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बुधवार, सितंबर 26, 2018

माओ के मवाद को साफ़ करना ही होगा

आतंकवादी 
वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे
       बेतरतीब बेढंगे
नकारात्मक विचारो का सैलाब
   शुष्क पथरीली संवेदना
कटीले विचारो से लहू-लुहान
सूखी-बंज़र भावनाओ का निर्मम 
            "प्रहार "
कोरी भावुकता रिश्ते रेत सामान
हरियाली असमय वीरान
उजड़ता घरोंदा बिखरते अरमान
  टूटती-उखड़ती साँसे जीवन
             " बेज़ान  "
स्वयं से डरी सहमी अंतरात्मा
        औरो को डराती
शुष्क पथरीली पिशाची आत्मा का
          " अठ्ठाहास  "
वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे बेतरतीब
       बेढंगे आतंकवादी
    सब के सब एक सामान
         आतंकवादी.......
  भगवानदास गुहा, रायपुर छत्तीसगढ़   

मैं खामोश बस्तर हूँ,लेकिन आज बोल रहा हूँ।
अपना एक-एक जख्म खोल रहा हूँ।
मैं उड़ीसा,आंध्र,महाराष्ट्र की सीमा से टकराता हूँ।
लेकिन कभी नहीं घबराता हूँ
दरिन्दे सीमा पार करके मेरी छाती में आते हैं।
लेकिन महुआ नहीं लहू पीकर जाते हैं।
मैं अपनी खूबसूरत वादियों को टटोल रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा  हूँ।
गुंडाधूर को आजादी के लिए मैने ही जन्म दिया था।
इंद्रावती का पानी तो भगवान राम ने पीया था।
भोले आदिवासी तो भाला और धनुष बाण
चलाना जानते थे।
विदेशी हथियार तो उनकी समझ में भी नहीं आते थे।
ये विकास की कैसी रेखा खींची गयी,
मेरी छाती पे लैंड माईन्स बीछ गयी।
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब 
लेकिन बोल रहा हूँ
मेरी संताने एक कपड़े से तन ढकती थी।
हंसती थी,गाती थी,मुस्कुराती थी।
बस्तर दशहरा में रावण नहीं मरता है।
मुझे तो पता ही नहीं था
रावण मेरे चप्पे चप्पे में पलता है।
भाई साहब अब तो मेरी संताने भी
मुखौटे लगाने लगी हैं।
लेकिन ये नहीं जानती हैं कि
बहेलियों ने जाल फ़ेंका है।
मैने कल मां दंतेश्वरी को भी
रोते हुए देखा है।
मैं लाशों के टुकड़ों को जोड़ रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा हूँ..
नक्सलवाद मेरी आत्मा का एक छाला था
फ़िर धीरे-धीर नासूर हुआ,
और इतना बढा-इतना बढा कि
बढकर इतना क्रूर हुआ
चित्रकूट कराह रहा है,कुटुमसर चुप है
बारसूर में अंधेरा घुप्प है,क्योंकि हर पेड़ के पीछे एक बंदुक है।
और बंदुक नहीं है तो उन्होने कोई रक्खी है।
अरे उन्होने तो अंगुलियों को भी
पिस्तौल की शक्ल में मोड़ रखी है।
सन 1703 में मैथिल पंडित भगवान मिश्र ने जिस दंतेश्वरी का यशगान लिखा,
उसका शब्द शब्द मौन है।
अरे कांगेरघाटी,दंतेवाड़ा,
बीजापूर,ओरछा,सूकमा कोंटा में
छुपे हुए लोग कौन हैं?
मेरी संताने क्यों उनके झांसे में आती हैं।
ये इतनी बात इनकी समझ में क्युं नहीं आती है।
सड़क और बिजली काट देने से तरक्की कभी गांव में नहीं आती है।
मैं अपने पुत्रों की आंखे खोल रहा हूँ,
*मैं खामोश बस्तर हूं भाई साहब लेकिन आज बोल रहा हूँ।*
6 अप्रेल को 76 जवान दंतेवाड़ा में शहीद होते हैं,
8 मई को 8 लोग शहादत से नाता जोड़ते हैं।
23 जून को 29 जवान शहीद होते हैं,
27 जून को 21 जवान शहीद होते हैं।
11 मार्च को 16 जवान शहीद होते है..  
अप्रैल 16 जवान शहीद होते है ....
कल फिर सुकमा में 26 जवान शहीद हो गये ......
*मैं शहीदों की माताओं के आगे  हाथ जोड़ रहा हूँ..*
*मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब लेकिन बोल रहा हूँ...*
इंजीनियर सुनील पारे , विजय नगर जबलपुर    

बस्तर  की आज़ादी के नारे लगाता
जे एन यू.. जाधवपुर का हुजूम......
व्यवस्था के खिलाफ
बरसों से पाली जा रही
आयातित विचारधाराओं की विष बेलें
सहिष्णुता के नाम पर
डेमोक्रेसी के धुर्रे उडाती
माओ की विवादी जमात
पूर्वोत्तर में पलती कुंठा
एक असभ्य अभ्यास
सुनी है न
रवीश की बेतरतीब रिपोर्ट   
शहादत पर  
शब्दों का व्यापार करते
बेरहम लोग...
सुना है एवार्ड वापस नहीं हो रहे
माओ के मवाद
को
साफ़ करना ही होगा
कैसे ..........?
यही सोच रहे हैं ....... सब ........
वो भी जड़ से .........
जड़ कहाँ है
तुमको मालूम है न ?
गिरीश बिल्लोरे मुकुल , जबलपुर    


सोशल-मीडिया पर छील देते हैं मित्र सलिल समाधिया


            
 सलिल समाधिया 
  स्वभाव गत बेबाक ,  
 सलिल समाधिया  मेरी मित्रसूची में सर्वोपरी हैं. सोशल मीडिया के जबलपुरिया  लिक्खाड़ इन दिनों स्तब्ध नि:शब्द से जान पडतें हैं. सलिल फ़िज़ूल बातों से दूर अपनी मौज की रौ में बह रहे हैं.  आइये हम देखें एक ज़बरदस्त पोस्ट .. 
कल एक मित्र ने पूछा , "आप, सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर क्यों नहीं लिखते हो ?
अब जवाब सुनिए,
         हाँ, मैं नहीं लिखता ..रेप पर , मॉब लिंचिंग पर, राजनीति पर, गरीबों की व्यथा पर ,
क्योंकिं... मैं नहीं चाहता की मैं अपनी पीड़ा और आक्रोश का लावा शब्दों के जाम में उडेलूं और उसे सोशल मीडिया पर शराब की तरह पिया जाए...
क्योंकि ..बोल लेने से , बक लेने से
बुझ जाती है ..आग
चुक जाता है ..वीर्य
कुंठित हो जाता है ..पुंसत्व !
इसीलिए तॊ ये देश , क्लीवों का देश हो गया है !
..
क्योंकि , चित्रों , नाटकों और कविताओं ने सोख ली है ...ज़ेहन की गर्मियां और कसी मुट्ठियों की आग !
हां , मैं प्रेम बांटता हूं , और आग संजो के रखता हूं ,
इस क़दर कि ,
काट सकूं , अस्मत पे बढ़ते हाथ !
रुदन बना सकूं , राक्षसी अट्टहास को !
प्रेम , श्रंगार, सौंदर्य के मामलों में मैं कवि हूं ,
पाप और अन्याय के मामलों में मैं फ़ौजी हूं !
     ये आत्मश्लाघा नहीं है , किन्तु हमारे मित्र , परिचित , और विशेषकर महिला मित्र इस बात को भली तरह जानते हैं कि ...अन्याय के विरुद्ध , कैसी - कैसी ताक़तों से हम .लोहा लिए हैं !
लेकिन समाजिक विषयों पर लेख लिखना , मुझे बिल्कुल नहीं भाता , .
...
बहुत से कारण हैं , चलिए एक उदाहरण देता हूं कि मैं स्त्री - विमर्श पे क्यों नहीं लिखता ...
बहुत खरा और कड़वा लिखूंगा , टॉलरेट कर लीजिएगा !
कहीं दूर नहीं , अपने ही मित्रों की बात करूंगा , जिनमें प्रोफ़ेसर , क्लास वन ऑफिसर्स , वक़ील , कलाकार सब शमिल हैं !
पहले ये जान लीजिए कि भारत के पुरुषों का ' माइंड सेट ' क्या है ? भारत का पुरूष निहायत ही छिछोरा , लम्पट और घोर पुरुषवादी सोच का है !
     भारत में 10 में से 7 पुरुष आपको ऐसे मिलेंगे जो अपनी प्रेमिका को 'सेटिंग ' और मिलन को 'काम लगा दिया ' जैसे शब्दों से सुशोभित करते हैं ! अपनी पत्नियों के बारे में भी बाहर बहुत भौंडे शब्दों का प्रयोग करते हैं
वो स्त्री , जो प्रेम में अपना सर्वस्व उत्सर्ग कर देती है , उसके लिए सेटिंग और सामान जैसे शब्द ..? बेशक ये शब्द भारत के पुरुष के अवचेतन (..sub - conscious ) में छिपे भावों का पता देते हैं ! जहां प्रेम.... है ही नहीं , बस गंदी , लिजलिजी वासना का राक्षस खड़ा है !
अब ऐसे छिछोरे वीर्य कणों से जो संतानें पैदा होंगी , वे निहायत ही पुरुषवादी , स्त्री को भोग और दासी समझने वाली न होंगी , ऐसा सोचना , आँख पे पट्टी बांध लेना ही है !
ये सामूहिक मनसिकता सब ओर संचारित है ! और यही प्रकट होती है बच्चों , स्त्रियों पे गिद्धों की तरह !
           अब आप लाख सोशल मीडिया पे निर्भया कठुआ ,मंदसौर करते रहिए , मगर जब तक आपके घर के पुरुषों के रक्त में ये कुंठित पुरुषवाद दौड़ रहा है आपके लेख , कविताओं , चित्रों से कुछ नहीं उखड़ने वाला !
           आपमें साहस है तॊ स्पॉट पे प्रहार करें ! लेकिन वो तॊ तब होगा न , जब नसों में लावा बह रहा होगा ,
आप तॊ कविताएं , लेख , टिप्पणी लिखकर नदारत हो जाने वालों में से हैं न ! !
               इन छिछोरों से आप प्रेम की , रोमांस की , भावनाओं की गहराई की अपेक्षा करते रहिए , मैं नहीं कर सकता !
.....
जी हाँ , मैं इसीलिए नहीं लिखता इन विषयों पर ! !
साइकोलोजिस्ट कहते हैं कि अगर आत्महत्या करने वाला व्यक्ति , एक पेज़ से लम्बा सुसाइड नोट लिख ले , तॊ फिर उसके सुसाइड करने कि संभावना ख़त्म हो जाती हैं ! ...क्योंकि उसका अवचेतन सब उगलकर शान्त हो जाता है !
             भारत में कोई क्रांति नहीं हो सकती , क्योंकि सोशल मीडिया पे सामाजिक सरोकारों के लेख , चित्र , कविताएं ..सब गर्मी और आक्रोश को सोख लेते हैं !
छिनाल पन से भरे चित्त , रेप के विरोध में लिख रहे हैं !
आकंठ भ्रष्टाचारी , ईमानदारी और परिवर्तन की बातें करते हैं !
स्वयं क्रूरता से भरे तमाशबीन लोग , .. स्त्री अत्याचार , मॉब लिन्चिन्ग , दलित उत्पीड़न पर लिख रहे हैं !
नहीं , मैं कभी भी इस .नकली जमात में खड़ा नहीं हो सकता ! मैं नहीं चाहता कि मेरा वीर्य , सोशल मीडिआ के अक्षर सोख लें !
...
मैं इस दिव्य असंतोष के लावे के तेज से दैदीप्यमान हूं ,
...इसीलिए, ' स्पॉट ' पे जूझता हूं , ' पोस्ट , पे नहीं !


सोमवार, सितंबर 24, 2018

Daughters Day बेटी के इरादों से ऊंचा नहीं है एफिल टावर

#Daughters_Day 
बेटी के इरादों से ऊंचा नहीं है एफिल टावर
मेरे कांधे पर जिस बेटी का सिर है वह है Shivani Billore बेटियों पर गर्व करना यह सारी बेटियां अब काम कर रही हैं मुझे गर्व है कि मेरी बड़ी बेटी शिवानी अगले दो-तीन दिनों में कंपनी की ओर से पुनः एक बार विदेश यात्रा पर होगी इस बार शिवानी जा रही है बेल्जियम के ब्रुसेल्स शहर में जो बेल्जियम की राजधानी है बीच में उसे उसे दुबई भी जाना था किंतु कंपनी की जो भी परिस्थिति रही हो शिवानी Ey में सीनियर एसोसिएट के पद पर पदस्थ है।
गर्व है और कृतज्ञ हूं शिवानी के गुरुजनों का जॉय किंडर गार्डन के श्री प्रवीण मेबैन जो मेरे मित्र भी हैं के स्कूल में शिवानी की शिक्षा प्रारंभ हुई कठोर अनुशासन मेहनत लगन के साथ श्री प्रवीण मेंबेन ने शिवानी में आत्मविश्वास जगाया तो फिर आगे की जिम्मेदारी निभाई जॉय सीनियर सेकेंडरी स्कूल ने जहां इसकी बुनियाद मजबूत हुई । शिवानी ने मुझे 9 वीं क्लास में ही बता दिया था कि पापा मुझे साइंस नहीं पढ़ना है ।
काफी समझाने के बाद शिवानी ने अपने तर्कों के जरिए मुझे इस बात के लिए कन्वेंस करा लिया कि वह साइंस तो नहीं पड़ेगी और मैं संतुष्ट भी था लेकिन परिवार और समाज के काफी सारी लोग यह समझते थे कि साइंस लेकर पढ़ना ही समय की मांग पता नहीं कैसे शिवानी ने कैलकुलेट किया कि उसे कॉमर्स लेकर पढ़ना चाहिए और वह दृढ़ रही उस के संकल्प के आगे मैं नतमस्तक था मुझे उसका फैसला मंजूर था यह अलग बात है उन सब को बहुत दुख हुआ जिनके सुझाव बेकार चले गए काफी सारे तर्क थे सलाह देने वालों के सभी तर्कों से बचते बचाते शिवानी ने लोगों की सलाह को भी ताक में रख दिया हालांकि हमारे घर में सब कोई साथ नहीं है जहां पर सलाह रखी जा सके मुझे तो लगता है उसे पुर्जे पुर्जे करके उड़ा दिया ।
बच्चे जब समझदार होते हैं तो वे तय करने की क्षमता अपने आप में पनपा लेते हैं सक्षम हो जाते हैं अपने निर्णय क्षमता को मजबूत बनाने में और आपको अभिभावक की हैसियत से सिर्फ इतना देखना होता है कि वास्तव में बच्चा क्या कह रहा है ?
बच्चों को कमतर आंकना वर्तमान परिदृश्य में ठीक नहीं है आप जब भी हम मुखर कम्युनिकेशन कर सकते हैं तो हमने भी उतना ही जबरदस्त कन्वेंट सिंह पावर होना चाहिए जितना उस बच्चे में है और बच्चे को उसकी सोच के अनुसार अवसर देना बहुत जरूरी है बहुतेरे मिडिल क्लास परिवार अपने बच्चों को कोई बात सिखाते हैं और वह बच्चा नहीं मानता तो या तो उदास हो जाते हैं अथवा बच्चे को उदास कर देते हैं दोनों ही स्थिति में नुकसान बच्चे का ही होता है मेरा मानना है कि निर्णय लेने की स्थिति में जब बच्चे आ जाते हैं तो उसे निर्णय लेने दिया जाए परंतु उसके निर्णय को भी समझ लिया जाए और यथासंभव से आप सपोर्ट करें मजबूती दे ।
शिवानी तुम्हारे  इरादों से बड़ा
नहीं है एफिल टावर

एक दौर था जब बेटियों को पांचवें दर्जे तक पढ़ाया जाता था घरेलू कामकाज मैं पारंगत होने की शिक्षा मां बहन दिया करते थे लेकिन समय में बदलाव आया स्त्री शिक्षा के महत्व को सब ने समझा अब उसे निर्णय लेने की क्षमता भी दे देनी मध्यम वर्ग के लिए किफायती ही होगी बीजिंग के महिला सम्मेलन में आज से कुछ दशक पहले यह तय किया था की महिलाओं को निर्णय लेने की क्षमता के अधिकार से वंचित नहीं करने देना चाहिए भारत में इस सम्मेलन की अनुशंसा ओं को जिस तरह से प्रभावी ढंग से लागू किया और सामाजिक स्तर पर भारत की बेटियां सुदृढ़ होती नजर आ रही है वैसा दक्षिण एशिया में केवल चीन कर पाया है और दोनों ही देशों में आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत बेशक बढ़ता जा रहा है क्योंकि मैं सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन भी करता हूं पता है मुझे विश्व महिला सम्मेलन की यह अनुशंसा सबसे प्रिय और प्रभावी लगी थी तदनुसार मैंने कई बार इस बात की कोशिश की कि मैं अपनी पत्नी और बच्चियों के प्रस्तावों को स्वीकारो अगर स्वीकारने योग ना हो तो भी समझने की  कोशिश करो और  इनके निर्णय अधिकांश उत्तम ही होते हैं यह सोच शिवानी को उसके निर्णय के अनुसार विषय चुनने का अधिकार दे चुका था । शिवानी कंपनी में सिर्फ बी. कॉम. ऑनर्स अर्थात सामान्य सा कॉमर्स ग्रेजुएशन के दौरान ही Ey द्वारा कैंपस के जरिए सिलेक्ट कर ली गई ।
               शिवानी Ey ग्लोबल में एसोसिएट चुनी गई मध्य प्रदेश से केवल दो बेटियां चुनी गई थी कुछ बच्चों का यह मानना है कि कॉमर्स में बहुत ज्यादा स्कोप नहीं होती परंतु ऐसा नहीं है भाग्य और उससे पहले अपनी मेहनत तथा सब के आशीर्वाद से आप  खाते में जो लिखा है जो आपने अपने खाते में अपनी मेहनत से जो भी कुछ जमा कर  पाते हैं  उसकी बदौलत आप सब कुछ हासिल कर सकते हैं शिवानी छह माह के बाद फिर वापस आएगी साल में कम से कम एक बार 6 माह के लिए उसे विदेश में कहीं ना कहीं जाने का यह दूसरा अवसर है

                मित्रों बेटियों को सशक्त बनाने के लिए उन्हें अवसर देने की जरूरत है और उससे ज्यादा जरूरत है उन पर विश्वास करने की मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था परंतु मैंने शिक्षण संस्था का चुनाव करने से पहले अपनी बेटी को यह समझा दिया था कि अगर आईपीएस इंदौर में मुझे कोई विशेषता ना दिखी तो हमें जबलपुर वापस किसी सरकारी कॉलेज में प्रवेश लेना होगा बेटी ने सहमति दी इंदौर के कई कॉलेजेस में मैंने विजिट किए  एक कॉलेज ने मुझे बताया कि उनके कॉलेज में अभिषेक बच्चन आते हैं तो मेरा प्रतिप्रश्न था कि क्या आपका कॉलेज दंत मंजन है या कोई प्रोडक्ट जिसमें हम जैसे मध्यम वर्गीय लोगों को आकर्षित करने के लिए आप फिल्म स्टारों को बुलाते हैं मुझे लगता है कि आपका कॉलेज मेरी बेटी के लायक नहीं है यह सुनकर ऐडमिशन इन चार्ज मुझे बाहर तक मनाने की कोशिश करने आए किंतु मेरा दृढ़ निश्चय था कि ऐसे संस्थान जहां यह कोशिश की जाती होगी सीटों को बेचने के लिए विभिन्न तरह के हथकंडे अपनाकर अभिभावकों को मोहित करना और बेवकूफ बनाना उनका मौलिक सिद्धांत हो उन कॉलेजेस में संस्थानों में बच्चों को प्रवेश दिलाने की जरूरत क्या है । फिर  अन्य  कालेजों में भ्रमण किया.  वहां के बच्चों का ज्ञान स्तर नापा उन से चर्चा करके अंत में जब आईपीएस अकादमी पहुंचा तो लगा . सोचा ऐसा ही कुछ होगा  यह भी एजुकेशनल मार्केट का एक शो-रूम सरीखा  ?
                बे मन से   अपनी श्रीमती और बेटी से कहा तुम लोग फार्म खरीद कर लाओ तब तक मैं बच्चों से बात करता हूं ।  फिर बच्चों से बातों का सिलसिला शुरू किया  उनसे  भारत की इकोनामिक फॉरेन पॉलिसी पर चर्चा की ।  भारत के इकोनामिक डेवलपमेंट पर साथ ही साथ भारत की व्यवसायिक एवं वित्तीय स्थिति पर चर्चा में बच्चों ने बेहद उत्साह के साथ सटीक  जवाब दिए तब जा कर मैं मैंने अपनी बेटी का दाखिला कराने का मन बना लिया ।
                    अपने बुजुर्गों के आशीर्वाद का मेरी मातोश्री स्वर्गीय सब्यसाची प्रमिला देवी बिल्लौरे पिताश्री काशीनाथ जी बिल्लौरे सभी बुजुर्गों का का आशीर्वाद है मेरी दोनों बेटियां बेटों से कम नहीं इतना ही नहीं मेरी बेटियां मेरे कार्य क्षेत्र में भी मौजूद है एक से एक संघर्षशील और अपने कार्य के प्रति सजग आत्मविश्वास से भरी हुई बेटियाँ 
मुझे बालभवन में भी  मिलती है..... प्रयास यही  किया है कि जितना ज्यादा सबल  हम बेटियों को बनाएंगे उतना अधिक यह देश तरक्की करेगा विजन बिल्कुल साफ है महिला सशक्तिकरण की बात से पहले अपनी बेटी को सक्षम बनाने की सोच को विकसित करने की जरूरत है ।
मुझे विश्वास है कि ना सिर्फ आप शिवानी को आशीर्वाद देंगे बल्कि आप भी अगर कहीं कमजोर महसूस करते हैं की बेटी है तो उसे एक्स्ट्रा संरक्षण की जरूरत है मुझे नहीं लगता की बेटियां कमजोर है यदि आप उसे एम्पावर्ड करें तो ।
आपको उस से संबल देते रहना होगा और उसे जीवन प्रबंधन की स्किल से भर देना होगा ......!!

शुक्रवार, सितंबर 07, 2018

पैरेरल यूनिवर्स हो सकते हैं ? -गिरीश बिल्लोरे मुकुल

पैरेलल यूनिवर्स की परिकल्पना और उस यूनिवर्स में पहुंचने के तौर-तरीके के संबंध में जो बात विजुअल मीडिया पर मौजूद है उस पर चर्चा करना चाहता हूं पैरेलल यूनिवर्स के संबंध में साफ कर देना चाहता हूं कि पैरेलल यूनिवर्स किसी भी स्थिति में मौजूद तो है असंख्य पैरेलल यूनिवर्स मौजूद है न की हमारे सौरमंडल से जुड़ा हुआ कोई एक मात्र सौरमंडल लेकिन एक सौरमंडल से दूसरे सौरमंडल में प्रवेश के कोई शॉर्टकट रास्ता है यह समझने के लिए ब्लैक होल थ्योरी को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है ।
मेरे हिसाब से पैरेलल यूनिवर्स में प्रवेश का तरीका केवल यांत्रिक होगा किंतु प्रोफ़ेसर हॉकिंस को अनदेखा करना भी गलत ही है इसका कारण है कि जो चुंबकीय रास्ते ब्लैक होल में तैयार होते हैं वह किधर जाते हैं यह एक सोचने का बिंदु है ।
मुझे लगता है और मैं महसूस भी करता हूं कि एक सौर मंडल दूसरे सौरमंडल से किसी तरह के ब्लैक होल से अवश्य ही जुड़ा होगा ब्लैक होल हमारे उस तक जाने का एक माध्यम होना असंभव है । अगर ऐसा है तो कभी भी उस माध्यम से किसी का आगमन होना किसी ने भी महसूस नहीं किया ना ही विश्व के किसी भी रडार, उपग्रहों ने ब्लैक होल के जरिए पृथ्वी पर प्रवेश करने वाले बाहरी प्राणियों वस्तुओं का आगमन रिकार्ड बिल्कुल नहीं किया । ऐसे कोई प्रमाण भी मौजूद नहीं है जिससे ब्लैक होल के जरिए धरती पर आने की पुष्टि हो सकी है ।
जहां तक नासा की रिसर्च का सवाल है नासा ने भी ऐसा कोई भी तथ्य आज तक जारी नहीं किया जिससे यह साबित हो कि ब्लैक होल के जरिए कोई यात्रा करते हुए हमारे यूनिवर्स में अथवा हमारी पृथ्वी पर अथवा सौरमंडल के किसी ग्रह में आया हो ।
जहां तक प्रश्न उठता है हमारी सौर मंडल में आने का तो बात स्पष्ट है की यांत्रिक तरीके से सामान्य यात्रा के जरिए हम कहीं जा सकते हैं अथवा कोई हम तक आ सकता है यात्रा के जो प्राकृतिक नियम है उसके बगैर अभी यह कहना मुश्किल है कि अन्य किसी सौरमंडल में हम किसी होल या ब्लैक होल के जरिए प्रवेश करें अब प्रश्न यह भी उठ रहा है कि क्या एक और समानांतर पृथ्वी है जहां समानांतर युग चल रहा है और उसका विकास आज की तरह है या हमारा एक दूसरा अनुरूप वहां पर मौजूद है । तो अवश्य ऐसे कई ग्रह हो सकते हैं जहाँ जीवन हो पर यह तथ्य केवल फंतासी है कि हमारे ग्रह की तरह कोई ग्रह है जहां हमारी जीवंत प्रकृतियाँ हैं ।
ऐसा सोचना गलत है यह मान्य है कि एक पृथ्वी हो सकती है जिसमें जीवन हो और वह किसी अन्य सौरमंडल का हिस्सा हो लेकिन यह सत्य नहीं है कि एक जो आप लेख पढ़ रहे हैं वह लेख किसी अन्य लेखक जो मेरा प्रतिरूप हो और उसे पढ़ने वाला आप का प्रतिरूप हो यह केवल काल्पनिक और गुमराह करने वाला तथ्य है जैसा कि YouTube के वीडियोज़ पर डाला गया है ।
जिसे कई लोग उसे सत्य भी मान भी चुके हैं।
सुधि पाठको इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि समानांतर सौर्य मंडल है । मैं तो उसके आगे भी कहता हूं कि हमारे समानांतर घई सौरमंडल है या यह भी अंतरिक्ष में केवल हमारा सौरमंडल ही मौजूद है बल्कि अंतरिक्ष में हजारों-हजार सौरमंडल की मौजूदगी से इनकार भी नहीं किया जा सकता अतः शोध के बिना अफवाह है कि- आप का प्रतिरूप किसी अन्य अंतरिक्ष से पृथ्वी के समतुल्य ग्रह पर मौजूद है बल्कि यह कल्पना अवश्य की जा सकती है कि उस अंतरिक्ष में हमारे जैसा संयोगवश कोई व्यक्ति घटना अथवा परिस्थिति मौजूद हो कई बार हमें किसी और को देखकर अपने मित्र का स्मरण हो आता है अपने परिचित का स्मरण हो आता है क्योंकि बहुत सारी बातें उस व्यक्ति ने आपके निकट परिचित रिश्तेदार के समान होती हैं और यह भी सत्य है कि दुनिया में एक जैसे कई व्यक्ति हो सकते हैं कम से कम एक तो तय है ।
( *गिरीश बिल्लोरे मुकुल* सोशल मीडिया एवम ब्लॉग रायटर हैं । )

सोमवार, सितंबर 03, 2018

काश आज तुम होते कृष्ण


भारत का भगवान जिसने बचपन को भरपूर जिया उनके जन्मपर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं*
💐💐💐💐
दुनियाँ भर के ऐसे पिता माता जो निर्णय थोपते तो लगता है उनके बच्चे बच्चे नहीं *प्रजा* हैं और वे *सम्राट एवम साम्राज्ञी* !
कल जब वे आए तो लगा .. आज एक नए राजा रानी आए हैं । बालमनोविज्ञान को घर की किसी सन्दूक में बंद करके उस पर अलीगढ़ी ताला मारके आने वाले ये राजा रानी मुझसे बताने लगे कि वे अपनी बेटी के लिए सब कुछ करने तैयार हैं । बेटी को रंगकर्म सीखना है । आइये इन राजा रानी और मेरे बीच हुए संवाद को देख लेते हैं -
मैं : आइये बैठिए
राजा :- हमारी बेटी को अभिनय सीखना है हमें अमुक जी ने आपकी संस्था के लिए सजेस्ट किया है
रानी :- बेटी को एक सीरियल में काम मिलेगा ऐसा बंदोबस्त हुआ है 5-6 माह बाद उसका स्क्रीन टेस्ट होगा ।
मैं :- बेटी कहाँ है ?
रानी :- स्कूल गई है ।
मैं :- ले आइये
राजा :- वहीं से कोचिंग जाएगी
मैं :- क्यों स्कूल में पढ़ाई नहीं कराते क्या ?रानी :- गणित में कमज़ोर प्रतीत होती है ।
मैं :- और विषय
राजा :- हमने सोचा सारे विषय की कोचिंग करा दें
मैं :- तो स्कूल की फीस नाहक दे रहे हो स्कूल छुड़वा दीजिये !
राजा :- (खुद को बचाने की गरज से) सर, इनको समझाया था पर ये तो ये ही हैं
इस बीच पहली बार सर शब्द सुनकर लगा गोया....आसमान का परिंदा थक कर नीचे पेड़ की शाखा की ओर आ रहा है !
रानी :- जी सर ये असंभव है , स्कूल छुड़ाना प्रैक्टिकली कैसे संभव है !
मैं :- तो फिर ट्यूशन छुड़वाई जा सकती है ?
रानी :- परन्तु क्यों ?
मैं :- वो इस लिए कि आपकी बेटी के पास समय कम है 6 माह में नाट्यकर्म सीखना है उसे 3 बजे तक स्कूल फिर ट्यूशन साढ़े चार तक और तुरंत 15 मिनिट में बालभवन पहुंचना जहां उसे कुछ सीखना है ।
राजा :- सर वो कर लेगी !
मैं :- आपकी बेटी से पूछा आपने ?
रानी - उससे क्या पूछना
राजा रानी जानतें हैं प्रजा की हक़ीक़त वे क्यों पूछेंगे । जन्म दिया, स्कूल ट्यूशन खाना वाना, सारा इन्वेस्टमेंट उनका तो बेटी से पूछताछ क्यों ? किसी ने क्या खूब कहा है कि - सत्ता को महल के बाहर की ध्वनियाँ कम ही सुनाई देती हैं । सत्ता शासक और प्रजा के बीच ऐसा ही रिश्ता
होता है । तभी तो कहा जाता है :- *जस राजा तस प्रजा*
साफ साफ समझ आ गया था कि माता पिता अब साम्राज्ञी-सम्राट बन चुके हैं । वे सर्वज्ञ हैं ऑलमाइटी हैं । कमाते हैं प्रजा पर खर्च करते हैं । धन के साथ अपने सपनों की खाद डाल कर बच्चों की फसल को बढ़ाते हैं सौदा करने के लिए प्रोडक्ट को मार्केट के हिसाब से ग्रूमिंग की अपॉरचुनिटी देनी हैं उनको । सेलेबल बनाके छोड़ेंगे । अभी तो फ़िलहाल हमने उनको सलाह दी कि हम आपकी बेटी के योग्य नहीं हम उसे निरन्तर काम में झौंकने में आपका साथ न दे सकेंगे । क्योंकि हम यहां बच्चों के लिए काम करतें हैं *आपकी बेटी रोबोट* है । रोबोट के साथ हमारे बच्चे असहज महसूस करेंगे । प्लीज़ आप इसे मुंबई के किसी संस्थान में भेज दें ।
फ़िलहाल तो हमने उनको निराश कर दिया है । पर एक बात यह अवश्य ही कही है कि बेटी से मिलवा दीजिये फिर देखता हूँ । कल फिर आएंगे वे बेटी के साथ मयूझे इंतज़ार रहेगा ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

सावधान ओशो को भी हाईजैक कर रहे हैं आयातित विचारधारा के लोग

आज एक मित्र ने आखिरकार ओशो को नक्सलवाद का पैरोकार बताने वाली पोस्ट डाली है भाई साहब ने उस पोस्ट का क्रिया कर्म उसके शीर्षक को बदल कर प्रस्तुत कर दिया बौद्धिक विपन्नता किस दर्जे तक पहुंच गई है इसका अंदाज आप स्वयं बताएं और जाने किस समाज का एक खास वर्ग कितना कुंठित सोचता है फिलहाल मैं इस पोस्ट को हूबहू यहां प्रकाशित कर रहा हूं ।
लेकिन इस प्रकाशन के पहले अपनी बात कह देना चाहता हूं की ओशो का यह प्रवचन जो मेरे गले पूरा-पूरा तो नहीं उतरा कुछ बिंदुओं पर सहमति है किंतु उन्होंने यह कहा कि 5000 साल से कोई क्रांति ही नहीं हुई है मैं नहीं मानता कि 5000 साल से इस विश्व विराट में कोई क्रांति नहीं हुई आजादी के लिए हुआ संघर्ष क्रांति ना थी तो क्या था निश्चित तौर पर ओशो को अपने इस भाषण में इस बात का स्मरण आ रहा होगा ठीक एक जगह ओशो यह कहते हैं की नक्सलाइट हमारी शत्रु नहीं है ओशो जब प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं तो लगता है की प्रेम की संपूर्ण परिभाषा ओशो में उतर आई है लेकिन जब नक्सलाइट समस्या को डिस्क्राइब करते हैं तो लगा कि नहीं यहां उसने कोई गलती की है समझने की यह समझाने की ऐसा कैसे हो सकता है कि नक्सलाइट समाज के दुश्मन ना हो नक्सलाइट समाज के दुश्मन है यह लगता है कि ऐसा माना जाता था की किसी समस्या के कारण अधिकारों के लिए जद्दोजहद के कारण कुछ कम पढ़े लिखे लोग जिन्हें आयातित विचारधारा ने बंदूक उठाने पर मजबूर कर दिया नए समाज विरोधी रास्ता अख्तियार किया मित्रों आप सब समझदार हैं जिसका परिणाम क्या हुआ जेएनयू से लेकर भीमा गांव तक का सफर यूं ही तो नहीं किया है इन लोगों ने समाज विरोधी हैं हिंसक है भारत की व्यवस्था प्रजातांत्रिक है उसे मजबूती देने के लिए आगे तो आते अपनी बात कहने के सरल सुगम शांतिपूर्ण रास्ते तो अपनाते फिर भला कैसे उनके अधिकारों का हनन होता आज के दौर में हम देखते हैं कि ब्यूरोक्रेट्स भी टॉप ब्यूरोक्रेट्स भी वह पुराना चोला उतार कर जिसमें वह साहब कहे जाते थे जन सेवक के रूप में सामान्यतः पब्लिक के सामने खड़े होते हैं ।
इतना ही नहीं भारतीय न्याय व्यवस्था जो मूलतः है हंबल है जनापेक्षि है  उस पर भरोसा है विश्वास है कि न्याय अवश्य मिलेगा मिलता भी है आपने देखा भी है समझा भी है संविधान के दायरे में जो भी बात होती है  उसकी उपेक्षा कर एक तीसरा रास्ता अपनाने वाले लोग समझने कि भारतीय संवैधानिक व्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ एवं प्रतिबद्धताओं से भरी पड़ी है अब जरूरत नहीं है बंदूक उठाने की जरूरत तो तब भी ना थी जब नक्सलवाद की शुरुआत हुई क्या जरूरत थी बंदूक की जगह उनका अध्ययन बढ़ाते उन्हें सुयोग्य बनाते उनमें एक समरसता का भाव पैदा करते तो क्या बुरा था यह प्रयोग तो कर लिया होता जेएनयू जैसी घटनाएं तो नहीं होती वह दौर मजदूरों के हित में बात करने का दौर था बात की भी गई सुना भी गया तब की व्यवस्था में संकीर्णता नहीं थी व्यापक सोच थी और विकास अनुक्रम में देश को इस तरह गुमराह किया है कि नक्सलवादी आंदोलन हिंसा का पर्याय बन चुका है बस्तर या कश्मीर से जुड़ चुका आंदोलन अलगाववाद की खतरे की घंटी है ।
भारत की संप्रभुता के साथ छेड़छाड़ होती है और एक गुप्त एजेंडा जारी रहता है जिसमें एक कोशिश होती है कि भारत को कमजोर सांप और सपेरों के देश के रूप में साबित किया जाता है ऐसा करने से आपकी सियासी हसरतें तो पूरी हो सकती हैं लेकिन ध्यान रहे यह उन लोगों का अपमान है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को उच्चतम स्थान पर ले जाने के लिए काम कर रहे हैं यह वह लोग हैं जो अपने घरों से हजारों हजार किलोमीटर दूर रहकर देश के लिए सम्मान और डॉलर दोनों कमा कर दे रहे हैं ध्यान रहे यह विकास इस देश का विकास ही नहीं है बल्कि यह समूची व्यवस्था का विकास है आप इसका विश्लेषण करेंगे कि देश का विकास और हो समूची व्यवस्था का विकास क्या है  अंतर आपको बता देना चाहता हूं देश का विकास जीडीपी नापा जोखा जा सकता है जबकि संपूर्ण व्यवस्था का विकास सामाजिक स्तर को बदलने का सूचक है  जिसे केवल वाइटल स्टेटिस्टिक्स के जरिए नापा जा सकता है ।
यहां ओशो ने जो कहा कि बदलाव स्वीकार करना चाहिए समाज में बदलाव स्वीकार किए हैं और उसी स्वीकारोक्ति के चलते भारत एक ऐसी मुकाम पर खड़ा हुआ है जहां से वह गर्व से अपना सिर ऊंचा उठा सकता है ।
 तो मित्रों देखिए ओशो ने क्या कहा है अपने प्रवचन में और इस प्रवचन से पूरी तरह सहमत होना ना तो मेरी मजबूरी थी मैं सहमत भी नहीं और ना ही आप वर्तमान संदर्भों में सहमत होंगे जबकि भीमा गांव में जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाए जा रहे हो फेडरल स्टेट की धज्जियां उड़ाने कुछ बुद्धिजीवी आगे आ रहे हो ऐसी स्थिति में किसी भी नक्सलवाद को स्वीकारना विघटनकारी अलगाववाद को स्वीकारना या पाकिस्तान की तरह अच्छे और बुरे टेररिज्म को परिभाषित करना स्वीकार योग्य नहीं अस्तु आप अपनी राय अवश्य दें कोशिश कर रहा हूं यह कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है यह बताने की जरूरत इसलिए है कि यह भारतीय समाज से जुड़ा वह मुद्दा है जिससे आइंदा नस्लों का जीवन स्तर सुरक्षित रहेगा भारतीय परिवेश में डेमोक्रेसी के अलावा किसी भी चीज को स्वीकार नहीं किया जा सकता और ना ही हम ऐसे किसी प्रयास को स्वीकार करने की अनुमति एक लेखक के रूप में देंगे हमारी ड्यूटी है कि हम आपको सतर्क कर दें आपको लड़खड़ाने ना दे आप को संभाल ले हमारे विषय जब तक मानवता है तब तक सजीव है जीवंत हैं हमारी ड्यूटी है कि हम किसी भी स्थिति में हिंसा को अस्वीकार करें और भारत के महान ऐश्वर्य को पुनर्स्थापित करें बुरा लगेगा आयातित विचारों को कि मैं यह क्या कह रहा हूं भारतीय संस्कृति सामाजिक  समानता की दिशा में अपने कदम बढ़ा चुकी है व्यवस्था का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है ऐसी स्थिति में हम नक्सलवाद की परिभाषा को ओशो के सहारे सिद्ध करने की बेवकूफी भरी कोशिश ना करें मित्रों अब देखें ओशो का वह भाषण जिसे सनसनीखेज शीर्षक के साथ मेरे मित्र ने लगाया है और मैं उस मित्र को क्षमा करता हूं लेकिन इस निर्देश के साथ कि कोई भी विचारधारा जो रक्त पात की ओर जाए हिंसा को बढ़ावा दें अमान्य है लग रहा है चाहे उसे आप कोई भी परिभाषा दें
*"नक्सल एक तीव्र रिएक्शन है, जो बिलकुल जरूरी था।*
इसलिए जितने हम जिम्मेवार हैं नक्सलाइट पैदा करने के लिए, उतने वे बेचारे जिम्मेवार नहीं हैं। वे तो बिलकुल निरीह हैं। उनको मैं जरा भी जिम्मा नहीं देता। मैं निंदा के लिए भी उनको पात्र नहीं मानता, क्योंकि निंदा उनकी करनी चाहिए जिनको रिसपोन्सिबिल, जिम्मेवार मानूं।
हम इररिसपोन्सिबिल हैं।
( यहाँ ओशो ने प्रतिक्रिया को भाषित करने के प्रयास किये  हैं पर इनके लिए कौन सा टूल उपयोगी होगा इस बात को प्रवचन में शामिल न किया ओशो ने । स्वाभाविक के संवाद में कोई बात छूट भी जाती है चलेगा प्रवचन है इसे प्रवचन ही मानूँगा ।)
हमने पांच हजार वर्ष से जरा भी क्रांति नहीं की है, जरा भी नहीं बदले हैं, एकदम मर गये हैं। तो इस मरे हुए मुल्क के साथ कुछ ऐसा होना अनिवार्य है। लेकिन वह शुभ नहीं है।

और उसको अगर हमने क्रांति समझा तो खतरा है।
रिएक्शनरी हमेशा उल्टा होता है और आप जो कर रहे हैं उससे उल्टा करता है। रिएक्शनरी वहीं होता है, जहां हमारा समाज होता है। सिर्फ उल्टा होता है। वह शीर्षासन करता है। हम जो यहां कर रहे हैं, वह उसका उल्टा करने लगता है।

जिस जगह आप हैं, उससे गहरा वह कभी नहीं जा सकता है, क्योंकि आपका वह रिएक्शन है। अगर आपने मुझे गाली दी और मैं भी तुरंत गाली देता हूं तो आपकी और मेरी गाली एक ही तल पर होनेवाली है, क्योंकि उसी तरह मैं भी गाली दे रहा हूं तो मैं भी गहरा नहीं हो सकता, गहरा हुआ नहीं जा सकता। गहरे होने के लिए भारत में नक्सलाइट कुछ नहीं कर पायेगा।
(एक सत्य है असहमति की गुंजाइश उस काल के परिपेक्ष्य में न होगी आज है जब भारत तेरे टुकड़े होंगे कि गूंज सुनाई देती है ।)
नक्सलाइट सिर्फ सिम्पटमैटिक हैं - सिम्पटम, बीमारी के लक्षण हैं।
बीमारी पूरी हो गयी है और अब नहीं बदलते तो यह होगा। यानी यह भी बहुत है, यह भी मेरी दृष्टि में।
लेकिन अगर तुम नहीं बदलते हो और इसके सिवाय तुम कोई रास्ता नहीं छोड़ते हो, अगर क्रांति नहीं आती तो यह प्रतिक्रिया ही आयेगी।
(ओशो यहां जटिल हैं कदाचित कंफ्यूज भी ।)
अब दो विकल्प खड़े होते हैं मुल्क के सामने--या तो क्रांति के लिए तुम एक फिलॉसफ़िक रूट, वैचारिक आयाम की बात करो और क्रांति को एक व्यवस्था दो और क्रांति को एक सिस्टम दो और क्रांति को एक क्रिएटेड फोर्स बनाओ।
(तत्समय के लिए समीचीन बात आज के माहौल के सर्वथा विपरीत है रहा क्रांति के सिस्टम को विकसित करने का ओशो किससे अपेक्षा कर रहें हैं । क्रांति के स्वरूप को सिस्टमेटिक कैसे किया जाता है इसकी प्रविधि क्या है ढांचा कैसा हो ? इस सवालों पर भी ओशो मौन थे । )
अगर नहीं बनाते हो तो अब यह होगा यानी नक्सलाइट जो हैं वे हमारी वर्तमान समाज-व्यवस्था के दूसरे हिस्से हैं। ये दोनों जाने चाहिए। सोसायटी भी जानी चाहिए और उसका रिएक्शन भी जाना चाहिए, क्योंकि यह बेवकूफी ही थी सोसायटी का साथ देना।
(मान लिया कि एक सिस्टम क्रांति के लिए तैयार होना था न हुआ तो क्या मुद्दे बदलना था नक्सलियों को यदि हां तो क्यों )
ये जो घटनाएं हैं, ये इसी के पार्ट एंड पार्सल, सहज परिणाम हैं।
आमतौर से ऐसा लगता है कि नक्सलाइट दुश्मन हैं। मैं नहीं मानता कि वे दुश्मन हैं। वे इसी सोसायटी के हिस्से हैं, इसी सोसायटी ने उसे पैदा कर दिया है। इसने गाली दी है तो उसने दुगुनी गाली दी है, बस इतना फर्क पड़ा है। मगर यह माइंड, चित्त इसी से जुड़ा हुआ है। यह सोसायटी गयी तो वह भी गया। अगर यह नहीं गयी, तो वह भी जानेवाला नहीं है। यह बढ़ता चला जाएगा।
(सोसायटी को ज़िम्मेदार ठहराया है बात सही है परंतु आज स्थिति वैसी नहीं फिर भी बंदूकों का मोह क्यों नहीं छोड़ते नक्सली )
अब मेरा कहना यह है कि क्रांतिकारी के सामने दो सवाल हैं।
ठीक विचार करनेवाले के सामने दो सवाल हैं।
वह यह कि या तो सोसाइटी में क्रांति आये - सृजनात्मक रूप में - और नहीं आ पाती है तो नक्सलाइट विकल्प रह जायेगा। और वह कोई सुखद विकल्प नहीं है। वह सुखद भी नहीं है, गहरा भी नहीं है, जरा भी गहरा नहीं है।

वह उसी तल पर है, जहां हमारा समाज है। वह सिर्फ रिएक्शन कर रहा है, वह जरूरी है। यह मैं नहीं कहता कि बुरा है तो गैर-जरूरी है। बुरा है, नहीं हो, ऐसी हमें व्यवस्था करनी चाहिए। और वह व्यवस्था हम तभी कर पायेंगे जब हम पूरी सोसाइटी को बदलेंगे।
नक्सलाइट को हम रोक नहीं पायेंगे, उनको रोकने का सवाल ही नहीं है।
पूरी सोसाइटी उसे पैदा कर रही है, इसका जड़ होना उसको पैदा कर रहा है, इसके न बदलने की आकांक्षा उसको पैदा कर रही है, इसका पुराना ढांचा उसको पैदा कर रहा है, यह ढांचा पूरी तरह गया तो इसके साथ नक्सलाइट गया।
नक्सलाइट एक संकेत है, जो बता रहा है कि सोसाइटी इस जगह पहुंच गयी कि अगर क्रांति नहीं होती तो यह होगा। और अब यह सोसाइटी को समझ लेना चाहिए। वह पुराना ढांचा तो नहीं बचेगा।
या तो क्रांति आयेगी या यह ढांचा जायेगा।
ये दो चीजें आ सकती हैं और अगर आप मर्जी से लायें तो क्रांति आयेगी, अगर आप सोचकर लायें तो क्रांति आयेगी, विचार करके लाएं तो क्रांति आयेगी और अगर आप क्रांति न लायें, इसके लिए जिद में रहें कि नहीं आने देंगे तो यह विचारहीन प्रतिक्रिया आयेगी।
-ओशो
भारत : समस्याएं व समाधान
प्रवचन नं. 1 से संकलित

गुरुवार, अगस्त 30, 2018

अचार की एक फांक : हरेश कुमार की वाल से

 

गुरुकुल घरोंदा के एक आचार्य थे। वे जनसंघ के टिकट पर सांसद बन गए, तो उन्होंने सरकारी आवास नहीं लिया। वे दिल्ली के बाजार सीताराम, दिल्ली-6 के आर्य समाज मंदिर में ही रहते थे । वहां से संसद तक पैदल जाया करते थे कार्रवाई में भाग लेने।

वे ऐसे पहले सांसद थे, जो हर सवाल पूछने से पहले संसद में एक वेद मंत्र बोला करते थे। वे सब वेदमंत्र संसद की कार्रवाई के रिकॉर्ड में देखे जा सकते हैं। उन्होंने एक बार संसद का घेराव भी किया था, गोहत्या पर बंदी के लिए ।

एक बार इंदिरा जी ने किसी मीटिंग में उन स्वामी जी को पांच सितारा होटल में बुलाया। वहां जब लंच चलने लगा तो सभी लोग बुफे काउंटर की ओर चल दिये। स्वामी ही वहां नहीं गए । उन्होंने अपनी जेब से लपेटी हुई बाजरे की सूखी दो रोटी निकाली और बुफे काउंटर से दूर जमीन पर बैठकर खाने लगे। 

इंदिरा जी ने कहा - "आप क्या करते हैं ? क्या यहां खाना नहीं मिलता ? ये सभी पांच सितारा व्यवस्थाएं आप सांसदों के लिए ही तो की गई है।"

तो वे बोले - "मैं संन्यासी हूं। सुबह भिक्षा में किसी ने यही रोटियां दी थी । मैं सरकारी धन से रोटी भला कैसे खा सकता हूं।"

इंदिरा जी का धन्यवाद देते हुए होटल में उन्होंने इंदिरा से एक गिलास पानी और आम के अचार की एक फांक ली थी।जिसका भुगतान भी उन्होंने इंदिरा जी के मना करने के बावजूद किया था !

जानते हैं यह महान सांसद और संन्यासी कौन थे?

ये थे संन्यासी स्वामी रामेश्वरानंद जी। कट्टर आर्य समाजी। परम गौ भक्त । अद्वितीय व्यक्तित्व के स्वामी जी ।
स्वामी जी हरियाणा के करनाल से सांसद थे । 
ऐसे अनेकों साधक हुए इस देव भूमि भारत पर , लेकिन हम नेहरू-गांधी के आगे देख नही पाए । शायद हमें पढ़ाया भी नहीं गया । कभी मौका लगे तो आप भी अवश्य जानिए ऐसे व्यक्तित्वों को। भारत को तपस्वियों का देश ऐसे ही नहीं कहा जाता ।

बुधवार, अगस्त 29, 2018

स्वर्ग की बातें झूठी बातें


स्वर्ग की बातें झूठी बातें,इल्म तो है मस्ताने को
हम क्यों जाएं पागलखाने पागल को समझाने को
जब भी हम खुद से मिलते हैं,खुद को जाना करते हैं
हम खुद से ही फिर सीखेंगे,क्यों आए समझाने को
कितने पंथ कितनी राहें,कितने दर्शन कितनी सोच
हम तो हैं कबीर के अनुचर,गीत हमें भी गाने दो
अपनी गठरी खुद ही रख लो,हमको मत दो बोझा ये
हम खुद अपना कमा ही लेंगे,खुद को भी अजमाने दो
ईश्वर अल्लाह परमपिता सब से मिलना है हमको
किसने सौंपा तुमको जिम्मा इन सब से मिलवाने को
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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