यह सही नहीं कि समीर लाल जी मोदीवाडा सदर में लुकमान को सुनते थे , खासतौर पर होली ? ऐसा नहीं था जहाँ भी चचा का प्रोग्राम होता भाई समीर की उड़न-प्लेट सम्भवत:वेस्पा स्कूटर पर सवार हो कर चली आती थी .
दादा दिनेश जी विनय जी को आभार सहित अवगत करना चाहूंगा कि:- पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी ,के बाद वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी जी का स्नेह लुकमान पर खूब बरसा . मित्र बसंत मिश्रा बतातें हैं:-'असली जबलपुर में चचा कि महफिलें खूब सजातीं थीं भइया गिरीश तुमको याद होगा मिलन का कोई भी कार्यक्रम बिना लुकमान जी के अधूरा होता था ''
मुझे अक्षरस:याद है कि मिलन के हर कार्यक्रम में लुकमान का होना ज़रूरी सा हो गया था ।
- चाचा लुकमान को जन्म तिथि याद न थी ..!
- भवानीदादा की विदाई
क्रमश:
6 टिप्पणियां:
क्या याद रखे हो महाराज जमाने पुरानी हमारी वेस्पा को, वाह!! कायल हुए आपकी याददास्त के.
भवानी दादा, लुकमान चचा -दोनों को नमन.
shukriya sameer bhai
लुकमान जी को मैंने बचपन के दिनों में गुरु तिराहा दीक्षितपुरा जबलपुर में सुना है उन दिनों उनकी कब्बलियो का परचम सारे शहर में खूब फहराया करता था .
Mahendra-Bhai
shukriya
kayaa bat hai
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