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रविवार, दिसंबर 04, 2016

आज जो ये रविवार है .......


रविवार है
सोचता हूँ..... बहुत हौले हौले बीते
आज जो ये रविवार है .......
मुआँ ज़ल्द बीता जाने की
कसम खाके आया ...... ओह लो
उतरने भी लगा
हमसे ज़्यादा जल्दी क्यों है इस
बारह के बाद उतरने लगा
सुनो रुको न
आज मेरा अवकाश है ........
मुझे सुनने दो न गुलज़ार को ...
अभी यूट्यूब पर उनको बुलाया है
उफ्फ न मानोगे तुम
जाओ ........
चले जाओ रविवार तुम
जाओ तुमसे कुट्टी ...

शुक्रवार, दिसंबर 02, 2016

*दो कविताएँ*.


  *तुम्हारी देह-भस्म जो काबिल नहीं होती*
अंतस में खौलता लावा
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ….!!
तब जब तुम्हारी बातों की सुई
मेरे भाव मनकों के छेदती
तब रिसने लगती है अंतस पीर
भीतर की आग पीढ़ा का ईंधन पाकर
युवा हो जाता है यकायक लावाअचानक ज़ेहन में या सच में सामने आते हो
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ….!!
मुस्कुराकर ……. अक्सर ………
मुझे ग़मगीन न देख
तुम धधकते हो अंतस से
पर तुम्हें नहीं आता
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपकाना ….!!
तुममें मुझसे बस यही अलहदा है .
तुम आक्रामक होते हो
मैं मूर्खों की तरह टकटकी लगा
अपलक तुमको निहारता हूँ
और तुम तुम हो वही करते हो जो मैं चाहता हूँ
धधक- धधक कर खुद राख हो जाते हो
फूंक कर मैं …….. फिर उड़ा देता हूँ ………
अपने दिलो-दिमाग से तुम्हारी देह-भस्म
जो काबिल नहीं होती भस्म आरती के

*बुद्ध कब मुस्कुराओगे*
तथागत सुना है जब मुस्कुराते हो
तब कुछ न कुछ बदलता है 
*
सीरिया की बाना ने* 
बम न गिराने की अपील की है 
अब फिर मुस्कुराओ 
बताओ 
बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं 
गाना गाना चाहते हैं *इशिता* की मानिंद 
लिखना चाहतें हैं *बीनश* की तरह क्रिएटिव
अब बम न गिराओ 
हमारी किलकारियां उनके बम 
से ज़्यादा असरदार है 
वो जो धर्म हैं 
वो जो पंथ हैं 
वो जो सरकार हैं 
जी हाँ किलकारियां 
उन सबकी आवाज़ से ज़्यादा असरदार हैं 
बुद्ध अब तो मुस्कुराओ
एक शान्तिगीत गाओ 
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल”* *

बुधवार, नवंबर 30, 2016

*बुद्ध कब मुस्कुराओगे*

बाना अलाबेद


बुद्ध कब मुस्कुराओगे
तथागत सुना है 
गुना भी है 
जब मुस्कुराते हो
तब कुछ न कुछ बदलता है 
*
सीरिया की बाना अलाबेद ने* 
बम न गिराने को कहा है 
अब फिर मुस्कुराओ 
बताओ 
बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं 
गाना गाना चाहते हैं *इशिता* की मानिंद 
लिखना चाहतें हैं *बीनश* की तरह क्रिएटिव
अब बम न गिराओ 
हमारी किलकारियां उनके बम 
से ज़्यादा असरदार है 
वो जो धर्म हैं 
वो जो पंथ हैं 
वो जो सरकार हैं 
जी हाँ किलकारियां 
उन सबकी आवाज़ से ज़्यादा असरदार हैं 
बुद्ध अब तो मुस्कुराओ
एक शान्तिगीत गाओ 
*
गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

मंगलवार, नवंबर 29, 2016

देश का धन देश में : एक आर्थिक विमर्श 2

      

प्रभाव दिखने लगे हैं
आज वाट्स एप के ज़रिये किसी ने बताया- “पूरे देश में नोटबंदी का जो प्रभाव हुआ है उसके आंकड़े रिजर्व बैंक ने पेश कर दिए हैं. आरबीआई ने आज आंकड़ें जारी कर बताया है कि नोटबंदी का ऐलान होने के बाद 10 नवंबर से 27 नवंबर के बीच बैंकों में 33948 करोड़ रुपये बदले गए हैं. इसी बीच यानी 10 नवंबर से 27 नवंबर के बीच देश भर के बैंकों में 8,11,033 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. कुल मिलाकर इस दौरान 8,44,982 (8 लाख 44 हजार 982 करोड़ रुपये) का बैंकों में ट्रांजेक्शन हुआ है.”
दूसरी और उर्जित पटेल साहब का ये बयान भी आया - हम बैंकों से व्यपारियों के बीच पीओएस (प्वाइंट आफ सेल) मशीनों को बढावा देने का अनुरोध कर रहे हैं ताकि डेबिट कार्ड का उपयोग ज्यादा प्रचलित हो.' पटेल ने यह भी कहा कि केंद्रीय बैंक ने 1,000 और 500 रुपये के नोट जमा करने से बैंकों की जमा में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण बढी हुई नकदी पर 100 प्रतिशत सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) की भी घोषणा की है. उन्होंने कहा कि एक बार सरकार अपने वादे के अनुरुप पर्याप्त मात्रा में एमएसएस (बाजार स्थिरीकरण योजना) बांड जारी कर देती है तो उसके बाद सीआरआर बढाने संबंधी इस निर्णय की समीक्षा की जाएगी .
दौनों स्थितियां जिस तरफ संकेत कर रहीं हैं कि मुद्रा को विद्रूप होने की प्रारम्भिक सफलता तो हासिल हो गई .
तीसरा अहम् पहलू ये है कि – मुद्रा के परिवर्तन होते ही पहले तो हमसे पाक बौखलाया फिर हौले से घुटने टेकने वाली मुद्रा में शामिल हो गया. यानी सारे फेक-करेंसी के कारखानों में ताला बंदी की स्थिति नज़र आई और साथ ही साथ पाक आर्मी के और पाक सरकार के सामने ये संकट पेश हुआ   कि अब ज़हरीले आतंकी सपोलों के लिए वे निवाला किधर से जुटाएंगे... ? अगर निवाले मुहैया न हुए तो कदाचित सपोलों का मुंह वापस पाक को न निगल ले. और पीओके ,सिंध, और बलोचिस्तान हाथ से न सरक जाएं !
वास्तविकता ये है कि भारत ने आतंक को रोकने का बिना हथियार उठाए जो प्रयास किया उसे भारत की सडकों पर जनता के मन में निगेटिव भाव भरने की कोशिशें तक नाकाम रहीं. क्योंकि 70 से 80 फीसदी जनता नोटबंदी का समर्थन करते नज़र आई . कुछ सियासीयों की स्थिति साफ़ तौर उस हकीम की तरह हो गई जिसके पास मरहम तो बहुत है पर बिस्मिल दूर दूर तलक नज़र नहीं आ रहा उसे . अब बताएं कोई मरहम से भूख मिटाएगा क्या ?
क्रमश:   
  
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
हिन्दी चिट्ठाकार
चिट्ठा (ब्लॉग)
मिसफिट :- http://sanskaardhani.blogspot.in/


सोमवार, नवंबर 28, 2016

देश का कालाधन देश में : आर्थिक विमर्श 1


करेंसी के बंद होने या कहें सरकार द्वारा बंद करने के बाद की परिस्थियां ऐसी क्यों हैं कि जनता कष्ट भोगने के बावजूद भी सरकार के साथ कड़ी है. ?
ऐसा लगता है जनता को बेहद भरोसा है और  उम्मीद भी है कि सरकार का हर कदम जनोन्मुख है. सरकार की यह कोशिश आर्थिक विषमता को दूर करेगी. प्रथम दृष्टया दिख भी यही रहा है. अपने बिस्तर के नीचे नोट बिछा कर गर्वीली नींद सोने वालों के लिए- “मेरे प्यारे देशवाषियों” से प्रारम्भ होने वाला भाषण भयावह लग रहा होगा पर गरीब व्यक्ति निम्न और उच्च मध्यवर्ग का व्यक्ति दाल-रोटी के साथ  बिना सलाद खाए चैन की नींद सो रहा है.  चिल्लर के अभाव में  जाड़े के दिनों में मूली-अमरूद के सलाद का जुगाड़ जो नहीं हो पा रहा ... जब स्व. राजीव जी ने कहा था – “हम एक रुपये भेजते हैं आप तक पंद्रह पैसे पहुंचाते हैं तो बड़ा प्रभावित थी जनता तो एक दिन का उपवास भी तो रखा था स्व. शास्त्री जी की सलाह पर... !”
यानी इस देश की जनता जब किसी को प्रधान-मंत्री जी बनाती है तो विश्वास की डोर से खुद-ब-खुद बांध जाती है उस व्यक्तित्व से ..! इसी तंतु के सहारे देश का प्रजातंत्र बेहद शक्तिशाली नज़र आता है.
भारतीय जनमानस नें लोकपाल आन्दोलन के दौर में अन्ना में अपना कल देखा था ... पर अन्ना जी सियासी न थे न ही उनकी मंशा थी .. पर जनता उनको देश की समान्तर अर्थ-व्यवस्था को ख़त्म करने का जिम्मा सौंपने का मन बना चुकी थी. पर क्या हुआ इस पर कुछ कहना ज़रूरी नहीं क्योंकि मुझे सामाजिक नज़रिए से अपनी बात कहनी है. तो हाँ चलें मुख्य विषय की ओर..
1.   “भारत की अर्थ-व्यवस्था में सेंधमारी से सरकार खुद हलाकान हैं खुदरा बाज़ार में मूल्यों की रोजिया घटबढ़ आम आदमी के लिए घातक जो है” ....
2.   फेक करेंसी की वज़ह से आतंक का विशाल साम्राज्य दूसरा प्रमुख कष्ट प्रद घटक है..
3.   स्थावर संपदा व्यापार ने तो आतंकी स्वरुप ले लिया है
4.   शिक्षा-स्वास्थ्य एवं आधारभूत ज़रूरतों का अधिक महँगा होना
5.   भ्रष्टाचार की विकरालता
  देखा जाए तो 1000 और 500 के नोट हमेशा हमें डराते रहे थे कार में पैट्रोल डलवाते वक्त जब पम्प वाला सूरज की तरफ मुंह कर नोट चैक करता तो हम ईश्वर से याचना करते थे कि मेरा दिया नोट नकली न निकले . भले ही हम उसे एटीएम से निकाल कर लाते पर सत्य यही था कि 1000 और 500 के नोट में सर्वाधिक भय इसी बात का होता था.
बाज़ार पूर्ण रूप से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि किसी ऐसे तानाशाह के हाथ है जो जब जी चाहा मूल्य बढ़ा दिया जब चाहा घटा दिया अर्थात अधिक लाभ के लिए कृत्रिम कमी को षडयंत्र पूर्वक रचा जाता है. अब जब खुदरा बाज़ार में  माल बेचते रहना मज़बूरी है तो ये मानिए कि मूल्यों में स्थिरता दीर्घ समय तक बनी रह सकती है. अब व्यापारी एकजुट होकर “खुदरा वस्तुओं के स्टाक को बलात बंधक बनाने से डरेगा”  इसका अर्थ यह है कि अब उसे उत्पादन को रोक अपने लाभ के प्रवाह को रोकने से कोई अतिरिक्त फायदा न होगा ! ऐसी स्थिति में उसकी मज़बूरी है कि वो उत्पाद को बाज़ार में प्रवाहित होने से न रोके.
फेक करेंसी आतंक को कितना पालपोस रही थी सब जानते हैं . इसका असर खुदरा बाज़ार पर भी था. जो एकाएक बाधित हुआ.
तीसरा महत्वपूर्ण बाज़ार स्थावर संपदा व्यापार  का है जिसका अधिकाँश भाग  कर चोरी से अर्जित धन से संचालित है. इसमें पवित्रता की ज़रुरत थी .
इन सब बातों के बीच शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है जो अनावश्यक रूप से अत्यधिक महंगी है
 भ्रष्टाचार भी कालेधन के निर्माण का प्रमुख स्रोत है .
इन सब बिन्दुओं पर विचार किया जाए तो लगता है कि नोटबंदी में बुराई क्या है .. ?
जब मैंने लोगों से नोटबंदी की खामियां जाननी चाहीं तो वे घुमाफिरा कर एटीम मशीन या बैंक की कतार और 50-55 लोगों की मृत्यु का ज़िक्र मात्र कर पाए किसी के पास कोई ठोस तथ्य नहीं है ... नोटबंदी के खिलाफ .. पर नोटबंदी के समर्थक भी कोई महान ज्ञानवान नहीं हैं.. कि वे क्यों समर्थक हैं ... पर उनको अपने प्रधान-सेवक पर भरोसा पक्का है.
सुधि पाठको मुझे टीवी चैनल्स पर अर्थशास्त्रियों की मौजूदगी इस वक्त अवश्य अखर रही है जो जनता के सामने अपनी बात रख जनता को इस परिवर्तन के गुण-दोष गिना सकें . चलिए 50 दिन नहीं साल भर सहयोग के लिए तैयार रहें ....... ज़रा सा कष्ट सहें कम खर्च करें ...... पूंजीवादी विकृतियों को , आतंक को समाप्त करने के संकल्प पूरा होने दें ....... देश राग यही है. हमें देश के कालेधन की होली देश में ही जलवाना है .. किसी स्विस बैंक में नहीं    



      

मंगलवार, नवंबर 22, 2016

बालभवन जबलपुर का दबदबा रहा




दिनांक 14 अगस्त  से 20 अगस्त तक चलने वाली  समारोह का आयोजन प्रदेश के सात बालभवनों का एक साथ प्रदर्शन हुआ इस क्रम में दिनांक 18 से 20 नवंबर 2016 तक जवाहर बालभवन भोपाल में आयोजित विभिन्न  सांस्कृतिक, साहित्यिक स्पर्धाओं में संभागीय बालभवन जबलपुर का दबदबा
कायम रहा। जिसमें मूर्तिकला
में अंकुर विश्वकर्मा प्रथम , कविता लेखन में कुमारी उन्नति
तिवारी
,  टिप्पणी मे कुमारीं बीनस खान प्रथम, संवाद  लेखन में कुमारी वैशाली बरसैयां , एकल अभिनय में कुमारी समृद्वि असाठी, कहानी लेखन में कुमारी सुनीता केवट तृतीय, टिप्पणी लेखन में देवांशी जैन , हस्तकला में तृतीय स्थान कुमारी शिखा पटेल उपरोक्त सभी प्रतिभागी विजेताओं  को महिला बाल विकास मंत्री श्रीमति अर्चना चिटनिस द्वारा पुरूस्कृत किया गया ।
बॅाबी नाटक ने पलकें भिगोई
श्री विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित नाटक बॉबी प्रस्तुति
श्री संजय गर्ग की
निर्देशन में दिनांक 19 नवंबर को इुर्ह बालिका बॉबी पर केन्द्रित इस
नाटक
में नौकरी पेशा दम्पती की इकलौती संतान की पीड़ा पर चित्रित किया गया है। बालरंग सभी बच्चों का कहना है कि मुख्य पात्र बॅाबी की भूमिका में कुमारी श्रेया
खंडेलवाल का अभिनय बेहद प्रभावी एवं मार्मिक रहा है। वर्तमान  समय
में पति पत्नि द्वारा बच्चों के लिए नौकरी  व्यवसाय में जानाआवश्यक महसूस किया जाता है । परंतु माता पिता की अनुपस्थिति में बच्चे कितना व्याकुल होते है और क्या खो रहे होते हैं   इसका एहसास उन्हे  देर से  हो पाता है । सुश्री शिप्रा सुल्लेरे  के संगीत निर्देशन में श्री विजय तेंदुलकर एवं  गिरीश बिल्लोरे के गीत भी नाटक में  शामिल किये गयें हैं ।  बालभवन के पूर्व छात्राओं ने महत्वपूर्ण जवाबदारी सम्हाली  जिनमें कुमारी मनीषा तिवारी  लाइट  व्यवस्था, एवं कुमारी मुस्कान सोनी संगीत एवं ध्वनि इफैक्ट  तथा कुमारी महिमा गुप्ता ने साउंड सिस्टम नियंत्रक की ज़वाबदेही सम्हाली  । 
नाटक में श्रेया खंडेलवाल आदि ने  भूमिकाऐं अदा की नाटक की प्रभावशीलता को  देखते हुए दो बार  पुनः मंचन नये दर्शकों हेतु के समक्ष  मिलना जबलपुर की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है।  उसके अतिरिक्त श्री इंद्र पांडे एवं महिमा गुप्ता द्वारा निर्देशित बुंदेलीय नृत्य एवं एकलगान में आयुष रजक को बहुत सराहना प्राप्त हुई ।
श्रीमती तृप्ति त्रिपाठी ,  संचालक जवाहर बालभवन भोपाल , महिला बाल विकास की संभागीय उपसंचालक,  श्रीमति मनीषा लुम्बा, संचालक बालभवन  गिरीश बिल्लौरे , श्री सज्जन सिंह कठेत एवं श्री अखिलेश मिश्रा, श्री डांगी, श्री आर सी मिश्रा सहित राज्य के अधिकारियों  ने संभागीय बालभवन
जबलपुर की उपलब्धि पर
शुभकामनाऐं  व्यक्त की।
स्टार प्लस के रियलिटी शो में लाडो ब्रांड
एम्बेसडर कुमारी इशिता विश्वकर्मा
का चयन
इसी क्रम में बाल भवन की छात्रा लाडो ब्रांड
एम्बेसडर कुमारी इशिता विश्वकर्मा
का
चयन स्टार प्लस का रियलिटी  शो  
दिल
है हिन्दुस्तानी
‘  के लिए स्टार प्लस टीम द्वारा इंदौर में 19.11.2016 को हुए आडिशन में चयनित किया गया है ।


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