5.3.11

अलबेला खत्री लाइव फ़्राम जबलपुर




सूरत से सिंगरौली व्हाया जबलपुर जाते समय जबलपुरियों हत्थे चढ़ गये राज़ दुलारे अलबेला के साथ आज न कल देर रात तक फ़ागुन की  आहट का स्वागत किया  गया बिल्लोरे निवास पर डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" बवाल ,और हमने यक़ीं न हीं तो देख लीजिये 

 तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक हम कार्यालयीन काम निपटा के हज़ूरे आला की आगवानी के वास्ते जबलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ार्म नम्बर चार पर खडे़ अपने ड्रायवर रामजी से बतिया रहे थे. समय समय पर हमको  अलबेला जी कबर देते रहे कि अब हम यहां हैं तो अब हम आने ही वाले हैं किंतु पता चला कि महानगरी एक्सप्रेस नियत प्लेटफ़ार्म पर न आकर दो नम्बर प्लेट फ़ार्म पर आने वाली है. सो बस हम भी जबलपुर रेलवे स्टेशन के मुख्य-प्लेट फ़ार्म पर आ गये. जहां ट्रेन आने के बावज़ूद भाई से मुलाक़ात न हुई. मुझे लगा कि कि खत्री महाशय ने फ़टका लगा दिया. कि फ़िर एक फ़ोन से कन्फ़र्म हुआ कि ज़नाब यहीं हैं. कार में सवार हुये 
अलबेला जी को  इस बात का डर सता सता रहा कि मेरे घर उनका अतिशय प्रिय पेय मिलेगा या नहीं, मिलेगा तो पता नहीं पहुंचने के कितने समय बाद मिलेगा जिस पेय के वे तलबगार हैं....अर्र र र ललित भाई आप गलत समझे ये वो पेय नहीं जिसकी तलब में आप हैं भाई अलबेला जी को "चाय" की तलब थी , सो डिलाइट-टाक़ीज़ के पास होटल में ले जाया गया. कार में बैठे-बैठे चाय पी गई. घर आकर देखा तो वाक़ई श्रीमति जी मुहल्ले में आयोजित किसी कार्यक्रम में भागीदारी के लिये रवाना हो रहीं थीं. सो  
 हम मान गये लोहा अलबेला जी के दूरगामी चिंतन का .चाय तो मिली किंतु नियत समय से आधे-घंटे की देरी से. और फ़िर स्वागत सत्कार के लिये विजय तिवारी किसलय, भाई जितेंद्र जोशी (आभास के चाचू) बवाल, यशभारत जबलपुर के प्रति निधि श्री मट्टू स्वामी, पधारे इस बीच माय एफ़ एम 94.3 जियो दिल से वालों ने एक लाईव प्रसारण भी किया टेलीफ़ोन पर खूब चहके भाई अलबेला खत्री.    
 फ़िर क्या हुआ..?
फ़िर फ़िर ये हुआ कि :-"अलबेला जी लाइव हो गये बैमबज़र के ज़रिये. और क्या होना था"
मोबाइल कैमरा फ़ोटो सेशन के बाद अरविन्द यादव जी आये को फ़ोटो ग्राफ़्री हुई. जम के हुआ वेबकास्ट इंटरव्यू . 43 साथी लाइव देख रहे थे. 
यानी हंगामें दार रही शाम. की गवाही दे सकते हैं  संगीत निर्देशक श्री सुनील पारे, जीवन बीमा निगम के प्रबंधक श्री तुरकर जी एवम मेरे अग्रज़  श्री सतीष बिल्लोरे जो घटना स्थल के बिलकुल समीप थे. कुल मिला का होली-हंगामा शुरु.. 
 उधर भूख के मारे पेट में चूहे कत्थक,कुचिपुड़ी,सालसा, करने लगे भोजन भी तैयार था सो संचालकीय तानाशही का भाव मन में आया और हमने एकतरफ़ा ऐलान कर दिया..... सभा बर्खास्त, अब नहीं हो पा रही भूख बर्दाश्त. 
ताज़ा सूचना मिलने तक ज्ञात हुआ की अलबेला खत्री जी को ट्रेन में कंडेक्टर ने जगाया बोला जोर से मत सुनाओ. 
"क्या मैं कविता सुना रहा हूँ ..?"  
 टीसी ने कहा :- नहीं श्रीमान खर्राटे .......
मित्रो , जो बुके उनके स्वागतार्थ आये वे मेरे घर की शोभा बढायेंगे . सच अलबेला खत्री जी खूब याद आएंगे. 

10 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

Anand aa gaya..ab bambuser to sune///

पद्म सिंह ने कहा…

बहुत सही ....

विवेक रस्तोगी ने कहा…

वाह जी वाह मजा आ गया

किलर झपाटा ने कहा…

बाप रे बाप ! ये तो बहुत जोरदार कॉम्बिनेशन है। अलबेला के साथ बवाल ? वाह वाह जैसे कोई लफ्जों की गिरह खोल रहा है। बवाल जी दिखते एकदम सौम्य हैं मगर आवाज बवाल ही है। किसलय जी की कविता तो बहुत मजेदार और जबरदस्त लगी शंकर जी वाली। गिरीश जी ने तो गजब किया। डार्लिंग ये नयापन है। बहुत मजा आ गया सुपरहिट। अलबेला जी ने जो सुनाया वो शायद ही कभी सुनने मिलता। अलबेला जी सचमुच अलबेला हैं। हा हा किसलय को मिसलय। किसलय जी के बालों पर बहुत बढ़िया चुटकुले सुनाए गिरीष जी अलबेला जी और बवाल जी ने। मैनें पूरा सुना। लगा कि दौड़ कर अपने देश वापस आ जाऊँ। क्या जबलपुर ऐसा है जहाँ इतनी मस्ती होती है। जब भी इंडिया आऊँगा जबलपुर जरूर जाऊँगा। वाह वाह। आपका बहुत बहुत थैंक्यू जो आपने इतना मस्त प्रोग्राम दिखाया।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

भाई गिरीश जी
हमारी ढेर सारी बधाई सबसे पहले अपने सूटकेस में भरें.
कल रात जो हंगामा "मुकुल" निवास पर हुआ, वह सच में काफी अरसे तक स्मृतियों में रहेगा और जबरदस्त याद आते रहेंगे भाई
"अलबेला खत्री जी ".
एक बात जो सामने आई वो है, हम जिन्हें केवल अलबेला समझते हैं वे केवल अलबेला ही नहीं एक नेक दिल,संवेदन शील,मिलनसार, मस्त और एक चिन्तक भी हैं जिन्हें घर, समाज देश-दुनिया की भी चिंता है.
हमने कई कलाकार देखे हैं, परिचित हैं परन्तु जो सोच, जो आत्मीयता और जो कला 'अलबेला जी' को खुदा ने बक्शी है , बहुत कम ही होते हैं.भाई अलबेला को ईश्वर ऊँचाईयाँ प्रदान करे.
भाई गिरीश ने संस्कारधानी जबलपुर के संस्कारों का निर्वहन करते हुए जो नेह दिया वह अलबेला जी के चेहरे से झलक रहा था.
भाई बवाल के कंठ के कायल तो सभी हैं, यहाँ तक कि दूर बैठे भाई ललित जी अपनी पसंदीदा कविता 'माटी की गागरिया' की फरमाईश भी पूरी करवा ली.
अब मैं बात कर लूँ भाई किलर झपाटा जी की, जिनको मेरी रचना पसंद आई, भाई हम आपके आभारी हैं.
एक बार फिर अलबेला जी और गिरीश जी साधुवाद.
- विजय तिवारी 'किसलय'

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

समीर भाई, विवेक जी, पद्म भाई शुक्रिया
किलर झपाटा आप का क्या हाल चाल है. आने का शुक्रिया

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

विजय भाई
सादर अभिवादन
आपकी टिप्पणी के लिये आभार

मनीष सेठ ने कहा…

wah baba maza aa gaya.

मनीष सेठ ने कहा…

kachhu lete na dete.
hamka bulaye lete.

अनुभूति ने कहा…

bahut hi badiyaa prstuti
man ka rom rom khil gyaa

Wow.....New

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