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सोमवार, अक्तूबर 05, 2009

सलीम खान को प्रतिबंधित कर देना चाहिए..?

इस स्वच्छ भारत में जब एक हिन्दू लड़की ने कुरान लिखी हो उसे और कितना स्वच्छ बनाने पर तुले श्रीमान सलीम खान साहब. आप अपने अंतस में देखिये कि आप भारत में भारत को किस तरह स्वच्छ कर रहें है. यद्यपि मैं आप जैसे छोटे कद के अल्पग्य मित्रों को तरजीह नहीं देता किन्तु साम्प्रदायिक-रूप से समन्वित शांत चेतना में आप के लेख आगजनी करते नज़र आए अत: मुझे बतौर साहित्यकार आप जैसे "अल्प-बुद्धि" व्यक्ति को रकने के लिए भारत के आमनागरिकों के हितार्थ  आप पर प्रतिबन्ध लगाने का अनुरोध कर रहा हूँ. सब जानतें हैं कि विश्व में सबसे अधिक स्वतन्त्रता भारत के संविधान ने सभी धर्मों/वर्गों/जातियों/को दी है. आप के किसी भी आलेख में ऐसी किसी रचनात्मकता के दर्शन विलुप्त है. 
मित्र मैं हिन्दू हूँ मेरी जाति ब्राह्मण है किन्तु मैं न तो हिन्दू हूँ न ब्राह्मण हूँ अगर तुम मुझसे पूछो मित्र यही कहता हूँ कि मै भारतीय हूँ. 
एक सच और तुम्हारे सामने उजागर करता हूँ मेरी जन्म-दात्री माँ के अलावा मोहतरमा परवीन हक जो अब
रिटायर्ड प्रोफेसर हैं मुझे अपने तीन बेटों में जोड़ कर चौथा पुत्र मानतीं है. उनके पति ज़नाब हाजी हक साहब ने एक दिन अपने नवासे को इस वज़ह से डांटा था क्योंकि वो मासूम मुझसे इस पर पूछ बैठा :"मामू आप मुस्लिम नहीं हैं ?"
सच तुम को ऐसी कोई दिशा मिलती तो तय था कि तुम हाँ मित्र मेरे भाई कुछ रचनात्मक लिखते . और इस गंगो-जमुनी सामाजिक-कैनवास पर कुछ पाकीजा रंग भरते . 
आपकी ताज़ा पोस्ट में "सूअर के मांस न खाने के बारे में जो भी लिखा है उसका अंततोगत्वा अर्थ ख्रिस्ती समुदाय पर प्रहार करना दिखाई दिया " सूअर का गोश्त न खाने के वैज्ञानिक कारणों से कोई असहमत नहीं होता किन्तु तुमने जिस तरह सूअर के गोश्त खाने  वालों को संकेतों में "सूअर सबसे निर्लज्ज और बेशर्म जानवर है"- वाले पैराग्राफ में चरित्र हीन कह दिया है. जो तुम्हारी अल्पज्ञता का प्राथमिक परिचय है. 
मेरे  मित्र देश को तुम्हारे ज्ञान की ज़रुरतहै न कि कुतर्कों की . आशा करता हूँ अल्लाह तुम्हें सदबुद्धि दे वर्ना मैं तो पाठको से गुजारिश करूंगा कि सलीम खान को प्रतिबंधित कर देना चाहिए..?





शुक्रवार, अक्तूबर 02, 2009

ड्राय-वीक

                                 
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   ड्राय-वीक घोषित होने की खबर एन गांधी जयंती के एक दिन पहले अखबार में देख  सुरेश की पत्नि बेहद खुश थी सात दिन तक सुरेश मदिरा-सेवन नहीं करेंगा इस साल नौदुर्गा के तुरंत बाद ड्राय-वीक घोषित होने से सुरेश के परिवार में उत्साह सा था....बबलू कह रहा था पापा को अब हम सब समझा पाएंगे मुन्नी की राय थी कि पापा को शराब से दूर रखके उनके जीवन में सदाचार लाने के लिए ईश्वर ने अवसर दिया है....सारा परिवार गोया दीवाली मना रहा था ....दीवाली से पहले ही सपनों के दीप सजा रहे थे. 
     रात पत्नि को पति और बच्चों को पिता की प्रतीक्षा थी.दिन भर की थकन के बाद सुरेश बाबू घर आए तो पिछले बरस वाले तनाव से दूर मुस्कुराते हुए गृह-प्रवेश करते देखे गए.बच्चे कुछ अधिक उत्साहित थे.... बबलू मुन्नी को लग रहा था अब पापा रोज़ शाम को इसी तरह मुस्कुराते आएंगें उनकी इस सोच को तब धक्का लगा जब पापा बोले:-"सुनती हो इस ड्राय-वीक" में मुझे कोई समस्या नहीं पूरे हफ़्ते का जुगाड कर लिया है.



बुधवार, सितंबर 30, 2009

नए ब्लाग का स्वागत कीजिए

 राज दरबार

जनतंत्र ब्लाग

महावीर

कहीअनकही बातें

Media house

रवि वार्ता ( Ravi Varta )

आम आदमी

नए ब्लागस का स्वागत कीजिए इनमे एक ब्लाग "रविकिशन जी"का है . भोजपुरी अभिनेता के इस ब्लॉग 'रवि वार्ता' को भी दुलारिये अन्य ब्लाग्स के साथ ताकि सभी को आपका स्नेह मिल सके .
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 ब्लॉगवाणी से साभार 
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मंगलवार, सितंबर 29, 2009

ब्लागवाणी "बवाल की मनुहार या धमाल"

प्रिय
बवाल जी
आपका आलेख देखा समीर भाई की आपके आलेख पर चिन्ता जायज है. आप स्पष्ट कीजिए अपने कथन को..........?
सूरज तो रोज़ निकलेगा दिनचर्या सामान्य सी रहेगी, किन्तु सूर्योदय पर "करवा-चौथ" की पारणा का संकल्प लेना कहां तक बुद्धिमानी होगी. ब्लागवाणी का बंद होना हिन्दी ब्लागिंग के नेगेटिव पहलू का रहस्योदघाट्न करता है.
हिन्दी चिट्ठों के संकलकों की सेवाएं पूर्णत: नि:शुल्क अव्यवसायिक है जिसकी वज़ह से आज़ सोलह हज़ार से ज़्यादा चिट्ठे सक्रिय हैं......न केवल ब्लागवाणी बल्कि चिट्ठाजगत का भी विशेष अविस्मरणीय अवदान है.जो साधारण ब्लागर के लिए उस मां के अवदान की तरह है जो सेवाएं तो देती है किंतु इस सेवा के पेटे कोई शुल्क कभी नहीं लेती..... यदि यह बुरा है तो संकलकों के विरोधी सही हैं....उनकी बात मान के सब कुछ तहस नहस कर दिया जाए
मुझे लगता है कि संकलकों के पीछे जो लोग काम करतें हैं वे समय-धन-उर्ज़ा का विनियोग इस अनुत्पादक कार्य के लिए क्यों कर रहें हैं........... शायद उनकी भावना "हिन्दी-ब्लागिंग" को उंचाईयां देना ही है......... मेरी तुच्छ बुद्धि तो यही कह रही है आपकी पोस्ट में आपने जो सवाल खडे किए हैं उससे आपकी तकनीकि मालूमात तो उज़ागर हो रही है...? किंतु छोटे भाई रचनात्मकता-सतत सृजन की आदतें भी एक पहलू है जिसका अनदेखा आपसे होगा शायद पोष्ट लिखते वक्त आप थके हुए होंगें.... कोई बात नहीं.......... सुधार कर लीजिए ..............
जहां तक मेरी पोष्ट पर प्रकाशित एक अनाम टिप्पणीकर्ता{जिसे मैं जबलपुरिया बोली में "......"मानता हूं} की टिप्पणी का सवाल है उनकी हीनता का परिचय है.
आपका आलेख आपके आपके स्पष्ट विचारों का होना ज़रूरी है .
साफ़ साफ़ कहो न "ब्लागवाणी हमारी पसंद है उसे हमें वापस लाने मैथिली जी सिरिल जी के पास दिल्ली चलना है टिकट बुक करा रहा हूं चलोगे बवाल "
ताज़ा खबर :- ब्लागवाणी वापस आई : सभी मित्रों को बधाई 

सोमवार, सितंबर 28, 2009

ब्लागवाणी का ये कैसा फ़ैसला

अब ब्लागवाणी को पीछे छोडकर आगे जाने का समय आ गया है इस  टिप्पणी के साथ ब्लागवाणी टीम ने अपाने आप को ब्लागर्स से दूर कर लिया . इस संकलक ने आगे कहा :-"इसलिये आज जरूरी है कि ब्लागवाणी पसंद और उसमें बनाये गयी सुरक्षा तकनीकों के बारे में बताया जाये क्योंकि इसकी क्रेडिबिलिटी से उन सब ब्लागों की क्रेडिबिलिटी जुड़ी है जिन्हें पसंद किया गया है, और उन सब ब्लागरों की भी जो पसंद करते हैं.
अगर आपने ब्लागवाणी पसंद का उपयोग किया हो तो यह देखा होगा कि एक पसंद देकर दोबारा दूसरी पसंद देने से नहीं होती. ऐसा सुनिश्चित करने के लिये कई मिली-जुली तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था जिसमें IP Address, Cookies, Sessions आदी का इस्तेमाल होता है. इसलिये ब्लागवाणी की पसंद का दुरुपयोग साधारण प्रयोक्ता के लिये आसान नहीं था.
ब्लागवाणी को सुचारू रूप से चलाना के लिये कई तकनीके और सिस्टम बनाये गये थे जिनसे उसके कामकाज में विराम न हो और वह निर्बाध रूप से चलती रहे. ब्लागवाणी का हर हिस्सा कई तरीके की सुरक्षा तकनीकों का इस्तेमाल करता है, ब्लागवाणी पर आने वाली हर पसंद का पूरा हिसाब रखा जाता है. ब्लागवाणी पर आने वाली हर पोस्ट पर आने वाली हर पसंद का समय एवं IP address ब्लागवाणी के डाटाबेस में मौजूद है.
पिछले कुछ समय में एसी ब्लाग पोस्ट आयीं जिनमें ब्लागवाणी की पसंद का दुरुपयोग करके बेबात बढती पसंद पर चिंता जताई गई थी. अपने इन्टरनेट कनेक्शन को बार-बार डिसकनेक्ट करके फिर से कनेक्ट कर IP बदल कर और ब्राउज़र में कैश मिटाकर या IP बदलने वाले औजरों का प्रयोग करके पसंद बढाने के बारे में बताया गया था.
इन पसंदो का अध्ययन कर पाया गया कि नकली पसंद की IP में पैटर्न थे (जैसे सिर्फ आखिरी अंको का बदलना, आदि). एक सुरक्षा प्रोग्राम बनाया गया जो समय-समय पर चलकर इस पैटर्न को डिटेक्ट करके नकली पसंद निकालता है. अगर किसी ब्लाग पर निश्चित प्रतिशत से अधिक नकली पसंदे आयीं हों तो वह प्रोग्राम उस ब्लाग पर आने वाली पसंदे कुछ समय के लिये रोक देता है.
सुरक्षा उपाय तभी ज्यादा कारगर होते हैं जब हैकरों को उनके बारे में पता न हो. इसलिये सुरक्षा उपाय हमेशा गुप्त रखे जाते हैं जिनके बारे में कोई पब्लिक अनाउंसमेंट नहीं की जाती. जानकारी सार्वजनिक करने का अर्थ है कि इनका तोड़ निकालने का साधन दे देना. दूसरे क्या ब्लागवाणी हर सवाल उठाने वाले ब्लागर की बढ़ी हुई पसंद की ip सार्वजनिक करती रहती ? यह अपमानजनक होता या सम्मानजनक? यह नकली पसंद किसी अन्य द्वारा भी तो की जा रही हो सकती थी. ब्लागवाणी के पास इन पसंदों की आईपी पता और समय मौजूद है.
अंतत:
ऐसा नहीं है कि हम सोचते नहीं हैं, या हमारी विचारधारा नहीं है. हमने कभी भी उनको अपने काम पर हावी नहीं होने दिया. ब्लागवाणी इसका सबूत कैसे दे? क्यों दे?
ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी बल्कि इस पर कार्य करना नित्य एक खुशी थी. पिछले दो सालों में बहुत से नये अनुभव हुए, मित्र भी मिले. उन सबको सहेज लिया है, लेकिन अब शायद आगे चलने का वक्त है. तो फिर अब हम कुछ ऐसा करना चाहेंगे जिससे फिर से हमें मानसिक और आत्मिक शांति मिले.
इन दो सालों में आप सबके हार्दिक सहयोग मिला इसके लिये बहुत आभार. अब ब्लागवाणी को पीछे छोडकर आगे जाने का समय आ गया है."

विदा दीजिये ब्लागवाणी को,
टीम ब्लागवाणी
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ब्लॉगवाणी के संचालकों से एक विनम्र आग्रह है की यह सही है "कि ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी बल्कि इस पर कार्य करना नित्य एक खुशी थी  किन्तु आपके अवदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता. आप प्रतिदिन एक सूची मात्र जारी कीजिए ...... ये नंबर वन की दौड़ ........... आज की स्थिति में न सिर्फ आपकी वरन आम ब्लॉगर की नज़र में भी ठीक न थी. न है...... हो सकता है कि मुझसे कई मित्र असहमत होंगे किन्तु मैं कहे देता हूं जो मेरे मन में है -"जिसे आज गर्म जोशी से स्वीकारा सराहा और पसंद किया जाता है उसे कल कोई चर्चा में भी लाए इसकी कोई गारंटी नहीं अत: मेरी राय  है संकलकों को अपना काम जारी रखना चाहिए...........टिकेगा वही जो प्रभावशाली होगा ...... कुम्हडे के फूल न टिके हैं न टिक सकते हैं " अगर ब्लागवाणी इन पसंद जुगाडू लोगों से आजिज़ आ कर काम बंद करती है तो पुन: विचारण का अनुरोध स्वीकारिए ............
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रविवार, सितंबर 27, 2009

घूसखोरी के अलावा कौनसा उदाहरण जहां "समाजवाद" का अर्थ समझाया जा सके बच्चों को ...?


पाठ्य क्रम का प्रथम पाठ भारतीय सरकारी व्यवस्था और उत्कोच के बीच एक ऐसा समीकरण है जिसे हर सामान्य बुद्धि वाला प्राणी समझ लेता है. इस पोस्ट की आधार पोस्ट में कहा गया है एक सिविल सेवा प्रशिक्षण में गए उनके मित्र को सेलरी-स्लिप का पांच सौ रुपया देना पडा ? मित्र इधर वो बेचारा बाबू किस किस को छोडेगा अब इस बात को सीधे प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में कैसे शामिल करेगा कोई संस्थान सो बाबू साहब ने इसे "घूस-विग्यान:आओ करके सीखें" की शैली में सिखा दिया.अब भैया आप ही बताईये इस तरह की घूसखोरी के अलावा कौनसा उदाहरण जहां "समाजवाद" का अर्थ समझाया जा सके बच्चों को ...?

शनिवार, सितंबर 26, 2009

श्री जब्बार ढाकवाला की सदारत में कवि-गोष्ठी

                               

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                     अपने आप में ज़माने की पीर को समोने से  शायरों कवियों का वज़ूद  है . शायर का दिल तो होता है उस बच्चे के उन हाथों की मानिंद जो हाथ में अम्मी-अब्बू,खाला,ताया,ताऊ,यानी बड़े बुजुर्गों से मिली ईदी से भरे होते हैं . इसी रेज़गारी की साल-सम्हाल में लगा बच्चा जब उसे सम्हाल नहीं पाता और यकायक बिखर जाती है रेज़गारी ठीक उसी तरह शायर-कवि-फनकार भी बिखर हर्फ़-हर्फ़  जाता है गीत में ग़ज़ल में नज़्म में जिसकी आवाज़ से सारे आलम में एक सनाका सा खिंच जाता है ..... कहीं कोई नयन नीर भरा होता है तो कहीं कोई दिल ही दिल में  खुद-ब-खुद सही रास्ते की कसम खा लेता है.   ______________________________________________________________________________________________
     जबलपुर में 25/09/09 को ज़नाब  :श्री जब्बार ढाकवाला आयुक्त,आदिम जाति कल्याण विभाग ,मध्य-प्रदेश की सदारत  में एक गोष्ठी का आयोजन "सव्यसाची-कला-ग्रुप'' की और से किया गया .  श्री बर्नवाल,आयुध निर्माणी,उप-महाप्रबंधक,जबलपुर इस के अध्यक्ष थे.गिरीश बिल्लोरे मुकुल के  संचालन में  होटल कलचुरी जबलपुर में आयोजित कवि-गोष्ठी में इरफान "झांस्वी",सूरज राय सूरज,डाक्टर विजय तिवारी "किसलय",रमेश सैनी,एस ए सिद्दीकी, और विचारक सलिल समाधिया  ने काव्य पाठ किया .
विस्तृत रिपोर्ट किसलय जी के  ब्लॉगपर शीघ्र 











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