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बुधवार, जनवरी 12, 2022
ग़ज़ल : उनके फनों को अब तो कुचलने का वक्त है ।।
मंगलवार, दिसंबर 14, 2021
सनातन अर्थात हिन्दू धर्म क्या है............. !
मानव कुछ ना कुछ विशेष गुण धर्म के साथ विकसित
होता है। जब विज्ञान की ओर मनुष्य का ध्यान ही नहीं था पाषाण से लौह,
और फिर लौह से अन्य धातु युग तक की यात्रा बिना किसी अनुशासनिक प्रणाली
के संभव नहीं है। चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो या फिर कबीले में रहने की व्यवस्था।
और यही जीवन व्यवस्था उसे यानी मनुष्य जाति को आवश्यकता और उसकी पूर्ति के लिए अन्वेषण
एवं अविष्कार की प्रेरणा देती है। अति आवश्यक है कि हम धर्म के इस बिंदु को अवश्य पढ़ें।
और जाने कि किन परिस्थितियों में मनुष्य ने अपने आप को आदिम युग से सभ्य मानव के रूप
में विकसित कर दिया…?
धर्म की परिभाषाओं को आपने देखा भी होगा ।
यहां फिर से लिखने की जरूरत नहीं है। फिर भी मैं अपने नजरिए से धर्म को क्या समझता
हूं वह बता देता हूं मौजूदा परिभाषा भी प्रस्तुत हैं ।
1. मेरे नज़रिए से धर्म-"ईश्वरीय आस्था युक्त परिवर्तनशील वैज्ञानिक प्रक्रिया है..!°
2. धर्म में जड़त्व तो नहीं बल्कि प्रगति शीलता के बिंदुओं का समावेश होता
है और ये बिंदु रिचुअल्स और मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ सिंक्रोनाइज होते हैं,
ऐसा व्यक्ति ही धार्मिक कहलाता है जो स्वयं से पृथक एक शक्ति को स्वीकार
करता है उस शक्ति को ब्रह्म अथवा ईश्वर तत्व की संज्ञा दी जाती है।
3. धर्म देश काल परिस्थिति के अनुसार लागू होता है,
क्योंकि उसकी प्रकृति ही परिवर्तनशील है।
4. ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार ने वाला धर्म की परिभाषा को समझ सकता
है ।जो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता है वह कुछ प्रक्रियाओं का पालन करता है
।
5. केवल पूजा प्रणाली ही धर्म नहीं है। किंतु पूजा प्रणाली धर्म का एक
हिस्सा है। ऋग्वेद इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जहां जो देता है अर्थात वह देवता है
और ऋग्वेद के मंत्रों जिसे हम ऋचा कहते हैं अर्थ को समझना होगा। हवन या यज्ञ एक और
वायुमंडल की शुद्धता का प्रयोग है तो दूसरी ओर जीवन यापन के लिए प्राप्त होने वाले
संसाधनों के लिए उन देने वाले यानी देवताओं के प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन भी है। वेद
में उस सरस्वती नदी का जिक्र आया है, जो वर्तमान
में विलुप्त है उसी देवता माना है तो उसे यज्ञ के माध्यम से आहुतियां देने का अनुमान
लगाया गया जबकि वेदों में जिस सरस्वती का देवी स्वरूप आह्वान किया गया है वह बुद्धि
के दाता सरस्वती यानी शारदा है ना कि सरस्वती। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि नदियां
जीवित होती हैं ना कि देव स्वरूप। इसकी पुष्टि में विद्वान आचार्य मृगेंद्र विनोद जी
द्वारा प्रस्तुत विवरणों को देखा जाए तो पता चलता है कि सरस्वती नदी का यज्ञ नदी के
तट पर जाकर ही किया जाता था और यह लगभग 18 वर्ष में पूर्ण होता
था ना कि यज्ञ आहुति के द्वारा सरस्वती नदी का आह्वान किया जाता था।
6. धर्म में मान्यताओं को देश काल परिस्थितियों के अनुसार
बदलाव की सुविधा मौजूद है ।
7. धर्म किसी संस्थान का डॉक्ट्रिन नहीं होता। आप सोचते होंगे कि ईश्वर
की आराधना करने की प्रक्रिया डॉक्ट्रिन नहीं है ..? प्रक्रिया डॉक्ट्रिन है पर धर्म डॉक्ट्रिन नहीं है। जैसे आपके शरीर में बहुत
सारे अंग है परंतु अंग आप नहीं है बल्कि आप अपने अंगों का समुच्चय हैं। धर्म क्योंकि
प्रक्रिया नहीं है घर एक अवधारणा है और उस अवधारणा को करने समझने देखने के लिए प्रक्रियाओं
की जरूरत होती है अतः केवल प्रक्रिया ही धर्म नहीं हो सकती।
8. चलिये हम विचार करतें हैं कि हम सनातनी है अर्थात हम हिंदू धर्म के मानने वाले हैं । इसका
अर्थ यह है कि सनातन व्यवस्था में एक व्यवस्था जो आस्था के साथ ईश्वर पर विश्वास करती
है उस तक (ईश्वर तक) पहुंचने के प्रयत्नों
को बल देती है ।
अस्तु
यह यह कहना और मानना ही होगा कि :- "धर्म एक व्यवस्था
है जो आस्था के साथ नैसर्गिक है। सनातन है अर्थात कंटीन्यूअस है और इसमें मानवता के
घटक देश काल परिस्थिति के अनुसार समावेशित होते रहते हैं ।"
सनातन में रूढ़िवाद मौजूद नहीं है, अगर कोई
रूढ़ि नज़र आए तो उसे सांप्रदायिक या पंथगत ही होगी । सनातन का बड़ी नदी का प्रांजल प्रवाह है जिसमें
कई छोटी नदियां क्रमशः शामिल होती जाती हैं और मुख्य नदी किसी भी सहायक नदी का विरोध
नहीं करती। रूढ़ियां सनातन धर्म में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं, अतः सनातन में विमर्श या वार्ताएं होती हैं यही वार्ताएं अंतिम निर्णय पर पहुंचती
है ऐसे निर्णय बाधाओं को तोड़ते हैं।
ऐसा लगता है यहां रूढ़ियों की परिभाषा देने की जरूरत नहीं है आप जानते
हैं रूढ़ियाँ क्या होतीं हैं ? परंतु एक तथ्य यह है कि सनातन रूढ़ियों
को तोड़ता है, अत: सनातन अपेक्षाकृत अधिक या कि पूर्णत:
सहिष्णु है । सनातन विकल्प की मौजूदगी को स्वीकारता है।
उदाहरण के तौर पर एक कहावत है- फूल नहीं तो फूल की पत्ती चढ़ा
दीजिए प्रभु प्रसन्न हो जाएंगे। इस कथन का अर्थ है कि विकल्पों को उपयोग में लाया जाए
।
मनु स्मृति के अनुसार धर्म की परिभाषा
धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के
हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं की
मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा
पद्यति हैं वह धर्म हैं।
चलिए अब धर्म की कुछ परिभाषाओं को देखते हैं-"धर्म का परिभाषा क्या हैं?"
धर्म
संस्कृत भाषा का शब्द हैं जोकि धारण करने वाली धृ धातु से बना हैं।
"धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण
किया जाये वह धर्म हैं। अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र
गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यहभी कह सकते हैं
की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा
पद्यति हैं वह धर्म हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि- "धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह: धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं (मनु स्मृति)
जैमिनी
मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र में धर्म का लक्षण हैं लोक परलोक के सुखों की सिद्धि
के हेतु गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म के लक्षण
हैं।
वैदिक
साहित्य में धर्म वस्तु व्यक्ति समष्टि के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थों में जैसे जलाना और प्रकाश करना अग्नि जैसे बिंदुओं को धर्म माना हैं तो प्रजा का
पालन और रक्षण राजा का धर्म तथा राजाज्ञा का पालन करना प्रजा का धर्म बताया गया है
।
आध्यात्मिक
संदर्भों में व्यक्ति में अंतर्निहित भावों जैसे धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों बचाव, हरण का त्याग, शौच शुद्धता, इन्द्रिय
निग्रह, बुद्धि एवम ज्ञान, विद्या,
सत्य, अक्रोध आदि को धर्म के लक्षण के रूप में
निरूपण किया है। सदाचार परम धर्म हैं
महाभारत
में कहा है कि-
"धारणाद धर्ममित्याहु:,धर्मो धार्यते प्रजा:..!
अर्थात जो धारण योग्य है फलतः
जिसे प्रजाएँ धारण करती हैं- धर्म हैं।"
कणाद ने धर्म का लक्षण यह किया हैं- "यतोअभयुद्य निश्रेयस सिद्धि: स धर्म:" अर्थात सामष्टिक रुप से सामाजिक अभ्युदय यानी विकास जिसे अंग्रेजी में डेवलपमेंट
कहां गया है । वह धर्म है और आराधना योग आदि प्रणालियों को अपनाकर आत्मोत्तथान करने
की प्रक्रिया धर्म का लक्षण है।
स्वामी
दयानंद के अनुसार धर्म की परिभाषा -जो पक्षपात रहित न्याय सत्य का ग्रहण,
असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार हैं उसी का नाम धर्म और उससे विपरीत
का अधर्म हैं
स्वामी
जी कहते हैं कि "पक्षपात रहित न्याय आचरण सत्य भाषण आदि युक्त
जो ईश्वर आज्ञा वेदों से अ-विरुद्ध हैं, उसको धर्म मानता हूँ ! महर्षि दयानंद धर्म के पालन के
लिए किए गए कार्यों और कृत कार्य के लिए प्राण उत्सर्ग तक प्रस्तुत रहने के धर्म को
स्वीकार करने का आग्रह करते हैं।
कार्ल मार्क्स ने
सनातन धर्म के दार्शनिक पक्ष यहां तक कि लाक्षणिक पक्ष को पढ़ा/समझा
ही नहीं था । कार्ल मार्क्स नास्तिक थे जो
उनकी च्वाइस थी । वे चर्च के राजनीतिक प्रभाव एवम हस्तक्षेप के विरुद्ध थे । वे संप्रदाय के डाक्ट्रिनस के नजदीक ज्यादा रहे हैं,
इसलिए उन्होंने धर्म को अफीम की संज्ञा दी है। अगर कार्ल मार्क्स भारतीय
दर्शन को समझ ही लेते तो इस वाक्य का जन्म ना होता जिस का दुरुपयोग आयातित विचारधारा
के पैरोकार वामपंथ द्वारा भारत में किया जाता है ।
धर्म की परिभाषाएं लाक्षणिक हैं । धर्म को लक्षणों एवम उसमें शामिल सात्विक प्रक्रियाओं के जरिए पहचाना
जा सकता है।
सुधि पाठकों धर्म Dharm एक वह शब्द है जो
Religion से अलग है ।
Oxford dictionary एवम हिंदी डिक्शनरी में
से धर्म Dharma शब्द को religion अर्थात
संप्रदाय के रूप में नहीं रखना चाहिए। धर्म और संप्रदाय शब्द मूल रूप से प्रथक प्रथक
हैं ।
शनिवार, दिसंबर 11, 2021
Motivational story for Me
It happened that a long time ago a professor was giving his lecture in a college. The students were listening to the lecture with full dedication, meanwhile a student went out and came back, someone took out the wristwatch.
This child complained about the incident to the professor. The professor blindfolded all the children, brothers etc. and searched everyone. Because no child had gone out, a wristwatch was found in a child's pocket.
This child complained about the incident to the professor. The professor blindfolded all the children, brothers etc. and searched everyone. Because no child had gone out, a wristwatch was found in a child's pocket.
The thing has come, years have passed. Often growing up, everyone remembers their school. The alumni had a reunion and called all their professors too. the child The child who had become an officer but was living with a feeling of guilt in his chest prayed for forgiveness in front of the professor.
The professor asked the reason for apologizing.
The person broke down and said, Sir, you do not recognize me, I am the one from whose pocket that precious watch came out?
Professor said that I do not recognize any such child who has been proved guilty..!
Professor reminded him You must remember that I had made you all stand in a line and had blindfolded but I had also blindfolded my eyes.
Neither did I want to tell anyone who the culprit is, nor did I want to know myself.
The child who had now become a successful man laid his head at the feet of the professor and said,
....."“If I had been caught that day, I had decided that I would go away from college and run away from home too. Had you not done me this favor, I might not have been a successful person.
"We are the first to expose anyone's mistake in the world and leave no stone unturned to make him even a criminal...
मंगलवार, दिसंबर 07, 2021
Public sector company LIC of India is issuing shares, special attention of policyholders
रविवार, दिसंबर 05, 2021
The common citizen of Pakistan has become a terrorist
The people of Sialkot took his life by making allegations of blasphemy. He was working as an export manager in a company.
This is sad news for Sri Lanka but it is a natural phenomenon for Pakistan.
Bharat ke purv mantri ne ji han main Salman Khurshid ki baat kar raha hun hindutv is different from Hindu. And this wise writer compared Hindutva to terrorist organizations.
Priyantha Kumara was a Hindu Tamil citizen of Sri Lankan origin.
This event cannot happen in an ideal nation under any circumstances.
In fact, a message has been spread all over the world from this incident that the majority of the population of Pakistan has been taught a lesson of hatred.
In fact, a message has been spread all over the world from this incident that the majority of the population of Pakistan has been taught a lesson of hatred.
There is only and only hatred in the basis of the path Pakistan is walking. Pakistani media is more concerned that Jews and Hindus are taking advantage of this news
The people of Pakistan cannot tolerate any religion, then Hindutva has a traditional enmity like them. In this regard, RSS chief Mohan Bhagwat made it clear that our DNA is the same.
my friend sameer sharma says issue is not hardware replacement ,Now the software has also changed. It has been decided that hatred and violence are taught in the education system of Pakistan.
The world has fully understood that this nation is not only a producer of terror but also a wholesale supplier.
Recently I met Mr Arshad on Twitter Arshad is an ex-serviceman., Arshad knows India very well but when it comes to bigotry in Pakistan, his tone changes.
While the people of another Hindu family are securing their place in the world on their own merit, the atmosphere of internal hatred is spreading day by day in Pakistan.
If the survey is done, you will see the residents of Pakistan in favor of non-Islamic people not to be alive.
The basic reason for this is that an atmosphere is created in the curriculum against Hindus, Sikhs and Jews.
The basic reason for this is that an atmosphere is created in the curriculum against Hindus, Sikhs and Jews,
Universal brotherhood is the basis of Hinduism. Whereas Islamic doctrine focuses on the Brotherhood of a particular class.
Today the thought of Salman Khurshid has come to the fore.Speaking against Indianness, Salman Khurshid compared it to ISI and Boko Haram. But the reality is the opposite.
Friends, this is the destiny of a nation which has been created out of lies and hatred.
You will remember the pre-partition India, yes I am talking about from 1945 to 47. Read Khushwant Singh's book Train to Pakistan. And if this is also not understood then please visit Noakhali and Kolkata.
You will remember the pre-partition India, yes I am talking about from 1945 to 47. Read Khushwant Singh's book Train to Pakistan. And if this is also not understood then please visit Noakhali and Kolkata.
that time. It was full of hatred and violence., , Pakistan has never been a peaceful nation and will never be in future. Their communalism will be the cause of their end and it will be seen by us or the next generation.
शुक्रवार, दिसंबर 03, 2021
क्या ब्रह्मा चेलानी ने सही कहा न्यायालय के आदेश बारे में
बुधवार, नवंबर 24, 2021
आभासी खनक पर भारत सरकार का हथौड़ा चल सकता है..?
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
4 फरवरी 2021 डाज़ी क्वाइन 2013 में प्रस्तुत की गई थी जिसे प्रमोट करके एलन मस्क ने अचानक लगभग 34 बिलियन डालर का व्यवसाय तक बढ़ा दिया। एलन मस्क जैसा व्यक्ति अगर किसी प्रोडक्ट को प्रमोट किया है तो लोगों का विश्वास पर बढ़ जाएगा ।
डॉज़ी क्वाइन की वैल्यू 69% बढ़ गई। जब अचानक सबके दिमाग में खलबली मची तब आप सोच रहे होंगे कि क्या वजह है कि भारत सरकार क्रिप्टो करेंसी पर हथोड़ा चलाने की बात कर रही है। अगर आपने बजट पूर्व 10 जनवरी 2021 के आसपास प्रकाशित समाचार पत्रों को ध्यान से पढ़ा होगा तो आपको पता चल गया होगा कि-"भारत सरकार और उसका रिजर्व बैंक भारत में क्रिप्टो करेंसी पर नकेल कसने वालें हैं ।
ऐसा नहीं है कि रिजर्व बैंक ने क्रिप्टो करेंसी को प्रतिबंधित ना किया हो जी हां याद कीजिए सन 2018 में क्रिप्टो करेंसी पर भारतीय रिजर्व बैंक के जरिए भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया था।
सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद यह प्रतिबंध हट गया था।
क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध लगने के कई कारण थे । कारणों कि पहले हम जान लेते हैं क्रिप्टो करेंसी का का इतिहास क्या है ?
क्रिप्टो करेंसी एक ऐसी परिकल्पना का आकार है जिसकी बुनियाद 1983 में अमेरिका के डेविड चाउम ने की थी। वे चाहते थे कि करेंसी डिजिटल भी हो सकती है। यहीं से शुरू हुई क्रिप्टो करेंसी की कल अपनी की यात्रा। पैसे का डिजिटल ट्रांसफर जिसे अमेरिका ने डिजीकैश के रूप में परिभाषित किया और इसी क्रम में जापान के एक कंप्यूटर विशेषज्ञ या कहा जाए डेवलपर सतोषी डाकामोटो ने 2009 में बिटकॉइन की शुरुआत की। इसके पहले बिटकॉइन की तरह किसी ने भी केंद्रीकृत आभासी करेंसी का प्रयोग नहीं किया था। अब तक दुनिया में 25 प्रकार की क्रिप्टो करेंसी प्रचलन में है।
इसके बहुत से फायदे हो सकते हैं लेकिन इससे होने वाली फजीहतों को देखते हुए भारत सरकार ने इस पर एक बिल लाने की तैयारी कर ली है।
क्योंकि यह करेंसी अंतरजाल पर होने के कारण हैकर द्वारा है की जा सकती है। करेंसी का धारक किसी जालसाजी का शिकार हो सकता है। इस करेंसी पर भारत की परंपरागत करेंसी की तरह यह नहीं लिखा जाता कि मैं धारक को ..... रुपए अदा करने की गारंटी देता/देती हूं।
उपरोक्त के अलावा इसे वैश्विक अधिमान्यता नहीं है।
दक्षिण एशियाई देशों में भारत एक ऐसा देश है जो आतंकवाद एवं मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। यह करेंसी ब्लैक मनी बनाती है। और भारत सरकार का इनकम टैक्स विभाग रिजर्व बैंक इससे मिलने वाले लाभ पर ना तो कर लगा सकता है ना ही जीएसटी वसूल कर सकता है। एक समानांतर आर्थिक सत्ता स्थापित हो जाने से भारतीय प्रशासनिक आर्थिक और सामाजिक ढांचा भविष्य में गड़बड़ भी हो सकता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
ऐसी स्थिति में भारत सरकार भारत में 16 एक्सचेंज के माध्यम से निवेश करने वाले 10 करोड़ भारतीय निवेशकों को सुरक्षा देना चाहती है।
यद्यपि यह करेंसी अमेरिका और जापान में विकसित हुई है परंतु इसके निवेशक भारत में सर्वाधिक है जो लगभग 10 करोड़ भारतीय नागरिक के रूप में पहचाने गए हैं। एक मजेदार तथ्य है कि अधिकांश निवेशक औसतन 24 वर्ष की उम्र वाले हैं। चलिए अब हम जानते हैं कि भारत के अलावा शेष तीन और कौन से देश है जहां क्रिप्टो करेंसी सर्वाधिक रूप से प्रचलित है जी हां इनमें अमेरिका जहां लगभग दो करोड़ व्यक्ति रूस और नाइजीरिया जहां एक करोड़ से अधिक लोग क्रिप्टो करेंसी में अपनी धनराशि निर्देशित कर चुके हैं। टर्की में इस आभासी खनक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
क्रिप्टो करेंसी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्व से अनुरोध किया था कि इससे आतंकवादियों ड्रग माफिया जैसे वर्ग को सबसे ज्यादा लाभ हो रहा है और यह करेंसी अगर रेगुलेट नहीं होती है तो विश्व के लिए भी खतरा है। आप सोच रहे होंगे कि मोदी जी डिजिटल करेंसी को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन इस डिजिटल करेंसी को बढ़ावा क्यों नहीं दिया जा रहा..?
आपका सवाल बिल्कुल वाजिब है किंतु आप जानिए एक समानांतर अर्थव्यवस्था जैसा मैंने पूर्व में कहा किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को चौपट कर सकती है। यह अर्थव्यवस्था वैसी ही है इसमें राष्ट्र को पूर्व में वर्णित लाभ यथा आयकर जीएसटी इत्यादि नहीं मिलती दूसरे यह करेंसी अवैधानिक कार्यों को अंजाम देने के लिए बेहद आसान संयंत्र भी है।
आज मेरे मित्र पूछ रहे थे इन 10 करोड़ निवेशकों का क्या होगा अगर भारत में निजी क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध लगेगा..?
एक भारतीय के नाते उन्हें यह सुझाव मान लेना चाहिए कि वह अपना निवेश क्रिप्टो करेंसी में अब ना करें और जो किया है उसे वापस प्राप्त करलें । अगर निवेशकों को क्रिप्टो में ही निवेश करना ही है तो प्रतीक्षा करें शायद रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल करेंसी जारी कर दे। क्योंकि रिजर्व बैंक करेंसी धारक को राशि अदा करने की गारंटी अवश्य ही देगी।
What is Melody of Life मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?
अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सदगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*
*चिंतन*
*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?*
इसे समझने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए। पर मेरे पास बहुत बड़ा दिल नहीं है तब मैं किस तरह जीवन के आल आपको सुन सकूंगा या उस अलाप की अनुगूंज का आभास कर सकूंगा। दरअसल मेलोडी ऑफ लाइफ वीतरागियों को हासिल होती है सबको यह सब हासिल कैसे हो सकता है?
अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सतगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*
*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* (द्वितीय सोपान)
प्रेम ही संसार नीव है। स्वामी शुद्धानंद नाथ जी की इस एक पंक्ति मैं जीवन का रहस्य छुपा हुआ है। प्रेम में अपेक्षा और उपेक्षा जो नींबू का रस या टाटरी का प्रयोग करना प्रेम के मूल तत्व को विघटित कर देता है। कुछ दिनों पूर्व की घटना है गली में एक कुत्तिया अपने कुछ बच्चों के साथ आई। मोहल्ले में एक शिक्षक था जो निजी तौर पर कोचिंग क्लास चलाता था। उसके मन में करुणा भाव उन्हें देखकर अचानक संचारित हो गया। उसने उन बच्चों और उस कुतिया को अपने आवास स्थल पर संरक्षण दे दिया। और उनकी सेवा करने लगा। इस बात का ज्ञान जब हम सबको हुआ तो हमने देखा कि हमारी भतीजी ने उस करुणा को विस्तार दे दिया। वर्क फ्रॉम होम करते हुए बिटिया ने कुछ समय उनकी सेवा सुश्रुषा के लिए निकाला। उन पर नजर रखी। गंभीरता से देखभाल करने लगी।
और धीरे-धीरे एक से विचारधारा वाले लोग उन बच्चों के प्रति समर्पित होने लगे। बच्चे कुत्ते के थे इनसे हमारा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं बल्कि इससे हमें यह है स्वभाविक है कि यह काटेंगे और जिस के दुष्प्रभाव गंभीर रूप से होंगे। बस सही भी है परंतु एक दिन अचानक मुझे सूचना मिली की सभी कुत्तों को टीके लगवा दिए गए हैं। और मन में कौतूहल पैदा हुआ। मैंने उस डॉग लवर से बातचीत भी की उसने बताया कि वह उनकी सेवा इसलिए करता है कि उसे आत्म प्रेरणा मिली। कहानी पूरी तरह से साफ और प्रेरक थी मेरे लिए। यद्यपि मैंने सिर्फ उन कुत्तों को स्नेह भाव से देखता मात्र था। जबकि कई लोग उनकी सेवा स्वरूप उन्हें भोजन कराते दूध ब्रेड दूध रोटी आदि उपलब्ध कराते थे। एक दिन अचानक उनमें से एक कुत्ता मर गया पता चला कि शैशव काल में ही किसी संक्रमण के कारण अधिकतर कुत्ते जीवित नहीं रह पाते। एक दिन दफ्तर से लौटकर देखा तो पाया कि शेष कुत्तों के इलाज के लिए डॉक्टर उनका इलाज कर रहा है। मुझे अच्छी तरह से याद है कोविड-19 के पहले दौर में भयभीत लोग अपने अपने घर के भीतर थे परंतु सरकारी कर्मचारी पूरी मुस्तैदी से फील्ड में घूम रहे थे। मेरे दो सहकर्मी अक्सर अपनी कार में ₹700 का चारा खरीदते थे तथा सड़क के किनारे खड़ी भूखी गायों को खिलाया करते हैं। तभी पता चला की कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सुबह से जब लोक सेवा के लिए जाती थी तो साथ में अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ बिस्किट और कुछ रोटी या खाद्य पदार्थ लेकर जाती थी। यकीन मानिए उन दिनों मेरी दोस्ती गिलहरी से हो चुकी थी सुबह 5:00 बजे नींद खुलती थी और मैं छोटे से कटोरी में पानी तथा कुछ दाने वगैरह डाल दिया करता था। गिलहरियां आती दाने खाती और चली जाती। लेकिन एक दिन बहुत देर से उठने के कारण गिलहरियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उस दिन कि सुबह अच्छे से याद है जब 8:00 बजे सुबह गिलहरियों के शोर ने मुझे अंततः जगा ही दिया बाहर जाकर देखा उनकी वह आवाज खुशी में बदल गई। मेरी ना उठने की स्थिति में श्रीमती जी ने पहले ही गाने और पानी की व्यवस्था कर दी थी। परंतु मेरी अनुपस्थिति शायद गिलहरियों को खल रही थी। उनका यह प्रेम देखकर ईश्वरी सत्ता पर विश्वास हो गया। हां तो मैंने इस कहानी के पहले कुत्तों के बारे में बात की थी तो यह बता दूं कि हम अकेले ही नहीं हजारों हजार लोग मूक प्राणियों की सेवा में लगे हैं गौ सेवा गौरैया की सेवा चीटियों की सेवा करते हुए परम सुख की प्राप्ति और उसका आनंद ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव है और ईश्वर का सम्मान है। यही तो है मेलोडी ऑफ लाइफ। आपको याद होगा कि एक आईटी प्रोफेशनल विदित शर्मा ने स्वप्रेरणा से कोविड-19 काल से ही एनसीआर क्षेत्र में अपनी शादी के लिए संचित राशि से गली के कुत्तों को भोजन का अभियान शुरू किया है। यह अभियान अब तक जारी है जिसका जिक्र प्रधानमंत्री स्वयं कर चुके हैं।
मौत के मुहाने पर खड़ी थी दुनिया दुनिया ने तक जाना करुणा का अर्थ। मेरे हिसाब से तो करुणा दया प्रेम ईश्वर सबको समान रूप से देता है लेकिन महत्वाकांक्षा अहंकार क्रोध कुंठा जैसे भाव इन भावों पर हावी हो जाते हैं।
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*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* भाग 03
लघु कणों में भी भयानक विस्फोट की क्षमता होती है। यह आप सब जानते हैं मुझे भी पता है। हिरोशिमा नागासाकी से अब तक हजारों खबर हम पढ़ चुके हैं। पृथ्वी हिल जाती है मानवता तबाह हो जाती है। इसके अलावा आप देखते हैं कि रेत के कणों का क्या आकार होता है पर रेत का पहाड़ अगर किसी रास्ते में आ जाए तो सारे के सारे पथ चलने योग्य कहां होते हैं। किसे मालूम था कि अदृश्य सा कोविड-19 का विषाणु समूची सभ्यता को निगल जाने की तैयारी कर चुका था, भयातुर मानव समूह जीवन के लिए सशंकित रहा है।
ज़हर अगर एक बूंद भी होता है या उससे आधा भी असर जरूर करता है। बहुत दिनों तक किसी सरफेस को आप अनदेखा करें तो पाएंगे कुछ दिनों में उस सरफेस पर आपका अधिकार ना होकर धूल के कणों का अधिकार हो जाता है।
जीवन के लिए यही एक सिद्धांत है कि अपने मानस पर जम रही धूल को हटाते जाइए। किसी के प्रति नजरिया नेगेटिव रखिए तो वह व्यक्ति बहुत भयानक नजर आएगा। मन उसके आते ही उत्तेजना से भर जाएगा और सुलगने लगेंगी विध्वंसक आग। और यही आग बन जाती हैं दावानली लपटें !
किसी से घृणा का आधार कुछ भी नहीं होता बल्कि यह एक मनोरोग है।
घृणा करने के कई कारण होते हैं-
[ ] आप दुनिया को अपनी तरीके से चलाना चाहते हैं और जो आप के तरीके को स्वीकार नहीं करता उससे आप घृणा करने लगते हैं। हम मूर्ति पूजा करते हैं जबकि इस्लाम कहता है मूर्ति पूजा हराम है और मूर्तिपूजक काफ़िर है। काफिर को मारना अल्लाह की आज्ञा है जो प्रॉफिट ने कुरान में दर्ज कर दी है। धर्म विवाह शिक्षा यह कुल मिलाकर व्यक्तिगत मामले हैं परंतु संप्रदाय कहता है नहीं उन्हें जीने का हक नहीं है जो क़ाफ़िर हैं । सोचिए क्या यह जायज है नहीं यह बिल्कुल जायज नहीं है। तो जायज क्या है..? इस दुनिया में हम भी ऐसे कुछ मंतव्य स्थापित करना चाहते हैं जो हमारे हैं !
और जब हम अपने नैरेटिव को इस्टैबलिश्ड नहीं कर पाते तब हमें क्रोध आता है। क्रोध की जीवन अवधि संभवत 2 मिनट से भी अधिक नहीं होती। लेकिन यह 2 मिनट का क्रोध हमारे जीवन की संचित पुण्य पूंजी का 100% तक हिस्सा हथिया लेता है।
[ ] इस तरह क्रोध का आधार अति महत्वाकांक्षा और ईश्वर के प्रति श्रद्धा ना रखते हुए स्वयं को महान कर्ता के रूप में प्रदर्शित करने की लालसा भी है।
[ ] अक्सर जब आप किसी के लिए कुछ करते हैं या पारिवारिक रिचुअल्स में अर्थात पारिवारिक परंपराओं के कारण कुछ आर्थिक मानसिक शारीरिक रूप से करते हैं यह कार्य ईश्वर के अलावा किसी के कारण नहीं होता। अपने कार्यों का बखान करवाना करना तथा जिसके लिए कार्य किया है उसे अपना जरखरीद गुलाम मान लेना और जब वह व्यक्ति परिस्थिति वश आप की गुलामी ना स्वीकार करें तो उसे बेइज्जत करना या बार-बार उसे एहसास दिलाना या उस पर क्रोध व्यक्त करना कुटिल तथा व्यंगात्मक शैली में बोलना क्रोध और कुंठा का जनक है ।
[ ] स्वामी शुद्धानंद नहीं अपने सूत्र में लिखा है कि- दुर्बल व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता और प्रेमी कभी दुर्बल नहीं हो सकता..!
शुक्रवार, नवंबर 19, 2021
सांप्रदायिकता बनाम बेतरतीब सृजित मंतव्यों की स्थापना के प्रयास
बहुत दिनों से कन्वेंशनल एवं सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत है कि कहीं से सकारात्मक वातावरण की उत्पत्ति होती है उसका स्वागत करना चाहिए। इन सवालों से ऊपर है काफिर और गज़वा ए हिंद जैसे शब्द..!
मनुष्य एक मानव का जन्म लेता है और फिर वह अपनी मान्यता के अनुसार या कहीं परंपरा के अनुसार उस मत को स्वीकार कर लेता है .
वह या तो मूर्ति पूजक हो जाता है या निरंकार ब्रह्म की उपासना में अपने आपको पता है। इन दिनों जो वातावरण निर्मित किया गया है वह है सनातन के विरुद्ध शंखनाद रने का। निरंकार ब्रह्म तथा साकार ब्रह्म की उपासना पर किसी को कोई संघर्ष जैसी स्थिति निर्मित नहीं करनी चाहिए। जब स्वयं सिद्ध है कि भारतीय एक ही डीएनए के हैं तो सांस्कृतिक एकात्मता गुरेज़ कैसा. ?
इस सवाल की पतासाजी करने पर पता चला कि लोग एक दूसरे की पूजा प्रणाली पर भी सवाल उठाने लगे। काफिर का मतलब है कि जो बुरा है और बुरा वह है जो मूर्ति की पूजा करता है या जो उन डॉक्ट्रींस को नहीं मानता जो किसी ने कहे हैं। भाई यही संघर्ष का कारण है। अगर मैं कहूं कि मैं क़यामत का इंतजार नहीं करता बल्कि मुमुक्ष होकर जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्ति की उम्मीद करता हूं ।
और उसके लिए साधना करना यदि अब्राहिम अवधारणा पर आधारित एक संप्रदाय कोम मानने वालों को, एतराज़ नहीं करना चाहिए।
और यदि मैं कहूं कि अब्राह्मिक संप्रदायों पूजा प्रणाली ग़लत है तो मैं स्वयं ही ग़लत हूं मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए । अर्थात एक दूसरे की पूजा पद्धतियों का सम्मान करना चाहिए जैसा भारत आमतौर पर करता है। परंतु मूर्तिपूजक हमेशा काफ़िर कहे जाते हैं यह कहां तक न्याय पूर्ण है ? और यह भी कहाँ जायज़ है कि तलवार के दम पर या किसी तरह की स्ट्रेटजी बना कर आपके विश्वास को बदलने के लिए बाध्य किया जाए।
यहां हम कलाम साहब बाबा भीमराव अंबेडकर सहित हजारों उन लोगों को याद करना चाहते हैं जो अप्रासंगिक मान्यताओं के विरुद्ध अपनी रख चुके हैं। उन्होंने क्या कहा था उसे बिना याद किए बताना जरूरी है कि सांप्रदायिक सहिष्णुता त्याग मांगती है और हम वर्षों से ऐसा त्याग करते चले आ रहे हैं। यह सनातन विचारधारा का मौलिक आधार भी है। हम विश्व बंधुत्व की बात करते हैं हम अनहलक अर्थात एकस्मिन ब्रह्म: द्वितीयो नास्ति ..
भारतीय दर्शन में धर्म का यही विशाल इनपुट भारतीय दर्शन को मजबूती देता है और उससे झलकती है भारतीय सामाजिक व्यवस्था में सहिष्णुता । और जो काम गुरुद्वारे ने किया वह उनके सहिष्णुता आधारित संस्कार के कारण हुआ। गुरु तेग बहादुर और उनके चारों साहबजादे बहुत याद आते हैं ऐसा लगता है यह सब घटनाक्रम इतिहास में नहीं बल्कि हमारी आंखों के सामने हो रहा था। 16 महाजनपद भारतीय प्रशासनिक प्रबंधन व्यवस्था के मूल आधार थे। इन महाजनपदों में विश्व व्यापार विभिन्न महाद्वीपों में सत्ताओं के साथ अंतर्संबंधों के प्रमाण कोणार्क के सूर्य मंदिर में नजर आते हैं । आप जाकर देख सकते हैं । सनातन सार्वकालिक सहिष्णु है । इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। परंतु जब हम देखते हैं कि हमारी सामाजिक धार्मिक एवं एथेनिक व्यवस्था को खंडित किया जाता है तो हम विध्वंसक को किस तरह से दीर्घकाल तक स्वीकार कर सकते हैं।
वैसे इन दिनों हिंदू और हिंदुत्व जैसे शब्दों पर भी अल्प ज्ञानी विशद व्याख्या करने को उतारू हैं ! हिंदुत्व एक एब्स्ट्रेक्ट है हिंदुत्व को हिंदू जब एग्जीक्यूट करता है तो वह विभिन्न प्रकार से परंपराओं, रीतियों, और आज्ञाओं का परिपालन करता है। इसमें कहां हिंसा है बताएं शायद कहीं भी नहीं। जब हिंसा नहीं है तो दिवाली होली दशहरा जैसे पर्व टारगेट किए जाते हैं। मात्र 4 दिन का दीपावली पर्व पर मुख्य रूप से झोपड़ियों से अट्टालिकाओं को ज्योतिर्मय करना कहां प्राकृतिक छेड़छाड़ है। हां पटाखे चलाए जाते हैं। इन पटाखों से अवश्य कुछ प्रतिशत पर्यावरण प्रभावित होता है परंतु उपभोक्तावादी वैश्विक सामाजिक व्यवस्था के लिए जो कारखाने खोले गए हैं उनका क्या ?
मामला 365 दिनों का अगर है तो जायज है सवाल उठाना ! परंतु केवल पर्व को दोषी साबित कर देना अथवा होली पर पानी की कमी का रोना रोना क्या सनातनीयों को टारगेट करने का प्रयास नहीं है। सनातन तो नहीं कहता कि किसी पर्व पर पशुओं की बलि देना इकोसिस्टम को गंभीर रूप से प्रभावित करता है? फिर किस आधार पर हिंदुत्व दूषित है या दोषपूर्ण है या उस पर अंगुलियां उठाई जाती हैं। सामाजिक व्यवस्था में हमारी परंपराओं एवं हमारे एथेनिक संकेतों को लक्षित करना न केवल अन्याय है बल्कि हिंदुओं पर अघोषित प्रहार भी है। तथाकथित बुद्धिजीवियों को समझ लेना चाहिए कि- यज्ञ और साधनाएं जिसमें हवन शामिल हैं से पर्यावरण संरक्षण होता है। कोशिश करें समझने की.., कि सनातन क्या है हर बात में सियासत अच्छी नहीं ।
समाज समाज की परंपराएं उस क्षेत्र की जलवायु भौगोलिक परिस्थिति एवं वहां रहने वाले लोगों की प्राचीन से परिष्कृत होते हुए वर्तमान तक की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था से बनती है। भारत कृषि प्रधान देश रहा है उसकी अपनी प्राचीन सामाजिक व्यवस्था एवं प्रणाली है जो दिनोंदिन परिमार्जित होती रहती है। जबकि कुछ व्यवस्थाएं बदल ही नहीं पातीं । परिस्थिति जो भी हो अपनी राजनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ना बहुत बड़ा अपराध होगा और आने वाली नस्लें ऐसे किसी प्रयास को माफ नहीं कर सकती ।जहाँ तक गुरुद्वारे में विधर्म आराधाना की अनुमति देने का वाकया है.... उसके आधार में प्रबंधन कमेटी के पदाधिकारियों को पूज्य गुरु तेग बहादुर जी एवम साहिबजादों का बलिदान याद नहीं । अभागे लोग हैं ।
मंगलवार, नवंबर 16, 2021
भारत के संदर्भ में राष्ट्रवाद
आजकल राष्ट्रवादी विचारधारा बेहद प्रासंगिक और प्रभाव शिल्पी है। बावजूद इसके खुद को राष्ट्रवादी साबित करने के लिए लोग यह प्रयास करते हैं कि वह धर्म की वकालत करें या उस पर चर्चा करते रहे।
और जो अपने आप को राष्ट्रवादी नहीं मानते वह भी इतने कुंठा ग्रस्त नजर आते हैं कि किसी बहुसंख्यक आबादी को निशाना बनाने से खुद को बचा नहीं पाते। जहां तक भारत के संदर्भ में राष्ट्रवाद का प्रश्न है राष्ट्रवाद की परिभाषा का पुनरीक्षण या उसकी स्पष्ट व्याख्या जरूरी है।
वर्तमान में जो परिभाषा दी है सबसे पहले उसे देख लेते हैं:-
"राष्ट्रवाद (nationalism) यह विश्वास है कि लोगों का एक समूह इतिहास, परंपरा, भाषा, जातीयता या जातिवाद और संस्कृति के आधार पर खुद को विभाजित करता है। इन सीमाओं के कारण, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उन्हें अपने स्वयं के निर्णयों के आधार पर अपना स्वयं का संप्रभु राजनीतिक समुदाय, 'राष्ट्र' स्थापित करने का अधिकार है।"
बुद्धिमान और विद्वान इस संदर्भ में मौन है। और उनकी यही चुप्पी न केवल राष्ट्रवाद को सही तरीके से प्रस्तुत होने दे रही है और ना ही उसे अच्छी तरह प्रस्तुत किया जा रहा।
राष्ट्रवाद में जाति का या जाति समूह परंपरा भाषा आदि आदि को घटक के रूप में शामिल कर कुल मिलाकर मानवता के विरुद्ध परिभाषित करने की कोशिश की है। स्पष्ट रूप से देखा जाए तो राष्ट्रवाद को सार्वभौमिकता की भारतीय अवधारणा से जिसमें वसुधैव कुटुंबकम सूत्र वाक्य का उल्लेख किया गया है को मानवता का विरोधी माना है।
वास्तव में राष्ट्रवाद राष्ट्र की भौगोलिक सांस्कृतिक एवं परंपरागत यह कुल मिलाकर सभ्यता के विकास का प्रयास है ।
प्रचलित परिभाषा हिटलर के डोर वाले जर्मन के नाजीवाद की छवि के आधार पर बनाई गई है। भारत जैसे देश जहां की मूल अवधारणा में वसुदेव कुटुंबकम वहां यह परिभाषा लागू करना ऐतिहासिक भूल है।
भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा क्या होनी चाहिए...?
इस विषय पर अब विमर्श की आवश्यकता है .. !
मेरे दृष्टिकोण से भारत के संदर्भ में "हम भारत के लोग अपनी भौगोलिक सीमाओं के भीतर समतामूलक समाज की परंपराओं का पालन करते हुए शांति सद्भाव एवं समन्वय के साथ राष्ट्र की प्रभुसत्ता, एवं आंतरिक एवं बाहरी सुदृढ़ता के लिए प्रतिबद्ध हैं..! हम अपनी इस प्रतिबद्धता के लिए भारत के संविधान में सन्निहित बिंदुओं के लिए वचनबद्ध हैं । यही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है यही हमारा राष्ट्रवाद है। हम वैश्विक संस्कृतियों के सम्मान के साथ अपनी संस्कृति के प्रकटीकरण के अधिकार की रक्षा करते हैं। हमारा राष्ट्रवाद किसी संप्रदाय के सम्मान के साथ उनके द्वारा हमारे आत्मसम्मान की रक्षा पर आधारित है।"
प्रचलित परिभाषा में राष्ट्रवाद को एक अवधारणा Concept माना गया है जबकि उपरोक्त अनुसार दी गई परिभाषा में राष्ट्रवाद कांसेप्ट नहीं एक डिक्लेरेशन अर्थात उद्घोषणा है।
यहां स्वर्गीय बापू श्री मोहनदास करमचंद गांधी जी अर्थात बापू जी के उस उत्तर से सहमति नहीं है कि राष्ट्रवादी भटके हुए हैं।
राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी भारतीय संदर्भों में सहिष्णुता की सबसे बेहतरीन मिसाल है ।
भारतीय राष्ट्रवाद को सूक्ष्म नजर से देखा जाए तो भारतीय राष्ट्रवाद सेवा और समानता का एक अमूर्त किंतु सर्वमान्य दस्तावेज है। भारत में राष्ट्रवाद सनातन धर्म तथा उसमें अंतर्निहित समुदायों तथा अन्य विदेशी संप्रदायों के साथ प्रारंभिक तौर पर ही सम्मानजनक व्यवहार करता है। अतः आवश्यक नहीं है कि पृथक से सेक्युलर होने की कोई गारंटी दी जावे।
भारतीय राष्ट्रवाद किसी आक्रांता भयभीत करने वाली ताकतों संस्कृति एवं धार्मिक कटाक्ष की निंदा करता है। सनातन धर्म में अंतर्निहित प्रावधान डॉक्ट्रींस एवं एडवाइजरी बहुविकल्पीय होने के कारण देश काल परिस्थिति के साथ परिवर्तित होती रहती हैं। किंतु किसी के व्यक्तिगत हित के लिए इसे परिवर्तित नहीं किया जाता और ना ही ऐसी करने की कोई अनुशंसा ही की गई है। अतः यह समझना जरूरी है कि भारतीय राष्ट्रवाद एक तरह से सतर्क एवं सचेत जीवन शैली भी है ।
यह जीवन शैली परंपराओं एवं सामाजिक सांस्कृतिक प्रथाओं के परिपेक्ष में स्वयं अनुकूलित हो जाती है।
मूल रूप से भारत में जाति प्रथा नहीं है। वास्तव में यह वर्ण व्यवस्था है जिसका सीधा संबंध अर्थ उपार्जन की प्रक्रिया से है। कालांतर में सोने का काम करने वाला सोनी हो गया तो लोहे का काम करने वाला लोहार हो गया। क्योंकि उन्हें एक ही प्रकार का एनवायरमेंट प्राप्त था अतः वे उसी समूह में रहने लगे और उन्हीं के साथ सामूहिक सामाजिक व्यवहार रीति रिवाज आदि का पालन करने लगे यह दीर्घकालीन परिणाम है ना कि भारतीय दर्शन में इसका कोई अस्तित्व रहा है। इसे समझने के लिए वैदिक व्यवस्था को समझना होगा।
विदेशी आक्रांताओं के आक्रामक रवैया से तदुपरांत फूट डालो राज करो के सिद्धांत के आधार पर सामाजिक विघटन मध्यकाल के आते आते वृहद रूप से हो गया और इसे स्थायित्व मिला। यद्यपि यह विषय बहुत अधिक विचार का है परंतु इस विषय पर विमर्श आयातित विचारधाराओं के प्रभाव से बेहद नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है। अब तो ना शास्त्रार्थ होते नाही विमर्श होते। अब केवल अपनी मत एवं मंतव्य की स्थापना के प्रयास बौद्धिक स्तर पर भी होने लगे हैं। अस्तु भारतीय राष्ट्रवाद किसी जाति धर्म संप्रदाय वर्ग वर्ण भाषा क्षेत्र से विरत एकात्मता की परिभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। यहां जर्मन की तरह कभी कोई कोई बंधन नहीं था या नहीं है कि भारत में रहकर आप अपनी स्वधर्म का या सांप्रदायिक मूल्यों का पालन नहीं कर सकते। इसका उदाहरण पूर्व काल में भारत में गिरजाघर और प्रार्थना स्थल के लिए हमारे पूर्वज भूमि और संसाधन भी प्रदान करते थे।
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