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शुक्रवार, अक्तूबर 04, 2013

डा. मलय जटिल नहीं है ..

डा. मलय 
    डा. मलय एक सतत संघर्ष का पर्याय है. स्पष्ट हैं .. सहज हैं सरल हैं किंतु  जाने क्यों मलय जी को  को अभिन्न मित्र जटिल मानवाने की कवायद में लगे हैं.  भई आप जो भी जैसा भी समझें आपका व्यवसाय है मेरी समझ अनुसार वे सहज सरल सरित प्रवाही हैं.    मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे मित्र ने पूछा  -"यार मलय जी गीत के विरोधी हैं क्या गीत कविता नहीं....?" मेरा निवेदन था उस मित्र से -"भई, एक दम राय कायम मत करो. " मलय को पढो तब जानो कि वो क्या है. 
किसी ने कहा वे परम्पराओं के प्रति अत्यधिक नकारात्मक रूप से संवेदित हैं.. तो कोई कहता था कि मल, हां भई बहुत जटिल हैं.. तो किसी ने यह तक कह डाला कि उनकी रचनाओं में बेहद जटिलता है ..!!
  मुझे लोगों के इस वाक-विलास से कोई लेना देना नहीं है. पर सुनी सुनाई ध्वनियों की सचाई जानने की मानवीय प्रवृति औरों सी मुझमें भी है सो डा. मलय जी पर ध्यान देने लगा. अगर मलय जी जटिल हैं तो तय है कि वे उपेक्षा भी करेंगे पर ऐसा कुछ नहीं दिखा उनमें. 
धार्मिक सामाजी संस्कारों  की घोर उपेक्षा करते कभी भी नज़र नहीं आए डा. मलय  .....हर होली पे मलय को रंग में भीगा देखने का मौका मिलता है मुझे धार्मिक समाजी परम्परा आधारित कार्यों में उनकी उपस्थिति का संकेत भी यही तो होता है. 
  मेरी माता जी को पितृ मेंमिलाना पिताजी ने विप्र भोज के लिए मलय जी को न्योत दिया मुझे भी संदेह था किंतु   समय पर दादा का आना साबित कर गया की डाक्टर मलय जटिल नहीं सहज और सरल है  सहिष्णु भी हैं. 
 
अगर मैं नवम्बर की २९वीं तारीख की ज़गह १९ नवम्बर को पैदा होता तो हम दौनो यानी दादा और मैं साथ-साथ जन्मदिन मनाते हर साल खैर..........!
 जबलपुर जिले के  लाल मुरम की खदानों वाले  सहसन ग्राम में १९ -११-१९२९ को  जन्में मलय जी की जीवन यात्रा बेहद जटिल राहों से  होकर गुज़री है  किंतु दादा की यात्रा सफल है ये सभी जानते हैं.  देश भर में मलय को उनकी कविता ,कहानी,की वज़ह से जाना जाता है . जो इस शहर का सौभाग्य ही तो है कि मलय जबलपुर के हैं .
 वे वास्तव में सीधी राह पे चलते हैं , उनको रास्तों में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के
प्रबंध करते नहीं बनते। वे भगोडे भी नहीं हैं सच तो ये है कि "शिव-कुटीर,टेली ग्राफ गेट नंबर चारकमला नेहरूनगर निवासी कोई साहित्यिक सांस्कृतिक टेंट हाउस नहीं चलाते ,    बस पढ़तें हैं और खूब  लिखतें हैं जैसे हैं वैसे दिखतें हैं नकली नहीं हैं 
उनसे मेरा वादा है "दादा,आपके रचना संसार पर मुझे काम करना है "
ज्ञानरंजन जी के पहल प्रकाशन से प्रकाशित मलय जी की पुस्तक ''शामिल होता हूँ '' में ४२ कवितायेँ इस कृति से  जिसमें उनकी १९७३ से १९९१ के मध्य लिखी गई कविताओं से एक कविता के अंश का रसास्वादन आप भी कीजिए 
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ..."को विस्तार देती या रचना आपको पसंद आएगी
 और हाँ मलय जी जटिल नहीं हैं इस बात की पुष्टि भी 
पानी ही बहुत आत्मीय "
पानी
अपनी तरलता में गहरा है
अपनी सिधाई में जाता है 
झुकता मुड़ता 
नीचे की ओर 
जाकर नीचे रह लेता है
अंधे कुँए तक में 
पर पानी 
अपने ठंडे क्रोध में 
सनाका हो जाता है 
ठंडे आसमान पर चढ़ जाता है
तो हिमालय के सिर पर 
बैठकर 
सूरज के लिए भी
चुनौती हो जाता है
पर पानी/पानी है 
बहुत आत्मीय 
बहुत करोड़ों करोड़ों प्यासों का/अपना
रगों में खून का साथी हो बहता है
पृथ्वी-व्यापी जड़ों से होकर 

बादल की खोपडी तक में 
वही होता है-ओर अपने 
सहज स्वभाव के रंगों से 
हमको नहलाता है 
सूरज को भी/तो आइना दिखाता है
तब तकरीबन पानी 
समय की घंटियाँ बजाता है 
और शब्दों की 
सकेलती दहार में कूदकर
नदी हो जाने की /हाँक लगाता है
पानी बहा जा रहा है
पिया जा रहा है जिया जा रहा है"
                     

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