मैग्ज़ीन बंद करायेगा. फ़ोर्ब्स को का पड़ी है गरीबों पर विचार करने की. अपने सियासी लोगों के लिये ज़रूरी हैं ग़रीब और उनकी ग़रीबी ! सच इनके बिना सियासत एक भी क़दम आगे चले तो कहिये .
              हां तो अब कोई टोका टाकी न हो कथा फ़िर से शुरु करता हूं जिधर से छोड़ी थी-  मिस्टर जाति से मानव जाति के थे जीव थे पेशे से सेवानिवृत्त अफ़सर, वृत्ति से आत्ममुग्ध, आर्थिक स्थिति वास्तव में अच्छी पर जनता के लिये दुनियां के टाप टेन ग़रीबों की सूची के पहले स्थान पर अंकित व्यक्ति थे . अखबारों में रोज़िन्ना किराना, सोना, कपड़े का भाव देखते और लगते सरकार को कोसने. और फ़िर किसी के भी घर जाकर अपनी भड़ास निकालते- “इससे तो अंग्रेज राज़ अच्छा था, चैन की रोटी तो खाते थे, हमारे बाप दादे दस दस औलादों की भीड़ आसानी से पालते थे.”
      आज़ से असहमति की सर्वोच्च मिसाल हैं ऐसे वक्तव्य. गुलामी मंज़ूर पर रोजिया रेट-इज़ाफ़ा बर्दाश्त नहीं मि.लाल को.  मि. लाल ने बताया था एक दिन - “स्साला जित्ते में बेटे के दो बच्चों का एडमीशन हुआ उत्ते में तो हमारे गांव के बारह लड़के मेट्रिक पास हो गये थे..!”
    बज़ा फ़रमाया लाल साब ने एक दिन तो गज़ब ही बोल गये-“अर्र हमारी मां ने जितनी भी औलादें जनीं सब मरते दम उनके साथ थीं और एक जे थीं जो मरीं तो हमको अकेले क्रिया-करम कराना पड़ा ” – स्वर्गवासी अर्धांगिनी को दोष देते मिस्टर लाल को गोया मुखाग्नि देना भी गवारा न था.
      लाल साहब सुबह से म्यूनिस्पल, सरकार, मीडिया-अखबार, मौज़ूदा पहनावे, लोगों के आचार-विचार चाल-ढाल, शिक्षा व्यवस्था, यहां तक कि अपने दरवाज़े पर खड़े कुत्ते तक से असहमत रहते थे- एक बार हमने उनको सुना वे मुहल्ले के भूरा नाम के कुत्ते को डंडा फ़ैंक के मारते हुए बोल रहे थे-“स्साले, यहां ऐसे खड़ा है जैसे मैने तेरे बाप से कोई कर्ज़ लिया हो ?” कुत्ता दुम दबा के भाग निकला. हमें लगा कि मि. लाल का कुत्ते से वर्तमान में कोई बैर नहीं उसके बाप से अवश्य है. मित्रो , भले ही मि.लाल लापतागंज वासी हो गए पर असहमति के जीवाणु यत्र-तत्र-सर्वत्र है. हर आदमी दूसरे को गरियाता कोसता नज़र आ जाता है. टीवी वगैरा में रोज ऐसे किरदार बाक़ायदा बिलानागा दिखाए जाते हैं. अखबारों की सुर्खियों के लिये ऐसे ही लोग काम आते हैं. हम आप जब सार्वजनिक स्थान पर होते हैं तब ऐसे ही कोसते हैं न किसी को भी . राज की बात है आपको कहे देता हूं किसी को न कहिये- मि. लाल कोई नहीं मैं हूं, तुम हो, ये हैं, वो हैं, अर्र रुको भाई हां तुम काली पतलून वाले सा’ब तुम भी तो हो न मि.लाल.
क्या कहा- कहां है लापतागंज ?
ये ही तो है लापतागंज जहां मैं हूं, तुम हो, ये हैं, वो हैं, और वो भी हैं जो काली पतलून पहने हैं . हम जहां भी होते है लापतागंज में होते हैं.
    

18.3.13

पलाश से संवाद !

श्रीमति रानी विशाल जी के
ब्लाग  काव्यतरंग से साभार

                     पलाश तुम भी अज़ीब हो कोई तुम्हैं  वीतरागी समझता है तो कोई अनुरागी. और तुम हो कि बस सिर पर अनोखा रंग लगाए अपने नीचे की ज़मीन तक  को संवारते दिखते हो. लोग हैरान हैं... सबके सब अचंभित से तकते हैं तुमको गोया कह पूछ रहे हों.. हमारी तरह चेहरे संवारों ज़मीन को क्यों संवारते हो पागल हो पलाश तुम ..
                      जिसके लिये जो भी हो तुम मेरे लिये एक सवाल हो पलाश, जो खुद तो सुंदर दिखना चाहता है पर बिना इस बात पर विचार किये ज़मीन का श्रृंगार खुद के लिये ज़रूरी साधन से करता है.. ये तो वीतराग है. परंतु प्रियतमा ने कहा था –
आओ प्रिय तुमबिन लौहित अधर अधीर हुए
अरु पलाश भी  डाल-डाल  शमशीर हुए.
रमणी हूं रमण करो फ़िर चाहे भ्रमण करो..
फ़ागुन में मिलने के वादे प्रियतम अब तो  तीर हुए ...!!
                  मुझे तो तुम तो वीतरागी लगते हो.. ये तुम्हारा सुर्ख लाल  रंग जो हर सुर्ख लाल रंग से अलग है.. अपलक देखता हूं तो मुझे लगता है... कोई तपस्वी युग कल्याण के भाव  लिये योगमुद्रा में है. तुम चिंतन में होते हो पलाश और फ़ागुन की मादक बयार के सताये  प्रेमी तुमको चिंतनरत देख चिंतित नज़र आते हैं. ऐसा भ्रम मत फ़ैलाओ पलाश तुम योगी हो. यदि तुम योगी न होते तो वेदपाठी ब्राह्मण  पुत्र तुम्हैं याज्ञिक  न मानते .
                    मन कवि के विचार प्रवाह तब अचानक और तीव्रता से प्रवाहित होने लगे जब वन पथ से गुज़रती गाड़ी से दाएं-बांए एक पूरा विस्तृत पलाश वन दिखा अलमस्त पलाश जिसे कुछ लोग कहते हैं.. दहकते पलाशों से झरित रोगन सारी वन भू को रंगोली की तरह सजाया.. ! 
            तुमको किंसुक , पर्ण , याज्ञिक , रक्तपुष्पक , क्षारश्रेष्ठ , वात-पोथ , ब्रह्मावृक्ष , ब्रह्मावृक्षक , ब्रह्मोपनेता , समिद्धर , करक , त्रिपत्रक , ब्रह्मपादप , पलाशक , त्रिपर्ण , रक्तपुष्प , पुतद्रु , काष्ठद्रु , बीजस्नेह , कृमिघ्न , वक्रपुष्पक , सुपर्णी कहा जाता है.. तुम लता, वृक्ष , और क्षद्म रूप में प्रकृति को सजाते हो. तो कहीं वैद्य के लिये तुम से सर्वसुलभ कोई वनस्पति नहीं होती जो कई रोग से मुक्ति दे. 
      तुम्हारी जड़ के रेशे अघोर-तापस की जटाओं से कम नहीं हैं पलाश. वनचारी जानते हैं कि नारियल के तंतुओं को तुम्हारी जड़ में छिपे रेशे मात देते हैं. उनसे ऐसी डोर बुनी जाती जो लोहे के तारों से को भी पराजित करतीं हैं. तुम्हारी छाल के रेशों से पाल-नौकाओं, जहाज़ों की दरारों से आते पानी को रोकना प्राचीन सभ्यता को ज्ञात था.  
            पर्ण विहीन होते होकर माधव महीने में तुम ऐसा अदभुत रूप रखते हो कि सदेह बैरागी भी भावातुर हो जाए. चलो पलाश इस बार इतना ही .. तुम मेरी नज़र और नज़रिये से भले वीतरागी हो पर प्रणयातुर कामिनी और उसके प्रियतम के लिये प्रेमातुर ही आभासित होना.. प्रेम के प्रतीकों में कमी आ जाएगी जो आज़ के हिंसक एवम कुंठित समय के लिये अधिक घातक होगा. और हां कवियों को भी माधव माह में तुम्हारे बिना कौन सा प्रतीक मिलेगा तुम उन सबकी दृष्टि में अनुरागी थे हो और बने रहना ..........  
     

11.3.13

भारतीय राष्ट्रीय खाद्य पदार्थ कसम

                  राम धई, राम कसम, अल्ला कसम, रब दी सौं, तेरी कसम, मां कसम,पापा कसम, आदि कसमें भारत का  लोकप्रिय खाद्य पदार्थ हैं. इनके खाने से मानव प्रजाति को बहुत कुछ हासिल होता है. चिकित्सालय में डाक्टर बीमारी के लिये ये खाना वो मत खाना जैसी सलाह खूब देते हैं पर किसी चिकित्सक ने कसम नामक खाद्य-पदार्थ के सेवन पर कभी एतराज़ नहीं जताया. न तो किसी वैद्य ने न हक़ीम ने, और तो और  चौंगा लगा के  फ़ुटपाथ पे ज़वानी बचाए रखने वाली दवा बेचने वाले भाईयों तक ने इसको खाने से रोका नहीं. 
  यानी कुल मिला कर क़सम किसी प्रकार से नुक़सान देह नहीं डाक्टरी नज़रिये से. क़ानूनी नज़रिये से देखिये फ़िल्मी अदालतों में कसम खिलावाई जातीं हैं. हम नौकरी पेशा लोगों से सेवा पुस्तिका में कसम की एंट्री कराई जाती है. और तो और संसद, विधान सभाओं , मंत्री पदों अन्य सभी पदों पर चिपकने से पेश्तर इसको खाना ज़रूरी है. 
    कसम से फ़िलम वालों को भी कोई गुरेज़ नहीं वे भी तीसरी कसमकसम  सौगंधसौगंध गंगा मैया के ... बना चुके हैं. गानों की मत पूछिये कसम  का स्तेमाल  खूब किया है गीतकारों ने. भी. 
          मान लीजिये कभी ये  राम धई, राम कसम, अल्ला कसम, रब दी सौं, तेरी कसम, मां कसम, जैसी जिन्सें आकार ले लें और ऊगने लगें तो सरकार कृषि विभाग की तर्ज़ पर "कसम-विभाग" की स्थापना करेगी बाक़ायदा . सरकार ऐसा इस लिये करेगी क्योंकि - यही एक खाद्य-पदार्थ है जो सुपाच्य है. इसे खाने से कब्ज़ जैसी बीमारी होना तो दूर खाद्य-जनित अथवा अत्यधिक सेवन से उपजी बीमारियां कदापि न तो अब तक किसी को हुई है न इन के जिंस में बदल जाने के बाद किसी को हो सकती है. चिकित्सा विज्ञान ने तो इस पर अनुसंधान भी आरंभ कर दिये हैं. बाक़ायदा कसम-मंत्रियों  का पद भी ईज़ाद होगा. इसके लिये विधेयक संसद में लाया जावेगा. 
      पैट्रोल-डीज़ल-गैस की तरह इनकी कीमतों में बदलाव जब जी चाहे सरकार कर सकती है. 
 कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनको कसम खाना भी नहीं आता दिल्ली वाले फ़ेसबुक स्टार 
   राजीव तनेजा  इनमें से एक हैं सौगंध राम की खाऊं कैसे ? वे लिखते हैं अपनी कविता में 
कारस्तानी कुछ बेशर्मों की 
शर्मसार है पूरा इंडिया, 
अपने में मग्न बेखबर हो ?
वीणा-तार झनकाऊं कैसे ?
सौगंध राम की खाऊं कैसे..?

                             इस तरह की लाचारी उनकी होगी जिनके पास हमारे मुहल्ले के पार्षद उम्मीदवार राम-रहीम की कसम खाने में *सिद्धमुख हैं. इस मामले में वे पूरे सैक्यूलर नज़र आते हैं आप समझ गए न कसम क्यों खाई जाती है.. कसम भी सेक्यूलर होती है.. ये तय है.. कभी कभी नहीं भी होती. 
   
             खैर ये जब होगा तब सोचिये अभी तो इससे होने वाले लाभों पर एक नज़रफ़ेरी कर ली जाए 
  1. सच्ची-कसमें- ये तो केवल झुमरी तलैया वालों ने खाई थी . हमेशा फरमाइश करते रहने की .  इस प्रकार की कस्में अब दुनियां के बाज़ार से लापतागंज की ओर चलीं गईं हैं. लापतागंज है कहां हमको नहीं मालूम.. जैसे झुमरी-तलैया के बारे में बहुत कम लोग जानतें हैं.. कई तो उसे काल्पनिक स्थान मान चुके है वास्तव मे विकीपीडिया के अनुसार "झुमरी तिलैया भारत के पूर्वांचल में स्थित झारखंड प्रांत के कोडरमा जिले का एक छोटा लेकिन मशहूर कस्‍बा है। झुमरी तिलैया को झुमरी तलैया के नाम से भी जाना जाता है। यहां की आबादी करीब 70 हजार है और स्‍थानीय निवासी मूलत: मगही बोलते हैं। झुमरी तलैया कोडरमा जिला मुख्‍यालय से करीब छ: किमी दूर स्थित है। झुमरी तलैया में करीब दो दर्जन स्‍कूल और कॉलेज हैं। इनमें से एक तलैया सैनिक स्‍कूल भी है।
    दामोदर नदी में आने वाली विनाशकारी बाढ़ को रोकने के लिए बनाए गए तलैया बांध के कारण इसके नाम के साथ तलैया जुड़ा है। इस बांध की ऊंचाई करीब 100 फीट और लंबाई 1200 फीट है। इसका रिजरवायर करीब 36 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। काफी हरा-भरा क्षेत्र होने के कारण यह एक अच्‍छे पिकनिक स्‍थल के रूप में भी जाना जाता है।
    झरना कुंडतलैया बांध और ध्‍वजाधारी पर्वत सहित यहां कई पर्यटन स्‍थल भी हैं। इसके अलावा राजगिरनालंदा और हजारीबाग राष्‍ट्रीय पार्क अन्‍य नजदीकी पर्यटन स्‍थल हैं। झुमरी तलैया पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्‍टेशन कोडरमा है जो नई दिल्‍ली-कोलकाता रेलमार्ग पर स्थित है।
    झुमरी तलैया को अक्‍सर एक काल्‍पनिक स्‍थान समझने की भूल कर दी जाती है लेकिन इसकी ख्‍याति की प्रमुख वजह एक जमाने में यहां की अभ्रक खदानों के अलावा यहां के रेडियो प्रेमी श्रोताओं की बड़ी संख्‍या भी है। झुमरी तलैया के रेडियो प्रेमी श्रोता विविध भारती के फरमाइशी कार्यक्रमों में सबसे ज्‍यादा चिट्ठियां लिखने के लिए जाने जाते हैं।" वैसे ही लापतागंज जहां  भी है है तो ज़रूर .... वहां सच्ची कसमें मौज़ूद हैं
  2. झूठी कसमें :-  ये हर जगह मौजूद हैं आप के पास भी.. मेरे पास भी .. इसे खाईये और अच्छे से अच्छा मामला सुलटाइये. सच मानिये इसे खाकर आप जनता को पटाकर आम आदमी (केजरी चच्चा वाला नहीं )   से खास बन सकते हैं. याद होगा  श्री 420 वाले राजकपूर साहब ने मंजन इसी प्रकार की कसम खाकर बेचा था. आज़कल भी व्यापारिक कम्पनियां राजू की स्टाइल में पने अपने प्रोडक्ट बेच रहीं हैं. क्या नेता क्या अफ़सर क्या मंत्री क्या संत्री अधिकांश  के पेट इसी से भरते हैं . खबरिया बनाम जबरिया चैनल्स की तो महिमा अपरम्पार है कहते हैं .. हमारी खबर सबसे सच्ची है.. ! देश का बच्चा बच्चा जानता है कि सच क्या है . 
  3.  सेक्यूलर कसम :- इस बारे में ज़्यादा कुछ न कहूंगा. हम बोलेगा तो बोलेगे कि बोलता है. 
  4.  दाम्पत्य कसम  :- अक्सर पति पत्नी एक दूसरे के सामने खाते हैं जो उन सात कसमों से इतर होतीं हैं.. जो शादी-नामक भयंकर घटना के दौरान खाई जाती है.इस तरह की कसम पतिदेव को ज़्यादा मात्रा में खानी होती है. पत्नी को दाम्पत्य कसम  कभी कभार खानी होती है . 
  5. इन लव  कसम  :- यह कसम यूं तो विवाह जोग होने के बाद आई एम इन लव की स्थिति में खाना चाहिये परंतु ऐसी कसम आजकल नन्हीं पौध तक खा रही है. एकता कपूर जी की कसम आने वाले समय में बच्चे ऐसी कसमें पालनें में खाएंगे. 
  6. सियासी-कसम  :-  सियासी कसम के बारे में भगवान कसम कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा ...!! 
                        जो भी हो हम तो कसम के प्रकार बता रहे थे भगवान कसम  भाववेश में कुछ ज़्यादा ही कह गए. माफ़ी हो. मुद्दे की बात ये है कि जो भी आजकल कसम खा रहा नज़र आए तो समझिये वो झूठा है. सच्ची वाली कसमें तो लापतागंज चलीं गईं. 

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नोट- 
·        *सिद्धमुख =सिद्धहस्त की तरह का शब्द है. जिन लोगों में मुंह से हर काम निपटाने का हुनर आता है उनके मुंह  सिद्धमुख होते हैं. 

·        इस आलेख का सारा कंटेंट होली का माहौल बनाने के लिये है जिसे बुरा लगा हो वो ऐसे आलेख न पढ़ने की कसम खा सकता है.  
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यशभारत जबलपुर ने इसे प्रकाशित किया 17-03-2013 के अंक में

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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