उदास आंखों में सपनों ने जगह बना ही ली . अक्सर हम सोचा करतें हैं कि हम सबसे ज़्यादा दुखियारे अकिंचन हैं.हमारी आदत है ऊंचाईंयों तक निगाह करने की. और फ़िर खुद को देखने की. अब बताईये परबत देख कर आप खुद को देखेंते हैं तब तो सामान्य सी बात है कि खुद को नन्हा महसूस करेंगे ही. बस यहीं कुंठाएं जन्म ले लेतीं हैं. हम खुद को असहज पाते हैं.
दस बरस का था तब मुझे लगा कि मैं क्रिकेट खेल सकता हूं और फ़िर कोशिश की बैसाखियों के सहारे दो रन बनाए भी. दूसरी ही बाल पर क्लीन बोल्ड. बोल्ड होने से अधिक पीढा थी खेल न पाने की. बाल मन अवसाद से सराबोर हुआ . रोया भी ....खूब था तब
रेल स्टेशन के क़रीब रेल्वे क्वार्टर में अक्सर दुख:द खबरें मिला करतीं थीं. उस दिन स्कूल से लौटते वक़्त देखता हूं कि एक इंसान जाने किस भ्रम के वशीभूत हुआ रेल पटरी पार करने के बाद वापस लौटा और यकायक रेलगाड़ी की चपेट में आ गया.. मेरी आंखों के सामने घटा ये सब ये क्या .. उफ़्फ़ दौनों टांगें .. खुद से खूब सवाल करता रहा -"बताओ, अब वो जी भी गया तो क्या सहजता से चल सकेगा..?
अर्र अब उस बेचारे के तो दौनों पांव..?"
मुझसे ज़्यादा बुरी दशा में है वो.. उसके तो दौनों पैर.. ही न होंगे.. अब
कहानी का इशारा है कि जितनी ज़ल्द हो सके मन से कुण्ठा को विदाई दिलाना ज़रूरी है.
पर वयस्क होने पर कुण्ठाएं बेलगाम हो जातीं है. अक्सर बच्चों में बगावती तेवर आपने देखे होंगे.ये ही बच्चे बड़े होकर एक बेलगाम ज़िंदगी को जीते हैं. सही वक़्त है बचपन जब आप बच्चों को अभावों कमियों पराजयों से मुक़ाबला करना सिखा सकते हैं...
पर वयस्क होने पर कुण्ठाएं बेलगाम हो जातीं है. अक्सर बच्चों में बगावती तेवर आपने देखे होंगे.ये ही बच्चे बड़े होकर एक बेलगाम ज़िंदगी को जीते हैं. सही वक़्त है बचपन जब आप बच्चों को अभावों कमियों पराजयों से मुक़ाबला करना सिखा सकते हैं...
तस्वीरें बता रहीं हैं बाल-गृह के बच्चे अब सुनहरे सपने देख रहें हैं. खेल रहें हैं पढ़ रहे हैं.. योग सीख रहे हैं..
तभी तो मैंने भी तय किया है इन बच्चों के साथ सपरिवार एक दिन अवश्य बिताउंगा ..
मेरे बच्चे समझेंगे अभाव से साहस कैसे हासिल होता है.
जानेंगें ये भी कि ये वो बच्चे हैं जिनको जिद्द शब्द के मायने नहीं मालूम..
इन बच्चों की आंखों में सपने आने लगे हैं.. सपने पूरे भी होते जा रहे है, वे भी पार्क में जाते हैं..
अबोले जंगल में सरसराते पत्तों की आवाज सुनते ये बच्चे कितने उमंग से निकल पड़े हैं जीवन यात्रा पर ..............!!
जो भी हो एक दिन इनके साथ बिताने से महसूस होता है कि "जीवन के मायने क्या हैं..?"
अंत में दीपेंद्र भाई को एक बार फिर आभार तस्वीरें उपलब्ध कराने के लिए.
तो मित्रो आप आ रहें हैं मिलने..... इन बच्चों से
अंत में दीपेंद्र भाई को एक बार फिर आभार तस्वीरें उपलब्ध कराने के लिए.
तो मित्रो आप आ रहें हैं मिलने..... इन बच्चों से