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बुधवार, अक्टूबर 14, 2020

आने वाले 10 से 15 सालों में पाकिस्तान से भारत में आएंगे शरणार्थी.. (भाग 02 )

सेंगे शेरिंग के हवाले से गिलगित बाल्टिस्तान

     गिलगित बालटिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है इसके संबंध में हालिया दिनों में सेंगे सेरिंग जो वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे हैं साफ तौर पर बताया है ।

भारतीय उपमहाद्वीप के साथ 1947 के बाद हुआ है वह भारत के लिए एक बहुत दुखद स्थिति है।

मुझे अच्छी तरह याद है तब जब भारत के जीवन समंकों  खास तौर पर जन्म दर मृत्यु दर और होती रही है तब दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अन्य  देशों के सापेक्ष भारत को सबसे ज्यादा नेगेटिव प्रोजेक्ट किया जाता था । उस दौर का एनजीओ कल्चर जो आमतौर पर विदेशी फंडों से संचालित था के जरिए भारतीय कल्चर को समाप्त कर देने की भयंकर  कोशिशें हुई है।

पता नहीं कौन सी बात है जो कि हमारी कल्चर को क्षतिग्रस्त होने से बचाती रही है।

धारा 370 और 35 बी के समापन के उपरांत गिलगित बालटिस्तान जी के लोग भारतीय डेमोक्रेसी का सुख लेना चाहते हैं । गिलगित बालटिस्तान पिछले लेख में वर्णित 7 जिले और दो डिवीजन की 15 लाख लोगों की आबादी भारत की ओर देख रही है ।

  वहां के एक लीडर बाबा जान और उनके 4 साथी पाकिस्तान की जेलों  में उम्र कैद की सजा भोग रहे हैं।

जहां तक गिलगित बालटिस्तान की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थिति का संबंध है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लद्दाख और भारत के सांस्कृतिक संदर्भों में यह क्षेत्र भारत के बेहद करीब है। तो आइए जानते हैं कि - "गिलगित बालटिस्तान लोग आंदोलित क्यों है ..?"
1 -   स्वायत्तशासी क्षेत्र के निवासी हैं परंतु उनके सारे फैसले पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी डिसाइड करती है । पाकिस्तान यह तय करता है कि वहां की जनता को लिक्विड गैस और जीवन जीने के न्यूनतम संसाधन किस हद तक मुहैया कराने चाहिए ! 
2- शिक्षा के क्षेत्र में की 15 लाख की आबादी को पाकिस्तान ने किसी भी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है । निजी क्षेत्र के बलबूते पर वहां शैक्षणिक व्यवस्थाएं कठोर पाकिस्तानी कानून के अधीन काम कर रही है ।
3- कानूनी तौर पर गिलगित बालटिस्तान भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस बात को वहां की आवाम समझ चुकी है । यूनाइटेड नेशन द्वारा पाकिस्तान को उन्हें जल्द से जल्द पूर्ण स्वायत्तता देकर गिलगित बालटिस्तान की जनता की इच्छा के अनुसार निर्णय लेने की बात कही है ।
4- जबकि चीन के दबाव में आकर अनाधिकृत रूप से उस क्षेत्र के नजदीक चीन के सैन्य अड्डे स्थापित हो चुके हैं। जिसका मूल उद्देश्य भारत की बढ़ती हुई सामरिक शक्ति को प्रभावित करना है।
5- इस क्षेत्र में मौजूद अकूत प्राकृतिक खनिज संसाधन  का फायदा निवासियों के लिए भविष्य में भी मिलना मुश्किल है जिस तरह है बलूचिस्तान के लोगों के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की दुरभि:संधि से वहां के लोगों का जीवन स्तर वर्तमान में बेहद प्रभावित है ।
6- अपने टीवी इंटरव्यू में है सिंगे शेरीन ने स्पष्ट किया कि- "हम भारत में मिलना चाहते हैं..!" भारत में पीओके का बहुत सारा हिस्सा शामिल होने के लिए खुलकर सामने आने लगा है । इसी कारण से अगर पाकिस्तान आम जनता की राय लेने से घबरा रहा है ।
7- राजनैतिक परिस्थितियां जो भी हो गिलगित बालटिस्तान की आवाम बलूचिस्तान और सिंध की तरह ही भीषण अभाव और संकट की स्थिति में जीवन यापन कर रही है
   कल ही मैंने अपने ब्लॉग मिसफिट पर स्पष्ट रूप से लिखा था कि आने वाली 10 से 15 सालों में भारत को पाकिस्तान से आने वाली शरणार्थी जनता की देखभाल की जिम्मेदारी लेनी पड़ सकती है। परंतु तेजी से बढ़ रहे घटनाक्रम से यह कहा जा सकता है कि- पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी ने वहां के लोगों को यह आश्वासन दिया है कि 30 नवंबर 2020 तक वे गिलगित बालटिस्तान के लिए कोई खुशखबरी सुनाने जा रहे हैं ।
  वर्तमान परिस्थितियों को देखकर स्पष्ट है कि पाकिस्तानी स्थित को प्रॉविंस का हिस्सा बना देगा। और हो सकता है कि बाबा जान को रिहा भी कर दिया जाए ।
    परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि पाकिस्तान ऐसा कुछ कर सकेगा कि वहां की जनता अपने 73 साल पुराने कालखंड को याद ना रखेगी ।
  वहां के लोग स्पष्ट तौर पर भारत के साथ अंतर संबंध स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि भारत की परिस्थिति उनके लिए पाकिस्तान से अधिक अनुकूलित है और वह एक कंफर्ट लाइफस्टाइल को जी सकते हैं । अगर छल बल के जरिए गिलगित बालटिस्तान की स्वायत्तता चीन के सहयोग से समाप्त भी हो गई तो तय मानिए कि वहां की जनता इसे स्वीकार नहीं कर सकती ।
उसका आधार चीन की शोषण की प्रणाली को वह अच्छी तरह जान चुके हैं। वहां की जनता यह भी जानती है कि चीन के साथ सी-पैक के मद्देनजर किए गए कोई भी समझौते में उनकी ना तो भागीदारी है और ना ही भविष्य में भागीदारी अथवा आर्थिक विकास संभव होगा । कमोबेश यही हालात बलूचिस्तान के भी हैं ।
विश्व समुदाय बेहतर तरीके से यह समझने लगा है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी व्यवस्था जनित इस जटिल प्रमेय  को केवल भारत ही हल कर सकता है ।
अगर भारत ने कोई कठोर कदम उठा लिया और गिलगित बालटिस्तान की पक्ष में सफल हो गया तो चीन और पाकिस्तान स्थाई रूप से भारत की सामरिक शक्ति को समाप्त करने की कोशिश येन केन प्रकारेण अवश्य करेगा । परंतु हमारा अनुमान है कि- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर भारत अपनी सहिष्णुता की नीति के तहत तब तक कोई सामरिक कदम नहीं उठाएगा जब तक कि तत्कालीन पश्चिम पाकिस्तान वाली स्थिति पैदा ना हो जाए । अपनी पहचान एवं जीवन को बचाने के लिए तथा गिलगित बालटिस्तान की 15 लाख की आबादी का बहुत बड़ा प्रतिशत शरणार्थियों के तौर पर भारत में आना भारत के लिए एक अतिरिक्त भार होगा ।
वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के चलते भारत सही वक्त पर सही कदम अवश्य उठाएगा हमें भी तैयार रहना होगा ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल 

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