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बुधवार, अक्टूबर 14, 2020

आने वाले 10 से 15 सालों में पाकिस्तान से भारत में आएंगे शरणार्थी.. (भाग 02 )

सेंगे शेरिंग के हवाले से गिलगित बाल्टिस्तान

     गिलगित बालटिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है इसके संबंध में हालिया दिनों में सेंगे सेरिंग जो वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे हैं साफ तौर पर बताया है ।

भारतीय उपमहाद्वीप के साथ 1947 के बाद हुआ है वह भारत के लिए एक बहुत दुखद स्थिति है।

मुझे अच्छी तरह याद है तब जब भारत के जीवन समंकों  खास तौर पर जन्म दर मृत्यु दर और होती रही है तब दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अन्य  देशों के सापेक्ष भारत को सबसे ज्यादा नेगेटिव प्रोजेक्ट किया जाता था । उस दौर का एनजीओ कल्चर जो आमतौर पर विदेशी फंडों से संचालित था के जरिए भारतीय कल्चर को समाप्त कर देने की भयंकर  कोशिशें हुई है।

पता नहीं कौन सी बात है जो कि हमारी कल्चर को क्षतिग्रस्त होने से बचाती रही है।

धारा 370 और 35 बी के समापन के उपरांत गिलगित बालटिस्तान जी के लोग भारतीय डेमोक्रेसी का सुख लेना चाहते हैं । गिलगित बालटिस्तान पिछले लेख में वर्णित 7 जिले और दो डिवीजन की 15 लाख लोगों की आबादी भारत की ओर देख रही है ।

  वहां के एक लीडर बाबा जान और उनके 4 साथी पाकिस्तान की जेलों  में उम्र कैद की सजा भोग रहे हैं।

जहां तक गिलगित बालटिस्तान की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थिति का संबंध है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लद्दाख और भारत के सांस्कृतिक संदर्भों में यह क्षेत्र भारत के बेहद करीब है। तो आइए जानते हैं कि - "गिलगित बालटिस्तान लोग आंदोलित क्यों है ..?"
1 -   स्वायत्तशासी क्षेत्र के निवासी हैं परंतु उनके सारे फैसले पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी डिसाइड करती है । पाकिस्तान यह तय करता है कि वहां की जनता को लिक्विड गैस और जीवन जीने के न्यूनतम संसाधन किस हद तक मुहैया कराने चाहिए ! 
2- शिक्षा के क्षेत्र में की 15 लाख की आबादी को पाकिस्तान ने किसी भी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है । निजी क्षेत्र के बलबूते पर वहां शैक्षणिक व्यवस्थाएं कठोर पाकिस्तानी कानून के अधीन काम कर रही है ।
3- कानूनी तौर पर गिलगित बालटिस्तान भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस बात को वहां की आवाम समझ चुकी है । यूनाइटेड नेशन द्वारा पाकिस्तान को उन्हें जल्द से जल्द पूर्ण स्वायत्तता देकर गिलगित बालटिस्तान की जनता की इच्छा के अनुसार निर्णय लेने की बात कही है ।
4- जबकि चीन के दबाव में आकर अनाधिकृत रूप से उस क्षेत्र के नजदीक चीन के सैन्य अड्डे स्थापित हो चुके हैं। जिसका मूल उद्देश्य भारत की बढ़ती हुई सामरिक शक्ति को प्रभावित करना है।
5- इस क्षेत्र में मौजूद अकूत प्राकृतिक खनिज संसाधन  का फायदा निवासियों के लिए भविष्य में भी मिलना मुश्किल है जिस तरह है बलूचिस्तान के लोगों के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की दुरभि:संधि से वहां के लोगों का जीवन स्तर वर्तमान में बेहद प्रभावित है ।
6- अपने टीवी इंटरव्यू में है सिंगे शेरीन ने स्पष्ट किया कि- "हम भारत में मिलना चाहते हैं..!" भारत में पीओके का बहुत सारा हिस्सा शामिल होने के लिए खुलकर सामने आने लगा है । इसी कारण से अगर पाकिस्तान आम जनता की राय लेने से घबरा रहा है ।
7- राजनैतिक परिस्थितियां जो भी हो गिलगित बालटिस्तान की आवाम बलूचिस्तान और सिंध की तरह ही भीषण अभाव और संकट की स्थिति में जीवन यापन कर रही है
   कल ही मैंने अपने ब्लॉग मिसफिट पर स्पष्ट रूप से लिखा था कि आने वाली 10 से 15 सालों में भारत को पाकिस्तान से आने वाली शरणार्थी जनता की देखभाल की जिम्मेदारी लेनी पड़ सकती है। परंतु तेजी से बढ़ रहे घटनाक्रम से यह कहा जा सकता है कि- पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी ने वहां के लोगों को यह आश्वासन दिया है कि 30 नवंबर 2020 तक वे गिलगित बालटिस्तान के लिए कोई खुशखबरी सुनाने जा रहे हैं ।
  वर्तमान परिस्थितियों को देखकर स्पष्ट है कि पाकिस्तानी स्थित को प्रॉविंस का हिस्सा बना देगा। और हो सकता है कि बाबा जान को रिहा भी कर दिया जाए ।
    परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि पाकिस्तान ऐसा कुछ कर सकेगा कि वहां की जनता अपने 73 साल पुराने कालखंड को याद ना रखेगी ।
  वहां के लोग स्पष्ट तौर पर भारत के साथ अंतर संबंध स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि भारत की परिस्थिति उनके लिए पाकिस्तान से अधिक अनुकूलित है और वह एक कंफर्ट लाइफस्टाइल को जी सकते हैं । अगर छल बल के जरिए गिलगित बालटिस्तान की स्वायत्तता चीन के सहयोग से समाप्त भी हो गई तो तय मानिए कि वहां की जनता इसे स्वीकार नहीं कर सकती ।
उसका आधार चीन की शोषण की प्रणाली को वह अच्छी तरह जान चुके हैं। वहां की जनता यह भी जानती है कि चीन के साथ सी-पैक के मद्देनजर किए गए कोई भी समझौते में उनकी ना तो भागीदारी है और ना ही भविष्य में भागीदारी अथवा आर्थिक विकास संभव होगा । कमोबेश यही हालात बलूचिस्तान के भी हैं ।
विश्व समुदाय बेहतर तरीके से यह समझने लगा है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी व्यवस्था जनित इस जटिल प्रमेय  को केवल भारत ही हल कर सकता है ।
अगर भारत ने कोई कठोर कदम उठा लिया और गिलगित बालटिस्तान की पक्ष में सफल हो गया तो चीन और पाकिस्तान स्थाई रूप से भारत की सामरिक शक्ति को समाप्त करने की कोशिश येन केन प्रकारेण अवश्य करेगा । परंतु हमारा अनुमान है कि- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर भारत अपनी सहिष्णुता की नीति के तहत तब तक कोई सामरिक कदम नहीं उठाएगा जब तक कि तत्कालीन पश्चिम पाकिस्तान वाली स्थिति पैदा ना हो जाए । अपनी पहचान एवं जीवन को बचाने के लिए तथा गिलगित बालटिस्तान की 15 लाख की आबादी का बहुत बड़ा प्रतिशत शरणार्थियों के तौर पर भारत में आना भारत के लिए एक अतिरिक्त भार होगा ।
वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के चलते भारत सही वक्त पर सही कदम अवश्य उठाएगा हमें भी तैयार रहना होगा ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल 

आने वाले 10-15 सालों में पाकिस्तान से भारत में शरणार्थी आना तय है..? (भाग 01)

गिलगित बालटिस्तान की आबादी लगभग 15 लाख के आसपास पहुंच रही है। प्राकृतिक सौंदर्य का धनी हिंदूकुश पहाड़ी और अमीर पहाड़ी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा  यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा रहा है। किंतु 1947 की विभाजन में ब्रिटिश सरकार की सियासी चालों  के कारण  पीओके का भाग बन गया । सिंध बलोच पश्चिमी पाकिस्तान जो वर्तमान में बांग्लादेश है की तरह ही सांस्कृतिक तौर पर स्वयं पाकिस्तान को अमान्य रहा है।
 पाकिस्तान की मिलिट्री डेमोक्रेसी ने इन स्थानों का जमकर सियासी मामलों में इस्तेमाल किया। पाकिस्तानी प्रशासन कभी भी इन क्षेत्रों के संपूर्ण विकास के लिए प्रतिबद्ध नहीं रहा इसके कई पुख्ता प्रमाण आज भी संपूर्ण विश्व के सामने आते  हैं ।  वर्तमान परिस्थितियों में धारा 370 हटने के बाद की परिस्थितियों में गिलगित बालटिस्तान की आवाम जिसकी संख्या अब लगभग 1500000 है , की जनता बहुत ही जागरूक हो गई है। उनकी जागरूकता का कारण उनका एक लोकप्रिय नेता अपने चार क्रांतिकारी साथियों के साथ पिछले कई सालों से जेल में बंद है। लगभग 10 से 11 सालों से जेल में बंद नेता का नाम है बाबा जान । गिलगित बालटिस्तान की जनता  पश्चिम पाकिस्तान वर्तमान का बांग्लादेश बलूचिस्तान और सिंध की जनता के साथ पाकिस्तान मिलिट्री प्रशासन की दुर्व्यवहार से अब तंग आ चुकी है । पहले विश्व को यकीन नहीं था किंतु भारत ने यूरोप खास तौर पर अमेरिका को आजाद भारत की वास्तविक तस्वीर से परिचित करा दिया तब विश्व समुदाय ब्रिटेन के खास समूह को छोड़कर पाकिस्तान के प्रति सतर्क हो गया। 
    भारतीय डेमोक्रेटिक सिस्टम आने के पहले ही गिलगित बालटिस्तान के सामरिक महत्व एवं वैश्विक संपर्क के महत्व को समझते हुए अंग्रेजों ने पाकिस्तान के साथ किए समझौते में गिलगित बालटिस्तान को स्वायत्तशासी क्षेत्र घोषित कर दिया। शर्त यह भी थी कि भविष्य में जनमत संग्रह के जरिए गिलगित बालटिस्तान को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। और यह है क्षेत्रीय पाकिस्तानी आर्मी द्वारा नरसंहार अनाधिकृत दबाव एवं गैर बराबरी के कारण हाशिए पर चला गया । नीचे दिए गए आंकड़े विकिपीडिया से साभार लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत है
डिवीजनजिलाक्षेत्रफल (किमी²)जनसंख्या (1998)मुख्यालय
बल्तिस्तानगान्चे9,40088,366खपलू
स्कर्दू18,000214,848स्कर्दू
गिलगितगिलगित39,300383,324गिलगित
दिआमेर10,936131,925चिलास
ग़िज़र9,635120,218गाहकुच
अस्तोर8,65771,666गौरीकोट
हुन्ज़ा-नगरसिकन्दराबाद




गिलगित
 
 गिलगित बालटिस्तान की जनता इन दिनों चीन के विरोध में सक्रिय हैं। पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी यहां शिया और सुन्नी संप्रदाय दंगे कराने में व्यस्त है। ताकि किसी भी तरह से कुछ हिस्सा और चीन के हवाले किया जा सके । 
 विश्व समुदाय को यह बात स्पष्ट तौर पर समझ में आ चुकी है कि चीन के दबाव में पाकिस्तान उसे अपना प्रोविंस बनाना चाहता है। पाकिस्तान प्रशासन को किसी भी हालत में रोजमर्रा के खर्चे निकालने के लिए किसी ना किसी ऐसे ही राष्ट्र की मदद की जरूरत है जो उसे पैसा देता रहे ।
विश्व बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थानों से प्राप्त करने की सीमा भी पाकिस्तान पार कर चुका है और अब उसके पास ऐसी कोई अपनी ऐसी योजना नहीं है जिससे उसकी  अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सके । 
भरपूर प्राकृतिक खनिज संपदा के दोहन के लिए संसाधनों तक का अभाव पाकिस्तान में देखा जा सकता है। इतना ही नहीं सी पैक समझौते को पूरा करने के लिए चीन ने आर्थिक रूप से पाकिस्तान को गुलाम बना कर रख दिया है। चीन चाहता है कि पाकिस्तान इस स्वायत्तशासी क्षेत्र को पाकिस्तान की राज्य के रूप में शामिल कर ले और इसकी  भी शुरू हो गई है । 
https://youtu.be/V-dxxH_unSo
 लगभग 73 सालों से उपेक्षा का दंश भोग रहे गिलगित बालटिस्तान के लोग अब क्रांति की मशालें लेकर खड़े हो गए हैं । सारे लोग लोकतंत्र के हिमायती हैं और जब से उन तक भारत कि लोकतंत्र की खूबसूरती की जानकारी दी गई है तब से समूचा बलूचिस्तान और गिलगित बालटिस्तान भारत की ओर बेहद आत्मीय भाव से देख रहा है ।
केवल राजनीतिक कारणों पर ध्यान देकर ना दिखे और पाकिस्तान के  सिंध बलूचिस्तान तथा गिलगित बालटिस्तान की स्थिति पर गौर करें तो भारत का सबसे पिछड़ा इलाका भी इन क्षेत्रों के सापेक्ष बेहद बेहतरीन माने जा सकते हैं।
इन क्षेत्रों में स्वास्थय , शिक्षा, महिलाओं एवम बच्चों की स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है ।  यहां की किसान मजदूर पढ़े लिखे नौजवान यहां तक की सीनियर सिटीजन बेहद तनाव की स्थिति में गुलामों की तरह जिंदगी बसर कर रहे हैं ।
यूनिसेफ का दावा है कि पाकिस्तान में जन्म लेना बेहद खतरनाक परिस्थिति है यह संपूर्ण पाकिस्तान का आंकड़ा है । यहां हर 22 बच्चों में से एक बच्चा 30 दिन की उम्र भी जन्म के बाद पूर्ण नहीं कर पाता।
 मात्र इतने से उदाहरण से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान की वाइटल स्टैटिसटिक्स यानी जीवन समंक का स्टेटस क्या होगा।
ऐसी स्थिति में सिंध और बलूचिस्तान के साथ-साथ गिलगित बालटिस्तान जैसे क्षेत्र की स्थिति का अंदाज कोई भी सामान्य व्यक्ति लगा सकता है ।
पाकिस्तानी हमेशा ही अपनी आवाम को ही अजीबोगरीब शिकंजे में कस के रखा है। वहां की डेमोक्रेसी में अधिकांश वे सारे लोग हैं जो  भारत के उन  नवाबों की संताने है जो अपने मुंह से मक्खी उड़ाने के लिए भी अपने नौकरों का इंतजार किया करते थे।
आर्मी में अधिकांश पंजाबी है जो या तो कन्वर्टेड है अथवा सामंती युग की लेगसी को अपने साथ लेकर चल रहे हैं । 
मेरा सटीक अनुमान है कि हमें आने वाले 10 से 15 साल में  भारत को पाकिस्तान की एक बड़ी भुखमरी तनाव बीमारी  और कलह की शिकार भीड़  को कहीं अपनी शरण में लेना  पड़ सकता है । 

मंगलवार, अक्टूबर 13, 2020

कोविड19 टोटल लॉक डाउन संस्मरण भाग 01


न दैन्यं न पलायनम्
आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में —
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’
महात्मा अटल की यह कविता मन से भय का अंत कर देती है ।  
   महासंकट का दौर जिसे हम अज़नबी शत्रु कह सकते हैं कोविड19 का दौर है। इसके पहले हम बहुत सामान्य जीवन में  थे । सामान्यता इतनी कि समझ ही नहीं पा रहे थे कि जीवन क्या है ? 
वास्तव में जिसे हम अपना अधिकार समझने की भूल कर बैठे थे वह प्रकृति का उपहार था। एक सुबह अचानक 4:17 पर नींद खुलती है खुली हुई खिड़की शरीर को तुरंत ताजगी का एहसास कराती है।
ब्रह्ममुहूर्त कि इस अवधि में सुबह का आनंद कुछ इस तरह मिला...
अचानक संपूर्ण वातावरण चिर परिचित सा लग रहा था जिसका एहसास हमने कभी  किया फिर अचानक उस प्रकार की सुहानी सुबहों के एहसासों का याद आने लगा जिसे हम भूल गए थे रात देर तक सोना स्वाभाविक रूप से नींद सूर्योदय के उपरांत खुलने का अभ्यास सा हो गया था कोविड के पहले ।
  लाला रामस्वरूप पंचांग के अनुसार निश्चित  समय पर पूर्व दिशा का आकाश लालिमा लेने लगता था। घर के सामने से खड़खड़ करती हुई साइकिल पर सवार पेपर वाला हर घर के आंगन में पेपर पटक रहा था.. किसी आँगन में खट्ट तो किसी छत पर टप की आवाज के साथ अखबार गिरते तो कहीं  गेट में फंसा कर आगे बढ़ जाता अखबार वाला । न कोई अखबार उठाने की जल्दबाजी में देखा गया न कोई बेताब नज़र आया खबर के वास्ते । सब को डर था पेपर में कोरोना वायरस तो नहीं आया ? 
   काली नन्ही चिडियों वाला जोड़ा अपने अंडे सेता था । ड्रॉइंग रूम के बाएं जंगले के एन  सामने ! उनसे मुझे संवेदित प्रेम हो गया उनके अंडे भी स्नेह की वजह बने । पत्नी और बेटी को ज्यों ही बताया कि काली चिड़िया या चिड़े  में से कोई एक को दाना लेने जाना होता है । तब कोई दूसरा उस घोंसले की तकवारी करता है । यह सुनते ही दौनों ने एसी के ऊपरी भाग में पानी दाना की व्यवस्था सुनिश्चित कर दी । ताकि चिड़ा चिड़िया दाना लेने न जाएं । पर ऐसा इस लिए न हुआ क्योंकि जोड़ा मांसाहारी भी था कुछ दिन में बच्चों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं थीं । अन्न से अधिक प्रोटीनयुक्त आहार बच्चों को देना शायद ज़रूरी ही होगा । तभी तो उड़ती हुई तितलियाँ या उन जैसे कीट को कलाबाजियां खाकर चिड़ियों वाला जोड़ा लपक लेता था । कई बार उनको दूर जाना ही  पड़ता था । 
  वकील साहब के आंगन वाले आम के पेड़ से आने वाली गिलहरियों से लॉक डाउन के अगले दो तीन दिन में लगभग दोस्ती हो गई मुझे देखते ही चुखर चुखर चीखतीं । एक दिन देर रात तक जागने की वजह से उनका इतना अधिक शोर सुना तब अचानक 7:30 बजे नींद खुली पता लगा गिलहरियां बार बार छत की बाउंड्री वाल पर हुल्लडबाज़ी कर रहीं थीं । उनके लिए पानी और बिस्किट के टुकड़े कुछ अनाज रखते ही वे दूर से टकटकी लगाए देखतीं रहीं । देखना क्या मुझे कह रहीं थीं अब रास्ता नापो पर हटो हमें खाना है । 
मेरे दूर हटते ही एक साथ 4 गिलहरियां दाने-पानी पर टूट पड़ीं ।
 कुत्ते मोहल्ले वाले मित्र बन गए थे सच आज भी हैं । टोटल लॉक डाउन में  अपने छत से 7 बजे तक गली के कुत्तों के लिए रोटी फैंकता और पुकारता - काय इतै आओ जे रोटी खालो !
   वे फौरन मेरी ओर देखते अंगुली का इशारा समझते कि रोटियां किधर फैंकी हैं  और  वहीं लपकते जहाँ मैं रोटी फैंकता । 
 एक जोड़ा काली चिड़ियों, गिलहरियां, कुत्तों, से संवादी होना कोविड19 टोटल लॉक डाउन में ही हुआ । अच्छा लगा । प्रेम बंटा विश्वास बढ़ा । 
   हम तुम ये वो यानी हम सब निर्विकारी हो गए थे । ध्यान की क्रिया को बल मिला । मेरे गुरुभाई अनन्त पांडेय कहते हैं कि - दिन भर में 16 हज़ार विचार आते हैं ध्यान भंग हो जाता है... ! अंतू भाई दुनियादारी के चक्कर में आध्यात्मिक चिंतन भूले हुए हम कोविड19 में पुनर्जागरण के दौर में आए हैं । 30 बरस बाद...सच यही था । लोग भी यही कह रहे हैं । 
सलिल सहमत हैं कि - "मौन रहकर बहुत कुछ हासिल किया सबने मिलकर !"
   सलिल आगे कहते हैं- खोया भी बहुत संवाद सम्प्रेषण खो दिया । भाई आपने भी सृजन कम ही किया है इस दौर में ?
हाँ, बहुत कम हुआ था सृजन पर इस दौर में कुछ नया भी मिला जैसे साग में दाल में हींग और हल्दी क्यों जरूरी है । किचिन सीखा, टॉयलेट की सफाई सीखी, उपेक्षित कागज़ों तक पहुंचा ये सत्य है कि लिखा कम गया । उतना अवश्य लिखा जितना पी आर ओ आनंद जैन साहब को भेजना चाहा ! 
  मौलिक सृजन 10 फीसदी तक रह गया । मौन का प्रतिशत 50% से कुछ अधिक बढ़ गया था उन दिनों । कोरोना के दुनियाँ भर के आंकड़े भयानक रूप से डरा रहे थे । 
  कनाडा वाला भतीजा अमेरिका में रह रही बहू और उनकी बेटी, एम्स्टर्डम वाला भतीजा उसकी बहू और अपनी  बेटी भतीजी सबके बारे में चिंता उतनी ही थी जितनी सड़क पर पैदल लौटते मज़दूरों की । 
  फिर सोचने लगता कि- ईश्वर इन सबका रास्ता छोटा हो सकता है क्या । 
  फिल्मी कलाकार को मज़दूरों की मदद करते देख जगत बहादुर अन्नू सुबोध पहारिया जी और मुहल्ले वाले  आरएसएस के स्वयम सेवकों की बिना प्रचार की सेवा देखी तो पता चला कि हमारे रिश्तेदार भी चुपचाप भोजन बना बना कर भाई आशीष दीक्षित जी (ज्वॉइंट डायरेक्टर सोशल जस्टिस)  को दे रहे हैं । प्रवासियों को भोजन कराना प्रशासन की ज़िम्मेदारी थी । लेकिन अचानक कब जनता ने इसे अंगीकार किया समझने में समय लग गया । हमने क्या किया इसका उल्लेख नहीं कर सकता । हाँ तो बता रहा था कि - इंसानियत का सबसे आइकॉनिक दौर था कोविड का सम्पूर्ण लॉक डाउन । लग रहा था सतयुग आ गया क्या ? या हम बहुत ईमानदार हो गए । अचानक भावुक होना । अश्रुपूरित भाव से महान अवतार को याद करना । ब्रह्म की कल्पना में रोंगटे खड़े हो जाना आम बात हो गई । 
अक्सर सुबह से महामृत्युंजय मंत्र का MP3  साउंड बॉक्स से कनैक्ट कर  लोगों के लिए छज्जे पर बजाना लगभग रोजिन्ना की आदत सी हो गई थी । हम सब पर रोज़ विचारों का उतरना होता है । यह अवस्था वैचारिक अवतरण की अवस्था है । इसे रोज़ उसी गति से अगर लिखो तो आकाशी पुस्तक तुम हम सब बना सकते हैं । 
अब कुछ दिनों के बाद ध्यानस्त होना आसान हो गया था । कई बार लगा मृत्यु कभी भी आ सकती है । छोड़ दो विकारों को छूटे भी विकार.. ! 
  श्मशान का वैराग्य क्षणिक से दीर्घकालिक हुआ । जो साहजिक होता चला गया । अब पद प्रतिष्ठा नाम कुल श्रेष्ठता के भाव पता नहीं किस पोटली में बंध गया  मुझे नहीं मालूम भगवान न करे वो मुझे वापस मिले।
इस बीच सुशांत ने मृत्यु का वरण किया या जो भी हो वो हमारे बीच से गया बुरा इस लिये लगा कि MS Dhoni इस दौरान दूसरी बार देखी थी । अभिनय अच्छा लगा फैन हो गया था । सुशांत सिंह के लिए चैनल्स बावले हो गए रहा सहा टीवी से मोहभंग हो गया । पर यूट्यूब पर ताहिर गोरा डॉक्टर शारदा  से भेंट हुई बेहतरीन समाचार एवम समीक्षाऐं मेरी रुचि के अनुकूल यानी  साउथ एशियन राष्ट्रों पर केंद्रित सोशियो इकोनॉमिक मुद्दे  । ये बावले टीवी चैनल्स जब भारत चीन को मुगलिया दौर की तरह मुर्गों की मानिंद  लड़वा रहे थे मुझे मन ही मन तो कभी खुलकर हंसी आ जाती थी । सिर्फ हंसने के लिए टीवी चलाता था । वरना स्मार्ट tv पर यूट्यूब देखने का मज़ा ही कुछ और है ।
   सुधिजन आपके एहसास इसी के इर्दगिर्द थे न । कोविड आज भी डराता है । मृत्यु से भय नहीं है पर दुःख ये रहेगा कि अगर कुछ हुआ तो मित्रों को शमशान वैराग्य की अनुभूति न हो सकेगी । अरे हाँ बेफिक्र रहो सबकी सलामती के लिए काल से प्रार्थनारत रहो । 
 दुर्भाग्य के दौर में सौभाग्य के पथ मिलते हैं । कुछ अहंकारी परिजन टूट गए छिटककर दूर करना हम भी चाहते थे । जो हुआ अच्छा हुआ । 
         कृष्ण ने शास्त्र सुनाकर शस्त्र उठाने को कहा पार्थ ने वही किया । 
न दैन्यम न पलायनम एक अटल सत्य है मुझे लगता है कि फ़िज़ूल में रिसते हुए रिश्तों की पोटली सर पर मैंला ढ़ोने जैसी कुप्रथा है । 
   आईना भी दिखाते चलो - एक घटना अभी अभी घटी ... अनावश्यक एकात्मता का अभियान छेड़ दिया कुछ परतें उधेड़ दीं बुरा लगा कुछ लोगों को । लामबंद जत्था आक्रामक हो गया तो "इहाँ कुम्हड़ बतियाँ कोउ नाहीं , जो तर्जनी देखहिं मर जाहिं ।।" की तर्ज़ पर अडिग रहा आज भी हूँ । आप भी अडिग रहें भारत की एकात्मता पर किसी आक्रमण को मत सहो । तुम्हारी सनातनी संस्कृति अखण्ड है अविरल है । कह दो फैसला तो ब्रह्म करेगा न वही सबसे बड़ा निर्णायक है । "एकात्म भारत ही विश्वगुरु के पथ पर फिर से चलेगा वर्ना असंभव है ।"

गुरुवार, अक्टूबर 08, 2020

सुग्गा और नीलकंठ

पता नहीं कब आएगा सुग्गा..?चिंतामग्न बैठा नीलकंठ बाट जोहता । दूर से एक तोतों के झुंड को आता देख खुश हुआ सुग्गा आ जाएगा । पर झुंड आगे वाले आम के पेड़ पर जमा हो गया । कुछ आगे बढ़ने लगे । नीलकंठ घबराया डरा भी तभी उसने तय कर लिया कि सुग्गा को खोजेगा । एक उड़ान भरी । कुछ दूर जाकर देखा सुग्गा एक पतंग की डोर में उलझकर बार बार उड़ना चाह रहा था पर  पंख डोर में फंस कर उड़ नही पा रहा था । 
   नीलकंठ को देखते ही सुग्गे को यकायक मुक्तिबोध सा हुआ। होना ही था सहृदयता के दूत जब भी आते हैं तो मुक्तिबोध होना वाज़िब है । अपनी चोंच से नीलकंठ ने धागे निकाले । 
 फिर दौनों एक डाल पर बैठकर एक दूसरे को देख कर आत्मीयता अभिव्यक्ति में व्यस्त हो गए । 
         फोटो :- रजनीश  सिंह

शनिवार, सितंबर 26, 2020

तीन साल पहले यू एन ओ में मोदी जी ने क्या कुछ कह था

श्री मोदी यूएनओ में
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आधुनिक महानायक महात्मा गांधी ने कहा था कि हम उस भावी विश्व के लिए भी चिंता करें जिसे हम नहीं देख पाएंगे। जब-जब विश्व ने एक साथ आकर भविष्य के प्रति अपने दायित्व को निभाया है, मानवता के विकास को सही दिशा और एक नया संबल मिला है।
सत्तर साल पहले जब एक भयानक विश्व युद्ध का अंत हुआ था, तब इस संगठन के रूप में एक नई आशा ने जन्म लिया था। आज हम फिर मानवता की नई दिशा तय करने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। मैं इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मलेन के आयोजन के लिए महासचिव महोदय को ह्रदय से बधाई देता हूँ। एजेंडा 2030 का विजन महत्वाकांक्षी है और उद्देश्य उतने ही व्यापक हैं। यह उन समस्याओं को प्राथमिकता देता है, जो पिछले कई दशकों से चल रही हैं। साथ ही साथ यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के विषय में हमारी परिपक्व होती हुई सोच को भी दर्शाता है।
यह ख़ुशी की बात है कि हम सब गरीबी से मुक्त विश्व का सपना देख रहे हैं। हमारे निर्धारित लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन सब से ऊपर है। आज दुनिया में 1.3 बिलियन लोग गरीबी की दयनीय जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। हमारे सामने प्रश्न केवल यह नहीं है कि गरीबों की आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जाये और न ही यह केवल गरीबों के अस्तित्व और सम्मान तक ही सीमित प्रश्न है। साथ ही यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी मात्र है, ऐसा मानने का भी प्रश्न नहीं है। अगर हम सब का साझा संकल्प है कि विश्व शांतिपूर्ण हो, व्यवस्था न्यायपूर्ण हो, और विकास सतत हो। गरीबी के रहते यह कभी भी सम्भव नहीं होगा। इसलिए गरीबी को मिटाना हम सबका पवित्र दायित्व है।
भारत के महान विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का केंद्र अन्त्योदय रहा है। UN के एजेंडा 2030 में भी अन्त्योदय की महक आती है। भारत दीनदयाल जी के जन्मशती वर्ष को मनाने की तैयारी कर रहा है, तब यह निश्चित ही एक सुखद संयोग है।
भारत एन्वायरमेंटल गोल के अंतर्गत क्लाइमेट चेंज और सस्टेनेबल कन्जंपशन को दिए गये महत्व का स्वागत करता हैं। आज विश्व आइसलैंड स्टेट्स की चिंता कर रहा है। ऐसे राष्ट्रों के भविष्य पर ध्यान केंद्रित करता है, यह स्वागत योग्य है। इनके इको सिस्टम पर अलग से लक्ष्य निर्धारण, मैं उसे एक अहम कदम मानता हूँ।
मैं ब्लू रिवॉल्यूशन का पक्षधर हूं, जिसमें हमारे छोटे- छोटे आइसलैंड राष्ट्रों की रक्षा एवं समृद्धि, सामुद्रिक संपत्ति का नयोचित उपयोग और नीला आसमान, ये तीनों बातें सम्मलित हैं। हम भारत के लोगों को लिए ये संतोष का विषय है कि भारत ने विकास का जो मार्ग चुना है, उसके और UN द्वारा प्रस्तावित सस्टेनेबल डेवलप गोल्स के बीच बहुत सारी समानताएं हैं। भारत जब से आजाद हुआ, तब से गरीबी से मुक्ति पाने का सपना हम सबने संजोया है। हमने गरीबों को सशक्त बनाकर गरीबी को पराजित करने का मार्ग चुना है। शिक्षा एवं स्किल डेवलपमेंट हमारी प्राथमिकता है। गरीब को शिक्षा मिले और उसके हाथ में हुनर हो, यह हमारा प्रयास है।
हमने निर्धारित समय सीमा में फाइनेंशियल इन्क्लूजन पर मिशन मोड में काम किया है। 180 मिलियन नए बैंक खाते खोले गए। यह गरीबों का सबसे बड़ा एम्पावरमेंट है। गरीबों को मिलने वाले लाभ सीधे खाते में पहुंच रहे है। गरीबों को बीमा योजनाओं का सीधे लाभ मिले, इसकी महत्वाकांक्षी योजना आगे बढ़ रही है।
भारत में बहुत कम लोगों के पास पेंशन सुविधा है। गरीबों तक पेंशन की सुविधा पहुंचे, इसलिए पेंशन योजनाओ के विस्तार का काम किया है। आज गरीब से गरीब व्यक्ति में गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने की उमंग जगी है। नागरिकों के मन में सपने सच होने का विश्वास पैदा हुआ है।
विश्व में आर्थिक विकास की चर्चा दो ही सेक्टर तक सीमित रही है। या तो पब्लिक सेक्टर की चर्चा होती है या प्राइवेट सेक्टर की चर्चा होती है। हमने एक नए सेक्टर पर ध्यान केंद्रित किया है और वह है पर्सनल सेक्टर। भारत के लिए पर्सनल सेक्टर का मतलब है इंडिविजुअल इंटरप्राइज, जिसमें माइक्रो फाइनेंस हो, इनोवेशन हो, स्टार्ट अप की तरह नया मूवमेंट हो।
सबके लिए आवास, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ और स्वच्छता हमारी प्राथमिकता हैं। ये सभी एक गरिमामय जीवन के लिए अनिवार्य हैं। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक ठोस योजना और एक निश्चित समय सीमा तय की गई है। महिला सशक्तिकरण हमारे विकास कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसमें हमने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ इसे घर-घर का मंत्र बना दिया है।
हम अपने खेतों को अधिक उपजाऊ तथा बाजार से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ बना रहे हैं। साथ ही प्राकृतिक अनिश्चितताओं के चलते किसानों के जोखिमों को कम करने के लिए अनेक कदम उठाये जा रहे हैं।
हम मैन्यफैक्चरिंग को रिवाइव कर रहे हैं। सर्विस सेक्टर में सुधार कर रहे हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हम अभूतपूर्व स्तर पर निवेश कर रहे हैं और अपने शहरों को स्मार्ट, सस्टेनेबल तथा जीवंत डेवलपमेंट सेंटर के रूप में विकसित कर रहे हैं। सम्रद्धि की ओर जाने का हमारा मार्ग सस्टेनेबल हो, इसके लिए हम कटिबद्ध है। इस कटिबद्धता का मूल निश्चित रूप से हमारी परम्परा और संस्कृति से जुड़ा होना है। लेकिन साथ ही यह भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दिखाती है।
मै उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूँ जहां धरती को मां कहते हैं और मानते हैं। वेद उद्घोष करते हैं-
‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या’
ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
हमारी योजनाएं महत्वाकांक्षी और उद्देश्यपूर्ण हैं, जैसे
अगले 7 वर्षों में 175 गीगावॉट रिन्यूबल एनर्जी की क्षमता का विकास• एनर्जी इफिशिएंसी पर बल• बहुत बड़ी मात्र में वृक्षारोपण का कार्यक्रम
• कोयले पर विशेष टैक्स
• परिवहन व्यवस्था में सुधार
• शहरों और नदियों की सफाई
• वेस्ट टू वेल्थ की मूवमेंट
मानवता के छठे हिस्से का सस्टेनेबल डेवलपमेंट समस्त विश्व के लिए तथा हमारी सुंदर वसुंधरा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से यह दुनिया कम चुनौतियों और व्यापक उम्मीदों वाली दुनिया होगी, जो अपनी सफलता को लेकर अधिक आश्वस्त होगी। हम अपनी सफलता और रिसोर्सेज दूसरों के साथ बांटेंगे। भारतीय परम्परा में पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है।
‘उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुंबकम’
उदार बुद्धि वालों के लिए तो सम्पूर्ण संसार एक परिवार होता है, कुटुंब है
आज भारत, एशिया तथा अफ्रीका और प्रशांत महासागर से अटलांटिक महासागर में स्थित छोटे छोटे आइसलैंड स्टेट्स के साथ डेवलपमेंट पार्टनर के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा है।
सस्टेनेबल डेवलपमेंट सभी देशों के लिए राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का विषय है। साथ ही उन्हें नीति निर्धारण के लिए विकल्पों की आवश्यकता होती है। आज हम यहां संयुक्त राष्ट्र में इसलिए हैं, क्योंकि हम सभी यह मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारी अनिवार्य रूप से हमारे सभी प्रयासों के केंद्र में होनी चाहिए। फिर चाहे यह डेवलपमेंट हो या क्लाइमेट चेंज की चुनौती हो।
हमारे सामूहिक प्रयासों का सिद्धांत है – कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉसिबिलिटी।
अगर हम क्लाइमेट चेंज की चिंता करते हैं तो कहीं न कहीं हमारे निजी सुख को सुरक्षित करने की बू आती है। लेकिन यदि हम क्लाइमेंट जस्टिस की बात करते हैं तो गरीबों को प्राकृतिक आपदाओं में सुरक्षित रखने का एक संवेदनशील संकल्प उभरकर आता है।
क्लाइमेंट चेंज की चुनौती से निपटने में उन समाधानों पर बल देने की आवश्यकता है, जिनसे हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकें। हमें एक वैश्विक जन-भागीदारी का निर्माण करना होगा, जिसके बल पर टेक्नोलॉजी, इन्नोवेशन और फाइनेंस का उपयोग करते हुए हम क्लीन और रिन्यूबल एनर्जी को सर्व सुलभ बना सकें। हमें अपनी जीवनशैली में भी बदलाव करने की आवश्यकता है, ताकि ऊर्जा पर हमारी निर्भरता कम हो और हम सस्टेनेबल कंजंप्शन की ओर बढ़े। साथ ही एक ग्लोबल एजूकेशन प्रोग्राम शुरू करने की आवश्यकता है, जो हमारी अगली पीढ़ी को प्रकृति के रक्षण एवं संवर्धन के लिए तैयार करे।
मैं आशा करता हूँ कि विकसित देश डेवलपमेंट और क्लाइमेट चेंज के लिए अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे।
मैं यह भी आशा करता हूँ कि टेक्नोलॉजी फेसिलिटेशन मैकेनिज्म, टेक्नोलॉजी और इन्नोवेशन को विश्व के कल्याण का माध्यम बनाने में सफल होगा। यह मात्र निजी लाभ तक सीमित नहीं रह जाएंगे।
जैसा कि हम देख रहे हैं, दूरी के कारण चुनौतियों से छुटकारा नहीं है। सुदूर देशों में चल रहे संघर्ष और अभाव की छाया से भी वे उठ खड़ी हो सकती हैं। समूचा विश्व एक दूसरे से जुड़ा है, एक दूसरे पर निर्भर है और एक दूसरे से सम्बंधित है। इसलिए हमारी अंतरराष्ट्रीय सांझेदारिओं को भी पूरी मानवता के कल्याण को अपने केंद्र में रखना होगा। सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में भी सुधार अनिवार्य है, ताकि इसकी विश्वसनीयता तथा औचित्य बना रह सके। साथ ही व्यापक प्रतिनिधित्व के द्वारा हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अधिक प्रभावी रूप से कर सकेंगे।
हम एक ऐसे विश्व का निर्माण करें, जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस करे, उसे अवसर उपलब्ध हों और सम्मान मिले। हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए अपने पर्यावरण को और भी बेहतर स्थिति में छोड़ कर जाएं। निश्चित रूप से इससे अधिक महान कोई और उद्देश्य नहीं हो सकता। परन्तु यह भी सच है कि कोई भी उद्देश्य इससे अधिक चुनौतीपूर्ण भी नहीं है।
आज 70 वर्ष की आयु के संयुक्त राष्ट्र में हम सबसे अपेक्षा है कि हम अपने विवेक, अनुभव, उदारता, सहृदयता, कौशल एवं तकनीकी के माध्यम से इस चुनौती पर विजय प्राप्त करें।
मुझे दृढ़ विश्वास है कि हम ऐसा कर सकेंगे। अंत में मै सबके कल्याण की मंगल कामना करता हूं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु: मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।
सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी कल्याणकारी हो, किसी को भी किसी प्रकार का दु:ख न हो।
इसी मंगल कामना के साथ आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद!

गुरुवार, सितंबर 24, 2020

न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए


जितनी बार बिलख बिलख के 
रोते रहने को मन कहता
उतनी बार मीत तुम्हारा भोला मुख
मेरे ही सन्मुख है रहता....!
*************************
सच तो है अखबार नहीं तुम,
जिसको को कुछ पल बांचा जाये.
न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका-
जिसे तपा के जांचा जाए.
मनपथ की तुम दीप शिखा हो
यही बात हर गीत है कहता
जितनी बार बिलख बिलख के ...........
*************************
सुनो प्रिया मन के सागर का
जब जब मंथन मैं करता हूं
तब तब हैं नवरत्न उभरते
अरु मैं अवलोकन करता हूँ
हरेक रतन तुम्हारे जैसा..!
तुम ही हो , मन  है कहता.
जितनी बार बिलख बिलख के ...............
मनके मनके साझा करतीं
पीर अगर तो मुस्कातीं तुम ।
पर्व दिवस के आने से पहले
कोना कोना चमकाती तुम !
दुविधा अरु संकट के पल में
मातृ रूप , तुम में मन लखता ।।
जितनी बार बिलख बिलख के ............
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
छाया :- मुकुल यादव

मंगलवार, सितंबर 15, 2020

मातृत्व एवम न्यायपूर्णता स्वर्गारोहण का एकमात्र रास्ता..!

💐💐💐
वन वन भटकते रहे कुछ योगियों ने अहर्निश प्रभू से साक्षात्कार की उम्मीद की थी । 20-25 बरस बीतते बीतते वे धीरे धीरे परिपक्व उम्र के हो गए ! 
कुछ तो मृत्यु की बाट जोह रहे थे । पर प्रभू नज़र न आए । नज़र आते कैसे उनके मन में सर्वज्ञ होने का जो भरम था । श्रेष्ठतम होने का कल्ट (लबादा) ओढ़कर घूम रहे थे । कोई योग में निष्णात था तो कोई अदृश्य होने की शक्ति से संपृक्त था । किसी को वेदोपनिषद का भयंकर ज्ञान था तो कोई बैठे बैठे धरा से सौर मंडल की यात्रा पर सहज ही निकल जाता था । 
  परमज्ञानीयों में से एक ज्ञानी अंतिम सांस गिन रहा था । तभी आकाश से एक  यान आया ।और योगियों के जत्थे के पास की आदिम जाति की बस्ती की एक झोपड़ी के सामने उतरा। 
 यान को देख सारे योगी सोचने लगे लगता है कि यान के चालक को भरम हुआ है। इंद्र के इस यान को कोई मूर्ख देवता चला रहा है शायद सब दौड़ चले  यान के पास खड़े होकर बोले - है देव्, योगिराज तो कुटिया में अंतिम सांसे गिन रहे हैं । आप वहीं चलिए । 
देव् ने कहा- हे ऋषियों, मैं दीनू और उसकी अर्धांगिनी को लेने आया हूँ। 
महायोगी के लिए यम ने कोई और व्यवस्था की होगी । 
ऋषियों के चेहरे उतरते देख देव् ने कहा - इस दम्पत्ति में  पत्नि ने ता उम्र मातृत्व धर्म का पालन किया है । स्वयम विष्णु ने इसे देवत्व सम्मान के साथ आहूत किया । 
और दीनू..?
देव्- उसने सदा ही निज धर्म का पालन किया । मिल बांट कर कुटुंब के हर व्यक्ति को समान रूप से धन धान्य ही नहीं प्रेम का वितरण भी किया । 
अतः मैं देवराज इंद्र की यम से हुई चर्चानुसार आया हूँ ।
पूरी दुनिया भर का ज्ञात अज्ञात अध्यात्म एक पल में समझ में आ गया ऋषियों को । 
 (टिप्पणी:- न स्वर्ग है नर्क है यहां केवल सांकेतिक रूप से मातृत्व और कौटुंबिक न्याय का महत्व समझाने के लिए कथा की रचना की गई है )

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