उस दिन हल्की सी बारिश और आर्ची की घूमने की जिद्द दफ्तर से आते ही बालहट न चाह के भी झुकना तय शुदा होता है घर में बच्चों का ज़िद्द करने वाली उम्र को पार कर लेने के बाद तो .अडोस पड़ोस के बच्चे बहुत ताक़त वर हो जाते हैं ... इनके आगे हर कोई सर झुका लेता है मसलन अब आर्ची को ही लीजिये... हम में से किसी भी भाई की मज़ाल क्या कि अर्चिता पारवानी की बात काटे... हमको हमारे नाम से पुकारती है...सतीष (मंझले भाई साहब) और पप्पू (मैं)...हम पर आर्ची का एक अघोषित अधिकार.. दादागिरी सब कुछ बेरोक टोक जारी है. हरीश भैया यानी हमारे बड़े भाई साब की सेक्रेट्री टाइप की है बस उनकी चापलूसी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती बाक़ी हम दोनो भाई हमारी पत्नियां, हमारे बच्चे तो मानो आर्ची ताबे में है .. हमको भी उससे कोई गुरेज़-परहेज़ नही... दुनियां की कोई ताक़त बच्चों के आकर्षण से किसी को भी मुक्त नहीं करा सकती..! ये तो त्रैलोक्य दर्शन करातें हैं. अर्चिता खूब सवाल करती है हर बात को समझने परखने की कोशिश में लगी रहती है... हां तो गेट नम्बर चार से ग्वारी घाट तक की यात्रा में आसमान की बदलियां उस रास्ते को भिगो रही थी पश्चिम में डूबता सूरज बाकायदा रोशनी दे रहा था... परिणाम तय था पूर्व दिशा में इंद्रधनुष बना. अर्चिता से मैने पूछा:-"क्या है देखो आकाश में " अनोखा विस्मित चेहरा लिये अपलक देर तक देखती रही आर्ची.... फ़िर एकाएक लाल बुझक्कड़ की तरह गम्भीर होकर बोली :-"पप्पू, मुझे मालूम है भगवान ने एक बड़ा ब्रश लिया उसे कलर में डुबाया और (हाथ घुमाते हुए ) आसमान में ऐसा पोत दिया फ़िर दूसरा ब्रश , फ़िर और....! है न पप्पू मै समझ गई न "
मुझे खूब हंसता देख ज़रा नाराज़ हो गई, फ़िर बोली :-”आपको मालूम है तो बताओ ”
आर्ची से मैने वादा किया कि पक्का बताऊंगा , सनडे को छुट्टी है न उस दिन इंद्रधनुष बना के बताऊंगा पक्का जी इस रविवार अर्चिता को इंद्रधनुष बनाके बताना है ... पर कैसे सोच रहा हूं..
मित्रो सच किसी ने कहा है भूखे को रोटी खिलाने से ज़्यादा महत्वपूर्ण धर्म शिशु की जिज्ञासा को शांत करना.
बहुधा लोग अपने बच्चों को खो देते हैं उनसे बचपन में संवाद नहीं करते उनकी जिज्ञासा से हमको कोई लेना देना नहीं होता. तभी एक दूरी पनपती है जो किशोरावस्था में विकृति और फिर अलगाव की शक्ल में सामने आती है. बच्चों से हमको सतत संवाद करना ही होगा. वरना "टेक केयर का जुमला सुन सुन के आप एक दिन अपने बच्चों को कोसते नज़र आएंगे उम्र के उस पड़ाव पर जब आपकी बूढ़ी आंखें अपने प्रवासी (देशीय,अन्तरदेशीय) बच्चों के फ़ोन का इंतज़ार कर रहे होंगे फ़ोन आएगा आप खुश होंगे आपकी संतान आपसे संक्षिप्त वार्ता करेंगें... और फ़िर बात समाप्त करने के पहले यह ज़रूर कहेंगे टेक केयर "
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जी चलते चलते एक पोस्ट सुनी भी जाये
केवल राम के ब्लाग से "कबूतरों को उड़ाने से क्या...?"
आलेख केवल राम / वाचक-स्वर : अर्चना चावजी
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जी चलते चलते एक पोस्ट सुनी भी जाये
केवल राम के ब्लाग से "कबूतरों को उड़ाने से क्या...?"
आलेख केवल राम / वाचक-स्वर : अर्चना चावजी
11 टिप्पणियां:
kitni saral bhasha me aap kitne bade vishyon ko samjha dete hain |
sunadr
आर्ची से मिल कर अच्छा लगा....
इंद्रधनुष बना के बताऊंगा पक्का जी इस रविवार अर्चिता को इंद्रधनुष बनाके बताना है ... पर कैसे सोच रहा हूं..
हम है ना ..
आप किसी साइंटफिक शॉप पर से एक प्रिज्म ले आयें २०/-रूपये का आएगा और धूप में सूरज की तरफ कर के दीवार पर इन्द्रधनुष यानी कि स्पेक्ट्रम प्राप्त कर सकते है यहाँ भी देखें
http://kk.sciencedarshan.in/2010/11/what-is-rainbow.html
जै हो बावेजा साहब
सही कहा आपने....बच्चों से हमको सतत संवाद करना ही होगा.
आपको और नन्हीं अर्चिता को मेरी शुभकामनायें।
बहुत अच्छा लगा केवल जी के लेख को सुनकर..
बहुत अच्छा है। बच्चे मन के सच्चे। सब की आंख के तारे।
कबूतर उड़ रहे हैं देखो प्यारे प्यारे।
बिलकुल सही बात है बच्चो के साथ संवाद जरुरी है |
केवल जी के लेख को सुनकर बहुत अच्छा लगा..गंभीर और विचारणीय विषय है...
आपको और नन्हीं अर्चिता को मेरी और से शुभकामनायें...
केवल राम जी के लेख को सुनना शांति प्रदान करता है.अर्चना जी की आवाज में लोच है जो आवाज को और भी कर्णप्रिय बनाता है.
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.,
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
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