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रविवार, जून 20, 2010

कुपोषण : सामाजिक तहक़ीक़ात


जी हां ये सच है कि कुपोषण को हम खत्म कर सकते हैं यदि संकल्प लें तो कोई भी ताक़त नहीं जो हमारे देश इस समस्या को मुक्त करने से हमको रोके !!
जी हां , भारत वर्ष में कुपोषण की समस्या को एक जटिल सवाल  की तरह पेश किया है जो वास्तव में उतनी जटिल है नहीं इसे आसानी से दूर किया जा सकता है . यदि कुछ एतियात बरतें तो भारत के माथे लगे इस कलंक को आसानी से हटाया जा सकता है . कुछ अति उत्साही लोग भारत को ईथोपिया के साथ ला के खड़ा करने कि कोशिश करतें हैं. जो वाक़ई एक सनसनाहट फ़ैलाने की नाक़ाम कोशिश है 
अगर हम कारणों पर गौर करें तो पाएंगे कि सामाजिक सोच ही इस समस्या का दोषी है. समाज़ का बेटियों को बोझ समझना इस के कारणों में से एक कारण है
  1. बेटे की प्रतीक्षा करते दम्पत्ति परिवार का आक़ार बढ़ा लेतें हैं.
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  1.   उन बेटियों को बोझ मानना जो किशोरावस्था आते-आते ब्याह दी जाती हैं यानि बेहद कठिन उम्र होतीं हैं किशोर-वय    की बेटियों को इस उम्र में जो नहीं देते परिवार . इस स्थिति के चलते भटकाव आ ही जाता है. किशोरी को बिना फ़िज़िकली स्ट्रांग एवं प्रजनन के योग्य होने संबंधी बातों का ज्ञान दिए इस बात का ज्ञान अवश्य ही दे दिया जाता है कि तुम पराई हो . तुम्हारा कल ससुराल के लिए विधाता ने बनाया है.. ससुराल जाते ही बिटिया के पांव भारी  होते ही पुत्र वती भव: का आशीर्वाद दिया जाता है . किसी ने कभी गर्भवती महिला को पुत्रीवती होने का आशीर्वाद नहीं दिया. खानपान में अनियमितता, आहार थाली में अपर्याप्तता तत्वों युक्त भोज्य पदार्थों से जैसे तैसे पेट भर लेने की आदत आम भारतीय औरत की हो जी जाती है. मैने अपनी दादी-नानी और मां को कभी समय पर आहार लेते नहीं देखा. मेरी दादी और मां दौनो ही गाहे बगाहे एनीमिया की शिकार हो जाती थीं. किंतु जब बहुत बीमार हो जातीं थी तब ही आराम करते देखा है हमने वरना बस सदा काम ही काम. दूसरों के लिये जीना उनका धर्म था. ये करिश्मा ही था  कि हम बच्चों का जन्म  के समय का वज़न 3.00 किलो ग्राम से कम न था और हम कुपोषण का शिकार नहीं हुए किन्तु   उन दौनों को जीवन भर अल्परक्तता से जूझना पड़ा. यद्यपि यह मसला विषयेतर है किंतु यह सत्य है कि अल्प-आय वाले परिवारों की  अल्प-रक्तता ग्रस्त महिलाएं इससे अधिक कठिन स्थितियों से जूझतीं हैं.     किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर  सरकारें कुछ कम कर रहीं हैं ऐसा कहना ग़लत ही नहीं बल्की सफ़ेद झूठ है.हमारे  पास इसे देखने का वक़्त होना चाहिये . सरकारों  ने जो किया या जो कर रहीं है उसे आप भी देखिये और एक ज़िम्मेदार भारतीय नागरिक होकर ग़रीब अशिक्षित परिवारों को जानकारी ज़रूर दीजिये 
किशोरीयां को अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिये मानसिक रूप से तैयार करने की ज़िम्मेदारी समाज की और परिवारों की है. ताकि प्रजनन के पूर्व वे स्वस्थ्य हों. तथा प्रजनन के  वक़्त अल्परक्तता को समय रहते आकार हीन कर दें.
क्रमश: जारी  आगे देखिये : कुपोषण कारण और निदान , हमारे प्रयास
संदर्भ (लिंक्स)
  1. कुपोषण  : विक्की पीडिया 
  2. किशोर-वय   (लिन्क साभार : शिरीष जी)
  3. भटकाव : लिंक साभार डा०अरविन्द दुबे  
  4. पुत्र वती भव:  : मिसफिट  
  5. किशोरीयां को अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिये मानसिक रूप से तैयार करने की ज़िम्मेदारी: भारत प्रवेश द्वार
  6. सरकारों  ने जो किया या जो कर रहीं है :बालिका स्वास्थ्य मार्ग दर्शिका

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