कार्टूनिष्ट राजेश दुबे के ब्लाग डूबे जी से साभार |
भगवान को खोजता दूकानदार |
फ़िर सोचता हूं कुछ तो लिखूं.. आज़ दिन भर से मानस में एक ही हलचल मची हुई है कि कोई ये बताए कि हम किधर जा रहे हैं .. या कोई हमसे ये पूछे कि हम किधर से आ रहे हैं..?
फ़िर कभी सोचा कि इस मौज़ू पर लिखूं कि - ऐसा कोई नज़र आ नहीं रहा.जो खुद को देखे सब दूसरों को देखते तकते नज़र आ रहे हैं.. फ़िर फ़ूहड़ सा कमेंट करते और और क्या.. जिसे देखिये "पर-छिद्रांवेषण" में रत अनवरत .. आक्रोश अलबर्ट पिंटो की मानिंद जिसे गुस्सा क्यों आता है क्विंटलों-टनो अलबर्ट पिंटो बिखरे पड़े हैं.. जुबानें बाबा रे कतरनी की तरह चलती नज़र आ जातीं हैं . सरकारें मुंहों पर कराधान करे तो .. बेशक आबकारी के बाद सबसे इनकम जनरेटिंग "माउथ-टैक्स-विभाग" बनना तय है...!
भगवान तो सस्ते में दे रहा हूं..मैडम जी ! |
दुनियां भगवान को पूजती है पर अपने से कम अक्ल मानती है.. सवा रुपये चढ़ा कर मन ही मन मानता यानी सौदा कुछ यूं तय करता है-"प्रभू अभी सवा रुपये बाक़ी एक सौ काम होने के बाद .. "
हम भी गोरखपुर में एक फ़ोटो पोस्टर वाली दुकान पे पहुंचे "लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती" लेने .
जहां एक मोहतरमा दूकानदार से काफ़ी मशक्कत करवाने के बाद पोस्टर की क़ीमत पर हुज़्ज़त कर रहीं थीं. ..
भाई बहुत मंहगे हैं..
न मैडम मंहगा तो डालर है.. प्याज़ है.. भगवान तो सस्ते में दे रहा हूं.. !
न भैया.. दस रुपये और वापस करो..
न, मैडम.. इतना ही तो बच रहा है..
बात तो फ़ोटो बेचने वाले ने सोलह-आने सच्ची कही.डालर और प्याज़ के मुक़ाबले भगवान तो सस्ते ही हैं है न मित्रो .
भगवान को अपने से कम अक्ल और डालर/प्याज़ के मुक़ाबले कम आंकने वाले कम नहीं है मित्रो.. तभी तो विरासत, सियासत सबमें भगवान का उपयोग सहजता से जारी है.
सच है भगवान तुम बहुत सस्ते हो...
हैप्पी दीवाली प्रभू...