रेहाना जब्बारी गुनाह को उनके क़ानून ने 25 अक्टूबर 2014 को सज़ा-ए-मौत दे दी. इसका अर्थ साफ़ है कि न तो वे न ही उनकी अदालतें किसी सूरत में औरतों के अनुकूल नहीं हैं. औरत के खिलाफ़ किसी भी देश का क़ानून ही हो तो उस देश में न तो औरतें सामाजिक तौर पर महफ़ूज़ हैं और न ही उस देश को मानवता का संरक्षक माना जा सकता. क़ानून और न्याय व्यवस्था केवल अपराध के खिलाफ़ हों ये सामान्य सिद्धांत हैं. किंतु रेहाना जब्बारी के खिलाफ़ हुए फ़ैसला देते हुए न्यायाधीश ने साबित कर दिया कि यदि उसे अपनी जननी या बहन बेटी के खिलाफ़ ऐसे मामले की सुनवाई करनी हो तो वो उनके खिलाफ़ भी कुछ इसी तरह का न ठीक यही फ़ैसला देगा. भारतीय सामाजिक व्यवस्था इससे इतर मानवता की पोषक है तभी यहां के क़ानून न तो नस्ल आधारित हैं, न ही किसी लिंगभेद को बढ़ावा दे रहे हैं. रेहाना की कहानी आप जानते ही हैं. एक जासूस अब्दोआली सरबंदी ने उन पर यौनाक्रमण किया रेहाना ने रसोई के चाकू से इस आक्रमण से बचाव के लिये वार किया और कामांध सरकारी जासूस मर गया. हम आप रेहाना के इस क़दम के कायल हैं. वास्तव में यह कोई हत्या न थी. आत्मरक्षा के प्रयास के फ़लस्वरूप एक व