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सोमवार, अगस्त 02, 2021

चाणक्य की अर्थवत्ता लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया

【 लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया, मध्यप्रदेश शासन में संयुक्त कलेक्टर के पद पर जबलपुर में कार्यरत हैं । उनकी फेसबुक वॉल से साभार आपकी समीक्षा आर्टिकल प्रस्तुत है ] 

चाणक्य नाम मन:पटल पर आते ही मौर्ययुगीन आचार्य विष्णुगुप्त या कौटिल्य का चित्र उभर कर सामने आता है। चणक ऋषि के पुत्र होने के कारण आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य कहलाए। चाणक्य का शाब्दिक अर्थ प्रतीति कराता है- जो चार नीतियों का विशेषज्ञ हो। बुंदेलखंड में आज भी चतुर लोगों को कहते हैं- बड़ा चणी आदमी है। यद्यपि शब्दकोश में इस प्रकार का अर्थ नहीं मिलता परंतु जबलपुर जिले के संस्कृत के प्रकांड पंडित आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी से जब चर्चा की उन्होंने भी चाणक्य के शाब्दिक अर्थ को मेरे मतानुसार पुष्ट किया। अतः इससे यह तो तय होता है कि "चा" यानि चार तथा "नक्य" यानी नीति। इस प्रकार चाणक्य चार नीतियों के विशेषज्ञ के रूप में ही प्रकट होते हैं। चार नीतियां हैं- साम, दाम, दंड एवं भेद। यहां साम का तात्पर्य विनय या प्रार्थना से है। दाम का अर्थ प्रलोभन या लालच से लिया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास मानस में लिखते है- "बहु दाम संवारहिं धाम जती" अर्थात दाम से अनेकों धाम भी संवर जाते है और कहीं न कहीं वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में सर्वाधिक उपक्रम इसी नीति पर आधारित है। दंड का अर्थ सजा देना है एवं भेद की पृष्ठभूमि मन से संबंधित है। यह नीति का ऐसा प्रयोग है जिसमें मनभेद कर दूसरे के प्रति एक स्थाई भाव मन में उतपन्न किया जाता है। भेद नीति को रहस्योद्घाटन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा किसी प्रिय या संबंधी के प्रति मन में विद्वेष उत्पन्न किया जाता है।
इतिहास के पन्ने पलटने पर आचार्य विष्णुगुप्त चारों नीतियों के विशिष्ट विद्वान दिखाई देते हैं। परंतु आचार्य विष्णुगुप्त के पूर्व भी यह नाम अस्तित्व में था बिलकुल वैसे ही जैसे राम के पूर्व जामदग्नेय परशुराम भी राम के रूप में जाने जाते थे। तो क्या आचार्य विष्णुगुप्त को चारों नीतियों का एकमात्र ज्ञाता या श्रेष्ठ आचार्य मान लिया जाए?? मन इसे स्वीकारने को तैयार नहीं था। आज अचानक सुंदरकांड पढ़ते हुए दशानन एवं हनुमान जी के सुंदर संवाद पर विशेष ध्यान गया, तो पाया कि आचार्य विष्णुगुप्त तो पृथक-पृथक समय पर चारों नीतियों का प्रयोग करते थे, परंतु नीतिवान श्रीराम के दूत मतिमान हनुमान तो एक ही समय एवं स्थान पर इन नीतियों का प्रयोग करने में पूर्ण दक्ष एवं कुशल थे।
सुंदरकांड के 21वें दोहे में वह श्री राम की प्रभुता का वर्णन करने के साथ-साथ लंकेश से पृथम नीति विनय का प्रयोग करते हैं। जब दशानन विनय से आंजनेय की बात नहीं मानता है तो वह श्रीराम की शरण में आने के परिणाम बताते हुए कहते हैं कि- लंकेश यदि तुम प्रभु श्री राम की शरण में आते हो तो वह तुम्हें क्षमा कर देंगे। इसके उपरांत तुम लंका में अविचल राज्य करना। इस प्रकार हनुमान जी दाम नीति के तहत अविचल राज्य का प्रलोभन देते हैं। जब दशानन इन नीतियों के प्रभाव में नहीं आता है तो वह दंड नीति का प्रयोग करते हुए श्री राम के बल का वर्णन करते हुए दशग्रीव को राम से युद्ध के परिणाम के रूप में कहते हैं, कि राम के विमुख होने पर हजारों विष्णु, शंकर एवं ब्रह्मा भी तुम्हें नहीं बचा सकते। हनुमान जी केवल दंड का उपदेश ही नही देते अपितु अतुलित बल के स्वामी जगदीश्वर श्री राम के दूत या अतुलित बल के धाम होने के कारण दंड का प्रयोग कर लंका विध्वंस भी कर डालते हैं। रामदूत की चतुरता इसी में है कि वह दंड नीति के प्रयोग के पूर्व ही विभीषण से अपने पक्ष की बात कहलवाकर रावण के मन में भेद नीति का बीजारोपण कर देते हैं।
इस प्रकार मतिमान हनुमान एक ही स्थान एवं समय में चारों नीतियों का प्रयोग कर चाणक्य शब्द को वास्तविक अर्थवत्ता प्रदान करते हैं।
देखें-
1- बिनती करउँ जोरि कर रावन।
    सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।( साम नीति)

2- राम चरण पंकज उर धरहु।
   लंका अचल राज तुम्ह करहूं।।
(दाम नीति)

3- संकट सहस विश्नु अज तोहि।
    सकहिं न राखि राम कर द्रोही।।
               अथवा 
    उलट-पुलट लंका सब जारी।
    कूद परा पुन सिंधु मझारी।।
(दंड नीति)

4- नाय सीस करि विनय बहूता।
    नीति विरोध न मारिअ दूता।।
    आन दंड कछु करिअ गोसाईं।
    सवहीं कहा मंत्र भल भाई।।
(भेद नीति)

रविवार, अगस्त 01, 2021

भाई तो खून का नाता है सिरफ़...! दोस्त वरदान ज़िंदगी के लिए.. !

*भाई तो खून का नाता है सिरफ़*
*दोस्त वरदान ज़िंदगी के लिए.. !*
     दोस्ती के नए फार्मूले में भले ही यह कहा हो कि हर एक दोस्त क मीना होता है। परंतु मित्रता एक सदाबहार पर्व है। मैत्री भाव सबसे अलग ऐसा अनोखा भाव है जो सबकी आंतरिक चेतना में पाया जाता है। परंतु यह वो दौर नहीं है ।
भारतीय इतिहास में मैत्री भाव का सबसे बड़ा उदाहरण कृष्ण और सुदामा मैत्री था। तो भामाशाह और महाराणा प्रताप की मैत्री भाव को कैसे भूला जा सकता है। आपको याद होगा और अगर ना भी हो तो विश्वास कीजिए यही मैत्री भाव राजा दाहिर ने परिभाषित किया था। इस्लाम के अभ्युदय के समय हिंदू राजा दाहिर का बलिदान इस्लाम के प्रवर्तक के प्रति मैत्री भाव का सर्वोच्च उदाहरण है। कवि चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान की अटूट मैत्री विश्व जानता है। यह अलग बात है कि राजा दाहिर के त्याग के बावजूद भारतीय मैत्री भाव का मूल्यांकन आयातित विचारधारा नहीं कर सकी है। भगत सिंह राजगुरु सुखदेव के आत्मउत्सर्ग के आधार पर हुए मैत्री भाव ने देश के सम्मान के लिए क्या कुछ नहीं किया। मैत्री भाव में आयु ज्ञान ओहदा पद प्रतिष्ठा सब कुछ द्वितीयक हो जाती है। मैत्री भाव राजनीति और रक्त संबंध से परे है। मित्रों मैत्री भाव लिंग भेद नस्लभेद जातिभेद से परे होता है। जो मित्र इन सभी सीमाओं को किनारे रखकर मित्रता करते हैं उन सभी मित्रों को मित्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं बधाई वंदे मातरम
*गिरीश बिल्लोरे मूकुल*

रविवार, जुलाई 25, 2021

Story of Mahjabeen Bano | Josh Talks Hindi thanks Narendra Modi ji ............ thanks national balbhavan.......

 



नेशनल बालभवन की कला साधिका की कहानी जो रुलाती भी है  तो प्रेरणादायक भी है ।  इस बेटी ने दिल्ली में खुद को साबित कर दिया । दिव्यांग महिला मेहजबीन को मुख्तार अब्बास नकवी एवम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जो सहृदयता दिखाई शायद उसका गौरव भी आप अवश्य महसूस करेंगे ।

आजाद जबलपुर आए थे...प्रो आनंद राणा




इतिहास  संकलन समिति महाकोशल प्रांत की ओर से शोध के आलोक जबलपुर के इतिहास में पहली बार यह तथ्य सामने आया कि महा महारथी श्रीयुत चंद्रशेखर आजाद जबलपुर गुप्त प्रवास पर महा महारथी श्रीयुत प्रणवेश चटर्जी के यहाँ आए 🙏🙏.. इस चित्र पंडित जी की शहादत के बाद क्रांतिकारियों ने "आजाद मंदिर" के नाम से बनाया था..


 महारथी रामप्रसाद बिस्मिल पंक्तियाँ कितनी सटीक बैठती हैं.. "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.. देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है".. काकोरी कांड या षड्यंत्र नहीं है या लूट नहीं है (जैंसा कि अंग्रेजी इतिहासकारों और उन पर आश्रित कांग्रेस पोषित कतिपय भारतीय इतिहासकार और मार्क्सवादी इतिहासकारों ने लिखा है..इन लोगों ज्यादती तो देखिये कि इन लोगों ने क्रांतिकारियों को आतंकवादी कह डाला ) काकोरी यज्ञ है जिसमें क्रांतिकारियों ने लुटेरे अंग्रेजों से अपनी पवित्र आहुतियां देकर धन का अधिग्रहण कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया..


पंडित जी ने..भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम सेना बनायी (एच. एस. आर. ए.).. आजाद के नेतृत्व में लाला जी के हत्यारे का साण्डर्स का वध.. असेंबली में बम..सरदार भगतसिंह और रूस जाने के संबंध में आनंद भवन में नेहरू जी से मिले.. कुछ देर बाद ही इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में नाट बावर और पूरी कंपनी के साथ से घेराव.. युद्ध का आरंभ 27 फरवरी 1931.. एक घंटे की जंग फिर केवल एक पिस्तौल में 8 कारतूस और एक मैग्जीन 8 कारतूस.. 15 फायर 1इंस्पेक्टर और 14 पुलिस वालों का सफाया.. घायल महारथी 1गोली और स्वयं शहीद.. आगे प्रश्न बहुत हैं फिर कभी विचार करेंगे.. अभी तो प्रसन्नता का अवसर है 
🙏 🙏 
अवतरण दिवस 23 जुलाई  पर शत् शत् नमन है 
🙏🙏🙏
डॉ आनंद सिंह राणा, इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत
 🙏🙏🙏


 

शनिवार, जुलाई 24, 2021

जल बिन तरसे मीन जैसे गुरु बिन तरसूं मैं

अपने अनंत गुरुओं को शत शत नमन करते हुए आप सब को सुप्रभात ।
    मित्रों और सुधि पाठक जन आप सब मेरे गुरु हैं। अगर कोई मेरा शत्रु है तो उसे मैं अपने सबसे बड़े गुरु के रूप में मानता हूं स्वीकारता भी हूं...! चलिए यह तो लौकिक बात हुई। वास्तविकता यह है कि जीवन को अचानक बदल देने वाला गुरु अलौकिक रूप से मेरे साथ है। लौकिक रूप से शिवाय जनेऊ संस्कार के आज तक मैंने आध्यात्मिक दीक्षा नहीं ली है। परंतु अलौकिक गुरु के रूप में सबसे पहले मेरा परिचय स्वामी शुद्धानंद नाथ से हुआ । उनके विषय में बहुत अधिक जानकारी यहां नहीं दूंगा। इतना जानिए कि वे ना मिले होते तो शायद हम प्रपंच में अध्यात्म के योग को नहीं समझ पाते। स्वामी जी अतिशय स्नेह रखते थे । आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उनके सूत्रों से समझ पड़ता है कि वह क्या कहना चाहते थे। स्वामी जी ने हमारे जैसे कई मध्यवर्गीय परिवारों को आध्यात्मिक चिंतन दीया। बहुत छोटा था मैं जब उनसे स्पर्श दीक्षा मिली। स्वामी जी अद्भुत चमत्कारी योगी नहीं थे बल्कि वे कर्म और कर्म फल के सिद्धांत को आलोकित और परिभाषित करते रहे।

 उनका परिचय जानना चाहते हो तो आपको बता दूं ग्वारीघाट में अग्रवाल धर्मशाला के पहले उनके भाई साहब का आश्रम श्रीपाद आश्रम के नाम से जाना जाता है। दोनों ही भाई फॉरेस्ट कंजरवेटर के पुत्र थे और दोनों ही अध्यात्म मार्ग पर चल निकले। शत शत नमन

     दूसरे गुरुदेव के रूप में स्वामी शिवदत्त महाराज से गोसलपुर जिला जबलपुर में किशोरावस्था में संपर्क हुआ । उनके साथ कई चमत्कारिक अनुभव हुए हैं। उन्हें शत-शत नमन
  तीसरे गुरु  स्वामी विवेकानंद के रूप में मेरे साथ हैं...! स्वामी विवेकानंद ने जीवन को एकदम बदल दिया। और यह वह अवस्था थी जब युवा अक्सर भ्रमित रहता है। लेकिन स्वामी जी के उपदेशों ने जीवन का क्रम ही बदल दिया। युवा अवस्था में उनसे अलौकिक साक्षात्कार कई बार हुए हैं और अभी भी जब उनकी किताबों को पढ़ते हैं तब उनसे वार्ता का आभास होता है।
ब्रह्मलीन पूज्य मूलानंद ब्रह्मचारी स्वामी जी शुद्धानंद जी के शिष्य के पिताजी के गुरु भाई और मेरे ब्रह्मचारी जी कई बार हम उन्हें चाचा जी का संबोधन भी देते थे। ब्रह्मचारी जी को शत शत नमन
   पिछले 3 वर्षों से आयुर्वेदिक वैज्ञानिक एवं महान सन्यासी जो लगभग 275 वर्ष की आयु के आसपास महायात्रा पर है जी हां मैं बर्फानी दादाजी की बात कर रहा हूं का संपर्क रहा। पूज्य बर्फानी दादाजी को शत शत नमन ।
    अपने कुलगुरू, तथा जीवन के  पहले मां और पिताजी को शत शत प्रणाम आज भौतिक रूप से पिताजी के अलावा किसी गुरु के चरणों को स्पर्श नहीं कर पाऊंगा परंतु मानसिक रूप से सभी गुरुओं को नमन
गुरु के बिना मन कैसा महसूस करता है इस गीत में लिखने की कोशिश बचपन में ही की थी यह गीत आंशिक बदलाव के साथ बावरे फकीरा एल्बम में आभास ने गाया है
जल बिन तरसे बिन जैसे
गुरु बिन गुरु बिन तरसूं मैं ।
***
ना बदलना अवनि सहारा
न जल थल अंबर का प्यारा
रोते-रोते नैना रीते.......
किस विधि बरसूं मैं ।।
***
गहन तिमिर तू ज्योति समर दे
राह भ्रमित मोहे उचित डगर दे
दर्प-शिला रज-चरण असर दे ,
हरसूँ बरसूं मैं....!
***

रविवार, जुलाई 18, 2021

इमरान को आर एस एस का खौफ ................?


  


 फ्रांस के राष्ट्रपति ने जब यह कहा था कि टेररिज्म इस्लाम के लिए खतरा है तो टर्की ने उससे अपने राजनयिक संबंध तोड़ दिए और इसी क्रम में इमरान साहब ने भी ऐलान कर दिया कि हम भी राजनयिक संबंध तोड़ते हैं। पाकिस्तान के इस पढ़े लिखे नासमझ प्राइम मिनिस्टर को यह जानकारी नहीं थी कि उसके राजनीति संबंध और राजदूत दोनों ही फ्रांस में नहीं है। ऐसे नासमझ प्राइम मिनिस्टर से उम्मीद भी क्या की जा सकती है। आर एस एस को लेकर जिस तरह से पाकिस्तानी प्राइम मिनिस्टर का बयान आया है वह किसी चंडूखाने से आई खबर के आधार पर दिए गए बयान से ज्यादा कुछ नहीं है। 
   सुधी पाठकों कोई बात का अच्छी तरह से ज्ञान होगा कि पाकिस्तान के प्राइम मिनिस्टर का ज्ञान और उन्हें जो सूचना दी जाती है उसमें आदमी और आई एस आई का इनपुट होता है। इसी आधार पर वहां का प्रधानमंत्री अपनी बात कहता है। जहां तक इमरान का सवाल है वे आर्मी द्वारा पाले गए तोते से ज्यादा हैसियत नहीं रखते हैं।
   पाकिस्तान ने हालिया दौर में जिस तरह से तालिबान का समर्थन शुरू किया है वह उनकी साइकोलॉजी को स्पष्ट करने के लिए काफी है। और यही बॉडी लैंग्वेज भारत में रह रहे स्लीपर सेल्स और अलगाववादी लोगों की है जिसका खुलासा हमने अपने पिछले आर्टिकल में कर दिया था।
    मित्रों आपको बता दें कि जिस देश में गृह युद्ध होता है उस देश में संयुक्त राष्ट्र संघ किसी ऐसे राष्ट्र को उसका ट्रस्टी बना देता है जो उसके करीब है। भौगोलिक दृष्टि से पाकिस्तान अफगानिस्तान के बहुत करीब है किंतु पाकिस्तान स्वयं तालिबान युद्ध सामग्री मुहैया कराता है पिछले दो-तीन दिनों अर्थात 16-17 जुलाई 2021 से यह बात पब्लिक डोमेन में आ चुकी है। इसके पहले कुछ झूठी अफवाह है ट्विटर के माध्यम से फैलाई जा रही थी कि भारत ने तालिबान के विरोध में लड़ने के लिए वेपन अफगानिस्तान की सरकार को दिए हैं। वैसे तो यह सच नहीं है इससे उलट पाकिस्तान तालिबान लड़ाकों के लिए औरतें भी प्रोवाइड करने पर यस सर वाले फार्मूले पर आ गया है । और अगर भारत ने निर्वाचित सरकार के लिए हथियार दिए हैं तो मानवता की रक्षा के लिए ऐसा करना गलत नहीं है ।

     आइए हम एक वीडियो भी देखते हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर तालिबान द्वारा औरतों के ह्यूमन राइट का सरेआम उल्लंघन किया जा रहा है । 

Taliban trying to destroy social fabric of Afghanistan but Imran Khan

 
यहां मलाला यूसुफजई पर पिछले दिनों हुए हमलो के पीछे तालिबानी आईडियोलॉजी ही काम कर रही थी।
     विश्व के इतिहास में यह सबसे दुखद और क्रूरता घटनाओं की पुनरावृत्ति है।

शनिवार, जुलाई 17, 2021

दानिश को मारना तालिबान की सबसे बड़ी भूल है रवीश जी लानत गोली पर भेज रहे हैं

*दानिश को श्रद्धांजलि*
दानिश सिद्दीकी की तालिबान कल हत्या कर दी जो दुखद पहलू है। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना है।
   मित्रों सबको अपनी बात कहने का हक़ है यह सवाल ठीक है और दानिश अपनी बात नहीं कह पाए इसका मलाल उन सभी को भी होना चाहिए जो भारत में अपने अधिकारों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसिटिव है।
जहां मानवता का प्रश्न है वहां दानिश की मौत पर सारी मानवीय संवेदना उनके साथ हैं। और रहेंगे क्योंकि भारतीय संदर्भ हमेशा हमें संवेदनाओं और मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। मैं उन लोगों से असहमत हूं जो दानिश की हत्या पर अजीबोगरीब टिप्पणी कर रहे हैं।
यह मेरी व्यक्तिगत राय है। दानिश की हत्या अलावा कुछ दिनों से अर्थात पिछले 1 हफ्ते से तालिबान लड़ाकू की साइकोलॉजी और विश्व में लोगों के मस्तिष्क में कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं। इन्हें अब समझने की जरूरत है तो आइए वह सवाल कौन से हैं जानते हैं हम
[  ] क्या तालिबान लड़ाके किसी मानवतावादी व्यवस्था के पोषक होंगे..? - स्पष्ट रूप से नहीं परंतु तालिबान इन दिनों कितने हिस्सों में बटा हुआ है जो आपस में ही आने वाले समय में आपसी रंजिश ओं का शिकार हो सकेंगे।
[  ] क्या अफगान तालिबानियों के प्रति सकारात्मक सोच रखता है। इस मसले पर लोगों का कहना है कि तालिबान और उनके सिद्धांतों को तालिबान की जनता सिरे से खारिज करती नजर आती है।
           डूरंड लाइन पर तालिबान विश्वास ही नहीं करते इससे पाकिस्तान की स्थिति बेहद कमजोर और डरी हुई है। अभी आपने देखी लिया कि किस तरह से पाकिस्तान की सेना पर तालिबान ने आक्रमण किया और सैनिकों को मौत के घाट उतारा है। आपको याद होगा तालिबान ने पाकिस्तान को डिक्टेट ना करने का भी आदेश दिया है... साथ ही साथ तालिबान टर्की को भी भाव नहीं दे रहा है यह एक आश्चर्यचकित कर देने वाली स्थिति है।
     टि्वटर पर स्पेस चलाने वाली वानी रफत ने ऐलान किया था कि अब तालिबान से कोई नहीं बच सकता और वह तालिबान के पक्ष में सक्रिय वातावरण निर्मित कर रही थी। चकित कर देने वाली बात यह है कि वानी रफत और उसके समर्थक कश्मीरी स्लीपर सेल है जो वैचारिक रूप से भारत का भला नहीं चाहते। एक बहुत छोटा सा उदाहरण है परंतु यह बहुत जरूरी सूचना भी है खुफिया तंत्रों के लिए कि इस तरह के भारत विरोधी मंतव्य बनाने के प्रयासों को सोशल मीडिया पर खास तौर पर ट्विटर पर भारत के अंदर को प्रतिबंधित कर ही देना चाहिए।
मित्रों अब हम आते हैं मूल विषय पर।
    दक्षिण एशियाई देशों में ऐसी स्थिति ना केवल चिंतनीय है बल्कि इस पर भारत सरकार को और भारतीय जनता को सतर्क रहने की जरूरत है जहां तक भारत सरकार का सवाल है उस पर हमें किसी भी तरह का मैं तो संडे करना चाहिए ना ही किसी भी प्रकार से कोई मंतव्य स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में भारत सरकार क्या करेगी यह सब भारतीय रक्षा व्यवस्था के भीतर इनबिल्ट है।
   इस वक्त हमें सरकार पर ही निर्भर रहना होगा। क्योंकि भविष्य में कभी भी तालिबान भारत के भीतर तक आने की क्षमता नहीं रखते और न ही रख सकेंगे ।
    कश्मीर वैली के संदर्भ में एक तथ्य समझना जरूरी है कि भारत में अलगाववादी विचार अभी मौजूद है लेकिन उनकी संख्या इतनी नगण्य है वे कश्मीर की शांति को समाप्त करने की क्षमता नहीं रखते। हां यह सच है कि वे लोग प्रयास करते रहेंगे जैसा कि ट्विटर पर वाणी रफत ने किया। और आतंकियों के कनेक्शन अभी समाप्त हुए हो ऐसा भी नहीं लगता क्योंकि लगातार आतंकवादी घटनाएं घटित होती जा रही है.... भले ही इनकी आवृतियों में कमी आई हो .
   पाकिस्तान और अलगाववादी दोनों ही तालिबान के फिर से सिर उठाने पर आशान्वित अवश्य है परंतु अब उनके लिए कन्फ्यूजन की स्थिति स्वयं तालिबानी पैदा कर रहे हैं।
    जानकारों की बातों से मैं सहमत हूं कि शायद यूरोप यह नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया में शांति बनी रहे। अगर यूरोपीय चाहता तो जो-बायडन  एडमिनिस्ट्रेशन अफगान से वापसी के बारे में ना सोचता । परंतु लोग यह भी मानते हैं कि भविष्य में उन्हें नेटो देश और क्वार्ड इस संकट का हल खुद ही लेंगे। इन सवालों के उत्तर भी भविष्य में ही मिल सकते हैं फौरी तौर पर कुछ कहना या मंतव्य बना लेना जल्दबाजी है।
     चीन की भूमिका सदैव हर मामले की तरह तालिबान मुद्दे पर भी संदिग्ध ही रहेगी ऐसा मेरा मानना है।
    वैसे एक बात स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया में हिंदूकुश से लेकर दक्षिण एशिया के पश्चिमी देशों तक शांति और विकास भारत की परिकल्पना है जो देर सबेर पूर्ण होगी क्योंकि भारत का जियोपोलिटिक्स में राजनीतिक वजूद कमजोर नहीं है।

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