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मंगलवार, अगस्त 06, 2024

B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी ? 02


( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
    पिछले भाग में अपने जाना कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए किए गए तख्तापलट एक वैश्विक स्तर पर की गई करवाई हो सकती है अब आगे ...)
हमने आपको बताया था कि बांग्लादेश में डेमोग्राफिक अरेंजमेंट में 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़  जनसंख्या  हिंदुओं की है. इनके अलावा  बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख मत एवं संप्रदायों से जुड़े हुए लोग रहते हैं।
  सांप्रदायिकता को लेकर पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी अत्यधिक संवेदनशील है। आजादी के बाद अभिभाजित  पाकिस्तान के इस हिस्से में लगभग 27 प्रतिशत हिंदू आबादी निवास करती थी परंतु अब मात्र 8% आबादी ही हिंदू आबादी है।
    भारत में नागरिकता के परिपेक्ष में कानून लाने का उद्देश्य भी मानव अधिकार की रक्षा ही था। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय विशेष रूप से हिंदू और बौद्ध कथित रूप से इस आंदोलन के निशाने पर हैं।
उदाहरण स्वरूप नवग्रह मंदिर तथा अन्य मंदिरों को निशाना बनाना, हिंदू परिवारों के घर में तोड़फोड़ करना, इस्कॉन मंदिरों पर हम लोग को छात्र आंदोलन कहना अनुचित है। बांग्लादेश में मुस्लिम अतिवादियों ने कई वर्षों से हिंदू ब्लॉगर्स को निशाने पर रखा गया था और उनकी बेरहमी से हत्या भी कर दी थी।
   आंदोलनकारी छात्र यह भूल चुके हैं कि, पाकिस्तान ने अपने पूर्वी हिस्से यानी वर्तमान बांग्लादेश में एक लाख से अधिक महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया तथा लगभग 30 लाख लोगों मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश की युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे चीनी और पाकिस्तानी साजिशों का मोहरा बन गए हैं।   
   अब तो यह तय हो चुका है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत विरोधी वातावरण निर्मित करने के लिए दक्षिण एशिया में सक्रिय हो चुके हैं।
कुछ यूट्यूबर जैसे अंकित अवस्थी ने बताया है कि शेख हसीना की सरकार के विरुद्ध अमेरिका ने भी वातावरण तैयार किया है। उनका तर्क है कि अमेरिका द्वारा शेख हसीना सरकार को सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए पहले दबाव डाला गया था। परंतु शेख हसीना ने उनके प्रस्ताव को नकार दिया था।
इसके अतिरिक्त अमेरिका से जारी बयान से भी लगता है कि आर्मी कार्रवाई को संतोष जनक बताया है जबकि ग्राउंड रियलिटी यह है कि 24 घंटे से अधिक समय भी जाने के बाद हिंदू माइनॉरिटी, शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के सदस्यों एवं पदाधिकारीयों को हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।
अगर यह स्थिति नियंत्रित नहीं होती है तो उन की पीसकीपिंग फोर्स को अपना दायित्व निभाना होगा।
फिलहाल बांग्लादेश में अराजकता के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया जाना जल्दबाजी होगा। 
  इसके परिणाम स्वरुप भारतीय उप महाद्वीप में अस्थिरता को स्थान मिलता नजर आ रहा है।
   यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि चीन और पाकिस्तान  का यह प्रयास है कि भारत की स्थिति दुश्मनों से घिरे इजरायल की तरह हो जाए। ताकि चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे को संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र में लागू कर सके।
  अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक स्थिति जो भी हो किसी भी देश में सामाजिक अस्थिरता फैलाना मानव अधिकार का सबसे अपराध  है।
भारत के सीमावर्ती राज्यों मणिपुर असम पश्चिम बंगाल में अब सीमा सुरक्षा भारत के लिए चुनौती बन चुका है। निश्चित तौर पर भारत  सरकार इस मुद्दे पर भी विशेष ध्यान देगी।
    भारतीय उपमहाद्वीप में भारत को अलग-अलग कर देने की चीन की कोशिश है पहले भी जारी रही है इसका विवरण हम पिछले पॉडकास्ट में प्रस्तुत कर चुके हैं। 
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India's Foreign Policy

सोमवार, अगस्त 05, 2024

B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की ?घंटी 01

( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
#बांग्लादेश #Socio_Economic_Effects

दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण देश बांग्लादेश के इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के लिए  भारत की प्रतिबद्धता सदा से ही रही है। पाकिस्तान से विभाजन के पूर्व तथा
1971 के पश्चात से ही भारत का दृष्टिकोण बांग्लादेश के लिए सकारात्मक रहा है।
    2024- 25 के भारतीय बजट में  बांग्लादेश को विकास सहायता के तहत 120 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की जाएगी 
   भारतीय अर्थव्यवस्था के सहयोग एवं मानव संसाधन विकास के महत्वपूर्ण स्वीकारते हुए बांग्लादेश ने अपने आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए प्रभावशाली रूप से भारत का सहयोग लिया है।
भारतीय विदेश नीति में  भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिण एशियाई देशों के प्रति सम्मानजनक सह अस्तित्व के कांसेप्ट को प्रमुखता दी जाती रही है।
   परंतु पाकिस्तान एक ऐसा राष्ट्र है जो भारतीय विदेश नीति के लिए आवश्यक मापदंडों को सहन नहीं कर रहा है।
पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश में असहज स्थिति उत्पन्न करने के लिए आंतरिक वातावरण बेहद हिंसक बनाया जा रहा है। भले ही अप्रत्यक्ष रूप से परंतु बांग्लादेश में भी एक लंबे अंतराल से शेख हसीना की पार्टी को हटाने की कोशिश लगातार जारी रही है।

5 जून 2024 को बांग्लादेश के न्यायालय निर्णय के बाद 4 जुलाई 2024 से आरक्षण के मुद्दे को लेकर बांग्लादेश के छात्र विगत कई महीनों से आंदोलन कर रहे थे। 
   आज 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना द्वारा इस्तीफा देकर अपनी बहन के साथ बांग्लादेश से बाहर निकल चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शेख हसीना ने भारत में आ चुकी है तथा उनकी मुलाकात NSA श्री अजीत डोभाल से बातचीत हो चुकी है।

   16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से मुक्त हुए बांग्लादेश शेख मुजीबुर रहमान एवं उनके परिवार के 17 सदस्यों की हत्या आर्मी के तख्ता पलट में 1975 में कर दी गई थी।
  शेख मुजीबुर रहमान जिन्हें बंगबंधु के नाम से जाना जाता है, की हत्या के बाद सेना ने बांग्लादेश आर्मी चीफ जियाउर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश की सत्ता संभाली थी। हालांकि उन पर यह आरोप लगाता रहा है कि वे मुजीब की हत्या के दोषी हैं। जबकि उन्होंने ही शेख हसीना को प्रजातांत्रिक रास्ते से वापस स्थापित किया।
  विकसित राष्ट्रों से लेकर अल्प विकसित राष्ट्रों तक राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना बेहद सोशियो पॉलीटिकल नजरिया से नकारात्मक स्थिति का परिचायक है।
डेमोक्रेटिक सिस्टम कभी भी हिंसा का हिमायती नहीं रहा परंतु डेमोक्रेसी में हिंसा का प्रवेश तख्ता पलट, राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना, डेमोक्रेटिक सिस्टम की विकृति का उदाहरण माना जा सकता है।
  अपने अमेरिका में भी भीड़ का राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करना देखा होगा तो आपको श्रीलंका में भी इस तरह की गतिविधि नजर आई होगी।
  यह तीसरा मौका है जब भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश के राष्ट्र प्रमुख के आवास पर जनता ने हमला बोला है।
उपरोक्त स्थितियों के अलावा अगर हम गौर करें तो म्यांमार श्रीलंका के बाद बांग्लादेश में पॉलीटिकल अनरेस्ट की स्थिति कोई सामाजिक आंदोलन की परिणीति नहीं हो सकती।
  दोपहर बाद जब  बांग्लादेश से संबंधित खबर आनी शुरू हुई तो मुझे यह महसूस हो गया था कि - "यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर से प्रेरित  प्रजातंत्र को समाप्त करने वाला षड्यंत्र हो सकता है।"
  फिर धीरे-धीरे मीडिया इस बात का खुलासा करने लगा।
   अगर यह कयास लगाया जाता है कि - बांग्लादेश का मौजूदा नेतृत्व, दो अंतरराष्ट्रीय ताकतों के षडयंत्रों का शिकार हुआ है तो शायद गलत नहीं होगा।
   फिलहाल हम उन खबरों पर नजर बनाकर रखे हैं जो बांग्लादेश की स्थितियों पर सामने लाई जाएगी। फिर भी यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश श्रीलंका नेपाल म्यांमार मालदीव में दिखने वाले दृश्य दक्षिण एशिया के लिए सकारात्मक नहीं है।
बांग्लादेश से आने वाली खबरों को देखकर प्रतीत होता है कि दक्षिण एशिया अब मिडिल ईस्ट की तरह सोशियो इकोनामिक सिस्टम के संदर्भ में नकारात्मक दिशा की ओर जा रहा है।
   दक्षिण एशिया में भारत के बाद बांग्लादेश ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी अर्थव्यवस्था विकास का आभास देती है परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है अब बांग्लादेश उग्र एवं कट्टरपंथी विचारधारा एवं आयातित अराजकतावादी विचारधारा का शिकार होकर अस्थिरता के चक्रव्यूह में घिरता चला जा रहा  है।
   देखना यह है कि 1971 में जन्मे इस राष्ट्र के आर्थिक सामाजिक विकास फिर कब स्थापित हो सकेगा। इतना तो तय है कि बांग्लादेश में अब जो भी सरकार बनेगी वह भारत की समर्थक होगी या नहीं यह कहना मुश्किल है।
प्राप्त समाचारों के अनुसार बांग्लादेश में गैर इस्लामिक नागरिकों को भी टारगेट किया जा रहा है।
  इससे प्रतीत होता है कि पाकिस्तान की आई एस आई का कहीं न कहीं बांग्लादेश की आंतरिक गतिविधियों  में हस्तक्षेप बढ़ गया है।
और संप्रदायिक रूप से बांग्लादेश संवेदनशील होता जा रहा है।
  बांग्लादेश में करीब 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़  जनसंख्या  हिंदुओं की है. इनके अलावा बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग हैं ।
  इसका अर्थ यह है कि बांग्लादेश में अगर पंथनिरपेक्ष सरकार का गठन नहीं होता तो सामाजिक संरचना नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। 

क्या तलाशते हैं लोग इंटरनेट पर


     साप्ताहिक पॉडकास्ट दुनिया इस सप्ताह में  आज से हम प्रत्येक रविवार की शाम दुनिया इस सप्ताह शीर्षक से एक पॉडकास्ट आपके लिए लाएंगे। जो पूरे सप्ताह में हुए महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर केंद्रित होगा।
    ( खबरें 4 अगस्त 2024 तक  )
  आज जानते हैं इस सप्ताह में उन समाचारों के बारे में जो सबसे ज्यादा खोजे गए अथवा चर्चित रहे हैं
    इस सप्ताह हम विश्लेषण कर रहे हैं कि विश्व में  खास तौर पर अमेरिका यूरोप तथा भारत, दक्षिण एशिया के अन्य देशों जैसे बांग्लादेश और पाकिस्तान में किन विषयों पर आधारित कंटेंट्स को देखा और दिखाया जा रहा है।
   इस समय गूगल पर अमेरिका में सर्वाधिक खोज की जा रही है वह अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर सर्वाधिक कंटेंट खोजा जा रहा है।
   जबकि पिछले दो दिनों से अर्थात एक अगस्त के पक्ष से अमेरिका सहित संपूर्ण विश्व के लोग इसराइल फिलिस्तीन  और हमास पर केंद्रित समाचारों को तलाश रहे हैं।
  अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव लिए अमेरिका की जनता ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की जनता और  मीडिया हाउस दोनों प्रत्याशियों कमला हैरिस एवं  डोनाल्ड ट्रंप  की स्थितियां समझना चाहते हैं।
  स्मरण हो कि जो बाइडन के बाद अब भारतीय मूल की कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी हैं।
  विश्व भर के विशेषज्ञ डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार  कमला हैरिस एवं रिपब्लिकन ट्रंप की लोकप्रियता के बारे में जानना चाहते हैं और इसी आधार पर अमेरिका के इलेक्शन पर प्रिडिक्शन किया जा रहा है।
   मीडिया पर प्रचारित समाचारों को देखा जाए तो ज्ञात होता है कि रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों में अब कांटे का संघर्ष नजर आ रहा है। जबकि पिछले एक माह से स्थिति रिपब्लिक रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में थी।
अमेरिका में महंगाई की दर में वृद्धि के कारण सोने का बाजार भाव भी इन दिनों सुर्खियों में है।  सोने का भाव तय करने वाला इंग्लैंड का बुलियन बाजार सोने की कीमतों में यूरोप के प्रभाव को प्रदर्शित करता है। जब जब दुनिया में यूरोप की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है तब तक विश्व में सोने के भाव में अचानक वृद्धि देखी जाती है।
   विश्व में भले ही सोना एक निवेश का कारण हो परंतु भारत में सोना सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि भारत में सोने से जुड़े हुए समाचारों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  वैश्विक स्थिति में जहां एक को अमेरिका का इलेक्शन सबके लिए कौतूहल का विषय बना है वहीं दूसरी ओर इजरायल के खतरनाक जासूसी संगठन मोसाद द्वारा कथित रूप से तेहरान में हमास के चीफ  हानियां की हत्या को लेकर बेहद रहस्यमई कहानियां  सामने आ रही है।
   सर्च इंजन में हमास के प्रमुख हानिया की हत्या को लेकर यह खोजा जा रहा है कि किस तरह से इसराइल के जासूसी संगठन मोसाद ने उन्हें मौत के घाट उतारा।
  लगभग 1 वर्ष से या कहीं इसराइल के बने के बाद से इसराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष की परिणीति एक रहस्यमई हत्या के रूप में हुई है। आगे और क्या होता है यह भी विचारणीय है।
    कुछ मीडिया चैनल यह अंदाज लग रहे हैं कि ईरान के भीतर ही कोई ऐसे स्लीपर सेल है जो आतंकी संगठन के प्रमुख को निपटने में सहयोग कर रहे हैं।
भारत में जिन समाचारों में रुचि ली जा रही है उनमें संसद की गतिविधियों के अलावा बरसात एक प्रमुख मुद्दा है।
परंतु जब से हमास प्रमुख का की कथित तौर पर हत्या मोसाद द्वारा की गई है, उसके परिणाम पर चिंता व्यक्त की जा रही है।
   मीडिया जगत यह मान रहा है कि अब तीसरा विश्व युद्ध नजदीक है।
भारत में भी जो समाचार सर्च किया जा रहे हैं उनमें अब अचानक ट्रेंड बदलता नजर आ रहा है। कन्वेंशनल प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रकाशित होने वाले समाचार और विशेष आर्टिकल तीसरे विश्व युद्ध की आहट को महसूस करते नजर आ रहे हैं।
   भारत में अचानक पाकिस्तान से 600 आतंकवादियों की घुसपैठ चिंता का विषय है। परंतु अच्छी खबर यह है कि अब तक के एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों के रूप में घुसे पाकिस्तान सेना के कमांडोज में से एक को जिंदा पकड़ लिया गया है।
   इस सप्ताह में भारत के लिए से पाकिस्तानी कमांडो को जिंदा पकड़ना बेहद महत्वपूर्ण एवं आवश्यक भी है।
   भारत में सर्च की जाने वाली खबरों में 200  रोहिंग्याओं का लखनऊ के पास अवैध प्रवास भी सनसनी बना हुआ है।
   पाकिस्तान में औसत इंटरनेट यूजर वल्गर कंटेंट खोजने में नंबर वन है। स्मरण हो कि पाकिस्तान में सर्वाधिक पोर्न देखा जाता है।
    दक्षिण एशिया का एक और देश है बांग्लादेश, यूट्यूब पर लाइव होकर पैसे कमाने की दौड़ में बांग्लादेश पश्चिम बंगाल एवं बिहार, उत्तर प्रदेश से महिलाएं एवं पति पत्नी देर रात तक अश्लील प्रसारण में व्यस्त रहती हैं।
  भारत में  सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा कंटेंट संसद की पिछली कार्रवाई में हुई नोकझोंक पर मीम्स और कंटेंटस का आदान प्रदान हो रहा  है। 

रविवार, अगस्त 04, 2024

Eternal. | सनातनी अस्थि-पंजरों पूजन न करें..?

   बहुत दिनों से यह सवाल मेरे मित्र मुझसे पूछते थे। सनातन में अस्थि कलश विसर्जित किया जाता है। क्योंकि शरीर और प्राण दो अलग-अलग वस्तु है। कतिपय सनातनी उन स्थानों की पूजा करते हैं जहां शरीरों को प्रथा अनुसार मृत्यु के बाद भूमिगत कर दिया जाता हैं ।
 सनातनी लोगों के लिए ऐसा करना वर्जित है। 
    सामान्यतः  सनातन धर्म में देह को प्राण के देह से निकल जाने के बाद अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है उसकी अस्थियों एवं भस्म को गंगा या अन्य पवित्र नदी को सौंपा जाता है।  मृतक के मरने के 11 दिन बाद शरीर से पृथक हुए प्राण को पूर्वजों के साथ मिलाकर ब्रह्म के अर्थात परम उर्जा में समाविष्ट करने का नियम है। तदुपरांत सवा महीने तक दिवंगत आत्मा की स्मृति में ऐसे कार्य जो विलासिता की श्रेणी में आते हैं को संपन्न करने कराने की अनुमति सनातन में नहीं है।
सनातन ऐसे किसी विषय को रुकता नहीं है जिसमें कि किसी परिवार का हित छुपा हुआ हो। उदाहरण के तौर पर विवाह संस्कार रोजगार के लिए पर्यटन इत्यादि। क्योंकि सनातन व्यवस्था में विकल्पों का महत्व है तथा जीवन चर्या के लिए विकल्प भी मौजूद है ऐसी स्थिति में मृत्यु के उपरांत उत्तर कर्मों की काल अवधि में परिवर्तन किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप स्थाई नियम है किसी की मृत्यु के 1 वर्ष उपरांत घर में शुभ कार्य हो सकते हैं। परंतु आवश्यकता पड़ने पर 12 माह उपरांत होने वाली बरसी की तिथि में परिवर्तन किया जा सकता है। यहां तक कि अगर विवाह जैसा कार्य संपादित किया जा रहा हो और उसी समय परिवार में कोई मृत्यु हो जाए तो उत्तर कर्म तथा विवाह समानांतर रूप में संपन्न किए जा सकते हैं। सनातन कट्टर व्यवस्था को विकल्पों के तौर पर समाप्त करने की सलाह देता है। सनातन का हर संप्रदाय अपने अपने नियम बनाता है। इससे सनातन के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होता। सनातन धर्म है ना कि सांप्रदायिक व्यवस्था। सनातन जिस ईश्वर की कल्पना करता है वह ईश्वर प्रत्येक जीव के साथ समानता का व्यवहार करता है। सनातन का  अनुसरण करने वाला व्यक्ति चाहे वह शैव वैष्णव अथवा शाक्त हो सभी में एक ही ब्रह्म की अवधारणा दृढ़ता से समाहित होती है।
    स्वर्ग और नर्क की परिकल्पना मूल रूप से सनातन में नहीं की गई। ऐसी मेरी अवधारणा है सर्वमान्य ग्रंथों में स्वर्ग नरक की परिकल्पना नहीं है।  ब्रह्म एक परम ऊर्जा है। हमारे प्राण उसी परम उर्जा का अंश होते हैं। प्रतीकात्मक रूप से हम सनातन धर्म के अनुयाई मृतक के पिंड अपने पूर्वजों के  पिंडों के साथ मिलाकर सहपिंडी की प्रक्रिया का निष्पादन करते हैं। यह अनुष्ठान हम निरंतर करते हैं कहीं-कहीं  पुण्यतिथि पर अथवा श्राद्ध पक्ष में।
  यह वैज्ञानिक सत्य भी है। केवल हम उन शरीरों को भस्मी भूत करते हैं। विशेष परिस्थिति में समाधि देने का भी प्रावधान है। परंतु ऐसा सामान्य रूप से नहीं होता। मित्र को मेरी सलाह थी कि-" हम अमर आत्मा की पूजन करते हैं अगर वह हमारे पूर्वज है तो अगर समकक्ष या छोटी उम्र के हैं तो उन्हें श्रद्धा सहित आमंत्रित कर उनका स्मरण करते हैं। यह परम सत्य है कि आत्मा नामक ऊर्जा का मिलन अगर प्रमुख ऊर्जा अर्थात ब्रह्म से नहीं होता तो वह या तो पुन: जन्म लेती हैं ,अथवा ऐसी आत्माएं जन्म लेने के लिए किसी भी योनि में प्रविष्ट हो  सकती है। हमारी सनातनी मान्यता है कि हमें उन आत्माओं की प्रति तर्पण जैसी प्रक्रिया करने से आत्मा जिस योनि में जन्म लेती है को आत्मिक सुख का अनुभव होता है। 
हमें किन लोगों की समाधि पर पूजन करनी चाहिए
हमें केवल ऐसी मृत समाधिष्ट    महा ज्ञानियों तपस्वियों और ब्रह्मचारीयों की पूजन करने की आज्ञा है जो ऋषि परंपरा एवं लौकिक जीवन में जीव ब्रह्म के अनुरूप आचरण कर चुके हैं। ऋषि परंपरा के दिवंगत व्यक्तियों की समाधि यों को छोड़कर अन्य किसी भी मत एवं संप्रदाय के मृतकों की समाधि की पूजा करना वर्जित है इन समाधियों में नर कंकाल के अलावा कुछ नहीं होता।
यह भी मान्यता है कि जो लोग मृत शरीरों को संभाल कर रखते हैं तथा उनकी पूजन करते हैं उससे कुलदेवी या कुलदेवता रुष्ट हो जाते हैं। क्योंकि हमारी कुल की रक्षा कुलदेवी या कुलदेवता द्वारा की जाती है। कुलदेवी अथवा कुल देवता हमारे कुल की रक्षा और उन्हें सतत आशीर्वचन देने का दायित्व निभाते हैं। किंतु हम भ्रमित होकर अन्य संप्रदायों से संबंधित व्यक्तियों की समाधि पर आराधना करना सनातन में वर्जित है। ऐसा करने से कुलदेवी अथवा कुलदेवता के प्रति आपका अविश्वास प्रकट होता है। ऐसी स्थिति में जो सनातनी व्यक्ति है उसे कभी भी किसी अन्य संप्रदाय के प्रति आस्था रखने वालों से संबंधित समाधि पर ना तो जाना चाहिए और ना ही उन पर विश्वास ही करना चाहिए। क्योंकि हम अस्थि पूजक नहीं है बल्कि हम ब्रह्म के आराधक हैं। हमारी कुल देवी या देवता के प्रति आस्था ना रखते हुए हम अगर अन्य किसी पर विश्वास करते हैं तो यह अपने ही कुल देवी या देवता के प्रति सकारात्मक श्रद्धा से खुद को अलग कर लेते हैं। जिनके घर में श्राद्ध पक्ष एवं कुलदेवी और कुलदेवताओं का पूजन किया जाता है उन्हें किसी अन्य गैर सनातनी व्यक्ति की समाधि पर जाना शास्त्र सम्मत नहीं है भले ही वे कितने महत्वपूर्ण क्यों न हों। 
   आज से ही जो भी कब्रों दरगाह अथवा ऐसे किसी स्थान पर जाते हैं जहां उन्हें भ्रम होता है कि उनकी मनोकामना पूर्ण होगी । वास्तव में यह भ्रामक प्रचार के कारण होता है। पंडितों एवं आचार्यों को चाहिए कि वे इस संदेश को हर तरफ विस्तारित करें। 
  हां यदि आप अन्य किसी संप्रदाय को मानते हैं तो आप यह सब कर सकते हैं , इसे हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । परंतु सनातन धर्म के माननीय वालों के लिए यह सब वर्जित है।
#YouTube पर इससे संबंधित पॉडकास्ट सुनिए 
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सोमवार, जुलाई 15, 2024

बीएसएनल टाटा कोलैबोरेशन : विश्व को भारत का संदेश

  बीएसएनल टाटा कोलैबोरेशन : विश्व को भारत का संदेश
  भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत की व्यापारिक बुद्धिमत्ता को कमजोर साबित करने वाली विचारधारा को आज गहरा झटका महसूस हो रहा होगा। टाटा के साथ कोलैबोरेशन करके भारत ने विश्व को यह बता दिया है कि हम चीन पर उतना निर्भर नहीं है जितना समझा जाता रहा है।
   कॉविड-19 आने से पहले भारत लगभग यह सुनिश्चित कर चुका था कि -"चीन की कंपनियों के साथ भारत की सरकारी कंपनी का अनुबंध भारत में संचार क्रांति को एक नया स्वरूप प्रदान कर देगा..!"
    कॉविड-19 के दोनों एपिसोड के बाद चीन की संदिग्धता, विश्व व्यापी हो चुकी है। अगर भारत का बीएसएनल सशक्तिकरण का प्रोजेक्ट चीन के साथ नए स्वरूप में आता तो तय था कि हम अपनी न  केवल गरिमा को काम करते बल्कि हमारी चीन पर निर्भरता भी स्पष्ट रूप से बढ़ जाती।
     सूत्रों की मानें तो दूरसंचार के क्षेत्र में चीन की कंपनियों  के साथ भारत का करार एक नई किस्म की मोनोपोली को स्थापित कर देता। इसमें कोई शक नहीं कि चीन के साथ हमारे आर्थिक संबंध बेहद सकारात्मक हैं ।
परंतु हमें अपने अस्तित्व और भारत के वैश्विक महत्व को बनाए रखने के लिए आंतरिक रूप से मजबूत बने रहने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता।
    जानकार बताते हैं कि भारत की सरकारी कंपनी बीएसएनएल और चीन की संचार कंपनियों के साथ हुए समझौता अगर पूरा हो जाता तो 3G के बाद सारे संचार बदलाव में चीन का हस्तक्षेप बढ़ जाता।
आपको याद होगा कि जुलाई 2020 के पूर्व भारत सरकार ने चीन के 59 ऐप्स सुरक्षा के मद्देनजर रद्द कर दिए थे। और फिर जुलाई 2020 में 4G सेवाओं को अपग्रेड करने वाले 4 टेंडर भी रद्द किए गए थे।
मुख्य रूप से चीन ने कंपनियों के जरिए विभिन्न देशों के सुरक्षा प्रबंधन पर भी निशाना साध लिया था। भारतीय सुरक्षा को लेकर उठाए गए इस कदम को एक टर्निंग पॉइंट कहा जा सकता है।
    भारत सरकार ने घाटे में चल रहे BSNL के वित्तीय स्वास्थ्य को सुधारने लगभग 8 हजार करोड़ रुपए की सहायता BSNL को देते हुए कहा था कि - भारतीय संचार क्षेत्र में उपयोग में चीन से आयातित 75% इक्विपमेंट्स का निर्माण भारत में ही हो।
अब  इक्विपमेंट्स के मामले में भारत की चीन पर निर्भरता कम होने लगी है।
    टेलीकॉम क्षेत्र को  भारत सरकार मजबूत बनाने के लिए R & D यानी  शोध एवं विकास पर खर्च करने की दिशा में तेजी से बढ़ रही है।
  भारत सरकार के उपक्रम BSNL ने टाटा के साथ किए समझौते के बाद प्रायवेट कंपनियों पर भी नकेल कसने का काम किया है
   इसके अलावा भारत के भीतर संचार क्षेत्र को एयरटेल जिओ और वी आई जैसी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता।
    वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत, चौथे और पांचवें जनरेशन के स्पेक्ट्रम के मेंटेनेंस और उपभोक्ता के हितों को संरक्षित रखने का दायित्व टाटा का होगा।
  संचार क्षेत्र में टाटा की मौजूदगी से केबल ऑपरेटर को भी रोजगार मिलने की अपार संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
    कुल मिलाकर जहां एक और यह समझौता वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भारत की आत्मनिर्भरता का संदेश देता है वहीं दूसरी ओर आंतरिक ढांचा गत सुधार को भी
मजबूत करने का प्रयास है।
    टाटा के साथ बीएसएनल के जुड़ाव का समाचार तब तक अधूरी रहेगी क्योंकि अभी तक हमने स्टार लिंक के एलॉन मुस्क की चर्चा नहीं की है। एलॉन मस्क की कंपनी स्टार लिंक हमारे देश में संचार क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण सहयोगी साबित होगा।
आप सोच रहे हैं कि स्टारलिंक , BSNL के लिए किस प्रकार से सहायक होगी ?
     स्टारलिंक सैटेलाइट अन्य जियोस्टेशनरी सैटेलाइट की तुलना में कम ऑर्बिट में हैं, जिससे तेज इंटरनेट कनेक्टिविटी देना काफी आसान हो जाता है.
टेस्ला, स्पेसएक्स एवं स्टार लिंक के सीईओ एलन मस्क (Elon Musk) अपनी स्टारलिंक (Starlink) इंटरनेट सर्विस के जरिए 80 देशों को वैश्विक इंटरनेट सेवा का विस्तार करना चाहते हैं। पिछले दिनों उनकी भारत यात्रा के सुखद परिणाम को आप अवश्य ही देखेंगे। 

शुक्रवार, जुलाई 12, 2024

क्या 2025 में सोने की कीमतें स्थिर हो जाएंगी ?

विश्व बैंक के मुताबिक, साल 2024 में सोने की कीमत औसतन 2,100 डॉलर प्रति औंस रहेगी
   यह अनुमान इस बात पर आधारित है अंतरराष्ट्रीय तनाव की स्थिति पर।
हम सब जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय तनाव अथवा  संघर्ष के कारण वैश्विक रूप से पूंजी निर्माण एवं व्यापार अनिश्चितता बढ़ सकती है,
   मूल्यवान धातुओं के मूल्य में तेजी से उछाल भी इसी कारण आता है।
आईएनजी का अनुमान है कि साल 2024 में सोने की कीमत औसतन 2,031 डॉलर प्रति औंस रहेगी, जबकि चौथी तिमाही में इसका औसत 2,100 डॉलर प्रति औंस रहेगा. यह तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगाए गए अनुमान हैं। आईए भारत के संदर्भ में सोने की कीमतों के संबंध में हांबचर्चा करते हैं
*2025 के बाद आएगी सोने में स्थिरता..!*
सवाल यह है कि क्या भारत में सोने की कीमतों में भविष्य में स्थिरता आ सकती है।
यह समकालीन परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
   भारत में सोने की कीमत का अनुमान कई आर्थिक विकास एवं राजनीतिक परिस्थितियों के अधीन है।  पर निर्भर    
        विश्लेषकों का अनुमान था कि साल 2024 के अंत तक सोने की कीमतें लगभग ₹75,000 प्रति 10 ग्राम तक पहुंच सकती हैं. परंतु सोने की कीमतों में विश्लेषकों के अनुमान को गलत साबित करते हुए पहले 6 महीनों  में ही बढ़त बना ली है।
कुछ अनुमानों के मुताबिक, साल 2024 के अंत तक सोना की कीमत 80 हज़ार से एक लाख रुपये तक पहुंच जाएगी इससे स्पष्ट है कि सोना लगभग ₹100000 प्रति 10 ग्राम वर्षांत के पूर्व ही हो सकता है।
    साल 2025 तक 10 ग्राम सोने की कीमत एक लाख तीस हजार से अधिक नहीं होगा। वर्तमान में कम मूल्य वाले स्टॉक पर निवेश बढ़ाना जारी है। परंतु टैक्सेशन को देखते हुए मध्यमवर्ग  पूंजी बाज़ार विनियोग के लिए मानसिक तौर से तैयार नहीं है।
    अर्थव्यवस्था का वित्तीय विश्लेषण एवं मध्य वर्ग के पूंजी निर्माण की दर को देखकर लगता है कि - "वह अपनी बचत विनियोजित में ही विनियोजित करेगा।"
मध्य वर्ग का पूंजी निवेश तब तक सोने में होता रहेगा जब तक कि सोने की कीमतों में 2015 और 2018 के बीच बीच की स्थिरता न बने। ऐसा लगता है कि 2025 में सोने के मूल्य में स्थिरता के संकेत नहीं हैं।
आपने देखा होगा 2019 में अचानक 56% की वृद्धि के साथ सोने में उछाल आना शुरू हो गया था। सोने की कीमतों में यह वृद्धि आंशिक  उतार-चढ़ाव के साथ 2030 तक जारी रहने की संभावना है।
*वर्तमान में सोने में उछाल का प्रतिशत मासिक रूप से 3.9 रहा है जबकि वर्तमान  तिमाही में  2.4 प्रतिशत वृद्धि मापी की गई।
6 माह एवं 1 वर्ष में हुई बढ़त पर नजर डालें तो  17.9% तथा 24.7% वृद्धि दर है।*
  *कुल मिलाकर  पिछले 5 वर्षों में कीमतों में बढ़ोतरी 117.7% के साथ उच्चतम स्थान पर है।*
   अगर सरकार आयकर पर अधिकतम सीमा को बढ़ा देती है तो देखा जा सकता है कि स्वर्ण कीमतों में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
   बहरहाल केवल अनुमान है, वास्तविकता तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है। सोने की कीमतों में स्थिरता की कल्पना फिलहाल करना गलत होगा।
   समसामयिक परिस्थितियों तो यही संकेत दे रही हैं।
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मंगलवार, जुलाई 02, 2024

भारत का मध्यम वर्ग ही भारत का सॉफ्ट पावर है

     6 दिसंबर 2011 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक भाषण में आर्थिक विकास में मध्य वर्ग की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा था, “एक कमजोर मध्य वर्ग पूरे देश के आर्थिक विकास को बाधित करता है। मजबूत विकास के लिए सशक्त मध्य वर्ग जरूरी है। जब कंपनियों के उत्पाद और सेवाओं को खरीदने में मध्यवर्गीय परिवारों की क्षमता घटने लगती है, तो अर्थव्यवस्था में ऊपर से नीचे तक सब कुछ गिरने लगता है। असमानता हमारे लोकतंत्र को विकृत करती है क्योंकि इससे वे चुनिंदा लोग ही अपनी आवाज उठा पाते हैं जिनके पास लॉबिंग और प्रचार के लिए पैसा होता है।”
   उपरोक्त समाचार शायद आपने पढ़ा होगा। यदि नहीं पढ़ा तो हू बहू काफी पेस्ट किया है। 
   किसी भी राष्ट्र की समृद्धि और उसके हैप्पीनेस इंडेक्स के सकारात्मक परिवर्तन के संदर्भ में बराक ओबामा कार्य है कथन पूरी तरह सही और सटीक माना जा सकता है 
  यहां हम मध्यम वर्ग को विकास के संदर्भ में विश्लेषित करेंगे।
   मिडिल क्लास की परिभाषा क्या है
उसे जनसंख्या और प्रति व्यक्ति वार्षिक आय के पैरामीटर पर कैसे समझा जाएगा इस पर बहुत सारी पाठ्य सामग्री
पब्लिक डोमेन पर पहले से ही मौजूद है
अतः इस पर चर्चा करना जरुरी नहीं। 
   मार्क्स से प्रभावित साहित्यकारों एवं विचारकों की अवधारणा जो भी कुछ हो
बदलते परिवेश में मध्य वर्ग के प्रति सकारात्मक विचार विमर्श की आवश्यकता है। 
   दावा यह किया जा रहा है कि साल 2047 भारत मिडिल क्लास वर्ग की आबादी 100 करोड़ से भी अधिक हो सकती है। 
   मध्य वर्ग की आबादी बढ़ने से भारतीय अर्थ तंत्र आमूल चूल परिवर्तन की नज़र आएगा। मध्य वर्ग की संख्यात्मक वृद्धि से टैक्स की परिधि में संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि भी होगी
  विश्व के मध्यवर्ग विशेषता है कि वह टैक्स पूरी इमानदारी के साथ चुकाता है
  मध्य वर्ग जहां एक ओर पूंजी पति संस्थाओं के लिए आक्सीजन है वहीं दूसरी ओर निम्न वर्ग के लिए तुरंत मिलने वाला शैल्टर भी हो जाता है।
  गरीब व्यक्तियों परिवारों के लिए फाइलों के सहारे प्राप्त होने वाली सुविधा एवं सहायता से पहले मध्य वर्ग की सहायता उस तक से पहले पहुंचती है।
    अब स्थिति यह है कि -" मध्यवर्ग कीमतों में अत्यधिक उतार चढ़ाव के कारण अपने मासिक और वार्षिक बजट में स्थिरता नहीं ला पा रहा है।"
  नरेंद्र मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने के पश्चात अमेरिका के मेडिसिन स्कवॉयर में अपनी भाषण में कहा था कि हम निजी सेक्टर के साथ-साथ व्यक्तिगत सेक्टर होगी संरक्षित करेंगे।
  इसका संकेत यह माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने आर्थिक परिपेक्ष्य में  मध्यम वर्ग के सॉफ्ट पावर का एम्पॉवरमेंट की कोशिश करने का संकेत दिया था।
   किसी भी देश की इकोनॉमी का आंतरिक पक्ष तभी चमकदार हो सकता जब उसे देश का मध्यम वर्ग मजबूत होता है 
   सवाल यह है कि भारत के संदर्भ में देखा जाए तो भारत का मध्यम वर्ग क्रमशः अपनी योग्यता कार्य कुशलता और संघर्ष शीलता के कारण भारत के संपूर्ण विकास में महत्वपूर्ण स्थान दर्ज कर लिया है।
  वर्ष 2013 में मध्यम वर्ग की औसत आमदनी 4.4 लाख रुपए वार्षिक थी
लेकिन वर्तमान में यह आय बढ़कर 13 लाख से अधिक हो चुकी है।
  स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के रिसर्च से पता चलता है कि 2047 तक भारतीयों की आमदनी 49.9 लाख रुपए सालाना हो जाएगी।
   2021 तक माध्यम वर्ग 432 मिलियन भारतीयों का समूह था जो जनसंख्या का लगभग 31% है
  वर्ष 2005 में जनसंख्या के सापेक्ष 14% लोग मध्य वर्ग में थे।
  उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि 
मध्य वर्ग का आकार बढ़ रहा है।
   भारत में सबसे निम्न मध्यम वर्ग को औसत दैनिक आय 17 अमेरिकी डॉलर तथा उच्च मध्य वर्ग की 100 अमेरिकी डॉलर  महत्वपूर्ण आंकड़ा है
औसत रूप से प्रत्येक मध्य वर्गी परिवार के पास काम से कम ₹8 लाख की संपत्ति अवश्य होती है।
   देखने में यह स्थिति बेहद आकर्षक और हैप्पीनेस इंडेक्स को ऊपर प्रदर्शित करने वाली लग रही है। परंतु भारत में प्राइस इंडेक्स में निरंतर परिवर्तन से मध्य वर्ग द्वारा कैपिटल जेनरेशन करने में कठिनाई उत्पन्न हो रही है।
  मध्य वर्ग की दूसरी हम कठिनाई है आयकर जो उसे पूंजी निर्माण के लिए सबसे बड़ी बाधा बनकर तैयार है।
   मध्यमवर्ग के पास चिकित्सा और शिक्षा पर असीमित खर्च की समस्या भी चिंता का विषय है। 
  अगर मौलिक जरूरतों जैसे चिकित्सा शिक्षा को ध्यान में रखा जाए तो सामान्य मध्य वर्गी व्यक्ति को परिवार में आकस्मिक बीमारियों के इलाज के लिए कर्ज यह पारिवारिक सहायता की आवश्यकता महसूस होती है।
परंतु दूसरा पहलू यह भी है कि मध्यमवर्गीय परिवार शो ऑफ करने में पीछे नहीं होते। उनके वैवाहिक एवं रिचुअल्स के आयोजनों पर होने वाले खर्च करने की प्रवृत्ति का फायदा बाजार बाकायदा उठा रहा है।
  मध्यमवर्ग को अगर अपना पारिवारिक अर्थ तंत्र मजबूत रखना है तो यह जरूरी है कि उसे अपने अनावश्यक खर्चो को सीमित कर देना चाहिए।
   उसकी यह बचत राष्ट्रीय बचत में शामिल होगी। जो स्वयं मध्य वर्गी एवं राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण होती है।
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