Ad

मंगलवार, जून 16, 2015

प्राप्ति और प्रतीति : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

परिंदों,
तुम आज़ाद हो,
उड़ो, ऊँचे और ऊँचे,
जहाँ, सफलता का दृश्य,
बाट जोहता है।
जहाँ से कोई योगी,
पहले पहल सोचता है ?
इस आव्हान का असर,
एक पाखी ने फड़फड़ाए पर,
टकराकर, जाने किस से -
गिर गया -विस्तृत बयाबान में,
और
तब से अब तक हम,
आप और मैं. . .
ताड़ के पत्तों से,
किताबों के जंगल तक-
अन्वेषणरत-
खोजते-
कराहों का कारण


इसे सुनिए यहाँ :- प्राप्ति और प्रतीति 

बुधवार, जून 10, 2015

दो दिन की लघुकथा


पहला-दिन
रत्तू भिखारी बहुत देर तक चीखता चिल्लाता रहा .......... पॉश कालोनी में दो दिनों से मिला तो पर पेट भरने के लिए पानी अधिक पीना पड़ा था आज पॉश कालोनी में मिलने की उम्मीद जो थी . रंग बिरंगे परन्तु बड़े बड़े गेट थे कि खुलने का नाम न ले रहे थे . जिस  गेट के सामने पहुँचा किसी दरवाज़े से सफ़ेद झक्क वाला कुता भुक्क भुक्क कर भगाता नज़र आया तो किसी गेट पर बड़ी नस्ल वाले कुत्ते ने दुत्कारा ... पर भिखारी ने रटी-रटाई पुकार लगानी न छोड़ी .
निरंतर पुकार रहा था सीता मैया राधा जी , देवकी मैया भूखे को भोजन दे दे माँ .. दो दिनों का भूखा हूँ माँ ....... सीता ........... देवकी दोरे खोल लो अब मैया जी ......
एक भी दरवाज़ा न खुला ...... थक हार कर बेचारा भिखारी मंदिर के आहाते में सो गया .... रात कोई आया सपने में . क्या समझाया रत्तू को मालूम होगा अपन को कुच्छ नई मालूम..    
दूसरा-दिन
आज भिखारी पूरे उत्साह से उठा मंदिर के पास वाले बंगले के पास चिल्लाया....... देवी श्री देवी भगवान तुम्हारा भला करेगा .
भुक्क-भुक्क करने वाले कुत्ते को डपटते हुए प्रौढ़ा ने नौकर को आवाज़ लगाईं .... बहादुर एक पेपर प्लेट में पोहे जलेबी ले आ ..
अगले गेट पे ..... रत्तू ने पुकार देवी प्रियंका कुछ दे दो दो दिन का भूखा हूँ ..
इस पुकार ने उसे गज़ब परोसा दिलवाया. जिस घर के सामने उसने कंगना रनौत पुकारा उधर तो उसे रोटी, पानी, पचास रुपए मिले ...

एक घर के सामने गलती से आलिया क्या पुकार बैठा......... घर की तरुणियों ने जिस कदर डपटा कि रत्तू की हवा निकस गई.........    

शुक्रवार, जून 05, 2015

पुरस्कृत होकर प्रसन्न हुए बालभवन जबलपुर के बच्चे

म.प्र. प्रदूषण बोर्ड जबलपुर, हिन्दुस्तान इको सॉफ्ट  जबलपुर एवं संभागीय बाल भवन जबलपुर द्वारा पर्यावरण दिवस पर चित्रकला प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण समारोह शुभारम्भ दीप प्रज्जवल एवं शिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देशन में बालभवन के  बच्चों द्वारा पर्यावरण गीत  से हुआ ।
कार्यक्रम  के मुख्य अतिथि श्री एच. के. शर्मा संयुक्त संचालक,एकीकृत बाल विकास सेवाएं , जबलपुर तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता  श्री व्ही के अहिरवार ,वरिष्ठ अधीक्षण अभियन्ता, म.प्र.प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( भोपाल ) रहे ।  संभागीय उपंसचालक श्रीमती मनीषा लुम्बा (महिला  सशक्त्किरण) एवं क्षेत्रीय समन्वयक ,महिला संसाधन केन्द्र ,जबलपुर श्रीमती शालिनी तिवारी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति थीं ।
                                     मुख्य अतिथि श्री एच. के. शर्मा सयुक्त संचालक ने कहा कि बाल भवन द्वारा सामाजिक एवं ज्वलंत मुद्दों पर जो कार्य किया जा रहा है इसकी जितनी तारीफ की जावे कम है उससे अधिक तारीफ प्रशंसा उनकी करना होगी जो स्पर्धा में शामिल होते हैं . अपनी अभिव्यक्ति में राष्ट्रीय बालश्री  पुरस्कार हेतु चयनित शुभमराज अहिरवार  एवं महिला पंचायत भोपाल में गहरी छाप छोड़ने वाली बाल-गायिका इशिता का उदाहरण देते हुए श्री शर्मा ने बच्चों से लक्ष्य को सपनों में देखने फिर लक्ष्य की पूर्ती के लिए सतत जुटाने की सलाह दी .
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री व्ही एस अहिरवार वरिष्ठ अधीक्षण अभियन्ता द्वारा बच्चों द्वारा रचित चित्रों की भूरि-भूरि प्रसंशा की गई एवं बच्चों को यह प्रण लेने को कहा कि वे पर्यावरण सरंक्षण कर मानव जीवन को बचाने का संदेश दिया।  वे बच्चे जिन्होन पर्यावरण को बचाने पर केन्द्रित रचनात्कता प्रदर्षित की है उन बच्चों को विशेष रुप से बधाई दी साथ ही श्री अहिरवार ने बच्चों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए तथा यह भी  कहा कि  बाल भवन द्वारा निराश्रित एवं निषक्त बच्चों कों प्रोत्साहित कर सामाजिक सरोकारों  को जोड़ने का बीड़ा उठाया है जो निःसदेह सराहनीय है ।       
                                  हिन्दुस्तान ईको सॉफ्ट  की ओर से श्री राजेश दुबे ने एवं संभागीय बालभवन की ओर से श्री पियूष खरे ,श्रीमति रेणु पांडे एवं श्रीमति मीना सोनी का कार्यक्रम में शिप्रा सुल्लेरे,सोमनाथ सोनी ,देवेन्द्र यादव एवं इन्द्र पाण्डे का सहयोग रहा ।
पुरस्कृत होकर प्रसन्न हुए ये बच्चे

जूनियर वर्ग - प्रथम  स्थान-आदित्य  सिंह ठाकुर,द्वितीय स्थान-हर्षिता  गुप्ता एवं तृतीय  स्थान-अनुराग  सीनियर वर्ग - प्रथम  स्थान-यशी पचैरी ,द्वितीय स्थान-आस्था  गुप्ता एवं तृतीय  स्थान-सुनीता केवट विशेष श्रेणी {मानसिक विकलांग/नि:शक्त} - प्रथम  स्थान-मानसी साहू ,द्वितीय स्थान-गोलू एवं तृतीय  स्थान-राजेश कुशवाहा


म.प्र.प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से रीजनल मैनेजर श्री एस एन द्विवेदी एवं वैज्ञानिक श्री खरे बालभवन संचालक गिरीश बिल्लोरे , के अनुसार 5 जून तक आयोजित कार्यक्रमों में संभागीय बाल-भवन एवं  म.प्र.प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सतत भागीदारी रहेगी तथा आगामी वर्षों में पर्यावरण की जनजागरूकता हेतु बाल-प्रतिभाओं का सहयोग सुनिश्चित किया जावेगा .    

मंगलवार, जून 02, 2015

“क्यों नहीं कर पा रहे हैं भारतीय पूंजी निर्माण”

     
  भारत जिन मौलिक समस्याओं से जूझ रहा है उसमें सबसे आगे रखना चाहूंगा भारतीयों की पूंजी निर्माण की गति में कमी . भारतीय औसतन सार्वजनिक सोच वाला होता है . उसे अपने अलावा परिवार, कुटुंब, आस-पड़ोस, समाज सबके बारे में सोचना होता है .  उसकी उत्सव प्रियता को कोई प्रतिबंधित करे कदापि स्वीकार्य नहीं .
उत्सव एवं मुदिता के मुद्दों पर उसे धन खर्चना सर्वाधिक पसंद है . अवकाश भी उसे निरंतर ज़रूरी होते हैं पर सामान्य रूप से अपेक्षाकृत अधिक कर्मठ होने के गुण एवं तीव्र उत्पादन  क्षमता के कारण भारतीय व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता . जब वो पूंजी बनाने के लिए आमादा हो जाता है तो शुद्ध रूप से कर्मठता के सहारे  जीतता है आगे बढ़ता है समृद्धि के करीब जाता है .. समृद्ध भी होता है इसके कई उदाहरण हैं . जिनका यहाँ ज़िक्र तुरंत करना आवश्यक नहीं है .
संक्षेप में यह संकेत है कि भारतीय अगर पूंजी-निर्माता हो जाए तो तय है कि उसकी उद्यमिता उसे आगे ले जाने में सहायक होगी . किन्तु पूंजी निर्माण की अपनी बाधाएं हैं रोज़ रोज़ मूल्यों में अस्थिरता भारतीयों को पूंजी निर्माण से रोक रही है .
फिर कराधान एवं लाभ के व्यापारिक दुश्चक्र  को ले लीजिये एक रूपए मूल्य की वस्तु का बाज़ार मूल्य तीन से दस गुना होता है . कभी कभी बीस-तीस गुना अधिक होना भी भारतीय के जेब से धन बाहर लाने का प्रमुख कारण हो जाती है जिससे उसकी बचत बनाम पूंजी निर्माण की स्थिति नकारात्मक दिशा में चली जाती है .
उदाहरण के तौर पर आप आलू चिप्स लीजिये – मेरी माँ मेरे बच्चों की माँ से अधिक समझदार थीं . आलू के विभिन्न प्रकार के चिप्स घर में तैयार रखतीं थीं . जिसका परम्परागत प्रसंस्करण होता था वर्षों तक यह कमोडिटी सुरक्षित रहती थी शुद्धता के बारे में कोई चुनौती न थी . अधिकतम 70-80 रुपयों में साल भर के सुस्वादु आहार का स्थान कास्ट-एन्हांसमेंट के सिद्धांत पर बाज़ार में प्रस्तुत टी वी विज्ञापन वाले चिप्सों से कहीं आगे था . आज वर्ष भर के लिए चिप्स पर कम से कम आठ हज़ार रूपए खर्च किये जाना सामान्य सी बात हो गई है . तीस बरस में हमने न केवल चिप्स खोया बल्कि फास्ट लाइव मूव के लिए पूंजी निर्माण की गति को धीमा भी कर दिया . यानी हम व्यावसायिक षडयंत्र के शिकार हो गए . पर मानें या न मानें युवा ऐसी स्थितियों से उकताने लगेंगें जैसे ही उनके ज़ेहन में पूंजी निर्माण की बात आती है तो बेशक वो परम्परा के पुनरीक्षण (रीव्यू) में जुट जाएगा ऐसा मेरा मानना है  .

टेक्स पर भी सरकारों को विशेष रूप से ध्यान देना होगा . अगर एक व्यक्ति मान लीजिये पांच लाख आय अर्जित करता है तो उसे शुद्ध रूप से सेवा, स्वास्थ्य, शिक्षा , उर्जा, उत्सव मनोरंजन, यात्रा  , पर सब कुछ  ख़त्म कर देना होता है . वार्षिक बचत के नाम पर अगर दस बीस हज़ार बचा भी लिए तो वह उसका भाग्य ही मानिए . यहाँ यह बता दूं कि आय से क्रय की गई सेवाओं एवं वस्तुओं का वास्तविक मूल्य व्यय के सापेक्ष 70% से 80% मात्र होता है . यानी कराधान एवं बेलगाम लाभ अर्जन की व्यावसायिक प्रणाली के चलते भारतीय नागरिक 70 प्रतिशत मूल्य की सेवा अथवा कमोडिटी भुगतान के सापेक्ष चुका रहा है ऐसे में पूंजी निर्माण का स्वप्न मारीचिका ही है .   

रविवार, मई 31, 2015

नदियों के घाटों पर महिलाओं की सुरक्षा : कुछ सुझाव

नदियों  के तटों पर  परिवार सहित भक्त जन  भक्ति भाव से आते हैं अपने बेटे  बेटियों बहुओं महिलाओं के साथ . कल शाम ग्वारीघाट पर आध्यामिक भ्रमण के दौरान मैंने भी स्नान किया देखा
जहां महिलाएं स्नान कर रहीं थीं वहां शोहदे टाइप के लोग अधिक सक्रीय थे . बाकायदा अपने सेलफोन से फोटोग्राफी में मशगूल भी थे.
          कुछ परिवारों ने विरोध भी जताया जो जायज था . भद्र मीडिया जिताना समय और स्पेस सनी लियोनी को अथवा सियासत को दे रहा है उससे आधा समय भी दे दे तो महिलाओं के खिलाफ होते इस सामाजिक नज़रिए को  बदला जा सकता है.

 मेरी तस्वीर को देखिये क्या मैंने
ग़दर फिल्म में काम किया है ?
          न्यू-मीडिया एरा  में सबसे फास्ट-इन्फार्मेशन स्प्रेड करने वाले सारे संसाधन मौजूद  हैं . पलक झपकते ही  आप की तस्वीर कहाँ जाएगी इस बात का आपको गुमान भी नहीं  हो पाता. फिर आपकी तस्वीर को सेलफोन पर मौजूद सॉफ्टवेयर के ज़रिये क्या से क्या बनाया जा सकता है इस बात का तो अंदाजा कोई भी नहीं लगा सकता . मेरी तस्वीर को देखिये क्या मैंने ग़दर फिल्म में काम किया है ... न फिर भी हीरो की ज़गह मेरी तस्वीर चस्पा है ... ये सॉफ्टवेयर का करिश्मा है . तो क्या कोई शोहदा महिलाओं बेटियों के चित्र के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता . मित्रो मेरे इस विचार पर चिंतन अवश्य कीजिये तथा सरकार से नदियों के किनारे वाले घाटों पर सेलफोन से चित्र लेना वर्जित करने के नियम बनाने के लिए अनुरोध अवश्य कीजिये . तब तक जब भी घाटों पर जाएं तो स्नान करने वाले घाटों पर  न खुद सेलफोन कैमरों अथवा अन्य कैमरों से फोटो लें न ही फोटो लेने दें . घाटों पर सेवा समितियां भी इस तरह की हरकतों को रोक सकती है . 
            जहां तक जबलपुर का सवाल है यहाँ  ग्वारीघाट, भेडाघाट, तिलवारा , आदि की प्रबंधन इकाइयों जैसे नगरपालिक निगम जबलपुर  , नगर-पंचायत  भेड़ाघाट, आदि  से अपेक्षा है कि वे महिलाओं के स्नान के लिए सुरक्षित स्थान का आरक्षण करें एवं महिलाओं को कपडे बदलने के लिए कवर्ड ढांचा बनाने की प्रक्रिया सबसे पहले करना चाहिए . 

हीट स्ट्रोक के मामलों में इज़ाफ़ा, एहतियात बरतने की सलाह :सरफ़राज़ ख़ान

भीषण गर्मी के कारण देश में हीट स्ट्रोक के मामलों में इज़ाफ़ा हो रहा है. हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने गर्मी में मरीजों द्वारा की जाने वाली गलतियों और प्रबंध के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए हैं.
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक़ हीट स्ट्रोक दो तरह के होते हैं। पहला, वे जो युवा काफ़ी समय तक गर्मी के दौरान मेहनत वाले काम में संलिप्त होते हैं, हीट स्ट्रोक के षिकार होते हैं. हालांकि नॉन एक्जरशनल हीट स्ट्रोक कम सक्रिय रहने वाले वृध्दों या ऐसे लोगों पर अधिक असर डालती है जो बीमार होते हैं या कम उम्र वाले बच्चों में होती हैं.
अगर इस पर समय पर ध्यान नहीं दिया जाए तो सैकड़ों लोग 72 घंटों में जान गंवा सकते हैं. अगर उपचार में देरी हुई तो मृत्यु की संभावना 80 फ़ीसदी तक होती है, इसमें भी दस फ़ीसदी की कमी की जा सकती है अगर संभावित गलतियों से बचा जाए व जल्द ज़रूरी उपाय कर लिए जाएं।
बीमारी का पता न लगा पाना : यह रेक्टल तापमान है जो कि एग्जिलरी या ओरल तापमान से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को हीट स्ट्रोक हो सकता है जिसमें उपचार न करा पाने की वजह रेक्टल तापमान ना लेना हो सकता है। हीट स्ट्रोक की स्थिति तब होती है जब तापमान 41 डिग्री सेंटीग्रेड (106 डिग्री फारेनहाइट) से अधिक हो और पसीना न आए।
हीट स्ट्रोक को हीट एग्जाशन समझने की भूल : दोनों में फर्क यह है कि हीट स्ट्रोक के दौरान मरीज को पसीना नहीं आता।
धीरे-धीरे तापमान कम होना : उपचार के तौर पर तापमान में कमी का लक्ष्य कम से कम 0.2 डिग्री सेंटीग्रेड प्रति मिनट कम करते हुए करीब 39 डिग्री सेंटीग्रेड (102 डिग्री फारेनहाइट) तक पहुंचाना होता है।
39 डिग्री से परे लगातार ठंड में रहना : हाइपोथर्मिया से बचाव के लिए 39 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान से कम के वातावरण में रहना चाहिए।
एंटी फीवर दवाएं देना : एंटी फीवर दवाएं पैरासीटामॉल, एस्प्रिन और नॉन स्टीरायॅडल एंटी इन्फ्लेमैटरी की कोई भूमिका नहीं होती। यह दवाएं अगर मरीज लीवर, ब्लड और गुर्दे की समस्या से ग्रसित है तो नुकसानदायक साबित हो सकती हैं। इनकी वजह से रक्तस्राव भी हो सकता है।
बार बार तापमान की जांच न करना : व्यक्ति को चाहिए कि वह लगातार रेक्टल तापमान को जांच करता रहे।
एक बार तापमान गिरने के बाद बुखार की जांच न करना : हीट स्ट्रोक के बाद कुछ दिनों तक बुखार रह सकता है। इसलिए जरूरी है कि इस दौरान लगातार शरीर के तापमान की जांच करते रहें।
कपड़े न उतारना : मरीज के सारे कपड़े उतार देने चाहिए ताकि इवेपोरेषन से तापमान में कमी की जा सके।
सीज़र में फिनाइटॉइन देना : हीट स्ट्रोक में सीजर को काबू करने के लिए फिनाइटॉइन असरकारी नहीं होती।
तापमान को कम करने के लिए क्लोरप्रोमौजीन देना : पहले यह मुख्य उपचार के तौर पर इस्तेमाल होती थी, लेकिन अब इससे परहेज किया जाता है क्योंकि इससे सीजर की आषंका बढ़ जाती है।
मरीज़ के लिए खुद से एंटी कोलीनेर्जिक एंव एंटी हिस्टेमिनिक दवाए लेना : इस मौसम में खुद से एंटी एलर्जी और नाक बहने जैसी समस्याओं में दवाएं लेना हानिकारक साबित हो सकता है। इससे गर्मी का संतुलन गड़बड़ाने के साथ ही जल्द हाइपोथर्मिया भी हो सकता है।
हृदय रोगियों का सावधानी न बरतना : बूढ़े हृदय रोगियों में कार्डियोवैस्कुलर दवाएं जैसे- बीटा ब्लॉकर्स, कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स और डयूरेटिक्स हाइपरथर्मिया को बढ़ा सकता है।
मरीज़ द्वारा ली गई ड्रग्स के बारे में न बताना : कोकीन और एम्फेटामाइन्स जैसी ड्रग्स लेने पर मेटाबॉलिज्म बढ़ने से अधिक गर्मी हो सकती है। ऐसी स्थिति में हीट स्ट्रोक कहीं ज़्यादा घातक साबित हो सकता है।
हल्के तापमान को नज़र अंदाज़ करना : हर व्यक्ति को यह याद रखना चाहिए कि उच्च तापमान तभी आता है जब हल्के बुखार को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है। अगले कुछ दिनों तक अचानक बुखार को स्ट्रोक ही माना जाना चाहिए जब तक कि कुछ और साबित न हो जाए।
ज़्यादा तरल पदार्थ न देना : याद रखें कि ऐसे में आंतरिक अंग जलने की स्थिति में होते हैं और यह आग सिर्फ़ फीवर के साथ ही निकल सकती है। ऐसे मरीज़ों को चाहिए कि वे आंतरिक अंगों को ठंडक पहुंचाने के लिए अधिक से अधिक तरल पदार्थों का सेवन करें।

सिर्फ़ सिर को ठंडा करना : मरीज़ों को बहते हुए नल के नीचे बैठाकर नहलाना चाहिए ना कि सिर्फ पानी लेकर हाथ या सिर को ठंडक पहुंचाएं। आइस मसाज से परहेज़ करना चाहिए, क्योंकि इससे आंतरिक तापमान में कोई कमी नहीं आती ।
( स्टार न्यूज़ एजेंसी से साभार )

फास्ट एरा बनाम फेसबुक, टिवटर और व्हाट्सएप : डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

समीक्षक का काम टिप्पणी करना होता है। उसकी समझ से वह जो भी कर रहा है, ठीक ही है। मैं यह कत्तई नहीं मान सकता, क्योंकि टिप्पणियाँ कई तरह की होती हैं। कुछेक लोग उसे पसन्द करते हैं, बहुतेरे नकार देते हैं। पसन्द और नापसन्द करना यह समीक्षकों की टिप्पणियाँ पढ़ने वालों पर निर्भर हैं। बहरहाल कुछ भी हो आजकल स्वतंत्र पत्रकार बनकर टिप्पणियाँ करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई हैं, जिनमें कुछ नए हैं तो बहुत से वरिष्ठ (उम्र के लिहाज से) होते हैं। 21वीं सदी फास्ट एरा कही जाती है, इस जमाने में सतही लेखन को बड़े चाव से पढ़ा जाता हैं। बेहतर यह है कि वही लिखा जाये जो पाठको को पसन्द हो! आकरण अपनी विद्वता कर परिचय देना सर्वथा उपयुक्त नहीं हैं।
चार दशक से ऊपर की अवधि में मैने भी सामयिकी लिखने में अनेकों बार रूचि दिखाई, परिणाम यह होता रहा कि पाठकों के पत्र आ जाते थे, वे लोग स्पष्ट कहते थे कि मैं अपनी मौलिकता न खोऊँ। तात्पर्य यह कि वही लिखूँ जिसे हर वर्ग का पाठक सहज ग्रहण कर ले। जब जब लेखक साहित्यकार बनने की कोशिश करता है, वह नकार दिया जाता है। जिसे साहित्य ही पढ़ना होगा, वह अखबार/पोर्टल क्यों सब्सक्राइब करेगा? लाइब्रेरी जाकर  दीमक लगी पुरानी सड़ी-गली जिल्द वाली पुस्तकें लेकर अध्ययन करेगा। मीडिया के आलेख अध्ययन के लिये नहीं अपितु मनोरंजनार्थ होने चाहिये।
वर्तमान में जब हर कोई भौतिकवादी है तब उसके शरीर में अनेकानेक बीमारियाँ होने लगी हैं। तनावों से उबरने के लिये वह ऐसे आलेखों का चयन करता है जो कम से कम उसे थोड़ी देर के लिये तनावमुक्त कर सके। मैने ऐसे लोगों को भी देखा है जिन्होने अपनी स्टडीबना रखी है उसमें करीने से मोटी-मोटी पुस्तकों को सजा कर रखा हैं लेकिन पढ़ा कभी नहीं ऐसा मैने जब उनसे पूँछा तब उन सभी ने कहा कि यह एक दिखावा है ताकि लोग उन्हें पढ़ा-लिखा समझें।
हालाँकि जब मैने अपने अनुभवों को विषय वस्तु बनाकर लिखा तब कथिक स्तरीय प्रकाशकों ने उसे नकार दिया। संभवतः ऐसे आलेख उनके प्रकाशन के लिये उपयुक्त नहीं होते रहे होंगे। इन्टरनेट के युग मंे फेसबुक पर लिखे गये संक्षिप्त आलेखों को हजारों/लाखों लोग पसन्द करते हैं। यही पाठक अखबारों/पोर्टलों पर छपे समीक्षात्मक आलेखो की तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं। कई प्रकाशको को देखा है कि वह लोग ऐसे लोगों के आलेखों को’ ‘लिफ्टकरके अपने प्रकाशन में स्थान देते हैं जिसे लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं।
21 वीं सदी फास्ट युग कही जाती है। अब जो लगभग हर हाथ मे ऐसे लेटेस्ट मोबाइल सेट्स है जिनमे इन्टरनेट के जरिये फेसबुक, टिवटर और व्हाट्सएप पर कुछ न कुछ लिखने वालों की तदाद बढ़ गयी हैं। ऐसे लोग चर्चा में भी रहते हैं। प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में अपनी समीक्षाएँ छपवाने वाले टिप्पणीकारों के दिन लद रहे हैं। इसलिए अब उन्हें होशियार  हो जाना चाहिए और फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पर लिखना शुरू करें। फेसबुक पर लोगों के चेहरे (खिले हुए) देखकर मुझे इर्ष्या होने लगी है। लेकिन क्या करूँ मेरे साथ दिक्कत यह है कि दृष्टिदोषहोने की वजह से मैं वह सब नहीं लिख सकता और न ही फोटो अपलोड कर सकता हूँजैसा कि अन्य लोग कर रहे हैं।
कहने को पिछले कई वर्षों से एक वेबपोर्टल रेनबोन्यूज डॉट इन के नाम से ऑपरेटकर रहा हूँ  लेकिन तकनीकी ज्ञान के अभाव में कागज पर लिखता हूँ  और आलेखों को टाइप करवाकर उस पर पोस्ट करवाता हूँ। दो वर्ष पूर्व तक उस पर छपे लेखों/संवादो पर पाठकों की प्रतिक्रियाएँ भी आती थीं, लेकिन जब से सोशल साइट्स जैसे फेसबुक/ट्विटर/वहाट्सएप का प्रचलन बढ़ने लगा पोर्टल/ब्लाग्स भी महत्वहीन होने लगे हैं।
बड़े-बड़े जानकर समीक्षक-टिप्पणीकार-कलमकार फेसबुक पर मिलते हैं। अब तो राजनेता-प्रशासनिक अधिकारी नित्य की अपनी गतिविधियों को बखूबी विस्तार से फेसबुक पर लिखकर हजारो-लाखों मित्रों को शेयरकरते हैं। नेट/वेब की तकनीकी जानकारी भी फेसबुक पर देने वालों की काफी तदाद है। बड़ी मेहनत करते हैं ये लोग। रात-रात भर जागकर रोचक आप बीती शेयरकरने वालों की संख्या वृद्धि ने प्रिन्ट पर समीक्षाएँ लिखने वालों को हाशिए पर लाना शुरू कर दिया है। ऐसा मुझे प्रतीत होता है- यह आप पर लागू हो इसकी कोई गारण्टी नहीं।
एक जानकार ने मेरे नाम से फेसबुक एकाउण्ट बना दिया है। कभी कभार उसमें मेरे आलेख पोस्ट कर दिये जाते है। ऊपर वाला गवाह है कि उसे कोई पसन्द तक नहीं करता है। इसका दोषारोपण किस पर करूँ? शायद  मुझमें तकनीकी ज्ञान का अभाव है, इसलिये अपने विचारों को प्रसारित करने में चूक जा रहा हूँ । मेरे फेसबुक एकाउण्ट में पोस्ट किये गये आलेख/विचारों पर किसी प्रकार की टिप्पणियाँ नहीं होती हैं। इसका सीधा सा कारण है कि मेरे फेसबुक मित्रो की संख्या नगण्य है, जो हैं भी उन्हें मेरे विचार पसन्द नहीं होते होंगे। 
बहरहाल! मुझे प्रतीत हो रहा है कि अब वह दिन दूर नहीं जब समीक्षकों के  लेखादि जो पत्र-पत्रिकाओं में छपे होंगें उन पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रियाँए देखने/सुनने/पढ़ने को नहीं मिलेगी। तब क्या करेंगे ये लोग......? इसीलिए इन लोगों ने सोशल साइट्स का सहारा लेना शुरू कर दिया है। किराये पर आर्टकिल अपलोडर्स/अपडेटर्स रखकर ये लोग अपने विचारों को इन साइट्स पर अपलोड करवाते है और वाह-वाही लूट रहें हैं।

अब मैंने भी निश्चय कर लिया है कि यदि पढ़े-लिखे लोगों में चर्चित रहकर जिन्दा रहना है तो फेसबुक.... आदि सोशल साइट्स पर कुछ न कुछ अपलोड कराया जाए। एक सज्जन ने मुझे एन्ड्रायड मोबाइल फोन गिफ्ट करने को कहा है और बताया कि इसमें लिखकर अपलोड करना आसान होता है। अब मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा हँू उस दिन का जब मुझे एन्ड्रायड फोन गिफ्ट में मिलेगा।

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में