केदारनाथ मंदिर |
इस बीच बहुत से मसलों पर बात हुई कहीं उत्तेजक वार्ताएं कहीं तनाव कहीं छिद्रांवेषण तो कहीं किसी के ज़ेहन में उम्मीदों का लकीरें फिर अचानक रुला देने वाली खबरें यानी कुल मिला कर एक अनियंत्रित अनिश्चित वातावरण का एहसास सोलह जून से आज तक यही सब कुछ . हिरोशिमा नागासाकी से लेकर टाइटैनिक हासदा जापान की सुनामी चीन की बाढ़ भारत के भूकंप जाने ऐसी ऐसी कितनी त्रासदियाँ होंगी जो अवाक कर देतीं हैं .
हर त्रासदी के पीछे कोई न कोई वज़ह होती है . भोपाल गैस त्रासदी को ही लीजिये हिरोशिमा नागासाकी से कमतर नहीं थी आज भी मिक के शिकार बीमार शरीर लिए दिख जाते हैं .
विकास की पृष्टभूमि जब जब भी लिखी जाती है तो मानिए कि त्रासदियाँ तय हैं मनुष्य में सदैव हासिल करने की उत्कंठा होती है. मनुष्य पराजय नहीं चाहता , सदा ही जीत चाहता है. इस लिप्सा से वह अपने विनाश को खुद ही आमंत्रण देता है. सोलह जून से आज़तक केवल हताशा से भरा हुआ है करें भी क्या हम सामर्थ्य हीन हैं ,
क्या सच में "क्या हम सामर्थ्य हीन हैं "
चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा को न सुनाने का अंजाम |
हाँ सत्य यही है की हममें सामर्थ्य नहीं रह गया है. हमारी ज़रूरतें आकाश से ऊँची होती जा रहीं हैं हमने उनको रोकने का सामर्थ्य नहीं है. हमारी जीभ हिंसक हो चुकी है हममें उसे नियंत्रित करने का सामर्थ्य नहीं . हम अनियंत्रित हैं तभी तो सामर्थ्य हीन हैं . सुन्दर लाल बहुगुणा जी ने चेताया था -"प्रकृति का दोहन पूरे अनुशासन से होना चाहिये वरना प्रकृति हमको ऐसा ज़वाब देगी की हम शेष न होंगे ! "- उनके इस कथन में सचाई है काश उनको सुना जाता ? अभी भी सुना जा सकता है. अगर हम सोलह जून की पुनरावृत्ति नहीं चाहते हैं.
अक्सर सुन्दरलाल बहुगुणा जैसे लोगों को हाशिये पर रखा जाता है. उनको न सुनाने का अंजाम बेशक इतना ही भयंकर होगा .
कल जब घर न पहुंचे लोगों की बाट जोहतीं परिजनों की ऑंखें आप देखेंगे तो एक बार ज़रूर आपके दिल में एक दर्द की लकीर खिंच जाएगी . याद रहेगा ये हादसा जो टीवी चेनल्स पर जारी उत्तेजक वार्ताओं का आधार है अभी कल ये चेनल्स हों न हों इस पर चीखने चिल्लाने वालों की ज़गह कोई और ले लेगा यकीनन तब बाक़ी रहेगा सूना पन हादसे के शिकार परिजनों के जीवन में. तब कहीं कोई फिल्मकार इस हादसे को रोकड़ में बदलेगा एक फिल्म बना कर हर बरस हादसा याद किया जाएगा कल यानी आज के बाद भी .