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रविवार, अक्टूबर 25, 2020
शनिवार, अक्टूबर 24, 2020
वीरांगना रानी चेन्नम्मा आलेख :- आनंद राणा जबलपुर
"जब तक तुम्हारी रानी की नसों में रक्त की एक भी बूंद है,कित्तूर को कोई नहीं ले सकता" - वीरांगना रानी चेन्नम्मा🙏"आईये अवतरण दिवस पर गर्व के साथ नमन करें.. भारत की प्रथम वीरांगना कित्तूर की रानी - चेन्नम्मा को जिन्होंने 11 दिन लगातार अंग्रेजों को पराजित किया और 12 वें अपने लोगों के ही धोखा देने से वो पराजित हुईं ..आईये जानते हैं कि वीरांगना रानी चेन्नम्मा का गौरवशाली इतिहास 🙏🙏
1. रानी चेन्नम्मा का परिचय-
रानी चेन्नम्मा भारत की स्वतंत्रता हेतु सक्रिय होनेवाली पहली वीरांगना थीं । सर्वथा अकेली होते हुए भी उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य पर दहशत जमाए रखी। अंग्रेंजों को भगाने में रानी चेन्नम्मा को सफलता तो नहीं मिली, किंतु ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध खड़ा होने हेतु रानी चेन्नम्मा ने अनेक स्त्रियों को प्रेरित किया। कर्नाटक के कित्तूर रियासत की वह वीरांगना चेन्नम्मा रानी थी। आज वह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के नामसे जानी जाती है।
2.रानी चेन्नम्मा का बचपन-
रानी चेन्नम्मा का जन्म काकती गांव में (कर्नाटक के उत्तर बेलगांव के एक देहात में )23 अक्टूबर 1778 में हुआ। बचपन से ही उसे घोड़े पर बैठना, तलवार चलाना तथा तीर चलाना इत्यादि का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ । पूरे गांव में अपने वीरतापूर्ण कृत्यों के कारण से वह परिचित थी ।रानी चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के शासक मल्लसारजा देसाई से 15 वर्ष की आयु में हुआ । उनका विवाहोत्तर जीवन सन् 1816 में उनके पति की मृत्यु के पश्चात एक दुखभरी कहानी बनकर रह गया । उनका एक पुत्र था, किंतु दुर्भाग्य उनका पीछा कर रहा था । सन् 1824 में उनके पुत्र ने अंतिम सांस ली, तथा उस अकेली को ब्रिटिश सत्ता से लड़ने हेतु छोड़कर कर चला गया ।
3.अंग्रेजों द्वारा व्यपगत की नीति के अंतर्गत रानी चेन्नम्मा की रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के लिए अल्टीमेटम दिया - कित्तूर रियासत धारवाड़ जिलाधिकारी के प्रशासन में आ गया ।चॅपलीन उस क्षेत्र के कमिश्नर थे । दोनों ने नए शासनकर्ता को नहीं माना, तथा सूचित किया कि कित्तूर को अंग्रेज़ों का शासन स्वीकार करना होगा ।
4..वीरांगना रानी चेन्नम्मा का अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध-
अंग्रेजों के मनमाने व्यवहार का रानी चेन्नम्मा तथा स्थानीय लोगों ने कडा विरोध किया । ठाकरे ने कित्तूर पर आक्रमण किया । इस युद्ध में कई ब्रिटिश सैनिकों के साथ ठाकरे मारा गया । एक छोटे शासक के हाथों अपमानजनक हार स्वीकार करना अंग्रेजों के लिए बड़ा कठिन था । उन्होंने मैसूर तथा सोलापुर से प्रचंड सेना लाकर उन्होंने कित्तूर को घेर लिया ।
रानी चेन्नम्मा ने युद्ध टालने का अंत तक प्रयास किया, उसने चॅपलीन तथा बॉम्बे प्रेसिडेन्सी के गवर्नर से बातचीत की, जिनके प्रशासन में कित्तूर था । उसका कुछ परिणाम नहीं निकला ।आखिरकार परीक्षा की घड़ी आ ही गई और रानी चेन्नम्मा युद्ध की घोषणा कर दी । 12 दिनों तक पराक्रमी रानी तथा उनके सैनिकों ने उनके किले की रक्षा की, किंतु अपनी आदत के अनुसार इस बार भी देशद्रोहियों ने तोपों के बारुद में कीचड़ एवं गोबर भर दिया । 1824 में रानी की हार हुई ।उन्हे बंदी बनाकर जीवनभर के लिए बैलहोंगल के किले में रखा गया । रानी चेन्नम्मा ने अपने बचे हुए दिन पवित्र ग्रंथ पढने में तथा पूजा-पाठ करने में बिताए । सन् 1829 में उनकी मृत्यु हुई ।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ब्रितानियों के विरुद्ध युद्ध भले ही न जीत सकी, किंतु विश्व के इतिहास में उनका नाम अजर अमर हो गया । कर्नाटक में उनका नाम शौर्य की देवी के रुप में बडे आदरपूर्वक लिया जाता है ।रानी चेन्नम्मा एक दिव्य चरित्र बन गई हैं । स्वतंत्रता आंदोलन में, जिस धैर्यसे उसने अंग्रेज़ों का विरोध किया, वह कई नाटक, लंबी कहानियां तथा गानों के लिए एक विषय बन गया । लोकगीत एवं लावनी गाने वाले जो पूरे क्षेत्र में घूमते थे,स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जोश भर देते थे ।
दुर्भाग्य देखिए कि तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों और एक राजनैतिक दल विशेष के समर्थक परजीवी इतिहासकारों ने इतिहास लिखते समय - भारत की प्रथम वीरांगना कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के स्वतंत्रता के लिए किए गए बलिदान को हाशिये में भी नहीं रखकर जो अपराध किया है उसका दंड उनको भुगतना ही पड़ेगा..परंतु अब हम लोग तो न्याय करें!.. पुनः वीरांगना रानी चेन्नम्मा के अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है 🙏 🙏 🙏 प्रेषक - डॉ आनंद सिंह राणा, इतिहास का एक विद्यार्थी, इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत 🙏🙏🙏🙏🙏
सोमवार, अक्टूबर 19, 2020
कोविड के बाद का भारत
कोविड19 के बाद का भारत..!
रोजगार के लिए प्रवास स्वाभाविक प्रक्रिया है। इतिहास में भी यह सब कुछ दर्ज है...और यहां रोजगार के लिए प्रवास के बाद कोविड19 के बाद घर और गांव के महत्व को महसूस किया होगा आपने भी
गांघी जी भी याद आए होंगे न ? जो कुटीर उद्योगों के प्रबल समर्थक थे । बापू के उसी मार्ग को आत्मनिर्भरता कही जा सकती है । जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने अंगीकार किया है । परन्तु कोविड संकट जूझ रहे भारत को सम्हलना अभी एकाएक ज़रा कठिन है । परन्तु वैक्सीन आने के बाद अर्थात लगभग 6 माह बाद केंद्र सरकार एवम राज्य सरकारों को तेज़ी से काम करना होगा । उसे यहाँ एक ट्रष्टी एवम प्रमुख प्रबंधक के रूप सक्रिय होने की ज़रूरत होगी ।
सरकार छोटे से छोटे उत्पादन के लिए स्थानीय पृष्ठभूमि को देखते हुए उत्पादन को प्रमोट करें और बाजार उपलब्ध कराएं तो निश्चित तौर पर रोजगार की संभावना सुदूर क्षेत्रों में बढ़ेगी !
मजदूरों का गांव से पलायन अधिकतम 500 वर्ग किलोमीटर के आसपास होना चाहिए ताकि एक या 2 दिन के अंदर पूरा का पूरा परिवार वापस घर पहुंच सके। अब आप सवाल करेंगे कि क्या भारत सरकार की औद्योगिक नीति में बदलाव की जरूरत है । जी हां भारत सरकार की ही नहीं बल्कि राज्य सरकारें भी व्यवसायिक एवम औद्योगिक नीति का गंभीरता से पुनरीक्षण करें इसमें परिवर्तन अवश्यंभावी है ।
आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए समस्या का कारण होगा पर कैपिटा इनकम और इकोनामी में गिरावट की संभावना है । कोविड19 के बाद उत्पादन और उनका विपणन करने के लिए सरकार को बहुत तेजी से समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। कुछ बाजार विज्ञानी मानते हैं कि- क्रय शक्ति कमजोर होने से स्थानीय उत्पादों के लिए बाजार दूरस्थ क्षेत्र में ही तलाशने होंगे। ऐसा नहीं है आवश्यकतानुसार उत्पादों का आकलन कर आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है । और यह केवल प्रदर्शनात्मक ना होकर वास्तविक रूप से क्रिया रूप में परिणित करना होगा।
*यहां समाज और सरकार दोनों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है.. आप जानते हैं कि पूरी अर्थव्यवस्था का 60 से 70 प्रतिशत भाग में मध्यमवर्ग की सहभागिता होती है* मानव संसाधन भी मध्यवर्ग से ही निकल कर आता है। ऐसी स्थिति में मध्यमवर्ग से निकल रही प्रतिभाओं को जिले संभाग और राज्य स्तर तक उत्पादन और सेवा इकाइयों रूप से प्रारंभ कराना ज़रूरी है ।
सकल बचत के लिये सरकारी क्षेत्र के बैंक पोस्ट ऑफिस की जमा व्यवस्था को सिक्योरिटी के साथ साथ टैक्स में छूट की लिमिट को बढ़ावा देकर प्रतिव्यक्ति बचत जो 36% से घटकर 30% से भी कम हो चुकी है को बढ़ावा देना ही होगा । जीडीपी में शुद्ध बचत की वृद्धि से व्यक्तिगत क्षेत्र में पूंजी का निर्माण तेजी से होना तय है ।
वर्तमान में मध्यवर्ग का 70% हिस्सा कार, एसी, टीवी तथा अन्य अनुत्पादक लक्ज़री की #ईएमआई के दुष्चक्र में फंसा है । जो बचत पूंजी निर्माण (वेयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण ) की बड़ी बाधा है । पर्सनल लोन सबसे अधिक ब्याज वसूली का माध्यम है । जिसका मिलना बहुत सरल है । डेली यूज़ की सामग्री के मूल्य नियंत्रित न होने से भी बचत बेहद प्रभावित होती है । अगर #ईएमआई का दायित्व एवम अनियंत्रित कीमत वृद्धि को नियंत्रित करते ही वैयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण की दर तेज़ी बढ़ेगी । कोविड19 के संकट से उभरने से पहले ही हम लक्ज़री और हमारी सरकार मूल्यों को नियंत्रित करें तो हम एक विशाल पूँजी का निर्माण करेंगे । यह पूँजी हमारे लिये बचत होगी जो बड़े औद्योगिक घरानों के लिये भी ज़्यादा होगी ।
रोजगार के लिए प्रवास स्वाभाविक प्रक्रिया है। इतिहास में भी यह सब कुछ दर्ज है...और यहां रोजगार के लिए प्रवास के बाद कोविड19 के बाद घर और गांव के महत्व को महसूस किया होगा आपने भी
गांघी जी भी याद आए होंगे न ? जो कुटीर उद्योगों के प्रबल समर्थक थे । बापू के उसी मार्ग को आत्मनिर्भरता कही जा सकती है । जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने अंगीकार किया है । परन्तु कोविड संकट जूझ रहे भारत को सम्हलना अभी एकाएक ज़रा कठिन है । परन्तु वैक्सीन आने के बाद अर्थात लगभग 6 माह बाद केंद्र सरकार एवम राज्य सरकारों को तेज़ी से काम करना होगा । उसे यहाँ एक ट्रष्टी एवम प्रमुख प्रबंधक के रूप सक्रिय होने की ज़रूरत होगी ।
सरकार छोटे से छोटे उत्पादन के लिए स्थानीय पृष्ठभूमि को देखते हुए उत्पादन को प्रमोट करें और बाजार उपलब्ध कराएं तो निश्चित तौर पर रोजगार की संभावना सुदूर क्षेत्रों में बढ़ेगी !
मजदूरों का गांव से पलायन अधिकतम 500 वर्ग किलोमीटर के आसपास होना चाहिए ताकि एक या 2 दिन के अंदर पूरा का पूरा परिवार वापस घर पहुंच सके। अब आप सवाल करेंगे कि क्या भारत सरकार की औद्योगिक नीति में बदलाव की जरूरत है । जी हां भारत सरकार की ही नहीं बल्कि राज्य सरकारें भी व्यवसायिक एवम औद्योगिक नीति का गंभीरता से पुनरीक्षण करें इसमें परिवर्तन अवश्यंभावी है ।
आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए समस्या का कारण होगा पर कैपिटा इनकम और इकोनामी में गिरावट की संभावना है । कोविड19 के बाद उत्पादन और उनका विपणन करने के लिए सरकार को बहुत तेजी से समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। कुछ बाजार विज्ञानी मानते हैं कि- क्रय शक्ति कमजोर होने से स्थानीय उत्पादों के लिए बाजार दूरस्थ क्षेत्र में ही तलाशने होंगे। ऐसा नहीं है आवश्यकतानुसार उत्पादों का आकलन कर आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है । और यह केवल प्रदर्शनात्मक ना होकर वास्तविक रूप से क्रिया रूप में परिणित करना होगा।
*यहां समाज और सरकार दोनों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है.. आप जानते हैं कि पूरी अर्थव्यवस्था का 60 से 70 प्रतिशत भाग में मध्यमवर्ग की सहभागिता होती है* मानव संसाधन भी मध्यवर्ग से ही निकल कर आता है। ऐसी स्थिति में मध्यमवर्ग से निकल रही प्रतिभाओं को जिले संभाग और राज्य स्तर तक उत्पादन और सेवा इकाइयों रूप से प्रारंभ कराना ज़रूरी है ।
सकल बचत के लिये सरकारी क्षेत्र के बैंक पोस्ट ऑफिस की जमा व्यवस्था को सिक्योरिटी के साथ साथ टैक्स में छूट की लिमिट को बढ़ावा देकर प्रतिव्यक्ति बचत जो 36% से घटकर 30% से भी कम हो चुकी है को बढ़ावा देना ही होगा । जीडीपी में शुद्ध बचत की वृद्धि से व्यक्तिगत क्षेत्र में पूंजी का निर्माण तेजी से होना तय है ।
वर्तमान में मध्यवर्ग का 70% हिस्सा कार, एसी, टीवी तथा अन्य अनुत्पादक लक्ज़री की #ईएमआई के दुष्चक्र में फंसा है । जो बचत पूंजी निर्माण (वेयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण ) की बड़ी बाधा है । पर्सनल लोन सबसे अधिक ब्याज वसूली का माध्यम है । जिसका मिलना बहुत सरल है । डेली यूज़ की सामग्री के मूल्य नियंत्रित न होने से भी बचत बेहद प्रभावित होती है । अगर #ईएमआई का दायित्व एवम अनियंत्रित कीमत वृद्धि को नियंत्रित करते ही वैयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण की दर तेज़ी बढ़ेगी । कोविड19 के संकट से उभरने से पहले ही हम लक्ज़री और हमारी सरकार मूल्यों को नियंत्रित करें तो हम एक विशाल पूँजी का निर्माण करेंगे । यह पूँजी हमारे लिये बचत होगी जो बड़े औद्योगिक घरानों के लिये भी ज़्यादा होगी ।
शनिवार, अक्टूबर 17, 2020
सनातन धर्म के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
गणमण्डल आश्रम अमदरा जिला मध्यप्रदेश में साधनारत साधक
सनातन धर्म के संदर्भ में आज व्हाट्सएप पर घूमता एक मैसेज बहुत प्रासंगिक यानी रेलीवेंट लगाआपके बीच शेयर कर रहा हूं
नमन..🙏
भाइयों इस पोस्ट को समय निकाल कर एक बार जरूर पढ़ें, ऐसी जानकारी व्हाट्सएप पर बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो सके आपका आभार धन्यवाद होगा
1-अष्टाध्यायी पाणिनी
2-रामायण वाल्मीकि
3-महाभारत वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र चाणक्य
5-महाभाष्य पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन
7-बुद्धचरित अश्वघोष
8-सौंदरानन्द अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता भास
11-कामसूत्र वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम् कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम्
कालिदास
14-विक्रमोउर्वशियां कालिदास
15-मेघदूत कालिदास
16-रघुवंशम् कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम् कालिदास
18-नाट्यशास्त्र भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम् शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता बरामिहिर
23-पंचतंत्र। विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर सोमदेव
25-अभिधम्मकोश वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस विशाखदत्त
27-रावणवध। भटिट
28-किरातार्जुनीयम् भारवि
29-दशकुमारचरितम् दंडी
30-हर्षचरित वाणभट्ट
31-कादंबरी वाणभट्ट
32-वासवदत्ता सुबंधु
33-नागानंद हर्षवधन
34-रत्नावली हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय जयानक
38-कर्पूरमंजरी राजशेखर
39-काव्यमीमांसा राजशेखर
40-नवसहसांक चरित पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन राजभोज
42-वृहतकथामंजरी क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित बिल्हण
45-कुमारपालचरित हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी कल्हण
49-रासमाला सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध माघ
51-गौडवाहो वाकपति
52-रामचरित सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य हेमचन्द्र
वेद-ज्ञान:-
प्र.1- वेद किसे कहते है ?
उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2- वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।
प्र.3- ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब षदिया ?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4- ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।
प्र.5- वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।
1-ऋग्वेद
2-यजुर्वेद
3-सामवेद
4-अथर्ववेद
प्र.6- वेदों के ब्राह्मण ।
वेद ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद - ऐतरेय
2 - यजुर्वेद - शतपथ
3 - सामवेद - तांड्य
4 - अथर्ववेद - गोपथ
प्र.7- वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर - चार।
वेद उपवेद
1- ऋग्वेद - आयुर्वेद
2- यजुर्वेद - धनुर्वेद
3 -सामवेद - गंधर्ववेद
4- अथर्ववेद - अर्थवेद
प्र 8- वेदों के अंग हैं ।
उत्तर - छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष
प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
वेद ऋषि
1- ऋग्वेद - अग्नि
2 - यजुर्वेद - वायु
3 - सामवेद - आदित्य
4 - अथर्ववेद - अंगिरा
प्र.10- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।
प्र.11- वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर- सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12- वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- चार ।
ऋषि विषय
1- ऋग्वेद - ज्ञान
2- यजुर्वेद - कर्म
3- सामवे - उपासना
4- अथर्ववेद - विज्ञान
प्र.13- वेदों में।
ऋग्वेद में।
1- मंडल - 10
2 - अष्टक - 08
3 - सूक्त - 1028
4 - अनुवाक - 85
5 - ऋचाएं - 10589
यजुर्वेद में।
1- अध्याय - 40
2- मंत्र - 1975
सामवेद में।
1- आरचिक - 06
2 - अध्याय - 06
3- ऋचाएं - 1875
अथर्ववेद में।
1- कांड - 20
2- सूक्त - 731
3 - मंत्र - 5977
प्र.14- वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ? उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15- क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर- बिलकुल भी नहीं।
प्र.16- क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर- नहीं।
प्र.17- सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर- ऋग्वेद।
प्र.18- वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर- वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व ।
प्र.19- वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर-
1- न्याय दर्शन - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन - व्यास मुनि।
प्र.20- शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर- आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21- प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर- केवल ग्यारह।
प्र.22- उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-
01-ईश ( ईशावास्य )
02-केन
03-कठ
04-प्रश्न
05-मुंडक
06-मांडू
07-ऐतरेय
08-तैत्तिरीय
09-छांदोग्य
10-वृहदारण्यक
11-श्वेताश्वतर ।
प्र.23- उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर-
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र
प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000 वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000 वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000 वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000 वर्षों का नाम है।
कलयुग के 4,976 वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है।
पंच महायज्ञ
1- ब्रह्मयज्ञ
2- देवयज्ञ
3- पितृयज्ञ
4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
5- अतिथियज्ञ
स्वर्ग - जहाँ सुख है।
नरक - जहाँ दुःख है।.
*#भगवान_शिव के "35" रहस्य!!!!!!!!
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
*🔱19.* तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।
*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिये थे....
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बुधवार, अक्टूबर 14, 2020
आने वाले 10 से 15 सालों में पाकिस्तान से भारत में आएंगे शरणार्थी.. (भाग 02 )
सेंगे शेरिंग के हवाले से गिलगित बाल्टिस्तान
गिलगित बालटिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है इसके संबंध में हालिया दिनों में सेंगे सेरिंग जो वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे हैं साफ तौर पर बताया है ।
भारतीय उपमहाद्वीप के साथ 1947 के बाद हुआ है वह भारत के लिए एक बहुत दुखद स्थिति है।
मुझे अच्छी तरह याद है तब जब भारत के जीवन समंकों खास तौर पर जन्म दर मृत्यु दर और होती रही है तब दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अन्य देशों के सापेक्ष भारत को सबसे ज्यादा नेगेटिव प्रोजेक्ट किया जाता था । उस दौर का एनजीओ कल्चर जो आमतौर पर विदेशी फंडों से संचालित था के जरिए भारतीय कल्चर को समाप्त कर देने की भयंकर कोशिशें हुई है।
पता नहीं कौन सी बात है जो कि हमारी कल्चर को क्षतिग्रस्त होने से बचाती रही है।
धारा 370 और 35 बी के समापन के उपरांत गिलगित बालटिस्तान जी के लोग भारतीय डेमोक्रेसी का सुख लेना चाहते हैं । गिलगित बालटिस्तान पिछले लेख में वर्णित 7 जिले और दो डिवीजन की 15 लाख लोगों की आबादी भारत की ओर देख रही है ।
वहां के एक लीडर बाबा जान और उनके 4 साथी पाकिस्तान की जेलों में उम्र कैद की सजा भोग रहे हैं।
जहां तक गिलगित बालटिस्तान की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थिति का संबंध है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लद्दाख और भारत के सांस्कृतिक संदर्भों में यह क्षेत्र भारत के बेहद करीब है। तो आइए जानते हैं कि - "गिलगित बालटिस्तान लोग आंदोलित क्यों है ..?"
1 - स्वायत्तशासी क्षेत्र के निवासी हैं परंतु उनके सारे फैसले पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी डिसाइड करती है । पाकिस्तान यह तय करता है कि वहां की जनता को लिक्विड गैस और जीवन जीने के न्यूनतम संसाधन किस हद तक मुहैया कराने चाहिए !
2- शिक्षा के क्षेत्र में की 15 लाख की आबादी को पाकिस्तान ने किसी भी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है । निजी क्षेत्र के बलबूते पर वहां शैक्षणिक व्यवस्थाएं कठोर पाकिस्तानी कानून के अधीन काम कर रही है ।
3- कानूनी तौर पर गिलगित बालटिस्तान भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस बात को वहां की आवाम समझ चुकी है । यूनाइटेड नेशन द्वारा पाकिस्तान को उन्हें जल्द से जल्द पूर्ण स्वायत्तता देकर गिलगित बालटिस्तान की जनता की इच्छा के अनुसार निर्णय लेने की बात कही है ।
4- जबकि चीन के दबाव में आकर अनाधिकृत रूप से उस क्षेत्र के नजदीक चीन के सैन्य अड्डे स्थापित हो चुके हैं। जिसका मूल उद्देश्य भारत की बढ़ती हुई सामरिक शक्ति को प्रभावित करना है।
5- इस क्षेत्र में मौजूद अकूत प्राकृतिक खनिज संसाधन का फायदा निवासियों के लिए भविष्य में भी मिलना मुश्किल है जिस तरह है बलूचिस्तान के लोगों के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की दुरभि:संधि से वहां के लोगों का जीवन स्तर वर्तमान में बेहद प्रभावित है ।
6- अपने टीवी इंटरव्यू में है सिंगे शेरीन ने स्पष्ट किया कि- "हम भारत में मिलना चाहते हैं..!" भारत में पीओके का बहुत सारा हिस्सा शामिल होने के लिए खुलकर सामने आने लगा है । इसी कारण से अगर पाकिस्तान आम जनता की राय लेने से घबरा रहा है ।
7- राजनैतिक परिस्थितियां जो भी हो गिलगित बालटिस्तान की आवाम बलूचिस्तान और सिंध की तरह ही भीषण अभाव और संकट की स्थिति में जीवन यापन कर रही है
कल ही मैंने अपने ब्लॉग मिसफिट पर स्पष्ट रूप से लिखा था कि आने वाली 10 से 15 सालों में भारत को पाकिस्तान से आने वाली शरणार्थी जनता की देखभाल की जिम्मेदारी लेनी पड़ सकती है। परंतु तेजी से बढ़ रहे घटनाक्रम से यह कहा जा सकता है कि- पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी ने वहां के लोगों को यह आश्वासन दिया है कि 30 नवंबर 2020 तक वे गिलगित बालटिस्तान के लिए कोई खुशखबरी सुनाने जा रहे हैं ।
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर स्पष्ट है कि पाकिस्तानी स्थित को प्रॉविंस का हिस्सा बना देगा। और हो सकता है कि बाबा जान को रिहा भी कर दिया जाए ।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि पाकिस्तान ऐसा कुछ कर सकेगा कि वहां की जनता अपने 73 साल पुराने कालखंड को याद ना रखेगी ।
वहां के लोग स्पष्ट तौर पर भारत के साथ अंतर संबंध स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि भारत की परिस्थिति उनके लिए पाकिस्तान से अधिक अनुकूलित है और वह एक कंफर्ट लाइफस्टाइल को जी सकते हैं । अगर छल बल के जरिए गिलगित बालटिस्तान की स्वायत्तता चीन के सहयोग से समाप्त भी हो गई तो तय मानिए कि वहां की जनता इसे स्वीकार नहीं कर सकती ।
उसका आधार चीन की शोषण की प्रणाली को वह अच्छी तरह जान चुके हैं। वहां की जनता यह भी जानती है कि चीन के साथ सी-पैक के मद्देनजर किए गए कोई भी समझौते में उनकी ना तो भागीदारी है और ना ही भविष्य में भागीदारी अथवा आर्थिक विकास संभव होगा । कमोबेश यही हालात बलूचिस्तान के भी हैं ।
विश्व समुदाय बेहतर तरीके से यह समझने लगा है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी व्यवस्था जनित इस जटिल प्रमेय को केवल भारत ही हल कर सकता है ।
अगर भारत ने कोई कठोर कदम उठा लिया और गिलगित बालटिस्तान की पक्ष में सफल हो गया तो चीन और पाकिस्तान स्थाई रूप से भारत की सामरिक शक्ति को समाप्त करने की कोशिश येन केन प्रकारेण अवश्य करेगा । परंतु हमारा अनुमान है कि- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर भारत अपनी सहिष्णुता की नीति के तहत तब तक कोई सामरिक कदम नहीं उठाएगा जब तक कि तत्कालीन पश्चिम पाकिस्तान वाली स्थिति पैदा ना हो जाए । अपनी पहचान एवं जीवन को बचाने के लिए तथा गिलगित बालटिस्तान की 15 लाख की आबादी का बहुत बड़ा प्रतिशत शरणार्थियों के तौर पर भारत में आना भारत के लिए एक अतिरिक्त भार होगा ।
वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के चलते भारत सही वक्त पर सही कदम अवश्य उठाएगा हमें भी तैयार रहना होगा ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
गिलगित बालटिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है इसके संबंध में हालिया दिनों में सेंगे सेरिंग जो वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे हैं साफ तौर पर बताया है ।
भारतीय उपमहाद्वीप के साथ 1947 के बाद हुआ है वह भारत के लिए एक बहुत दुखद स्थिति है।
मुझे अच्छी तरह याद है तब जब भारत के जीवन समंकों खास तौर पर जन्म दर मृत्यु दर और होती रही है तब दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अन्य देशों के सापेक्ष भारत को सबसे ज्यादा नेगेटिव प्रोजेक्ट किया जाता था । उस दौर का एनजीओ कल्चर जो आमतौर पर विदेशी फंडों से संचालित था के जरिए भारतीय कल्चर को समाप्त कर देने की भयंकर कोशिशें हुई है।
पता नहीं कौन सी बात है जो कि हमारी कल्चर को क्षतिग्रस्त होने से बचाती रही है।
धारा 370 और 35 बी के समापन के उपरांत गिलगित बालटिस्तान जी के लोग भारतीय डेमोक्रेसी का सुख लेना चाहते हैं । गिलगित बालटिस्तान पिछले लेख में वर्णित 7 जिले और दो डिवीजन की 15 लाख लोगों की आबादी भारत की ओर देख रही है ।
वहां के एक लीडर बाबा जान और उनके 4 साथी पाकिस्तान की जेलों में उम्र कैद की सजा भोग रहे हैं।
जहां तक गिलगित बालटिस्तान की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थिति का संबंध है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लद्दाख और भारत के सांस्कृतिक संदर्भों में यह क्षेत्र भारत के बेहद करीब है। तो आइए जानते हैं कि - "गिलगित बालटिस्तान लोग आंदोलित क्यों है ..?"
1 - स्वायत्तशासी क्षेत्र के निवासी हैं परंतु उनके सारे फैसले पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी डिसाइड करती है । पाकिस्तान यह तय करता है कि वहां की जनता को लिक्विड गैस और जीवन जीने के न्यूनतम संसाधन किस हद तक मुहैया कराने चाहिए !
2- शिक्षा के क्षेत्र में की 15 लाख की आबादी को पाकिस्तान ने किसी भी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है । निजी क्षेत्र के बलबूते पर वहां शैक्षणिक व्यवस्थाएं कठोर पाकिस्तानी कानून के अधीन काम कर रही है ।
3- कानूनी तौर पर गिलगित बालटिस्तान भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस बात को वहां की आवाम समझ चुकी है । यूनाइटेड नेशन द्वारा पाकिस्तान को उन्हें जल्द से जल्द पूर्ण स्वायत्तता देकर गिलगित बालटिस्तान की जनता की इच्छा के अनुसार निर्णय लेने की बात कही है ।
4- जबकि चीन के दबाव में आकर अनाधिकृत रूप से उस क्षेत्र के नजदीक चीन के सैन्य अड्डे स्थापित हो चुके हैं। जिसका मूल उद्देश्य भारत की बढ़ती हुई सामरिक शक्ति को प्रभावित करना है।
5- इस क्षेत्र में मौजूद अकूत प्राकृतिक खनिज संसाधन का फायदा निवासियों के लिए भविष्य में भी मिलना मुश्किल है जिस तरह है बलूचिस्तान के लोगों के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की दुरभि:संधि से वहां के लोगों का जीवन स्तर वर्तमान में बेहद प्रभावित है ।
6- अपने टीवी इंटरव्यू में है सिंगे शेरीन ने स्पष्ट किया कि- "हम भारत में मिलना चाहते हैं..!" भारत में पीओके का बहुत सारा हिस्सा शामिल होने के लिए खुलकर सामने आने लगा है । इसी कारण से अगर पाकिस्तान आम जनता की राय लेने से घबरा रहा है ।
7- राजनैतिक परिस्थितियां जो भी हो गिलगित बालटिस्तान की आवाम बलूचिस्तान और सिंध की तरह ही भीषण अभाव और संकट की स्थिति में जीवन यापन कर रही है
कल ही मैंने अपने ब्लॉग मिसफिट पर स्पष्ट रूप से लिखा था कि आने वाली 10 से 15 सालों में भारत को पाकिस्तान से आने वाली शरणार्थी जनता की देखभाल की जिम्मेदारी लेनी पड़ सकती है। परंतु तेजी से बढ़ रहे घटनाक्रम से यह कहा जा सकता है कि- पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी ने वहां के लोगों को यह आश्वासन दिया है कि 30 नवंबर 2020 तक वे गिलगित बालटिस्तान के लिए कोई खुशखबरी सुनाने जा रहे हैं ।
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर स्पष्ट है कि पाकिस्तानी स्थित को प्रॉविंस का हिस्सा बना देगा। और हो सकता है कि बाबा जान को रिहा भी कर दिया जाए ।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि पाकिस्तान ऐसा कुछ कर सकेगा कि वहां की जनता अपने 73 साल पुराने कालखंड को याद ना रखेगी ।
वहां के लोग स्पष्ट तौर पर भारत के साथ अंतर संबंध स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि भारत की परिस्थिति उनके लिए पाकिस्तान से अधिक अनुकूलित है और वह एक कंफर्ट लाइफस्टाइल को जी सकते हैं । अगर छल बल के जरिए गिलगित बालटिस्तान की स्वायत्तता चीन के सहयोग से समाप्त भी हो गई तो तय मानिए कि वहां की जनता इसे स्वीकार नहीं कर सकती ।
उसका आधार चीन की शोषण की प्रणाली को वह अच्छी तरह जान चुके हैं। वहां की जनता यह भी जानती है कि चीन के साथ सी-पैक के मद्देनजर किए गए कोई भी समझौते में उनकी ना तो भागीदारी है और ना ही भविष्य में भागीदारी अथवा आर्थिक विकास संभव होगा । कमोबेश यही हालात बलूचिस्तान के भी हैं ।
विश्व समुदाय बेहतर तरीके से यह समझने लगा है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी व्यवस्था जनित इस जटिल प्रमेय को केवल भारत ही हल कर सकता है ।
अगर भारत ने कोई कठोर कदम उठा लिया और गिलगित बालटिस्तान की पक्ष में सफल हो गया तो चीन और पाकिस्तान स्थाई रूप से भारत की सामरिक शक्ति को समाप्त करने की कोशिश येन केन प्रकारेण अवश्य करेगा । परंतु हमारा अनुमान है कि- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर भारत अपनी सहिष्णुता की नीति के तहत तब तक कोई सामरिक कदम नहीं उठाएगा जब तक कि तत्कालीन पश्चिम पाकिस्तान वाली स्थिति पैदा ना हो जाए । अपनी पहचान एवं जीवन को बचाने के लिए तथा गिलगित बालटिस्तान की 15 लाख की आबादी का बहुत बड़ा प्रतिशत शरणार्थियों के तौर पर भारत में आना भारत के लिए एक अतिरिक्त भार होगा ।
वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के चलते भारत सही वक्त पर सही कदम अवश्य उठाएगा हमें भी तैयार रहना होगा ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
आने वाले 10-15 सालों में पाकिस्तान से भारत में शरणार्थी आना तय है..? (भाग 01)
गिलगित बालटिस्तान की आबादी लगभग 15 लाख के आसपास पहुंच रही है। प्राकृतिक सौंदर्य का धनी हिंदूकुश पहाड़ी और अमीर पहाड़ी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा रहा है। किंतु 1947 की विभाजन में ब्रिटिश सरकार की सियासी चालों के कारण पीओके का भाग बन गया । सिंध बलोच पश्चिमी पाकिस्तान जो वर्तमान में बांग्लादेश है की तरह ही सांस्कृतिक तौर पर स्वयं पाकिस्तान को अमान्य रहा है।
पाकिस्तान की मिलिट्री डेमोक्रेसी ने इन स्थानों का जमकर सियासी मामलों में इस्तेमाल किया। पाकिस्तानी प्रशासन कभी भी इन क्षेत्रों के संपूर्ण विकास के लिए प्रतिबद्ध नहीं रहा इसके कई पुख्ता प्रमाण आज भी संपूर्ण विश्व के सामने आते हैं । वर्तमान परिस्थितियों में धारा 370 हटने के बाद की परिस्थितियों में गिलगित बालटिस्तान की आवाम जिसकी संख्या अब लगभग 1500000 है , की जनता बहुत ही जागरूक हो गई है। उनकी जागरूकता का कारण उनका एक लोकप्रिय नेता अपने चार क्रांतिकारी साथियों के साथ पिछले कई सालों से जेल में बंद है। लगभग 10 से 11 सालों से जेल में बंद नेता का नाम है बाबा जान । गिलगित बालटिस्तान की जनता पश्चिम पाकिस्तान वर्तमान का बांग्लादेश बलूचिस्तान और सिंध की जनता के साथ पाकिस्तान मिलिट्री प्रशासन की दुर्व्यवहार से अब तंग आ चुकी है । पहले विश्व को यकीन नहीं था किंतु भारत ने यूरोप खास तौर पर अमेरिका को आजाद भारत की वास्तविक तस्वीर से परिचित करा दिया तब विश्व समुदाय ब्रिटेन के खास समूह को छोड़कर पाकिस्तान के प्रति सतर्क हो गया।
भारतीय डेमोक्रेटिक सिस्टम आने के पहले ही गिलगित बालटिस्तान के सामरिक महत्व एवं वैश्विक संपर्क के महत्व को समझते हुए अंग्रेजों ने पाकिस्तान के साथ किए समझौते में गिलगित बालटिस्तान को स्वायत्तशासी क्षेत्र घोषित कर दिया। शर्त यह भी थी कि भविष्य में जनमत संग्रह के जरिए गिलगित बालटिस्तान को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। और यह है क्षेत्रीय पाकिस्तानी आर्मी द्वारा नरसंहार अनाधिकृत दबाव एवं गैर बराबरी के कारण हाशिए पर चला गया । नीचे दिए गए आंकड़े विकिपीडिया से साभार लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत है
डिवीजन | जिला | क्षेत्रफल (किमी²) | जनसंख्या (1998) | मुख्यालय |
---|---|---|---|---|
बल्तिस्तान | गान्चे | 9,400 | 88,366 | खपलू |
स्कर्दू | 18,000 | 214,848 | स्कर्दू | |
गिलगित | गिलगित | 39,300 | 383,324 | गिलगित |
दिआमेर | 10,936 | 131,925 | चिलास | |
ग़िज़र | 9,635 | 120,218 | गाहकुच | |
अस्तोर | 8,657 | 71,666 | गौरीकोट | |
हुन्ज़ा-नगर | सिकन्दराबाद | |||
गिलगित |
गिलगित बालटिस्तान की जनता इन दिनों चीन के विरोध में सक्रिय हैं। पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी यहां शिया और सुन्नी संप्रदाय दंगे कराने में व्यस्त है। ताकि किसी भी तरह से कुछ हिस्सा और चीन के हवाले किया जा सके ।
विश्व समुदाय को यह बात स्पष्ट तौर पर समझ में आ चुकी है कि चीन के दबाव में पाकिस्तान उसे अपना प्रोविंस बनाना चाहता है। पाकिस्तान प्रशासन को किसी भी हालत में रोजमर्रा के खर्चे निकालने के लिए किसी ना किसी ऐसे ही राष्ट्र की मदद की जरूरत है जो उसे पैसा देता रहे ।
विश्व बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थानों से प्राप्त करने की सीमा भी पाकिस्तान पार कर चुका है और अब उसके पास ऐसी कोई अपनी ऐसी योजना नहीं है जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सके ।
भरपूर प्राकृतिक खनिज संपदा के दोहन के लिए संसाधनों तक का अभाव पाकिस्तान में देखा जा सकता है। इतना ही नहीं सी पैक समझौते को पूरा करने के लिए चीन ने आर्थिक रूप से पाकिस्तान को गुलाम बना कर रख दिया है। चीन चाहता है कि पाकिस्तान इस स्वायत्तशासी क्षेत्र को पाकिस्तान की राज्य के रूप में शामिल कर ले और इसकी भी शुरू हो गई है ।
https://youtu.be/V-dxxH_unSo
लगभग 73 सालों से उपेक्षा का दंश भोग रहे गिलगित बालटिस्तान के लोग अब क्रांति की मशालें लेकर खड़े हो गए हैं । सारे लोग लोकतंत्र के हिमायती हैं और जब से उन तक भारत कि लोकतंत्र की खूबसूरती की जानकारी दी गई है तब से समूचा बलूचिस्तान और गिलगित बालटिस्तान भारत की ओर बेहद आत्मीय भाव से देख रहा है ।
केवल राजनीतिक कारणों पर ध्यान देकर ना दिखे और पाकिस्तान के सिंध बलूचिस्तान तथा गिलगित बालटिस्तान की स्थिति पर गौर करें तो भारत का सबसे पिछड़ा इलाका भी इन क्षेत्रों के सापेक्ष बेहद बेहतरीन माने जा सकते हैं।
इन क्षेत्रों में स्वास्थय , शिक्षा, महिलाओं एवम बच्चों की स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है । यहां की किसान मजदूर पढ़े लिखे नौजवान यहां तक की सीनियर सिटीजन बेहद तनाव की स्थिति में गुलामों की तरह जिंदगी बसर कर रहे हैं ।
यूनिसेफ का दावा है कि पाकिस्तान में जन्म लेना बेहद खतरनाक परिस्थिति है यह संपूर्ण पाकिस्तान का आंकड़ा है । यहां हर 22 बच्चों में से एक बच्चा 30 दिन की उम्र भी जन्म के बाद पूर्ण नहीं कर पाता।
मात्र इतने से उदाहरण से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान की वाइटल स्टैटिसटिक्स यानी जीवन समंक का स्टेटस क्या होगा।
ऐसी स्थिति में सिंध और बलूचिस्तान के साथ-साथ गिलगित बालटिस्तान जैसे क्षेत्र की स्थिति का अंदाज कोई भी सामान्य व्यक्ति लगा सकता है ।
पाकिस्तानी हमेशा ही अपनी आवाम को ही अजीबोगरीब शिकंजे में कस के रखा है। वहां की डेमोक्रेसी में अधिकांश वे सारे लोग हैं जो भारत के उन नवाबों की संताने है जो अपने मुंह से मक्खी उड़ाने के लिए भी अपने नौकरों का इंतजार किया करते थे।
आर्मी में अधिकांश पंजाबी है जो या तो कन्वर्टेड है अथवा सामंती युग की लेगसी को अपने साथ लेकर चल रहे हैं ।
मेरा सटीक अनुमान है कि हमें आने वाले 10 से 15 साल में भारत को पाकिस्तान की एक बड़ी भुखमरी तनाव बीमारी और कलह की शिकार भीड़ को कहीं अपनी शरण में लेना पड़ सकता है ।
मंगलवार, अक्टूबर 13, 2020
कोविड19 टोटल लॉक डाउन संस्मरण भाग 01
न दैन्यं न पलायनम्
आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में —
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’
महात्मा अटल की यह कविता मन से भय का अंत कर देती है ।
महासंकट का दौर जिसे हम अज़नबी शत्रु कह सकते हैं कोविड19 का दौर है। इसके पहले हम बहुत सामान्य जीवन में थे । सामान्यता इतनी कि समझ ही नहीं पा रहे थे कि जीवन क्या है ?
वास्तव में जिसे हम अपना अधिकार समझने की भूल कर बैठे थे वह प्रकृति का उपहार था। एक सुबह अचानक 4:17 पर नींद खुलती है खुली हुई खिड़की शरीर को तुरंत ताजगी का एहसास कराती है।
ब्रह्ममुहूर्त कि इस अवधि में सुबह का आनंद कुछ इस तरह मिला...
अचानक संपूर्ण वातावरण चिर परिचित सा लग रहा था जिसका एहसास हमने कभी किया फिर अचानक उस प्रकार की सुहानी सुबहों के एहसासों का याद आने लगा जिसे हम भूल गए थे रात देर तक सोना स्वाभाविक रूप से नींद सूर्योदय के उपरांत खुलने का अभ्यास सा हो गया था कोविड के पहले ।
लाला रामस्वरूप पंचांग के अनुसार निश्चित समय पर पूर्व दिशा का आकाश लालिमा लेने लगता था। घर के सामने से खड़खड़ करती हुई साइकिल पर सवार पेपर वाला हर घर के आंगन में पेपर पटक रहा था.. किसी आँगन में खट्ट तो किसी छत पर टप की आवाज के साथ अखबार गिरते तो कहीं गेट में फंसा कर आगे बढ़ जाता अखबार वाला । न कोई अखबार उठाने की जल्दबाजी में देखा गया न कोई बेताब नज़र आया खबर के वास्ते । सब को डर था पेपर में कोरोना वायरस तो नहीं आया ?
काली नन्ही चिडियों वाला जोड़ा अपने अंडे सेता था । ड्रॉइंग रूम के बाएं जंगले के एन सामने ! उनसे मुझे संवेदित प्रेम हो गया उनके अंडे भी स्नेह की वजह बने । पत्नी और बेटी को ज्यों ही बताया कि काली चिड़िया या चिड़े में से कोई एक को दाना लेने जाना होता है । तब कोई दूसरा उस घोंसले की तकवारी करता है । यह सुनते ही दौनों ने एसी के ऊपरी भाग में पानी दाना की व्यवस्था सुनिश्चित कर दी । ताकि चिड़ा चिड़िया दाना लेने न जाएं । पर ऐसा इस लिए न हुआ क्योंकि जोड़ा मांसाहारी भी था कुछ दिन में बच्चों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं थीं । अन्न से अधिक प्रोटीनयुक्त आहार बच्चों को देना शायद ज़रूरी ही होगा । तभी तो उड़ती हुई तितलियाँ या उन जैसे कीट को कलाबाजियां खाकर चिड़ियों वाला जोड़ा लपक लेता था । कई बार उनको दूर जाना ही पड़ता था ।
वकील साहब के आंगन वाले आम के पेड़ से आने वाली गिलहरियों से लॉक डाउन के अगले दो तीन दिन में लगभग दोस्ती हो गई मुझे देखते ही चुखर चुखर चीखतीं । एक दिन देर रात तक जागने की वजह से उनका इतना अधिक शोर सुना तब अचानक 7:30 बजे नींद खुली पता लगा गिलहरियां बार बार छत की बाउंड्री वाल पर हुल्लडबाज़ी कर रहीं थीं । उनके लिए पानी और बिस्किट के टुकड़े कुछ अनाज रखते ही वे दूर से टकटकी लगाए देखतीं रहीं । देखना क्या मुझे कह रहीं थीं अब रास्ता नापो पर हटो हमें खाना है ।
मेरे दूर हटते ही एक साथ 4 गिलहरियां दाने-पानी पर टूट पड़ीं ।
कुत्ते मोहल्ले वाले मित्र बन गए थे सच आज भी हैं । टोटल लॉक डाउन में अपने छत से 7 बजे तक गली के कुत्तों के लिए रोटी फैंकता और पुकारता - काय इतै आओ जे रोटी खालो !
वे फौरन मेरी ओर देखते अंगुली का इशारा समझते कि रोटियां किधर फैंकी हैं और वहीं लपकते जहाँ मैं रोटी फैंकता ।
एक जोड़ा काली चिड़ियों, गिलहरियां, कुत्तों, से संवादी होना कोविड19 टोटल लॉक डाउन में ही हुआ । अच्छा लगा । प्रेम बंटा विश्वास बढ़ा ।
हम तुम ये वो यानी हम सब निर्विकारी हो गए थे । ध्यान की क्रिया को बल मिला । मेरे गुरुभाई अनन्त पांडेय कहते हैं कि - दिन भर में 16 हज़ार विचार आते हैं ध्यान भंग हो जाता है... ! अंतू भाई दुनियादारी के चक्कर में आध्यात्मिक चिंतन भूले हुए हम कोविड19 में पुनर्जागरण के दौर में आए हैं । 30 बरस बाद...सच यही था । लोग भी यही कह रहे हैं ।
सलिल सहमत हैं कि - "मौन रहकर बहुत कुछ हासिल किया सबने मिलकर !"
सलिल आगे कहते हैं- खोया भी बहुत संवाद सम्प्रेषण खो दिया । भाई आपने भी सृजन कम ही किया है इस दौर में ?
हाँ, बहुत कम हुआ था सृजन पर इस दौर में कुछ नया भी मिला जैसे साग में दाल में हींग और हल्दी क्यों जरूरी है । किचिन सीखा, टॉयलेट की सफाई सीखी, उपेक्षित कागज़ों तक पहुंचा ये सत्य है कि लिखा कम गया । उतना अवश्य लिखा जितना पी आर ओ आनंद जैन साहब को भेजना चाहा !
मौलिक सृजन 10 फीसदी तक रह गया । मौन का प्रतिशत 50% से कुछ अधिक बढ़ गया था उन दिनों । कोरोना के दुनियाँ भर के आंकड़े भयानक रूप से डरा रहे थे ।
कनाडा वाला भतीजा अमेरिका में रह रही बहू और उनकी बेटी, एम्स्टर्डम वाला भतीजा उसकी बहू और अपनी बेटी भतीजी सबके बारे में चिंता उतनी ही थी जितनी सड़क पर पैदल लौटते मज़दूरों की ।
फिर सोचने लगता कि- ईश्वर इन सबका रास्ता छोटा हो सकता है क्या ।
फिल्मी कलाकार को मज़दूरों की मदद करते देख जगत बहादुर अन्नू सुबोध पहारिया जी और मुहल्ले वाले आरएसएस के स्वयम सेवकों की बिना प्रचार की सेवा देखी तो पता चला कि हमारे रिश्तेदार भी चुपचाप भोजन बना बना कर भाई आशीष दीक्षित जी (ज्वॉइंट डायरेक्टर सोशल जस्टिस) को दे रहे हैं । प्रवासियों को भोजन कराना प्रशासन की ज़िम्मेदारी थी । लेकिन अचानक कब जनता ने इसे अंगीकार किया समझने में समय लग गया । हमने क्या किया इसका उल्लेख नहीं कर सकता । हाँ तो बता रहा था कि - इंसानियत का सबसे आइकॉनिक दौर था कोविड का सम्पूर्ण लॉक डाउन । लग रहा था सतयुग आ गया क्या ? या हम बहुत ईमानदार हो गए । अचानक भावुक होना । अश्रुपूरित भाव से महान अवतार को याद करना । ब्रह्म की कल्पना में रोंगटे खड़े हो जाना आम बात हो गई ।
अक्सर सुबह से महामृत्युंजय मंत्र का MP3 साउंड बॉक्स से कनैक्ट कर लोगों के लिए छज्जे पर बजाना लगभग रोजिन्ना की आदत सी हो गई थी । हम सब पर रोज़ विचारों का उतरना होता है । यह अवस्था वैचारिक अवतरण की अवस्था है । इसे रोज़ उसी गति से अगर लिखो तो आकाशी पुस्तक तुम हम सब बना सकते हैं ।
अब कुछ दिनों के बाद ध्यानस्त होना आसान हो गया था । कई बार लगा मृत्यु कभी भी आ सकती है । छोड़ दो विकारों को छूटे भी विकार.. !
श्मशान का वैराग्य क्षणिक से दीर्घकालिक हुआ । जो साहजिक होता चला गया । अब पद प्रतिष्ठा नाम कुल श्रेष्ठता के भाव पता नहीं किस पोटली में बंध गया मुझे नहीं मालूम भगवान न करे वो मुझे वापस मिले।
इस बीच सुशांत ने मृत्यु का वरण किया या जो भी हो वो हमारे बीच से गया बुरा इस लिये लगा कि MS Dhoni इस दौरान दूसरी बार देखी थी । अभिनय अच्छा लगा फैन हो गया था । सुशांत सिंह के लिए चैनल्स बावले हो गए रहा सहा टीवी से मोहभंग हो गया । पर यूट्यूब पर ताहिर गोरा डॉक्टर शारदा से भेंट हुई बेहतरीन समाचार एवम समीक्षाऐं मेरी रुचि के अनुकूल यानी साउथ एशियन राष्ट्रों पर केंद्रित सोशियो इकोनॉमिक मुद्दे । ये बावले टीवी चैनल्स जब भारत चीन को मुगलिया दौर की तरह मुर्गों की मानिंद लड़वा रहे थे मुझे मन ही मन तो कभी खुलकर हंसी आ जाती थी । सिर्फ हंसने के लिए टीवी चलाता था । वरना स्मार्ट tv पर यूट्यूब देखने का मज़ा ही कुछ और है ।
सुधिजन आपके एहसास इसी के इर्दगिर्द थे न । कोविड आज भी डराता है । मृत्यु से भय नहीं है पर दुःख ये रहेगा कि अगर कुछ हुआ तो मित्रों को शमशान वैराग्य की अनुभूति न हो सकेगी । अरे हाँ बेफिक्र रहो सबकी सलामती के लिए काल से प्रार्थनारत रहो ।
दुर्भाग्य के दौर में सौभाग्य के पथ मिलते हैं । कुछ अहंकारी परिजन टूट गए छिटककर दूर करना हम भी चाहते थे । जो हुआ अच्छा हुआ ।
कृष्ण ने शास्त्र सुनाकर शस्त्र उठाने को कहा पार्थ ने वही किया ।
न दैन्यम न पलायनम एक अटल सत्य है मुझे लगता है कि फ़िज़ूल में रिसते हुए रिश्तों की पोटली सर पर मैंला ढ़ोने जैसी कुप्रथा है ।
आईना भी दिखाते चलो - एक घटना अभी अभी घटी ... अनावश्यक एकात्मता का अभियान छेड़ दिया कुछ परतें उधेड़ दीं बुरा लगा कुछ लोगों को । लामबंद जत्था आक्रामक हो गया तो "इहाँ कुम्हड़ बतियाँ कोउ नाहीं , जो तर्जनी देखहिं मर जाहिं ।।" की तर्ज़ पर अडिग रहा आज भी हूँ । आप भी अडिग रहें भारत की एकात्मता पर किसी आक्रमण को मत सहो । तुम्हारी सनातनी संस्कृति अखण्ड है अविरल है । कह दो फैसला तो ब्रह्म करेगा न वही सबसे बड़ा निर्णायक है । "एकात्म भारत ही विश्वगुरु के पथ पर फिर से चलेगा वर्ना असंभव है ।"
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