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रविवार, अक्टूबर 13, 2013

सुनहरे पंखों वाली चिड़िया और पागल

पता नहीं किधर से आया है वो पर बस्ती में घूमता फ़िरता सभी देखते हैं. कोई कहता है कि बस वाले रास्ते से आया है किसी ने कहा कि उस आदमी की आमद रेल से हुई है. मुद्दा साफ़ है कि बस्ती में अज़नबी आया अनजाना ही था. धीरे धीरे लोगों उसे पागल की उपाधी दे ही दी. कभी रेल्वे स्टेशन तो कभी बस-अड्डॆ जहां रोटी का जुगाड़ हुआ पेट पूजा की किसी से चाय पीली किसी से पुरानी पैंट किसी से कमीज़ ली नंगा नहीं रहा कभी . रामपुर गांव की मंदिर-मस्ज़िद के दरमियां पीपल के पेड़ पर बैठे पक्षियों से यूं बात करता मानों सब को जानता हो . कभी किसी कौए से पूछता – यार, तुम्हारा कौऊई-भाभी से तलाक हो गया क्या.. ? आज़कल भाभी साहिबा नज़र नहीं आ रहीं ? ओह मायके गईं होंगी.. अच्छा प्रेगनेट थीं न.. ! मेरी मम्मी भी गई थी पीहर जब मेरा जन्म होने वाला था.
                 उसे किसी कौए ने कभी भी ज़वाब नहीं दिया पर वो था कि उनकी कांव-कांव में उत्तर खोज लेता था संतुष्ट हो जाता था. वो पागल है कुछ भी कर सकता है कुछ भी कह सकता है. हां एक बात तो बता दूं कि उसे सुनहरे पंख वाली चिड़िया खूब पसंद थी हर सुबह चुग्गा चुनने जाने के पहले पागल की पोटली के इर्द गिर्द पड़े दाने सबसे पहले चुगती फ़िर फ़ुर्र से उड़ जाती शाम को आती टहनियों में कहीं छुप जाती. सब जानते हैं पागल सोते नहीं पर वो सोता था . यानी पागल तो न था पर सामान्य भी नहीं था. यानी पूरा मिसफ़िट था फ़िट होता तो कुछ कामकाज़ करता दो रोटी कमाने की जुगत जमाता उसके एक बीवी होती एक दो बच्चे होते, नाई की दूक़ान पर सियासती तप्सरा करता. खुद दफ़्तर से बिना काम-काज़ किये शहर की बज़बज़ाती नालियों की वज़ह खोजता नगर निगम के अफ़सरों से लेकर मेयर तक को कोसता  पर वो ऐसा नहीं था.  जाने क्या क्या कहता रहता था कभी अंग्रेज़ी में तो कभी संस्कृत में . वो पढ़ा-लिखा था  पर कुछ भी बांचते किसी ने नहीं देखा उसे अखबार भी नहीं.. बांचता था तो कभी आकाश कभी कभी ज़मीन .
 एक दिन तो उसने हद ही कर डाली दारू बाज़ रिक्शे वालों के पास जा बैठा लगा समझाने धर्म आध्यात्म की परिभाषा. धार्मिक सहिष्णुता के नफ़े. अब बताओ असलम और कन्हैया को इस उपदेश की ज़रूरत क्या थी वो तो मधुशाला की रुबाई को बिना बांचे ही जी रहे थे.. हम पियाला हम निवाला असलम और कन्हैया ही नहीं आप भी उसको पागल ही कहते अगरचे देखते तो. पागल तो था ही वो .
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 अल्ल सुबह बस्ती में बात बे बात के कौमी दंगा भड़का पागल तब मंदिर मस्ज़िद के दरमियां वाले पीपल के नीचे पोटली पे सर रख के सोया था कि आल्ला-ओ-अक़बर जै श्रीराम के नारे लगाते लोग एक दूसरे  की जान लेते उसे नज़र आए. 
              पागल  के मानस पर जाने कौन सा आघात लगा कि वो गश खाकर गिर पड़ा लोग बदहवास भागम भाग कर रहे थे . कोई किसी को गाली गुफ़्तार नहीं कर रहा था फ़िर भी उन्माद था कि सातवें आठवें आसमान तक विस्तार पा रहा था. घरॊं  से उभरता धुआं  उन्माद की गवाही दे रहा था. बस चील-कौए न आ पाए . बाक़ी वो सब कुछ हुआ जो होता है दंगों में.. अक्सर . किसी की बंदूक चली कि  सुनहरे पंखों वाली चिड़िया पीपल से आ गिरी उस पागल की पोटली के पास जहां अक्सर फ़ुदुक-फ़ुदुक आती थी रात को भोजन से बिखरे चावल-रोटी के टुकड़े चुगने पागल भी चुपचाप  सुनहरे पंखों वाली चिड़िया को बिना डिस्टर्ब किये चुगने देता था. चुपचाप पड़ा रहता था हिलता डुलता भी न था कि कहीं उड़ न जाए डर के सुनहरे पंखों वाली चिड़िया...!
दोपहर तक दंगा शांत हो चुका था पुलिस के सायरन बजते सुनाई देने लगे थे. एक गाड़ी बेहोश पागल के ऐन पास आके रुकी ..
लगता है ये मर गया......!
न देखिये सांस चल रही है.... ! दूसरे ने कहा
चौथा सिपाही  बोला – चलो इसे अस्पताल ले चलो .. मर न जाए.. कहीं..
उसे पीछे चल रही एंबुलेंस में डालने उठाया ही था कि पागल दीर्घ बेहोशी टूटी.. पास पड़ी  चिड़िया को देख चीखा – “ओह, मेरी बेटी .... ये क्या हुआ.. किसने किया .. चीख चीख के कलपते देख पुलिस वाला गाली देते हुए बोला- “स्साला इधर इत्ती लाशें पटी पड़ी हैं ये हरामज़ादा चिड़िया के लिये झीख रहा है..”
साथ खड़ा अफ़सर सिपाही की बदतमीज़ी पर खीज़ गया पर कुछ बोला नहीं उसने ... तभी स्थानीय चौकी का  कांस्टेबिल बोला- “हज़ूर, ये तो पागल है.. चलिये आगे देखते हैं..!” जीप सायरन बज़ाती आगे चल पड़ी उसके पीछे नीली बत्ती वाली सरकारी एंबुलेंस.
विलाप करता हुआ पागल चिड़िया को दफ़नाने जा रहा था कि उसे वो कुछ चेहरे नज़र आए जो दंगे के शुरुआती जयघोष में शामिल दिखे थे उसे..फ़िर उसने सोचा “सुनहरे पंखों वाली चिड़िया बेटी को जला आऊं वहां भी कुछ ऐसा ही हुआ.. बस फ़िर क्या था उसने नर्मदा के प्रवाह में प्रवाहित कर दी उस सुनहरे पंखों वाली चिड़िया बिटिया की देह .. !

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अगली सुबह से पागल दो पत्थर आराधना भवन  पर दो पत्थर साधना भवन पर फ़ैंकने लगा . धीरे धीरे लोग इस बात के  आदी हो गये.. सब जानते थे कि -..”वो तो पगला है..”
          लगातार चलने वाले इस  क्रम देख मैने पूछा –“भाई, ये क्यों करते हो ?”
पागल बोला-“ मेरी सुनहरे पंखों वाली चिड़िया बिटिया को मारने वाले इन्ही में से निकले थे. मुजे मालूम है.. इसमें कोई ऐसा व्यक्ति रहता है जो .. उन्माद फ़ैलाता है.. कभी न कभी तो बाहर आएगा सुनहरे पंखों वाली चिड़िया बिटिया की मौत का हिसाब पूरा कर लूंगा.. सच्ची में बाबूजी ..
मै- भई, ये हरे झंडे वाली जगह जो है खाली है.. वहां सब मिल के अल्लाह  सबके भले के लिये  प्रार्थना करते हैं. जिसे नमाज़ कहते हैं.. और वहां केवल मूर्ति है.. जिसकी पूजन करते हैं लोग..
पागल- तो, लोगों को किसने उन्मादी बनाया तुम झूठे हो बाबू.. झूठ मत कहो..
        पागल को कौन समझाए कि मैने झूठ नहीं कहा सचाई ही कही है. दंगे मंदिरों मस्ज़िदों में से नहीं ऊगते दंगे ऊगते हैं.. ज़ेहन से जहां अक़्ल होती है.. जो हर चीज़ को ज़ुर्म बना देने की ताक़त रखती है.

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