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रेहाना को भावपूर्ण श्रृद्धांजलियां "ॐ शांति शांति शांति "

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    रेहाना जब्बारी  गुनाह को उनके क़ानून ने 25 अक्टूबर 2014  को सज़ा-ए-मौत दे दी. इसका अर्थ साफ़ है कि न तो वे न ही उनकी अदालतें किसी सूरत में औरतों के अनुकूल नहीं हैं.  औरत के खिलाफ़ किसी भी देश का क़ानून ही हो तो उस देश में न तो औरतें सामाजिक तौर पर महफ़ूज़ हैं और न ही उस देश को मानवता का संरक्षक माना जा सकता. क़ानून और न्याय व्यवस्था केवल अपराध के खिलाफ़ हों ये सामान्य सिद्धांत हैं. किंतु  रेहाना जब्बारी के खिलाफ़ हुए फ़ैसला देते हुए न्यायाधीश ने साबित कर दिया कि यदि उसे अपनी जननी या बहन बेटी के खिलाफ़ ऐसे मामले की सुनवाई करनी हो तो वो उनके खिलाफ़ भी कुछ इसी तरह का न ठीक यही फ़ैसला देगा. भारतीय सामाजिक व्यवस्था इससे इतर मानवता की पोषक है तभी यहां के क़ानून न तो नस्ल आधारित हैं, न ही किसी लिंगभेद को बढ़ावा दे रहे हैं. रेहाना की कहानी आप जानते ही हैं. एक जासूस  अब्दोआली सरबंदी    ने उन पर यौनाक्रमण किया रेहाना ने रसोई के चाकू से इस आक्रमण से बचाव के लिये वार किया और कामांध सरकारी जासूस मर गया.   हम आप रेहाना के इस क़दम के कायल हैं. वास्तव में यह कोई हत्या न थी. आत्मरक्षा के प्रयास के फ़लस्वरूप एक व

पोलिओ-प्रतिरोधक टीके के अविष्कारक जोनस साल्क को नमन

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Credit:  Image donated by Corbis-Bettmann &  explorepahistory Pioneering research led by Dr. Jonas Salk at the University of Pittsburgh's Virus Research Laboratory led to production of the world's first polio vaccine in 1955. Subsequent inoculations of school children eradicated polio in the United States by 1962. जोनास सॉल्क   एक महान उपकारी विषाणु विषेशग्य थे. जिनका जन्म आज यानी 28 अक्टूबर 2014 को न्यूयार्क में हुआ. वे यहूदी अप्रवासी दम्पत्ति की संतान थे. सामान्य शिक्षित माता पिता ने उनको चिकित्सकीय शिक्षा दिलाई . न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में मेडिकल स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने एक चिकित्सक बनने की बजाए चिकित्सा अनुसंधान की ओर कदम बढ़ा कर अपने लिए अलग राह चुनी । मित्रो मेरे जन्म यानी 20.11.1963 के ठीक 09 माह बाद मुझे पोलियो हुआ .  जबकि पोलियो रोधक टीके का विकास एवम उसकी प्रस्तुति  12 अप्रेल सन 1955 में अमेरिका के पिट्सबर्ग  में  हो चुकी थी. अर्थात लगभग आठ बरस बाद भी  अमेरिका में विकसित यह टीका आज़ाद भारत में न आ सका था. सॉल्क ने जब  पोलियो का टीका प्रस्तुत  किया थ

जी हाँ मैं धर्म सापेक्ष हूँ ।

जी हाँ मैं धर्म सापेक्ष हूँ ।              मेरा धर्म सनातन है शाश्वत सनातन है । वो सनातन इस वज़ह से है क्योंकि उसमें विकल्प  और नए मिश्रण किये जाने योग्य तत्व मौजूद हैं इसी वज़ह से सनातन होकर भी नया नया लगता है । जो रूढीयाँ हैं समयातीत हैं उसे हटाना या परामर्जित करना सम्भव है । धर्म को मैं सामाजिक सांस्कृतिक विधान मानता हूँ । ये मेरे विचार हैं मैं ऐसा सोचता हूँ आपकी सहमति मेरा उत्साहवर्धन कर सकती है तो असहमति मुझे निराश नहीं कर सकेगी बल्कि ताकत देगी कि मैं अपने कथन की पुष्टि के लिए अनुसंधान करूँ मैं बलात समर्थन का पक्षधर नहीं । धर्म के लिए न मैं बन्दूक उठाऊंगा न ही प्रलोभन दूंगा । अगर कोई हिंसा करेंगे तो मानवता की रक्षा के लिए आक्रामक हो सकता हूँ इसे मेरा कट्टर वादी होना साबित न किया जावे । क्योंकि जीव मात्र की रक्षा करना मेरा धार्मिक अधिकार है । तुम जिस धर्म की स्थापना आतंक के सहारे करना चाहते हो उसे मैं भी सम्मान देता हूँ पर तुम्हारे आतंक को नहीं । मैंने यहूदियों के बारे में कुछ जाना है उनकी संस्कृतियों के अंत के घटकों के बारे में सुना है चाहे जो भी हो ग़लत है सुनो बताता हूँ कि सत्य

भूत-प्रेत : बकौल राज भाटिया जी

मित्रो वैज्ञानिक युग में किसी को भी पारा जीवों के अस्तिव पर यकीं नहीं होगा मुझे भी नहीं था राज़ भाटिया की तरह पर उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता आज श्री राज दादाजी की आपबीती जो फेस बुक पर उनने भेजी है का प्रकाशन कर रहा हूँ ………राज जी जर्मनी में रहते है उनके ब्लॉग निम्नानुसार हैं ·          छोटी छोटी बातें Choti Choti Baate ·          मुझे शिकायत है. Mujhe Sikayaat Hay. ·          Blog parivaar- ब्लॉग परिवार ·          पराया देश Paraya Desh ·          नन्हे-मुन्ने Naney Muney भू त प्रेत , आत्मा वगै रा को मै नहीं  मानता था , लेकिन एक हादसा ऎ सा हुआ कि आत्मा को मानने लगा , भू त प्रेत के बारे तो पता नही , मुझे कोमा से निकले करीब तीन सप्ताह हो गये थे , लेकिन अभी भी अपने बिस्तर पर बिना सहारे बै ठ नही सकता था , शरीर पर एक बडा सा चोला ही था , जो मेरे घुटनो तक था , पानी का कप भी ऊठाने के लिये मुझे नर्स को सिंगनल दे कर बुलाना पडता था , अभी भू ख भी नही लगती थी , सारे दिन मे पानी ओर पानी ही पीता था ,   एक दिन दोपहर को करीब एक बजे मै जाग रहा था , लेकिन नर्से ओर डाक्टर उस

मन:स्थितियां

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अति महत्वाकांक्षाएं  हिलोरे लेतीं हैं.. व्यग्रता के वायु-संवेग से  ऊपर और ऊपर उठतीं अचानक  धराशायी हो जातीं लहरें और मै भी गिर पड़ता हूं..  उसी आघात से..  पर फ़िर तलाशता हूं किसी सर को जिस पर मढ़ देना चाहता हूं..  अपकृत्य की ज़वाबदेही..  ॑॑॑॑॑॑॑॑#################  एक अदद देवता की तलाश में पूरी उम्र बिता दी  कदाचित आत्मचिंतन करता  तो शायद देवत्व का सामीप्य अवश्य मिलता  पर भीड़ का हिस्सा हूं उसका मान ज़रूर रखूंगा..  आपसे विदा लेते लेते किसी देवता की   आखिरी सांस तक ...  तलाश में... ####################

*लाडली लक्ष्मी योजना : बेटियों के प्रति सामाजिक सोच एवं विचारों में बदलाव*

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आराध्या और आर्या यानि  लाड़लियों के पिता श्री संतोष   रायकवार   एवम मां श्रीमति रेखा   रायकवार   एक निजी हास्पिटल   में कंपाऊंडर है जबकि मां रेखा नर्सिंग प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं.  कर रहीं हैं . जबलपुर के गेट नम्बर   04   के पास वाली घनी बस्ती में रहने वाली मां रेखा उन लाखों माताओं के लिये आइकान क्यों न  हो .. जो भ्रूण के लिंग का पता लगाने के प्रयास में सक्रीय  हैं.  आपको ये कहानी उन सबके लिए प्रेरणा दायक है बेटे के लिए बेटियों को कोख में निशाना साध के मारने का अपराध बेहद शातिर तरीके से करतें हैं . अथवा जो सामर्थ्य वान होकर भी बेटी का जन्म बर्दाश्त नहीं कर पाते हों. संतोष की कमाई  8000 /-  प्रतिमाह से अधिक नहीं है. उस पर भी ज़िम्मेदारियां हैं.. दो छोटी बहनों की शादी करनी है. इन दो बेटियों को पढ़ाना है.. आराध्या और आर्या के  माता-पिता सामान्य रूप से शिक्षित हैं आय भी कम है पर समझदार है वो उन सब पढ़े लिखे मां-बाप से भी जो जन्म के पहले अथवा जन्म के बाद मार देते है . बाल विकास परियोजना जबलपुर क्र. एक के मदन महल गेट न.   4   इलाके के श्रीमति रेखा-संतोष रायकवार ने तीन साल पहले अपनी