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सोमवार, नवंबर 08, 2021

भारत केवल एक भूमि नहीं बल्कि विचार भी है


  भारत एक भूखंड का नाम नहीं है बल्कि भारत एक विचार भी है इस विचार में अंतर्निहित है-
[  ] भारत की सभ्यता
[  ] सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार
[  ] आध्यात्मिक जीवन धारा
[  ] सांस्कृतिक वैभव
[  ] वैश्विक सहिष्णुता
       भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है कोई भी नकार नहीं सकता। भ्रांति वर्ष या उदाहरणों की साक्ष्यों की उपलब्धता ना होने के कारण यह कई बार कहा गया है कि भारत की सभ्यता का विकास बिंदु लगभग 5000 वर्ष पुराना है। इस संबंध में चिंतन एवं अध्ययन से पता चलता है कि भारत की सभ्यता का विकास वर्तमान मन्वंतर में 25000 वर्ष पूर्व हुआ। इसके पूर्व भारतीय सभ्यता वनचारी सभ्यता थी इसमें कोई शक नहीं। वनचारी सभ्यता का अर्थ समझने के लिए श्रीयुत श्रीधर वाकणकर को संदर्भित किया जा सकता है। उनकी खोज से स्पष्ट हो जाता है कि मध्य भारत में भी प्राचीन मानव के आवासीय प्रमाण मिले हैं। और यह प्रमाण लगभग डेढ़ लाख से दो लाख वर्ष पूर्व के हैं। यहां यह प्रमाण नहीं मिलते कि भारत में मनुष्य प्रजाति का प्राणी अफ्रीका से आया था। इसके पीछे मेरा अवलोकन है कि-"जहां मानव प्रजाति के पूर्व अन्य स्पीशीज के सृजन का अवसर प्रकृति ने दिया वहां कालांतर में मानव सभ्यता का विकास हुआ है। अब यह कहना सर्वथा संदिग्ध होगा कि- अफ्रीका से मानव प्रजाति का झील विकसित हुआ"
    डायनासोर जो मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के नजदीक स्थित जिला डिंडोरी के जंगलों में पाए जाते थे। इस बात की गवाही देते हैं वहां मिले फॉसिल। अर्थात डायनासोर  और उससे छोटे जीवो का अस्तित्व भारत में रहा है ऐसी घटनाएं और जगह भी हो सकती हैं इससे असहमति नामुमकिन है। सुधि पाठक जन इसका तात्पर्य है कि जीव विकास के लिए अनुकूल परिस्थिति जब मध्यप्रदेश में करोड़ों साल पूर्व रही है तो मानव जीवन के अस्तित्व में आने की परिस्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता।
[  ] सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार
शनै शनै वनवासी मानव जीवन ने अपने आप को विकसित किया और यह विकास बौद्धिक कारणों से कर लिया। जिसका का प्रथम चरण का समूह में रहना आत्मरक्षा के प्रयास का नाम जैसे गुफाओं में रहना आदि आदि। फिर धीरे-धीरे समूह का विस्तार हो जाना यह प्रक्रिया मेरे अनुमान से लगभग पच्चीस से पचास हजार वर्ष में पूर्ण हुई होगी। इस प्रकार क्रमश: परंतु धीरे-धीरे सभ्यता विकसित होती रही।
[  ] आध्यात्मिक जीवन धारा-
भारत की आध्यात्मिक जीवन धारा  की रीढ़ की हड्डी है । भारत में जिन सिद्धांतों को हजारों साल पहले प्रतिपादित कर दिया वे मानवता के सिद्धांत थे । द्वैत अद्वैत के मूल आधार पर विश्व बंधुत्व का उद्घोष करता हुआ यह मंत्र सर्वे जना सुखिनो भवंतु मानव संस्कृति का मूल आधार है। इसके बिना कोई भी संस्कृति दीर्घकाल तक व्यवस्थित और स्थापित नहीं रह सकती। भारत का अध्यात्म कहता है कि जब मानवीय मूल्यों का संरक्षण करना हो तो शत्रु को भी प्रोटेक्शन दो और जब न्याय का महत्व रेखांकित करना हो तो महाभारत करो। शब्दों का खेल नहीं बल्कि हमारी सभ्यता की मूलभूत विशेषता है। महाभारत क्यों हुआ कृष्ण ने दुर्योधन से न्याय हित  में कुल 5 गांव मांगे थे दुर्योधन मान लेते पांडव युद्ध के लिए आगे ना बढ़ते। न्याय को न करने वाला सदैव शूलों की शैया पर लेटता है । वरदान जो अभिशाप बन जाता है इच्छा मृत्यु का वरदान बीच में जैसे पवित्र व्यक्ति के लिए अभिशाप बन गया। अभिशाप इसलिए कि नुकीले वाणों से बनी सैया पर एक लंबी अवधि तक उन्हें लेटे रहना पड़ा। उन्होंने द्रोपती के चीरहरण के समय महिला के हित में एक भी आवाज ना उठाई। वास्तव में यह एक संदेश भी है कि यदि आप कमजोर के हितों के रक्षक नहीं है तो आपको उसका परिणाम अवश्य मिलेगा। अफगानिस्तान की परिस्थितियों को देखिए जुल्म जुर्म और आक्रांता का दस्तावेज बन गया है अफगानिस्तान। इतिहास में कभी भी इन्हें सकारात्मक नजरिए से कोई नहीं देखेगा। मुझे तो संदेह है कि ऐसी विचारधारा भी बहुत जल्दी समाप्त हो जाएगी जो कमजोर वर्ग के लिए हिंसक हो। आपने देखा होगा माया इंका,मिस्त्र की सभ्यता
,मेसोपोटामिया की सभ्यता,सुमेरिया की सभ्यता,असीरिया की सभ्यता,चीन की सभ्यता,यूनान की सभ्यता,रोम की सभ्यता समाप्त हुई इसके पीछे उनकी आध्यात्मिक विचारधारा में कमियां निश्चित रूप से मौजूद रही है।
[  ] सांस्कृतिक वैभव-
भारत के सांस्कृतिक विकास में धर्म जो संप्रदाय नहीं है,मानवीय मूल्य, आध्यात्मिक दर्शन, मानवता के प्रति प्रतिबद्धता, जन के अधिकारों जैसे तत्वों का न्याय और निष्ठा का समावेशन किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप हमारा सांस्कृतिक स्वरूप वैभवशाली है। और यही वैभव आकृष्ट करता है दुनिया को।
[  ] वैश्विक सहिष्णुता
क्योंकि भारत में विश्व बंधुत्व का समावेश है अतः भारत का सदैव प्रयास होता है कि विश्व के साथ संबंध सकारात्मक रहे। इसके उदाहरण सम्राट अशोक के काल के पूर्व द्वापर और उसके पूर्व त्रेता युग के इतिहास में परिलक्षित होता है।
    इंडोनेशिया बाली जावा सुमात्रा श्रीलंका इत्यादि क्षेत्रों की यात्रा कर बुद्ध ने भी यही साबित किया है।
   अखंड भारत यही है इस का भौगोलिक स्वरूप राजनीतिक स्वरूप सामाजिक एवं आर्थिक स्वरूप भले ही सीमा में बंधा हुआ हो परंतु वैचारिक रूप से जहां एक भारतीय जाता है वहां एक भारत जन्म ले लेता है। अन्य संप्रदायों को बल छल कपट और लालच देकर अपनी संस्कृति और पूजा प्रणाली वितरित करते हुए हमने देखा है आप भी देखते हैं। लेकिन भारतीय ऐसा नहीं करते। भारतीय सनातन के विस्तार के लिए कार्य नहीं करते। क्योंकि सनातन में सन्निहित मूल्यों का क्षरण नहीं होता। अगर आप अमृत की परिभाषा जानना चाहते हैं तो सनातन के मूल्यों को देख सकते हैं। सनातन को स्वीकार नाना स्वीकार ना यहां यह सवाल नहीं है और ना ही मैं सनातन का प्रचारक हूं पर सनातन व्यवस्था अनूठी सामाजिक व्यवस्था है क्यों अनादि है अनंत है।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

शुक्रवार, नवंबर 05, 2021

पलारी पटाखे और प्रदूषण

न्यूज़ चैनल हल्ला मचाते हुए प्रदूषण पर बेहद टेंशन क्रिएट कर रहे हैं। यह उनकी जिम्मेदारी है और वह बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। परंतु दिवाली के पटाखे पीएम 2.5 के लिए उत्तरदाई है अथवा एयर पोलूशन कास्ट 999 जो लगभग 1000 है यह चिंता जायज है। परंतु दुर्भाग्य इस बात का कि केवल दिवाली की आतिशबाजी को ही उत्तरदायित्व दिया जाता है। (मेरे मित्र समीर शर्मा अनिवासी भारतीय दुबई से इन दिनों अयोध्या और भारत भ्रमण के लिए आए हुए हैं) ने बताया कि जल्द ही अपनी लद्दाख यात्रा का विवरण सामने रखेंगे परंतु मोटी तौर पर सोनम वांगचुक से मुलाकात के बाद उन्होंने पाया कि पलारी को खाद में बदलने का सफल प्रयोग उन्होंने अपनी आंखों से देखा है।
     इस संदर्भ में सोनम के प्रयासों को हाईलाइट करने एवं उसे जनता के बीच लाने की जरूरत है। यहां असहमति बिल्कुल नहीं है कि प्रदूषण में पटाखा जलाना एक अपने आप में प्रदूषण का कारक है। दिल्ली में लगभग सवा करोड़ गाड़ियों से उत्सर्जित प्रदूषण 41% पलारी जलने से 22% धूल से 35% शेष अन्य कारणों से होता है, पलारी का प्रदूषण  3-4 महीनों तक प्रदूषित करता  है।। स्थाई तौर पर फैक्ट्रियां  16% से अधिक स्थाई तौर से प्रदूषण दूषित करने की जिम्मेदार पाई गई है । यह 365 दिनों का गुणा भाग है प्रतिशत के गणितीय योग में कुछ अंतर आ सकता है परंतु मेरा उद्देश्य केवल यह सिद्ध करना है कि पटाखे विषाक्त नुकसानदायक हैं परंतु बाकी मुद्दों पर भी सुप्रीम कोर्ट को स्ट्रिक्ट गाइडलाइन जारी करनी चाहिए और प्रदेश सरकारों को इसका कड़ाई से पालन कराना चाहिए। एक रिपोर्ट में यह देखा गया कि जिन महानगरों में प्रदूषण की मात्रा अधिक रही वहां कोविड-19 सर्वाधिक प्रभावी रहा है। अतः सरकार एवं जनता दोनों को ही मिलकर स्वास्थ्य के मद्देनजर कठोर निर्णय लेने चाहिए। सचमुच में मामला 362 दिनों का है प्रदूषण रोकने के लिए स्थाई रूप से उठाए गए कदमों की पतासाजी की जाए तो पता चलता है कि ना तो हमने और ना ही व्यवस्था ने कोई कठोर कदम अब तक उठाए हैं। क्या होने चाहिए कठोर कदम आइए देखते है
[  ] पटाखा निर्माण करने वाली कंपनियों को केवल ग्रीन पटाखे निर्माण की अनुमति दी जावे।
[  ] पलारी जलाने के स्थान पर कोई स्थाई व्यवस्था जो पूसा संस्थान अथवा सोनम वांगचुक द्वारा की जा रही प्रयोग पर आधारित हो करना अब बिल्कुल अनिवार्य है।
[  ] वाहनों के अत्यधिक उपयोग पर हमें यानी आम जनता को रूप लगाना चाहिए यह स्वायत्त अनुशासन की श्रेणी में आएगा।
[  ] इलेक्ट्रिकल व्हीकलस की आयात एवं उनके संचालन अथवा भारत में असेंबल करने के लिए तेजी से सकारात्मक कार्य अगले 2 साल में कर लेने से हम प्रदूषण स्तर को ग्लास्गो सम्मिट में भारत के प्रधानमंत्री जी की उद्घोषणा को सफल बना सकते हैं।
[  ] छोटे नगरों में ओपन नाली एवम नालों कवर करना चाहिए स्मार्ट सिटी परियोजनाओं वाले शहरों में तो यह कार्य तुरंत हो सकता है
[  ] प्रदेश सरकारों को स्मार्ट ग्राम प्रबंधन कार्यक्रम भी चलाना चाहिए।
[  ] माननीय सुप्रीम कोर्ट को पूरे देश भर के लिए जारी गाइडलाइन को एक बार रिव्यु करना जरूरी है। यह कार्य मोटो भी हो सकता है या किसी पीआईएल के जरिए भी।
[  ] उन प्रदेशों पर विशेष रुप से दबाव बनाया जाए जो ग्रीन पटाखे बनाने वाली कंपनियों को अंधाधुंध लाइसेंस दे रहे हैं।
समस्या को जड़ से काट दिए जाने के प्रयास होने चाहिए ना की अनर्गल प्रलाप होना चाहिए। वैश्विक स्तर पर टीवी चैनलों पर होने वाली आरोप-प्रत्यारोप की बहस से उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण है आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए सामाजिक वैज्ञानिक एवं प्रशासनिक एकात्मता का। दीपोत्सव के 4 दिन महत्वपूर्ण है परंतु बाकी प्रयास भी जरूरी है

शनिवार, अक्टूबर 30, 2021

जश्ने जमानत और ड्राइवर अनिल का चिंतन


💐💐💐💐
भारत का इतिहास और कारागारों का इतिहास महान घटनाओं का साक्षी है। आज एक और महान घटना घटित हुई मेरा ड्राइवर अनिल बर्मन इस घटना को लेकर बेहद चकित है। अनिल का कहना है कि आर्यन खान ने ऐसा कौन सा महान कार्य किया जिसके कारागार से रिलीज होने पर मन्नत में लोगों की भीड़ जमा हुई है।
यद्यपि उत्तर देने के लिए मैं बौद्धिक स्तर पर स्वयं को सक्षम नहीं पा रहा हूं परंतु उत्तर तो देना था। तो मैं आप सब के विचार समझने के लिए यह विषय रख देता हूं आपके सामने।
  जमानत पर रिहाई के बाट नशा खोर बच्चा जिसकी उम्र 23 साल है के स्वागत के लिए जनता का सड़कों पर आना अपराध के ग्लैमरस होने की प्रक्रिया है।
   एक झूठी खबर के आधार पर भारत से लेकर पूरे विश्व में यह खबर फैल जाना कि एक संप्रदाय विशेष खतरे में है जबकि इस देश का प्रधानमंत्री महामहिम पोप जॉन पौल से मिलने वेटिकन सिटी गया हो यह खबर मीडिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि एक नशा करने वाला आज कारागार से मुक्त हुआ है।
    राष्ट्र की प्रगति के समाचारों के बीच ड्रग एडिक्ट्स के अपराधों को इस तरह से पोट्रेट करना इस देश के कुछ एक मीडिया समूह के मानसिक स्तर का खुला प्रदर्शन है। वह तो इस घटना को नवजात कृष्ण के बंदी ग्रह से बाहर आने के बराबर साबित करने पर बदस्तूर कार्य कर रहे हैं। साथियों इस राष्ट्र की मजबूरी क्या है समझ से परे है। एक दसवीं पास वाहन चालक जब इस तरह के घटनाक्रम से व्यथित हो सकता है तो आम आदमी जो संभवत है उससे कुछ ज्यादा पढ़ा लिखा होगा संकुचित विचारधारा लेकर इतना उत्साहित क्यों है?
   इस देश में नशा करने वाली पीढ़ी को इतना श्रेष्ठ दर्जा देना उस पर दिनभर खबर चलाना हमारा दुर्भाग्य है। मैं आज अपने वाहन चालक के सवाल से आहत हूं सोचता हूं क्या जवाब दूं आप मेरी मदद कीजिए

बुधवार, अक्टूबर 27, 2021

क्यों नहीं खेलना चाहिए पाकिस्तान के साथ क्रिकेट


   पाकिस्तान एक संप्रदाय सापेक्ष राष्ट्र है। इस राष्ट्र की बुनियादी शैक्षणिक व्यवस्था केवल और केवल इस्लाम आधारित है। पाकिस्तान एक ऐसा राष्ट्र बन कर रह गया है जो विश्व की किसी भी संस्कृति से अब मेल नहीं खाता। इस देश से कोई भी राष्ट्र और मानवतावादी दृष्टिकोण के पक्षधर पाकिस्तान की सामाजिक परिस्थितियों से कभी भी समन्वय स्थापित कर सकने में सफल नहीं रहेगी। मुस्लिम एक एकात्मवाद जिसे मुस्लिम ब्रदरहुड या मुस्लिम उम्मा माना जा सकता है वैश्विक परिदृश्य में किसी भी स्तर पर विश्व के अन्य देशों के साथ सामान्य दृष्टि तब तक कायम नहीं कर सकता जब तक कि पाकिस्तान अपनी संप्रदायिक सोच को जबरन दूसरे आध्यात्मिक चिंतन पर स्थापित करने की कोशिश करता रहेगा। हाल ही में पाकिस्तान के गृह मंत्री ने भारत-पाकिस्तान के टी20 मैच में पाकिस्तान की विजय को इस्लाम की विजय कहा है।
इतना ही नहीं पाकिस्तान के अल्प बुद्धि प्रधानमंत्री ने भी कश्मीर को लेकर कटाक्ष किया है। जहां तक मोहम्मद शमी का सवाल है हिंदुस्तान का यह अनोखा खिलाड़ी भारत का ही वफादार खिलाड़ी तब तक कहा जाएगा जब तक कि वह हिंदुस्तान की अस्मिता और एकात्मता को जिंदाबाद करता रहेगा। शमी को ना तो किसी ने ट्रोल किया है और ना ही आज तक किसी भी मुस्लिम खिलाड़ी को धर्म के आधार पर भारत में किसी भी तरह की गैर बराबरी रखी है। परंतु  पाकिस्तान की 70 साल पुरानी क्रिमिनल सोच का है और वामपंथी मीडिया की बदतमीजी का एजेंडा सर्वव्यापी है जिसने भारत कि रियल सेक्यूलर इमेज को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है।
   कुल मिलाकर पाकिस्तान एक ऐसा चूर्ण बेच रहा है जो एक मानसिक दिवालियापन और घोर असामाजिक असहिष्णु वातावरण का जनक है। खेलकूद स्पर्धा जैसे मुद्दे ना तो इस्लामिक होते हैं ना ही अन्य किसी संप्रदाय से संबंधित। परंतु राजनीतिक स्तर पर इस तरह के वार्तालाप से यह सुनिश्चित हो चुका है कि पाकिस्तान की राजनैतिक परिस्थितियां पाकिस्तान के लिए आत्मघाती एवं दुर्भाग्यपूर्ण है।
    इन परिस्थितियों को देखते हुए न केवल भारत बल्कि मानवतावादी विश्व को चाहिए कि पाकिस्तान के साथ सांस्कृतिक संबंधों को भी समाप्त कर दिया जावे। परंतु यह संभव नहीं है.
   फ्रांस और अन्य गैर इस्लामिक राष्ट्रों ने जिस तरह पाकिस्तान के लोगों की मानसिक अतिचार के विरुद्ध आवाज बुलंद की है उस पर अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र भी मौन साध कर रखे हैं इसका आशय यह है कि अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र भी मानवता वादी चिंतन को बढ़ावा देने में आगे आ रहे हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सहित उन सभी संस्थानों को पाकिस्तान के साथ संपर्क तुरंत समाप्त कर देना चाहिए।

बुधवार, अक्टूबर 13, 2021

पंडों के खिलाफ भड़काना प्रगतिशील लेखकों का प्रमुख एजेंडा

 
      सनातन संस्कृति में प्रयागराज के पंडों का अपना अलग महत्व है। हिंदू धर्म से अन्य संप्रदाय में जाने वाले लोगों के रिकॉर्ड रखने के लिए तथा उन्हें यह अवगत कराने के लिए कि वे लोग किस वंश से संबंध रखते हैं जैसे महत्वपूर्ण कार्य पंडे ही किया करते थे। यह कार्य एक सुनियोजित व्यवस्थित ढंग से निष्पादित होता है। पंडे गांव गांव जाकर वंश का रिकॉर्ड रखे हैं । सनातन व्यवस्था के तहत पूर्वजों के संबंध में विस्तृत जानकारी का मेंटेनेंस या संधारण सामान्य दिनों में अथवा श्राद्ध पक्ष में भी होता है। पंडों का कार्य देशभर के गांव में घर घर जाकर डाटा कलेक्शन का कार्य होता था। इस कार्य में किसी भी तरह की सरकारी इमदाद या प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती थी। आप जब अपने पंडे के पास जाइएगा
आपको आपके परिवार का इतिहास उपलब्ध हो जाएगा।
    और यह जानकारी बड़ी सटीक तथा प्रभावी होती थी। वर्तमान में भी बहुत सारे पंडे इस व्यवस्था को निरंतरता दे रहे। परंतु वामपंथी सहित इस संदर्भ में बेहद नकारात्मक और गंदे तरीके से सनातन को अपमानित करने के लिए लगातार लिख पढ़ रहा है और अभी भी यह सिलसिला रुका नहीं है। काफी हाउस में सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए साहित्य का सृजन कर रहे हैं और उनका मूल विषय सनातन धर्म के विरोध अलावा और कुछ नहीं। इस आर्टिकल के माध्यम से सभी सनातनीयों को साफ संदेश दे रहा हूं ऐसे किसी भी बुरे प्रयास के खिलाफ जागृत हो और सनातन के प्रति अपना इसने बरकरार रखें
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

सोमवार, अक्टूबर 11, 2021

अवतरण दिवस और जन्म दिवस : आनंद राणा

कल एक वरेण्य संपादक श्रीयुत काशीनाथ शर्मा  जी ने अवतरण दिवस और जन्म दिवस को लेकर मेरी वाॅल पर प्रकारांतर से द्वंद्वात्मक टिप्पणी के साथ जिज्ञासा व्यक्त की। मैंने उत्तर देने का प्रयत्न किया-:
महात्मन्, आप नाहक विरोधाभास में हैं और अंर्तद्वंद्व की अवस्था में है।, जबकि दोनों के प्रसंग और संदर्भ पृथक - पृथक होते हुए भी अद्वैत हो जाते हैं। आचार्य शंकर ने दो सत्य कहे हैं एक पारमार्थिक दूसरा व्यावहारिक। मैं पारमार्थिक दृष्टि की बात कर रहा हूँ जो परम सत्य है। आपकी दृष्टि व्यावहारिक हो सकती है जो आभास मात्र है।
"मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पय:, जातौ जातौ नवाचारा: नवा वाणी मुखे मुखे.".. परम आदरणीय महोदय जी, उपर्युक्त दो पंक्तियाँ सार्वभौमिक और सार्वजनीन हैं और क्या सही माने? इस बात का पटाक्षेप कर देतीं हैं तथापि आपने जिज्ञासा व्यक्त की है,तो ध्यातव्य हो कि अद्वैत का द्वैत भाव आत्मा और शरीर के रुप में अभिव्यक्त होता है तो आत्मा अजर, अमर है उसी के आलोक में अवतरण है जबकि शरीर का जन्म है तो मृत्यु भी है आत्मा का शरीर के साथ आगमन अवतरण हो वहीं शरीर का जन्म यद्यपि इस पर एक संगोष्ठी हो सकती है पर समय ही व्यर्थ होगा और अनावश्यक छिद्रान्वेषण?चूंकि आपने मुझे पोस्ट किया है इसलिए आदि शंकराचार्य जी कि यह टीका प्रेषित है "जायते  न उत्पद्यते जनिलक्षणा वस्तुविक्रिया न आत्मनो विद्यते इत्यर्थः। तथा  न म्रियते वा । वाशब्दः चार्थे। न म्रियते च इति अन्त्या विनाशलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते।  कदाचिच्छ ब्दः सर्वविक्रियाप्रतिषेधैः संबध्यते न कदाचित् जायते न कदाचित् म्रियते इत्येवम्। यस्मात्  अयम्  आत्मा  भूत्वा  भवनक्रियामनुभूय पश्चात्  अभविता  अभावं गन्ता  न भूयः  पुनः तस्मात् न म्रियते। यो हि भूत्वा न भविता स म्रियत इत्युच्यते लोके। वाशब्दात् न शब्दाच्च अयमात्मा अभूत्वा वा भविता देहवत् न भूयः। तस्मात् न जायते। यो हि अभूत्वा भविता स जायत इत्युच्यते। नैवमात्मा। अतो न जायते। यस्मादेवं तस्मात्  अजः  यस्मात् न म्रियते तस्मात्  नित्य श्च। यद्यपि आद्यन्तयोर्विक्रिययोः प्रतिषेधे सर्वा विक्रियाः प्रतिषिद्धा भवन्ति तथापि मध्यभाविनीनां विक्रियाणां स्वशब्दैरेव प्रतिषेधः कर्तव्यः अनुक्तानामपि यौवनादिसमस्तविक्रियाणां प्रतिषेधो यथा स्यात् इत्याह  शाश्वत  इत्यादिना। शाश्वत इति अपक्षयलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते। शश्वद्भवः शाश्वतः। न अपक्षीयते स्वरूपेण निरवयवत्वात्। नापि गुणक्षयेण अपक्षयः निर्गुणत्वात्। अपक्षयविपरीतापि वृद्धिलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते पुराण इति। यो हि अवयवागमेन उपचीयते स वर्धते अभिनव इति च उच्यते।  अयं  तु आत्मा निरवयवत्वात् पुरापि नव एवेति  पुराणः  न वर्धते इत्यर्थः। तथा  न हन्यते । हन्तिः अत्र विपरिणामार्थे द्रष्टव्यः अपुनरुक्ततायै। न विपरिणम्यते इत्यर्थः।
हन्यमाने  विपरिणम्यमानेऽपि  शरीरे । अस्मिन् मन्त्रे षड् भावविकारा लौकिकवस्तुविक्रिया आत्मनि प्रतिषिध्यन्ते। सर्वप्रकारविक्रियारहित आत्मा इति वाक्यार्थः। यस्मादेवं तस्मात् उभौ तौ न विजानीतः इति पूर्वेण मन्त्रेण अस्य संबन्धः।।
य एनं वेत्ति हन्तारम् इत्यनेन मन्त्रेण हननक्रियायाः कर्ता कर्म च न भवति इति प्रतिज्ञाय न जायते इत्यनेन अविक्रियत्वं हेतुमुक्त्वा प्रतिज्ञातार्थमुपसंहरति" "वासांसि वस्त्राणि जीर्णानि दुर्बलतां गतानि यथा लोके विहाय परित्यज्य नवानि अभिनवानि गृह्णाति उपादत्ते नरः पुरुषः अपराणि अन्यानि तथा तद्वदेव शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति संगच्छति नवानि देही आत्मा पुरुषवत् अविक्रिय एवेत्यर्थः।।
कस्मात् अविक्रिय एवेति आह".... अवतरण का तादात्म्य आत्मा से है इसलिए आपकी शंकाएं और आशंकाएँ निर्मूल हैं। फिर जाकी रही भावना जैंसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैंसी।
इसलिए दोनों अभिव्यक्तियाँ अपने - अपने स्थान पर सही हैं।
🙏🙏🙏
डॉ. आनंद सिंह राणा 
🙏🙏🙏

गुरुवार, सितंबर 30, 2021

दलित एक अमानवीय शब्द है

    
बाबा भीमराव अंबेडकर और बाबू जगजीवन राम को देखकर लगता है कि यह हमारे देश के जीवंत नायक हैं। संविधान ने जाति और ट्राईबल को शेड्यूल में रखकर उन्हें शेड्यूल्ड कास्ट शेड्यूल्ड ट्राइब की श्रेणी में विभाजित किया है। सुप्रीम कोर्ट भी यह चाहता है कि ऐसे अपमान कारी शब्दों का प्रयोग ना किया जाए जिससे किसी वर्ग को लज्जा भाव का एहसास हो। मैं भी इस तथ्य का पुरजोर समर्थन करता हूं। स्पष्ट रूप से बताना चाहता हूं कि दलित शब्द एक ऐसी भावना को जन्म देता है जो बदलते भारत की सुखद तस्वीर को घृणा में परिवर्तित कर देती है। इतना ही नहीं दलित शब्द का इस्तेमाल कर सियासत का पारा गर्म या ठंडा करने वाले लोगों के लिए भी यह सर्वथा अनुचित कदम है। 
यहां यह समझने की जरूरत है कि एट्रोसिटी एक्ट प्रभावशाली है और इसका प्रयोग करते हुए इस दलित शब्द को किसी या किन्ही जाति वर्ग को संबोधित करना सामंतवादी प्रकृति का परिचय है। संपूर्ण विशेष जातियों को जिन्हें शेड्यूल्ड कर रखा है को दलित शब्द कहकर उन संवर्ग के लोगों के मन को दुख पहुंचाने वाली बात है। महा मना भीमराव अंबेडकर जी एवं बाबू जगजीवन राम जी के व्यक्तित्व एवं उनके कृतित्व के अलावा बहुत सारे ऐसे व्यक्तित्व हैं जो वाकई हमारे आईकान है और हमें ऐसे  व्यक्तियों की जरूरत होगी भारत को महान बनाने के लिए। मैं जातीय व्यवस्था के बहुत सारे पहलुओं पर निरापद मार्ग का पक्षधर हूं। वैसे बहुत इंतजार नहीं करना होगा मध्यकाल एवं उसके उपरांत बनाई गई है जाति व्यवस्था बहुत शीघ्र समाप्त हो जाएगी। 


दलित एक अमानवीय शब्द है इसे भाषा से ही पथक करना होगा प्रत्येक विशेष वर्ग का व्यक्ति मानव है ना कि वह दलित है या सवर्ण है बल्कि वह भारतीय है

इस आर्टिकल में अभी इतना ही विस्तार से अगले आर्टिकल की प्रतीक्षा कीजिए

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