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रविवार, अक्टूबर 13, 2013

“भई, रावण को पूरी तरह से निपटा के फ़ूंक-फ़ांक के आना ”

                           कोने कोने में फ़ाइलिन तूफ़ान की आहट से लोग जितना नहीं घबरा रहे उससे ज़्यादा घबराहट सबों के दिल-ओ’-दिमाग में चुनावों को लेकर है. अर्र ये क्या आपसे कोई सियासी शगल करने का मेरा मूड क़तई नहीं हैं. भाई अपना चुनाव आयोग है न उसने कई फ़रमान जारी किये अक्सर जैसा होता चला आया है वैसा ही होगा...हमारी ड्यूटी है कि हम मतदान को प्रोत्साहित करें सो मित्रो इस बार आप वोट अवश्य डालें.. हर बार भी डालें . देखिये इस बार भी पूजा पर्व  भी अबके बरस प्रजातंत्र के महापर्व चुनाव के  संग साथ चला आया है. दीवाली भी इसी दौरान है.
अष्टमी-पूजन के लिये जुगत लगा कर सरकारी लोग अपने अपने घर गांव की तरफ़ रवाना हुए हमने अपने मातहतों से कहा –“भई, रावण को पूरी तरह से निपटा के फ़ूंक-फ़ांक के आना  और हां तेरहीं के लिये मत रुकना वरना इलेक्शन अर्ज़ेंट की डाक आते ही लफ़ड़ा हो जाता है.. ”
हम भी अष्टमी पूजन के लिये घर आ गए बाज़ार से पूजन सामग्री लाने का आदेश मिला सो बाज़ार पहुंचे . वहीं पूजन सामग्री खरीदते वक़्त मिला हमारा क्लास फ़ैलो जो इन दिनों मुहल्ला ब्रांड नेता कहा जाता है. हमने पूरे उत्साह से स्नेहवश अभिवादन किया . पर कहते हैं न पावर हर किसी को बेलगाम  कर देता है उसे भी पार्षदी के पावर ने बेलगाम कर रखा था ..   चार लोगों के सामने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए मेरी नौकरी को लेकर कटाक्ष करने लगा . उधर उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था मुझे मालूम नहीं पर अंदाज़ा लगाते देर न लगी कि कि मुआं सत्ता के मद में में इतना चूर है कि उसमें ज़ुबान पर लगाम लगाने का शऊर अब बाक़ी नहीं रहा.   अब ज़ुबां तो ज़ुबां हैं फ़िसल ही जाती है. हम भी मित्र के इस नामाकूल बर्ताव से आहत होकर उनको अश्लील-अलंकारों से अलंकृत कर सकते थे किंतु भाई संस्कारों ने हमको रोक लिया बस हमने उनकी बात का को मुस्कुराकर टाल दिया. पर दिमाग में वो बात कौंधी कि इस बार हमने अपने मातहतों को छुट्टी देते वक़्त कहा था –“देखो भाई, रावण को पूरी तरह निपटा के आना समझे.” और तुरंत हमने पूछा-“मित्र, बरसों से पार्षद बन नाली-नरदों की सियासत कर रहे हो क्या इस बार..”
मित्र, बोला- लगे तो हैं ज़ोरशोर से अब देखो क्या होता है..मिल तो जाएगी टिकट .
हमको हमारा रावण मिल गया मातहतों को भी मिला कि नहीं राम जाने. वैसे हज़ूर रावणों की कमी कतई नहीं है.. एक मांगोगे हज़ार मिलेंगें. जित्ती ताक़त हो चाहो फ़ूंको पूरे साल दशहरा मनाओ. मेरी सलाह है कि – इस बार दशहरे जैसा चुनाव पर्व मनाओ.. वोट ज़रूर डालो.. स्वीकारो या अस्वीकारो जो भी करना है करो पर रावण को वोट की प्रचण्ड ज़्वाला में फ़ूंक दो. उसके अस्तित्व को ही नक़ार दो और फ़िर सच्चा मोती पहचानो और चुनो वरना पांच बरस तक गरियाने का हक़ तुम्हारा न होगा.
धूप-ज़िल्लत-मज़्ज़मत और हिराक़त जिसके हिस्से
सुनाओ मत तरक्क़ी के आके उसको झूठे किस्से...!
सियासत की चाल अब सबको समझ आने लगी है-
कौन किसके चरण छूता कौन आया आज़ बिक के !! 

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