मूर्ति पूजा और मूर्ति पूजा को को लेकर एक विचित्र सा
वातावरण उत्पन्न कर दिया गया है। यह वातावरण इस्लाम के प्रसार के साथ बहुत अधिक
तेजी से निर्मित हुआ। मंदिरों में तोड़फोड़ करना उन्हें जमींदोज करना एक मिशन बन
गया था। गजनवी से पहले भी ऐसी वारदातें होती रहे हैं। भारत में
वास्तुकला एवं मूर्ती-कला का विकास पूर्व वैदिक काल तथा वैदिक काल में ही
हो गया था। परंतु मूर्तिकला का विस्तार मिलते ही कई शिल्पकार वास्तु एवं शिल्प
संरचना के लिए सक्रीय हो गये. शिल्प एवं
मूर्तिकला के विकास के सहारे किसी भी
सभ्यता के विकास को अस्वीकार नहीं की जा सकती. अर्थात सभ्यता के विकास लिए
शिल्प एवं मूर्तिकला के विकास को एक घटक मानना चाहिए. सुर-असुर कथानकों को पर
ध्यान दें तो... हम पातें हैं कि असुरों ने बड़े बड़े ऐसे किलों का निर्माण कराया
जिससे सुर-समूह से सुराक्षा मिल सके. इंद्र को पुरंदर की पदवी असुरों के दुर्ग ध्वस्त करने के कारण ही प्राप्त थी.
आइये अब हम विचार करतें हैं... मूर्ति-कला के विस्तार की
वजह क्या है. वास्तव में मूर्तिकला जब बड़े पैमाने पर जनता द्वारा अपनाई जाने लगी
तब उसे राजाश्रय भी मिला. राजाश्रय से कला का तीव्रता से विकास हुआ .भारतीय
नदी-घाटी सभ्यताओं में यूनानी सभ्यताओं
तथा हर सभ्यताओं में रहने वाली नस्लों ने अपनी संस्कृति में कला तत्वों के मौजूदगी
के प्रमाण दिए हैं. भारतीय सन्दर्भ में
देखा जाए तो वेदों में भले ही पूजन प्रणाली देवी-देवताओं को यज्ञ में हव्य अर्थात समिधा डालकर आहूत किया जाता रहा है, किन्तु कालान्तर में शिव पूजन के लिए
अनाकृत-मूर्तियों का पूजन प्रारम्भ हो गया . कालान्तर में ईश्वर / ईश्वर के
स्वरूपों एवं देवताओं को आकृति के रूप में पूजा जाने लगा.
मूर्तिकला के विकास के साथ साथ कला के सम्मान को
चिर-स्थायित्व देने के लिए उसे पूजा प्रणाली का अनिवार्य हिस्सा समकालीन भारतीय
सामाजिक व्यवस्था द्वारा बनाया गया. इस क्रम में यह उल्लेख अनिवार्य है कि-“भारतीय
सभ्यता में बुद्ध के पूर्व आंशिक रूप से मूर्ति-आराधना का शुभारंभ हो गया था.”
परन्तु बुद्ध के बाद मठों में मूर्ती-पूजा अधिक विस्तारित हुई. इसी क्रम में
सिन्धु-घाटी सभ्यता में मूर्ति पूजा के प्रमाण मिलें हैं. मध्यप्रदेश के पचमढ़ी
क्षेत्र एवं मंदसौर में मिले गुफा चित्रों
एवं कप्स की खोज वाकणकर जी ने खोजकर गुफा
कालीन 70 हज़ार साल पुरानी मानव प्रजाति की विक्सित होती सभ्यता के विकास में कला की मौजूदगी का प्रमाण
दिया था. जो मूर्तिकला का अत्यंत प्राथिक प्रमाण था. 7000 हज़ार वर्ष-पूर्व रामायण
काल में तथा 5000 साल प्राचीन महाभारत काल
में शिव की पूजन के दो उदाहरण मिलते हैं.
रामेश्वरम में शिव लिंग की श्री राम द्वारा तथा गंधार (कंधार) में गांधारी द्वारा
की साधना का विवरण उल्लेखनीय है. कामोबेश प्रारम्भ में भगवान शिव की क्षवियों की
पूजन का उल्लेख मिलता है. आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से शिवाराधना करते रहे हैं . आज
भी वे बड़ा-देव के स्वरुप पूजित हैं.
तदुपरांत बुद्ध एवं जैन मतों के विस्तार के साथ अखंड भारत में उतर पश्चिमी
भू-भाग अफगानिस्तान से लेकर सम्पूर्ण भारत में बौद्ध,जैन सहित सभी सम्प्रदायों
क्रमश: वैष्णव, शाक्त, ने भी अपनी अपनी आराधना प्रणालियों में मूर्ति-पूजन को
शामिल किया. निर्गुण ब्रह्म के उपासकों ने
भी ब्रह्म के प्रतीकात्मक स्वरूपं
चित्रों, मूर्तियों की आराधना स्वीकृत की . यह एक सांस्कृतिक बदलाव था. ब्रह्म के
स्वरुप का लौकिक अवतरण कराया गया. चोल पांड्य आदि नें दक्षिण भारत से मध्यप्रांत
तक तथा समुद्रीमार्ग से जिन जिन द्वीपों पर राज्य स्थापित किये वहा भी पवित्र
मंदिरों का निर्माण कराया . मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी ईस्वी में कर्कोटा राजवंश के तहत कश्मीर के
तीसरे महाराज ललितादित्य मुक्तापिदा द्वारा किया गया था ।
चंदेल राजाओं ने
दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का
निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया।
मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलों ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी।
लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा।
इसके अतिरिक्त काश्मीर के शारदा-पीठ, के बारे में तो आप सभी जानते हैं .
इसके अतिरिक्त 51 शक्ति पीठों का विवरण निम्नानुसार विकी पीडिया तक में उपलब्ध है.
1. किरीट
शक्तिपीठ : पश्चिम
बंगाल में हुगली नदी के लालबाग कोट तट पर स्थित है। किरात
यानी सिराभूषण या सती माता का मुकुट वहां गिराया गया था। मूर्तियाँ विमला (शुद्ध) के रूप में देवी हैं और संगबर्ता के रूप में शिव
हैं।
2. कात्यायनी शक्तिपीठ : मथुरा के वृंदावन में भूतेश्वर में स्थित है, जहां
सती के केश गिरे थे। देवी शक्ति का प्रतीक हैं जबकि
भैरव भूतेश (जीवों के भगवान) का प्रतीक हैं।
3. कृवीर शक्तिपीठ : महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। देवी की
तीन आँखें वहाँ गिरी थीं। मूर्तियाँ महिषमर्दिनी के रूप में देवी और क्रोधीश के
रूप में शिव हैं।
4. श्री पर्वत शक्तिपीठ :
कुछ विद्वानों का मानना है
कि यह लद्दाख में स्थित है तो कुछ का मानना है
कि यह असम के सिलहट में है। मूर्तियाँ श्री सुंदरी
के रूप में देवी हैं और सुंदरानंद के रूप में शिव हैं।
5. विशालाक्षी
शक्तिपीठ : यहां देवी
के कुंडल (कुंडल) गिरे थे और यह वाराणसी के मीराघाट पर स्थित है, जो देवी के रूप में विश्वलक्ष्मी
और शिव कला के रूप में हैं।
6. गोदावरी तट शक्तिपीठ : आंध्र प्रदेश के गोदावरी तट के कब्बूर में स्थित है। देवी का बायाँ गाल यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ विश्वेश्वरी (जगत की माँ) और
शिव दंडपाणि के रूप में हैं।
7. शुचिन्द्रम शक्तिपीठ: भारत के सबसे दक्षिणी सिरे के पास, तमिलनाडु में
कन्याकुमारी स्थित है। देवी के ऊपरी दाँत यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ नारायणी के
रूप में देवी और संघर के रूप में शिव हैं।
8. पंचसागरशक्ति: इस पीठ का सही स्थान ज्ञात नहीं है, लेकिन देवी के
निचले दांत यहां गिरे थे और मूर्तियाँ बरही के रूप में देवी और महारुद्र के रूप
में शिव हैं।
9. ज्वालामुखी
शक्तिपीठ : हिमाचल
प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है। देवी की जीभ यहाँ गिरी
थी और मूर्तियाँ अम्बिका के रूप में देवी और उन्मत्त के रूप में शिव हैं।
10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ : इसके स्थान को
लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ लोग गिरिनगर, गुजरात में होने का तर्क देते हैं, जबकि कुछ मध्य
प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के पास होने का तर्क देते हैं, जहाँ देवी के ऊपरी होंठ गिरे थे। मूर्तियाँ
अवंती के रूप में देवी और लम्बकर्ण के रूप में शिव हैं। हरसिद्धि मंदिर
11. अट्टाहस शक्तिपीठ :
पश्चिम बंगाल के निकट लाभपुर में है। देवी
के निचले होंठ यहां गिरे थे और मूर्तियाँ फुलरा के रूप में देवी और भैरव विश्वेश
के रूप में शिव हैं।
12. जनस्थान शक्तिपीठ: महाराष्ट्र
के नासिक में पंचवटी में स्थित है। देवी की ठोड़ी यहाँ
गिरी थी और मूर्तियाँ भ्रामरी के रूप में देवी और विक्रमाटक के रूप में शिव हैं।
13. कश्मीर या अमरनाथ शक्तिपीठ :
जम्मू कश्मीर के अमरनाथ में है। देवी की
गर्दन यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ महामाया के रूप में देवी और त्रिसंध्यास्वर के
रूप में शिव हैं।
14. नंदीपुर शक्तिपीठ :
पश्चिम बंगाल के सांथ्य में स्थित है। देवी
का हार यहां गिरा था और मूर्तियां नंदिनी के रूप में देवी और नंदकिशोर के रूप में
शिव हैं।
15. श्री शैल शक्तिपीठ :
कुरनूल, आंध्र प्रदेश के पास। यहां देवी के गले का हिस्सा गिरा था। मूर्तियाँ
महालक्ष्मी के रूप में देवी और शम्बरानंद के रूप में शिव हैं।
16. नलहटी शक्तिपीठ :
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है। देवी की
मुखर नली यहां गिरी थी और मूर्तियां कालिका के रूप में देवी और योगेश के रूप में
शिव हैं।
17. मिथिला शक्तिपीठ : इसका स्थान अभी अज्ञात है। स्थान तीन स्थानों
पर माना जाता है, नेपाल के जनकपुर में और बिहार के समस्तीपुर
और सहरसा में, जहाँ देवी का बायाँ कंधा गिरा था। मूर्तियाँ महादेवी के रूप में देवी और महोदरा के रूप में शिव हैं।
18. रत्नावली शक्तिपीठ : स्थान अज्ञात है, चेन्नई, तमिलनाडु
के पास स्थित होने का सुझाव दिया। देवी का दाहिना कंधा
यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ कुमारी के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव हैं।
19. अंबाजी
शक्तिपीठ : गुजरात की
गिरनार पहाड़ियों में स्थित है। देवी का पेट यहां गिरा
था और मूर्तियां चंद्रभागा के रूप में देवी और वक्रतुंड के रूप में शिव हैं।
20. जालंधर शक्तिपीठ : पंजाब के जालंधर में स्थित है। देवी के बाएं
स्तन यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ त्रिपुरमालिनी के रूप में देवी और भिसन के रूप में
शिव हैं।
21. रामगिरी शक्तिपीठ :
सटीक स्थान ज्ञात नहीं है, चित्रकूट, यूपी में कुछ बहस करते हैं जबकि अन्य मेहर, मध्य
प्रदेश में बहस करते हैं। देवी के दाहिने स्तन यहाँ
गिरे थे और मूर्तियाँ शिवानी के रूप में देवी और चंदा के रूप में शिव हैं।
22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ : झारखंड के
गिरिडीह, देवघर में स्थित है। देवी
का दिल यहां गिर गया और मूर्तियां देवी के रूप में जयदुर्गा और शिव वैद्यनाथ के
रूप में हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां सती का अंतिम
संस्कार किया गया था।
23. वक्रेश्वर शक्तिपीठ: पश्चिम
बंगाल के सांथ्य में स्थित है। देवी का मन या भौंहों का
केंद्र यहां गिरा था और मूर्तियां महिषमर्दिनी के रूप में देवी और वक्रनाथ के रूप
में शिव हैं।
24. कन्याकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ :
कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब
सागर में स्थित तथा बंगाल की खाड़ी, तमिलनाडु के संगम पर
स्थित है। देवी की पीठ यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ देवी
के रूप में शरवानी और शिव निमिषा के रूप में हैं।
25. बहुला शक्तिपीठ: कटवा,
वीरभूम में स्थित, डब्ल्यूबी देवी की बाईं
भुजा यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ बहुला के रूप में देवी और भीरुक के रूप में शिव
हैं।
26. उज्जयिनी शक्तिपीठ: मध्य
प्रदेश के उज्जैन में पवित्र क्षिप्रा के दोनों किनारों पर स्थित है। देवी की कोहनी यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ मंगलचंडी के रूप में देवी और
कपिलंबर के रूप में शिव हैं।
27. मणिवेदिका शक्तिपीठ : राजस्थान
के पुष्कर में स्थित है। गायत्री मंदिर का दूसरा नाम
है। देवी की हथेलियों के बीच या दोनों कलाइयां यहां
गिरी थीं और मूर्तियाँ गायत्री के रूप में देवी और सर्वानंद के रूप में शिव हैं।
28. प्रयाग शक्तिपीठ : इलाहाबाद
में स्थित यूपी देवी की दस अंगुलियां यहां गिरी थीं और मूर्तियां ललिता और शिवा
भाव के रूप में देवी हैं।
29. विरजक्षेत्र, उत्कल शक्तिपीठ: उड़ीसा के पुरी और याजपुर में स्थित है। देवी
की नाभि यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ देवी के रूप में विमला और शिव जगन्नाथ के रूप
में हैं।
30. कांची शक्तिपीठ: तमिलनाडु
के कांचीवरम में स्थित है। देवी का कंकाल यहां गिरा था
और मूर्तियां देवगर्भ के रूप में देवी और रुरु के रूप में शिव हैं।
31. कलमाधव शक्तिपीठ: सटीक स्थान
ज्ञात नहीं है। लेकिन देवी के दाहिने कूल्हे यहाँ गिरे
और मूर्तियाँ काली के रूप में देवी और असितानंद के रूप में शिव हैं।
32. सोना शक्तिपीठ : बिहार में
स्थित है। देवी के बाएं कूल्हे यहाँ गिरे थे और
मूर्तियाँ नर्मदा के रूप में देवी और वाड्रासेन के रूप में शिव हैं।
33. कामाख्या
शक्तिपीठ : असम के
कामगिरी की पहाड़ियों में स्थित है। देवी की योनी या
योनि यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ कामख्या के रूप में देवी और उमानंद के रूप में शिव
हैं।
34. जयंती शक्तिपीठ: जयंतिया
हिल्स, असम में स्थित है। देवी की
बायीं जंघा यहां गिरी थी और मूर्तियाँ जयंती के रूप में देवी और भैरव के रूप में
शिव हैं ??क्रमदीश्वर।
35. मगध शक्तिपीठ : बिहार के
पटना में स्थित है। देवी की दाहिनी जांघ यहां गिरी थी
और मूर्तियां देवी के रूप में सर्वानंदकारी और शिव व्योमकेश के रूप में हैं।
36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ: पश्चिम
बंगाल में जलपाईगुड़ी जिले के शालबारी गाँव में तिस्ता नदी के तट पर स्थित है।
देवी के बाएँ पैर यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ भ्रामरी के रूप में देवी और ईश्वर के
रूप में शिव हैं।
37. त्रिपुरा सुंदरी शक्तित्रीपुरी शक्तिपीठ : त्रिपुरा के किशोर ग्राम में स्थित है। देवी का
दाहिना पैर यहां गिरा था और मूर्तियां त्रिपुरसुंदरी के रूप में देवी और त्रिपुरेश
के रूप में शिव हैं।
38. विभाष शक्तिपीठ: पश्चिम
बंगाल के मेदिनीपुर जिले के तमलुक में स्थित है। देवी
का बायाँ टखना यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ भीमारूपा के रूप में देवी और सर्वानंद के
रूप में शिव हैं।
39. देवीकुप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ: हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन में द्वैपायन शक्ति के पास झील के पास
स्थित है। देवी का दाहिना टखना यहाँ गिरा था और
मूर्तियाँ सावित्री या स्थाणु के रूप में देवी और अश्वनाथ के रूप में शिव हैं। देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र
40. युगद्य शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के खिरग्राम में स्थित है। देवी
का दाहिना पैर का अंगूठा यहां गिरा था और मूर्तियां देवी के रूप में योगदया और शिव
को खिरकंठ के रूप में हैं।
41. अंबिका विराट शक्तिपीठ : राजस्थान
के जयपुर में वैराटग्राम में स्थित है। देवी के पैरों
के छोटे पैर यहां गिरे थे और मूर्तियाँ अंबिका के रूप में देवी और अमृता के रूप
में शिव हैं।
42. कालीघाट शक्तिपीठ : पश्चिम
बंगाल के कलकत्ता में कालीघाट में स्थित है। कालीमंदिर
के नाम से भी जाना जाता है। उनके दाहिने पैर से देवी के
चार छोटे पैर यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ काली के रूप में देवी और नकुलेश या
नकुलेश्वर के रूप में शिव हैं।
43. मनसा शक्तिपीठ: मानसरोवर
झील, तिब्बत के निकट स्थित है। देवी
का दाहिना हाथ या हथेली गिर गई और मूर्तियाँ देवी के रूप में दखचायनी और शिव अमर
के रूप में हैं।
44. लंका शक्तिपीठ : श्रीलंका
में स्थित है। देवी के पैरों की घंटियाँ (नूपुर) यहाँ
गिरी थीं और मूर्तियाँ देवी के रूप में इन्द्रकशी और शिव को राक्षसेश्वर के रूप
में हैं।
45. गंडकी शक्तिपीठ : नेपाल के
मुक्तिनाथ में स्थित है। देवी का दाहिना गाल यहाँ गिरा
था और मूर्तियाँ गंडकीचंडी के रूप में देवी और चक्रपाणि के रूप में शिव हैं।
46. गुह्येश्वरी
शक्तिपीठ: नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर के पास
स्थित है। देवी के दो घुटने यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ
महामाया के रूप में देवी और कपाली के रूप में शिव हैं।
47. हिंगलाज शक्तिपीठ: पाकिस्तान
के हिंगुला में स्थित है। देवी का मन या मस्तिष्क यहाँ
गिर गया और मूर्तियाँ कोटरी के रूप में देवी और भीमलोचन के रूप में शिव हैं।
48. सुगंधा शक्तिपीठ: बांग्लादेश
के खुलना में नदी के तट पर स्थित है। देवी की नाक यहाँ
गिरी थी और मूर्तियाँ सुनंदा के रूप में देवी और त्रयंबक के रूप में शिव हैं।
49. कार्तोयागत शक्तिपीठ: बांग्लादेश
के करोतोआ तट पर स्थित है। देवी की बाईं सीट या उनके
कपड़े यहां गिरे थे और मूर्तियाँ अपर्णा के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव
हैं।
50. छत्तल शक्तिपीठ : बांग्लादेश
के चटगाँव में स्थित है। देवी की दाहिनी भुजा यहाँ गिरी
थी और मूर्तियाँ भवानी (देवी) के रूप में देवी और चंद्रशेखर के रूप में शिव हैं।
51. यशोर शक्तिपीठ: बांग्लादेश
के जेस्सोर में स्थित है। देवी के हाथों का केंद्र यहां
गिरा था और मूर्तियां चंदा के रूप में जशोरेश्वरी और शिव हैं।
[स्रोत:- डिवाइन इंडिया https://www.thedivineindia.com/51-shakti-peeths/5918]
प्राचीन पौराणिक-टेक्स्ट के अनुसार समाजं एवं राजाओं द्वारा
मंदिरों का निर्माण कराया. इसके अलावा जैन तीर्थों, बौद्ध-मठों, पगोडाओं, में
मूर्तियाँ स्थापित हैं. जिनकी आराधना पूर्ण पवित्रता के साथ करना बंधन कारी है. यह
एक सामाजिक सांस्कृतिक परम्परा है. जिसे कोई कुछ भी कहे पर सनातन में इन सार्वजनिक
आराधना स्थलों के अलावा आदि शंकराचार्य द्वारा प्रेरित “आराधना-सरलीकरण” व्यवस्था
में घर के दीवाले अर्थात देवालय में पंचायतन के रूप में पूजा जाना एक पवित्र
परम्परा है.
मूर्तिपूजा तब गलत मानी जा सकती थी जब कि-“इससे जीवों के
विरुद्ध संघातिक यातनाएं दीं जातीं हों अथवा यह मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा हो . ऐसा नहीं
है तो फिर क्यों –“ मूर्ति-पूजा त्याज्य हो अथवा मूर्तिपूजक काफिर कहे जावें ? ”