16.1.09

ये मस्त चला इस मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो :लुकमान चाचा


यह सही नहीं कि समीर लाल जी मोदीवाडा सदर में लुकमान को सुनते थे , खासतौर पर होली ? ऐसा नहीं था जहाँ भी चचा का प्रोग्राम होता भाई समीर की उड़न-प्लेट सम्भवत:वेस्पा स्कूटर पर सवार हो कर चली आती थी .
दादा दिनेश जी विनय जी को आभार सहित अवगत करना चाहूंगा कि:- पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी ,के बाद वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी जी का स्नेह लुकमान पर खूब बरसा . मित्र बसंत मिश्रा बतातें हैं:-'असली जबलपुर में चचा कि महफिलें खूब सजातीं थीं भइया गिरीश तुमको याद होगा मिलन का कोई भी कार्यक्रम बिना लुकमान जी के अधूरा होता था ''
मुझे अक्षरस:याद है कि मिलन के हर कार्यक्रम में लुकमान का होना ज़रूरी सा हो गया था ।
  • चाचा लुकमान को जन्म तिथि याद न थी ..!
14 जनवरी 1925 मैंने उनकी जन्म तारीख लिखी ज़रूर है किंतु उनके स्नेही और 1987 से अन्तिम समय तक साथ रहने वाले शागिर्द भाई शेषाद्री अयैर और दीवाना बना देने वाले ढोलक वादक "कुबेर"कहतें हैं जब मन-मस्त हो रब से मिलन का तारतम्य बने समझो वही दिन लुकमान के जन्म का दिन है
  • भवानीदादा की विदाई
भवानी दादा की पार्थिव देह को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जा रहे थे किसी ने कहा चाचा दादा को उनका पसंदीदा गीत सुना दो जाते-जाते चाचा ने भारी मन से अपने पूज्य को सुना ही दिया :-ये मस्त चला इस मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो...!!
क्रमश:


6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

क्या याद रखे हो महाराज जमाने पुरानी हमारी वेस्पा को, वाह!! कायल हुए आपकी याददास्त के.

भवानी दादा, लुकमान चचा -दोनों को नमन.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

shukriya sameer bhai

समयचक्र ने कहा…

लुकमान जी को मैंने बचपन के दिनों में गुरु तिराहा दीक्षितपुरा जबलपुर में सुना है उन दिनों उनकी कब्बलियो का परचम सारे शहर में खूब फहराया करता था .

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Mahendra-Bhai
shukriya

बेनामी ने कहा…

kayaa bat hai

बेनामी ने कहा…

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