आज सुनिए एक गज़ल-------------------गिरीश पंकज जी की................इनके बारे मे पढिये इस ब्लॉग पर.......
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शनिवार, जुलाई 31, 2010
बुधवार, जुलाई 28, 2010
तलाश है---------------------- इस कविता के कवि की ..............................
आज सुनिए देवेन्द्र पाठक जी(मेरा भाई ) की आवाज में एक कविता ---जो बरसों से उनके जेहन में बसी है ---
अगर आप इसके रचयिता के बारे में जानते हो तो जरूर बताएं..........................(उनसे बिना अनुमति लिए यहाँ सुनवा रही हूँ मै -----माफ़ी चाहती हूँ.............)
अगर आप इसके रचयिता के बारे में जानते हो तो जरूर बताएं..........................(उनसे बिना अनुमति लिए यहाँ सुनवा रही हूँ मै -----माफ़ी चाहती हूँ.............)
मंगलवार, जुलाई 27, 2010
आहत मन का छलकता गर्व--------------------आप भी महसूस कीजिए-------------------
सोमवार, जुलाई 26, 2010
रविवार, जुलाई 25, 2010
गुरू पूर्णिमा पर विशेष प्रार्थना-------------------------------------
सभी गुरूजनों के सादर चरण-स्पर्श करते हुए......आज समर्पित करती हूँ एक प्रार्थना----जो हम अपने घर में करते हैं --------------यह प्रार्थना किसी एक गुरू के लिये नहीं है -----------इसमें सभी धर्मों के गुरूओं द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का निचोड /सार है ------------------इसे रचना और उसकी बेटी निशी ने नासिक से रिकार्ड करके भेजा और बाद मे मैने अपनी भाभी उर्मिला पाठक के साथ इन्दौर से स्वर मिलाया-----------
आज गुरूपूर्णिमा पर नमन किजीये अपने सभी उन गुरूओं को जिनसे आपने अपने जीवन में कभी भी कुछ अच्छा सीखा हो----------साथ ही सुनिये---रचना,निशी,अर्चना व उर्मिला के स्वर में ये प्रार्थना---------
आज गुरूपूर्णिमा पर नमन किजीये अपने सभी उन गुरूओं को जिनसे आपने अपने जीवन में कभी भी कुछ अच्छा सीखा हो----------साथ ही सुनिये---रचना,निशी,अर्चना व उर्मिला के स्वर में ये प्रार्थना---------
मंगलवार, जुलाई 20, 2010
भय बिन होत न प्रीत
भय बिन होत न प्रीत एक गहन विमर्श का विषय है. सामान्य रूप से सभी स्वीकार लेते हैं . स्वीकारने की वज़ह है
- भय के बिना कोई भी अनुशासन की डोर से बंध नहीं सकता:- जी हां, यह एक पुष्टिकृत [प्रूव्ड] सत्य है. अगर दुनिया भर में व्यवस्था को चलाने के लिये कानूनों के उल्लंघन की सज़ा के प्रावधान न होते तो क्या कोई इंसान कानून को मानता ? कदापि नहीं अधिकारों और कर्तव्यों के साथ साथ सर्व जन हिताय दण्ड का प्रावधान इस लिये किया गया है कि आम आदमी अपने हित के लिये दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण न करे. कानून के साथ दिये गये दाण्डिक प्रावधानों से समाज में एक भय बनता है जो अनुशासन को जन्म देता है.
- भय सामाजिक-सिस्टम को संतुलित रखता है एवम सुदृढता करता है :- समाज के रिवाज़ नियम उसके आंतरिक ढांचे को संतुलन एवम सुदृढता [स्ट्रैबिलिटी] देता है. समाज के संचालन के लिये में रीति-रिवाज़ बनाये गये हैं जो देश-काल-परिस्थितियों के अनुसार तय होते हैं सामाजिक-व्यवस्था के लिये ज़रूरी हैं.... जैसे परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता दौनों की समाज़ ने तय की हुई है यदि कोई भी एक निडर होकर इस व्यवस्था को तोडने की कोशिश करेगा तो परिवार टूट सकता है यदि इस बात का भय न हो तो प्रेम-के धागों से बंधा परिवार छिन्न-भिन्न हो जाता है. यानि परिवार के टूटने के भय से सभी को एक सूत्र में बाधे रखता है. संतुलन एवम सुदृढता का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है ?
- प्रकृति के अनुशासन को तोडने से आने वाले संकटों का भय- जिसका जिक्र हम और आप निरंतर मीडीया में देखतें हैं दून की वादियों में सुन्दर लाल जी बहुगुणा का आंदोलन याद करते हुये मैं कहना चाहती हूं कि संकटों के भय से अगर हम भयभीत न होते तो हमारे ह्रदय में पर्यावरण के प्रति प्रीत न जागती .सही तो कहा है किसी ने भय बिन होत न प्रीत
- रामयण काल में समुद्र का भयभीत होना :- समुद्र से रास्ता मांगते राम को समुद्र ने न तो तब तक रास्ता सुझाया जब तक कि उसे दण्डित करने का भय न दिखाया गया . आज़ विग्यान के दौर मे यह बात मानी जाये या न माने जाये किंतु एक संदेश ज़रूर माना जायेगा भय बिन होय न प्रीत
सोमवार, जुलाई 19, 2010
नया एग्रीगेटर: हमारी वाणी
हिन्दी चिट्ठाकारिता के इतिहास में स्मूथ संकलकों की बेहद ज़रूरत है, मैथिली जी के द्वारा अचानक एग्रीगेटर ब्लागवाणी को बन्द कर दिया, उधर चिट्ठाजगत की सहजता से न खुल पाने की मज़बूरी, से ब्लाग जगत की आंतरिक खल बली में तो कुछ बदलाव आया किंतु वास्तव में एक दूसरे से सम्पर्क के सेतु से वंचित हुए ब्लागर ...! इस आपसी सम्पर्क बाधा को समाप्त करने एक नया संकलक ”हमारीवाणी”
का आगमन स्वागत योग्य तो है किंतु भय है कि कहीं इसे अधबीच में रुकावटों का सामना न करना पड़े अस्तु यदि इस हेतु कोई शुल्क भी लिया जाए तो मेरी नज़र में कोई ग़लत बात नहीं. ताकि संकलक के संचालकों को कोई आर्थिक दबाव न झेलना पड़े .... जो भी हो हम तो खुद पंजीकृत इस
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